बदला पार्ट--23
गतान्क से आगे...
"उउंम्म...औच...!",रजनी अपने घुटनो & हाथो पे बिस्तर पे झुकी थी & इंदर
पीछे से उसकी गंद मे अपना लंड घुसाए धक्के लगा रहा था.उसे इस साधारण
शक्ल-सूरत वाली लड़की को चोदने मे अब बोरियत होने लगी थी मगर वो उसे कोई
शक़ नही होने देना चाहता था,इसलिए आज अपनी बोरियत भगाने के लिए & रजनी को
ये जताने के लिए की वो उसके जिस्म का दीवाना है उसने उसकी गंद मारने का
इरादा किया था.
"ओह्ह..माआ...हाइईईई...क्यू मा..नि..मा..इने..तुम..हा..आआहह...तुम..हरी
बात...आअननह....आअनन्नह....!",इंदर उसकी गंद मारते हुए उसकी चूत मे तेज़ी
से 2 उंगलिया अंदर-बाहर कर रहा था.वो जानता था की रजनी जो भी कहे उसे
बहुत मज़ा आ रहा था.
"रजनी..जानेमन.."
"ह्म्म..",रजनी को सच मे बहुत मज़ा आ रहा था.शुरू मे तेज़ दर्द हुआ था
मगर अब तो वो हवा मे उड़ रही थी.
"तुम्हारे बॉस ने शिवा को अपने बंगल के अंदर क्यो कमरा दिया हुआ है जबकि
हम बाकी लोग तो बाहर रहते हैं?"
"शिवा..ऊव्वव...उनका बहुत भरोसेमंद आदमी थाआआअ..आहह....& बॉस को लगा..की
अगर वो अंदर र..हे तो..ऊहह....अगर कभी....कोई ख़तरे वाली
बात..हूऊ..तो..वो उन..के परी..वार की हिफ़ाज़त
करेगा..आहह..आआअनन्नह....!",रजनी झाड़ रही थी & इंदर भी उसकी गंद को अपने
पानी से भर रहा था.
रजनी के थकान से निढाल हो बिस्तर पे गिर पड़ी.इंदर उसके बगल मे लेट गया &
अपने बाए हाथ से पेट के बल लेटी हाँफती रजनी की पीठ सहलाने लगा.उसने बगल
मे पड़ी अपनी पॅंट से 1 सिगरेट का पॅकेट निकाला & 1 सिगरेट सुलगा ली.शराब
जैसा सुकून तो नही मिलता था उसे इस से मगर ये रजनी से उसकी बेचैनी
च्छुपाने मे कामयाब थी....इस शिवा को तो घर से निकालना पड़ेगा..मगर
कैसे..कैसे?
वो सिगरेट के कश खींच रहा था,"क्यू पीते हो ये गंदी चीज़?",रजनी सर घुमा
के उसे देख रही थी.उसने फर्श पे सिगरेट मसल के उसे बुझाया फिर रजनी को
सीधा किया,"ठीक है नही पीता गंदी चीज़.अब अच्छी चीज़ पीता हू.",उसने उसकी
बाई छाती को मुँह मे भर लिया तो रजनी के होंठो पे मुस्कान फैल गयी & 1
बार फिर वो मदहोश होने लगी.
----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
"ऊन्न्ह्ह...ऊओनह...और
ज़ोर्र्र्र...आअहह..से...आइय्यी..हाआनन्न..शिवा....जान...चोदो...चोदो...मुझे...आअहह...!",देविका
की टाँगे शिवा के कंधो पे थी & उसके हाथ शिवा की जाँघो पे.शिवा का तगड़ा
लंड उसकी चूत की गहराइयो मे अंदर-बाहर हो रहा था.देविका आज रात ये कौन सी
बार झाड़ रही थी उसे याद नही था.याद था तो बस ये की शिवा 1 बार उसकी चूत
मे & 1 बार मुँह मे झड़ने के बावजूद वैसे ही जोश से उसकी चुदाई करते हुए
तीसरी बार झड़ने वाला था.
"ऊन्ह...!",देविका बिस्तर से उठने की कोशिश करने लगी तो शिवा ने उसकी
टाँगे अपने कंधे से उतारी और उसके उपर लेट गया.उसके बालो भरे सीने तले
देविका की चूचिया दबी तो उसे बहुत सुकून मिला.दोनो ने 1 दूसरे को बाहो मे
भर लिया & अपनी-2 कमर हिलाने लगे & बस कुच्छ ही पॅलो मे 1 बार फिर अपनी
मंज़िल पे पहुँच गये.
"उम्म..",देविका अपने प्रेमी को चूम रही थी.वो अभी भी उसकी चूत मे अपना
सिकुदा लंड धंसाए उसके उपर पड़ा था.उसने अपनी प्रेमिका के उपर से उतरना
चाहा था मगर देविका की गुज़ारिश थी की वो अभी थोड़ी देर और वैसे ही उसे
अपने तले दबाए रहे.
"देविका..",शिवा ने उसके गले पे चूमा.
"बोलो,शिवा.",डेविका उसके बालो से खेल रही थी.
"तुम्हे अब ये सारा कारोबार संभालना है & इसमे इंदर तुम्हारी मदद करेगा
लेकिन तुम उसपे आँख मूंद के भरोसा नही करना प्लीज़!"
"सॉफ-2 कहो शिवा."
"देखो,देविका मुझे सॉफ कुच्छ पता नही चल रहा मगर वो ठीक आदमी नही
है.देखो,वो बहुत अच्छा काम करेगा,तुम्हे शिकायत का कोई मौका नही देगा मगर
फिर भी तुम अपनी 1 नज़र उसपे बनाए रखना."
"ठीक है.",1 बार फिर देविका के लब शिवा के होंठ तलाशने लगे.
"नही..",शिवा ने होंठ खींच लिए,"..पहले वादा करो की तुम होशियार रहोगी."
"वादा..वादा..वादा..!",देविका ने उसका सर पकड़ के नीचे झुकाया,"खुश?"
"हां.",शिवा उसे चूमने के लिए नीचे झुका तो इस बार देविका ने रोक दिया,"क्या हुआ?"
"मैने किया अब तुम भी 1 वाद करो."
"क्या?बोलो."
"की आज के बाद तुम मुझे किसी भी रात अकेला नही छ्चोड़ोगे."
"नही छ्चोड़ूँगा मेरी जान.",वो देविका की गोरी गर्दन पे झुक के अपने
होंठो से शरारत से काटने लगा,उसका सोया लंड 1 बार फिर से सुगुबुगाने लगा
था & उसकी कमर भी हौले-2 हिलने लगी थी.देविका ने अपनी टाँगे उसकी कमर पे
लपेटी,"..ऊव्व..",शिवा की शरारातो ने गुदगुदी पैदा कर दी तो उसने भी अपने
हाथो से उसके बगल मे गुस्गुसा दिया.1 दूसरे की च्छेड़च्छाद से दोनो
प्रेमियो के दिल मे खुशी की लहर दौड़ गयी & कमरा दोनो की हँसी की शोर से
भर गया.
"..सारा कारोबार चलाने की ज़िम्मेदारी Mइसेज.देविका सहाय के उपर हो.इस
वसीयत के & सुरेन सहाय & वीरेन सहाय के बीच हुए क़ानूनी करार के मुताबिक
अब वो आधी जयदा की भी मालकिन हैं लेकिन चुकी वीरेन जी अभी ना तो बँटवारा
चाहते हैं ना ही कारोबार चलाना तो अभी सारी जयदाद की देख-रेख की
ज़िम्मेदारी भी देविका जी की ही है..",कामिनी सहाय परिवार के बंगल के हॉल
मे बैठी वीरेन,देविका & प्रसून की मौजूदगी मे वसीयत पढ़ रही थी.
"..वीरेन जी को हर महीने पहले की ही तरह वो रकम मिलती रहेगी जो उन्होने
अपने बड़े भाई सुरेन सहाय के साथ मिल के तय की है & जोकि दोनो भाइयो के
करार मे भी लिखी हुई है.जिस दिन भी वीरेन सहाय क़ानूनी तौर पे बँटवारे की
माँग करेंगे उस तारीख से लेके आनेवाले 6 महीनो के भीतर देविका जी को उनके
साथ मिलके बँटवारे की सारी करवाई पूरी करनी होगी.अब देविका जी को भी अपनी
वसीयत बनानी होगी ताकि उनकी मौत के बाद उनके बेटे प्रसून की देखभाल हो
सके & जयदाद के मामले सुलझ सकें."
"ये है वसीयत का सार जो मैने पढ़ा है.इन सारी बातो को डीटेल मे आगे लिखा
गया है.ये 3 कॉपीस हैं..",कामिनी ने 2 देविका को & 1 वीरेन को
थमायी,"..आप प्रसून की कॉपी भी अपने पास ही रखिए,देविका जी & आप दोनो यहा
दस्तख़त कर दीजिए की आपने वसीयत ले ली है & आप इसे मानते हैं."
दोनो के दस्तख़त लेने के बाद कामिनी ने अपना बॅग मुकुल को थमाया & वाहा
से जाने लगी.वीरेन & देविका उसे बाहर तक छ्चोड़ने आए & उसकी कार का
दरवाज़ा खोलते हुए वीरेन फुसफुसाया,"डार्लिंग!आज शाम घर आना.तुम्हे कुच्छ
दिखाना है."
"हूँ..",कामिनी हल्के से मुस्कुराइ & कार मे बैठ गयी.
"मैं भी चलता हू.बीच-2 मे आता रहूँगा.",देविका की ओर देखे बिना उसने उस
से ये बात कही,"बाइ!प्रसून.",उसने अपने भतीजे को देख के मुस्कुराते हुए
हाथ हिलाया & उसने भी वैसे ही हंसते हुए उसका जवाब दिया.
"तुमसे 1 बात कहनी थी.",देविका उसके कार के दरवाज़े के पास खड़ी थी.
"क्या?",वीरेन चाभी इग्निशन मे लगा रहा था.
"आज मैं प्रसून के लिए 1 लड़की देखने जा रही हू.शाम लाल जी के जान-पहचान
का कोई परिवार है पंचमहल मे."
"तुम उसकी शादी कराओगि ही?",वीरेन ने इस बार अपनी भाभी की नज़रो से नज़रे मिलाई.
"हां & उसका चाचा होने के नाते तुम्हारा ये जानना ज़रूरी है."
"हूँ..जो करना सोच-समझ के करना,प्रसून की मासूमियत का ख़याल रख के कोई
फ़ैसला लेना."
"तुम बेफ़िक्र रहो.आख़िर मैं उसकी मा हू.",वीरेन ने देविका को पल भर के
लिए बड़ी गहरी निगाहो से देखा & अपनी कार वाहा से निकाल दी.जब से देविका
बहू बन कर इस घर मे आई थी तब से लेके आजतक देवर-भाभी मे इतनी लंबी बातचीत
बस गिने-चुने मौको पे हुई थी.
1 गहरी सांस लेके देविका वापस बंगल मे चली गयी,"रजनी."
"येस,मॅ'म."
"देखो,मैं ज़रा काम से पंचमहल जा रही हू.पीछे अपने भाय्या का ख़याल
रखना.",उसने प्यार से अपने बेटे के बालो मे हाथ फेरा..इसका चाचा इसे
मासूम समझता है..आज उसे इस मासूम की थोड़ी मासूमियत भी दूर करनी थी बस
भगवान करे वो लड़की अच्छी हो!
"उम्म..मम्मी!मैं भी चलूँगा आपके साथ..",प्रसून मचल उठा.
"आज नही बेटा.बस आज का काम हो जाए फिर तुम भी चलना."
थोड़ी देर तक प्रसून ज़िद करता रहा & देविका उसे मनाती रही & जब वो मान
गया तो वो भी अपनी कार से ड्राइवर के साथ निकल गयी.
----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
"ये है संजय वेर्मा,मॅ'म.",शाम लाल जी देविका का परिचय लड़की के बड़े भाई
से करवा रहे थे.
"नमस्ते.",थोड़ी देर बाद बातचीत असल मुद्दे पे आ गयी.देविका को संजय 1
पड़ा-लिखा & बहुत शरीफ इंसान लगा.बाते भी वो काफ़ी नापी-तुली कर रहा था.
"..आपको तो अंकल ने सब बताया ही होगा.पिता जी की मौत के बाद से बस हम
दोनो भाई-बेहन ही हैं.पिताजी ने हम दोनो की पढ़ाई पे हुमेशा से ज़ोर दिया
था & उसी की बदौलत हम अपने पैरो पे खड़े हैं.हुमारे पास बेशुमार दौलत तो
नही पर उनके सिखाए हुए अच्छे विचार हैं.",शाम लाल जी ने पहले ही देविका
को इस परिवार के बारे मे सब कुच्छ बता दिया था & यहा तो देविका बस लड़की
से मिलने के मक़सद से आई थी.
"मुझे भी अपने बेटे के लिए बस 1 अच्छी सी बीवी चाहिए,संजय जी.दौलत का
क्या है!..इंसान अगर मेहनती हो & ईमानदार भी तो दौलत तो उसके पास रहेगी
ही.आप बस मुझे 1 बार रोमा से मिलवा दीजिए."
"ज़रूर.",संजय उठके अपनी बेहन को बुलाने चला गया.
"शाम लाल जी ,मैं उस से अकेले मे बात करना चाहती हू."
"ठीक है,मॅ'म."
तभी अंदर के दरवाज़े का परदा हटा & हल्के नीले रंग की सारी पहने 1 सुंदर
लड़की कमरे मे आई.देविका को देख वो लड़की मुस्कुराइ & हाथ जोड़ के नमस्ते
किया.
"नमस्ते,आओ बैठो बेटा.",उसके बैठते ही शाम लाल जी बहाने से संजय को वाहा
से ले गये.देविका उस लड़की से उसकी पढ़ाई & नौकरी के बारे मे पुछ्ति
रही.लड़की का रंग बहुत गोरा तो नही था मगर वो साँवली भी नही थी.उसका
चेहरा बहुत ही दिलकश था & पहली नज़र मे जो भी देखता उसे वो निहायत शरीफ &
पढ़ने-लिखने वाली लड़की लगती.
"रोमा,तुमने शाम लाल जी से कहा की प्रसून जैसे इंसान की बीवी बनके तुम्हे
बहुत खुशी होगी..मैं जान सकती हू क्यू?मेरा बेटा मंदबुद्धि है,ये जानते
हुए भी तुम आख़िर इस शादी के लिए क्यू तैय्यार हो?"
"हां,मैने ऐसा ही कहा था..",रोमा मुस्कुराइ,"..& कल अंकल को मैने जान बुझ
के इस बात को नही समझाया.मैं सीधा आपको ये बताना चाहती थी.देखिए,सब लोग
बस प्रसून जी की कमी देखते हैं.क्या कभी किसी ने ये सोचा है की वो इंसान
जिसे वो मंदबुद्धि समझ रहे हैं उसका दिल कितना सॉफ है."
"ये तुम्हे कैसे पता?तुम तो उस से मिली भी नही कभी.",देविका के माथे पे
शिकन पड़ गयी थी.
"मिली तो नही मगर इतना पता है की वो 1 छ्होटे बच्चे जैसे हैं.ये बात तो
सभी को मालूम है,अब आप ही बताइए क्या 1 छ्होटा बच्चा हम सो कॉल्ड मेच्यूर
यानी समझदार लोगो जैसा दुनिया के दाँव-पेंच समझ सकता है.नही ना!..इसका
मतलब की उनका दिल भी निश्च्छाल है & ऐसे इंसान की बीवी बनना तो बड़ी
किस्मत की बात है."
"तुम्हे उसकी दौलत का 1 पैसा भी नही मिलेगा,रोमा तो क्या फिर भी तुम उस
से शादी करोगी?"
"जी हां.इतना कमाने की ताक़त है मुझमे की ज़रूरत पड़ने पे मैं अपना &
अपने पति का गुज़ारा आराम से चला लू."
"अच्छा,अगर मैं तुमसे शादी के पहले 1 प्री-नप्षियल अग्रीमेंट पे दस्तख़त
करने कहु जिसमे ये लिखा होगा की प्रसून की मौत होने पे तुम्हे बस 1 तय की
हुई रकम मिलेगी & बाकी की जयदाद ट्रस्ट को दान कर दी जाएगी तो?"
"तो क्या?..मैं दस्तख़त कर दूँगी लेकिन मैं ये शादी तभी करूँगी जब आपको
मुझपे & मेरी ईमानदारी पे पूरा यकीन हो.",रोमा को ये बात थोड़ी बुरी लगी
थी की कोई उसकी ईमानदारी पे शक़ कर रहा है.
"अच्छा रोमा,मैं भी 1 औरत हू & अच्छी तरह समझती हू की इस धन-दौलत के
अलावा भी हुमारी 1 ज़रूरत होती है.उसके बारे मे कुच्छ सोचा है तुमने?"
"क्या प्रसून जी मे कोई कमी है?"
"नही."
"फिर उस बारे मे आप फ़िक्र मत करिए.मैं अपने पति के साथ हर खुशी का एहसास
कर लूँगी.इतना भरोसा है मुझे अपनेआप पर.",रोमा ने सर झुका लिया था & उसके
गाल सुर्ख हो गये थे.आख़िर अपनी होने वाली सास से ये बात करना की उसका &
उसके पति का सेक्स का रिश्ता कैसा होगा कोई मौसम के बारे मे बात करने
जैसा तो नही था!
"उठ बेटा..",देविका ने उसके कंधे पकड़ के उसे खड़ा कर दिया,"..मुझे मेरी
बहू मिल गयी है.मेरे सवाल बुरे लगे होंगे ना तुझे?",उसने उसका चेहरा पकड़
के उसे प्यार से देखा,"..मगर मैं मजबूर हू रोमा,अपने बेटे के लिए ये सब
करना पड़ा मुझे.देखो,मैने तुम्हे आज से अपनी बहू मान लिया है & तुम्हे 1
बेटी की तरह रखूँगी.वो अग्रीमेंट पे तुम्हे दस्तख़त तो करने पड़ेंगे मगर
वो कुच्छ क़ानूनी कार्यवाईयो को पूरा करने की गरज से.ये मत समझना की मुझे
तुमपे भरोसा नही रहेगा.",उसने उसके भाई & शाम लाल जी को अंदर बुलाया &
अपने पर्स से निकाल उसने उसे पकड़ाए,"..ये लो."
रोमा ने झुक के उसके पाँव च्छुए तो उसे उठा उसका माथा चूम वो वाहा से निकल गयी.
कार मे बैठ के देविका ने आगे के बारे मे सोचना शुरू किया.ऐसा नही था की
वो जज़्बाती हो गयी थी & उसने रोमा को बहू बनाने का फ़ैसला लिया था.लड़की
बहुत ही अच्छी थी & प्रसून के लिए बिल्कुल सही भी मगर वो ऐसे जज़्बाती
होकर दोनो भाई बहनो को ये महसूस कराना चाहती थी की वो उन दोनो से बहुत
प्रभावित है.अगर उनके दिल मे ज़रा भी खोट होता तो वो इस बात से बहुत खुश
होते की देविका उनके जाल मे फँस गयी & फिर जब शिवा उनके बारे मे पता
करेगा तो हो सकता है उनकी लापरवाही से उनका राज़ खुल जाए & अगर वो सचमुच
सच्चे & ईमानदार हैं तब तो कोई बात ही नही!दोनो सुरतो मे वोही फाय्दे मे
रहने वाली थी.वो मन ही मन मुस्कुराइ & सोचने लगी की आज रात उसे प्रसून से
कैसे बात करनी है.
"कैसी लगी?",वीरेन की आवाज़ सुन कामिनी ने सामने रखी पेंटिंग्स से नज़र
हटाई & अपने प्रेमी को देखा.सामने 3 पेंटिंग्स रखी थी,पहली मे वो
शरमाई-सकूचाई नयी दुल्हन के रूप मे थी,दूसरी मे जोश से पागल आधी नंगी
बिस्तर पे लेटी अपने प्रेमी के इंतेज़ार करती हुई मस्त लड़की के रूप मे &
तीसरी मे वो पूरी नंगी लेटी थी मगर बिस्तर पे नही बादलो मे & उसके चेहरे
पे सुकून था.
तीनो पेंटिंग्स लाजवाब थी & कामिनी को खुद को उनमे देख थोड़ा गुरूर भी हो
रहा था & उस से भी ज़्यादा खुशी की कोई है जो उसका इतना दीवाना है की
अपनी कला मे भी उसे बस वोही नज़र आती है.
वीरेन को अभी भी अपने सवाल के जवाब का इंतेज़ार था.कामिनी उसके करीब आई &
उसके कंधो पे अपने हाथ रख अपने होंठो को उसके होंठो से सटा उसे जवाब देने
लगी.दोनो 1 दूसरे को बाँहो मे भर अपने प्यार का इज़हार करने लगे.कामिनी
सीधा दफ़्तर से वाहा आई थी & इस वक़्त उसने 1 क्रीम कलर की भूरी धारियो
वाली आधे बाजुओ की शर्ट & बालू के रंग की काफ़ी कसी हुई पतलून पहन रखी
थी.
वीरेन के लब उसके शर्ट के गले से दिखती उसकी गर्दन पे घूमते हुए उसकी कसी
पॅंट मे से उभरती उसकी चौड़ी गंद को हौले-2 दबा रहे थे.कामिनी के हाथ भी
उसकी पीठ पे बेचैनी से मचल रहे थे & थोड़ी ही देर मे वो उसकी शर्ट को
उसकी पॅंट से बाहर खींच रहे थे.
कामिनी ने शर्ट को पॅंट से निकाल उसकी पीठ पे अपने हाथ फिराए तो वीरेन ने
उसकी कमर को पकड़ उसे घुमा दिया,अब कामिनी की पीठ वीरेन के सीने से लगी
थी & उसके हाथ अपने प्रेमी के गले मे थे.वीरेन उसकी शर्ट मे हाथ घुसा
उसकी कमर & पेट को सहलाते हुए उसके दाए गाल को चूम रहा था.अजीब सा नशा था
उसकी उंगलियो मे,कामिनी उन्हे अपने जिस्म पे महसूस करते ही मदहोश हो जाती
थी.अभी भी वो हवा मे उड़ रही थी.उसका दिल वीरेन की हर हरकत का भरपूर
लुत्फ़ उठा रहा था.उसकी चूत मे वही मीठी कसक उठनी शुरू हो गयी थी & दिल
मे,आज की रात के भी वीरेन के साथ बिताई बाकी रातो की तरह नशीली होने की
उम्मीद से बहुत ही उमंग भर गयी थी.
वीरेन के हाथ उसकी शर्ट के बटन खोल रहे थे & कामिनी के हाथ उसकी गर्दन से
नीचे आ पीछे जा वीरेन की पुष्ट जाँघो को सहला रहे थे.सभी बटन्स खोल वीरेन
ने अपने दाए हाथ की पहली उंगली को कामिनी के पेट पे दायरे की शक्ल मे
घुमाने लगा.उंगली का पोर बस कामिनी के चिकने,गोरे पेट को छुता हुआ घूम
रहा था.उसके होठ बड़ी नर्मी से उसके गाल & गले को चूम रहे थे & उसकी गर्म
साँसे कामिनी की स्किन को जला के उसके जिस्म को और मस्त कर रही थी.
वीरेन की उंगली का दायरा धीरे-2 छ्होटा हो रहा था & कामिनी की साँसे तेज़
हो रही थी.उसकी आँखे अधखुली थी & वो दाए तरफ गर्दन घुमा अपने प्रेमी के
होंठो को चूम रही थी.उसके हाथ वीरेन की कलाईयो को थामे थे मगर वो उसके
हाथो की हर्कतो को रोकने की ज़रा भी कोशिश नही कर रहे थे.अब वीरेन की
उंगली कामिनी की नाभि के ठीक बाहर घूम रहा था.
"आहह....!",कामिनी की बेचैनी आह की शक्ल मे उसकी ज़ुबान से बाहर आई &
जैसे ही वीरेन की उंगली उसकी नाभि की गहराई मे उतरी उसने अपनी गंद को
पीछे कर उसके तने हुए लंड को दबा अपनी बेडचनी जताई.वीरेन की उंगली उसकी
नाभि के अंदर की दीवारो पे घूम रही थी & कामिनी की चूत से पानी रिसने लगा
था.उसके चेहरे पे परेशानी के भाव से आ गये जैसे उसे बड़ी तकलीफ़ हो &
तकलीफ़ तो उसे हो रही थी-इंतेज़ार की तकलीफ़,अपने प्रेमी के लंड के
इंतेज़ार की तकलीफ़.उसका दिल कर रहा था की जल्द से जल्द वीरेन उसे अपने
मज़बूत जिस्म तले दबा उसके बदन की अगन को शांत कर दे.
वीरेन हमेशा की तरह ही उसे तड़पाने के मूड मे था.कामिनी की गहरी नाभि को
उसकी उंगली बस कुरेदे जा रही थी.कामिनी की बेताबी इतनी बढ़ी की उसने
वीरेन की कलाई पकड़ उसके हाथ को अपने पेट से अलग कर दिया.उसके ऐसा करते
ही वीरेन ने भी फ़ौरन उसके कंधो पे हाथ रख उसकी खुली कमीज़ को उसके जिस्म
से अलग कर दिया.कामिनी की सफेद ब्रा से ढँकी छातिया मस्ती मे उपर नीचे हो
रही थी.अपनी प्रेमिका की पतली कमर को बहो मे भर,उसकी नंगी पीठ को सहलाते
हुए वीरेन ने उसे खुद से चिपकाया & 1 बार फिर अपने होतो से उसके लरजते
होंठो को चूमने लगा.
कामिनी के हाथ वीरेन के जिस्म को नंगा करने को बेचैन थे.चूमते हुए उसने
वीरेन की शर्ट को उसके कंधो से नीचे किया & उसकी पॅंट का बटन खोल उसमे
हाथ घुसा उसके लंड को ढूँदने लगी.वीरेन के हाथ भी उसके ब्रा के हुक को
खोल उसे उसके कंधो से नीचे सरका रहे थे.पॅंट ढीली होते ही वीरेन ने अपनी
टाँगे उठा उसे अपने जिस्म से अलग किया & कामिनी की कमर के दोनो तरफ बगल
मेअप्ने दोनो हाथो की पहली उंगली से उपर से लेके नीचे तक सहलाने लगा.कोई
और मर्द होता तो चूचिया नंगी होते ही उनपे टूट पड़ता मगर वीरेन पे तो
जैसे उन उभारो का कुच्छ असर ही नही था.
कामिनी अपने दाए हाथ से उसके लंड को हिलाते हुए बाए से उसकी गर्दन को
अपनी ओर खींच उसके मुँह मे अपनी जीभ घुसा दी.वीरेन का बालो भरा सीना उसकी
चूचियो से आ लगा मगर वीरेन ने अभी भी उन्हे नही थामा बल्कि अब उसका बाया
हाथ उसकी कमर को थामे था & दाए की पहली उंगली उसके पीठ के बीचो-बीच नीचे
कमर से उसकी गर्दन तक फिर रही थी.कामिनी की बेताबी अब बहुत ज़्यादा बढ़
गयी थी.
उसने वीरेन का लंड छ्चोड़ दोनो हाथो मे उसके हाथ पकड़ अपने जिस्म को उनमे
कसा & उसके गले मे अपनी बाहे डाल दी,"वीरेन,तुम बहुत तड़पाते हो.प्यार
करो ना मुझे!",वो पागलो की तरह उसे चूमने लगी तो वीरेन भी उसकी किस का
जवाब देने लगा & अपने हाथो मे उसकी गंद की भारी फांके दबाने लगा.उसके
होंठो को छ्चोड़ वो नीचे उसकी ठुड्डी को चूमते हुए उसकी गर्दन पे आ
गया.कामिनी का दिल उमंग से भर गया की अब उसके फूलो जैसे उभारो को वीरेन
अपने होंठो के रस से सींचेगा मगर वीरेन ने उसे फिर से तड़पाते हुए बिना
उसकी चूचियो को च्छुए अपने होंठो को उसके पेट पे रखा & फिर उसकी नाभि पे
आ गया.
कामिनी को लगा की अब वो रो पड़ेगी.वीरेन उसकी नाभि को चाट रहा था & उसके
पूरे जिस्म मे अब बस मस्ती भरा दर्द दौड़ रहा था.वीरेन उसकी गंद को अपने
हाथो तले मसलता हुआ पॅंट के उपर से ही उसकी चूत पे 1 के बाद 1 किस्सस
ठोंक रहा था, "आहान्न..आहँन्न....वीरे..न..उऊन्ह....",कामिनी रुआंसी हो
गयी थी & वीरेन समझ गया की अब और तड़पाना ठीक नही.उसने फटाफट उसकी पॅंट
उतारी.अब कामिनी के जिस्म पे बस उसकी चूत से चिपकी 1 पतली सी सफेद पॅंटी
थी.वीरेन ने उसे अपनी गोद मे उठाया & स्टूडियो से बाहर निकल अपने बेडरूम
मे चला गया.
अपने बड़े से बिस्तर पे अपनी प्रेमिका को लिटा वो उसकी मखमली जाँघो को
चूमने लगा.कामिनी बिस्तर पे मचल रही थी.वीरेन उसकी पॅंटी को निकाल उसकी
गीली चूत से टपकते रस को चाट रहा था.कामिनी ने हाथ नीचे ले जा अपने बाए
तरफ बैठे वीरेन के लंड को पकड़ा & घूम के अपना मुँह उसके तरफ लाने
लगी.वीरेन उसका इशारा समझ गया & फ़ौरन अपना लंड उसके मुँह मे दे लेट
गया.अब दोनो करवट से लेटे 1 दूसरे की गोद मे मुँह घुसाए थे.कामिनी अपनी
दाई करवट पे लेटी उसका लंड चूस रही थी & वीरेन अपनी दाई करवट पे लेटा
उसकी छूट.
काफ़ी देर बाद जब वीरेन ने उसके 2 बार झड़ने के बाद उसकी चूत छ्चोड़ उसे
सीधा लिटा के उसकी चूत मे अपना लंड घुसाया तब कामिनी को थोड़ा चैन
पड़ा.वीरेन ने चुदाई शुरू कर दी & बस कुच्छ ही पॅलो बाद उसके बदन से चिपक
कामिनी 1 बार फिर झाड़ गयी.वीरेन अभी भी धक्के लगाए जा रहा था.वो उसकी
चूचिया चूस रहा था & कामिनी उसके सर को चूम रही थी.कामिनी के चेहरे पे
बहुत ही संतोष का भाव था.वीरेन अपने हाथो पे थोड़ा उठ गया & उसके धक्को
की रफ़्तार और तेज़ हो गयी & उसके साथ ही कामिनी की आहे भी.
वीरेन का लंड उसकी चूत की दीवारो को बड़ी तेज़ी से रगड़ रहा था & अब उसके
उपर 1 बार फिर खुमारी छाने लगी.उसकी चूत मे बहुत ज़्यादा तनाव बन गया &
उस से परेशान हो कामिनी ने अपने नाख़ून वीरेन की गंद मे धंसा दिए.उसकी
चूत अपनी वही मस्तानी सिकुड़ने-फैलने की हरकते कर उसके लंड को पागल कर
रही थी.वीरेन के आंडो मे भी हल्का सा मीठा दर्द हो रहा था.दोनो प्रेमियो
के नाज़ुक अंगो मे उठ रही कसक अब अपने चरम पे पहुँच गयी थी.
दोनो को कुच्छ होश नही था सिवाय इसके की दोनो को अपनी-2 मंज़िल पानी
है.कामिनी के नाख़ून वीरेन की गंद मे कुच्छ और ज़्यादा धँस गये & वो अपनी
कमर बेचिनी से हिलाते हुए बिस्तर से उठने की कोशिश करने लगी.उसकी चूत मे
बन रहा तनाव बेइंतहा मज़े की शक्ल इकतियार कर रहा था.उसके रोम-2 मे मानो
खुशी के फव्वारे फुट रहे थे.ठीक उसी वक़्त वीरेन के आंडो का दर्द भी
ख़त्म होने लगा & उसके लंड से गाढ़ा पानी छूट कामिनी की चूत मे भरने
लगा.दोनो ने अपनी-2 मंज़िल पा ली थी & अब उन्हे किसी बात की परवाह नही
थी.
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
क्रमशः.............
BADLA paart--23
gataank se aage...
"uummm...ouchhh...!",Rajni apne ghutno & hatho pe bistar pe jhuki thi
& Inder peechhe se uski gand me apna lund ghusaye dhakke laga raha
tha.use is sadharan shakl-surat vali ladki ko chodne me ab boriyat
hone lagi thi magar vo use koi shaq nahi hone dena chahta tha,isliye
aaj apni boriyat bhagane ke liye & rajni ko ye jatane ke liye ki vo
uske jism ka deewana hai usne uski gand maarne ka irada kiya tha.
"ohh..maaaa...haaiiiii...kyu
maa..ni..ma..ine..tum..haa..aaaahhh...tum..hari
baat...AAANNHHH....AAANNNHHHH....!",inder uski gand marte hue uski
chut me tezi se 2 ungliya andar-bahar kar raha tha.vo janta tha ki
rajni jo bhi kahe use bahut maza aa raha tha.
"rajni..janeman.."
"hmm..",rajni ko sach me bahut maza aa raha tha.shuru me tez dard hua
tha magar ab to vo hawa me ud rahi thi.
"tumhare boss ne shiva ko apne bungle ke andar kyo kamra duya hua hai
jabki hum baki log to bahar rehte hain?"
"shiva..oowww...unka bahut bharosemand aadmi thaaaaaaa..aahh....& boss
ko laga..ki agar vo andar ra..he to..oohhhhh....agar kabhi....koi
khatre vali baat..hoooo..to..vo un..ke pari..var ki hifazat
karega..aahhhhh..AAAAANNNHHHHHH....!",rajni jhad rahi thi & inder bhi
uski gand ko apne pani se bhar raha tha.
rajni ke thakan se nidhal ho bistar pe gir padi.inder uske bagal me
let gaya & apne baye hath se pet ke bal leti hanfti rajni ki pith
sehlane laga.usne bagal me padi apni pant se 1 cigarette ka packet
nikala & 1 cigarette sulga li.sharab jaisa sukun to nahi milta tha use
is se magar ye rajni se uski bechaini chhupane me kamyab thi....is
shiva ko to ghar se nikalna padega..magar kaise..kaise?
vo cigarette ke kash khinch raha tha,"kyu pite ho ye gandi
chiz?",rajni sar ghuma ke use dekh rahi thi.usne farsh pe cigarette
masal ke use bujhaya fir rajni ko seedha kiya,"thik hai nahi pita
gandi chiz.ab achhi chiz pita hu.",usne uski bayi chhati ko munh me
bhar liya to rajni ke hotho pe muskan fail gayi & 1 baar fir vo
madhosh hone lagi.
----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
"oonnhh...ooonhhh...aur
zorrrr...aaahhh..se...aaiyyee..haaaannn..shiva....jaan...chodo...chodo...mujhe...aaahhhh...!",devika
ki tange shiva ke kandho pe thi & uske hath shiva ki jangho pe.shiva
ka tagda lund uski chut ki gehraiyo me andar-bahar ho raha tha.devika
aaj raat ye kaun si baar jhad rahi thi use yaad nahi tha.yaad tha to
bas ye ki shiva 1 baar uski chut me & 1 baar munh me jhadne ke bavjood
vaise hi josh se uski chudai karte hue teesri baar jhadne vala tha.
"oonhhh...!",devika bistar se uthne ki koshish karne lagi to shiva ne
uski tange apne kandhe se utari 7 uske upar let gaya.uske balo bhare
seene tale devika ki chhatiya dabi to use bahut sukun mile.dono ne 1
dusre ko baaho me bhar liya & apni-2 kamar hilane lage & bas kuchh hi
palo me 1 bar fir apni manzil pe pahunch gaye.
"umm..",devika apne premi ko chum rahi thi.vo abhi bhi uski chut me
apna sikuda lund dhansaye uske upar pada tha.usne apni premika ke uapr
se utarna chahat tha magar devika ki guzarish thi ki vo abhi thodi der
aur vaise hi use apne tale dabaye rahe.
"devika..",shiva ne uske gale pe chuma.
"bolo,shiva.",devika uske balo se khel rahi thi.
"tumhe ab ye sara karobar sambhalna hai & isme inder tumhari madad
karega lekin tum uspe aankh mund ke bhharosa nahi karna please!"
"saaf-2 kaho shiva."
"dekho,devika mujhe saaf kuchh pata nahi chal raha magar vo thik aadmi
nahi hai.dekho,vo bahut achha kaam karega,tumhe shikayat ka koi mauka
nahi dega magar fir bhi tum apni 1 nazar uspe banaye rakhna."
"thik hai.",1 baar fir devika ke lab shiva ke honth talashne lage.
"nahi..",shiva ne honth khinch liye,"..pehle vada karo ki tum hoshiyar rahogi."
"vaada..vaada..vaada..!",devika ne uska sar pakad ke neeche jhukaya,"khush?"
"haan.",shiva use chumne ke liye neeche jhuka to is baar devika ne rok
diya,"kya hua?"
"maine kiya ab tum bhi 1 vaad karo."
"kya?bolo."
"ki aaj ke baad tum mujhe kisi bhi raat akela nahi chhodoge."
"nahi chhodunga meri jaan.",vo devika ki gori gardan pe jhuk ke apne
hotho se shararat se kaatne laga,uska soya lund 1 bar fir se
sugubugane laga tha & uski kamar bhi haule-2 hilne lagi thi.devika ne
apni tange uski kamar pe lapeti,"..ooww..",shiva ki shararato ne
gudgudi paida kar di to usne bhi apne hatho se uske bagal me gusgusa
diya.1 dusre ki chhedchhad se dono premiyo ke dil me khushi ki lehar
daud gayi & kamra dono ki hansi ki shor se bhar gaya.
"..Sara karobar chalane ki zimmedari Mrs.Devika Sahay ke upar ho.is
vasiyat ke & Suren Sahay & Viren Sahay ke beech hue kanoni karar ke
mutabik ab vo aadhi jayda ki bhi malkin hain lekin chuki viren ji abhi
na to bantwara chahte hain na hi karobar chalana to abhi sari jaydad
ki dekh-rekh ki zimmedari bhi devika ji ki hi hai..",Kamini sahay
parivar ke bungle ke hall me baithi viren,devika & Prasun ki maujoodgi
me vasiyat padh rahi thi.
"..viren ji ko har mahine pehle ki hi tarah vo rakam milti rahegi jo
unhone apne bade bhai Suren Sahay ke sath mil ke tay ki hai & joki
dono bhaiyo ke karar me bhi likhi hui hai.jis din bhi viren sahay
kanooni taur pe bantware ki mang karenge us tarikh se leke aanevale 6
mahino ke bhitar devika ji ko unke sath milke bantware ki sari karvai
puri karni hogi.ab devika ji ko bhi apni vasiyat banani hogi taki unki
maut ke baad unke bete prasun ki dekhbhal ho sake & jaydad ke mamle
sulajh saken."
"ye hai vasiyat ka saar jo maine padha hai.in sair baato ko detail me
aage likha gaya hai.ye 3 copies hain..",kamini ne 2 devika ko & 1
viren ko thamayi,"..aap prasun ki copy bhi apne paas hi rakhiye,devika
ji & aap dono yaha dastkhat kar dijiye ki aapne vasiyat le li hai &
aap ise mante hain."
dono ke dastkhat lene ke baad kamini ne apna bag Mukul ko thamaya &
vaha se jane lagi.viren & devika use bahar tak chhodne aaye & uski car
ka darwaza kholte hue viren phusphusaya,"darling!aaj sham ghar
aana.tumhe kuchh dikhana hai."
"hun..",kamini halke se muskurayi & car me baith gayi.
"main bhi chalta hu.beech-2 me aata rahunga.",devika ki or dekhe bina
usne us se ye baat kahi,"bye!prasun.",usne apne bhatije ko dekh ke
muskurate hue hath hilaya & usne bhi vaise hi hanste hue uska jawab
diya.
"tumse 1 baat kehni thi.",devika uske car ke darwaze ke paas khadi thi.
"kya?",viren chabhi ignition me laga raha tha.
"aaj main prasun ke liye 1 ladki dekhne ja rahi hu.Sham Lal ji ke
jaan-pehchan ka koi parivar hai Panchmahal me."
"tum uski shadi karwaogi hi?",viren ne is baar apni bhabhi ki nazro se
nazre milayi.
"haan & uska chacha hone ke nate tumhara ye jaanana zaruri hai."
"hun..jo karna soch-samajh ke karna,prasun ki masumiyat ka khayal rakh
ke koi faisla lena."
"tum befikr raho.aakhir main uski maa hu.",viren ne devika ko pal bhar
ke liye badi gehri nigaho se dekha & apni car vaha se nikal di.jab se
devika bahu ban kar is ghar me aayi thi tab se leke aajtak
devar-bhabhi me itni lambi baatchit bas gine-chune mauko pe hui thi.
1 gehri sans leke devika vapas bungle me chali gayi,"Rajni."
"yes,ma'am."
"dekho,main zara kaam se panchmahal ja rahi hu.peechhe apne bhaiyya ka
khayal rakhna.",usne pyar se apne bete ke balo me hath fera..iska
chacha ise masum samajhta hai..aaj use is masum ki thodi masumiyat bhi
door karni thi bas bhagwan kare vo ladki achhi ho!
"umm..mummy!main bhi chalunga aapke sath..",prasun machal utha.
"aaj nahi beta.bas aaj ka kaam ho jaye fir tum bhi chalna."
thodi der tak prasun zid karta raha & devika use manati rahi & jab vo
maan gaya to vo bhi apni car se driver ke sath nikal gayi.
----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
"ye hai Sanjay Verma,ma'am.",sham lal ji devika ka parichay ladki ke
bade bhai se karwa rahe the.
"namaste.",thodi der baad baatchit asal mudde pe aa gayi.devika ko
sanjay 1 pada-likha & bahut sharif insan laga.baate bhi vo kafi
napi-tuli kar raha tha.
"..aapko to uncle ne sab bataya hi hoga.pita ji ki maut ke baad se bas
hum dono bhai-behan hi hain.pitaji ne hum dono ki padhayi pe humesha
se zor diya tha & usi ki badaulat hum apne pairo pe khade hain.humare
paas beshumar daulat to nahi par unke sikhaye hue achhe vichar
hain.",sham lal ji ne pehle hi devika ko is parivar ke bare me sab
kuchh bata diya tha & yaha to devika bas ladki se milne ke maqsad se
aayi thi.
"mujhe bhi apne bete ke liye bas 1 achhi si biwi chahiye,sanjay
ji.daulat ka kya hai!..insan agar mehnati ho & imandar bhi to daulat
to uske paas rahegi hi.aap bas mujhe 1 baar roma se milwa dijiye."
"zarur.",sanjay uthke apni behan ko bulane chala gaya.
"sham lal ji ,main us se akele me baat karna chahti hu."
"thik hai,ma'am."
tabhi andar ke darwaze ka parda hata & halke neele rang ki sari pehne
1 sundar ladki kamre me aayi.devika ko dekh vo ladki muskurayi & hath
jod ke namaste kiya.
"namaste,aao baitho beta.",uske baithate hi sham lal ji bahane se
sanjay ko vaha se le gaye.devika us ladki se uski padhayi & naukri ke
bare me puchhti rahi.ladki ka rang bahut gora to nahi tha magar vo
sanvli bhi nahi thi.uska chehra bahut hi dilkash tha & pehli nazar me
jo bhi dekhta use vo nihayat sharif & padhne-likhne vali ladki lagti.
"roma,tumne sham lal ji se kaha ki prasun jaise insan ki biwi banke
tumhe bahut khushi hogi..main jaan sakti hu kyu?mera beta mandbuddhi
hai,ye jante hue bhi tum aakhir is shadi ke liye kyu taiyyar ho?"
"haan,maine aisa hi kaha tha..",roma muskurayi,"..& kal uncle ko maine
jaan bujh ke is baat ko nahi samjhaya.main seedha aapko ye batana
chahti thi.dekhiye,sab log bas prasun ji ki kami dekhte hain.kya kabhi
kisi ne ye socha hai ki vo insan jise vo mandbuddhi samajh rahe hain
uska dil kitna saaf hai."
"ye tumhe kaise pata?tum to us se mili bhi nahi kabhi.",devika ke
mathe pe shikan pad gayi thi.
"mili to nahi magar itna pata hai ki vo 1 chhote bachche jaise hain.ye
baat to sabhi ko malum hai,ab aap hi bataiye kya 1 chhota bachcha hum
so called mature yani samajhdar logo jaisa duniya ke danv-pench samajh
sakta hai.nahi na!..iska matlab ki unka dil bhi nishchhal hai & aise
insan ki biwi banana to badi kismat ki baat hai."
"tumhe uski daulat ka 1 paisa bhi nahi milega,roma to kya fir bhi tum
us se shadi karogi?"
"ji haan.itna kamane ki taqat hai mujhme ki zarurat padne pe main apna
& apne pati ka guzara aaram se chala lu."
"achha,agar main tumse shadi ke pehle 1 pre-nuptial agreement pe
dastkhat karne kahu jisme ye likha hoga ki prasun ki maut hone pe
tumhe bas 1 tay ki hui rakam milegi & baki ki jaydad trust ko daan kar
di jayegi to?"
"to kya?..main dastkhat kar dungi lekin main ye shadi tabhi karungi
jab aapko mujhpe & meri imandari pe pura yakin ho.",roma ko ye baat
thodi buri lagi thi ki koi uski imandari pe shaq kara raha hai.
"achha roma,main bhi 1 aurat hu & achhi tarah asmajhti hu ki is
dhan-daulat ke alawe bhi humari 1 zarurat hoti hai.uske bare me kuchh
socha hai tumne?"
"kya prasun ji me koi kami hai?"
"nahi."
"fir us bare me aap fikr mat kariye.main apne pati ke sath har khushi
ka ehsas kar lungi.itna bharosa hai mujhe apneaap par.",roma ne sar
jhuka liya tha & uske gaal surkh ho gaye the.aakhir apni hone wali
saas se ye baat karna ki uska & uske pati ka sex ka rishta kaisa hoga
koi mausam ke bare me baat karne jaisa to nahi tha!
"uth beta..",devika ne uske kandhe pakad ke use khada kar
diya,"..mujhe meri bahu mil gayi hai.mere sawal bure lage honge na
tujhe?",usne uska chehra pakad ke use pyar se dekha,"..magar main
majboor hu roma,apne bete ke liye ye sab karna pada mujhe.dekho,maine
tumhe aaj se apni bahu maan liya hai & tumhe 1 beti ki tarah
rakhungi.vo agreement pe tumhe dastkhat to karne padenge magar vo
kuchh kanooni karvayio ko pura karne ki garaj se.ye mat samajhna ki
mujhe tumpe bharosa nahi rahega.",usne uske bhai & sham lal ji ko
andar bulaya & apne purse se nikal usne use pakdaye,"..ye lo."
roma ne jhuk ke uske panv chhue to use utha uska matha chum vo vaha se
nikal gayi.
car me baith ke devika ne aage ke abre me sochna shuru kiya.aisa nahi
tha ki vo jazbati ho gayi thi & usne roma ko bahu banane ka faisla
liya tha.ladki bahut hi achhi thi & prasun ke liye bilkul sahi bhi
magar vo aise jazbati hokar dono bhai behano ko ye mehsus karana
chahti thi ki vo un dono se bahut prabhavit hai.agar unke dil me zara
bhi khot hota to vo is baat se bahut khush hote ki devika unke jaal me
fans gayi & fir jab Shiva unke bare me pata karega to ho sakta hai
unki laparvahi se unka raaz khul jaye & agar vo sachmuch sachche &
imandar hain tab to koi baat hi nahi!dono surato me vohi fayde me
rehne vali thi.vo man hi man muskurayi & sochne lagi ki aaj raat use
prasun se kaise baat karni hai.
"Kaisi lagi?",Viren ki aavaz sun Kamini ne samne rakhi paintings se
nazar hatayi & apne premi ko dekha.samne 3 paintings rakhi thi,pehli
me vo sharmayi-sakuchayi nayi dulhan ke roop me thi,dusri me josh se
pagal aadhi nangi bistar pe leti apne premi ke intezar karti hui mast
ladki ke roop me & teesri me vo puri nangi leti thi magar bistar pe
nahi baadlo me & uske chehre pe sukun tha.
teeno paintings lajawab thi & kamini ko khud ko unme dekh thoda gurur
bhi ho raha tha & us se bhi zyada khushi ki koi hai jo uska itna
deewana hai ki apni kala me bhi use bas vohi nazar aati hai.
viren ko abhi bhi apne sawal ke jawab ka intezar tha.kamini uske
kareeb aayi & uske kandho pe apne hath rakh apne hotho ko uske hotho
se sata use jawab dene lagi.dono 1 dusre ko baho me bhar apne pyar ka
izhar karne lage.kamini seedha daftar se vaha ayi thi & is waqt usne 1
cream color ki bhuri dhariyo vali adhe bazuo ki shirt & balu ke rang
ki kafi kasi hui patloon pehan rakhi thi.
viren ke lab uske shirt ke gale se dikhti uski gardan pe ghumte hue
uski kasi pant me se ubharti uski chaudi gand ko haule-2 daba rahe
the.kamini ke hath bhi uski pith pe bechaini se machal rahe the &
thodi hi der me vo uski shirt ko uski pant se bahar khinch rahe the.
kamini ne shirt ko pant se nikaal uski pith pe apne hath firaye to
viren ne uski kamar ko pakad use ghuma diya,ab kamini ki pith viren ke
seene se lagi thi & uske hath apne premi ke gale me the.viren uski
shirt me hath ghusa uski kamar & pet ko sehlate hue uske daye gaal ko
chum raha tha.ajib sanasha tha uski ungliyo me,kamini unhe apne jism
pe mehsus karte hi madhosh ho jati thi.abhi bhi vo hawa me ud rahi
thi.uska dil viren ki har harkat ka bharpur lutf utha raha tha.uski
chut me vahi mithi kasak uthni shuru ho gayi thi & dil me,aaj ki rat
ke bhi viren ke sath bitayi baki rato ki tarah nashili hone ki ummeed
se bahut hi umang bhar gayi thi.
viren ke hath uski shirt ke button khol rahe the & kamini ke hath uski
gardan se neeche a peechhe jaa viren ki pusht jangho ko sehla rahe
the.sabhi buttons khol viren ne apne daye hath ki pehli ungli ko
kamini ke pet pe dayre ki shakl me ghumane laga.ungli ka por bas
kamini ke chikne,gore pet ko chhuta hua ghum raha tha.uske hoth badi
narmi se uske gal & gale ko chum rahe the & uski garm sanse kamini ki
skin ko jala ke uske jism ko aur mast kar rahi thi.
viren ki ungli ka dayra dhire-2 chhota ho raha tha & kamini ki sanse
tez ho rahi thi.uski ankhe adhkhuli thi & vo daye taraf gardan ghuma
apne premi ke hotho ko chum rahi thi.uske hath viren ki kalaiyo ko
thame the magar vo uske hatho ki harkato ko rokne ki zara bhi koshish
nahi kar rahe the.ab viren ki ungli kamini ki nabhi ke thik bahar ghum
raha tha.
"aahhhh....!",kamini ki bechaini aah ki shakl me uski zuban se bahar
aayi & jaise hi viren ki ungli uski nabhi ki gehrayi me utri usne apni
gand ko peeche kar uske tane hue lund ko daba apni bedchaini
jatai.viren ki ungli uski nabhi ke andar ki deewaro pe ghum rahi thi &
kamini ki chut se pani risne laga tha.uske chehre pe pareshani ke bhav
se aa gaye jaise use badi taklif ho & taklif to use ho rahi
thi-intezar ki taklif,apne premi ke lund ke intezar ki taklif.uska dil
kar raha tha ki jald se jald viren use apne mazbut jism tale daba uske
badan ki agan ko shant kar de.
viren humesha ki tarah hi use tadpane ke mood me tha.kamini ki gehri
nabhi ko uski ungli bas kurede ja rahi thi.kamini ki betabi itni badhi
ki usne viren ki kalai pakad uske hath ko apne pet se alag kar
diya.uske aisa karte hi viren ne bhi fauran uske kandho pe hath rakh
uski khuli kamiz ko uske jism se alag kar diya.kamini ki afed bra se
dhanki chhatiya masti me upar neeche ho rahi thi.apni premika ki patli
kamar ko baho me bhar,uski nangi pith ko sehlate hue viren ne use khud
se chipkaya & 1 bar fir apne hotho se uske larajte hotho ko chumne
laga.
kamini ke hath viren ke jism ko nanga karne ko bechain the.chumte hue
usne viren ki shirt ko uske kandho se neeche kiya & uski pant ka
button khol usme hath ghusa uske lund ko dhoondne lagi.viren ke hath
bhi uske bra ke hook ko khol use uske kandho se neeche sarka rahe
the.pant dhili hote hi viren ne apni tange utha use apne jism se alag
kiya & kamini ki kamar ke dono taraf bagal meapne dono hatho ki pehli
ungli se upar se leke neeche tak sehlane laga.koi aur mard hota to
chhatiya nangi hote hi unpe toot padta magar viren pe to jaise un
ubharo ka kuchh asar hi nahi tha.
kamini apne daye hath se uske lund ko hilate hue baye se uski gardan
ko apni or khinch uske munh me apni jibh ghusa di.viren ka balo bhara
seena uski choochiyo se a laga magar viren ne abhi bhi unhe nahi thama
balki ab uska baya hath uski kamar ko thame tha & daye ki pehli ungli
uske pith ke beecho-beech neeche kamar se uski gardan tak fir rahi
thi.kamini kebtabi ab bahut zyada badh gayi thi.
usne viren ka lund chhod dono hatho me uske hath pakad apne jism ko
unme kasa & uske gale me apni baahe dal di,"viren,tum bahut tadpate
ho.pyar karo na mujhe!",vo paglo ki tarah use chumne lagi to viren bhi
uski kiss ka jawab dene laga & apne hatho me uski gand ki bhari fanke
dabane laga.uske hontho ko chhod vo neeche uski thuddi ko chumte hue
uski gardan pe aa gaya.kamini ka dil umang se bhar gaya ki ab uske
phoolo jaise ubharo ko viren apne hotho ke ras se seenchega magar
viren ne use fir se tadpate hue bina uski choochiyo ko chhue apne
hotho ko uske pet pe rakha & fir uski nabhi pe aa gaya.
kamini ko laga ki ab vo ro padegi.viren uski nabhi ko chat raha tha &
uske pure jism me ab bas masti bhara dard daud raha tha.viren uski
gand ko apne hatho tale maslata hua pant ke upar se hi uski chut pe 1
ke baad 1 kisses thonk raha tha,
"aahann..aahannn....vire..n..uunhhh....",kamini ruansi ho gayi thi &
viren samajh gaya ki ab aur tadpana thik nahi.usne fatafat uski pant
utari.ab kamini ke jism pe bas uski chut se chipki 1 patli si safed
panty thi.viren ne use apni god me uthaya & studio se bahar nikal apne
bedroom me chala gaya.
apne bade se bistar pe apni premika ko lita vo uski makhmali jangho ko
chumne laga.kamini bistar pe machal rahi thi.viren uski panty ko nikal
uski gili chut se tapakte ras ko chhat raha tha.kamini ne hath neeche
le ja apne baye taraf baithe viren ke lund ko pakda & ghum ke apna
munh uske taraf lane lagi.viren uska ishara samajh gaya & fauran apna
luns uske munh me de let gaya.ab dono karwat se lete 1 dusre ki god me
munh ghusaye the.kamini apni dayi karwat pe leti uska lund chus rahi
thi & viren apni dayi karwat pe leta uski chut.
kafi der baad jab viren ne uske 2 bar jhadne ke baad uski chut chhod
use seedha lita ke uski chut me apna lund ghusaya tab kamini kothoda
chain pada.viren ne chudai shuru kar di & bas kuchh hi palo baad uske
badan se chipak kamini 1 bar fir jhad gayi.viren abhi bhi dhakke
lagaye ja raha tha.vo uski choochiya chus raha tha & kamini uske sar
ko chum rahi thi.kamini ke chehre pe bahut hi santosh ka bhav
tha.viren apne hatho pe thoda uth gaya & uske dhakko ki raftar aur tez
ho gayi & uske sath hi kamini ki aahe bhi.
viren ka lund uski chut ki deewaro ko badi tezi se ragad raha tha & ab
uske upar 1 bar fir khumari chhane lagi.uski chut me bahut zyada tanav
ban gaya & us se pareshan ho kamini ne apne nakhun viren ki gand me
dhansa diye.uski chut apni vahi mastani sikudne-failne ki harkate kar
uske lund ko pagal kar rahi thi.viren ke ando me bhi halka sa meetha
dard ho raha tha.dono premiyo ke nazuk ango me uth rahi kasak ab apne
charam pe pahunch gayi thi.
dono ko kuchh hosh nahi tha sivay iske ki dono ko apni-2 manzil pani
hai.kamini ke nakhun viren ki gand me kuchh aur zyada dhans gaye & vo
aponi kamar bechini se hilate hue bistar se uthne ki koshish karne
lagi.uski chut me ban raha tanav beintaha maze ki shakl ikhtiyar kar
raha tha.uske rom-2 me mano khushi ke favvare phut rahe the.thik usi
waqt viren ke ando ka dard bhi khatm hone laga & uske lund se gadha
pani chhut kamini ki chut me bharne laga.dono ne apni-2 manzil pa li
thi & ab unhe kisi bat ki parvah nahi thi.
-----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
kramashah.............
आपका दोस्त राज शर्मा साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,मंदिर जाकर जाप भी कर
लेता हूँ ..मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी
कर लेता हूँआपका दोस्तराज शर्मा(¨`·.·´¨) Always`·.¸(¨`·.·´¨) Keep
Loving &(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !`·.¸.·´ -- raj
--
No comments:
Post a Comment