Sunday, October 24, 2010

कामुक-कहानियाँ बदला पार्ट--31

कामुक-कहानियाँ

बदला पार्ट--31

गतान्क से आगे...
"सरासर बकवास है!..झूठे हैं ये काग़ज़ात..!",शिवा ने वो सारे काग़ज़ हवा
मे उड़ा दिए,"..देविका..ये चाल है उस इंदर की वो कमीना कोई बहुत बड़ा खेल
खेल रहा है..",देविका लगातार उसे देखे जा रही थी.शिवा ने देखा की उन आँखो
मे आज उसके लिए ना प्यार था ना ही उनमे भरोसे की झलक थी.वो समझ गया था की
आज अगर उपरवाला खुद भी उसकी पैरवी करे,देविका को भरोसा नही होगा.

"आपने बुलाया,मॅ'म.",इंदर बंगल के ड्रॉयिंग हॉल मे दाखिल हुआ.

"आइए,इंदर धमीजा जी!",देविका के कुच्छ बोलने से पहले शिवा ताली बजाते हुए
बोला,"..कमाल की चाल चली आपने.अब क्या मैं जान सकता हू कि आपका असली
मक़सद क्या है?",शिवा की बातो से देविका को भी ऐसा लगने लगा था की कही
शिवा ही सच ना हो.आख़िर जो काम उसने आज तक नही किया वो अब क्यू करेगा
लेकिन फिर इंसान की फ़ितरत का क्या भरोसा!

"शिवा भाई,मैने तो बस अपना फ़र्ज़ अदा किया है.ये बात मॅ'म से च्छुपाना
नमकहरामी होती."

"अच्छा.तो ये बताओ की ये काग़ज़ात आपको कैसे मिले?"

"आपने सॅलरी अकूउंतस खुलवाए थे इन दो फ़र्ज़ी नामो के.मैने एस्टेट मॅनेजर
की हैसियत से बॅंक से ये काग़ज़ात माँगे थे."

"अच्छा.तो इनमे ये कहा लिखा है की ये मैने खुलवाए हैं?"

"नाम आपका नही है शिवा भाई पर पॅन नंबर & मोबाइल नंबर्स तो आप ही के हैं."

"तो आपका कहना है की मैं इतना बेवकूफ़ हू की अपने डीटेल्स इस्तेमाल करूँगा?"

"शिवा भाई,आप तो मुझ से ऐसे पुच्छ रहे हैं जैसे की मैं मुजरिम हू जबकि
फरेब आपने किया है!",इंदर की आवाज़ मे 1 ईमानदार इंसान पे तोहमत लगाने से
पैदा हुए गुस्से की झलक थी.

"इंदर बिल्कुल सही कह रहा है,शिवा.",प्रेमिका की बात सुन शिवा का दिल टूट
गया,"..तुम साबित करो की ये कागज झूठे हैं."

"अच्छा.ठीक है.मिस्टर.इंदर इन काग़ज़ो को बनवाने पे मुझे बॅंक से डेबिट
कार्ड्स,चेकबुक वग़ैरह मिली होगी वो तो मेरे पास होनी चाहिए?",इंदर खामोश
रहा.

"तुमने तो ये सब पहले ही सोच लिया होगा & कही च्छूपा रखा होगा वो
सब.",देविका ने बिना शिवा की ओर देखे ये कड़वी बता कही.कल रात भर वो सोई
नही थी & अपने तकिये मे मुँह च्छूपा रोती रही थी.दिल मे 1 उमीद थी कि
शायद शिवा वापस आए तो सब झूठ साबित हो मगर ऐसा नही होता दिखता था.

"तो फ़ायदा क्या होगा मुझे?अगर पैसे चुराए हैं तो उन्हे खर्च भी तो
करूँगा नही तो चोरी किस काम की!",शिवा ने टॅन्ज़ कसा.

"ये मुझे नही पता.",देविका ने गुस्से से कहा.

"अब मैं 1 बात कहता हू.मेरे कमरे की,मेरे बॅंक अकाउंट्स,लॉकर्स & मेरे
भाई की घर-हर जगह की तलाशी लीजिए & अगर कही से कोई भी सबूत मिले तो मुझे
क़ानून के हवाले कर दीजिएगा.",उसकी बात सुन इंदर की खुशी का ठिकाना ना
रहा.कल रात ही उसने सब इंतेज़ाम कर दिया था.शिवा के कमरे की चाभी की नकल
का उसने बखुबी इस्तेमाल किया था.

"ठीक है.कमरे से ही शुरू करते हैं.",देविका ने तल्खी से कहा & 2-3 नौकरो
को आवाज़ दी.

देविका,इंदर & शिवा कमरे मे 1 कोने मे खड़े थे & नौकर कमरे का समान
उलट-पलट रहे थे.लगभग पूरा कमरा छान मारा मगर कुच्छ हाथ नही लगा.कमरे मे 1
बेड था & 1 कबॉरॅड,1 कोने मे 1 पढ़ने की मेज़ & कुर्सी थे.इसके अलावा
कमरे मे और कोई फर्निचर नही था.कमरे को छानने के बाद 1 नौकर बाथरूम मे
घुस गया.बाथरूम मे भी कोई अलमारी तो थी नही नही कोई ऐसी जगह थी जहा कुच्छ
च्छुपाया जाए.

नौकर बाथरूम से निकल के बहा आया तो उसकी नज़र ठीक सामने दीवार मे बने
कपबोर्ड को खंगालते दूसरे नौकर पे पड़ी.दूसरा नौकर स्टूल पे चढ़ा कपबोर्ड
के उपर के खाने मे ढूंड रहा था मगर उसे वो नही दिखा जो इस नौकर को दिख
गया था,"वो क्या है?"

"कहा?",उसके साथी ने पुचछा.

"अरे,ये जो सूटकेस अभी उतारा उसके पीछे देखो."

"देख तो लिया,पुरानी मॅगज़ीन हैं."

"अरे हटो यार.",वो उसे हटा खुद चढ़ा & उन मॅगज़ीन्स के बीच रखे 1 पतले से
बॅग को उसने खींच निकाला.बॅग 6 इंच लंबा & 4 इंच चौड़ा था & मोटाई थी बस
2 इंच.ये काग़ज़ात वग़ैरह रखने के काम आने वाला बाग था.नौकर ने उसे खोल
तीनो के सामने उस बॅग को पलट दिया & अंदर से डेबिट कार्ड्स,चेकबुक्स &
बॅंक के और काग़ज़ात गिर पड़े.

देविका आगे बढ़ी & काँपते हाथो से कार्ड्स को उठा के उनपे नाम पढ़ा-वो
वही फ़र्ज़ी नाम थे.उसकी आँखो मे गुस्सा & दुख आँसुओ की शक्ल मे उतर
आए.शिवा समझ चुका था की इंदर ने ये बाज़ी जीत ली है.उसकी आँखो मे हार सॉफ
झलक रही थी मगर साथ ही दुख & अपनी महबूबा की फ़िक्र भी झलक रही थी.आज
उसकी समझ मे आया था की इंदर के बारे मे उसे क्या खटकता था-वो बहुत
ज़्यादा शरीफ था!

हां..इतना शरीफ की उसे कभी किसी बात पे झल्लाहट भी नही होती थी लेकिन अब
क्या फ़ायदा था!वो बाज़ी जीत चुका था & शिवा अपनी जान की नज़रो से गिर
चुका था.देविका से जुदाई की बात से उसके दिल मे टीस सी उठी मगर अगले ही
पल उस पुराने फ़ौजी के जिगर ने उसे ललकारा....वो मर्द का बच्चा था!..इस
वक़्त हवा का रुख़ उसके खिलाफ था & उसे शांत रहना था मगर वो इस
ज़िल्लत,इस धोखे का बदला लेके रहेगा..चाहे कुच्छ भी हो जाए,देविका का बाल
भी वो बांका नही होने देगा & इस ज़लील इंसान से इस बात का बदला ज़रूर
लेगा.

कमरे मे अब कोई भी नही था.नौकर वाहा से जा चुके थे & उनके साथ इंदर भी.1
कोने मे बुत की तरह खड़ी देविका के दिल ने जैसे अब जाके ये बात जैसे समझी
थी की जिस शख्स पे उसने इतने सालो आँख मूंद के भरोसा किया था....अपने पति
से भी ज़्यादा भरोसा उसी ने उसकी पीठ मे च्छुरा घोंपा था!

इस एहसास से उसके दिल का गुबार आँखो से आँसू बनके छलक उठा.

"देविका..",शिवा ने उसके कंधे पे हाथ रखा.

"मत च्छुओ मुझे!",देविका ने उसका हाथ झटक दिया.

"मेरी बात..-"

"कुच्छ नही सुनना मुझे!",देविका चीखी,"..बस मेरी नज़रो से दूर हो जाओ &
कभी अपनी घिनोनी शक्ल नही दिखना!",शिवा ने 1 बार फिर अपनी प्रेमिका के
करीब आना चाहा मगर वो और दूर हो गयी.

"1 बात कान खोल के सुन लो अगर अभी तुम्हारे साहब होते तो यहा अभी तक
पोलीस आ चुकी होती.",देविका की आँखो से आँसू बह रहे थे मगर साथ-2 उनसे
अँगारे भी बरस रहे थे,"..पर मैं बस बीते दीनो का ख़याल करके तुम्हे यहा
से जाने दे रही हू.2 घंटे मे यहा से निकल जाओ.",देविका वाहा से निकल गयी.

दरवाज़े के बाहर दूसरी तरफ ओट मे खड़ा इंदर सारी बातें मुस्कुराते हुए
सुन रहा था.उसे यकीन ही नही हो रहा था की वो अपने प्लान मे इस कदर कामयाब
हो गया था.
वो मुस्कुराते हुए बंगल से बाहर निकल अपने क्वॉर्टर चला गया.

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"क्या बात है मम्मी?",नाश्ते की मेज़ पे बैठी देविका को कुच्छ ना खाते
देख रोमा अपनी कुर्सी से उठ उसके करीब आ गयी.

"हूँ..क-कुच्छ नही.",देविका जो गुम्सुम बैठी थी बहू को देख जल्दी से
नाश्ता ख़तम करने लगी.3 दिन हो गये थे शिवा को गये हुए.रोमा को ये तो पता
था की शिवा ने क्या घपला किया है मगर उसे ये पता नही था की उसकी सास का
शिवा से असल मे क्या रिश्ता था.उसे अब देविका की फ़िक्र होने लगी
थी.बिज़्नेस मे तो ये सब होता रहता था.अगर वो इस तरह की हर बात को यू दिल
पे लेंगी तो बिज़्नेस का नुकसान तो होगा ही साथ ही उनकी सेहत पे भी बुरा
असर पड़ेगा.

नाश्ता ख़तम होते ही देविका लॉन मे गयी तो रोमा भी उसके पीछे-2 वाहा चली
गयी,"मम्मी."

"हां,बेटा."

"आप इतना क्यू परेशान हैं?देखिए,हमे समय रहते सब पता चल गया & कोई बहुत
बड़ा नुकसान भी नही हुआ.और आप ये सोचिए मम्मी की अगर 1 इंसान ने हमे धोखा
दिया तो वही दूसरे ने अपना फ़र्ज़ निभा के हमारे साथ नमकहलाली की है.हमे
1 भरोसेमन आदमी का फाय्दा ही हुआ है इस बात से."

देविका ने रोमा को देखा,ठीक ही बात कर रही थी वो.इंदर सचमुच 1 ईमानदार &
भला इंसान था लेकिन उस बेचारी को क्या पता की शिवा ने उसका दिल तोड़ दिया
था & वो दर्द इतनी आसानी से नही मिटता.दिल की तकलीफ़ च्छूपाते हुए देविका
मुस्कुराइ,"तुम तो सच मे बड़ी सयानी है,बेटा.",बहू के गाल पे उसने प्यार
से हाथ फेरा.

"अच्छा.अब आप आज से टाइम पे ऑफीस जाएँगी & टाइम से आएँगी!ओके?"

"ओके."

"& अगर कभी भी ज़रूरत पड़े तो मुझसे अपनी परेशानी बाँटेंगी.ओके?"

"ओके."

"मम्मी,ज़रूरत पड़े तो मैं भी ऑफीस का काम देख सकती हू."

"हां बेटा,मुझे पता है & तुम्हारा ही ऑफीस है मगर हमे इस बात का भी तो
ख़याल रखना है की तुम्हारा पति घर मे अकेला ना रह जाए.",रोमा का नाम
पुकारते हुए लॉन मे आते प्रसून की ओर देविका ने इशारा किया,"देखो,कुच्छ
पॅलो के लिए तुम गायब हुई तो कैसे शोर मचा रहा है!ऑफीस जाओगी तब तो पूरा
घर सर पे उठा लेगा.",रोमा के गाल शर्म से सुर्ख हो गये & वो झट से लाजते
हुए पति के पास चली गयी.

देविका हंस पड़ी & दूर खड़ी दोनो को बात करते देखने लगी.रोमा की बात ने
उसका दिल हल्का कर दिया था & उसे बहुत सहारा मिला था.बस यही बच्चे तो
उसका सबकुच्छ थे & इन्ही के लिए तो उसकी ज़िंदगी थी.उसने लॉन मे खड़े हो
चारो ओर नज़र घुमाई,ये सब इनके लिए महफूज़ रखना ज़रूरी था & उसके लिए
उसका दफ़्तर जाना ज़रूरी था.ख़याल आते ही खुद बा खुद उसके कदम दफ़्तर की
ओर मूड गये.

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क्रमशः......


बदला पार्ट--31

गतान्क से आगे...
"sarasar bakwas hai!..jhuthe hain ye kagzat..!",shiva ne vo sare kagaz
hawa me uda diye,"..devika..ye chaal hai us inder ki vo kamina koi
bahut bada khel khel raha hai..",devika lagatar use dekhe ja rahi
thi.shiva ne dekha ki un aankho me aaj uske liye na pyar tha na hi
unme bharose ki jhalak thi.vo samajh gaya tha ki aaj agar uparwala
khud bhi uski pairwi kare,devika ko bharoas nahi hoga.

"aapne bulaya,ma'am.",inder bungle ke drawing hall me dakhil hua.

"aaiye,inder dhamija ji!",devika ke kuchh bolne se pehle shiva tali
bajate hue bola,"..kamal ki chaal chali aapne.ab kya main jaan sakta
hu ki aapka asli maqsad kya hai?",shiva ki baato se devika ko bhi aisa
lagne laga tha ki kahi shiva hi sach na ho.aakhir jo kaam usne aaj tak
nahi kiya vo ab kyu karega lekin fir insan ki fitrat ka kya bharosa!

"shiva bhai,maine to bas apna farz ada kiya hai.ye baat ma'am se
chhupana namakharami hoti."

"achha.to ye bataoye ki ye kagzat aapko kaise mile?"

"aapne salary acoounts khulwaye the in do farzi namo ke.maine estate
manager ki haisiyat se bank se ye kagzat mange the."

"achha.to inme ye kaha likha hai ki ye maine khulwaye hain?"

"naam aapka nahi hai shiva bhai par PAN number & mobile numbers to aap
hi ke hain."

"to aapka kehna hai ki main itna bevkuf hu ki apne details istemal karunga?"

"shiva bhai,aap to mujh se aise puchh rahe hain jaise ki main mujrim
hu jabki fareb aapne kiya hai!",inder ki aavaz me 1 imandar insan pe
tohmat lagane se paida hue gusse ki jhalak thi.

"inder bilkul sahi keh raha hai,shiva.",premika ki baat sun shiva ka
dil tut gaya,"..tum sabit karo ki ye klagaz jhuthe hain."

"achha.thik hai.mr.inder in kagazo ko banwane pe mujhe bank se debit
cards,chequebook vagairah mili hogi vo to mere paas honi
chahiye?",inder khamosh raha.

"tumne to ye sab pehle hi soch liya hoga & kahi chhupa rakha hoga vo
sab.",devika ne bina shiva ki or dekhe ye kadwi bata kahi.kal raat
bhar vo soyi nahi thi & apne takiye me munh chhupa roti rahi thi.dil
me 1 umeed thi k shayad shiva vapas aaye to sab jhuth sabit ho magar
aisa nahi hota dikhta tha.

"to fayda kya hoga mujhe?agar paise churaye hain to unhe kharch bhi to
karunga nahi to chori kis kaam ki!",shiva ne tanz kasa.

"ye mujhe nahi pata.",devika ne gusse se kaha.

"ab main 1 baat kehta hu.mere kamre ki,mere bank accounts,lockers &
mere bhai ke ghar-har jagah ki talashi lijiye & agar kahi se koi bhi
sabut mile to mujhe kanoon ke hawale kar dijiyega.",uski baat sun
inder ki khushi ka thikana na raha.kal raat hi usne sab intezam kar
diya tha.shiva ke kamre ki chabhi ki nakal ka usne bakhubhi istemal
kiya tha.

"thik hai.kamre se hi shuru karte hain.",devika ne talkhi se kaha &
2-3 naukro ko aavaz di.

devika,inder & shiva kamre me 1 kone me khade the & naukar kamre ka
saman ulat-palat rahe the.lagbhag pura kamra chhan mara magar kuchh
hath nahi laga.kamre me 1 bed tha & 1 cupborad,1 kone me 1 padhne ki
mez & kursi the.iske alawa kamre me aur koi furniture nahi tha.kamre
ko chhanane ke bad 1 naukar bathroom me ghus gaya.bathroom me bhi koi
almari to thi nahi nahi koi aisi jagah thi jaha kuchh chhupaya jaye.

naukar bathoom se nikal ke baha aaya to usk nazar thik samne deewa me
bane cupboard ko khangalte dusre naukar pe padi.dusra naukar stool pe
chadha cupboard ke upar ke khane me dhoond raha tha magar use vo nahi
dikha jo is naukar ko dikh gaya tha,"vo kya hai?"

"kaha?",uske sathi ne puchha.

"are,ye jo suitcase abhi utara uske peeche dekho."

"dekh to liya,purani magazine hain."

"are hato yaar.",vo use hata khud chadha & un magazines ke beech rakhe
1 patle se bag ko usne khinch nikala.bag 6 inch lamba & 4 inch chauda
tha & motai thi bas 2 inch.ye kagzat vagairah rakhne ke kaam aane wala
bag tha.naukar ne use khol teeno ke samne us bag ko palat diya & andar
se debit cards,chequebooks & bank ke aur kagzat gir pade.

devika aage badhi & kanpte hatho se cards ko utha ke unpe nam padha-vo
vahi farzi naam the.uski aankho me gussa & dukh aansuo ki shakl me
utar aaye.shiva samajh chuka tha ki inder ne ye bazi jeet li hai.uski
aankho me haar saaf jhalak rahi thi magar sath hi dukh & apni mehbooba
ki fikr bhi jhalak rahe the.aaj uski samajh me aaya tha ki inder ke
bare me use kya khatakta tha-vo bahut zyada sharif tha!

haan..itna sharif ki use kabhi kisi baat pe jhallahat bhi nahi hoti
thi lekin ab kya fayda tha!vo bazi jeet chuk tha & shiva apni jaan ki
nazro se gir chuka tha.devika se judai ki baat se uske dil me tees si
uthi magar agle hi pal us purane fauji ke jigar ne use lalkara....vo
mard ka bachcha tha!..is waqt hawa ka rukh uske khilaf tha & use shant
rehna tha magar vo is zillat,is dhokhe ka badla leke rahega..chahe
kuchh bhi ho jaye,devika ka baal bhi vo baanka nahi hone dega & is
zalil insan se is baat ka badla zarur lega.

Kamre me ab koi bhi nahi tha.naukar vaha se ja chuke the & unke sath
Inder bhi.1 kone me but ki tarah khadi Devika ke dil ne jaise ab jake
ye baat jaise samjhi thi ki jis shakhs pe usne itne salo aankh mund ke
bharosa kiya tha....apne pati se bhi zyada bharosa usi ne uski pith me
chhura ghonpa tha!

is ehsas se uske dil ka gubar aankho se aansu banke chhalak utha.

"devika..",Shiva ne uske kandhe pe hath rakha.

"mat chhuo mujhe!",devika ne uska hath jhatak diya.

"meri baat..-"

"kuchh nahi sunana mujhe!",devika chikhi,"..bas meri nazro se door ho
jao & kabhi apni ghinoni shakl nahi dikhana!",shiva ne 1 bar fir apni
premika ke karib aana chaha magar vo aur door ho gayi.

"1 baat kaan khol ke sun lo agar abhi tumhare sahab hote to yaha abhi
tak police aa chuki hoti.",devika ki aankho se aansu beh rahe the
magar sath-2 unse angare bhi baras rahe the,"..par main bas beete dino
ka khayal karke tumhe yaha se jane de rahi hu.2 ghante me yaha se
jikal jao.",devika vaha se nikal gayi.

darwaze ke bahar dusri taraf ot me khada inder sari baaten muskurate
hue sun raha tha.use yakin hi nahi ho raha tha ki vo apne plan me is
kadar kamyab ho gaya tha.
vo muskurate hue bungle se bahar nikal apne quarter chala gaya.

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"kya baat hai mummy?",nashte ki mez pe baithi devika ko kuchh na khate
dekh Roma apni kursi se uth uske karib aa gayi.

"hun..k-kuchh nahi.",devika jo gumsum baithi thi bahu ko dekh jaldi se
nashta khatam karne lagi.3 din ho gaye the shiva ko gaye hue.roma ko
ye to pata tha ki shiva ne kya ghapla kiya hai magar use ye pata nahi
tha ki uski saas ka shiva se asal me kya rishta tha.use ab devika ki
fikr hone lagi thi.business me to ye sab hota rehta tha.agar vo is
tarah ki har baat ko yu dil pe lengi to business ka nuksan to hoga hi
sath hi unki sehat pe bhi bura asar padega.

nashta khatam hote hi devika lawn me gayi to roma bhi uske peechhe-2
vaha chali gayi,"mummy."

"haan,beta."

"aap itna kyu pareshan hain?dekhiye,hume samay rehte sab pata chal
gaya & koi bahut bada nuksan bhi nahi hua.aur aap ye sochiye mummy ki
agar 1 insan ne hume dhokha diya to vahi dusre ne apna farz nibhake
humare sath namakhalali ki hai.hume 1 bharoseman aadmi ka fayda hi hua
hai is baat se."

devika ne roma ko dekha,thik hi baat kar rahi thi vo.inder sachmuch 1
imandar & bhala insan tha lekin us bechari ko kya pata ki shiva ne
uska dil tod diya tha & vo dard itni asani se nahi mitata.dil ki
taklif chhupate hue devika muskurayi,"tum to sach me badi sayani
hai,beta.",bahu ke gaal pe usne pyar se hath fera.

"achha.ab aap aaj se time pe office jayengi & time se aayengi!ok?"

"ok."

"& agar kabhi bhi zarurat pade to mujhse apni pareshani bantengi.ok?"

"ok."

"mummy,zarurat pade to main bhi office ka kaam dekh sakti hu."

"haan beta,mujhe pata hai & tumhara hi office hai magar hume is baat
ka bhi to khayal rakhna hai ki tumhara pati ghar me akela na reh
jaye.",roma ka naam pukarte hue lawn me aate Prasun ki or devika ne
ishara kiya,"dekho,kuchh palo ke liye tum gayab hui to kaise shor
macha raha hai!office jaogi tab to pura ghar sar pe utha lega.",roma
ke gaal sharm se surkh ho gaye & vo jhat se lajate hue pati ke paas
chali gayi.

devika hans padi & door khadi dono ko baat karte dekhne lagi.roma ki
baat ne uska dil halka kar diya tha & use bahut sahar mila tha.bas
yehi bachche to uska sabkuchh the & inhi ke liye to uski zindagi
thi.usne lawn me kahde ho charo or nazar ghumayi,ye sab inke liye
mehfuz rakhna zaruri tha & uske liye uska daftar jana zaruri
tha.khayal aate hi khud ba khud uske kadam daftar ki or mud gaye.

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kramashah......


आपका दोस्त राज शर्मा साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,मंदिर जाकर जाप भी कर
लेता हूँ ..मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी
कर लेता हूँआपका दोस्तराज शर्मा(¨`·.·´¨) Always`·.¸(¨`·.·´¨) Keep
Loving &(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !`·.¸.·´ -- raj

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