बदला पार्ट--28
गतान्क से आगे... रात को कामिनी फिर से वीरेन के साथ उसकी कॉटेज मे नंगी
पड़ी हुई थी.वो अपनी बाई करवट पे लेटी थी & वीरेन अपनी दाई पे उसके
सामने.वीरेन का लंड उसकी चूत मे था.कामिनी ने अपनी दाई जाँघ वीरेन की
जाँघ के उपर चढ़ाई हुई थी,दोनो प्रेमी 1 दूसरे से लिपटे हुए 1 दूसरे को
चूम रहे थे. वीरेन ने अपना बाया हाथ उसकी गंद की दाई फाँक पे रखा & अपनी
कमर हिलाके चुदाई शुरू कर दी.कामिनी ने भी जवाब मे वीरेन की गंद को अपने
दाए हाथ मे भींच लिया & अपनी कमर हिलानी शुरू कर दी.वीरेन की चुदाई से
कामिनी हवा मे उड़ रही थी मगर उसकी 1 नज़र उस खिड़की पे ही थी जहा उसने
पिच्छली रात किसी साए को देखा था. "ऊव्वव..!",वीरेन के लंड के धक्को से
बहाल कामिनी की आहे निकलने लगी थी & वो उसकी गंद पे अपने नखुनो के निशान
छ्चोड़ रही थी.वीरेन भी बस अब जल्द से जल्द उसके साथ-2 अपनी मंज़िल पे
पहुँचना चाहता था.अपनी प्रेमिका के जिस्म से खेलते हुए उसे कोई 2 घंटे
होने को आए थे जिस दौरान वो तो 3-4 बार झाड़ चुकी थी मगर वो अभी तक 1 बार
भी नही झाड़ा था. दोनो प्रेमियो के दिल की धड़कने बहुत तेज़ हो गयी थी
साथ ही उनकी कमर के हिलने की रफ़्तार भी.कामिनी अब बिल्कुल मदहोश हो चुकी
थी मगर फिर भी उसने अपनी आँखे बंद नही की & खिड़की पे ही लगाए रखी.तभी
उसकी चूत मे बन चुका तनाव अचानक जैसे ढीला पड़ने लगा & उसके रोम-2 मे
खुशी भरने लगी.उसकी बाहो मे क़ैद वीरेन भी ज़ोर-2 से आहें भर रहा
था.झड़ने की खुशी को दिल मे शिद्दत से महसूस करती कामिनी ने अपनी चूत मे
अपने प्रेमी के गढ़े,गरम विर्य का गीलापन महसूस किया & समझ गयी की वो भी
झाड़ चुका है. आज रात उसे खिड़की पे कोई साया नही दिखाई दिया.रात काफ़ी
गहरी हो चुकी थी & उसे उमीद थी की अब आज रात कोई उनकी जासुसु नही
करेगा,"वीरेन.." "हूँ.",वीरेन उसकी चूचियो मे अपना चेहरा च्छुपाए वैसे ही
पड़ा था. "अगली बार यहा कब आओगे?",उसने उसके बालो मे प्यार से उंगलिया
फिराते हुए उसके सर को चूम लिया. "अगले महीने.क्यू?",उसने उसके सीने से
सर उठाया. "बस ऐसे ही पुचछा था.मैं तुम्हारे साथ फिर से यहा आना चाहती
हू.ये जगह बहुत खूबसूरत है & मैं 1 बार फिर इस खूबसूरती का लुत्फ़
तुम्हारे साथ उठाना चाहती हू.",बात दरअसल ये थी की कामिनी को वीरेन की
फ़िक्र होने लगी थी.सवेर चाइ पे जब उसने देविका से वसीयत की बात की तो
उसने कुच्छ समय वो काम करने की बात कही थी & इस से उसे ये खटका हुआ था की
कही देविका & शिवा मिलके तो ये खेल नही खेल रहे.ऐसी सूरत मे उनका अगला
शिकार वीरेन ही था.उसने सोचा की वीरेन को अपने शक़ के बारे मे बता दे मगर
ना जाने क्यू उसका दिमाग़ उसे ऐसा करने से रोक रहा था. अपनी प्रेमिका की
बात से वीरेन को काफ़ी खुशी हुई थी.उसने उसके नर्म होंठो को चूम लिया &
उसके गले से लग गया.ऐसा करने से कामिनी की मोटी चूचिया उसके चौड़े सीने
से पीस गयी.उसका हाथ खुद बा खुद कामिनी की कसी हुई गंद पे चला गया
था.चूचियो की गुदगुदी & गंद के नर्म,मस्त एहसास & कामिनी की प्यारी बात
ने उसे फिर से मस्त कर दिया & वो 1 बार फिर उसके जिस्म की गहराइयो मे
डूबने लगा. ------------------------------
----------------------------------------------------------------------------------------------
"तुमने सेक्यूरिटी सिस्टम्स के लिए जो कंपनी तय की है उसे अगले महीने
बुला के डील फाइनल कर लेते हैं.",देविका ने 1 फाइल पे दस्तख़त कर उसे
किनारे किया & दूसरी खोल ली.शिवा उसके सामने उसके डेस्की की दूसरी तरफ
बैठा उसे देख रहा था. "हूँ.",उसके दिल मे 1 बार ख़याल आया की उस दूसरी
कंपनी के सेल्स रेप के उसे रिश्वत देने की बात के बारे मे अपनी प्रेमिका
को जो अब उसकी बॉस भी थी,बता दे मगर फिर उसने सोचा की क्यू वो उसे नाहक
परेशान करे!ये सब तो चलता ही रहता था & फिर देविका पे अब काम का कितना
बोझ भी था.वो एकटक उसे निहारे जा रहा था & बेख़बर देविका अपना काम किए जा
रही थी.शिवा के दिल ने उस वक़्त ये दुआ माँगी की बस ये पल यही थम जाए &
वो बस ऐसे ही अपनी महबूबा के सामने बैठा उसे निहारता रहे,क़यामत के दिन
तक. देविका ने नज़रे उठाई & अपने आशिक़ को खुद को निहारते पाया तो काम की
मसरूफ़ियत के बावजूद उसके गुलाबी होंठो पे मुस्कान खिल गयी..कितना चाहता
था ये शख्स उसे?..अगर हालात कुच्छ और होते तो वो कब का इसको अपना पति बना
चुकी होती.ऐसा आशिक़ तो किस्मतवालो को मिलता है!मगर ये मुमकिन नही
था..शिवा तुम मुझे पहले क्यू नही मिले?..देविका के दिल मे हुक उठी..क्या
हो जाता अगर मिल भी जाता तो?..उसके ज़हन ने उसके दिल से पूचछा..ये
शनोशौकत ये ऐशोआरम तो ये शख्स तुम्हे कभी नही दे पाता....ज़माने की नज़रो
मे वो उसका नौकर है मगर हक़ीक़त मे तो वो उसका आशिक़ है.अभी उसके पास
दौलत & इश्क़ दोनो हैं.अगर शिवा उसे पहले मिल जाता तो वो इस दौलत से तो
महरूम रह जाती..जो होता है वो अच्छे के लिए होता है! "क्या देख रहे
हो?",दिल की जद्ड़ोजेहाद को देविका ने चेहरे पे नही आने दिया था. "दुनिया
का सबसे हसीन चेहरा." "अच्छा.अब बहुत देख लिया,अब जाओ.काम नही
तुम्हे?",उसने शिवा को प्यार से झिड़का. "हां वो तो है.",आ भरता शिवा उठ
खड़ा हुआ & दरवाज़े की ओर मूड गया. "शिवा..",महबूबा की आवाज़ सुन वो
घुमा,"..उदास क्यू होते हो,जानम!अपनी हर रात तो मैने तुम्हारे नाम कर दी
है.",शिवा को महबूबा के प्यार के इज़हार से बहुत खुशी हुई & वो बेज़री जो
उसके चेहरे पे आई थी वो गायब हो गयी & वो वाहा से निकल गया. रात के 10
बजे इंदर अपने क्वॉर्टर मे अंधेरे मे बैठा खिड़की से बाहर देख रहा था.उसे
एस्टेट मॅनेजर की नौकरी करते 1 महीने से उपर हो गया था मगर सुरेन सहाय की
मौत के बाद वो अपने प्लान के अगले कदम अभी तक नही उठा पाया था.इस वक़्त
उसे शिवा सबसे बड़ा ख़तरा नज़र आ रहा था.वो बहुत वफ़ादार था & अभी तक
इंदर को उसकी कोई भी कमज़ोरी या कोई ऐसी बात का पता नही चला था जिसे वो
उसके खिलाफ इस्तेमाल कर सकता. उसे बौखलाहट होने लगी मगर अभी उसे थोड़ी
देर बाद रजनी के पास जाना था & उसके पास शराब पी के जाना ठीक नही था.शिवा
के बारे मे जानने के लिए 1 बार उसके कमरे की तलाशी लेना ज़रूरी था क्यूकी
साथ काम करने वालो से उसके बारे मे कोई भी काम की बात नही पता चली थी
लेकिन शिवा बंगल के अंदर रहता था & वो बंगल के अंदर घुसे कैसे,ये उसकी
समझ मे नही आ रहा था. तभी उसकी निगाह मे,जोकि बंगल से क्वॉर्टर्स की ओर
आते रास्ते पे थी,उसके हाथो की कठपुतली का अक्स उभरा.बंगल के अंदर काम
करने वालो के लिए देविका ने वर्दी बनवाई थी.नौकर तो कमीज़ & पॅंट &
सर्दियो मे कोट पहनते थे वही नौकरानिया या तो सारी या फिर घुटनो से नीचे
तक की काले रंग की पूरे या आधे बाज़ू की ड्रेस पहनती थी. रजनी ने भी इस
वक़्त आधे बाज़ू वाली ड्रेस पहनी हुई थी.रसोई मे काम करते वक़्त पहनने
वाला एप्रन अभी भी उसकी ड्रेस के उपर बँधा था & हाथो मे 1 छ्होटा सा बॅग
था जिसमे कभी-कभार वो लंच ले जाती थी.नौकरो को सारा खाना बंगले मे ही
मिलता था मगर रजनी & कुच्छ और लड़किया कभी-कभार अपने घर से भी कुच्छ
बनाके ले जाती थी ज़ेयका बदलने की गरज से. उसे देखते ही इंदर की आँखे चमक
उठी & वो अपनी कुर्सी से उठ फुर्ती से अपने दरवाज़े से निकल गया.
"आहह..!",रजनी ने दरवाज़ा खोल अभी क्वॉर्टर मे कदम रखा ही था की इंदर ने
उसे अपनी बाँहो मे दबोच लिया,"..कैसे चोरो की तरह आते हो?!!डर के मारे
मेरी तो जान ही निकल गयी थी!",इंदर ने दरवाज़ा बंद किया & 1 मद्धम रोशनी
वाला बल्ब जला दिया. "देखो,तो मेरा दिल कैसे धड़क रहा है.",शोखी से
मुस्कुराती रजनी ने अपने सीने की ओर इशारा किया.इंदर ने उसे दरवाज़े के
बगल की दीवार से लगा के खड़ा किया हुआ था & खुद उस से सॅट के खड़ा था.
"अभी शांत करता हू इसे.",उसने अपना दाया हाथ रजनी की कमर के पीछे कर उसके
एप्रन की ड्राइव को खोला & बाए से उसके हाथ का बॅग & क्वॉर्टर की चाभी
लेके बगल की दीवार मे बने शेल्फ पे रख दिया.डोर खुलते ही रजनी ने एप्रन
को गले से निकाला & अपनी बाहे अपने प्रेमी के गले मे डाल दी. इंदर का हाथ
रजनी की गंद पे फिर रहा था & जैसे ही उसने उसके गंद को दबा उसकी चूत को
अपने लंड से पीसा उसे रजनी की ड्रेस मे से उसकी कमर के पास कुच्छ
चुबा,"ये क्या है?",रजनी के खुले होंठ जोकि उसके होंठो की ओर बढ़ रहे
थे,सवाल सुन वही रुक गये. "ओह्ह..ये है.",उसने जेब मे हाथ डाल कर 1 चाभी
निकाली,"..ये तो बंगले की चाभी है." "क्या?",बड़ी मुश्किल से इंदर अपनी
हैरानी & खुशी को च्छूपा पाया,"..बंगल की चाभी तुम्हारे पास कैसे
आई?",उसका दाया हाथ रजनी की ड्रेस को उपर कर उसकी बाई जाँघ को उठा के उसे
सहला रहा था. "ये बंगले की रसोई के दरवाज़े की चाभी है.देविका मॅ'म ने
मुझे दे रखी है ताकि सवेरे जब मैं काम पे जाऊं तो उनकी नींद मे खलल ना
पड़े,वो थोड़ा देर से उठती है ना.",इंदर ने उस से चाभी ले ली & अपने होंठ
उसके होंठो से मिला दिए.उसने चाभी वाला हाथ 1 रजनी के ड्रेस की जेब मे
घुसाया मगर चाभी अंदर नही डाली बल्कि उस चाभी को अपने शॉर्ट्स की जेब मे
डाल लिया. रजनी का हाथ अब उसकी शॉट्स के उपर से उसके लंड को टटोल रहा
था,इंदर ने फ़ौरन उसे ढीला का नीचे गिरा दिया.वो नही चाहता था की रजनी को
चाभी के बारे मे पता चले,"जान,खाना खाया तुमने?" "हां.",इंदर के इस
मामूली से सवाल ने रजनी के दिल को बहुत खुश कर दिया.उसे अपने प्रेमी पे
बहुत प्यार आया..कितनी फ़िक्र करता था वो उसकी!उसने और गर्मजोशी से उसके
तगड़े लंड को अपनी गिरफ़्त मे कस लिया & उसे चूमते हुए हिलाने लगी.इंदर
भी उसकी कामुक हर्कतो का लुत्फ़ उठाने लगा,उसने तो सवाल इसलिए किया था की
कही रजनी उसे गरम करने के बाद खाना ना खाने लगे & उसे झड़ने के लिए
इंतेज़ार करना पड़े. इंदर ने भी उसकी पीठ पे लगी ड्रेस की ज़िप को नीचे
कर दिया था & अपने हाथ अंदर घुसा उसकी चूचियो से खेल रहा था.रजनी ने
बेचैन हो इंदर की टी-शर्ट निकाल दी & बड़ी बेताबी से उसके सीने पे अपने
हाथ फिराती हुई उसे चूमने लगी.उसके होंठ इंदर के चेहरे से नीचे उसके सीने
पे आए,"इंदर.." "हूँ..",इंदर उसकी पीठ & बाल सहला रहा था. "हम शादी कब
करेंगे?",रजनी उसके सीने से नीचे उसके पेट पे पहुँच गयी थी. "बहुत जल्द
मेरी जान,बहुत जल्द.",इंदर ने उसका सा नीचे अपने प्यासे लंड की ओर
धकेला,"..बस थोड़े पैसे जमा हो जाएँ ताकि शादी के बाद हनिमून के लिए मैं
तुम्हे किसी बहुत ही खूबसूरत जगह ले जा सकु. "ओह्ह..इंदर.इतना खर्च करने
की क्या ज़रूरत है?",रजनी इस बात को सुनकर फूली नही समा रही थी.उसने इंदर
के लंड को दोनो हाथो मे लिया & अपना सर बाई तरफ झुका लंड की बगल मे चूमने
लगी. "उन्न्न..!",..ये लड़की देखने मे जितनी साधारण थी चुदाई मे उतनी ही
मस्त!इंदर का दिल जोश से भर गया था,"..प्रसून जैसा आदमी अगर शादी कर मौज
उड़ा सकता है तो हम क्यू नही!",उसने रजनी के बालो को पकड़ उसके सर को लंड
पे दबाया. "उनकी बात और है..",रजनी लंड की जड़ पे जहा से इंदर के अंडे
शुरू होते थे,अपनी जीभ चला उसे पागल कर रही थी,"..वो रईस हैं,जान.देखो
ना,सर को गुज़रे अभी कितने ही दिन हुए हैं & अब मॅ'म की वकील उन्हे नयी
वसीयत बनाने के लिए कह रही है." "क्या?!",1 बार फिर इंदर बड़ी मुश्किल से
अपने हैरत भरे जज़्बातो को रजनी से च्छूपा पाया.रजनी ने लंड को अपने मुँह
मे भर लिया था & उसे हिलाते हुए चूस रही थी & इसलिए उसने फ़ौरन इंदर को
जवाब नही दिया.इंदर का दिल तो किया की लंड खींच उसे 2 तमाचे जड़े & उसे
पूरी बात बताने को कहे मगर ये मुमकिन नही था.वो रजनी के जवाब का इंतेज़ार
करता रहा. काई पॅलो तक लंड को जी भर के चूसने के बाद रजनी ने सांस लेने
के लिए उसे मुँह से निकाला,"..उस दिन उनकी वकील नही है..क्या नाम है
उसका.." "कामिनी शरण.",इंदर ने उसे उठाया & बाहो मे भर उसकी ड्रेस को
नीचे सरका दिया.ब्रा का बाया कप नीचे था & उसकी बाई चूची नुमाया थी.इंदर
तो पूरा नंगा ही था.उसने रजनी को गोद मे उठाया & उसके बेडरूम मे ले
गया.बिस्तर पे लिटा उसने उसकी पॅंटी उतारी & उसकी गंद की फांको के नीचे
अपने हाथ लगा उसकी झांतो को अपनी लपलपाति जीभ से चीर उसकी चूत मे घुसा
दिया. "आअनह...ऊन्णन्न्....!",रजनी तो जिस्म मे फुट रहे मज़े की
फुलझड़ियो मे अपनी कही बात भूल ही गयी थी मगर इंदर को तो उसके मुँह से
अभी बात निकलवानी ही थी. "तो क्या कह रही थी वकील कामिनी शरण?",वो अपने
घुटनो पे था & रजनी की गंद को थाम उसने हवा मे ऐसे उठा रखा था मानो उसका
वज़न कुच्छ खास ना हो. "ऊन्ंह....कह रही थी की मॅ'म को अब वसीयत
बना...आअनह..ले..नि..चाअ..हिई...हाइईईई..!",रजनी झाड़ आयी थी मगर इंदर की
लपलपाति जीभ अभी भी उसकी चूत के दाने को चाट रही थी. "तो मॅ'म ने क्या
कहा?" "उउन्ण..हहुन्न्नह....कहा की कुच्छ दिन रुक जाइए...ऊओह.....!",इंदर
ने उसकी जाँघो को अपनी जाँघो पे टीका लिया था & अपना लंड उसकी चूत मे
घुसा रहा था.रजनी ने बेचैन हो उसकी बाहो को थाम लिया था. "और कुच्छ नही
कहा उन्होने?" नही.",इंदर समझ गया की इस से ज़्यादा रजनी को कुच्छ नही
पता.रजनी ने उसकी बाँह पकड़ के नीचे खींचा तो इंदर ने उसकी बात मानते हुए
अपना उपरी बदन नीचे किया & उसे चूमने लगा.ये कठपुतली उसका सबसे बढ़िया
हथ्यार थी & वक़्त आ गया था की अभी दी गयी जानकारी के लिए उसे इनाम दिया
जाए.इंदर ने अपनी जनघॉ को फैलाया & रजनी के उपर लेट गहरे धक्के लगा उसे
मदहोश करते हुए उसकी चुदाई करने लगा.
----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
"आपको तो बस 1 ही बात सूझती है हर वक़्त!",कामिनी ने चंद्रा साहब को
तड़पाने की गरज से परे धकेला.कामिनी अपने दिल मे उठ रहे सवालो के जवाब
ढूँडने के लिए अपने गुरु के घर आई थी.मिसेज़.चंद्रा के इसरार पे वो खाने
के लिए रुक गयी तो चंद्रा साहब ने कहा की काम की बातें खाने के बाद
करेंगे.खाना ख़त्म होते-2 मूसलाधार बारिश शुरू हो गयी & दोनो मिया-बीवी
ने उसे रात को उनके यहा रुकने के लिए मना ही लिया.चंद्रा साहब की खुशी का
तो ठिकाना ही नही था. उन्हे देर रात तक काम करने की आदत थी & वो जानते थे
की अगर उस वक़्त कामिनी उनके साथ जितनी देर तक रहे उनकी बीवी को ज़रा भी
शुबहा नही होगा.मिसेज़.चंद्रा के सोने जाते ही वो कामिनी को बंगले के
दूसरे हिस्से मे बने अपने दफ़्तर मे ले गये & अंदर से दरवाजा बंद कर
दिया.कामिनी ने मिसेज़.चंद्रा की पुरानी नाइटी पहनी थी जिसका गला थोड़ा
बड़ा था & उसमे से अब उसका मस्त क्लीवेज झाँक रहा था.दरवाज़ा बंद करते ही
चंद्रा साहब ने उसे धर दबोचा था & अपने प्यासे होंठ उसके चेहरे पे घूमने
लगे थे. "तुम्हे देख के कुच्छ और सूझ सकता है भला.",कामिनी बड़े सोफे पे
बैठ 1 किताब के पन्ने पलटने लगी तो वो उसके पीछे आ बैठे & उसके कंधो पे
हाथ रख उसके बाल चूमने लगे.कामिनी ने उन्हे और तड़पाना चाहा & वाहा से भी
उठने लगी मगर इस बार चंद्रा साहब होशियार थे & उन्होने उसे अपनी बाहो मे
कस लिया. "उम्म....क्या करते हैं!छ्चोड़िए ना!",चंद्रा साहब उसकी कमर को
कस के थामे उसके होंठो को अपने होंठो से ढूंड रहे थे. "इतनी मुश्किल से
हाथ आती हो,तुम्हे कैसे छ्चोड़ दू!",उन्होने कामिनी के सर को अपने दाए
हाथ को उसके सीने के पार ले जाते हुए घुमाया & उसके होंठ चूमने
लगे.कामिनी को भी मज़ा आ रहा था.चंद्रा साहब उसकी नाइटी मे नीचे से हाथ
घुसाने लगे तो वो च्चटपटाने लगी मगर उन्होने उसे अपने चंगुल से नही
निकलने दिया & हाथ अंदर घुसा ही दिया.उनका हाथ सीधा उसके सीने पे जा
पहुँचा & उसकी चूचियो से खेलने लगा. चंद्रा साहब का जोश अब बहुत ज़्यादा
बढ़ गया था & वो उसके कपड़े उतारने की कोशिश करने लगे,"..कही आंटी ना आ
जाएँ.",कामिनी ने घबराई आवाज़ मे कहा.उसे घबराया देख उसके गुरु का जोश
दुगुना हो गया. "कोई नही आएगा यहा हम दोनो के मिलन मे खलल डालने.",वो
फुर्ती से उसकी नाइटी खिचने लगे.कामिनी समझ गयी की अब वो मानने वाले नही
हैं.थोड़ी ही देर मे वो अपने गुरु के साथ सोफे पे नंगी बैठी थी.चंद्रा
सहभ की गोद मे बैठी कामिनी उनके सीने के बॉल सहला रही थी & चंद्रा साहब
अपने जिस्म के उपर पड़ी उस हुस्न परी को पाँव से लेके सर तक चूम रहे
थे,सहला रहे थे. उनके लंड को हिलाते हुए कामिनी ने उन्हे सहाय परिवार के
बारे मे सब कुच्छ बताया.शिवा पे शक़ होना & देविका का उस से मिला होने
वाली बात भी उसने उन्हे बताई.उसकी सारी बात सुन के जो बात चंद्रा साहब ने
कही उसे सुन के कामिनी का चेहरा शर्म से लाल हो गया. "ह्म्म..यानी वीरेन
सहाय भी तुम्हारे हुस्न के तीर से घायल हो चुका है!",कामिनी ने उन्हे ये
नही बताया था की उसने वीरेन की कॉटेज की खिड़की से झँकते साए को जब देखा
था उस वक़्त वो उस कॉटेज मे क्या कर रही थी मगर चंद्रा साहब पहुँचे हुए
वकील थे,उन्हे ये भाँपने मे ज़रा भी वक़्त नही लगा की उनकी शिष्या को 1
नया प्रेमी मिल गया है,"..लगता है इसलिए हमारे लिए वक़्त नही हैं
तुम्हारे पास आजकल?" कामिनी उनसे चुदती थी & उनकी शिष्या नही अब तो
प्रेमिका थी मगर फिर भी थी तो वो 1 लड़की ही & उसे उनकी बात से शर्म आ
गयी थी.उसने अपना उपरी बदन मोड़ उनके गले मे बाहे डाल उनके दाए कंधे पे
अपना सर रख उनकी गर्दन मे चेहरा च्छूपा लिया था. "ऐसे मत बोलिए..",उसने
उनके कंधे पे सर रखे-2 उनका गाल चूमा,"..1 तो काम की मसरूफ़ियत उपर से
आंटी का डर.मेरा जी नही करता क्या आपकी बाहो मे सोने को!..मगर मजबूरी
है." "मैं तो छेड़ रहा था,तुम तो संजीदा हो गयी!",उन्होने कामिनी का
चेहरा अपने सामने किया & उसे चूम लिया.कामिनी ने अपनी ज़ुबान उनके मुँह
मे घुसा दी.षत्रुजीत सिंग,करण & वीरेन तीनो को उसने इतना जता दिया था की
वो अपनी मर्ज़ी की मालकिन है & कोई ये ना समझे की वो उसपे अपना हक़ जता
सकता है..अगर वो उनके साथ सोती है तो उसका ये मतलब नही की वो उनकी बीवी
या फिर रखैल बन गयी जिसपे वो रोब गाँठ सकते हैं..ये दूसरी बात थी की तीनो
वैसे मर्द थे भी नही & उस से जितनी मोहब्बत करते थे उतनी ही उसकी इज़्ज़त
भी करते थे & उसकी ज़िंदगी मे 1 हद्द से ज़्यादा दखल देने की उन्होने कोई
कोशिश भी कभी नही की थी लेकिन चंद्रा साहब वो अकेले मर्द थे जिनकी कामिनी
सबसे ज़्यादा इज़्ज़त करती थी & अभी उसे 1 पल को डर लगा था की कही वो उस
से खफा ना हो जाएँ या फिर कही जलन के मारे कुच्छ उल्टा-सीधा ना बोल दें
मगर उन्होने ऐसा कुच्छ नही किया. इस बात से कामिनी के दिल मे उनके लिए
इज़्ज़त और भी बढ़ गयी & उसे उनपे बहुत प्यार आया.वो उन्हे चूमे जा रही
थी & वो भी उसके जिस्म के उभारो को अपने हाथो मे तोल रहे थे.अचानक
उन्होने उसे अपनी गोद से नीचे करते हुए सोफे पे लिटाया & फिर कमर मे हाथ
डाल उसे उल्टा का पेट के बल लिटा दिया.कामिनी ने भी झट से अपनी कमर थोड़ा
उपर कर दी.चंद्रा साहब ने 1 कुशन उसके पेट के नीचे लगा दिया ताकि वो आराम
से लेट सके & उसकी चूत भी & उभार के उनकी आँखो के सामने आए. वो बेचैनी से
उसकी गंद की भरी फांको को मसालते हुए गंद की दरार पे लंबाई मे जीभ चलाने
लगे.दफ़्तर मे कामिनी की आहे गूंजने लगी. "वो साया तो 1 राज़ है मगर मुझे
बहुत ख़तरनाक लग रहा है.",उनकी जीभ उसके गंद के छेद को सहला रही
थी.कामिनी की चूत कसमसाने लगी थी,उसने अपना दाया हाथ पीछे किया & चंद्रा
साहब के बाल सहलाए,"..देविका पे भी शक़ की तुम्हारी वजह काफ़ी ठोस है &
शिवा को भी शक़ के दायरे से बाहर नही रखा जा सकता." कामिनी की गंद का छेद
जीभ के एहसास से कभी बंद होता कभी खुलता.बेताबी से कामिनी ने अपने पेट के
नीचे दबे कुशन को थोड़ा नीचे सरकाया & अपनी चूत को कमर हौले-2 हिला उसपे
दबाने लगी.चंद्रा साहब समझ गये की पहले उन्हे उनकी शिष्या की चूत को शांत
करना पड़ेगा उसके बाद ही वो इतमीनान से उसकी गंद से खेल पाएँगे.उन्होने
जीभ को थोड़ा नीचे किया & उसकी चूत पे लगा दिया. "..वसीयत करने मे देरी
इस शक़ को और पुख़्ता करती है.",उन्होने अपनी जीभ को उसकी चूत मे घुसा
दिया & तब तक चलते रहे जब तक वो झाड़ नही गयी.सोफा काफ़ी बड़ा था.चंद्रा
साहब ने कामिनी की टाँगो को फैलाया & अपना लंड उसकी चूत मे घुसा
दिया.गीली चूत मे लंड सरर से घुस गया.2-3 धक्को के बाद वो उसकी पीठ पे
लेट गये.कामिनी ने अपनी गर्दन दाई ओर घुमाई & उन्हे चूमने लगी. "..लेकिन
1 बात है जो मुझे परेशान कर रही है.",चंद्रा साहब ने अपनी शिष्या के होंठ
छ्चोड़ उसकी मखमली पीठ पे किस्सस की झड़ी लगा दी.उनके धक्के कामिनी की
चूत को पागल कर रहे थे.वो बेचैनी से अपने घुटनो से मोड़ टाँगो को उपर उठा
रही थी.उसकी चूत मे वही मीठा तनाव बन गया था. "..अगर देविका चाहे अकेले
या फिर शिवा के साथ मिलके सुरेन जी को रास्ते से हटाने के लिए उनकी दवा
से कुच्छ छेड़ चाड करती है तो फिर वो उस डिबिया को फ़ौरन गायब कर
देगी.",चंदर साहब अब अपने हाथो पे अपना भार संभाले उछलते हुए धक्के लगा
रहे थे. "ऊन्ंह.....आनह....ऐसा...हाइईईईईई....ऐसे ही
करिए..बस...तो..दी...देर...आआहह.....!",कामिनी झाड़ गयी थी मगर चंद्रा
साहब का काम अभी बाकी था.थोड़ी देर बाद उन्होने लंड को बाहर खींचा,फिर
अपने थूक से कामिनी की गांद का च्छेद भरा. "..मैं कह रही थी की ऐसा भी तो
हो सकता है..",कामिनी ने अपनी गंद हवा मे उठा दी & अपना उपरी बदन आगे को
झुका के सोफे का हत्था था अपने गुरु के हमले के लिए तैय्यार हो गयी,"..की
कामिनी डिबिया हटाना भूल गयी हो." "नही..",चंद्रा साहब ने गंद के छेद को
अच्छी तरह से गीला किया & फिर धीरे-2 लंड को अंदर घुसाने लगे,"..अगर
सुरेन जी की मौत दवा से छेड़ खानी की वजह से हुई है तो वो डिबिया इस केस
मे मर्डर वेपन है & कोई भी गुनेहगर सबसे पहले जुर्म मे इस्तेमाल हुए
हथ्यार को ही ठिकाने लगाता है." "एयीयैआइयियीईयीईयी..!",लंड का 2 इंच
हिस्सा गंद से बाहर था & चंद्रा साहब ने उसकी गंद मारना शुरू कर दिया
था.थोड़ी देर पहले झड़ने के वक़्त कामिनी की चूत के सिकुड़ने-फैलने की
मस्त हरकत के दौरान बड़ी मुश्किल से उन्होने अपने लंड को काबू मे कर उसे
झड़ने से रोका था.इतनी बार कामिनी को चोदने का बाद भी वो उसके जिस्म के
मादकता के आदि नही हुए थे.उसकी गंद का छेद बहुत ज़्यादा कसा हुआ था &
बड़ी मुश्किल से उन्होने 1 बार फिर अपने को झड़ने से रोका हुआ था.
"ऊहह...तो..हाइईइ..आपका..कह..ना..है..की...कोई...और
भी...है...वाहा....सहाय ख़ान..दान..का...दुश्मन....हाई
राआंम्म्म....!",चंद्रा साहब के धक्के तेज़ हो रहे थे & उनका दाया हाथ
कामिनी की चूत भी मार रहा था. "बिल्कुल सही समझा तुमने.",चंद्रा साहब भी
अपनी मंज़िल के करीब पहुँच रहे थे,"..मेरा ख़याल है की सुरेन सहाय की मौत
के पीछे कोई और है & देविका & शिवा,चाहे वो सुरेन जी की मौत चाहते
हो,उन्हे केवल पैसो से मतलब है." "औउईईई..मान्न्न्न्न्न........मगर
प्रसून का क्या...ऊहह..होगा फिर...ऊऊऊहह.....!",कामिनी के होंठ "ओ" के
आकर मे गोल हो गये थे & उसके गले से आवाज़ भी नही निकल रही थी.उसके झड़ने
मे इतनी शिद्दत थी की उसे कुच्छ होश नही था की वो कहा & किसके साथ है.वो
सोफे पे निढाल हो गयी थी.उसके उपर आहे भरते हुए चंद्रा साहब अपने गाढ़े
रस से उसकी गंद को भर रहे थे मगर वो अपनी ही दुनिया मे खोई हुई थी जहा
चारो तरफ बस फूलो की खुश्बू थी & बदन मे मदहोश करने वाला एहसास. कयि पलो
बाद उसे जब होश आया तो उसने पाया की वो सोफे पे बाई करवट से पड़ी हुई है
& उसके गुरु उसके पीछे उसकी कमर पे अपनी दाई बाँह लपेटे लेटे हुए
हैं.उसने फिर से बातो का टूटे सिलसिले को शुरू किया,"प्रसून का क्या होगा
फिर?",अपने सर को उसने पीछे घुमाया & अपने गुरु के चेहरे पे अपना दाया
हाथ फिराया. "देखो,प्रसून के लिए तो देविका ट्रस्ट बनाएगी ही मगर वो सब
तो देविका की मौत के बाद होगा ना.",उन्होने अपना सर सोफे से उठाया &
कामिनी के चेहरे पे हल्क-2 किस्सस छ्चोड़ने लगे,"..अगर उसके सर पे शिवा
का जादू चढ़ा हुआ है तब तो शिवा जो कहेगा वो करेगी.शिवा को ये दौलत अगर
चाहिए तो वो वसीयत मे कुच्छ ऐसा लिखवाएगा की सब कुच्छ उसी की झोली मे
आए." "ऐसे तो प्रसून की जान को भी ख़तरा है?",चंद्रा साहब का हाथ उसके
पेट पे चल रहा था & वो अपने दाए हाथ से उनके बालो से खेल रही थी.
"हां,बिल्कुल.",उन्होने अपनी उंगली से उसकी नाभि को कुरेदा. "तो फिर शिवा
ने प्रसून की शादी क्यू होने दी?" "ये तो तुमने पते की बात कही!",उनकी
उंगली अभी भी नाभि को कुरेद रही थी,"अगर शिवा ग़लत आदमी है तो वो इस शादी
को किसी भी कीमत पे रोकता.शादी हो गयी इसका मतलब है की देविका ने उसकी
सुनी नही & उसने भी ज़्यादा दबाव नही डाला होगा की कही देविका को उसपे
कोई शक़ ना हो जाए मगर अब घर मे 1 और शख्स है जिसे की उसे रास्ते से
हटाना होगा." "लेकिन वो प्री-नप्षियल अग्रीमेंट भी तो है उसके हिसाब से
प्रसून की मौत के बाद रोमा को बस 1 तय की हुई रकम मिलेगी और कुच्छ नही.तो
शिवा को अगर उसे पैसे देने भी पड़ते हैं तो वो ये मामूली नुकसान सह
लेगा." "हूँ..",चंद्रा साहब के हाथ कामिनी के बदन से खेल रहे थे मगर
दिमाग़ गहरी सोच मे डूबा था. "आपको क्या लगता है की मुझे देविका को आगहा
करना चाहिए या फिर वीरेन को?" "देखो मेरे हिसाब से तो जब तक वसीयत नही
बनती शिवा कुच्छ नही करेगा..-" "..-लेकिन अगर वसीयत मे सब प्रसून के नाम
है तो वो उसे ख़त्म कर अपनी मर्ज़ी की वसीयत बनवा सकता है." "वो क्यू
करेगा ऐसे?" "क्यू नही करेगा?" "प्रसून मंदबुद्धि है.अगर वो मालिक बन
जाता है जयदाद का तो भी बस नाम का ही रहेगा.सारी डोर तो देविका & देविका
की डोर संभाले शिवा के हाथ मे ही रहेगी.क़त्ल कर वो बिना बात का झमेला
क्यू मोल ले?..फिर प्रसून को तो वो कभी भी हटा सकता है क्यूकी प्रसून का
क़त्ल तभी ज़रूरी है जबकि देविका की वसीयत मे देविका की मौत के बाद
सबकुच्छ प्रसून के नाम हो जाता है.",बात कामिनी की समझ मे आई तो वो
चंद्रा साहब के पैने दिमाग़ की दाद दिए बिना नही रह सकी.उसने करवट बदली &
अपने गुरु के सीने से लिपट गयी,"मैं कब सोच पाऊँगी आपकी तरह!",दोनो अभी
भी करवट से ही लेटे थे & 1 दूसरे के जिस्मो को सहलाते हुए हौले-2 चूम रहे
थे. महबूबा के मुँह से तारीफ सुन चंद्रा साहब खुशी से हँसे,"..तुम मुझसे
भी ज़्यादा होशियार हो.ये बात तुम भी समझ जाती मगर शायद आज उपरवाला चाहता
था की हम-तुम ये नशीली रात साथ गुज़ारें.",उनकी बात सुन कामिनी मुस्कुराइ
& 1 बार फिर उनकी बाहो मे खो गयी. इंदर बिस्तर से उतरा,रजनी गहरी नींद
सोई हुई थी & सोती भी क्यू ना!..पिच्छले 3 घंटो तक इंदर ने उसे जम के
चोदा था.चेहरे पे परम संतोष का भाव लिए रजनी थकान से निढाल हो सो गयी
थी.क्वॉर्टर के दरवाज़े पे गिरी अपनी शॉर्ट्स की जेब से उसने चाभी निकली
& रजनी के बाथरूम मे गया.1 कोने मे पड़े नहाने के साबुन को उसने लिया &
उसपे चाभी दबा के उसकी छाप ले ली.काम हो जाने के बाद उसने चाभी बाहरी
कमरे के शेल्फ पे रजनी के क्वॉर्टर की चाभी के साथ रख दी. उसने घड़ी देखी
तो रात के 1.30 बज रहे थे.उसने अपने कपड़े पहने & फिर बिस्तर पे नंगी सोई
रजनी के बगल मे लेट गया.30 मिनिट बाद वो उसे जगाके दरवाज़ा लगाने को
कहेगा & अपने क्वॉर्टर मे चला जाएगा.उसका दिमाग़ तेज़ी से चल रहा था & वो
कल रात के बारे मे सोच रहा था.कल भी उसे रजनी को इसी तरह थकाना था ताकि
जब वो यहा से निकल के बंगल के अंदर जाए तब उसे इस बात का बिल्कुल भी पता
ना चले. "उम्म्म....!",रजनी के मुँह मे इंदर का लंड भरा हुआ था जोकि उसके
नीचे लेटा उसकी चूत चाट रहा था.रजनी उसके उपर थी & उसकी बेशर्म ज़ुबान से
परेशान हो अपनी कमर उसके मुँह पे ऐसे हिला रही थी मानो चूत मे जीभ नही
लंड घुसा हो. "रजनी..",इंदर ने जीभ को चूत से बाहर निकाला & उसके दाने पे
फिराया. "हूँ....!",रजनी ने आह भरी. "तुम 2-3 महीनो के लिए अपने
माता-पिता के पास क्यू नही चली जाती?",इंदर उसकी मोटी गंद को दबाते हुए
उसके दाने को छेड़ रहा था.रजनी ने चौंक के लंड को मुँह से निकाला & अपनी
गर्दन घूमके इंदर की ओर देखा. "हां,तुम अभी ही हो आओ क्यूकी जब हमारी
शादी हो जाएगी फिर तो मैं तुम्हे 1 पल के लिए भी खुद से जुदा नही होने
दूँगा & कभी भी तुम्हे मयके नही जाने दूँगा.",इंदर की जीभ की छेड़-छाड़
से रजनी की चूत बहाल हो गयी थी & उसमे से रस की धार बह रही थी.प्रेमी की
बात सुन उसके जिस्म के साथ-2 दिल मे भी खुशी की लहर दौड़ गयी.ठीक उसी
वक़्त इंदर की ज़ुबान ने उसके दाने को कुच्छ ऐसे छेड़ा की वो झाड़ गयी.
आहे भरती हुई वो झाड़ रही थी मगर वो फ़ौरन घूमी & इंदर के सीने पे अपनी
छातिया दबाते हुए उसके चेहरे को हाथो मे थाम लिया,"ओह!इंदर.." "हां,मैं
अब और इंतेज़ार नही कर सकता.तुम अपने गाँव जाके अपने माता-पिता के साथ 2
महीने रह लो.उन्हे मेरे बारे मे बता देना & फिर अपने साथ उन्हे यहा ले
आना ताकि उनके आशीर्वाद के साथ हम शादी कर सकें." रजनी की आँखे भर आई.उसे
यकीन तो था की इंदर उस से शादी ज़रूर करेगा मगर जब उसने ये बात कही तो
उसका दिल इस खुशी को झेल नही पाया & आँखो से आँसुओ की धार बह निकली.
"क्या हुआ?मेरी बात अच्छी नही लगी?",इंदर के माथे पे शिकन पड़ गयी.जवाब
मे रजनी ने हंसते हुए उसके चेहरे पे किस्सस की बरसात कर दी.इंदर अभी भी
हैरान था. "ठीक है.मैं मॅ'म से छुट्टी माँग के घर जाती हू.",उसने अपने
प्रेमी को झुक के चूमा. "हां,लेकिन अभी देविका जी को हमारे बारे मे बात
बताना..",इंदर ने उसकी गंद की दरार मे हाथ फिराया तो रजनी उसका इशारा समझ
गयी & अपने घुटने उसके बदन की दोनो तरफ टिकते हुए चूत को लंड के लिए खोल
दिया,"..क्यूकी मैं नही चाहता की सब बातें करें.जब वापस आओगी तब हम दोनो
मिलके उन्हे बताएँगे." इंदर ने उसकी गंद से हाथ नीचे ले जाते हुए उसकी
चूत को हाथो से फैलाया तो रजनी ने दाया हाथ पीछे ले जा लंड को पकड़ उसे
चूत के अंदर का रास्ता दिखाया,"जैसा तुम कहो,मेरी जान.",लंड अंदर जाते ही
वो उसके चेहरे पे झुक गयी & दोनो चूमते हुए चुदाई करने लगे.
----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
क्रमशः.............. बदला पार्ट--28 गतान्क से आगे... raat ko kamini
fir se viren ke sath uski cottage me nangi padi hui thi.vo apni bayi
karwat pe leti thi & viern apni dayi pe uske samne.viren ka lund uski
chut me tha.kamini ne apni dayi jangh viren ki jangh ke upar chadhayi
hui thi,dono premi 1 dusre se lipte hue 1 dusre ko chum rahe the.
viren ne apna baya hath uski gand ki dayi fank pe rakha & apni kamar
hilake chudai shuru kar di.kamini ne bhi jawab me viren ki gand ko
apne daye hath me bhinch liya & apni kamar hilani shuru kar di.viren
ki chudai se kamini hawa me ud rahi thi magar uski 1 nazar us khidki
pe hi thi jaha usne pichhli raat kisi saye ko dekha tha.
"oowww..!",viren ke lund ke dhakko se behal kamini ki aahe nikalne
lagi thi & vo uski gand pe apne nakhuno ke nishan chhod rahi thi.viren
bhi bas ab jald se jald uske sath-2 apni manzil pe pahunchna chahta
tha.apni premika ke jism se khelte hue use koi 2 ghante hone ko aaye
the jis dauran vo to 3-4 baar jhad chuki thi magar vo abhi tak 1 baar
bhi nahi jhada tha. dono premiyo ke dil ki dhadkane bahut tez ho gayi
thi sath hi unki kamar ke hilne ki raftar bhi.kamini ab bilkul madhosh
ho chuki thi magar fir bhi usne apni aankhe band nahi ki & khidki pe
hi lagaye rakhi.tabhi uski chut mke ban chuka tanav achanak jaise
dhila padne laga & uske rom-2 me khushi bharne lagi.uski baaho me qaid
viren bhi zor-2 se aahen bhar raha tha.jhadne ki khushi ko dil me
shiddat se mehsus karti kamini ne apni chut me apne premi ke
gadhe,garam virya ka gilapan mehsus kiya & samajh gayi ki vo bhi jhad
chuka hai. aaj raat use khidki pe koi saya nahi dikhayi diya.raat kafi
gehri ho chuki thi & use umeed thi ki ab aaj raat koi unki jasusui
nahi karega,"viren.." "hun.",viren uski chhatiyo me apna chehra
chhupaye vaise hi pada tha. "agli baar yaha kab aaoge?",usne uske
baalo me pyar se ungliya firate hue uske sar ko chum liya. "agle
mahine.kyu?",usne uske seene se sar uthaya. "bas aise hi puchha
tha.main tumhare sath fir se yaha aana chahti hu.ye jagah bahut
khubsurat hai & main 1 baar ifr is khubsurti ka lutf tumhare sath
uthana chahti hu.",baat darasal ye thi ki kamini ko viren ki fikr hone
lagi thi.saver chai pe jab usne devika se vasiyat ki baat ki to usne
kuchh samay vo kaam karne ki baat kahi thi & is se use ye khatka hua
tha ki kahi devika & shiva milke to ye khel nahi khel rahe.aisi surat
me unka agla shikar viren hi tha.usne socha ki viren ko apne shaq ke
bare me batade magar na jane kyu uska dimagh use aisa karne se rok
raha tha. apni premika ki baat se viren ko kafi khushi hui thi.usne
uske narm hotho ko chum liya & uske gale se lag gaya.aisa karne se
kamini ki moti choochiya uske chaude seene se pis gayi.uska hath khud
ba khud kamini ki kasi hui gand pe chala gaya tha.choochiyo ki gudgudi
& gand ke narm,mast ehsas & kamini ki pyari baat ne use fir se mast
kar diya & vo 1 baar fir uske jism ki gehraiyo me dubne laga.
----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
"tumne security systems ke liye jo company tay ki hai use agle mahine
bulake deal final kar lete hain.",devika ne 1 file pe dastkhat kar use
kinare kiya & dusri khol li.shiva uske samne uske deski ki dusri taraf
baitha use dekh raha tha. "hun.",uske dil me 1 baar khayal aaya ki us
dusri company ke sales rep ke use rishvat dene ki baat ke bare me apni
premika ko jo ab uski boss bhi thi,bata de magar fir usne socha ki kyu
vo use nahak pareshan kare!ye sab to chalta hi rehta tha & fir devika
pe ab kaam ka kitna bojh bhi tha.vo ektak use nihare ja raha tha &
bekhabar devika apna kaam kiye ja rahi thi.shiva ke dil ne us waqt ye
dua mangi ki bas ye pal yehi tham jaye & vo bas aise hi apni mehbooba
ke asmne baitha use niharta rahe,qayamat ke din tak. devika ne nazre
uthayi & apne aashiq ko khud ko niharte paya to kaam ki masrufiyat ke
bavjood uske gulabi hontho pe muskan khil gayi..kitna chahta tha ye
shakhs use?..agar halaat kuchh aur hote to vo kab ka isko apna pati
bana chuki hoti.aisa aashiq to kismatvalo ko milta hai!magar ye mumkin
nahi tha..shiva tum mujhe pehle kyu nahi mile?..devika ke dil me hook
uthi..kya ho jata agar mil bhi jata to?..uske zehan ne uske dil se
poochha..ye shanoshaukat ye aishoaaram to ye shakhs tumhe kabhi nahi
de pata....zamane ki nazro me vo uska naukar hai magar haqiqat me to
vo uska aashiq hai.abhi uske paas daulat & ishq dono hain.agar shiva
use pehle mil jata to vo is daulat se to mehroom rah jati..jo hota hai
vo achhe ke liye hota hai! "kya dekh rahe ho?",dil ki jaddojehad ko
devika ne chehre pe nahi aane diya tha. "duniya ka sabse haseen
chehra." "achha.ab bahut dekh liya,ab jao.kaam nahi tumhe?",usne shiva
ko pyar se jhidka. "haan vo to hai.",aah bharta shiva uth khada hua &
darwaze ki or mud gaya. "shiva..",mehbuba ki aavaz sun vo
ghuma,"..udas kyu hote ho,jaanam!apni har raat to maine tumhare naam
kar di hai.",shiva ko mehbuba ke pyar ke izhar se bahut khushi hui &
vo bezari jo uske chehre pe aayi thi vo gayab ho gayi & vo vaha se
nikal gaya. Raat ke 10 baje Inder apne quarter me andhere me baitha
khidki se bahar dekh raha tha.use estate manager ki naukri karte 1
mahine se upar ho gaya tha magar Suren Sahay ki maut ke baad vo apne
plan ke agle kadam abhi tak nahi utha paya tha.is waqt use Shiva sabse
bada khatra nazar aa raha tha.vo bahut wafadar tha & abhi tak inder ko
uski koi bhi kamzori ya koi aisi baat ka pata nahi chala tha jise vo
uske khilaf istemal kar sakta. use baukhlahat hone lagi magar abhi use
thodi der baad Rajni ke paas jana tha & uske paas sharab pi ke jana
thik nahi tha.shiva ke bare me jaanane ke liye 1 baar uske kamre ki
talashi lena zaruri tha kyuki sath kaam karne valo se uske bare me koi
bhi kaam ki baat nahi pata chali thi lekin shiva bungle ke andar rehta
tha & vo bungle ke andar ghuse kaise,ye uski samajh me nahi aa raha
tha. tabhi uski nigah me,joki bungle se quarters ki or aate raste pe
thi,uske hatho ki kathputli ka aks ubhra.bungle ke andar kaam karne
valo ke liye Devika ne vardi banwayi thi.naukar to kamiz & pant &
sardiyo me coat pehante th vahi naukraniya ya to sari ya fir ghutno se
neeche tak ki kale rang ki pure ya aadhe bazu ki dress pehanti thi.
rajni ne bhi is waqt aadhe bazu vali dress pehni hui thi.rasoi me kaam
karte waqt pehanane vala apron abhi bhi uski dress ke upar bandha tha
& hatho m 1 chhota sa bag tha jisme kabhi-kabhar vo lunch le jati
thi.naukaro ko sara khana bungle me hi milta tha magar rajni & kuchh
aur ladkiya kabhi-kabhar apne ghar se bhi kuchh banake le jati thi
zayka badalne ki garaj se. use dekhte hi inder ki aankhe chamak uthi &
vo apni kursi se uth furti se apne darwaze se nikal gaya.
"aahh..!",rajni ne darwaza khol abhi quarter me kadam rakha hi tha ki
inder ne use apni baho me daboch liya,"..kaise choro ki tarah aate
ho?!!darr ke mare meri to jaan hi nikal gayi thi!",inder ne darwaza
band kiya & 1 maddham roshni vala bulb jala diya. "dekho,to mera dil
kaise dhadak raha hai.",shokhi se muskurati rajni ne apne seene ki or
ishara kiya.inder ne use darwaze ke bagal ki deewar se laga ke khada
kiya hua tha & khud us se sat ke khada tha. "abhi shant karta hu
ise.",usne apna daya hath rajni ki kamar ke peeche kar uske apron ki
dr ko khola & baaye se uske hath ka bag & quarter ki chabhi lke bagal
ki deewar me bane shelf pe rakh diya.dor khulte hi rajni ne apron ko
gale se nikala & apni baahe apne premi ke gale me daal di. inder ka
hath rajni ki gand pe fir raha tha & jaise hi usne uske gand ko daba
uski chut ko apne lund se peesa use rajni ki dress me se uski kama ke
paas kuchh chubha,"ye kya hai?",rajni ke khule honth joki uske hontho
ki or badh rahe the,sawal sun vahi ruk gaye. "ohh..ye hai.",usne jeb
me hath daal kar 1 chabhi nikali,"..ye to bungle ki chabhi hai."
"kya?",badi mushkil se inder apni hairani & khushi ko chhupa
paya,"..bungle ki chabhi tumhare paas kaise aayi?",uska daya hath
rajni ki dress ko upar kar uski bayi jangh ko utha ke use sehla raha
tha. "ye bungle ki rasoi ke darwaze ki chabhi hai.devika ma'am ne
mujhe de rakhi hai taki savere jab main kaam pe jaoon to unki nind me
khalal na pade,vo thoda der se uthati hai na.",inder ne us se chabhi
le li & apne honth uske hontho se mila diye.usne chabhi vala hath 1
baa rajni ke dress ki jeb me ghusaya magar chabhi andar nahi dali
balki us chabhi ko apne shorts ki jeb me daal liya. rajni ka hath ab
uski shots ke upar se uske lund ko tatol raha tha,inder ne fauran use
dhila ka neeche gira diya.vo nahi chahta tha ki rajni ko chabhi ke
bare me pata chale,"jaan,khana khaya tumne?" "haan.",inder ke is
mamuli se saval n rajni ke dil ko bahut khush kar diya.use apne premi
pe bahut pyar aaya..kitni fikr karta tha vo uski!usne aur garmjoshi se
uske tagde lund ko apni giraft me kas liya & use chumte hue hilane
lagi.inder bhi uski kamuk harkato ka lutf uthane laga,usne to sawal
isliye kiya tha ki kahi rajni use garam karne ke baad khana na khane
lage & use jhadne ke liye intezar karna pade. inder ne bhi uski pith
pe lagi dress ki zip ko neeche kar diya tha & apne hath andar ghusa
uski chhatiyo se khel raha tha.rajni ne bechain ho inder ki t-shirt
nikal di & badi betabi se uske seene pe apne hath firati hui use
chumne lagi.uske honth inder ke chehre se neeche uske seene pe
aaye,"inder.." "hun..",inder uski pith & baal sehla raha tha. "hum
shadi kab karenge?",rajni uske seene se neeche uske pet pe pahunch
gayi thi. "bahut jald meri jaan,bahut jald.",inder ne uska sa neeche
apne pyase lund ki or dhakela,"..bas thode paise jama ho jayen taki
shadi ke bad honeymoon ke liye main tumhe kisi bahut hi khubsurat
jagah le ja saku. "ohh..inder.itna khach karne ki kya zarurat
hai?",rajni is baat ko sunkar phuli nahi sama rahi thi.usne inder ke
lund ko dono hatho me liya & apna sar bayi taraf jhuka lund ki bagal
me chumne lagi. "unnn..!",..ye ladki dekhne me jitni sadharan thi
chudai me utni hi mast!inder ka dil josh se bhar gaya tha,"..Prasun
jaisa aadmi agar shadi kar mauj uda sakta hai to hum kyu nahi!",usne
rajni ke balo ko pakad uske sar ko lund pe dabaya. "unki baat aur
hai..",rajni lund ki jad pe jaha se inder ke ande shuru hote the,apni
jibh chala use pagal kar rahi thi,"..vo raees hain,jaan.dekho na,sir
ko guzre abhi kitne hi din hue hain & ab ma'am ki vakil unhe nayi
vasiyat banane ke liye keh rahi hai." "kya?!",1 baar fir inder badi
mushkil se apne hairat bhare jazbato ko rajni se chhupa paya.rajni ne
lund ko apne munh me bhar liya tha & use hilate hue chus rahi thi &
isliye usne fauran inder ko jawab nahi diya.inder ka dil to kiya ki
lund khinch use 2 tamache jade & use puri baat batane ko kahe magar ye
mumkin nahi tha.vo rajni ke jawab ka intezar karta raha. kayi palo tak
lund ko ji bhar ke chusne ke baad rajni ne sans lene ke liye use munh
se nikala,"..us din unki vakil nahi hai..kya naam hai uska.." "Kamini
Sharan.",inder ne use uthaya & baaho me bhar uski dress ko neeche
sarka diya.bra ka baya cup neeche tha & uski bayi chhati numaya
thi.inder to pura nanga hi tha.usne rajni ko god me uthaya & uske
bedroom me le gaya.bistar pe lita usne uski panty utari & uski gand ki
phanko ke neeche apne hath laga uski jhanto ko apni laplapati jibh se
chir uski chut me ghusa diya. "aaanhhh...oonnnn....!",rajni to jism me
phut rahe maze ki fuljhadiyo me apni kahi baat bhul hi gayi thi magar
inder ko to uske munh se abhi baat nikalwani hi thi. "to kya keh rahi
thi vakil kamini sharan?",vo apne ghutno pe tha & rajni ki gand ko
tham usne hawa me aise utha rakha tha mano uska vazan kuchh khas na
ho. "oonnhh....keh rahi thi ki ma'am ko ab vasiyat
bana...aaanhhh..le..ni..chaaa..hiyee...haaiiiii..!",rajni jhad ahi thi
magar inder ki laplapati jibh abhi bhi uski chut ke dane ko chaat rahi
thi. "to ma'am ne kya kaha?" "uunn..hhunnnhhh....kaha ki kuchh din ruk
jaiye...ooohhhhhh.....!",inder ne uski jangho ko apni jangho pe tika
liya tha & apna lund uski chut me ghusa raha tha.rajni ne bechain ho
uski baaho ko tham liya tha. "aur kuchh nahi kaha unhone?"
nahi.",inder samajh gaya ki is se zyada rajni ko kuchh nahi pata.rajni
ne uski banh pakad ke neeche khincha to inder ne uski baat mante hue
apna upari badan neeche kiya & use chumne laga.ye kathputli uska sabse
badhiya hathyar thi & waqt aa gaya tha ki abhi di gayi jankari ke liye
use inam diya jaye.inder ne apni jnagho ko failaya & rajni ke upar let
gehre dhakke laga use madhosh karte hue uski chudai karne laga.
----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
"aapko to bas 1 hi baat sujhti hai har waqt!",kamini ne Chandra Sahab
ko tadpane ki garaj se pare dhakela.kamini apne dil me uth rahe sawalo
ke jawab dhundne ke liye apne guru ke ghar aayi thi.Mrs.Chandra ke
israr pe vo khane ke liye ruk gayi to chandra sahab ne kaha ki kaam ki
baaten khane ke baad karenge.khana khatm hote-2 musladhar barish shuru
ho gayi & dono miya-biwi ne use raat ko unke yaha rukne ke liye mana
hi liya.chandra sahab ki khushi ka to thikana hi nahi tha. unhe der
raat tak kaam karne ki aadat thi & vo jante the ki agar us waqt kamini
unke sath jitni der tak rahe unki biwi ko zara bhi shubaha nahi
hoga.mrs.chandra ke sone jate hi vo kamini ko bungke ke durse hisse me
bane apne daftar me le gaye & andar se dawaza band kar diya.kamini ne
mrs.chandra ki purani nighty pehni thi jiska gala thoda bada tha &
usme se ab uska mast cleavage jhank raha tha.darwaza band karte hi
chandra sahab ne use dhar dabocha tha & apne pyase honth uske chehre
pe ghumane lage the. "tumhe dekh ke kuchh aur sujh sakta hai
bhala.",kamini bade sofe pe baith 1 kitab ke panne palatne lagi to vo
uske peechhe a baithe & uske kandho pe hath rakh uske baal chumne
lage.kamini ne unhe aur tadpana chaha & vaha se bhi uthne lagi magar
is baar chandra sahab hoshiyar the & unhone use apni baaho me kas
liya. "umm....kya karte hain!chhodiye na!",chandra sahab uski kamar ko
kas ke thame uske hontho ko apne hontho se dhoond rahe the. "itni
mushkil se hath aati ho,tumhe kaise chhod du!",unhone kamini ke sar ko
apne daye hath ko uske seene ke paar le jate hue ghumaya & uske honth
chumne lage.kamini ko bhi maza aa raha tha.chandra sahab uski nighty
me neeche se hath ghusane lage to vo chhatpatane lagi magar unhone use
apne changul se nahi nikalne diya & hath andar ghusa hi diya.unka hath
seedha uske seene pe ja pahuncha & uski choochiyo se khelne laga.
chandra sahab ka josh ab bahut zyada badh gaya tha & vo uske kapde
utarne ki koshish karne lage,"..kahi aunty na aa jayen.",kamini ne
ghabrayi aavaz me kaha.use ghabraya dekh uske guru ka josh duguna ho
gaya. "koi nahi ayega yaha hun dono ke milan me khalal dalne.",vo
furti se uski nighty khicnhne lage.kamini samajh gayi ki ab vo maanane
vale nahi hain.thodi hi der me vo apne guu ke sath sofe pe nangi
baithi thi.chandra sahabh ki god me baithi kamini unke seene ke baal
sehla rahi thi & chandra sahab apne jism ke paar padi us husn pari ko
panv se leke sar tak chum rahe the,sehla rahe the. unke lund ko hilate
hue kamini ne unhe sahay parivar ke bare me sab kuchh bataya.shiva pe
shaq hona & devika ka us se mila hone wali baat bhi usne unhe
batayi.uski sari baat sun ke jo baat chandra sahab ne kahi use sun ke
kamini ka cheha sharm se laal ho gaya. "hmm..yani Viren Sahay bhi
tumhare husn ke teer se ghayal ho chuka hai!",kamini ne unhe ye nahi
bataya tha ki usne viren ki cottage ki khidki se jhankte saye ko jab
dekha tha us waqt vo us cottage me kya kar rahi thi magar chandra
sahab pahunche hue vakil the,unhe ye bhanpne me zara bhi waqt nahi
laga ki unki shishya ko 1 naya premi mil gaya hai,"..lagta hai isliye
humare liye waqt nahi hain tumhare paas aajkal?" kamini unse chudti
thi & unki shishya nahi ab to premika thi magar fir bhi thi to vo 1
ladki hi & use unki baat se sharm aa gayi thi.usne apna upari badan
mod unke gale me baahe daal unke daye kandhe pe apna sar rakh unki
gardan me chehra chhupa liya tha. "aise mat boliye..",usne unke kandhe
pe sar rakhe-2 unka gaal chuma,"..1 to kaam ki masrufiyat upar se
aunty ka darr.mera ji nahi karta kya aapki baaho me sone ko!..magar
majburi hai." "main to chhed raha tha,tum to sanjeeda ho gayi!",unhone
kamini ka chehra apne samne kiya & use chum liya.kamini ne apni zuban
unke munh me ghusa di.Shatrujeet Singh,Karan & Viren teeno ko usne
itna jata diya tha ki vo apni marzi ki malkin hai & koi ye na samjhe
ki vo uspe apna haq jata sakta hai..agar vo unke sath soti hai to uska
ye matlab nahi ki vo unki biwi ya fir rakhail ban gayi jispe vo rob
ganth sakte hain..ye dusri baat thi ki teeno vaise mard the bhi nahi &
us se jitni mohabbat karte the utni hi uski izzat bhi karte the & uski
zindagi me 1 hadd se zyada dakhal dene ki unhone koi koshish bhi kabhi
nahi ki thi lekin chandra sahab vo akele mard the jinki kamini sabse
zyada izzat karti thi & abhi use 1 pal ko darr laga tha ki kahi vo us
se khafa na ho jayen ya fir kahi jalan ke mare kuchh ulta-seedha na
bol den magar unhone aisa kuchh nahi kiya. is baat se kamini ke dil me
unke liye izzat aur bhi badh gayi & use unpe bahut pyar aaya.vo unhe
chume ja rahi thi & vo bhi uske jism ke ubharo ko apne hatho me tol
rahe the.achanak unhone use pani god se neeche karte hue sofe pe
litaya & fir kamar me hath daal use ulta ka pet ke bal lita
diya.kamini ne bhi jhat se apni kmara thoda upar kar di.chandra sahab
ne 1 cushion uske pet ke neeche laga diya taki vo aram se let sake &
uski chut bhi & ubhar ke unki aankho ke samne aaye. vo bechaini se
uski gand ki bhari fanko ko masalte hue gand ki darar pe lambai me
jibh chalane lage.daftar me kamini ki aahe gunjane lagi. "vo saya to 1
raaz hai magar mujhe bahut khatarnak lag raha hai.",unki jibh uske
gand ke chhed ko sehla rahi thi.kamini ki chut kasmasane lagi thi,usne
apna daya hath peechhe kiya & chandra sahab ke baal sehlaye,"..devika
pe bhi shaq ki tumhari vajah kafi thos hai & shiva ko bhi shaq ke
dayre se bahar nahi rakha ja sakta." kamini ki gand ka chhed jibh ke
ehsas se kabhi band hota kabhi khulta.betabi se kamini ne apne pet ke
neeche dabe cushion ko thoda neeche sarkaya & apni chut ko kamar
haule-2 hila uspe dabane lagi.chandra sahab samajh gaye ki pehle unhe
unki shishya ki chut ko shant karna padega uske baad hi vo itminan se
uski gand se khel payenge.unhone jibh ko thoda neeche kiya & uski chut
pe laga diya. "..vasiyat karne me deri is shaq ko aur pukhta karti
hai.",unhone apni jibh ko uski chut me ghusa diya & tab tak chalate
rahe jab tak vo jhad nahi gayi.sofa kafi bada tha.chandra sahab ne
kamini ki tango ko failaya & apna lund uski chut me ghusa diya.gili
chut me lund sarr se ghus gaya.2-3 dhakko ke baad vo uski pith pe let
gaye.kamini ne apni gardan dayi or ghumayi & unhe chumne lagi.
"..lekin 1 baat hai jo mujhe pareshan kar rahi hai.",chandra sahab ne
apni shishya ke honthe chhod uski makhmali pith pe kisses ki jhadi
laga di.unke dhakke kamini ki chut ko pagal kar rahe the.vo bechaini
se apne ghutno se mod tango ko upar utha rahi thi.uski chut me vahi
mitha tanav ban gaya tha. "..agar devika chahe akele ya fir shiva ke
sath milke suren ji ko raste se hatane ke liye unki dawa se kuchh
chhedchhad karti hai to fir vo us dibiya ki fauran gayab kar
degi.",chandar sahab ab apne hatho pe apna bhar sambhale uchke hue
dhakke laga rahe the.
"oonnhh.....aanhhhhh....aisa...haaiiiiiii....aise hi
kariye..bas...tho..di...der...aaaahhhhhhhhhh.....!",kamini jhad gayi
thi magar chandra sahab ka kaam abhi baki tha.thodi der baad unhone
lund ko bahar khincha,fir apne thuk se kamini ki gnad ka chhed bhara.
"..main keh rahi thi ki aisa bhi to ho sakta hai..",kamini ne apni
gand hawa me utha di & apna upari badan aage ko jhuka ke sofe ka
hattha tha apne guru ke humle ke liye taiyyar ho gayi,"..ki kamini
dibiya hatana bhul gayi ho." "nahi..",chandra sahab ne gand ke chhed
ko achhi tarah se gila kiya & fir dheere-2 lund ko andar ghusane
lage,"..agar suren ji ki maut dawa se chhedkhani ki vajah se hui hai
to vo dibiya is case me murder weapon hai & koi bhi gunehgar sabse
pehle jurm me istemal hue hathyar ko hi thikane lagata hai."
"aaiiiyyyeeeeeeee..!",lund ka 2 inch hissa gand se bahar tha & chandra
sahab ne uski gand marna shuru kar diya tha.thodi der pehle jhadne ke
waqt kamini ki chut ke sikudne-failne ki mast harkat ke dauran badi
mushkil se unhone apne lund ko kabu me kar use jhadne se roka tha.itni
baar kamini ko chodne ka baad bhi vo uske jism ke maadakta ke aadi
nahi hue the.uski gand ka chhed bahut zyada kasa hua tha & badi
mushkil se unhone 1 baar fir apne ko jhadne se roka hua tha.
"oohhh...to..haaiii..aapka..keh..na..hai..ki...koi...aur
bhi...hai...vaha....sahay khan..daan..ka...dushman....haii
raaaammmm....!",chandra sahab ke dhakke tez ho rahe the & unka daya
hath kamini ki chut bhi maar raha tha. "bilkul sahi samjha
tumne.",chandra sahab bhi apni manzil ke karib pahunch rahe
the,"..mera khayal hai ki suren sahay ki maut ke pechhe koi aur hai &
devika & shiva,chahe vo suren ji ki maut chahte ho,unhe keval paiso se
matlab hai." "ouuiiiiiii..maannnnnn........magar prasun ka
kya...oohhhhh..hoga fir...oooooohhhh.....!",kamini ke honth "O" ke
aakar me gol ho gaye the & uske gale se aavaz bhi nahi nikal rahi
thi.uske jhadne me itni shiddat thi ki use kuchh hosh nahi tha ki vo
kaha & kiske sath hai.vo sofe pe nidhal ho gayi thi.uske upar aahe
bharte hue chandra sahab apne gadhe ras se uski gand ko bhar rahe the
magar vo apni hi duniya me khoyi hui thi jaha charo taraf bas phoolo
ki khushbu thi & badan me madhosh karne vala ehsas. kayi palo baad use
jab hosh aaya to usne paya ki vo sofe pe bayi karwat se padi hui hai &
uske guru uske peeche uski kamar pe apni dayi banh lapete lete hue
hain.usne fir se baato ka toote silsile ko shuru kiya,"prasun ka kya
hoga fir?",apne sar ko usne peeche ghumaya & apne guru ke chehre pe
apna daya hath firaya. "dekho,prasun ke liye to devika trust banayegi
hi magar vo sab to devika ki maut ke bad hoga na.",unhone apna sar
sofe se uthaya & kamini ke chehre pe halk-2 kisses chhodne
lage,"..agar uske sar pe shiva ka jadu chdha hua hai tab to shiva jo
kahega vo karegi.shiva ko ye daulat agar chahiye to vo vasiyat me
kuchh aisa likhwayega ki sab kuchh usi ki jholi me aaye." "aise to
prasun ki jaan ko bhi khatra hai?",chandra sahab ka hath uske pet pe
chal raha tha & vo apne daye hath se unke balo se khel rahi thi.
"haan,bilkul.",unhone apni ungli se uski nabhi ko kureda. "to fir
shiva ne prasun ki shadi kyu hone di?" "ye to tumne pate ki baat
kahi!",unki ungli abhi bhi nabhi ko kured rahi thi,"agar shiva galat
aadmi hai to vo is shadi ko kisi bhi kimat pe rokta.shadi ho gayi iska
matlab hai ki devika ne uski suni nahi & usne bhi zyada dabav nahi
dala hoga ki kahi devika ko uspe koi shaq na ho jaye magar ab ghar me
1 aur shakhs hai jise ki use raste se hatana hoga." "lekin vo
pre-nuptial agreement bhi to hai uske hisab se prasun ki maut ke baad
Roma ko bas 1 tay ki hui rakam milegi aur kuchh nahi.to shiva ko agar
use paise dene bhi padte hain to vo ye mamuli nuksan seh lega."
"hun..",chandra sahab ke hath kamini ke badan se khel rahe the magar
dimagh gehri soch me duba tha. "aapko kya lagta hai ki mujhe devika ko
aagaha karna chahiye ya fir viren ko?" "dekho mere hisab se to jab tak
vasiyat nahi banti shiva kuchh nahi karega..-" "..-lekin agar vasiyat
me sab prasun ke naam hai to vo use khatm kar apni marzi ki vasiyat
banwa sakta hai." "vo kyu karega aise?" "kyu nahi karega?" "prasun
mandbuddhi hai.agar vo malik ban jata hai jaydad ka to bhi bas naam ka
hi rahega.sari dor to devika & devika ki dor sambhale shiva ke hath me
hi rahegi.qatl kar vo bina baat ka jhamela kyu mol le?..fir prasun ko
to vo kabhi bhi hata sakta hai kyuki prasun ka qatl tabhi zaruri hai
jabki devika ki vasiyat me devika ki maut ke baad sabkuchh prasun ke
naam ho jata hai.",baat kamini ki samajh me aayi to vo chandra sahab
ke paine dimagh ki daad diye bina nahi reh saki.usne karwat badli &
apne guru ke seene se lipat gayi,"main kab soch paoongi aapki
tarah!",dono abhi bhi karwat se hi lete the & 1 dusre ke jismo ko
sehlate hue haule-2 chum rahe the. mehbooba ke munh se tarif sun
chandra sahab khushi se hanse,"..tum mujhse bhi zyada hoshiyar ho.ye
baat tum bhi samajh jati magar shayad aaj uparwala chahta tha ki
hum-tum ye nashili raat sath guzaren.",unki baat sun kamini muskurayi
& 1 baar fir unki baaho me kho gayi. Inder bistar se utra,rajni gehri
nind soyi hui thi & soti bhi kyu na!..pichhle 3 ghanto tak inder ne
use jam ke choda tha.chehre pe param samtosh ka bhav liye rajni thakan
se nidhal ho so gayi thi.quarter ke darwaze pe giri apni shorts ki jeb
se usne chabhi nikali & rajni ke bathroom me gaya.1 kone me pade
nahane ke sabun ko usne liya & uspe chabhi dabna ke uski chhap le
li.kaam ho jane ke baad usne chabhi bahri kamre ke shelf pe rajni ke
quarter ki chabhi ke sath rakh di. usne ghadi dekhi to raat ke 1.30
baj rahe the.usne apne kapde pehne & fir bistar pe nangi soyi rajni ke
bagal me let gaya.30 minute baad vo use jagake darwaza lagane ko
kahega & apne quarter me chala jaeyga.uska dimagh tezi se chal raha
tha & vo kal raat ke bare me soch raha tha.kal bhi use rajni ko isi
tarah thakan tha taki jab vo yaha se nikal ke bungle ke andar jaye tab
use is baat ka bilkul bhi pata na chale. "ummm....!",Rajni ke munh me
Inder ka lund bhara hua tha joki uske neeche leta uski chut chaat raha
tha.rajni uske upar thi & uski besharm zuban se pareshan ho apni kamar
uske munh pe aise hila rahi thi mano chut me jibh nahi lund ghusa ho.
"rajni..",inder ne jibh ko chut se bahar nikala & uske dane pe firaya.
"hun....!",rajni ne aah bhari. "tum 2-3 mahino ke liye apne mata-pita
ke paas kyu nahi chali jati?",inder uski moti gand ko dabate hue uske
dane ko chhed raha tha.rajni ne chaunk ke lund ko munh se nikala &
apni gardan ghumake inder ki or dekha. "haan,tum abhi hi ho aao kyuki
jab humari shadi ho jayegi fir to main tumhe 1 pal ke liye bhi khud se
juda nahi hone dunga & kabhi bhi tumhe mayke nahi jane dunga.",inder
ki jibh ki chhed-chhad se rajni ki chut behal ho gayi thi & usme se
ras ki dhar beh rahi thi.premi ki baat sun uske jism ke sath-2 dil me
bhi khushi ki lehar daud gayi.thik usi waqt inder ki zuban ne uske
dane ko kuchh aise chheda ki vo jhad gayi. aahe bharti hui vo jhad
rahi thi magar vo fauran ghumi & inder ke seene pe apni chhatiya
dabate hue uske chehre ko hatho me tham liya,"oh!inder.." "haan,main
ab aur intezar nahi kar sakta.tum apne ganv jake apne mata-pita ke
sath 2 mahine reh lo.unhe mere bare me bata dena & fir apne sath unhe
yaha le aana taki unke ashirvad ke sath hum shadi kar saken." rajni ki
aankhe bhar aayi.use yakin to tha ki inder us se shadi zarur karega
magar jab usne ye baat kahi to uska dil is khushi ko jhel nahi paya &
aankho se aansuo ki dhar beh nikli. "kya hua?meri baat achhi nahi
lagi?",inder ke mathe pe shikan pad gayi.jawab me rajni ne hanste hue
uske chehre pe kisses ki barsat kar di.inder abhi bhi hairan tha.
"thik hai.main ma'am se chhutti mang ke ghar jati hu.",usne apne premi
ko jhuk ke chuma. "haan,lekin abhi Devika ji ko humare bare me bat
batana..",inder ne uski gand ki darar me hath firaya to rajni uska
ishara samajh gayi & apne ghutne uske badan ki dono taraf tikate hue
chut ko lund ke liye khol diya,"..kyuki main nahi chahta ki asb baaten
karen.jab vapas aaogi tab hum dono milke unhe batayenge." inder ne
uski gand se hath neeche le jate hue uski chut ko hatho se failaya to
rajni ne daya hath peechhe le ja lund ko pakad use chut ke andar ka
rasta dikhaya,"jaisa tum kaho,meri jaan.",lund andar jate hi vo uske
chehre pe jhuk gayi & dono chumte hue chudai karne lage.
----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
kramashah............
आपका दोस्त राज शर्मा साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,मंदिर जाकर जाप भी कर
लेता हूँ ..मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी
कर लेता हूँआपका दोस्तराज शर्मा(¨`·.·´¨) Always`·.¸(¨`·.·´¨) Keep
Loving &(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !`·.¸.·´ -- raj
--
No comments:
Post a Comment