Saturday, October 23, 2010

कामुक-कहानियाँ बदला पार्ट--20

कामुक-कहानियाँ

बदला पार्ट--20

गतान्क से आगे...
अपने क्वॉर्टर मे खड़ा इंदर फोन पे बात कर रहा था,"..मैं तो घबरा ही गया
था कि पता नही दवा काम भी कर रही है या नही मगर रात को खबर सुनी तो दिल
खुश हो गया.पहली मंज़िल मिल गयी है अब आगे के बारे मे सोचना
है..हां...ओके....बिल्कुल...ठीक है...मैं होने देता हू पागल की
शादी...अच्छा.",उसने फोन रख दिया.कितना खुशी का दिन था आज!उसका दिल करा
रहा था कि जश्न मनाए मगर मजबूरी थी,वो ऐसा नही कर सकता था.उसने अपनी
अलमारी से अपना फ़्लास्क निकाला & जल्दी-2 2 घूँट भरे.

शराब की जलन ने उसके कलेजे को हमेशा की तरह ठंडक पहुचाई & उसका मन फिर से
शांत होगया..अभी तो बस शुरुआत थी..अभी तो बहुत से काम थे.उसने फ़्लास्क
वापस रखा & क्वॉर्टर बंद कर बंगल की तरफ चला गया.

रात को करीब 12 बजे उसे शिवा का फोन आया था.ये तो ख़ैरियत थी की वो उस
वक़्त अपने क्वॉर्टर मे ही था वरना उसकी मोबाइल भूलने की बड़ी गंदी आदत
थी & हर रात जब वो रजनी को चोदने उसके क्वॉर्टर जाता तो अपना मोबाइल अपने
क्वॉर्टर मे ही भूल जाता.कल रात के मौसम ने रजनी को इतना पागल कर दिया था
कि वो खुद ही उसके क्वॉर्टर मे आ गयी थी.दोनो फ़ौरन नंगे हो इंदर के
बिस्तर मे घुस गये थे & इंदर ने उसे उसके घुटनो & हाथो पे कर डॉगी स्टाइल
मे लंड पीछे से डाला ही था की शिवा का फोन आया की सहाय की तबीयत बहुत
खराब है.

वो & रजनी फ़ौरन वाहा पहुँचे,एस्टेट का डॉक्टर बहुत कोशिश कर रहा था मगर
दिल का दौरा बहुत ज़ोर का था.जब से सहाय को ये बीमारी हुई थी देविका ने
एस्टेट की डिसपेनसरी के डॉक्टर को बीमारी की एमर्जेन्सी मे काम आने वाली
हर दवा & चीज़ रखने का हुक्म किया था मगर सुरेन सहाय के दिन इस धरती पे
पूरे हो चुके थे.डॉक्टर ने आख़िर कोशिश कर उनके दिल मे सीधा अड्रेनलिन का
इंजेक्षन दिया मगर उसका भी कोई असर नही हुआ.

सुरेन सहाय की मौत हो चुकी थी & इंदर को अपने नापाक इरादे पूरे होते दिखने लगे थे.

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"चीएंन्‍णणन्.....!",कार के ब्रेक की कर्कश आवाज़ से इंदर अपने ख़यालो से
बाहर आया.वो बंगल के पोर्च मे पहुँच चुका था.सवेरे के 6 बज रहे थे & भाई
की मौत की खबर सुन वीरेन वाहा पहुँच चुका था.दरवाज़ा खोल वो तेज़ी से
उतरा तो इंदर उसे देखते ही पहचान गया मगर दूसरे दरवाज़े से निकलती कामिनी
को वो नही पहचान पाया.

कामिनी & वीरेन हॉल मे घुसे जहा से सारा फर्निचर हटा दिया गया था.1 कोने
मे 1 स्टूल पे सुरेन जी की तस्वीर रखी थी & उसके आगे अगरबत्ती जल रही
थी.तस्वीर के पास ज़मीन पे बिछे गद्दे पे देविका बैठी थी & उसके पीछे
रजनी.कामिनी ने देखा की देविका के चेहरे पे आँसुओ के निशान पडे हुए थे &
उसकी आँखे बिल्कुल लाल थी.वो बस 1बार मिली थी उस से लेकिन उस छ्होटी सी
मुलाकात मे उसे इतना तो अंदाज़ा हो अगया था की देविका अपने पति के लिए
बहुत फ़िक्रमंद रहती थी.

अभी कामिनी को वो बात करने की हालत मे नही लगी.वीरेन धदड़ाता हुआ हॉल मे
दाखिल हुआ था मगर देविका को मानो कुच्छ पता ही नही चला था.अभी तक कोई भी
रिश्तेदार या जान-पहचान वाला नही पहुँचा था.वैसे भी अभी तो सुबह हुई ही
थी.वो जानती थी की 1-2 घंटे मे यहा लोगो का ताँता लग जाएगा.

वीरेन अपनी भाभी के पास गया & उसके सामने बैठ गया.देविका ने अपनी आँखे
उसकी ओर की और बस देखती रही.काफ़ी देर तक दोनो बस बैठे हुए 1 दूसरे को
देखते रहे.कामिनी ने गौर किया तो देखा की दोनो की आँखो से आँसू बह रहे
हैं मगर रुलाई की आवाज़ नही आ रही है.शिवा & इंदर हॉल के दरवाज़े पे खड़े
थे जहा इंदर शिवा से इन दोनो का परिचय ले रहा था.कामिनी शरण का नाम सुन
इंदर का दिल फिर से परेशान होने लगा.वो ठुकराल & षत्रुजीत सिंग वाले केस
के बारे मे सुन चुका था & जानता था की उसकी आँखो मे धूल झोंकना आसान नही
होगा.

तभी हॉल के सन्नाटे को किसी के रोने की तेज़ आवाज़ ने तोड़ा,ये प्रसून
था.उसे देखते ही वीरेन उठा & उसे अपने गले से लगाकर दिलासा देने लगा.7
बजते ही लोग आने शुरू हो गये.वीरेन ने शिवा & इंदर से बात कर रात के
हादसे के बारे मे सब कुच्छ जान लिया था & अब घर का बड़ा होने के नाते उसे
ही सारी ज़िम्मेदारिया निभानी थी.कामिनी ने देखा की कारोबार की
ज़िम्मेदारी उठाने से इनकार करने वाला वीरेन इस मुसीबत के मौके पे अपने
परिवार के लिए बिल्कुल मुस्तैदी से डटा हुआ था.

लोगो की भीड़ आई तो उसमे कामिनी के भी काई जानने वाले थे.थोड़ी ही देर मे
सुरेन जी के शरीर को अंतिम संस्कार के लिए श्मशान लेजाया गया.अब घर मे
केवल औरते ही बची थी.कामिनी को कुच्छ सवाल करने थे मगर उसे समझ नही आ रहा
था की किस से पुच्छे.उसने तय किया की सही वक़्त आने पे वो सीधा देविका से
ही बात करेगी.उसे इस मौत के बारे मे सब जानना था,आख़िर वो इस परिवार की
वकील थी.

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गाड़िया श्मशान घाट की ओर रवाना हो रही थी.शिवा ने इंदर को अपने साथ चलने
को कहा था मगर वो ना जाने कहा नदारद था!..देर हो रही थी..शिवा ने खिज के
कलाई घड़ी की ओर देखा & फिर इंदर को ढूँडने चल पड़ा.थोड़ी ही दूर पे बंगल
& क्वॉर्टर्स के रास्ते के किनारे उगी झाड़ियो के बीच वो उसे खड़ा नज़र
आया.उसने देखा की वो अपनी जेब से कुच्छ निकाला & उच्छाल के फेंक दिया.वो
कोई नारंगी रंग की चीज़ थी.

ऐसा क्या था?....शिवा के अंदर का सोया फ़ौजी जाग उठा.उसने अपनी ट्रैनिंग
मे सीखी बातो से उस चीज़ के गिरने की जगह को आँका & फिर फुर्ती से वापस
जीप के पास आ खड़ा हो गया.थोड़ी ही देर मे इंदर वाहा भागता
पहुँचा,"सॉरी,शिवा भाई..वो.",उसने अपने दाए हाथ की सबसे छ्होटी उंगली को
उपर कर पेशाब जाने का बहाना बनाया.

"हूँ.",शिवा ने जीप स्टार्ट की & दोनो वाहा से निकल लिए.

इंदर दवा की वो डिबिया फेंक रहा था जिसे उसने पंचमहल वाले सुरेन जी के
बंगल मे उनकी डिबिया से बदल के रखा था.कल उनके दिल के दौरे के बाद मची
अफ़रा-तफ़री मे उसने मौका देख वो डिबिया फिर से बदल दी थी & कुच्छ ही
दीनो पहले बाज़ार से खरीदी दूसरी डिबिया वाहा रख दी थी.अब सब यही समझते
की सुरेन जी के कमज़ोर दिल ने उन्हे धोखा दिया किसी को ये नही पता चलता
की उस दिल को धोखा देने पे मजबूर किया था उस दवा ने जोकि अभी झाड़ियो के
बीच गिरी हुई थी.

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कामिनी सवेरे तो एस्टेट से चली आई थी मगर शाम को वो फिर वाहा पहुँची.उसने
वीरेन से बात की तो पाया की देविका अब थोड़ा संभली हुई थी.वो उस से मिलने
गयी.अपना शोक जता के थोड़ी देर के बाद वो मुद्दे पे आई,"देविका जी,अब जो
मैं बात आपसे कहूँगी होसकता है उसे सुनके आपको लगे की मैं 1 बदतमीज़ &
बेदर्द किस्म की औरत हू मगर मुझे माफ़ कीजिएगा क्यूकी मैं ये बात आपके
वकील के नाते कर रही हू."

"बोलिए,कामिनी जी.क्या जानना है आपको?",दोनो उस वक़्त बंगले के स्टडी रूम मे थे.

"मैं चाहती हू की..की..आप मुझे सुरेन जी की मौत के बारे मे तफ़सील से
बताएँ..मतलब..जब दौरा पड़ा तो वो क्या कर रहे थे..& कौन सी दवाएँ कैसे ली
उन्होने & डॉक्टर कितनी देर बाद पहुँचा."

देविका के चेहरे पे दर्द & गुस्से की लकीरे खींच गयी.

"आपको बुरा लगा ना!मगर यकीन मानिए मुझे भी बहुत बुरा लग रहा है.ये सब
बहुत ज़रूरी है देविका जी मैं नही चाहती की कोई भी उनकी मौत पे सवाल उठाए
& किसी तरह का बखेड़ा खड़ा करे.",कामिनी की बात के बाद देविका के चेहरे
पे बस दर्द रह गया गुस्सा गायब हो गया.

"रात को उन्हे दौरा पड़ा था.."

"हूँ..उस वक़्त आपलोग सोए हुए थे?"

"नही.",देविका ने सर झुका लिया.

"फिर जागे हुए थे?"

उसने हां मे सर हिलाया.

"तो क्या कर रहे थे आप दोनो?,देविका खामोश बैठी थी.कामिनी को लगा की उसका
दुख उसे बोलने नही दे रहा है.वो अपनी कुर्सी से उठ उसकी कुर्सी के हटते
पे जा बैठी & उसकी पीठ पे हाथ फेरने लगी,"बताइए."

"हम..हम....प्यार कर रहे थे.",देविका फफक के रोने लगी.कामिनी ने फ़ौरन
अपनी बाहो मे उसे भर लिया तो देविका उसके सीने से लग फुट-2 के रोने
लगी.कुच्छ पल बाद वो शांत हुई तो कामिनी ने अपनी सारी के पल्लू से उसका
चेहरा पोंच्छा & उसे पानी पिलाया.

"आप दोनो..के प्यार के बीच ही..?",कामिनी ने बात आयेज बधाई.

"हन,एग्ज़ाइट्मेंट इतना बढ़ा की दिल बर्दाश्त नही कर पाया उनका."

"तो फिर आपलोग कैसे करते थे हमेशा..मेरा मतलब है की पहले भी तो आप दोनो..?"

"डॉक्टर ने 1 दवा दी थी उन्हे की जब भी कोई ऐसा काम करे जिसमे बहुत
रोमांच हो ये एग्ज़ाइट्मेंट हो तो वो दवा पहले ले लें."

"दवा कामयाब थी?"

"हां,मगर इधर कुच्छ दीनो से मुझे लग रहा था की वो काम नही कर रही & वो
परेशान हो जाते थे.हम दो दिन बाद हम डॉक्टर के पास जाने वाले थे मगर कल
रात..",फिर से रुलाई ने देविका की बात रोक दी.

"..ग़लती मेरी ही थी.मुझे उस हाल मे देख वो खुद पे काबू नही रख पाए &
उनकी नज़दीकी ने मुझे भी मदहोश कर दिया."

"एग्ज़ॅक्ट्ली दौरा पड़ा कब?"

"जब हम दोनो 1 दूसरे के बिल्कुल करीब थे.",देविका के गाल शर्म से लाल हो
गये थे.कामिनी समझ गयी थी उसकी उलझन,"..वो मेरे उपर ही निढाल से हाँफने
लगे.मैने उन्हे उपर से उतारा & पाजामा पहना के डॉक्टर को बुलाया.उसने
सारी कोशिश की मगर सब बेकार."

"1 बार मुझे अपना कमरा दिखाएँगी."

"ज़रूर."

कामिनी उसके विक्टोरियन फर्निचर से साज़े कमरे को देख रही थी की तभी उसकी
नज़र मेज़ पे पड़ी 1 नारंगी डिबिया पे गयी,"ये क्या दवा है?"

"यही वो दवा है."

"ओह्ह.",कामिनी ने उसे उलट-पलट के देखा & तभी 1 चीज़ उसके दिमाग़ मे
खाटकी,"देविका जी,आपने ये दवा कब खरीदी थी?"

"ठीक से याद नही."

"प्लीज़,ज़रा याद कीजिए."

"कोई 2 महीने पहले.मैं सारे बिल्स रखती हू,देख के आपको सही तारीख बता दूँगी."

"ये बहुत अच्छा रहेगा,चलिए अब मुझे जाना है."

देविका को पता भी नही चला था की कामिनी ने वो डिबिया वापस नही रखी थी
बल्कि अपने पर्स के हवाले कर दी थी.

सुबह के 5 बजे थे & भोर का उजाला अभी पूरी तरह से फैला भी नही
था.ट्रॅक्सयूट पहने शिवा बंगल & सर्वेंट क्वॉर्टर्स को जोड़ने वाले
रास्ते के किनारे बनी सजावटी झाड़ियो के बीच खड़ा था.कल इंदर ने यही खड़े
होके कुच्छ फेंका था.शिवा ये अंदाज़ा लगा रहा था की वो छ्होटी सी चीज़
आख़िर गिरी कहा होगी.

एस्टेट की ज़मीन बड़ी उप्जाउ थी & अगर देखभाल ना की जाती तो घास & जुंगली
पौधे उगने मे देर नही लगती थी मगर यहा के माली ने इस बात का बड़ी
खूबसूरती से इस्तेमाल किया था.ये जुंगली झाड़िया जो रास्ते के किनारे उगी
हुई थी बड़ी खूबसूरत दिखती थी & वो बस उन्हे छांट कर & करीने से कर देता
था.

इन झाड़ियो से थोड़ी दूरी पे अमरूद के कुच्छ पेड़ थे.इंदर ने वो चीज़ उन
पेड़ो की ओर ही फेंकी थी.शिवा उन पेड़ो के बीच घुस गया.इधर हुई बारिश से
ज़मीन पे उगी घास बढ़ गयी थी.वो झाड़िया इन पेड़ो के बीच भी यहा-वाहा उगी
हुई थी मगर ये उनकी तरह तर्तिब से नही थी.ऐसे ही 1 झड़ी मे वो चीज़ गिरी
थी ये शिवा का अंदाज़ा था.

वो करीब 1 घंटे तक ढूंढता रहा मगर उसके हाथ नाकामी ही लगी.हार कर वो बंगल
मे चला आया & नहाने के लिए बाथरूम मे घुस गया.उसने नल खोला & नंगा हो
पानी की बहती धार के नीचे सर लगाके बैठ गया....घर के मालिक की अचानक मौत
हो गयी थी & सभी उसके क्रिया-करम के लिए श्मशान जा रहे थे,ऐसे मे एस्टेट
मॅनेजर को ऐसी क्या चीज़ फेंकने की जल्दी थी?..इस आदमी मे कुच्छ तो
गड़बड़ थी..मगर क्या..शिवा के दिमाग़ के घोड़े दौड़ रहे थे मगर उनके हाथ
भी कुच्छ नही लग रहा था.

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क्रमशः...........


BADLA paart--20

gataank se aage...
apne quarter me khada Inder fone pe baat kar raha tha,"..main to
ghabra hi gaya tha ki pata nahi dawa kaam bhi kar rahi hai ya nahi
magar raat ko khabar suni to dil khush ho gaya.pehli manzil mil gayi
hai ab aage ke bare me sochna hai..haan...ok....bilkul...thik
hai...main hone deta hu pagal ki shadi...achha.",usne fone rakh
diya.kitna khushi ka din tha aaj!uska dil kara raha tha ki jashn
manaye magar majboori thi,vo aisa nahi kar sakta tha.usne apni almari
se apna flask nikala & jaldi-2 2 ghunt bhare.

sharab ki jalan ne uske kaleje ko humesha ki tarah thandak pahuchayi &
uska man fir se shant hogaya..abhi to bas shuruat thi..abhi to bahut
se kaam the.usne flask vapas rakha & quarter band kar bungle ki taraf
chala gaya.

raat ko kareeb 12 baje use Shiva ka fone aaya tha.ye to khairiyat thi
ki vo us waqt apne quarter me hi tha varna uski mobile bhulne ki badi
gandi aadat thi & har raat jab vo Rajni ko chodne uske quarter jata to
apna mobile apne quarter me hi bhul jata.kal raat ke mausam ne rajni
ko itna pagal kar diya tha ki vo khud hi uske quarter me aa gayi
thi.dono fauran nange ho inder ke bistar me ghus gaye the & inder ne
use uske ghutno & hatho pe kar doggy style me lund peechhe se dala hi
tha ki shiva ka fone aaya ki sahay ki tabiyat bahut kharab hai.

vo & rajni fauran vaha pahunche,estate ka doctor bahut koshish kar
raha tha magar dil ka daura bahut zor ka tha.jab se sahay ko ye bimari
hui thi devika ne estate ki dispensary ke doctor ko bimari ki
emergency me kaam aane vali har dawa & chiz rakhne ka hukm kiya tha
magar suren sahay ke din is dharti pe pure ho chuke the.doctor ne
aakhir koshish kar unke dil me seedha adrenaline ka injection diya
magar uska bhi koi asar nahi hua.

suren sahay ki maut ho chuki thi & inder ko apne napak irade puer hote
dikhne lage the.

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"CHHHEEENNNNN.....!",car ke break ki karkash aavaz se inder apne
khayalo se bahar aaya.vo bungle ke porch me pahunch chuka tha.savere
ke 6 baj rahe the & bhai ki maut ki khabar sun viren vaha pahunch
chuka tha.darwaza khol vo tezi se utra to inder use dekhte hi pehchan
gaya magar dusre darvaze se nikalti kamini ko vo nahi pehchan paya.

kamini & viren hall me ghuse jaha se sara furniture hata diya gaya
tha.1 kone me 1 stool pe suren ji ki tasvir rakhi thi & uske aage
agarbatti jal rahi thi.tasvir ke paas zamin pe bichhe gadde pe devika
baithi thi & uske peechhe rajni.kamini ne dekha ki devika ke chehre pe
aansuo ke nishan pde hue the & uski aankhe bilkul laal thi.vo bas 1bar
mili thi us se lekin us chhoti si mulakat me use itna to andaza ho
agya tha ki devika apne pati ke liye bahut fikramand rehti thi.

abhi kamini ko vo baat karne ki halat me nahi lagi.viren dhadhadata
hua hall me dakhil hua tha magar devika ko mano kuchh pata hi nahi
chala tha.abhi tak koi bhi rishtedar ya jaan-pehchan vala nahi
pahuncha tha.vaise bhi abhi to subah hui hi thi.vo janti thi ki 1-2
ghanet me yaha logo ka taanta lag jayega.

viren apni bhabhi ke paas gaya & uske samne baith gaya.devika ne apni
aankhe uski or ki aur bas dekhti rahi.kafi der tak dono bas baithe hue
1 dusre ko dekhte rahe.kamini ne gaur kiya to dekha ki dono ki aankho
se aansu beh rahe hain magar rulai ki aavaz nahi aa rahi hai.shiva &
inder hall ke darvaze pe khade the jaha inder shiva se in dono ka
parichay le raha tha.kamini sharan ka naam sun inder ka dil fir se
pareshan hone laga.vo Thukral & Shatrujeet Singh vale case ke bare me
sun chuka tha & janta tha ki uski aankho me dhul jhonkna aasan nahi
hoga.

tabhi hall ke sannate ko kisi ke rone ki tez aavaz ne toda,ye Prasun
tha.use dekhte hi viren utha & use apne gale se lagakar dilasa dene
laga.7 bajte hi log aane shuru ho gaye.viren ne shiva & inder se baat
kar raat ke hadse ke bare me sab kuchh jaan liya tha & ab ghar ka bada
hone ke nate use hi sari zimmedariya nibhani thi.kamini ne dekha ki
karobar ki zimmedari uthane se inkar karne vala viren is musibat ke
mauke pe apne parivar ke liye bilkul mustaidi se data hua tha.

logo ki bheed aayi to usme kamini ke bhi kayi jaanane wale the.thodi
hi der me suren ji ke sharir ko antim sanskar ke liye shmashan lejaya
gaya.ab ghar me keval aurate hi bachi thi.kamini ko kuchh sawal karne
the magar use samajh nahi aa raha tha ki kis se puchhe.usne tay kiya
ki sahi waqt aane pe vo seedha devika se hi baat karegi.use is maut ke
bare me sab jaanana tha,aakhir vo is parivar ki vakil thi.

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gaadiya shmashan ghat ki or rawana ho rahi thi.shiva ne inder ko apne
sath chalne ko kaha tha magar vo na jane kaha nadarad tha!..der ho
rahi thi..shiva ne khij ke kalaighadi ki or dekha & fir inder ko
dhundne chal pada.thodi hi dur pe bungle & quarters ke raste ke kinare
ugi jhadiyo ke beech vo use khada nazar aaya.usne dekha ki vo apni jeb
se kuchh nikala & uchhal ke fenk diya.vo koi narangi rang ki chiz thi.

aisa kya tha?....shiva ke andar ka soya fauji jaag utha.usne apni
training me sikhi baato se us chiz ke girne ki jagah ko aanka & fir
furti se vapas jeep ke paas aa khada ho gaya.thodi hi der me inder
vaha bhagta pahuncha,"sorry,shiva bhai..vo.",usne apne daye hath ki
sabse chhoti ungli ko upar kar peshab jane ka bahana banaya.

"hun.",shiva ne jeep start ki & dono vaha se nikal liye.

inder dawa ki vo dibiya fenk raha tha jise usne Panchmahal vale suren
ji ke bungle me unki dibiya se badal ke rakha tha.kal unke dil ke
daure ke baad machi afra-tafri me usne mauka dekh vo dibiya fir se
badal di thi & kuchh hi dino pehle bazar se kharidi dusri dibiya vaha
rakh di thi.ab sab yehi samajhte ki suren ji ke kamzor dil ne unhe
dhokha diya kisi ko ye nahi pata chalta ki us dil ko dhoha dene pe
majboor kiya tha us dawa ne joki abhi jhadiyo ke beech giri hui thi.

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kamini savere to estate se chali aayi thi magar sham ko vo fir vaha
pahunchi.usne viren se baat ki to paya ki devika ab thoda sambhli hui
thi.vo us se milne gayi.apna shok jatake thodi der ke baad vo mudde pe
aayi,"devika ji,ab jo main baat aapse kahungi hosakta hai use sunke
aapko lage ki main 1 badtamiz & bedard kism ki aurat hu magar mujhe
maaf kijiyega kyuki main ye baat aapke vakil ke nate kar rahi hu."

"boliye,kamini ji.kya jaanana hai aapko?",dono us waqt bungle ke study
room me the.

"main chahti hu ki..ki..aap mujhe suren ji ki maut ke bare me tafsil
se batayen..matlab..jab daura pada to vo kya kar rahe the..& kaun si
dawayen kaise li unhone & doctor kitni der baad pahuncha."

devika ke chehre pe dard & gusse ki lakire khinch gayi.

"aapko bura laga na!magar yakin maniye mujhe bhi bahut bura lag raha
hai.ye sab bahut zaruri hai devika ji main nahi chahti ki koi bhi unki
maut pe saval uthaye & kisi tarah ka bakheda khada kare.",kamini ki
baat ke baad devika ke chehre pe bas dard reh gaya gussa gayab ho
gaya.

"raat ko unhe daura pada tha.."

"hun..us waqt aaplog soye hue the?"

"nahi.",devika ne sar jhuka liya.

"fir jage hue the?"

usne haan me sar hilaya.

"to kya kar rahe the aap dono?,devika khamosh baithi thi.kamini ko
laga ki uska dukh use bolne nahi de raha hai.vo apni kursi se uth uski
kursi ke hatthe pe ja baithi & uski pith pe hath ferne lagi,"bataiye."

"hum..hum....pyar kar rahe the.",devika fafak ke rone lagi.kamini ne
fauran apni baaho me use bhar liya to devika uske seene se lag phut-2
ke rone lagi.kuchh pal baad vo shant hui to kamini ne apni sari ke
pallu se uska chehra ponchha & use pani pilaya.

"aap dono..ke pyar ke beech hi..?",kamini ne baat aage badhayi.

"haan,excitement itna badha ki dil bardasht nahi kar paya unka."

"to fir aaplog kaise karte the humesha..mera matlab hai ki pehle bhi
to aap dono..?"

"doctor ne 1 dawa di thi unhe ki jab bhi koi aisa kaam kare jisme
bahut romanch ho ye excitement ho to vo dawa pehle le len."

"dawa kamyab thi?"

"haan,magar idhar kuchh dino se mujhe lag raha tha ki vo kaam nahi kar
rahi & vo pareshan ho jate the.hum do din baad hum doctor ke paas jane
wale the magar kal raat..",fir se rulai ne devika ki baat rok di.

"..galti meri hi thi.mujhe us haal me dekh vo khud pe kabu nahi rakh
paye & unki nazdiki ne mujhe bhi madhosh kar diya."

"exactly daura pada kab?"

"jab hum dono 1 dusre ke bilkul kareeb the.",devika ke gaal sharm se
laal ho gaye the.kamini samajh gayi thi uski uljhan,"..vo mere upar hi
nidhal se haanfne lage.maine unhe upar se utara & pajama pehna ke
doctor ko bulaya.usne sari koshish ki magar sab bekar."

"1 baar mujhe apna kamra dikhayengi."

"zarur."

kamini uske victorian furniture se saze kamre ko dekh rahi thi ki
tabhi uski nazar mez pe padi 1 narangi dibiya pe gayi,"ye kya dawa
hai?"

"yehi vo dava hai."

"ohh.",kamini ne use ulat-palat ke dekha & tabhi 1 chiz uske dimagh me
khatki,"devika ji,aapne ye dawa kab kharidi thi?"

"thik se yaad nahi."

"please,zara yaad kijiye."

"koi 2 mahine pehle.main sare bills rakhti hu,dekh ke aapko sahi
tarikh bata dungi."

"ye bahut achha rahega,chaliye ab mujhe jana hai."

devika ko pata bhi nahi chala tha ki kamini ne vo dibiya vapas nahi
rakhi thi balki apne purse ke hawale kar di thi.

Subah ke 5 baje the & bhor ka ujala abhi puri tarah se faila bhi nahi
tha.tracksuit pehne Shiva bungle & servant quarters ko jodne vale
raste ke kinare bani sajawati jhadiyo ke beech khada tha.kal Inder ne
yehi khade hoke kuchh fenka tha.shiva ye andaza laga raha tha ki vo
chhoti si chiz aakhir giri kaha hogi.

estate ki zamin badi upjau thi & agar dekhbhal na ki jati to ghas &
jungli paudhe ugne me der nahi lagti thi magar yaha ke mali ne is baat
ka badi khubsurti se istemal kiya tha.ye jungli jhadiya jo raste ke
kinare ugi hui thi badi khubsurat dikhti thi & vo bas unhe chhant kar
& karine se kar deta tha.

in jhadiyo se thodi duri pe amrud ke kuchh ped the.inder ne vo chiz un
pedo ki or hi fenki thi.shiva un pedo ke beech ghus gaya.idhar hui
barish se zamin pe ugi ghas badh gayi thi.vo jhadiya in pedo ke beech
bhi yaha-vaha ugi hui thi magar ye unki tarah tartib se nahi thi.aise
hi 1 jhadi me vo chiz giri thi ye shiva ka andaza tha.

vo karib 1 ghante tak dhoondta raha magar uske hath nakami hi
lagi.haar kar vo bungle me chala aaya & nahane ke liye bathroom me
ghus gaya.usne nal khola & nanga ho pani ki behti dhar ke neeche sar
lagake baith gaya....ghar ke malik ki achanak maut ho gayi thi & sabhi
uske kriya-karam ke liye shmashan ja rahe the,aise me estate manager
ko aisi kya chiz fenkne ki jaldi thi?..is aadmi me kuchh to gadbad
thi..magar kya..shiva ke dimagh ke ghode daud rahe the magar unke hath
bhi kuchh nahi lag raha tha.

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kramashah...........


आपका दोस्त राज शर्मा साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,मंदिर जाकर जाप भी कर
लेता हूँ ..मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी
कर लेता हूँआपका दोस्तराज शर्मा(¨`·.·´¨) Always`·.¸(¨`·.·´¨) Keep
Loving &(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !`·.¸.·´ -- raj

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