बदला पार्ट--8
गतान्क से आगे...
"हेलो,भैया."
"अरे..आ गया वीरेन..कैसा है?",सुरेन सहाय ने अपने भाई को गले से लगा
लिया,"..इस बार कितने दीनो बाद आया है & उसके बाद भी यहा ना आके पंचमहल
मे क्या कर रहा था?",दोनो भाई ड्रॉयिंग रूम के सोफे पे बैठ गये,"ज़रा
मेमसाहब को बुला लाओ.",सुरेन जी ने 1 नौकर से कहा.
"हां तो बता की अभी तक पंचमहल मे क्या कर रहा था?"
"बस कुच्छ पुरानी यादे ताज़ा कर रहा था.",वीरेन ने ड्रॉयिंग रूम मे घुसती
देविका को देखते हुए ये बात कही.देविका ने ऐसे दिखाया मानो उसने उसकी बात
सुनी ही नही,"हेलो.",वो दूसरे सोफे पे बैठ गयी.
"हेलो."
दोनो भाई 1 दूसरे से बाते करने लगे,"..ममा...ये देखिए....मैने क्या बनाया
है!,प्रसून हाथ मे 1 अपनी बनाई ड्रॉयिंग लिए घुसा मगर वीरेन को देख के
सकपका गया.
"हेलो,प्रसून..",वीरेन के चेहरे पे पहली बार इतनी बड़ी मुस्कुराहट आई
थी,"..ज़रा मुझे भी तो दिखाओ क्या बनाया है?"
प्रसून ने अपनी मा की तरफ देखा मानो पुच्छ रहा हो कि क्या इस आदमी के पास
जाना चाहिए.देविका ने मुस्कुरा के उसे पास जाने का इशारा किया तो प्रसून
वीरेन के पास चला गया,"वाह..तुम तो बहुत अच्छी ड्रॉयिंग करते
हो,प्रसून...और भी कुच्छ बनाया है तुमने?"
तारीफ सुन के प्रसून के दिल से इस अजनबी से सारी झझक निकल
गयी,"हां-2,अंकल दिखाऊँ आपको?"
"अंकल नही बेटा,चाचा बोलो.",सुरेन जी ने बेटे से कहा.
"चाचा?"
"हां,बेटा ये तुम्हारे चाचा हैं."
"अच्छा!फिर इतने दिन से मुझसे क्यू नही मिले?"
"ले दे जवाब.मेरी बात तो टाल रहा था इस से निपट अब?"
"सॉरी,बेटा.बहुत काम था..मगर अब मिलता रहूँगा तुमसे..ठीक है?"
"हां..मैं अभी अपनी ड्रॉयिंग बुक लेके आता हू."
"1 मिनिट रूको,बेटा..ये लो",वीरेन ने अपने साथ लाया 1 बड़ा सा बॅग खोला
तो प्रसून खुशी से उच्छल पड़ा,"अंदर खिलोने,पैंटिंग बुक्स,कोलोरिंग सेट &
ना जाने क्या-2 था,"थॅंक्स,चाचा.",प्रसून वही कालीन पे बैठ गया & बॅग से
चीज़े निकालने लगा.
वीरेन भी भतीजे को खुश देख कर खुश था.देविका ने सुरेन जी को देखा & आँखो
से इशारा किया.सुरेन जी ने हां मे सर हिलाया & अपने छ्होटे भाई से
मुखातिब हुए,"वीरेन.."
"हां,भाय्या."
"भाई,तुमसे 1 बहुत ज़रूरी बात करनी है."
"मैं ज़रा नाश्ते का इंतेज़ाम करती हू.",देविका उठ के हॉल से बाहर निकल गयी.
"बोलो भाय्या."
"वीरेन..देख भाई..मुझे ग़लत मत समझना मगर बात ज़रूरी आयी..देखो पिताजी ने
कोई वसीयत तो बनाई नही था....मगर फिर भी इस सारी जयदाद का आधा हिस्सा तो
तुम्हारा ही है...मैं कह रहा था कि अगर तुम चाहो तो बँटवारा-.."
"भाय्या!",वीरेन की आवाज़ तेज़ थी & तल्ख़ भी.देविका ये सुन हॉल के बाहर
पर्दे की ओट मे हो गयी,"..तुम ये सोच रहे हो की मैं यहा जयदाद के लिए आया
हू?"
"भाई मुझे ग़लत मत समझ.."
"तो फिर क्या समझू?!..वाहा ऊब गया था मैं....दिल किया की अब अपने घर जाके
रहू..& यहा तुम हो की..!"
"भाई..",वीरेन जी भाई के पास आए & उसके कंधे पे हाथ रखा,"..भाई ये ज़रूरी
भी तो है..ये तो तेरा हक़ है."
"भाय्या,मुझे 1 पैसा नही चाहिए..सच.."
"लेकिन वीरेन.."
"भाय्या अब 1 बार और इस बारे मे कहा तो मैं चला जाऊँगा!",वीरेन उठ खड़ा हुआ.
"चुप-चाप से बैठ!",सुरेन जी ने उसे बिताया,"..मैं बड़ा हू या तू?"
"तो अब तुम इस बारे मे नही बोलॉगे बल्कि मैं ही तुम्हे लिख के दूँगा कि
मुझे कुच्छ नही चाहिए."
"अच्छा अब चुप हो बकवास मत कर."
"लेकिन भाय्या..",वीरेन ने ज़मीन पे बैठे 1 पैंटिंग बुक मे रंग भरते
प्रसून के सर पे हाथ फेरा,"..हमारे बाद इस सबका के होगा..कुच्छ सोचा है?"
"हां भाई,मैने तो सोचा था कि सब कुच्छ दान कर इसके नाम कुच्छ पैसो का
ट्रस्ट बना दूँगा जिस से इसकी देखभाल होती रहे."
"ख़याल तो अच्छा है."
"हां,मगर तुझसे 1 वादा चाहिए भाई."
"क्या?"
"अगर मेरी मौत हो जाती है तो तुम देविका & प्रसून को अकेला नही छ्चोड़ोगे?"
"इस बात के लिए तुम्हे मुझसे वादा चाहिए भाय्या...भरोसा नही अपने भाई
पे?..तुम फ़िक्र मत करो भाय्या...प्रसून मेरी भी ज़िम्मेदारी है."
"तूने मेरा बोझ हल्का कर दिया भाई.",सुरेन जी ने भाई का हाथ थाम लिया.
........................
रजनी की साँसे बहुत तेज़ हो गयी थी.इंदर ने उसे पीछे से पकड़ा हुआ था &
उसके गले को चूम रहा था.एस्टेट से निकलने के बाद रजनी जब हलदन पहुन्ची तो
दोनो ने पहले थोड़ी खरीदार की फिर 1 रेस्टोरेंट मे खाना खाया & फिर इंदर
के घर आ गये.
थोड़ी देर तक दोनो बाते करते रहे मगर दोनो ही के दिल मे आग लगी हुई थी &
थोड़ी ही देर बाद इंदर ने पहल की तो रजनी ने भी कोई ऐतराज़ नही
जताया....& क्यू जताती?वो तो आज मन बनके आई त क अगर उसके प्रेमी ने आज उस
से उसकी सबसे कीमती चीज़-उसका कुँवारापन माँगा तो वो मना नही करेगी.
"हाआ.....!",रजनी की साँस अटक सी गयी,इंदर ने कब उसके गले को चूमते हुए
उसकी कमीज़ को उठाके उसके पेट पे अपना दाया हाथ रख दिया था उसे पता भी ना
चला था.उसका दाया हाथ अपनेआप इंदर की दाई कलाई पे कस गया मगर इंदर हौले-2
उसका पेट सहलाता ही रहा.
रजनी की अजीब सी हालत थी,उसे डर लग रहा था मगर साथ ही बहुत रोमांच भी हो
रहा था.इंदर के हाथो का एहसास उसके बदन मे सनसनी फैला रहा था.उसका दिल 1
तरफ तो कहता था की ये हाथ इसी तरह उसके जिस्म के उपर फिरता रहे तो तभी
दूसरे ही पल उसकी धड़कने इतनी तेज़ हो जाती की वो उसे इंदर को रोकने के
लिए कहने लगा,"..इंदर......"
"ह्म्म....",रजनी ने अपना सर पीछे उसके कंधे से टीकाया हुआ था & इंदर ने
अपने तपते होंठ उसके होंठो पे रख दिए.अब तो रजनी के उपर खुमारी च्छा
गयी.हमेशा ऐसे ही होता था....ना जाने क्या जादू हा इंदर के लबो मे की वो
सब कुच्छ भूल जाती थी.अभी भी वो भूल गयी की वो इंदर को रोकने वाली थी बस
केवल ये याद रहा की इंदर की ज़ुबान उसकी शर्मीली ज़ुबान को भी बहका रही
है & वो भी अब उसी शिद्दत से उसके होंठो को चूमते हुए उस से ज़ुबान लड़ा
रही है.
इंदर की कलाई को पकड़ा उसका हाथ अब उसे सहला रहा था & उसका दूसरा हाथ
अपने प्रेमी के सर पे उसके बालो मे था.ऐसा तो था नही की रजनी आज पहली बार
इंदर की बाहो मे उसे चूम रही थी मगर ना जाने आज क्या बात थी की आज उसके
बदन मे जो एहसास हो रहा था ऐसा उसने पहले कभी भी महसूस नही किया था.इंदर
की हर्कतो से वो हमेशा ही गरम हो जाती थी & घर जाके उसे अपनी गीली पॅंटी
बदलनी भी पड़ती थी मगर आज जो खुमारी उसके उपर च्छाई थी ऐसी पहले कभी नही
छाई थी.
चूमते हुए इंदर ने उसे घुमा लिया & उसकी कमर को अपनी बाहो मे क़ैद करते
हुए वैसे ही चूमता रहा.अब उसका बाया हाथ भी दाए के साथ उसकी कमीज़ के
अंदर घुस उसकी कमर को सहला रहा था,"..उउंम्म...",रजनी ने किस तोड़ सांस
लेते हुए अपना सर बाई ओर घुमाया तो इंदर ने अपने होंठ उसकी गर्दन से लगा
दिए.
इंदर उसे कद मे बस 2-3 इंच ही लंबा था & उसके सख़्त लंड को रजनी अपने पेट
पे महसूस कर रही थी.उसके दिल की धड़कने और भी तेज़ हो गयी....क्या वो
इंदर को खुश कर पाएगी?....उसका मामूली सा रूप क्या इंदर की उम्मीदो पे
खरा उतरेगा?..इन सवालो ने उसके ज़हक़न मे हलचल मचा
दी,"प्लीज़.....इंदर..नही..."
"क्यू?",इंदर के हाथ कमर से उपर पीठ पे घूम रहे थे,"..मैं पसंद नही
तुम्हे या फिर मुझ पे भरोसा नही है?",इंदर की आँखो की तपिश रजनी ने अपने
दिल के आख़िरी कोने तक महसूस की,"बोलो ना?"
"वो बात नही है..",रजनी उन निगाहो को झेल नही पाई & फिर से गर्दन बाई ओर घुमा ली.
"फिर क्या बात है?",इंदर ने बाया हाथ उसकी कमीज़ से निकाल के उसके चेहरे
को अपनी ओर घुमाया & अपना हाथ उसके बाए गाल पे रखे रहा ताकि वो दोबारा उस
से नज़रे ना फेर सके,"जब तक नही बोलॉगी मैं ऐसे ही खड़ा रहूँगा चाहे सारी
उम्र बीत जाए."
इंदर की बातो मे सच्चे प्यार की ईमानदारी & भरोसे की झलक थी.रजनी का दिल
भर आया....कितना प्यार करता है ये शख्स मुझसे?....उसका दिल किया की उसे
बाहो मे भर उसके चेहरे पे किससे की झड़ी लगा उसके उपर प्यार की बारिश कर
दे....सौंप दे अपना बदन उसे...ये उसी की तो अमानत है लेकिन फिर से वो
सवाल उसके सामने खड़ा हो गया...क्या वो सच मे इस इंसान के लायक है?
"इंदर...."
"बोलो रजनी...प्लीज़ जो भी दिल मे है कह डालो.मैं तुमसे किसी तरह की दूरी
अब बर्दाश्त नही कर सकता!"
"इंदर....मैं तुम्हारे लायक नही हू.",रजनी ने आँखे बंद कर जल्दी से बोला.
"ये फ़ैसला करने वाली तुम कौन होती हो?!",इंदर ने उसे झकझोरा,"..& मैं हू
तुम्हारे लायक?"
"तुम...तुम तो हर लड़की का सपना हो इंदर.."
"..& मेरा सपना तुम हो..",इंदर ने उसके चेहरे के बहुत करीब आ गया,"..तुम
कितनी बेकार की बाते सोचती हो!..कितनी बड़ी पागल हो..",इंदर ने उसके होंठ
चूम लिए,"..तुमने मेरा प्यार कबूला है..इस कारण मैं खुद को दुनिया का
सबसे खुशकिस्म इंसान समझता हू & तुम हो की.."
"तुम्हारे जैसी प्यारी,खूबसूरत & इतनी नेक्दिल लड़की से मैं आजतक नही
मिला,रजनी..",इंदर की आँखो मे थोड़ा पानी आ गया था & रजनी का भरा दिल भी
उसकी आँखो से छलक पड़ा....वो जानती थी की इंदर उसे चाहा है मगर इस कदर..!
"ओह्ह..इंदर..",रजनी की आँखो से खुशी के आँसू बहने लगे.इंदर ने इस बार
उसे बाहो मे भरा & अपने बिस्तर पे बिठा दिया.दोनो अगल-बगल बैठ के 1 दूसरे
की बाहो मे खोने लगे..अब दोनो के दिल मे कोई शुबहा नही था..था तो बस
प्यार.
इंदर ने चूमते हुए रजनी को लिटा दिया,उसके बाया हाथ रजनी की पीठ के नीचे
उसे थामे दबा पड़ा था & दाया उसकी कमीज़ को उपर उठा रहा था.अब रजनी भी
उसे नही रोक रही थी.उसे हैरानी भी हुई कि वो पहली बार इस तरह से किसी
मर्द के साथ थी & उसे अब ज़रा भी शर्म नही आ रही थी.इंदर उसके नुमाया हो
चुके पेट को सहला रहा था.
इंदर ने अपना सर उसके चेहरे से उठाया & उसके पेट को देखा,अब रजनी को शर्म
महसूस हुई & उसका दिल किया की अपने बदन को ढँक ले मगर तब तक इंदर उसके
पेट पे झुक चुका था,"..हययाया...!",रजनी की आह निकल गयी,इंदर उसके पेट को
चूम रहा था.उसने उसके बाल पकड़ के उसे वाहा से हाने की कोशिश की मगर इंदर
की ज़ुबान तो अब उसकी नाभि मे उतर चुकी थी.बेचैन हो रजनी बिस्तर से उठती
हुई इंदर के बाल खींचने लगी मगर उसके बदन मे मस्ती भरने लगी थी.उसकी चूत
मे 1 अजब सा एहसास हो रहा था जोकि ना की उसे केवल तकलीफ़ दे रहा था बल्कि
बहुत सा मज़ा भी.
वो करवट लेने की कोशिश कर रही थी मगर इंदर उसे मज़बूत से बिस्तर पे दबाए
उसकी नाभि चाट रहा था.उसने अपनी टाँगे घुटनो से मोड़ के अपनी जंघे भींच
ली...उसका दिल कर रहा था कि अपनी चूत को दबाके किसी तरह उसे शांत करे मगर
इंदर था की उसे छ्चोड़ ही नही रहा था.तभी उसका दिल जैसे भर आया & चूत से
पानी बड़े ज़ोरो से बहने लगा.उसका बदन अकड़ गया & उसके गले से सिसकिया
निकालने लगी.इस से बेपरवाह अभी भी उसके पेट को चूमे जा रहा था.रजनी को अब
उसके छुने से मानो तकलीफ़ हो रही थी & उसने सुबक्ते हुए उसे परे धकेला &
बाई करवट पे हो अपना चेहरा बिस्तर मे च्छूपा के सुबकने लगी . इंदर उसके
पीछे आ प्यार से उसके सर पे चुपचाप हाथ फेरता रहा.
"रजनी..",कुछ पलो बाद जब इंदर ने देखा की वो शांत हो गयी है तो उसने उसके
बाल उसके चेहरे से हटा के उसके कान मे फुसफुसाया.रजनी वेस ही चुपचाप पड़ी
रही....कितना मज़ा आया था उसे इतना की उसे दर्द होने लगा था...ये सब
एहसास उसके लिए बिल्कुल नये थे. इंदर ने उसके चेहरे को अपनी ओर घुमाया तो
रजनी ने पूरी करवट ले ली & उसके चेहरे को अपने हाथो मे भर लिया,"क्या
हुआ,रजनी?तुम ठीक तो हो?",इंदर की आँखो मे चिंता झलक रही थी.
"हां..",रजनी ने उसके चेहरे को अपने चेरे के उपर झुका लिया.
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क्रमशः..........
BADLA paart--8
gataank se aage...
"hello,bhaiya."
"are..aa gaya viren..kaisa hai?",Suren Sahay ne apne bhai ko gale se
laga liya,"..is baar kitne dino baad aya hai & uske baad bhi yaha na
aake Panchmahal me kya kar raha tha?",dono bhai drawing room ke sofe
pe baith gaye,"zara memsahab ko bula lao.",suren ji ne 1 naukar se
kaha.
"haan to bata ki abhi tak panchmahal me kya kar raha tha?"
"bas kuchh purani yaade taza kar raha tha.",viren ne drawing room me
ghusti devika ko dekhte hue ye baat kahi.devika ne aise dikhaya mano
usne uski baat suni hi nahi,"hello.",vo dusre sofe pe baith gayi.
"hello."
dono bhai 1 dusre se baate karne lage,"..mumma...ye dekhiye....maine
kya banaya hai!,prasun hath me 1 apni banayi drawing liye ghusa magar
viren ko dekh ke sakpaka gaya.
"hello,prasun..",viren ke chehre pe pehli baar itni badi muskurahat
aayi thi,"..zara mujhe bhi to dikhao kya banaya hai?"
prasun ne apni maa ki taraf dekha mano puchh raha ho ki kya is aadmi
ke paas jana chahiye.devika ne muskura ke use paas jane ka ishara kiya
to prasun viren ke paas chala gaya,"vaah..tum to bahut achhi drawing
karte ho,prasun...aur bhi kuchh banaya hai tumne?"
tareef sun ke prasun ke dil se is ajnabi se sari jhjhak nikal
gayi,"haan-2,uncle dikhaoon aapko?"
"uncle nahi beta,chacha bolo.",suren ji ne bete se kaha.
"chacha?"
"haan,beta ye tumhare chacha hain."
"achha!fir itne din se mujhse kyu nahi mile?"
"le de jawab.meri baat to taal raha tha is se nipat ab?"
"sorry,beta.bahut kaam tha..magar ab milta rahunga tumse..thik hai?"
"haan..main abhi apni drawing book leke aata hu."
"1 minute ruko,beta..ye lo",viren ne apne sath laya 1 bada sa bag
khola to prasun khushi se uchhal pada,"andar khilone,painting
books,coloring set & na jane kya-2 tha,"thanx,chacha.",prasun vahi
kaleen pe baith gaya & bag se chize nikalne laga.
viren bhi bhatije ko khush dekh kar khush tha.devika ne suren ji ko
dekha & aankho se ishara kiya.suren ji ne haan me sar hilaya & apne
chhote bhai se mukhatib hue,"viren.."
"haan,bhaiyya."
"bhai,tumse 1 bahut zaruri baat karni hai."
"main zara nashte ka intezam karti hu.",devika uth ke hall se bahar nikal gayi.
"bolo bhaiyya."
"viren..dekh bhai..mujhe galat mat samajhna magar baat zaruri
ahi..dekho pitaji ne koi vasiyat to banayi nahi tha....magar fir bhi
is sari jaydad ka aadha hissa to tumhara hi hai...main keh raha tha ki
agar tum chaho to bantwara-.."
"bhaiyya!",viren ki aavaz tez thi & talkh bhi.devika ye sun hall ke
bahar parde ki ot me ho gayi,"..tum ye soch rahe ho ki main yaha
jaydad ke liye aaya hu?"
"bhai mujhe galat mat samajh.."
"to fir kya samjhu?!..vaha oob gaya tha main....dil kiya ki ab apne
ghar jake rahu..& yaha tum ho ki..!"
"bhai..",viren ji bhai ke paas aaye & uske kandhe pe hath
rakha,"..bhai ye zaruri bhi to hai..ye to tera haq hai."
"bhaiyya,mujhe 1 paisa nahi chahiye..sach.."
"lekin viren.."
"bhaiyya ab 1 baar aur is bare me kaha to main chala jaoonga!",viren
uth khada hua.
"chup-chap se baith!",suren ji ne use bithaya,"..main bada hu ya tu?"
"to ab tum is bare me nahi bologe balki main hi tumhe likh ke dunga ki
mujhe kuchh nahi chahiye."
"achha ab chup ho bakwas mat kar."
"lekin bhaiyya..",viren ne zamin pe baithe 1 painting book me rang
bharte prasun ke sar pe hath fera,"..humare baaad is sabka kay
hoga..kuchh socha hai?"
"haan bhai,maine to socha tha ki sab kuchh daan kar iske naam kuchh
paiso ka trust bana dunga jis se iski dekhbhal hoti rahe."
"khayal to achha hai."
"haan,magar tujhse 1 vada chahiye bhai."
"kya?"
"agar meri maut ho jati hai to tum devika & prasun ko akela nahi chhodoge?"
"is baat ke liye tumhe mujhse vada chahiye bhaiyya...bharosa nahi apne
bhai pe?..tum fikr mat karo bhaiyya...prasun meri bhi zimmedari hai."
"tune mera bojh halka kar diya bhai.",suren ji ne bhai ka hath tham liya.
Rajni ki saanse bahut tez ho gayi thi.Inder ne use peechhe se pakda
hua tha & uske gale ko chum raha tha.estate se nikalne ke baad rajni
jab Haldan pahunchii to dono ne pehle thodi kharidar k fir 1
reataurant me khana khaya & fir inder ke ghar aa gaye.
thodi der tak dono baate karte rahe magar dono hi ke dil me aag lagi
hu thi & thodi hi der baad inder ne pahal ki to rajni ne bhi koi
aitraz nahi jataya....& kyu jatati?vo to aaj man banake aayi th k agar
uske premi ne aaj us se uski sabse keemati chiz-uska kunwarapan manga
to vo mana nahi karegi.
"haaaa.....!",rajni ki saans atak si gayi,inder ne kab uske gale ko
chumte hue uski kamiz ko uthake uske pet pe apna daya hath rakh diya
tha use pata bhi na chala tha.uska daaya hah apneaap inder ki dayi
kalai pe kas gaya magar inder haule-2 uska pet sehlata hi raha.
rajni ki ajeeb si halat thi,use darr lag raha tha magar sath hi bahut
romanch bhi ho raha tha.inder ke hatho ka ehsas uske badan me sansani
faila raha tha.uska dil 1 taraf to kehta tha ki ye hath isi tarah uske
jism ke upar firta raha to tabhi dusre hi pal uski dhadkane itni tez
ho jati ki vo use under ko rokne ke liye kehne laga,"..inder......"
"hmm....",irajni ne apna sar peechhe uske kandhe se tikaya hua tha &
inder ne apne tapte honth uske hontho pe rakh diye.ab to rajni ke upar
khumari chha gayi.humesha aise hi hota tha....na jane kya jadu ha
inder ke labo me ki vo sab kuchh bhool jati thi.abhi bhi vo bhul gayi
ki vo inder ko rokne vali thi bas kewal ye yaad raha ki inder ki zuban
uski sharmili zuban ko bhi behka rahi hai & vo bhi ab usi shiddat se
uske hontho ko chumte hue us se zuban lada rahi hai.
inder ki kalai ko pakada uska hath ab use sehla raha tha & uska dusra
hath apne premi ke sar pe uske baalo me tha.aisa to tha nahi ki rajn
aaj pehli baar inder ki baaho me use chum rahi thi magar na jane aaj
kya baa thi ki aaj uske badan me jo ehsas ho raha tha aisa usne pehle
kabhi bhi mehsus nahi kiya tha.inder ki harkato se vo humesha hi garam
ho jait thi & ghar jake use apni gili panty badalni bhi padti thi
magar aaj jo khumari uske upar chhayi thi aisi pehle kabhi nahi chayi
thi.
chumte hue inder ne use ghuma liya & uski kamar ko apni baaho me qaid
karte hue vaise hi chumta raha.ab uska baaya hath bhi daye ke sath
uski kamiz ke andar ghus uski kamar ko sehla raha
tha,"..uummm...",rajni ne kiss tod sans lete hue apna sar bayi or
ghumaya to inder ne apne honth uski gardan se laga diye.
inder use kad me bas 2-3 inch hi lamba tha & uske sakht lund ko rajni
apne pet pe mehsus kar rahi thi.uske dil ki dhadkane aur bhi tez ho
gayi....kya vo inder ko khush kar payegi?....uska mamuli sa roop kya
inder ki ummeedo pe khara utrega?..in sawalo ne uske zehqan me hulchul
macha di,"please.....inder..nahi..."
"kyu?",inder ke hath kamar se upar pith pe ghum rahe the,"..main
pasand nahi tumhe ya fir mujh pe bharosa nahi hai?",inder ki aankho ki
tapish rajni ne apne dil ke aakhiri kone tak mehsus ki,"bolo na?"
"vo baat nahi hai..",rajni un nigaho ko jhel nahi payi & fir se gardan
bayi or ghuma li.
"fir kya baat hai?",inder ne baya hath uski kamiz se nikal ke uske
chehre ko apni or ghumaya & apna hath uske baaye gaal pe rakhe raha
taki vo dobara us se nazre na fer sake,"jab tak nahi bologi main aise
hi khada rahunga chahe sari umra beet jaye."
inder ki baato me sachche pyar ki imandari & bharose ki jhalak
thi.rajni ka dil bhar aaya....kitna pyar karta hai ye shakhs
mujhse?....uska dil kiya ki use baaho me bhar uske chehre pe kisse ki
jhadi laga uske upar pyar ki barish kar de....saunp de apna badan
use...ye usi ki to amanat hai lekin fir se vo sawal uske samen khada
ho gaya...kya vo sach me is insan ke layak hai?
"inder...."
"bolo rajni...please jo bhi dil me hai keh dalo.main tumse kisi tarah
ki duri ab bardasht nahi kar sakta!"
"inder....main tumhare layak nahi hu.",rajni ne aankhe band kar jaldi se bola.
"ye faisla karne vali tum kaun hoti ho?!",inder ne use jhakjhora,"..&
main hu tumhare layak?"
"tum...tum to har ladki ka sapna ho inder.."
"..& mera sapna tum ho..",inder ne uske chehre ke bahut kareeb aa
gaya,"..tum kitni bekar ki baate sochti ho!..kitni badi pagal
ho..",inder ne uske honth chum liye,"..tumne mera pyar kabula hai..is
karan main khud ko duniya ka sabse khushkisma insan samajhta hu & tum
ho ki.."
"tumhare jaisi pyari,khubsurat & itni nekdil ladki se main aajtak nahi
mila,rajni..",inder ki ankho me thoda pani aa gaya tha & rajni ka
bhara dil bhi uski aankho se chhalak pada....vo janti thi ki nder use
chaha hai magar is kadar..!
"ohh..inder..",rajni ki aankho se khushi ke aansu behne lage.inder ne
is baar use baaho me bhara & apne bistar pe bitha diya.dono agal-bagal
baith ke 1 dusre ki baaho me khone lage..ab dono ke dil me koi shubaha
nahi tha..tha to bas pyar.
inder ne chumte hue rajni ko lita diya,uske baya hath rajni ki pth ke
neeche use thame daba pada tha & daya uski kamiz ko upar utha raha
tha.ab rajni bhi use nahi rok rahi thi.use hairani bhi hui k vo pehli
bar is tarah se kisi mard ke sath thi & use ab zara bhi sharm nah aa
rahi thi.inder uske numaya ho chuke pet ko sehla raha tha.
inder ne apna sar uske chehre se uthaya & uske pet ko dekha,ab rajni
ko sharm mehsus hui & uska dil kiya ki apne badan ko dhank le magar
tab tak inder uske pet pe jhuk chuka tha,"..haaaaa...!",rajni ki aah
nikal gayi,nder uske pet ko chum raha tha.usne uske baal pakad ke use
vaha se haane ki koshish ki magar inder ki zuban to ab uski nabhi me
utra chuk th.bechain ho rajni bistar se uthati hui inder ke baal
khnchne lagi magar uske badan me masti bharne lagi thi.uski chut me 1
ajab sa ehsas ho raha tha joki na ki use kewal taklif de raha tha balk
bahut sa maza bhi.
vo karwat lene ki koshish kar rahi thi magar inder use mazboot se
bistar pe dabaye uski nabhi chat raha tha.usne apni tange ghuno se mod
ke apni janghe bhinch li...uska dil kar raha tha k apni chut ko dabake
kisi tarah use shant kare magar inder ha ki use chhod hi nahi raha
tha.tabhi uska dil jaise bhar aaya & chut se pan bade zoro se behne
laga.uska badan akad gaya & uske gale se siskiya nikalne lagi.is se
beparwah abhi bhi uske pet ko chume ja raha tha.rajni ko ab uske
chhune se mano taklif ho rahi thi & usne subakte hue use pare dhakela
& baayi karwat pe ho apna chehra bistar me chhupa ke subakne lag.nder
uske peechhe aa pyar se uske sar pe chupchap hath ferta raha.
"rajni..",kuch palo baad jab inder ne dekha ki vo shant ho gayi hai to
usne uske baal uske chehre se hata ke uske kaan me fusfusaya.rajni
vase hi chupchap padi rahi....kitna maza aaya tha use itna ki use dard
hopne laga tha...ye sab ehsas uske liye bilkul naye the.nder ne uske
chehre ko apni or ghumaya to rajni ne puri karwat le li & uske chehre
ko apne hatho me bhar liya,"kya hua,rajni?tum thik to ho?",inder ki
aankho me chinta jhalak rahi thi.
"haan..",rajni ne uske chehre ko apne chere ke upar jhuka liya.
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kramashah..........
आपका दोस्त राज शर्मा साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,मंदिर जाकर जाप भी कर
लेता हूँ ..मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी
कर लेता हूँआपका दोस्तराज शर्मा(¨`·.·´¨) Always`·.¸(¨`·.·´¨) Keep
Loving &(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !`·.¸.·´ -- raj
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