Sunday, October 24, 2010

कामुक-कहानियाँ बदला पार्ट--44

कामुक-कहानियाँ


बदला पार्ट--44

गतान्क से आगे..

क्षोटन चौबे की हर्कतो से भले ही लोगो को ये गुमान हो की वो 1 ढीला-ढाला
शख्स था मगर कोई भी उसे काम करते देख लेता तो फ़ौरन समझ लेता की वो 1 पेन
दिमाग़ का मालिक था.सहाय एस्टेट मे भी जब उसने कदम रखे & प्रसून की
गुमशुदगी की गुत्थी सुलझानी शुरू की & इस बाबत खोजी दल चारो ओर भेजे उस
वक़्त भी वो एस्टेट के गार्ड्स & अपने आदमियो के ज़रिए एस्टेट की हदे सील
करना नही भुला था.

जब प्रसून की लाश बरामद हुई तो उसने फ़ौरन पंचमहल से डॉग स्क्वाड बुलवाया
& उन्हे काम पे लगा दिया.कोई 2 घंटे तक उसने प्रसून की लाश को मिलने की
जगह से नही हटाया & कुत्तो को उसकी गंध सूँघा के च्छुड़वा दिया.जब कुत्ते
एस्टेट मे चारो ओर फैल गये तभी उसने उसकी लाश पोस्ट-मॉर्टेम के लिए भेजी.

शाम को कोई 5 बजे चौबे की मेहनत रंग लाई.छ्होटी नाम की 1 कुतिया मॅनेजर'स
कॉटेज के पास पहुँच के भौंक रही थी.उसके हॅंड्लर ने फ़ौरन चौबे को इस बात
की खबर दी.चौबे वाहा पहुँचा तो उसने देखा की कॉटेज के दरवाज़े पे ताला तो
काफ़ी पुराना लगा हुआ है मगर कॉटेज के सामने ऐसा लगता था जैसे किसी ने
झाड़ू मारा हो.

चौबे सोच मे पड़ गया.उसने अपने 1 आदमी को बाइक स्टार्ट करने कहा & उसके
पीछे बैठ गया,"अब यहा से ज़रा टीलवा तक चलो तो मगर रास्ते के
किनारे-2.",चौबे की पैनी निगाहे सारे रास्ते का बारीकी से मुआयना कर रही
थी.वो टीले तक जाकर वापस आ गया & फिर इंदर को तलब किया.

"आइए मॅनेजर साहब..",इंदर के चेहरे के सवालिया भाव देख चौबे ने आगे
बोला,"..ई झोपडिया किसका है?"

"जी,है तो ये मॅनेजर'स कॉटेज मगर मैं यहा नही रहता तो ये तो काफ़ी दीनो
से बंद पड़ी है."

"हूँ..",चौबे ने 1 हाथ पीछे किया तो 1 हवलदार ने 1 पेपर कप उसे
थमाया,उसने पान की पीक उसमे थुकि.कॉटेज शक़ के घेरे मे थी & वाहा थूक
चौबे क्राइम सीन को गंदा नही करना चाहता था,"..ऐसा काहे भाई?इतना बढ़िया
कॉटेज मे काहे नही रहते हैं आप?"

"अकेला आदमी हू,जनाब.अब इतने बड़े कॉटेज मे अकेले क्या करूँगा इसीलिए मैं
तो उधर बने क्वॉर्टर्स मे से 1 मे ही रहता हू.मेरे लिए वही काफ़ी है."

"बहुत समझदार आदमी लगते हैं आप,इंदर बाबू."

"शुक्रिया.और कुच्छ पुच्छना है?"

"नही,आप जाइए.यहा की चाभी भिजवा दीजिए बस.",उसके जाते ही चौबे मुड़ा &
अपने नीचे काम कर रहे ऑफीसर को बुलाया,"हसन..",ये वही अफ़सर था जिसकी
बाइक पे चौबे थोड़ी देर पहले टीले तक का चक्कर लगा के आया था.

"जी,जनाब."

"कुच्छ गौर किए रास्ते पे?"

"ऐसा कुच्छ खास तो नही.,सर.",हसन अपना सर खुजा रहा था.

"धात!अरे 1 जीप का टाइयर का निशान भी है मगर ऊ हम लोग के गाड़ी सब के
निशान मे दब गया है.यहा झाड़ू लगा हुआ है मतलब कोई नही चाहता है की हम
लोग जाने की यहा कोई आया था."

"तो सर,उस टाइयर के निशान से गाड़ी का पता लगाते हैं.",हसन ने जोश मे कहा.

"हम पता लगा लिए हैं,हसन साहब."

"कैसे सर?"

"तुम भी यार..",चौबे तेज़ी से पान चबा रहा था,"..अरे एस्टेट मे 1 ही
मॉडेल का जीप सब लोग इस्तेमाल कर रहा है उसी का निशान है.खूनी चालक आदमी
है भाई.घर से लड़का को उठाके उसी के गाड़ी मे ले जाके उसी के एस्टेट के
अहाता के दूसरा घर मे या तो बंद करता है या मारता है & फिर लाश भी एस्टेट
के अंदर फेंक देता है.अब खोजते रहो तुम की कौन मारा!"

तब तक इंदर चाभी लेके आ गया था.कॉटेज खुलते ही छ्होटी अंदर घुसी & भूंकने
लगी,उसका हॅंड्लर चौबे से मुखातिब हुआ & बस सर हिलाया.चौबे अंदर आया &
खाली पड़े कॉटेज का मुआयना करने लगा.अंदर फर्श पे जमी धूल पे किसी को
घसीटने के निशान थे.छ्होटी बहुत रोमांचित हो अंदर घूम रही थी.

तभी वो अंदर जाने वाले दरवाज़े के पास गयी & उसके चौखट के जोड़ को सूंघ
के भूंकने लगी,उसका हॅंड्लर पास गया & दरवाज़े के नीचे फँसे 1 छ्होटे से
कपड़े के टुकड़े को खींच के निकाला & चौबे को दिया.काले रंग के पॅंट के
कपड़े के टुकड़े को चौबे ने 1 प्लास्टिक के छ्होटे से पाउच मे डाला &
अपने हवलदार को थमाया.

अब इतना साफ था की प्रसून को इसी कॉटेज मे लाया गया था & या तो यहा बेहोश
किया गया या मारा गया क्यूकी ज़मीन पे घसीटने के निशान ऐसे थे मानो किसी
इंसान को घसीटा गया है.1 बात चौबे को बहुत परेशान कर रही थी,आमतौर पे
क़त्ल होने पे क़ातिल अपने निशान च्छुपाने की कोशिश करता है मगर यहा तो
जैसे वो चाहता था की लाश बरामद हो & पोलीस को सारे सबूत भी मिल जाएँ वो
भी जल्दी से जल्दी,मगर क्यू?

हसन ने देखा की उसका बॉस तेज़ी से जबड़े चला रहा था..यानी की छ्होटन चौबे
का दिमाग़ क़ातिल को पकड़ने मे जुट गया है,वो मुस्कुराया & फोरेन्सिक टीम
को अंदर के फोटो लेने & बाकी सॅंपल्स लेने के लिए बुलाने चला गया.

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कामिनी जब पहुँची तब तक अंधेरा घिर आया था.वो वीरेन के पास पहुँची & दोनो
बाते करने लगे.कामिनी ने वीरेन को ऐसे अपने बड़े भाई की मौत पे भी नही
देखा था,"..क्यू कामिनी?किस लिए मारा उस बेचारे को?..वो मासूम
बच्चा....",वीरेन का गला भर आया तो कामिनी ने उसे गले से लगा लिया.इतनी
देर से जो गुबार वीरेन अपने सीने मे दबाए था वो अब आँसुओ की शक्ल मे निकल
पड़ा. देविका & रोमा के सामने रोकर वो उन्हे और कमज़ोर नही करना चाहता था
मगर कामिनी के साथ ऐसी कोई बात तो थी नही.अपने सीने पे अपने प्रेमी के सर
को दबा कामिनी उसे दिलासा दे रही थी.

जब वीरेन का मन हल्का हो गया तो कामिनी ने उस से सारी बाते तफ़सील से
पुछि & देविका से मिलने की इच्छा ज़ाहिर की.वीरेन उसे अपनी भाभी के पास
ले गया.देविका को देख के कामिनी की आँखो मे भी पानी आ गया.ऐसा लगता था
मानो देविका 10 साल बूढ़ी हो गयी.आँखो मे ना चमक थी ना चेहरे पे कोई
भाव.कामिनी उसके करीब गयी & उसके हाथ को थाम बैठ गयी.देविका बस बुत बनी
उसे देखे जा रही थी.

कामिनी की समझ मे नही आय की वो क्या कहे?..कुच्छ कहना ज़रूरी था
भी?..कामिनी के आँसू उसके गालो पे ढालाक गये & उसे बहुत ज़ोर का गुस्सा
आया,"देविका जी,आप यकीन मानिए,पोलीस पता लगाए ना लगाए मैं उस नीच इंसान
को सज़ा ज़रूर दिलवाऊंगी.",कामिनी उठी & अपने आँसू पोछ्ते वाहा से निकल
गयी.

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मोहसिन जमाल & सुखी 1 बार फिर से शिवा की तलाश मे जुट गये थे.सुखी का तो
गुस्से से बुरा हाल था.शिवा के नाम की गालिया निकलते हुए वो कार ड्राइव
करता चला जा रहा था.1 बार फिर शिवा के मोबाइल पे मोहसिन की सेक्रेटरी से
1 बॅंक लोन बेचने की झूठी कॉल करवा उसकी लोकेशन निकलवा ली थी.शिवा अब
पुराने पंचमहल के उस हिस्से मे थे जिसे मोहसिन बड़े अच्छे तरीके से जानता
था-आख़िर उसका बचपन जो बीता था वाहा.अब तो वो यहा नही रहता था मगर उसके
रिश्तेदार & काई दोस्त अभी भी वाहा रहते थे.

मोहसिन रहमत बाज़ार पहुँचा & वाहा के इज़्ज़तदार बाशिंदे & अपने अब्बा के
ममुज़द भाई हाजी सार्वर हूसेन के घर पहुँचा,"आदाब,भाभी जान.",घर का
दरवाज़ा खोलने वाली औरत को आदाब करता मोहसिन अंदर दाखिल हुआ,"..घबराती
क्यू हो भाभी!मेरा दोस्त है,वैसे भी इस बिचारे को तुमसे घबराना
चाहिए!",मोहसिन ने अपनी भाभी को छेड़ा.

"हां जी!क्यू करू!अब आपके जैसा नूर तो है नही हमारे चेहरे पे.",उसकी भाभी
ने सुखी के आदाब का जवाब देते हुए मोहसिन को जवाब दिया.

"अरे भाभी!क्या बात करती हो?तुमसे ज़्यादा हसीन कोई हो सकता है भला!मैं
तो अभी भी यहा तुम्हे भगाने ही आया हू.चलो ना,रशीद भाई को पता भी नही
चलेगा!"

"धात!बदतमीज़.",उसकी भाभी शर्मा गयी.तीनो घर की बैठक मे आ गये थे जहा
सरवर हूसेन अपनी बेगम के साथ बैठे थे.मोहसिन की चाची ओर देखते ही उठ खड़ी
हुई & क़ुरान की आयात पढ़ उसके माथे को चूमा,"कितने दीनो बाद आया,मेरा
बच्चा.चल बैठ.",चाचा-चाची का हाल पुच्छने के बाद मोहसिन ने वाहा आने का
मक़सद बताया.

"ह्म्म..",सरवर हूसेन सोच मे पड़ गये,"..1 काम करते हैं,मैं पूरे मोहल्ले
मे इस शख्स के हुलिए & नाम के बारे मे बता देता हू & सबको नज़र रखने को
कहता हू.देखते हैं क्या होता है.",मोहसिन के आने की खबर सुन उसके कुच्छ
रिश्ते के भाई भी वाहा आ पहुँचे.थोड़ी ही देर मे सुखी भी सबसे खुल गया था
& उस खुशदील सरदार ने अपनी बातो से समा बाँध दिया.रात के 9 बजे 1 17 साल
का लड़का भागता हुआ बैठक मे आया,"आदाब,भाई जान..",लड़का ने हान्फ्ते हुए
मेज़ पे रखी पानी की बॉटल को उठाया & मुँह से लगा लिया.

"ओये,रेहान,आराम से पी बेटा.",मोहसिन की चाची ने उसे नसीहत दी.

"मोहसिन भाई..",लड़का अभी भी हाँफ रहा था.

"पहले साँस ले ले जवान.",मोहसिन ने उसे बिताया.

"भाई,आप जिसे ढूंड रहे हैं वो अभी मस्जिद के पास वाले होटेल मे बैठा खाना
खा रहा है."

"क्या?!किसके यहा?जमाल के ढाबे पे?"

"नही,भाई,जान.जमाल के छ्होटे भाई कमाल के ढाबे पे."

"दोनो भाइयो मे झगड़ा हो गया था,मोहसिन.",सरवर हूसेन ने बात सॉफ
की,"..जमाल के ढाबे के पीछे ही कमाल ने खुद का ढाबा खोल लिया है."

"मोहसिन & सुखी उठ खड़े हुए & वाहा बैठे सारे लड़के भी,"देखो
भाइयो,मस्जिद की तरफ चार गलिया जाती हैं & 1 अपना मैं रोड.हम सब इधर से
अलग-2 गलियो से वाहा पहुँचते हैं.सुखी,तू वाहा से मैं रोड पे चले
जाना.अगर वो वाहा से भागता है तो उसे रोकने की ज़िम्मेदारी तेरी & रशीद
भाई की."

"ठीक है,सर."

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शिवा होटेल मे बैठा खाना खा रहा था.शाम को टीवी पे उसने वो मनहूस खबर
सुनी थी & उसका दिल देविका के लिए तड़प उठा था.उसे पता था की देविका अगर
सबसे ज़्यादा किसी को चाहती थी तो वो था प्रसून.शिवा का दिल कर रहा था की
फ़ौरन एस्टेट पहुँचे & अपनी जान के गम को दूर कर दे.उसे पता था की ये सब
इंदर का किया हुआ है.उसने तय कर लिया था की अब इंदर को वो खुद सज़ा
देगा.प्रसून के खून की खबर सुनके शिवा की भूख-प्यास मर गयी थी लेकिन 1
फ़ौजी होने के नाते वो जानता था की भूखे पेट कोई भी लड़ाई नही जीती जा
सकती इसलिए वो अपने होटेल से निकल यहा खाना खाने आया था. उस बेचारे को ये
कहा पता था की कामिनी उसे ही क़ातिल समझ रही थी & ढाबे के बाहर खड़ा
मोहसिन उसे देख रहा था.

"मोहसिन,पकड़ साले को."

"नही,अभी नही.उसके पास हथ्यार भी हो सकता है."

शिवा खाकर बाहर आया & काउंटर पे बैठे कमाल को पैसे देने लगा,"अरे मोहसिन
भाई,कब आए?",कमाल मोहसिन को देख के चौंका.

"बस अभी-2.",शिवा बाकी पैसे वापस लेने के इंतेज़ार मे खड़ा था.

"आओ ना,बैठो.आप तो पहली बार आए हो मेरे होटेल मे.आपको अपना स्पेशल पान
खिलाता हू.",कमाल ने गल्ले से बाकी पैसे निकल शिवा को दिए.

"आज नही,कमाल.आज कुच्छ काम है."

"कैसा काम,मोहसिन भाई?"

"इन भाई साहब को जैल की सलाखो के पीछे पहुचाना है.",उसने शिवा का गिरेबान
थाम लिया मगर शिवा चौकन्ना था उसने अपनी बाई कोहनी मोहसिन की ठुड्डी के
नीचे मारी & गिरेबान छुड़ा भागा.लड़को की भीड़ उसके पीछे पड़ गयी.शिवा
तेज़ी से भागता मैं रोड पे पहुँचा..बस 1 बार वो यहा से निकल जाए तो फिर
इंदर को & उसके इन कुत्तो को भी देख लेगा मगर तभी उसका पाँव किसी चीज़ से
टकराया & वो औंधे मुँह गिरा.

उसने उठने की कोशिश की मगर तब तक उसकी पीठ पे सुखी सवार हो चुका था &
उसके हाथो मे हथकड़ी डाल रहा था,"साले!क़ातिल.फौज के नाम पे धब्बा है
तू!",तब तक वाहा बाकी लोग भी आ पहुँचे.मोहसिन पोलीस का आदमी तो नही था
मगर तब भी वो हथकड़ी ज़रूर रखता था & अपने आदमियो को भी रखने को कहता
था.उसका मानना था की किसी भी ख़तरनाक आदमी को काबू मे करने के लिए हथकड़ी
से बेहतर कुच्छ भी नही था.लड़के शिवा की पिटाई करना चाहते थे मगर मोहसिन
ने उन्हे रोका & शिवा के पैरो को रस्सी से बाँधा & कार की पिच्छली सीट पे
डाल दिया & फिर सुखी के साथ निकल गया.

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क्रमशः...............


बदला पार्ट--44

गतान्क से आगे..
कामिनी ने तय कर लिया था की वो पोलीस को शिवा के बारे मे बता देगी ताकि
वो जल्द से जल्द पकड़ मे आए.चौबे इस वक़्त कही एस्टेट मे ही छान-बीन मे
मशगूल था & उसने बोला था की वापस जाने से पहले वो ज़रूर उस से मिल के
जाएगा.तभी उसका मोबाइल बज उठा,"हां,मोहसिन बोलो?"

"मेडम,वो मिल गया है मगर आप यहा फ़ौरन आ जाइए."

"क्यू,मोहसिन?"

"मेडम,शिवा आपसे कुच्छ कहना चाहता है."

"मगर क्या?"

"वो कहता है की आपके आने पे ही बोलेगा लेकिन आपको फ़ौरन आना होगा."

"ओके,मैं अभी आती हू.",कामिनी ने वीरेन से इजाज़त ली & अपनी कार मे बैठ
ड्राइवर को पंचमहल वापस चलने को कहा.

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चौबे के हुक्म से एस्टेट की सारी लाइट्स जला दी गयी थी & उसने फ़िल्मो मे
इस्तेमाल होने वाली लाइट्स मँगवा के पूरे एस्टए को रोशनी से भर दिया
था.छ्होटी को कुच्छ भनक लगी थी & वो कॉटेज के आस-पास की झाड़ियो मे घूम
रही थी.थोड़ी देर बाद वो झाड़ियो से निकल आगे बढ़ने लगी.चौबे की भी छटी
इंद्री उसे ये कह रही थी की अभी कोई और सुराग भी ज़रूर मिलेगा.

छ्होटी ने कॉटेज को आने वाले रास्ते को पार किया & थोड़ी दूर पे बने
पेड़ो के झुर्मुट के बीच घुस गयी.सारे पोलिसेवालो ने रोशनी का रुख़ उधर
ही कर दिया.पेड़ो के बीचोबीच छ्होटी अपने अगले पंजो से ज़मीन खोदे जा रही
थी.सभी दम साधे उसे देख रहे थे.कुच्छ पॅलो बाद छ्होटी ने छ्होटा आस गड्ढा
कर दिया था & उस गड्ढे मे कुच्छ चमक रहा था जिसे देख वो भोंक रही थी.

क्षोटन चौबे आगे बढ़ा & वो चमकती चीज़ उठाई-वो 1 छुरि थी मगर रसोई की
छुरि नही.उसकी साइज़ वैसी ही थी मगर आकार नही.अपने रुमाल से चौबे ने उसकी
बँटे पे लगी मिट्टी सॉफ की & उसे उसपे लगे खून के जम चुके धब्बे सॉफ
दिखाई पड़े.

"सर,यही होगा मर्डर वेपन.",हसन उसके साथ गड्ढे के किनारे अपने पंजो पे बैठा था.

"ह्म्म....",चौबे तेज़ी से पान चबा रहा था....मर्डर वेपन तो यही है मगर
क़ातिल ने इसे यहा क्यू दबाया?कही और क्यू नही?....ये तो लगता है मानो वो
चाहता है की हम उसे पकड़ लें या फिर....चौबे समझ रहा था की आख़िर क़ातिल
का मक़सद क्या था.उसने चाकू को फोरेन्सिक टीम के हवाले किया & बंगल की ओर
बढ़ गया.

बंगल के अंदर उसकी मुलाकात कामिनी से नही हुई,"वीरेन जी,आप सोच-समझ के
बताईएएगा क्या सच मे आपके परिवार का कोई दुश्मन नही?"

"नही,ऑफीसर.बिल्कुल नही."

"ह्म्म..",चौबे सोच मे पड़ गया,"खैर..आप इतमीनान से सोचिए & हो सके तो
दोनो औरत से भी पुच्हिए..",वीरेन कुच्छ कहता इस से पहले ही चौबे ने उसे
रोका,"..हमको पता है उनकी हालत,वीरेन जी लेकिन आपके भतीजे के क़ातिल को
सज़ा दिलाना भी ज़रूरी है की नही & आपको 1 बात बता दू.जुर्म होने के बाद
जितनी देर करेंगे उतना ही मुजरिम को भागने का मौका मिलता है.मेरा बात पे
ज़रा गौर कीजिएगा.अच्छा अब चलते हैं.कल आएँगे."

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"क्या बात है,मोहसिन?क्या कहना चाहता है वो मुझसे?",कामिनी मोहसिन के
दफ़्तर पहुँची.

"आप खुद ही पुछिये,मेडम.",मोहसिन उसे 1 दूसरे कमरे मे ले गया जहा शिवा 1
कुर्सी से बँधा था.

"बोलो शिवा."

"आपको लगता है मैने किया है प्रसून का क़त्ल?"

"हां."

"आप ग़लत हैं,कामिनी जी."

"अच्छा,तो ये बताओ की तुम फ़र्ज़ी बॅंक खाते के ज़रिए पैसे क्यू चुरा रहे
थे?",जवाब मे शिवा ज़ोरो से हँसने लगा.तीनो उसे हैरत से देखने लगा.

"कामिनी जी,अगर चुराना ही चाहता तो मैं पूरी एस्टेट हथिया लेता & किसी को
पता भी ना चलता.उन चंद रुपयो मे क्या रखा था!",शिवा की ह्नसी रुक गयी &
वो बहुत संजीदा हो गया,"..अफ़सोस ये नही की मुझे चोर समझा,ये भी नही की
मुझे प्रसून का क़ातिल समझा....अफ़सोस तो ये है की उसने मुझे ऐसा समझा
जिसे मैं अपनी ज़िंदगी से भी ज़्यादा चाहता था."

"तुम देविका जी की बात कर रहे हो?"

"हां."

"देखो,शिवा तुम्हारी ये आक्टिंग कुच्छ साबित नही करती?"

"आपको सबूत चाहिए.वो भी है मेरे पास.",शिवा ने गर्दन घुमाई,"सरदार
जी,आपने मेरी तलाशी मे जो भी समान बरामद किया ज़रा मेडम को दिखाइए.",सुखी
ने 1 बास्केट कामिनी के सामने रखी.उसमे 1 मोबाइल,1 वॉलेट,कुच्छ काग़ज़ &
1 डिबिया पड़े थे.डिबिया देख कामिनी जैसे सब समझ गयी,"ये क्या है?"

"आपके चेहरे से लगता है की आप इस डिबिया के बारे मे जानती हैं,कामिनी
जी.",शिवा मुस्कुराया.

"वो ज़रूरी नही ये ज़रूरी है की तुम क्या जानते हो इसके बारे मे?"

"ये मेरे बॉस सुरेन सहाय की दवा है कामिनी जी.आप इस दवा की जाँच
कराईए,इसमे ज़रूर कुच्छ गड़बड़ है.मुझे पूरा यकीन है कि इस दवा की असलियत
से ना सिर्फ़ प्रसून बल्कि उसके पिता के क़त्ल पे से भी परदा उठ जाएगा."

"क्या?!!",मोहसिन & सुखी चौंक पड़े मगर कामिनी पे कोई असर नही हुआ.

"ये भी तो हो सकता है शिवा की तुमने इस दवा से छेड़-खानी की हो & अब
पकड़े जाने पे चालाकी दिखा रहे हो."

"हो सकता है.आप मुझे यहा बंद रखिए.मेरे कपड़े तक उतार लीजिए.मैं इस कमरे
मे नंगा बंद रहूँगा जब तक आपको मुझपे यकीन नही हो जाता.",शिवा की आँखो मे
तो सच्चाई झलक रही थी मगर कामिनी को अभी भी पूरा यकीन नही था.

"तुम्हे ये डिबिया कैसे मिली?"

"जो आदमी सहाय परिवार को बर्बाद कर रहा है वोही इस डिबिया को फेंक रहा था."

"तुमने उसे पकड़ा क्यू नही?कौन था वो?मेरे पास पहले क्यू नही आए?पोलीस के
पास क्यू नही गये?",कामिनी ने सवालो की झड़ी लगा दी.

"उस शख्स का नाम है इंदर धमीजा..",& शिवा सारी बात तफ़सील से कामिनी को बताने लगा.

कामिनी ने शिवा से दवा ले ली & उसे मोहसिन जमाल के आदमियो की निगरानी मे
1 फ्लॅट मे रख दिया.कामिनी ने पंचमहल सिविल हॉस्पिटल के लब मे उस दवा को
जाँच के लिए भेजा.उसकी रिपोर्ट आने मे 2 दिन लगने थे.करीब इतना ही वक़्त
प्रसून की पोस्ट-मोर्टें रिपोर्ट & बाकी सबूतो की फोरेन्सिक रिपोर्ट आने
मे लगना था.क्षोटन चौबे भी उस रिपोर्ट का बेसब्री से इंतेज़ार कर रहा था.

प्रसून की बॉडी हॉस्पिटल से छूटने पे वीरेन ने उसका सारा क्रिया-कर्म
किया.श्मशान घाट पे शायद ही कोई आँख उस वक़्त सुखी थी.कामिनी ने अभी तक
वीरेन को इंदर के बारे मे नही बताया था क्यूकी उसे डर था की जज़्बाती
वीरेन कही इंदर को खुद सज़ा ना देने लगे.ऐसे मे बहुत ज़्यादा चान्सस थे
कि इंदर क़ानून के हाथो से निकलने मे कामयाब हो जाता.

कामिनी ये भी जानती थी की अब इंदर के निशाने पे देविका होगी मगर साथ ही
ये भी एहसास था उसे की इतनी जल्दी इंदर उसे कोई नुकसान नही
पहुचाएगा.आख़िर रोमा भी तो थी घर मे.शिवा का सोचना था की इंदर पहले
देविका & फिर रोमा को किनारे करेगा जयदाद को पाने के लिए मगर कामिनी का
मानना था की इंदर उसके पहले वीरेन को रास्ते से हटाएगा ताकि वो उन दोनो
औरतो की हिफ़ाज़त ना कर सके.

कामिनी कितनी सही थी उसे ये बस 2 दीनो बाद पता चलने वाला था.प्रसून की
मौत के बाद से वीरेन एस्टेट मे ही रुका था & उस दिन भी वो बंगल के
ड्रॉयिंग रूम मे बैठा किसी मॅगज़ीन के पन्ने पलट रहा था जब क्षोटन चौबे
वाहा दाखिल हुआ.

"नमस्ते,वीरेन बाबू!कैसे हैं?"

"बढ़िया,ऑफीसर.आप कैसे हैं?"

"हम भी अच्छे हैं & आज आपसे कुच्छ पुच्छने आए हैं?"

"क्या?"

"ई च्छुरी के बारे मे कुच्छ जानते हैं?"

"हां,ये तो मेरी पॅलेट नाइफ है जोकि गुम गयी थी."

"अच्छा,गुम गयी थी.हां भाई,खून करने के बाद हथ्यार तो गुम करना ही पड़ता है."

"आपका मतलब क्या है ऑफीसर?",वीरेन की थयोरिया चढ़ गयी.

"यही की आप मारे हैं प्रसून को."

"क्या बकवास करते हो?!!!!",वीरेन ने चौबे का गिरेबान पकड़ लिया,"..मैं
मारूँगा अपने भतीजे को..उस मासूम को!",साथ आए हसन & अबकी हवलदरो ने उसे
अलग किया.

"अब आप चिल्लाइए चाहे रोइए हमको तो आपको शक़ के बेसिस पे अरेस्ट तो करने
पड़ेगा.",चौबे पे जैसे वीरेन की हरकत का कोई असर ही नही हुआ था,"..पहनाओ
रे सरकारी कंगन चाचा जी को."

"ऑफीसर,तुम भूल कर रहे हो....किसी की चाल है..कोई फँसा रहा है
मुझे!",ड्रॉयिंग रूम के दरवाज़े पे खड़ी देविका पे वीरेन की नज़र गयी तो
वो चुप हो गया,देविका की आँखो मे गम के अलावा सिर्फ़ नफ़रत
थी,"..देविका..ये सब ग़लत है..मैने नही किया ये सब!"

देविका बस उसे घुरती रही.चौबे ने उसे जीप मे डाला & थाने ले गया.बाहर
खड़ा इंदर ये सब देख मन ही मन मुस्कुरा रहा था.हसन जीप चला रहा था & चौबे
उसकी बगल मे बैठा पान चबा रहा था....कुच्छ भी सही नही था..मुजरिम हमेशा
हथ्यार पहचानने से इनकार करता है....वीरेन सही था..कोई तो फँसा रहा है
मगर कौन?

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"देखा,कामिनी जी..",शिवा बैठा था जबकि कामिनी बेचैनी से चहलकदमी कर रही
थी,"..कितना शातिर है वो.उसने वीरेन जी को भी फँसा दिया.अब तो आपको मुझपे
यकीन हो गया होगा की मैं सच कह रहा हू.",थोड़ी देर पहले हॉस्पिटल से दवा
से छेड़-छाड की बात को सही साबित करती रिपोर्ट मिलने की सारी खुशी काफूर
हो गयी थी & अब उसे बस वीरेन की चिंता सता रही थी.

"आप बस मुझे 1 मौका दीजिए उस कामीने को मैं अपने हाथो से सज़ा
दूँगा.",शिवा ने दाए हाथ के मुक्के को बाई हथेली पे मारा.

"नही शिवा,वो बहुत चालक है,उसे हम उसी के खेल मे हराएँगे.देविका जी को
उसपे बहुत भरोसा है,1 बार ये भरोसा टूट गया तो आधा काम हो गया समझो."

"मगर ये होगा कैसे?"

"थोड़ी जासूसी करनी पड़ेगी."

"तो अब मुझे सहाय एस्टेट जाना होगा?",मोहसिन मुस्कुराया.

"नही,मोहसिन तुम नही,इस बार ये काम मैं करूँगी.",वो शिवा से मुखातिब
हुई,"शिवा,इसमे मुझे तुम्हारी मदद चाहिए."

"ज़रूर कामिनी जी."

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रात के 11 बज रहे थे जब इंदर ने बंगल के पीछे रसोई के दरवाज़े को अपनी
ड्यूप्लिकेट चाभी से खोला & दबे पाँव अंदर हुआ.रोमा का भाई संजय भी आजकल
आया हुआ था & उपरी मंज़िल के गेस्ट रूम मे ही ठहरा था.देविका & रोमा के
कमरो के बीच 2 कमरे और थे जोकि मेहमआनो के लिए ही थे.इंदर दबे पाँव
सीढ़िया चढ़ने लगा.वो सीधा देविका के कमरे तक पहुँचा & उसका दरवाज़ा
धकेला.दरवाज़ा खुला था & फ़ौरन खुल गया.अंदर देविका बिस्तर पे लेटी
थी.दरवाज़ा खुलते ही उसने इंदर को देखा मगर उसकी आँखो या चेहरे पे कोई
भाव नही आया.

इंदर आगे बढ़ा & बिस्तर पे उसके बगल मे लेट गया & उसके बालो को सहलाने
लगा.देविका भी भी जैसे बुत बनी हुई थी.इंदर उसकी दाई तरफ लेटा था.इंदर ने
उसे उसकी दाई करवट पे किया & बाहो मे भर लिया & उसके बाल सहलाने लगा.दोनो
ने अभी तक 1 लफ्ज़ भी नही बोला था.इंदर बस उसे प्यार से थपकीया देता जा
रहा था.थोड़ी ही देर मे देविका नींद के आगोश मे थी.इंदर सवेरा होने तक
वैसे ही उसके साथ लेटा रहा.पौ फटने से पहले उसने देविका के बदन से अपनी
बाहे अलग की & जाने लगा की तभी देविका ने उसका हाथ पकड़ लिया.

इंदर चौंक पड़ा,उसे तो लगा था की देविका गहरी नींद मे है,"मत
जाओ.",प्रसून की मौत के बाद शायद देविका पहली बार कुच्छ बोली थी.इंदर
उसके करीब आया & प्यार से उसके माथे को सहलाने लगा.

"फ़िक्र मत करो कुछ दीनो बाद तुम्हे 1 पल के लिए भी खुद से जुदा नही
करूँगा.मगर आज नही.",देविका बिस्तर से उठी & उसके गले से लग गयी & उसके
सीने मे चेहरा छुपा फुट-2 के रोने लगी,"यहा से ले चलो
मुझे,इंदर.प्लीज़!!!!मैं यहा नही रहूंगी अब."

"ज़रूर देविका.बस थोड़ा इंतेज़ार करो.",इंदर उसे बाँहो मे भरे उसके बॉल
सहला रहा था.देविका अब उसपे और भी भरोसा करने लगी थी.उसके होंठो पे 1
शैतानी मुस्कान खेलने लगी & उसने देविका & ज़ोर से अपनी बाँहो मे कस
लिया.

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बदला पार्ट--44

गतान्क से आगे..
kamini ne tay kar liya tha ki vo police ko shiva ke bare me bata degi
taki vo jald se jald pakad me aaye.chaubey is waqt kahi estate me hi
chhan-been me mashgul tha & usne bola tha ki vapas jane se pehle vo
zarur us se mil ke jayega.tabhi uska mobile baj utha,"haan,mohsin
bolo?"

"madam,vo mil gaya hai magar aap yaha fauran aa jaiye."

"kyu,mohsin?"

"madam,shiva aapse kuchh kehna chahta hai."

"magar kya?"

"vo kehta hai ki aapke aane pe hi bolega lekin aapko fauran aana hoga."

"ok,main abhi aati hu.",kamini ne viren se ijazat li & apni car me
baith driver ko panchamahl vapas chalne ko kaha.

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chaubey ke hukm se estate ki sari lights jala di gayi thi & usne filmo
me istemal hone vali lights mangawa ke pure estae ko roshni se bhar
diya tha.chhoti ko kuchh bhanak lagi thi & vo cottage ke aas-paas ki
jhadiyo me ghum rahi thi.thodi der baad vo jhadiyo se nikal aage
badhne lagi.chaube ki bhi chhathi indriya use ye keh rahi thi ki abhi
koi aur surag bhi zarur milega.

chhoti ne cottage ko aane vale raste ko paar kiya & thodi door pe bane
pedo ke jhurmut ke beech ghus gayi.sare policewalo ne roshni ka rukh
udhar hi kar diya.pedo ke beechobeech chhoti apne agle panjo se zamin
khode ja rahi thi.sabhi dum sadhe use dekh rahe the.kuchh palo baad
chhoti ne chhota as gaddha kar diya tha & us gaddhe me kuchh chamak
raha tha jise dekh vo bhunk rahi thi.

chhotan chaubey aage badha & vo chamakti chiz uthai-vo 1 chhuri thi
magar rasoi ki chhuri nahi.uski size vaisi hi thi magar aakar
nahi.apne rumal se chaubey ne uski balde pe lagi mitti saaf ki & use
uspe lage khun ke jum chuke dhabbe saaf dikhai pade.

"sir,yehi hoga murder weapon.",hasan uske sath gaddhe ke kinare apne
panjo pe baitha tha.

"hmm....",chaube tezi se paan chaba raha tha....murder weapon to yehi
hai magar qatil ne ise yaha kyu dabaya?kahi aur kyu nahi?....ye to
lagta hai mano vo chahta hai ki hum use pakad len ya fir....chaubey
samajh raha tha ki aakhir qatil ka maqsad kya tha.usne chaku ko
forensic team ke hawale kiya & bungle ki or badh gaya.

bungle ke andar uski mulakat kamini se nahi hui,"viren ji,aap
soch-samajh ke bataiyega kya sach me aapke parivar ka koi dushman
nahi?"

"nahi,officer.bilkul nahi."

"hmm..",chaubey soch me pad gaya,"khair..aap itminan se sochiye & ho
sake to dono aurat se bhi puchhiye..",viren kuchh kehta is se pehle hi
chaube ne sue roka,"..humko pata hai unki halat,viren ji lekin aapke
bhatije ke qatil ko saja dilana bhi jaruri hai ki nahi & aapko 1 baat
bata du.jurm hone ke baad jitni der karenge utna hi mujrim ko bhagne
ka mauka milta hai.mera baat pe jara gaur kijiyega.achha ab chalte
hain.kal aayenge."

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"kya baat hai,mohsin?kya kehna chahta hai vo mujhse?",kamini mohsin ke
daftar pahunchi.

"aap khud hi puchhiye,madam.",mohsin use 1 dusre kamre me le gaya jaha
shiva 1 kursi se bandha tha.

"bolo shiva."

"aapko lagta hai maine kiya hai prasun ka qatl?"

"haan."

"aap galat hain,kamini ji."

"achha,to ye batao ki tum farzi bank khate ke zariye paise kyu chura
rahe the?",jawab me shiva zoro se hansne laga.teeno use hairat se
dekhne laga.

"kamini ji,agar churana hi chahta to main puri estate hathiya leta &
kisi ko pata bhi na chalta.un chand rupayo me kya rakha tha!",shiva ki
hnasi ruk gayi & vo bahut sanjida ho gaya,"..afsos ye nahi ki mujhe
chor samjha,ye bhi nahi ki mujhe prasun ka qatil samjha....afsos to ye
hai ki usne mujhe aisa samjha jise main apni zindagi se bhi zyada
chahta tha."

"tum devika ji ki baat kar rahe ho?"

"haan."

"dekho,shiva tumhari ye acting kuchh sabit nahi karti?"

"aapko asboot chahiye.vo bhi hai mere paas.",shiva ne gardan
ghumayi,"sardar ji,aapne meri talashi me jo bhi saman baramad kiya
zara madam ko dikhaiye.",sukhi ne 1 basket kamini ke samne rakhi.usme
1 mobile,1 wallet,kuchh kagaz & 1 dibiya pade the.dibiya dekh kamini
jaise sab samajh gayi,"ye kya hai?"

"aapke chehre se lagta hai ki aap is dibiya ke bare me janti
hain,kamini ji.",shiva muskuraya.

"vo zaruri nahi ye zaruri hai ki tum kya jante ho iske bare me?"

"ye mere boss Suren Sahay ki dawa hai kamini ji.aap is dawa ki janch
karaiye,isme zarur kuchh gadbad hai.mujhe pura yakin hai ki is dawa ki
asliyat se na sirf prasun balki uske pita ke qatl pe se bhi parda uth
jayega."

"kya?!!",mohsin & sukhi chaunk pade magar kamini pe koi asar nahi hua.

"ye bhi to ho sakta hai shiva ki tumne is dawa se chhedkhani ki ho &
ab pakde jane pe chalaki dikha rahe ho."

"ho sakta hai.aap mujhe yaha band rakhiye.mere kapde tak utar
lijiye.main is kamre me nanga band rahunga jab tak aapko mujhpe yakin
nahi ho jata.",shiva ki aankho me to sachchai jhalak rahi thi magar
kamini ko abhi bhi pura yakin nahi tha.

"tumhe ye dibiya kaise mili?"

"jo aadmi sahay parivar ko barbad kar raha hai vohi is dibiya ko fenk raha tha."

"tumne use pakda kyu nahi?kaun tha vo?mere paas pehle kyu nahi
aaye?police ke paas kyu nahi gaye?",kamini ne sawalo ki jhadi laga di.

"us shakhs ka naam hai Inder Dhamija..",& shiva sari baat tafsil se
kamini ko batane laga.

Kamini ne Shiva se dawa le li & use Mohsin Jamal ke aadmiyo ki nigrani
me 1 flat me rakh diya.Kamini ne Panchmahal Civil Hospital ke lab me
us dawa ko janch ke liye bheja.uski report aane me 2 din lagne
the.karib itna hi waqt Prasun ki post-mortem report & baki sabooto ki
forensic report aane me lagna tha.Chhotan Chaubey bhi us report ka
besabri se intezar kar raha tha.

prasun ki body hospital se chhutne pe Viren ne uska sara kriya-karm
kiya.shmashan ghat pe shayad hi koi aankh us waqt sukhi thi.kamini ne
abhi tak viren ko Inder ke bare me nahi bataya tha kyuki use darr tha
ki jazbati viren kahi inder ko khud saza na dene lage.aise me bahut
zyada chances the ki inder kanoon ke hatho se nikalne me kamyab ho
jata.

kamini ye bhi janti thi ki ab inder ke nishane pe Devika hogi magar
sath hi ye bhi ehsas tha use ki itni jaldi inder use koi nuksan nahi
pahuchayega.aakhir Roma bhi to thi ghar me.shiva ka sochna tha ki
inder pehle devika & fir roma ko kinare kaerga jaydad ko pane ke liye
magar kamini ka maanana tha ki inder uske pehle viren ko raste se
hatayega taki vo un dono aurato ki hifazat na kar sake.

kamini kitni sahi thi use ye bas 2 dino baad pata chalne wala
tha.prasun ki maut ke baad se viren estate me hi ruka tha & us din bhi
vo bungle ke drawing room me baitha kisi magazine ke panne palat raha
tha jab chhotan chaubey vaha dakhil hua.

"namaste,viren babu!kaise hain?"

"badhiya,officer.aap kaise hain?"

"hum bhi achhe hain & aaj aapse kuchh puchhne aaye hain?"

"kya?"

"ee chhuri ke bare me kuchh jante hain?"

"haan,ye to meri palette knife hai joki gum gayi thi."

"achha,gum gayi thi.haan bhai,khun karne ke baad hathyar to gum karna
hi padta hai."

"aapka matlab kya hai officer?",viren ki tyoriya chadh gayi.

"yehi ki aap mare hain prasun ko."

"kya bakwas karte ho?!!!!",viren ne chaubye ka gireban pakad
liya,"..main marunga apne bhatije ko..us masoom ko!",sath aaye Hasan &
abki hawaldaro ne use alag kiya.

"ab aap chillaiye chahe roiye humko to aapko shaq ke basis pe arrest
to karne padega.",chaubey pe jaise viern ki harkat ka koi asar hi nahi
hua tha,"..pehnao re sarkari kangan chacha ji ko."

"officer,tum bhul kar rahe ho....kisi ki chaal hai..koi fansa raha hai
mujhe!",drawing room ke darwaze pe khadi devika pe viren ki nazar gayi
to vo chup ho gaya,devika ki aankho me ghum ke alawa sirf nafrat
thi,"..devika..ye sab galat hai..maine nahi kiya ye sab!"

devika bas use ghurti rahi.chaubey ne use jeep me dala & thane le
gaya.bahar khada inder ye sab dekh man hi man muskura raha tha.hasan
jeep chala raha tha & chaubey uski bagal me baitha paan chaba raha
tha....kuchh bhi sahi nahi tha..mujrim humesha hathyar pehchanane se
inkar karta hai....viren sahi tha..koi to fansa raha hai magar kaun?

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"dekha,kamini ji..",shiva baitha tha jabki kamini bechaini se
chahalkadmi kar rahi thi,"..kitna shatir hai vo.usne viren ji ko bhi
fansa diya.ab to aapko mujhpe yakin ho gaya hoga ki main sach keh raha
hu.",thodi der pehle hospital se dawa se chhedchhad ki baat ko sahi
sabit karti report milne ki sari khushi kafoor ho gayi thi & ab use
bas viren ki chinta sata rahi thi.

"aap bas mujhe 1 mauka dijiye us kamine ko main apne hatho se saza
dunga.",shiva ne daye hath ke mukke ko bayi hatheli pe mara.

"nahi shiva,vo bahut chalak hai,use hum usi ke khel me
harayenge.devika ji ko uspe bahut bharosa hai,1 baar ye bharosa toot
gaya to aadha kaam ho gaya samjho."

"magar ye hoga kaise?"

"thodi jasusi karni padegi."

"to ab mujhe Sahay Estate jana hoga?",mohsin muskuraya.

"nahi,mohsin tum nahi,is baar ye kaam main karungi.",vo shiva se
mukhatib hui,"shiva,isme mujhe tumhari madad chahiye."

"zarur kamini ji."

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raat ke 11 baj rahe the jab inder ne bungle ke peechhe rasoi ke
darwaze ko apni duplicate chabhi se khola & dabe panv andar hua.roma
ka bhai Sanjay bhi aajkal aaya hua tha & upari manzil ke guest room me
hi thehra tha.devika & roma ke kamro ke beech 2 kamre aur the joki
mehmano ke liye hi the.inder dabe panv seedhiya chadhne laga.vo seedha
devika ke kamre tak phuncha & uska darwaza dhakela.darwaza khula tha &
fauran khul gaya.andar devika bistar pe leti thi.darwaza khulte hi
usne inder ko dekha magar uski aankho ya chehre pe koi bhav nahi aaya.

inder aage badha & bistar pe uske bagal me let gaya & uske baalo ko
sehlane laga.devika bhi bhi jaise but bani hui thi.inder uski dayi
taraf leta tha.inder ne use uski dayi karwat pe kiya & baaho me bhar
liya & uske baal sehlane laga.dono ne abhi tak 1 lafz bhi nahi bola
tha.inder bas use pyar se thapkiya deta ja raha tha.thodi hi der me
devika nind ke agosh me thi.inder savera hone tak vaise hi uske sath
leta raha.pau phatne se pehle usne devika ke badan se apni baahe alag
ki & jane laga ki tabhi devika ne uska hath pakad liya.

inder chaunk pada,use to laga tha ki devika gehri nind me hai,"mat
jao.",prasun ki maut ke baad shayad devika pehli bar kuchh boli
thi.inder uske karib aaya & pyar se uske mathe ko sehlane laga.

"fikr mat karo.luchh dino baad tumhe 1 pal ke liye bhi khud se juda
nahi karunga.magar aaj nahi.",devika bistar se uthi & uske gale se lag
gayi & uske seene me chehra chhupa phut-2 ke rone lagi,"yaha se le
chalo mujhe,inder.please!!!!main yaha nahi rahungi ab."

"zarur devika.bas thoda intezar karo.",inder use baho me bhare uske
baal sehla raha tha.devika ab uspe aur bhi bharosa karne lagi thi.uske
hotho pe 1 shaitani muskan khelne lagi & usne devika & zor se apni
baho me kas liya.

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आपका दोस्त राज शर्मा साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,मंदिर जाकर जाप भी कर
लेता हूँ ..मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी
कर लेता हूँआपका दोस्तराज शर्मा(¨`·.·´¨) Always`·.¸(¨`·.·´¨) Keep
Loving &(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !`·.¸.·´ -- raj

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