Saturday, October 23, 2010

कामुक-कहानियाँ बदला पार्ट--18

कामुक-कहानियाँ

बदला पार्ट--18

गतान्क से आगे...
"मुझे कल ही पता चला है...क्या?..अच्छा....मगर ये कोई ऐसी-वैसी बात
नही.मैं यहा इन्हे बर्बाद करने आया हू.प्रसून तो पागल है मगर अगर सहाय की
मौत के बाद उसकी बीवी आ गयी तो फिर देविका के साथ-2 उसकी बहू से भी हमे
निबटना होगा....हां..जल्दी कुच्छ सोचो..हां-2 मैं ठीक हू.नही,मैं नही
बौख्लाउन्गा..बस इसका रास्ता मिल जाए..ओके!",इंदर ने मोबाइल बंद किया &
अपने फ़्लास्क से शराब के 2 घूँट भरे....सही कहा था उसने ..बदले की आग
उसकी दिमाग़ को जला के रख देगी 1 दिन.सहाय की बर्बादी के साथ ही काम
थोड़े ही ख़त्म था!..और ऐसी मुश्किले तो आती रहेंगी मगर इसका मतलब ये तो
नही की वो बौखलाने लगे.उसने 2 घूँट और भर के फ़्लास्क को अपनी अलमारी मे
बंद किया & अपने क्वॉर्टर से बाहर निकल गया.

वो नीचे के क्वॉर्टर मे जा रहा था जहा उसके इशारो पे नाचने वाली कठपुतली
उसका इंतेज़ार कर रही थी.

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देविका की आँखो से नींद गायब थी.उसने अपने पति से उसकी तबीयत के बारे मे
चिंता जताई थी तो उन्होने कहा था की ऐसी कोई बात नही है लेकिन उसके इसरार
पे वो 3 दिन बाद उसके साथ अपने डॉक्टर के पास जाने को तैय्यार हो गये
थे.देविका का दिल आज थोडा घबरा रहा था.बार-2 वो बस यही सोचे जा रही थी की
अगर अभी सुरेन ने उसका साथ छ्चोड़ दिया तो वो ये सब अकेले कैसे
संभालेगी.दुनिया की नज़रो मे वो 1 बहुत ही हिम्मती & आत्म विश्वास से भरी
औरत थी मगर थी तो आख़िर वो हाड़-माँस की इंसान ही ना!..सुरेन के बाद तो
वो बिल्कुल अकेली रह जाएगी.प्रसून को तो खुद सहारे की ज़रूरत थी वो उसे
भला क्या सहारा देगा!..शिवा....क्या उसपे भरोसा किया जा सकता था?उसकी
आँखो मे उसे सच्ची मोहब्बत दिखती थी ....हाँ बस 1 वही था जिसके सहारे वो
इस सब को संभाल सकती थी.

..& वीरेन?उसके दिमाग़ ने उस से सवाल किया तो उसे खुद पे बड़ा गुस्सा आया
& उस से भी कही ज़्यादा अपने देवर पे.उसने 1 तरह से सब कुच्छ सुरेन के
हवाले ही कर दिया था मगर फिर भी उसे आने की क्या ज़रूरत थी?!रहता वही
विदेश मे..!इधर उसने सुरेन जी को प्यार के लिए परेशान करना भी छ्चोड़
दिया था,वो चाहती थी की 1 बार डॉक्टर से बात कर ली जाए उसके बाद वो
निश्चिंत हो उनकी बाहो मे झूलेगी.2 दीनो से शिवा भी सवेरे उसकी प्यास नही
बुझा पाया था.

उसके ख़यालो से परेशान हो उसके दिल ने उसे अपने पति की बाहो मे पनाह लेने
को कहा मगर उसके दिमाग ने ऐसा करने से मना किया.अभी शिवा के पास जाना भी
बहुत ख़तरनाक हो सकता था.मन मार कर उसने अपनी नाइटी को उपर किया & अपना
नाज़ुक सा हाथ अपनी चूत से लगा दिया.वो जानती थी की 1 बार झड़ने के बाद
नींद उसे अपने आगोश मे ले लेगी & ये परेशान करने वाले ख़याल उसका पीछा
छ्चोड़ देंगे.

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आज मौसम बहुत ख़ुसनूमा था.ठंडी हवा के झोंके कामिनी के घने,काले,लंबे
बालो को बार-2 उसके चेहरे पे ला रहे थे & वो उन्हे बार-2 हटा के सामने
रखी वीरेन की बनाई दूसरी पैंटिंग देखे जा रही थी.वीरेन सचमुच कमाल का
कलाकार था.तस्वीर मे वो 1 गाओं की लड़की के रूप मे अपनी हवेली की खिड़की
पे खड़ी अपने प्रेमी का इंतेज़ार करती नज़र आ रही थी.उसके चेहरे के भाव
वीरेन ने किस खूबसूरती से दिखाए थे.

उसने नज़रे उठा के उसकी ओर देखा तो वीरेन ने अपनी दिलकश मुस्कान बिखेर
दी.जवाब मे कामिनी भी मुस्कुराए बिना ना रह सकी,"कैसी लगी?"

"मैं क्या बोलू..",कामिनी अपना सर हिला रही थी,"..आप-आप कैसे कर लेते हैं
ये....दिल के भाव चेहरे पो ले आना केवल रंगो के जादू से."

"आपके जैसी खूबसूरत & दिलचस्प चेहरे वाली लड़की मॉडेल हो तो ये काम बड़ी
आसानी से हो जाता है.",वीरेन हंसा.

"दिलचस्प?",कामिनी के होंठो पे मुस्कान थी & माथे पे शिकन.

"हां..",वीरेन ने उसकी आँखो मे आँखे डाल दी,"..ये चेहरा है ही ऐसा.इस्पे
सारे भाव सॉफ-2 आते हैं क्यूकी चेहरे की मालकिन के दिल मे ईमानदारी भरी
हुई है.हम सब जैसे-2 बड़े होते हैं कामिनी & अपने बचपन से दूर जाते हैं
वैसे-2 दुनियादारी की परते हमारे चेहरे पे चढ़ती जाती हैं & हमारा असली
चेहरा कही खो सा जाता है.ये पारट सिर्फ़ हम अपने बेहद करीबी लोगो के लिए
हटते हैं & काई बार तो उनके लिए भी नही..",वीरेन की मुस्कान गायब हो गयी
थी & वो खिड़की से बाहर देख रहा था.

कामिनी को लगा की उसका जिस्म यही था मगर वो कही दूर चला गया
था,"..उपरवाले की रहमत से आप इस से दूर हैं & यही बात आपकी खूबसूरती मे 4
चाँद लगाती है."

कामिनी की ज़िंदगी मे अब तक जितने भी मर्द आए थे सब उसकी तारीफ करते थे
मगर किसी का भी अंदाज़ ऐसा अनोखा नही था.वीरेन की तारीफ से ना जाने क्यू
कामिनी के चेहरे पे शर्म की लाली आ जाती.उसने फिर से बात बदलने के लिए कल
वाला ही सवाल दोहराया,"अब आज मुझे कैसे खड़ा होना है?",उसने थोड़ा शरारत
से पुचछा.

"बिल्कुल नंगी."

कामिनी के चेहरे की मुस्कुराहट गायब हो गयी & चेहरा सख़्त हो गया,"मुझे
ऐसा मज़ाक पसंद नही!",वीरेन से ऐसी बात की उम्मीद नही थी उसे.

"मैं मज़ाक नही कर रहा.",कामिनी का पारा अब बिल्कुल चढ़ गया.उसने अपन
हॅंडबॅग उठाया & वहा से जाने लगी.उसे भी वीरेन पसंद आने लगा था & मुमकिन
था की वो उसका आशिक़ भी बन जाता मगर ऐसी बेहूदा बात!

"रुकिये कामिनी.",वीरेन ने उसका हाथ पकड़ लिया,"..मुझे शायद आपसे इस
तरहसे नही कहना चाहिए था."

"जो कहना था आप कह चुके.अब मेरा हाथ छ्चोड़िए.",कामिनी की आवाज़ बड़ी तल्ख़ थी.

"प्लीज़..".वीरेन उसके सामने खड़ा हो गया,"..पहले मेरी बात सुन लीजिए,फिर
भी आप जाना चाहेंगी तो मैं नही रोकुंगा.",उसने कामिनी का हाथ छ्चोड़
दिया.कामिनी ने कुच्छ कहा तो नही मगर वही खड़ी रही.वीरेन समझ गया की वो
उसकी बात सुनने को तैय्यार है.

"कामिनी,मैं सारे इंसानी जज़्बात आपकी पूर्कशिष शख्सियत के ज़रिए कॅन्वस
पे उतारना चाहता हू.इस बार मैं आपको बेताब दिखाना चाहता हू & बेताबी की
शिद्दत तो सबसे ज़्यादा प्यार मे ही होती है.मैं चाहता हू की यही
बेताबी,ये बेसब्री जो 1 इंसान उसके जिसे की वो दिलोजान से चाहता है ना
होने पे महसूस करता है वो अपने बिल्कुल खालिस अंदाज़ मे आपके चेहरे पे
नज़र आए.."

"..इंसान जब किसी को हद से ज़्यादा चाहता है तो वो उसके जिस्म के साथ
अपने जिस्म को जोड़ उस से जुड़ने की कोशिश करता हुआ अपने प्यार का इज़हार
करता है..",कामिनी का गुस्सा काफूर हो चुका था.उसे ऐसा लग रहा था मानो
कोई प्रोफेसर,जोकि अपने विषय का उस्ताद है,उस से बात कर रहा हो..सही कह
रहा था वो..जिस्म की बेताबी से बड़ी कोई बेताबी नही & ये बेताबी बिना
नंगे हुए कैसे दिखाई जा सकती थी,"..& जब वो जुड़ने का एहसास उसे बार-2
नही मिलता तो वो बेचैन हो जाता है..यही बेचैनी मुझे दिखानी है.",उसकी
आँखो मे अपनी कला के लिए समर्पण झलक रहा था नकी किसी हवस से पैदा हुआ
पागलपन की वहशियात.

"..और आप नंगी ज़रूर होंगी मगर मेरी निगाहे फिर भी आपको नही देख पाएँगी."

"कैसे?",कामिनी के मुँह से बेसखता निकल गया.उसके सवाल ने वीरेन को भी ये
सॉफ कर दिया की उसका गुस्सा गायब हो चुका है.

मैं कमरे की इस दीवार से..",उसने अपने बाए हाथ से बाई दीवार की ओर इशारा
किया,"..उस दीवार तक..",अब हाथ दाई दीवार को दिखा रहा था,"..1 कपड़ा
बन्धूंगा.इस कपड़े की चौड़ाई इतनी होगी की आपके सीने से लेके जाँघो के
उपरी हिस्से तक ये आपको ढँक लेगा.आप इस कपड़े से अपना जिस्म इस तरह से
सटा के खड़ी होंगी की आपके जिस्म का आकर मुझे उस कपड़े से दिखाई पड़े."

कामिनी कुच्छ बोलती इस से पहले ही वीरेन ने आगे कहा,"कामिनी,ये परदा उन
मुश्किलो,उन दीवारो को दर्शाता है जोकि 2 प्रेमी हमेशा अपने रास्ते मे
महसूस करते हैं.आपको उस से सात के ऐसे खड़ा होना है मानो आप उस दीवार को
तोड़ देना चाहती हो."

"अगर अभी भी आपको ऐतराज़ है तो मैं ये पैंटिंग नही बनाउन्गा."

"कहा है वो परदा?",कामिनी का सवाल सुनते ही वीरेन हल्के से मुस्कुराया &
उसके करीब आया,"शुक्रिया..",उसने उसके दोनो हाथ अपने हाथो मे ले उसकी
आँखो मे झाँका,"..शुक्रिया,कामिनी.",उस वक़्त कामिनी को उसकी आँखो मे
केवल शुक्रगुज़ारी नही खुद के लिए चाहत भी नज़र आई.

बाथरूम स्टूडियो की दूसरी तरफ था & वाहा अपने कपड़े उतार कर कामिनी ने
बातरोब पहना & वापस आई.वीरेन ने 1 सॅटिन के मरून कपड़े को कमरे के
बीचोबीच बाँध दिया था.कामिनी उस कपड़े को उठा उसके दूसरे तरफ गयी & फिर
वीरेन की ओर मुँह कर खड़ी हो गयी.कपड़े के इस तरफ खड़ा वीरेन अपना ईज़ल
ठीक कर रहा था,"ठीक है.आप तैय्यार हैं,कामिनी?"

"हां.",कामिनी को जब वीरेन ने अपनी सोच के बारे मे बताया था तो उसने उसकी
बात को पूरी तरह से समझ लिया था.बदन की तन्हाई & उसकी बेताबी को उस से
बेहतर शायद ही कोई और समझता भी हो!..& इसलिए वो वीरेन के लिए नंगी पोज़
करने को तैय्यार हो गयी थी.वीरेन के पर्दे वाली बात ने उसे चौंका दिया
था.बहुत आसान होता की 1 औरत को नंगे तड़प्ते दिखाना.अब ये परदा उसके
जिस्म के सबसे हसीन अंगो को च्छूपा लेगा & देखने वाला बस उसके बदन की
कल्पना कर सकेगा & उसके चेहरे पे च्छाई बेताबी की शिद्दत उसे भी महसूस
होगी.

कामिनी अपना रोब उतार पर्दे की तरफ बढ़ी & उस से सॅट गयी,"हा..अब अपने
हाथ उपर उठा के पाने सर के बालो से खेलिए..थोड़ा और आगे आइए..थोड़ा
और..हां..बस ठीक है..",सामने खड़ी कामिनी को देख वीरेन का दिल ज़ोरो से
धड़कने लगा.कामिनी पर्दे से बिल्कुल सॅट गयी थी & उसकी छातियो का आकर सॉफ
दिख रहा था.परदा उसकी चूत के थोड़ा नीचे तक आया था & उपर,जहा से उसकी
छातियो का उभार शुरू होता था,वाहा तक था.इस तरह से उसकी भारी,गोरी जंघे &
सुडोल टाँगे जिन्हे कामिनी ने बिल्कुल सटा के ऐसे रखा था मानो उसकी चूत
को दबा के उसकी जंघे शांत कर रही हो.अपने हाथ उपर ले जा उसने लंबे बालो
मे फिरा के थोड़ा फैलाया तो उसके सीने के उभारो का हल्का सा कटाव वीरेन
को दिखा.

मगर जिस बात ने वीरेन के हलक को सूखा दिया था वो था कामिनी के चेहरे का
भाव.उसकी आँखे बंद थी लेकिन चेहरे पे प्रेमी के साथ की चाहत & उसके बदन
की तड़प से पैदा हुआ एहसास जोकि औरत के चेहरे को और नशीला बना देता है
फैला हुआ था.वीरेन का दिल उसके काबू से बाहर जा रहा था.उसका दिल कर रहा
था की अभी इस हसीना को अपनी बाहो मे भर उसकी सारी बेचैनी दूर कर दे &
अपनी भी प्यास बुझा ले मगर फिर उसका ध्यान ईज़ल पे लगे कोरे काग़ज़ पे
गया & उसके हाथ उसपे चलने लगे.

ठीक उसी तेज़ हवा के साथ वक़्त बारिश शुरू हो गयी.कामिनी पर्दे के जिस
तरफ खड़ी थी कमरे की बड़ी खिड़की भी उसी तरफ थी & इस वक़्त उसके शीशे
खुले हुए थे.वाहा से आती हवा कामिनी की ज़ुल्फो से खेलने लगी.कामिनी
उन्हे सावरते हुए खड़ी थी & उसका हुस्न अब और भी पूर्कशिष लग रहा
था.वीरेन उसके चेहरे को देखे जा रहा था & उसी मे कब उसने अपनी टी-शर्ट पे
रंग गिरा लिया उसे पता भी ना चला.

कामिनी के चेहरे के भाव अभी बिल्कुल सही थे & उन्हे वो जल्द से जल्द नकल
कर अपने कॅन्वस पे उतरना चाहता था.1 पल के लिए उसने ब्रश किनारे किया &
अपनी शर्ट निकाल दी.कामिनी ने भी ठीक उसी वक़्त आँखे खोली तो सामने वीरेन
के नंगे बालो भरे सीने को पाया.उसे षत्रुजीत सिंग की दिखाई तस्वीर याद आ
गयी.वीरेन का बदन अभी भी गतिला था & उसकी बाहे कितनी मज़बूत थी..कैसा हो
अगर वो इन मज़बूत बाजुओ मे उसके बदन को कस ले?..ख़याल ने उसकी चूत मे आग
लगा दी.

नीचे वीरेन ने 1 ट्रॅक पॅंट पहनी थी जोकि इस वक़्त थोड़ा और नीचे सरक गयी
थी.उसके सीने के बॉल नाभि से होते हुए पॅंट के अंदर गायब हो रहे
थे.कामिनी का दिल उस च्छूपे हुए मर्दाने अंग की कल्पना करने लगा.इस तरह
से 1 मर्द के साथ 1 ही कमरे मे नंगे खड़े होना मगर उसके साथ ये
दूरी..उफफफ्फ़...!उसका दिल अब उसके काबू मे नही था.वीरेन उसे और भी
ज़्यादा हॅंडसम लगने लगा & उसके जज़्बात मचलने लगे.

वीरेन का हाल भी कुच्छ ऐसा ही था.कामिनी के चेहरे के मस्ताने रंग उस से
छुपे नही थे & उसका जिस्म भी अब गरम हो रहा था.खिड़की से आती ठंडी हवा ने
उसके नंगे जिस्म को च्छुआ तो वो सिहर उठी & उसकी चूत की कसक & भी तेज़ हो
गयी.उसे शांत करने के लिए उसने अपनी जाँघो को थोड़ा रगड़ा & ये हरकत
वीरेन ने देख ली.1 बेइंतहा खूबसूरत लड़की की ऐसी मस्तानी हरकत ने उसे भी
बेचैन कर दिया & उसका लंड उसके पॅंट को फाड़ बाहर आने को पागल हो उठा.

उसी वक़्त उसने देखा की उसका रंग ख़त्म हो चुका है,वो उसने खुद ही गिराया
था अभी..अब फिर से मिक्स करना पड़ेगा..धात तेरे की!

"कामिनी.."

"हूँ..",वो जैसे नींद से जागी.

"आप थोड़ी देर आराम कर लीजिए.रंग ख़त्म हो गया है,मुझे मिक्स करने मे
10-15 मिनिट लगेंगे."

"ओके.",वीरेन घुमके रंगो की अलमारी की ओर चला गया तो कामिनी ने भी सोचा
की बैठ लिया जाए मगर कमरे के उसके हिस्से मे तो कोई कुर्सी ही नही
थी.उसने वीरेन को आवाज़ देने की सोची मगर फिर उसे खिड़की की चौड़ी सिल
नज़र आई.मौसम भी बड़ा सुहाना था..क्यू ना इसी पे बैठा जाए?

सिल कोई 2 फिट चौड़ी & 6 फिट लंबी थी.कामिनी उसपे चढ़ उसकी दीवार से टेक
लगा के उसपे टाँगे फैला के बैठ गयी & लॉन को देखने लगी.बारिश की बूंदे
घास पे चमक रही थी & सब कुच्छ धुला-2 लग व्रहा था.हवा के झोंके पानी की
बूंदे उसके नंगे जिस्म पे भी ले आते तो वो खुशी से मुस्कुरा उठती.उसने
अपना बाया हाथ बाहर निकल छज्जे से टपक रहे पानी को हथेली की अंजूरी मे
भरा & फिर बाहर फेंक दिया.

लॉन मे जलते लॅंप की रोशनी उसे ऐसी लगी मानो वीरेन की जलती निगाहे उसके
बदन को देख रही हैं.ये ख़याल आते ही उसकी चूत 1 बार फिर कसमसा उठी.उसने
अपनी बाई टांग मोड़ ली & उसके तलवे को सिल से लगा दिया & बाया हाथ पीछे
ले जा अपने सर के उपर सिल से लगा लिया & दाए से अपने सीने को सहलाने
लगी....कितना खूबसूरत & गतिला बदन था वीरेन का?....क्या वो उसपे कभी इतना
मेहेरबान होगा की उसे अपने सीने के बालो मे उंगलिया फिराने
दे..उम्म...कामिनी ने आँखे बंद कर हौले से अपनी दाई चूची दबाई.आँखे बंद
थी नगर फिर भी उसे ऐसा लगा की कोई उसे देख रहा है.

उसने आँखे खोल सर को हल्का सा दाए घुमाया तो देख की वीरेन पर्दे के पीछे
खड़ा उस देख रहा है,उसकी आँखो मे अब उसकी जिस्म की चाहत के लाल डोरे तेर
रहे थे.कामिनी की आँखे भी नशे से भरी हुई थी.दोनो 1 दूसरे की नज़रो मे
डूबे जा रहे थे.रंग मिक्स कर वीरेन उसे वापस बुलाने आया तो उसे अपने
ख्यालो मे गुम अपने जिस्म से खेलता पाया.उसकी मस्त चूचिया,गोरा पेट &
चिकनी चूत से उसकी नज़रे ऐसी चिपकी की वो बूटा बना वही कहदा रह गया & जब
दोनो की आँखे चार हुई तो वो अपने चेहरे के भाव च्छूपा नही पाया या यू
कहें की उसने उन्हे च्छुपाने की कोई कोशिश की ही नही.

कामिनी के दिल की धड़कने बहुत तेज़ हो गयी थी & वो बस वीरेन को देखे जा
रहे थी.तभी हवा का 1 तेज़ झोंका कमरे मे दाखिल हुआ & उसने उस पर्दे को
इतनी ज़ोर से छेड़ा की उसकी 1 गाँठ खुल गयी & वो गिर पड़ा.परदा खुला तो
मानो दोनो के बीच की ये दीवार भी गिरा गयी.दाए हाथ मे ब्रश पकड़ा वीरेन
उसकी नज़रो से नज़र मिलाए हुए उसके करीब आ खड़ा हुआ.कामिनी वैसे ही अपना
बाया हाथ उपर किए सिल पे बैठी उसे देख रही थी.दोनो ने 1 दूसरे से 1 लफ्ज़
भी नही बोला था मगर 1 दूसरे का दिल का हाल बखूबी मालूम था उन्हे-उनकी
नज़रे जो बात कर रही थी.

वीरेन ने 1 बार उसकी खूबसूरती को सर से पाँव तक निहारा..कुद्रत का सबसे
हसीन करिश्मा था ये जिस्म..इतनी खूबसूरती..इतनी मदहोशी..इतनी कशिश ..सब 1
ही जिस्म मे!उसने ब्रश को उसके बाए हाथ की बीच की उंगली के नाख़ून पे रखा
& वाहा से उसे नीचे लाने लगा,बहुत धीरे-2.कामिनी का बदन सिहरने लगा.ब्रश
उसके हाथ से उसकी अन्द्रुनि बाँह से होता हुआ उसकी चिकनी बगल तक पहुँच
गया.

उसके बालो की गुदगुदी कामिनी की मदहोशी बढ़ा रही थी.उसने सोचा की वीरेन
अब ब्रुश को उसकी बाई छाती पे फिराएगा मगर उसने ऐसा कुच्छ नही किया.उसने
ब्रश को बगल से उसके सीने के उपर का रास्ता दिखाया & वाहा से उसकी लंबी
गर्दन से होता हुआ उसके बाए कान तक पहुँच गया.

"उम्म...",कामिनी को बहुत मज़ा आ रहा था.वीरेन ने ब्रश को उसके माथे पे
रखा & फिर वाहा से उसे नीचे लाने लगा.कामिनी जानती थी कि ब्रश इस बार
उसके नाज़ुक अंगो से खेलने को बढ़ रहा है.उसकी धड़कने और भी बढ़
गयी.वीरेन ब्रश को नीचे लाया,उसकी नाक से नीचे उसके गुलाबी होंठो पे &
होंठो की पूरी लंबाई पे उन्हे हल्के से फिरा दिया,"..आहह...",कामिनी कांप
उठी & उसका दिल किया की अभी इसी वक़्त वीरेन उसके होंठो को चूम ले.

वीरेन ने ब्रश को नीचे उसकी ठुड्डी पे किया & फिर ब्रश उसकी गर्दन से
होता हुआ उसके सीने पे सजे दोनो उभारो के बीचोबीच बनी घाटी मे पहुँच
गया.कामिनी का बदन कांप रहा था,सिहर रहा था मगर वो अभी भी उसी पोज़िशन मे
बैठी थी मानो अभी भी वीरेन पैंटिंग कर रहा हो & वो उसके लिए पोज़ कर रही
हो.

वीरेन का ब्रश उसकी बाई चूची की गोलाई पे फिरने लगा तो उसके गले से निकल
रही आहे तेज़ होने लगी.वो चूची के पूरे दायरे पे ब्रश फिरा रहा था & जब
ब्रश गोलाई का 1 चक्कर पूरा करता तो दायरा छ्होटा हो जाता.इस तरह वो उसके
निपल तक पहुँच रहा था.वीरेन ने ऐसे गुलाबी निपल अपनी ज़िंदगी मे नही देखे
थे.उसने काई विदेशी लड़कियो को चोदा था मगर ऐसे फूलो के रंग के निपल्स
उनके भी नही थे.

"ऊहह..",कामिनी के नाख़ून खिड़की के सिल & दीवार के पैंट को खरोंच रहे थे
& वीरेन का ब्रश उसके निपल को.जब तक वीरेन ने ब्रश से उसकी दाई छाती पे
भी वही हरकत की तब तक कामिनी की चूत से पानी रिसने लगा था.ब्रश अब उसके
सीने से नीचे उसके पेट पे फिर रहा था & कामिनी की साँसे मानो अटक रही थी.

"उम्म..",ब्रश उसकी नाभि की गहराई मे रंग भर रहा था.वो अब बहुत धीरे-2
अपनी कमर हिला रही थी.उसे इंतेज़ार था अब ब्रश के खुरदुरे बालो का अपनी
चूत & उसके दाने पे.ब्रश नाभि से निकला & और नीचे आया.कामिनी की आँखे बंद
हो गयी & चेहरे पे हल्की सी मुस्कान खिल गयी बस थोड़ी ही देर मे वीरेन
उसकी परेशान चूत को सुकून पहुचाएगा.

मगर ऐसा कुच्छ भी नही हुआ.ब्रश उसकी चूत के बगल से होता हुआ उसकी बाई उठी
हुई टांग की जाँघ पे चढ़ गया & वाहा से नीचे जाने लगा.कामिनी ने आँखे खोल
वीरेन की ओर ऐसे देखा मानो उस से थोड़ी खफा हो लेकिन वीरेन बस उसके जिस्म
पे ब्रश फिराए जा रहा था.उसकी अन्द्रुनि जाँघ पे चलते ब्रश ने उसकी
बेताबी को और बढ़ा दिया था लेकिन जब ब्रश उसकी बाई टांग के उठे हुए घुटने
से होता हुआ नीचे उसके पाँव तक पहुँचा & उसकी उंगलियो के बीच घुस-2 कर
मानो रंग भरने लगा तब तो कामिनी पागल ही हो उठी.

वीरेन को अभी भी उसपे तरस नही आया था.ब्रश बाई से दाई टांग पे चला गया था
& वाहा भी उसके पाँव की उंगलियो के साथ उसने वैसा ही बर्ताव किया & फिर
उपर आने लगा.इस बार ब्रश उसकी भारी जाँघ से फिरता हुआ कही और नही गया
बल्कि सीधा उसकी चूत के दाने पे आ बैठा.वीरेन उसकी आँखो मे झाँक रहा था &
उसका हाथ ब्रश को उसके दाने पे फिराए जा रहा था.कामिनी आहे भरती हुई सिल
पे ऐसे मचल रही थी जैसे जल बिन मछली.

उसके हाथ अब अपनी चूचियो को मसल रहे थे.वीरेन उस मस्तानी लड़की की हरकते
देख गरम हो रहा था.उसके ब्रश ने कामिनी के दाने को छेड़-2 कर उसे झाड़वा
ही दिया था.उसके झाड़ते ही वीरेन ने ब्रश फेंका.ठीक उसी वक़्त कामिनी को
पूर्वाभास सा हुआ की वो उसे चूमेगा & उसने भी अपनी बाहे उसके गले मे डाल
उसे नीचे खींचा & दोनो प्रेमियो ने पहली बार 1 दूसरे को चूमा.दोनो 1
दूसरे के होंठो का लुत्फ़ उठाते हुए अपनी-2 ज़ुबान बारी-2 से 1 दूसरे के
मुँह मे डाल घुमा रहे थे.अभी तक वीरेन के हाथो ने कामिनी को च्छुआ भी नही
था & उसका बदन जैसे दुख रहा था.

वो चाह रही थी की वीरेन अपनी बाहो मे उसे कस उसका सारा दर्द मिटा दे मगर
वीरेन उस हुसनपरी को ऐसे प्यार करना चाहता था की उसे भी थोड़ा याद रहे.वो
होंठो को छ्चोड़ गर्दन चूमते हुए नीचे झुका & उसकी चूचियो को अपने मुँह
मे भरने लगा.कामिनी बेचैनी & जोश से उसके सर & बदन पे हाथ फेर रही थी मगर
उसके हाथ अभी भी पीछे ही थे.

क्रमशः........


BADLA paart--18

gataank se aage...
"mujhe kal hi pata chala hai...kya?..achha....magar ye koi aisi-vaisi
baat nahi.main yaha inhe barbad karne aaya hu.Prasun to pagal hai
magar agar sahay ki maut ke baad uski biwi aa gayi to fir Devika ke
sath-2 uski bahu se bhi hume nibatna hoga....haan..jaldi kuchh
socho..haan-2 main thik hu.nahi,main nahi baukhlaunga..bas iska rasta
mil jaye..ok!",inder ne mobile band kiya & apne flask se sharab ke 2
ghunt bhare....sahi kaha tha usne ..badle ki aag uski dimagh ko jala
ke rakh degi 1 din.sahay ki barbadi ke sath hi kaam thode hi khatm
tha!..aur aisi mushkile to aati rahengi magar iska matlab ye to nahi
ki vo baukhlane lage.usne 2 ghunt aur bhar ke flask ko apni almari me
band kiya & apne quarter se bahar nikal gaya.

vo neeche ke quarter me ja raha tha jaha uske isharo pe nachne vali
kathputli uska intezar kar rahi thi.

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devika ki aankho se neend gayab thi.usne apne pati se uski tabiyat ke
bare me chinta jatayi thi to unhone kaha tha ki aisi koi baat nahi hai
lekin uske israr pe vo 3 din baad uske sath apne doctor ke paas jane
ko taiyyar ho gaye the.devika ka dil aaj thoda ghabra raha tha.baar-2
vo bas yehi soche ja rahi thi ki agar abhi suren ne uska sath chhod
diya to vo ye sab akele kaise sambhalegi.duniya ki nazro me vo 1 bahut
hi himmati & aatm vishvas se bhari aurat thi magar thi to aakhir vo
haad-mans ki insan hi na!..suren ke baad to vo bilkul akeli reh
jayegi.prasun ko to khud sahare ki zarurat thi vo use bhala kya sahara
dega!..shiva....kya uspe bharosa kiya ja sakta tha?uski aankho me use
sachchi mohabbat dikhti thi ....haan bas 1 vahi tha jiske sahare vo is
sab ko sambhal sakti thi.

..& viren?uske dimagh ne us se sawal kiya to use khud pe bada gussa
aaya & us se bhi kahi zyada apne devar pe.usne 1 tarah se sab kuchh
suren ke hawale hi kar diya tha magar fir bhi use aane ki kya zarurat
thi?!rehta vahi videsh me..!idhar usne suren ji ko pyar ke liye
pareshan karna bhi chhod diya tha,vo chahti thi ki 1 baar doctor se
baat kar li jaye uske baad vo nishchint ho unki baaho me jhulegi.2
dino se shiva bhi savere uski pyas nahi bujha paya tha.

uske khayalo se pareshan ho uske dil ne use apne pati ki baaho me
panah lene ko kaha magar uske dimagh ne aisa karne se mana kiya.abhi
shiva ke paas jana bhi bahut khatarnak ho sakta tha.man maar kar usne
apni nighty ko upar kiya & apna nazuk sa hath apni chut se laga
diya.vo janti thi ki 1 baar jhadne ke baad nind use apne agosh me le
legi & ye pareshan karne vale khayal uska peechha chhod denge.

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aaj mausam bahut khusnuma tha.thandi hawa ke jhonke kamini ke
ghane,kale,lambe baalo ko baar-2 uske chehre pe la rahe the & vo unhe
baar-2 hata ke samne rakhi viren ki banayi dusri painting dekhe ja
rahi thi.viren sachmuch kamal ka kalakar tha.tasveer me vo 1 gaon ki
ladki ke roop me apni haweli ki khidki pe khadi apne premi ka intezar
krti nazar aa rahi thi.uske chehre ke bhav viren ne kis khubsurati se
dikhaye the.

usne nazre utha ke uski or dekha to viren ne apni dilkash muskan
bikher di.jawab me kamini bhi muskuarye bina na reh saki,"kaisi lagi?"

"main kya bolu..",kamini apna sar hila rahi thi,"..aap-aap kaise kar
lete hain ye....dil ke bhav chehre poe le aana kewal rango ke jadu
se."

"aapke jaisi khubsurat & dilchasp chehre vali ladki model ho to ye
kaam badi asani se ho jata hai.",viren hansa.

"dilchasp?",kamini ke hotho pe muskan thi & mathe pe shikan.

"haan..",viren ne uski aankho me aankhe daal di,"..ye chehra hai hi
aisa.ispe sare bhav saaf-2 aate hain kyuki chehre ki malkin ke dil me
imandari bhari hui hai.hum sab jaise-2 bade hote hain kamini & apne
bachpan se dur jate hain vaise-2 duniyadari ki parte humare chehre pe
chadhti jati hain & humara asli chehra kahi kho sa jata hai.ye parte
sirf hum apne behad karibi logo ke liye hatate hain & kayi baar to
unke liye bhi nahi..",viren ki muskan gayab ho gayi thi & vo khidki se
bahar dekh raha tha.

kamini ko laga ki uska jism yahi tha magar vo kahi dur chala gaya
tha,"..uparwale ki rehmat se aap is se dur hain & yehi baat aapki
khubsurati me 4 chand lagati hai."

kamini ki zindagi me ab tak jitne bhi mard aaye the sab uski tareef
karte the magar kisi ka bhi andaz aisa anokha nahi tha.viren ki tareef
se na jane kyu kamini ke chehre pe sharm ki lali aa jati.usne fir se
baat badalne ke liye kal wala hi sawal dohraya,"ab aaj mujhe kaise
khada hona hai?",usne thoda shararat se puchha.

"bilkul nangi."

kamini ke chehre ki muskurahat gayab ho gayi & chehra sakht ho
gaya,"mujhe aisa mazak pasand nahi!",viren se aisi baat ki ummeed nahi
thi use.

"main mazak nahi kar raha.",kamini ka para ab bilkul chadh gaya.usne
apan handbag uthaya & vahase jane lagi.use bhi viren pasand aane laga
tha & mumkin tha ki vo uska aashiq bhi ban jata magar aisi behuda
baat!

"rukiye kamini.",viren ne uska hath pakad liya,"..mujhe shayad aapse
is tarahse nahi kehna chahiye tha."

"jo kehna tha aap keh chuke.ab mera hath chhodiye.",kamini ki aavaz
badi talkh thi.

"please..".viren uske samne khada ho gaya,"..pehle merio baat sun
lijiye,fir bhi aap jana chahengi to main nahi rokunga.",usne kamini ka
hath chhod diya.kamini ne kuchh kaha to nahi magar vahi khadi
rahi.viren samajh gaya ki vo uski baat sunane ko taiyyar hai.

"kamini,main sare insani jazbat aapki purkashish shakhsiyat ke zariye
canvas pe utarna chahta hu.is baar main aapko betab dikhana chahta hu
& betabi ki shiddat to sabse zyada pyar me hi hoti hai.main chahta hu
ki yehi betabi,ye besabri jo 1 insan uske jise ki vo dilojaan se
chahta hai na hone pe mehsus karta hai vo apne bilkul khaalis andaz me
aapke chehre pe nazar aaye.."

"..insan jab kisi ko had se zyada chahta hai to vo uske jism ke sath
apne jism ko jod us se judne ki koshish karta hua apne pyar ka izhar
karta hai..",kamini ka gussa kafur ho chuka tha.use aisa lag raha tha
mano koi professor,joki apne vishay ka ustad hai,us se baat kar raha
ho..sahi keh raha tha vo..jism ki betabi se badi koi betabi nahi & ye
betabi bina nange hue kaise dikhayi ja sakti thi,"..& jab vo judne ka
ehsas use baar-2 nahi milta to vo bechain ho jata hai..yehi bechaini
mujhe dikhani hai.",uski aankho me apni kala ke liye samarpan jhalak
raha tha naki kisi hawas se paida hua pagalpan ki vahshiyat.

"..aur aap nangi zarur hongi magar meri nigahe fir bhi aapko nahi dekh payengi."

"kaise?",kamini ke munh se besakhta nikal gaya.uske sawal ne viren ko
bhi ye saaf kar diya ki uska gussa gayab ho chuka hai.

main kamre ki is deewar se..",usne apne baaye hath se baayi deewar ki
or ishara kiya,"..us deewar tak..",ab hath dayi deewar ko dikha raha
tha,"..1 kapda bandhunga.is kapde ki chaudai itni hogi ki aapke seene
se leke jangho ke upari hisse tak ye aapko dhank lega.aap is kapde se
apna jism is tarah se sata ke khadi hongi ki aapke jism ka aakar mujhe
us kapde se dikhayi pade."

kamini kuchh bolti is se pehle hi viren ne aage kaha,"kamini,ye parda
un mushkilo,un deewaro ko darshata hai joki 2 premi humesha apne raste
me mehsus karte hain.aapko us se sat ke aise khada hona hai mano aap
us deewar ko tod dena chahti ho."

"agar abhi bhi aapko aitraz hai to main ye painting nahi banaunga."

"kaha hai vo parda?",kamini ka sawal sunte hi viren halke se muskuraya
& uske kareeb aaya,"shukriya..",usne uske dono hath apne hatho me le
uski aankho me jhanka,"..shukriya,kamini.",us waqt kamini ko uski
aankho me kewal shukraguzari nahi khud ke liye chahat bhi nazar aayi.

bathroom studio ki dusri taraf tha & vaha apne kapde utar kar kamini
ne bathrobe pehna & vapas aayi.viren ne 1 satin ke maroon kapde ko
kamre ke beechobeech bandh diya tha.kamini us kapde ko utha uske dusre
taraf gayi & fir viren ki or munh kar khadi ho gayi.kapde ke is taraf
khada viren apna easel thik kar raha tha,"thik hai.aap taiyyar
hain,kamini?"

"haan.",kamini ko jab viren ne apni soch ke bare me bataya tha to usne
uski baat ko puri tarah se samajh liya tha.badan ki tanhai & uski
betabi ko us se behtar shayad hi koi aur samajhta bhi ho!..& isliye vo
viren ke liye nangi pose karne ko taiyyar ho gayi thi.viren ke parde
vali baat ne use chaunka diya tha.bahut aasan hota ki 1 aurat ko nange
tadapte dikhana.ab ye parda uske jism ke sabse haseen ango ko chhupa
lega & dekhne vala bas uske badan ki kalpna kar sakega & uske chehre
pe chhayi betabi ki shiddat use bhi mehsus hogi.

kamini apna robe utar parde ki taraf badhi & us se sat gayi,"haa..ab
apne hath upar utha ke pane sar ke baalo se kheliye..thoda aur aage
aaiye..thoda aur..haan..bas thik hai..",samne khadi kamini ko dekh
viren ka dil zoro se dhadakne laga.kamini parde se bilkul sat gayi thi
& uski chhatiyo ka aakar saaf dikh raha tha.parda uski chut ke thoda
neeche tak aaya tha & upar,jaha se uski chhatioy ka ubhar shuru hota
tha,vaha tak tha.is tarah se uski bhari,gori janghe & sudol tange jine
kamini ne bilkul sata ke aise rakha tha mano uski chut ko daba ke uski
janghe shant kar rahi ho.apne hath upar le ja usne lambe balo me fira
ke thoda failaya to uske seene ke ubharo ka halka sa katav viren ko
dikha.

magar jis baat ne viren ke halak ko sukha diya tha vo tha kamini ke
chehre ka bhav.uski aankhe band thi lekin chehre pe premi ke sath ki
chahat & uske badan ki tadap se paida hua ehsas joki aurat ke chehre
ko aur nashila band deta hai faila hua tha.viren ka dil uske kabu se
bahar ja raha tha.uska dil kar raha tha ki abhi is haseena ko apni
baaho me bhar uski sari bechaini dur kar de & apni bhi pyas bujha le
magar fir uska dhyan easel pe lage kore kagaz pe gaya & uske hath uspe
chalne lage.

thik usi tez hawa ke sath waqt barish shuru ho gayi.kamini parde ke
jis taraf khadi thi kamre ki badi khidki bhi usi taraf thi & is waqt
uske sheeshe khule hue the.vaha se aati hawa kamini ki zulfo se khelne
lagi.kamini unhe sawarte hue khadi thi & uska husn ab aur bhi
purkashish lag raha tha.viren uske chehre ko dekhe ja raha tha & usi
me kab usne apni t-shirt pe rang gira liya use pata bhi na chala.

kamini ke chehre ke bhav abhi bilkul sahi the & unhe vo jald se jald
nakal kar apne canvas pe utarna chahta tha.1 pal ke liye usne brush
kinare kiya & apni shirt nikal di.kamini ne bhi thik usi waqt aankhe
kholi to samne viren ke nange baalo bhare seene ko paya.use Shatrujeet
Singh ki dikhayi tasvir yaad aa gayi.viren ka badan abhi bhi gathila
tha & uski baahe kitni mazbut thi..kaisa ho agar vo in mazboot bazuo
me uske badan ko kas le?..khayal ne uski chut me aag laga di.

neeche viren ne 1 track pant pehni thi joki is waqt thoda aur neeche
sarak gayi thi.uske seene ke baal nabhi se hote hue pant ke andar
gayab ho rahe the.kamini ka dil us chhupe hue mardane ang ki kalpana
karne laga.is tarah se 1 mard ke sath 1 hi kamre me nange khade hona
magar uske sath ye duri..uffff...!uska dil ab uske kabu me nahi
tha.viren use aur bhi zyada handsome lagne laga & uske jazbat machalne
lage.

viren ka haal bhi kuchh aisa hi tha.kamini ke chehre ke mastane rang
us se chhupe nahi the & uska jism bhi ab garam ho raha tha.khidki se
aati thandi hawa ne uske nange jism ko chhua to vo sihar uthi & uski
chut ki kasak & bhi tez ho gayi.use shant karne ke liye usni apni
jangho ko thoda ragada & ye harkar viren ne dekh li.1 beintaha
khubsurat ladki ki aisi mastani harkat ne sue bhi bechain kar diya &
uska lund uske pant ko faad bahar aane ko pagal ho utha.

usi waqt usne dekha ki uska rang khatm ho chuka hai,vo usne khud hi
giraya tha abhi..ab fir se mix karna padega..dhat tere ki!

"kamini.."

"hun..",vo jaise nind se jagi.

"aap thodi der aaram kar lijiye.rang khatm ho gaya hai,mujhe mix karne
me 10-15 minute lagenge."

"ok.",viren ghumke rango ki almari ki or chala gaya to kamini ne bhi
socha ki baith liya jaye magar kamre ke uske hisse me to koi kursi hi
nahi thi.usne viren ko aavaz dene ki sochi magar fir use khidki ki
chaudi sill nazar aayi.mausam bhi bada suhana tha..kyu na isi pe
baitha jaye?

sill koi 2 ft chaudi & 6 ft lambi thi.kamini uspe chadh uski deewar se
tek laga ke uspe tange faila ke baith gayei & lawn ko dekhne
lagi.barsih ki boonde ghas pe chamak rahi thi & sab kuchh dhula-2 lag
vraha tha.hawa ke jhonke pani ki boonde uske nange jism pe bhi le aate
to vo khushi se muskura uthati.usne apna baaya hath bahar nikal
chhajje se tapak rahe pani ko hatheli ki anjuri me bhara & fir bahar
fenk diya.

lawn me jalte lamp ki roshni use aisi lagi mano viren ki jalti nigahe
uske badan ko dekh rahi hain.ye khayal aate hi uski chut 1 bar fir
kasmasa uthi.usne apni baayi tang mod li & uske talve ko sill se laga
diya & baya hath peechhe le ja apne sar ke upar sill se laga liya &
daaye se apne seene ko sehlane lagi....kitna khubsurat & gathila badan
tha viren ka?....kya vo uspe kabhi itna meherbaan hoga ki use apne
seene ke balo me ungliya firane de..umm...kamini ne aankhe band kar
haule se apni daayi choochi dabayi.aankhe band thi nagar fir bhi use
aisa laga ki koi use dekh raha hai.

usne aankhe khol sar ko halka sa daaye ghumaya to dekh ki viren parde
ke peechhe khada us dekh arah hai,uski aankho me ab uski jism ki
chahat ke lal dore tair rahe the.kamini ki aankhe bhi nashe se bhari
hui thi.dono 1 dusre ki nazro me dube ja rahe the.rang mix kar viren
use vapas bulane aaya to use apne khaylo me gum apne jism se khelta
paya.uski mast choochiya,gora pet & chikni chut se uski nazre aisi
chipki ki vo buta bana vahi kahda reh gaya & jab dono ki aankhe char
hui to vo apne chehre ke bhav chhupa nahi paya ya yu kahen ki usne
unhe chhupane ki koi koshish ki hi nahi.

kamini ke dil ki dhadkane bahut tez ho gayi thi & vo bas viren ko
dekhe ja rahe thi.tabhi hawa ka 1 tez jhonka kamre me dakhil hua &
usne us parde ko itni zor se chheda ki uski 1 ganth khul gayi & vo gir
pada.parda khula to mano dono ke beech ki ye deewar bhi gira gayi.daye
hath me brush pakda viren uski nazro se nazar milaye hue uske kareeb
aa khada hua.kamini vaise hi apna baaya hath upar kiye sill pe baithi
use dekh rahi thi.dono ne 1 dusre se 1 lafz bhi nahi bola tha magar 1
dusre ka dil ka haal bakhubi malun tha unhe-unki nazre jo baat kar
rahi thi.

Viren ne 1 baar uski khubsurati ko sar se panv tak nihara..kudrat ka
sabse haseen karishma tha ye jism..itni khubsurati..itni
madhoshi..itni kashish ..sab 1 hi jism me!usne brush ko uske baaye
hath ki beech ki ungli ke nakhun pe rakha & vaha se use neeche lane
laga,bahut dhire-2.kamini ka badan siharne laga.brush uske hath se
uski andruni banh se hota hua uski chikni bagal tak pahunch gaya.

uske baalo ki gudgudi kamini ki madhoshi badah rahi thi.usne socha ki
viren ab brush ko uski baayi chhati pe firayega magar usne aisa kuchh
nahi kiya.usne brush ko bagal se uske seene ke upar ka rasta dikhaya &
vaha se uski lambi gardan se hota hua uske baaye kaan tak pahunch
gaya.

"umm...",kamini ko bahut maa aa raha tha.viren ne brush ko uske mathe
pe rakha & fir vaha se use neeche lane laga.kamini janti thi ki brush
is baar uske nazuk ango se khelne ko badh raha hai.uski dhadkane aur
bhi badh gayi.viren brush ko neeche laya,uski naak se neeche uske
guilabi hontho pe & hontho ki puri lambai pe unhe halke se fira
diya,"..aahhhh...",kamini kanp uthi & uska dil kiya ki abhi isi waqt
viren uske hontho ko chum le.

viren ne brush ko neeche uski thuddi pe kiya & fir brsuh uski gardan
se hota hua uske seebne pe saje dono ubharo ke beechobech bani ghati
me pahunch gaya.kamini ka badan kanp raha tha,sihar raha tha magar vo
abhi bhi usi position me baithi thi mano abhi bhi viren painting kar
raha ho & vo uske liye pose kar rahi ho.

viren ka brush uski baayi choochi ki golai pe firne laga to uske gale
se nikal rahi aahe tez hone lagi.vo choochi ke pure dayre pe brush
fira raha tha & jab brush golai ka 1 chakkar pura karta to dayra
chhota ho jata.is tarah vo uske nipple tak pahunch raha tha.viren ne
aise gulabi nipple apni zindagi me nahi dekhe the.usne kayi videshi
ladkiyo ko choda tha magar aise phoolo ke rang ke nipples unke bhi
nahi the.

"oohh..",kamini ke nakhun khidki ke sill & deewar ke paint ko kharonch
rahe the & viren ka brush uske nipple ko.jab tak viren ne brush se
uski dayi chhati pe bhi vahi harkat ki tab tak kamini ki chut se pani
risne laga tha.brush ab uske seene se neeche uske pet pe fir raha tha
& kamini ki sanse mano atak rahi thi.

"umm..",brush uski nabhi ki gehrayi me rang bhar raha tha.vo ab bahut
dhire-2 apni kamar hila rahi thi.use intezar tha ab brush ke khurdure
balo ka apni chut & uske dane pe.brush nabhi se nikla & aur neeche
aaya.kamini ki aankhe band ho gayi & chehre pe halki si muskan khil
gayi bas thodi hi der me viren uski pareshan chut ko sukun
pahuchayega.

magar aisa kuchh bhi nahi hua.brush uski chut ke bagal se hota hua
uski bayi uthi hui tang ki jangh pe chadh gaya & vaha se neeche jane
laga.kamini ne aankhe khol viren ki or aise dekha mano us se thodi
khafa ho lekin viren bas uske jism pe rush firaye ja raha tha.uski
andruni jangh pe chalte brush ne uski betabi ko aur badha diya tha
lekin jab brush uski bayi tang ke uthe hue ghutne se hota hua neeche
uske panv tak pahuncha & uski ungliyo ke beech ghus-2 kar mano rang
bharne laga tab to kamini pagal hi ho uthi.

viren ko abhi bhi uspe taras nahi aaya tha.brush bayi se dayi tang pe
chala gaya tha & vaha bhi uske panv ki ungliyo ke sath usne vaisa hi
bartav kiya & fir upar aane laga.is baar brush uski bhari jangh se
firta hua kahi aur nahi gaya balki seedha uski chut ke dane pe aa
baitha.viren uski aankho me jhank raha tha & uska hath brush ko uske
dane pe firaye ja raha tha.kamini aahe bharti hui sill pe aise machal
rahi thi jaise jal bin machhli.

uske hath ab apni choochiyo ko masal rahe the.viren us mastani ladki
ki harkate dekh garam ho raha tha.uske brush ne kamini ke dane ko
chhede-2 kar use jhadwa hi diya tha.uske jhadte hi viren ne brush
fenka.thik usi waqt kamini ko purvabhas sa hua ki vo use chumega &
usne bhi apni baahe uske gale me daal use neeche khincha & dono
premiyo ne pehli bar 1 dusre ko chuma.dono 1 dusre ke hotho ka lutf
uthate hue apni-2 zuban bari-2 se 1 dusre ke munh me daal ghuma rahe
the.abhi tak viren ke hatho ne kamini ko chhua bhi nahi tha & uska
badan jaise dukh raha tha.

vo chah rahi thi ki viren apni baaho me use kas uska sara dard mita de
magar viren us husnpari ko aise pyar karna chahta tha ki use bhi
taumra yaad rahe.vo hotho ko chhod gardan chumte hue neeche jhuka &
uski choochiyo ko apne munh me bharne laga.kamini bechaini & josh se
uske sar & badan pe hath fer rahi thi magar uske hath abhi bhi peechhe
hi the.

kramashah........


आपका दोस्त राज शर्मा साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,मंदिर जाकर जाप भी कर
लेता हूँ ..मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी
कर लेता हूँआपका दोस्तराज शर्मा(¨`·.·´¨) Always`·.¸(¨`·.·´¨) Keep
Loving &(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !`·.¸.·´ -- raj

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