Saturday, October 23, 2010

कामुक-कहानियाँ बदला पार्ट--22

कामुक-कहानियाँ

बदला पार्ट--22

गतान्क से आगे...
कार का दरवाज़ा खोल कामिनी हाथ मे 1 पॅकेट थामे वीरेन के बंगल के अहाते
मे उतरी.10 दिन हो गये थे सुरेन सहाय की मौत को & इस बीच उसने वीरेन से
केवल फोन पे ही बात की थी & उसे वो बहुत मायूस लगा था लेकिन अब वक़्त आ
गया था की उसे उसकी मायूसी से बाहर लाया जाए.सीढ़िया चढ़ उसने मैं
दरवाज़े के बाहर लगी डोरबेल बजाई.

"हां....मैं आपको बाद मे फोन करता हू.",कान पे मोबाइल लगाए वीरेन ने दरवाज़ा खोला.

"खाना खाया?",कामिनी अंदर दाखिल हुई तो वीरेन ने दरवाज़ा बंद कर दिया.

"नही."

"मुझे पता था.",कामिनी ने साथ लाया पॅकेट खाने की मेज़ पे रख के
खोला,"..चलो बैठो मैं खाना निकालती हू.".साथ बैठ के खाना खाते हुए कामिनी
ने महसूस किया कि वीरेन अभी भी थोड़ा उदास था.उसने तय कर लिया की आज की
रात ही वो उसकी इस मायूसी को ख़त्म कर के रहेगी.

"वीरेन,कब तक ऐसे मायूस बैठे रहोगे?",खाना ख़त्म होते ही वो सीधे मुद्दे पे आई.

"मैं मायूस नही हू.",वीरेन ने नज़रे फेर ली.

"अच्छा!तुम्हारे चेहरे से तो ऐसा नही लगता."

"मेरी शक्ल ही ऐसी है."

"नही.बिल्कुल नही है.मेरी बात टालो मत..",कामिनी ने उसका चेहरा अपनी ओर
घुमाया,"..वीरेन जो हुआ अचानक & बहुत बुरा हुआ लेकिन क्या तुम्हारे
भाइय्या अभी तुम्हे इस हाल मे देख के खुश हो रहे होंगे?",भाई के ज़िक्र
ने वीरेन की आँखो मे पानी ला दिया,"..इस गम को दिल से निकालो वीरेन वरना
ये तुम्हे भी खा जाएगा."

"तुम..तुम ऐसा क्यू नही करते?"

"कैसा?"

"पैंटिंग करो..अपने ध्यान इन बातो से हटाओ & रंगो की दुनिया मे खो
जाओ..हां..यही ठीक रहेगा!",कामिनी खड़ी हुई & उसका हाथ पकड़ के उसे भी
खड़ा किया,"चलो..!"

वीरेन के स्टूडियो मे दाखिल हो कामिनी ने उसे उसके ईज़ल के पास खड़ा कर
उसके ब्रश उसके हाथ मे थमाए,"ये लो."

कामिनी उसके पीछे 1 कुर्सी खींच के बैठ गयी.वीरेन थोड़ी देर तक तो ऐसे ही
खड़ा रहा फिर उसने ऐसे ही आडी-तिर्छि लकीरे खींचना शुरू किया.थोड़ी ही
देर मे 1 जंगल की तस्वीर बन गयी थी.कामिनी ने गौर किया कि वीरेन अपने काम
मे डूब रहा था.वो खड़ी हुई,"वेरी गुड.अब मैं चलती हू.तुम पैंटिंग
करो.",वो मूडी.

"तुम कहा चली.",वीरेन ने जाती हुई कामिनी की दाई कलाई थाम ली.

"तुम पैंटिंग करो ना,मैं यहा क्या करूँगी?"

"जो तुमने यहा पिच्छली बार किया था.",वीरेन ने उसे खींचा तो कामिनी उसके
सीने से आ टकराई.उसका दिल खुशी से भर उठा था,इतनी जल्दी वीरेन अपने
पुराने अंदाज़ मे लौटेगा उसे पता ही नही था.वीरेन ने उसे सर से पाँव तक
निहारा,जुड़े मे बँधे बालो से सज़ा उसका खूबसूरत चेहरा अपने प्रेमी की
निगाहो की तपिश से लाल हो रहा था & गुलाबी सारी मे लिपटा उसका बदन जैसे
उसकी नज़रो से घबर खुद मे ही सिमटना चाह रहा था.कामिनी का सारी का पल्लू
उसके दाए कंधे से होता हुआ पीठ पे से घूम के उसके बाए कंधे पे रखा हुआ था
& वो इस वक़्त बिल्कुल गुड़िया सी लग रही थी.

"ऐसा रूप..ऐसा..हुस्न..",उसकी बाहे थाम वीरेन ने उसे अपने ईज़ल के बगल मे
खड़ा किया & उसपे से पुराना काग़ज़ हटा 1 बहुत बड़ी सी स्केच बुक टीका
दी.हाथ मे चारकोल लिए वो कामिनी का स्केच बनाने लगा.शर्मोहाया की मूरत के
इस स्केच की मदद से कल इतमीनान से पैंटिंग बनाएगा.स्केच तैय्यार होते-2
कामिनी के रूप ने उसे बेचैन करना शुरू कर दिया था.

स्केच ख़त्म होते ही उसने उसे बाहो मे भर लिया & चूमने लगा,"ओह्ह..क्या
करते हो..आराम से करो ना..ऊव्व..",उसने उसके बाए कान पे काट लिया
था.कामिनी ने हाथ को कान पे रख उसकी ओर प्यार भरे गुस्से से देखा,"मैं जा
रही हू..तुम बड़ी बदतमीज़ी कर रहे हो आज!"

"जवाब मे वीरेन ने उसकी कमर पे अपनी बाहे कस उसे खुद से बिल्कुल चिपका
लिया & उसके कान पे चूम लिया,"लो अब तो तमीज़ से पेश आ रहा हू.",दोनो
प्रेमी 1 दूसरे के आगोश मे 1 दूसरे के प्यासे होंठो की प्यास बुझाने
लगे.वीरेन का लंड उसके शॉर्ट्स से निकलने को बेताब हो रहा था & कामिनी के
पेट मे चुभ रहा था.उसके हाथ अपनी प्रेमिका के बदन को सहला रहे थे.कामिनी
उसकी करीबी से मदहोश हो गयी थी,उसकी आँखे बंद हो गयी थी & उसकी उंगलिया
प्यार से वीरेन के बालो से खेल रही थी.वो उसके सर को अपने गले पे दबा रही
थी.

वीरेन जोश मे कुच्छ ज़्यादा आगे हो उसे चूमने लगा तो वो लड़खड़ाई & पीछे
के दीवान पे गिर पड़ी.वीरेन ने उसे फ़ौरन थामा & उसके साथ दीवान पे बिठा
उसे चूमने लगा.इस अफ़रा-तफ़री मे कामिनी के कंधो से उसका आँचल ढालक गया &
जो नज़ारा वीरेन ने देखा उसने उसके होश उड़ा दिए.

कामिनी ने स्ट्रेप्लेस्स ब्लाउस पहना था जोकि उसके सीने को च्छूपा रहा था
यानी की उसके कंधे & उसकी छातियो का हिस्सा पूरी तरह से नंगा
था,"वाउ..!",वीरेन के मुँह से बेसखता निकल गया.उसने अपने हाथ उसके मखमली
कंधो पे फिराए तो कामिनी की आग और भड़क उठी.वीरेन झुक के उसके कंधे चूमने
लगा.उसके होंठ कामिनी के चेहरे & होंठो से होते हुए उसकी सुरहिदार गर्दन
पे आते & फिर नीचे हो उसके कंधो & फिर उसकी छातियो से उपर के हिस्से पे
घूमने लगते.

कामिनी का दिल कर रहा था की वो अब बस उसके ब्लाउस को हटा उसकी चूचियो को
अपने मुँह मे भर ले लेकिन वीरेन ऐसा कुच्छ नही कर रहा था.वो जानती थी की
वो उसे तडपा-2 के पागल कर देगा & उसके बाद जब वो झदेगी तब जो खुशी उसे
मिलेगी उसका कोई मुकाबला नही होगा.कामिनी ने अपने अपिर उपर दीवान पे चढ़ा
लिया & उन्हे मोड़ के अपनी आएडियो को अपनी गंद के नीचे दबा के बैठ
गयी.सिरेन उसे बाहो मे भरे वैसे ही चूमे जा रहा था.

चूमते-2 वीरेन ने उसकी कलाइया पकड़ दोनो हाथ ऊपर हवा मे उठा दिए.ऐसा करने
से उसकी चूचिया जोकि जोश के मारे और बड़ी हो गयी थी,उसके ब्लाउस के उपर
से बाहर निकल खुली हवा मे सांस लेने को बेताब हो उठी मगर ब्लाउस के बंधन
ने उन्हे ऐसा नही करने दिया & उनका बस थोड़ा सा हिस्सा ही बाहर आ
पाया.वीरेन उसकी कलाईयो को अपने हाथो से हवा मे थामे उसकी जीभ से जीभ
लड़ा रहा था & कामिनी की चूत से उसका रस बहने लगा था.उसने सोचा की अब
वीरेन उसके कपड़े उतारना शुरू करेगा मगर वो चौंक पड़ी जब वीरेन उसे
छ्चोड़ बिस्तर से उठ गया.

"ऐसे ही रहना.हिलना मत.",वो स्केच बुक के अगले पन्ने पे जल्दी-2 हाथ
चलाने लगा.कामिनी के चेहरे पे च्छाई खुमारी मे थोड़ा सा खिज का भाव मिला
हुआ था & यही वीरेन को चाहिए था.हवा मे हाथ उठाए भरे शरीर वाली कामिनी
अभी खजुराहो की मूर्ति जैसी लग रही थी.वीरेन की निगाहे उसके ब्लाउस के
नीचे दिख रहे उसके सपाट पेट पे पड़ी तो उसका लंड और तन गया.उसकी नाभि उसे
उसकी चूत की याद दिला रही थी.

स्केत्च बना वो वापस अपनी प्रेमिका के पास आया तो उसने उसे नाराज़ हो परे
धकेल दिया & पीठ उसकी तरफ कर दीवान के उठे हिस्से पे हाथ & उनपे अपना
मुँह रख बैठ गयी,"..मैं तो बस 1 मूरत हू तुम्हारे लिए..जिसकी पैंटिंग
बनाते रहो!"

"मूरत तो तुम हो..",वीरेन के मज़बूत बाजुओ ने उसे अपनी ओर घुमा
लिया,"..अजंता की मूरत हो तुम.",उसकी गुदाज़ बाहो को पकड़ उसने उसका माथा
चूम लिया,"कहा था ना,तुम्हारा हर अंदाज़,हर पहलू मैं कॅन्वस पे उतारना
चाहता हू..कामिनी..तुम कितनी खूबसूरत..कितनी हसीन हो..ये तुम्हे क्या
पता..ये पैंटिंग मेरी सबसे बेहतरीन पेंटिंग्स होंगी लेकिन अगर तुम्हे नही
पसंद तो ठीक है मैं बस तुम्हारी इबादत करता हू,अपनी देवी की तस्वीर नही
बनाता हू.",वो झुक के उसके सीने पे चूमने लगा.वो अभी भी खड़ा था बस उसका
दाया घुटना सहारे के लिए दीवान पे था.ऐसे मे उसका लंड कामिनी के चेहरे के
पास ही था & वो उसे पकड़ने के लिए बेचैन हो उठी.

"उम्म..अब ज़्यादा बाते मत बनाओ.अच्छी तरह जानते हो की मैं तुम्हे कभी
मना नही करूँगी.",कामिनी नेआपना हाथ उसकी टी-शर्ट मे घुसा उसके बालो भरे
सीने पे मचलते हुए हाथ फिराए.वीरेन ने फ़ौरन अपनी शर्ट निकाल दी तो
कामिनी दीवान के उठे हिस्से से उपर उठाई & उसे अपनी ओर खींच लिया.उसकी
पीठ पे बेचैनी से हाथ फिराते हुए उसके सीने पे वो अपने हाथो के निशान
छ्चोड़े जा रही थी.उसके निपल्स को अपने नखुनो से च्छेदते हुए जब उसने
अपने तपते होंठो से उसके सीने को चूमा तो वीरेन का लंड उसकी चूचियो से दब
गया.

अब कामिनी के बर्दाश्त की हद टूट गयी.उसने उसकी शॉर्ट्स को खींच कर नीचे
किया & अपना दाया हाथ उसकी पीठ पे लगाए हुए बाए मे लंड को थाम लिया.उसकी
झांतो मे उंगलिया फिराते हुए उसने उसके आंडो को दबाया तो वीरेन ने आँखे
बंद कर मज़े मे आह भरी.उसने कामिनी के चेहरे को ठुड्डी पकड़ उपर किया &
झुक के उसे चूम लिया.थोड़ी देर चूमने के बाद कामिनी ने अपने गुलाबी होंठ
उसके लंड के गिर्द लपेट दिए.

वीरेन ने उसके रेशमी बालो को जुड़े के बंधन से आज़ाद किया & कुच्छ लाटो
को पकड़ अपने लंड पे लपेट दिया.कामिनी मुस्कुराइ & अपने बालो से उसके लंड
को लपेट हिलाते हुए उसका लंड चूसने लगी.वीरेन प्यार से उसके सर & पीठ पे
हाथ फेर रहा था.कामिनी के मुलायम बॉल & जीभ उसके लंड को जन्नत की सैर करा
रहे थे.कामिनी ने सोचा की अब वो या तो उसके मुँह मे झाड़ जाएगा या फिर अब
फ़ौरन उसकी चुदाई मे लग जाएगा मगर उसे वीरेन के सब्र का अंदाज़ा नही
था.काफ़ी देर बाद वीरेन ने लंड मुँह से खींचा & झुक के उसके साथ दीवान पे
बैठ गया.

अपनी बाँहो मे भर वो उसे फिर से चूमने लगा.कामिनी की ज़ुबान पे उसके
प्रेकुं का स्वाद था.उसके हाथ कामिनी की कमर के बगल के मांसल हिस्से को
दबा रहे थे & कामिनी अब बेचैनी से अपनी जांघे रगड़ अपनी चूत को सांत्वना
दे रही थी.कामिनी के ब्लाउस मे हुक्स की जगह ज़िप थी & स्रर्र्र्ररर की
आवाज़ से वीरेन के हाथ ने 1 झटके मे ही उसे खोल दिया.ब्लाउस जिस्म से अलग
होते ही गुलाबी स्ट्रेप्लेस्स ब्रा मे कामिनी के सीने के मस्त उभार उसकी
आँखो के सामने छलक उठे.

वो झुका & ब्रा के उपर से झलक रही उसकी आधी उपरी चूचियो को चूमने
लगा.अपने दाँत से उसने जब हल्के से उन्हे काटा तो कामिनी की चूत और कसमसा
उठी.वो उसकी कमर के मांसल हिस्से को सहलाते हुए बस उसके सीने पे वैसे ही
चूमे जा रहा था.जब कामिनी ने देखा की वो ब्रा खोलने का कोई जतन नही कर
रहा है तो उसने खुद ही अपने हाथ पीछे ले जाके ब्रा के हुक्स खोल अपनी
चूचियो को आज़ाद कर दिया.

वीरेन ने उसकी च्चालच्छालती चूचियो को हाथो मे पकड़ उसपे जैसे ही अपनी
जीभ फिराई कामिनी की चूत मे मानो कोई बाँध टूट पड़ा & उसकी चूत से रस की
धारा बह चली,"उउन्न्ह...उऊन्ह....!",कराहते हुए उसने वीरेन के सर को अपने
सीने पे भींच लिया & बेचैनी से कमर हिला,जंघे रगड़ते हुए झड़ने लगी.वीरेन
ने अपनी बाई बाँह उसके गले मे डाल उसे थाम लिया & दाए से उसकी सारी उपर
उठाने लगा.सारी कमर तक उठा वो उसकी टाँगो & गोरी जाँघो को सहलाने लगा.अभी
कामिनी पूरी तरह से उबरी भी नही थी की वीरेन ने उसे दोबारा मस्त कर दिया.

उसके नर्म होंठ चूमते हुए वो उसकी जंगो के बीच हाथ घुसाए था.कामिनी ने भी
अपनी जंघे भींच उसके हाथ को क़ैद कर लिया था.वीरेन का बाया हाथ उसकी पीठ
पे घूम रहा था.वीरेन का हाथ अब उसकी पॅंटी तक जा पहुँचा था & उसकी
उंगलिया पॅंटी के किनारे से अंदर दाखिल हो रही थी.कामिनी ने कमर को थोड़ा
आगे उचका उंगलियो को चूत के अंदर आने का न्योता दिया जिसे उन्होने बड़ी
खुशी से कबूला.वीरेन की उंगलिया उसकी चूत के अंदर-बाहर होने लगी & उसकी
ज़ुबान उसके मुँह के.कामिनी अब जोश से पागल हो रही थी & अपनी कमर हिलाए
जा रही थी.उसकी चूत मे बहुत तनाव बन गया था & वीरेन के उंगलियो की
रफ़्तार तेज़ होते जा रही थी.

अचानक कामिनी ने किस तोड़ दी & अपने होंठ "ओ" की शक्ल मे गोल कर दिए.उसकी
आँखे बंद हो गयी थी & ऐसा लग रहा था मानो वो बेहोश हो गयी है जबकि
हक़ीक़त ये थी की वो दोबारे झाड़ रही थी.वीरेन ने उसे हौले से दीवान पे
लिटाया & उसकी सारी & पेटिकोट को खोलने लगा.कामिनी ने आँखे खोली,उसका
चेहरा देखने पे ऐसा लगता था मानो वो नशे मे डूबी थी.वो दीवान पे पड़ी
अपने प्रेमी के हाथो नंगी होती रही.जब वीरेन ने उसकी चूत से चिपकी उसकी
गीली पॅंटी खींची तो उसने अपनी कमर उठा उसकी मदद की.

उसे लिटा के वीरेन वापस अपने ईज़ल के पास आया & जल्दी-2 कामिनी का 1 और
स्केच बनाने लगा.कामिनी के जिस्म मे बहुत सुकून भरा था मगर अभी भी उसे
वीरेन के लंड इंतेज़ार था.उसने अपने प्रेमी को देखा जोकि उसकी खूबसूरती
कॅन्वस पे उतारने मे मगन था.उसकी नज़रे नीची हुई & उसने उसका तना लंड
देखा.उसके दिल मे 1 कसक सी उठी.

रात बीती जा रही थी & उसके जिस्म का लुत्फ़ उठमने के बजाय ये आदमी बस
अपनी कूची चलाए जा रहे था!..बेवकूफ़ कही का!कामिनी दीवान से उठी,"..अरे
बस थोड़ी देर और वैसे ही लेटी रहो ना!",वीरेन ने उस से गुज़ारिश की मगर
कामिनी उसे अनसुना कर उसके पास आ खड़ी हो गयी.

उसने वीरेन के गले मे बाहे डाली & उसके होंठो पे अपने होंठ कस दिए.वीरेन
समझ गया की अब इस रात वो उसे और अपिंटिंग नही करने देगी.उसने भी अपनी
बाहे उसकी कमर मे डाल दी & उसकी गंद की भारी-2 फांको को मसलते हुए उसकी
किस का जवाब देने लगा.जैस-2 किस की गर्मजोशी बढ़ रही थी वैसे-2 कामिनी के
उपर च्छाई खुमारी मे भी इज़ाफ़ा हो रहा था.वो अपने बदन को बेचैनी से
वीरेन के जिस्म से रगड़ रही थी.वीरेन का लंड भी अब उसकी चूत से मिलने को
बेचैन हो गया था.अब वीरेन ने और देर करना ठीक नही समझा.

वो थोड़ा झुका & कामिनी की बाई जाँघ को उठा लिया.कामिनी समझ गयी की अब
उसका इंतेज़ार ख़त्म हुआ,उसने अपनी बाहे उसके कंधो पे टीका दी.वीरेन ने
वैसे ही झुके हुए अपना लंड उसकी चूत मे घुसाया,"ओह्ह्ह...!",कामिनी को
हल्का दर्द हुआ.

उसके आँखे बंद कर अपने होंठ भींच लिए.उसकी चूत अभी वीरेन के लूंबे & बेहद
मोटे लंड की आदि नही हुई थी.लंड पूरा समाते ही वीरेन ने उसकी जंघे पकड़
अपनी गोद मे उठा लिया & उसे ले दीवान पे बैठ गया.बैठते ही कामिनी ने उसे
चूमते हुए अपनी कमर हिलाकर चुदाई शुरू कर दी.वीरेन के हाथ कभी उसकी कमर
से खेलते तो कभी गंद की फांको को दबाते.जब वो हाथ आगे ला उसके कड़े
निपल्स को मसल उसकी चूचिया दबाता तब उसके बदन मे जैसे बिजलिया दौड़ जाती.

वीरेन की गोद मे बैठी उस से चुद्ति कामिनी को उसका लंड सीधा अपनी कोख पे
चोट करता महसूस हो रहा था.जब भी ऐसा होता उसे बहुत मज़ा आता.काफ़ी देर तक
वीरेन वैसे ही बैठे उस से खेलता रहा.अब तक कामिनी कोई 3 बार झाड़ चुकी थी
& उसके बदन मे बिल्कुल भी ताक़त नही बची थी मगर वीरेन था की झड़ने का नाम
ही नही ले रहा था.ऐसा थकाने वाला प्रेमी उसे पहली बार मिला था मगर इस
थकान मे जो मज़ा था उसका कोई मुक़ाबला नही था.

"..आअन्न...आअननह...!",कामिनी झाड़ के पीछे दीवान पे गिर गयी.अब वीरेन ने
पैंतरा बदला & अपने घुटने मोड़ उनपे बैठ उसने उसकी टाँगे थाम ली.कामिनी
को पता था की अब वो झदेगा मगर जब तक वो 1 बार और ना झाड़ जाए.वीरेन के
धक्के शुरू हो गये & कामिनी की आहे भी.उसने अपना मुँह बाई तरफ फेर लिया &
अपना बाया हाथ उस के अपने होंठो पे रख लिया.वीरेन पूरा लंड बाहर खींचता &
फिर अंदर जड़ तक घुसा देता.उसके हाथ कभी उसकी चूचिया मसलते तो कभी चूत के
दाने को.उसके नर्म पेट से उसका दाया हाथ घूमता हुआ उसके चेहरे पे पहुँचा
& उसकी उंगलिया उसके होंठो को सहलाने लगी.

कामिनी सिहर उठी & उसने उन उंगलियो को अपने मुँह मे ले लिया & चूसने
लगी.वीरेन का लंड उसकी चूत को फिर से पागल कर रहा था & वो 1 बार फिर से
अपने मस्ती के अंजाम की ओर बढ़ रही थी.वो वीरेन के धक्को का पूरा लुत्फ़
उठा रही थी की तभी वीरेन ने लंड बाहर निकाल लिया,".आहह..क्या करते
हो?",उसके चेहरे पे नाराज़गी सॉफ झलक रही थी,"..जल्दी डालो ना..!"

वीरेन बस मुस्कुरा रहा था,"..ओह्ह..वीरेन..क्यू तड़पाते हो?!!..जल्दी से
डालो..प्लेआसीए!!!",कामिनी रुआंसी हो गयी.वीरेन ने लंड को दाए हाथ मे
लिया & उसकी चूत पे थपथपाया,"..ऊव्व..".कामिनी मस्ती मे पागल हो कमर
उचकाने लगी,"..आँह..आँह...डालो ना..",वो लंड को पकड़ने की कोशिश करने लगी
मगर उसका हाथ पकड़ के वीरेन ने उसे रोक दिया & उसके दाने पे लंड से मारने
लगा,"..ऊव्व..ऊव्व...आनंह..आँह...!"

कामिनी की आहे कमरे मे क्या पूरे बंगल मे गूँज रही थी.उसकी मस्ती अब उसके
सर पे पूरा चढ़ गई थी & जैसे ही वीरेन ने देखा की वोंझड़ने वाली है उसने
लंड अंदर घुसेड दिया & अपनी प्रेमिका के उपर लेट गया.कामिनी ने उसे अपनी
बाहो & टाँगो मे कस लिया & नीचे से बेचैनी से कमर हिलाने
लगी,"ओह्ह..वीरेन..हा..हां...करते..रा..हो..का..रते...रा..हो...आअनह...आनह...!",1
दूसरे से गुत्था-गुत्था दोनो प्रेमी ! दूसरे को चूमते 1 दूसरे मे सामने
की कोशिश करते हुए झाड़ गये.कामिनी की चूत आज वीरेन के लंड पे कुच्छ
ज़्यादा ही कस गयी थी & उसकी भी आहे निकल पड़ी थी.उसके लंड से उसके गाढ़े
वीर्या की धार काई पॅलो तक कामिनी की चूत मे छूटती रही.

आज से ज़्यादा मज़ा कामिनी को चुदाई मे कभी नही आया था.उसके दिल मे अपने
प्रेमी के लिया बहुत सारा प्यार उमड़ आया था.उसने उसके सर को थाम उसे चूम
लिया.चाहती तो थी की वो उसे अपने दिल मे उमड़ रही सारी बाते उस से कह दे
मगर उसकी थकान ने उसे इस लायक नही छ्चोड़ा था.उसकी आँखे मूंद गयी & वो
गहरी नींद मे सो गयी.


प्रसून सो रहा था & उसके बगल मे उसकी मा लेटी थी जिसकी आँखो मे नींद का
नामोनिशान नही था.कर्वते बदलती देविका को हर रात की तरह इस रात भी आने
वाले कल की चिन्ताओ ने आ घेरा था..क्या वो सब कुच्छ बखूबी संभाल
पाएगी?..क्या उसका बेटा उसके जाने के बाद भी महफूज़ रहेगा?..

तभी प्रसून नींद मे जैसे कराहने लगा.देविका उठके उसे देखने लगी,प्रसून का
बदन जैसे झटके खा रहा था & उसके मुँह से उउन्न्ह..उऊन्ह की आवाज़े आ रही
थी..वो बहुत घबरा गयी & वो प्रसून को झकझोरने ही वाली थी की तभी उसके
होंठो पे मुस्कान फैल गयी-प्रसून के पाजामे पे 1 गीला सा धब्बा उभर रहा
था जोकि पल-2 गहरा रहा था.उसका बेटा नींद मे झाड़ रहा था.

प्रसून की नींद खुल गयी थी.ये देख देविका ने फ़ौरन आँखे बंद कर ली & सोने
का नाटक करने लगी.प्रसून हैरत से अपने पाजामे को देख रहा था,उसे बहुत
शर्म आ रही थी.वो उठा & झट से बाथरूम मे घुस गया.देविका भी उसके पीछे-2
दबे पाँव गयी.

बाथरूम के अंदर पाजामा उतारे खड़ा प्रसून अचरज से अपने लंड को देख रहा
था.कुच्छ रोज़ से ये अजीब बात हो रही थी जोकि प्रसून को 1 बहुत बड़ी
बीमारी की निशानी लग रही थी.पहेल तो उसने सोचा था की वो नींद मे पेशाब कर
देता है मगर ये पेशाब नही था,ये तो अजीब सा चिपचिपा सा थूक...नही..थूक बस
गीला होता था..ये तो गोंद की तरह..नही..इतना भी चिपचिपा नही था..क्या था
ये?

देविका ने बेटे का लंड देखा,काली झांतो से घिरा उसका लंड उसके पिता से
कही ज़्यादा बड़ा था.प्रसून लंड धो रहा था तो देविका वैसे ही दबे पाँव
वापस लौट गयी.1 बात तो तय थी की प्रसून की मर्दानगी मे कोई कमी नही थी.अब
बस उसे ये समझना था की इस मर्दानगी का इस्तेमाल कैसे & क्यू करते हैं?

परेशान हाल प्रसून ने अपना पाजामा बदला & आके मा के बगल मे सो गया.उसका
दिल था तो बहुत घबराया हुआ,उसकी समझ मे नही आ रहा था की इस बारे मे किस
से बात करे.उस बेचारे को क्या खबर थी की उसकी मा को सब पता चल गया था &
वो कल ही उस से बात कर उसके मन के सभी शुबहे दूर करने वाली थी.

कोई और औरत होती तो अपने बेटे को नींद मे झाड़ते देख उस से कही ज़्यादा
शर्म मे डूब जाती & उस से बात करना तो दूर उस बात के बारे मे फिर कभी
सोचना भी नही पसंद करती मगर प्रसून कोई आम,समझदार लड़का तो था नही &
देविका तो कही से भी आम औरत नही थी.उस हौसलेमंद औरत ने ये फ़ैसला कर लिया
था की कारोबार के साथ-2 अपने बेटे की ज़िंदगी को भी सावरेंगी & इसके लिए
वो हर बात के लिए तैय्यार थी.

थोड़ी देर प्रसून फिर से नींद की गोद मे चला गया था मगर देविका भी भी
जागी हुई थी.तभी कमरे का दरवाज़ा खुला & शिवा अंदर दाखिल हुआ.देविका उसे
आते देख रही थी.वो आया & उसके बगल मे बैठ गया & उसका हाथ थाम लिया.देविका
ने भी अपने हाथ की उंगलिया उसकी उंगलियो मे फँसा दी.

"ठीक हो?",शिवा ने बड़े प्यार से अपनी प्रेमिका के सर पे हाथ फेरा.जवाब
मे देविका ने हा मे सर हिलाया.

"ज़रा भी परेशान मत होना,मैं हू ना.",शिवा धीमी आवाज़ मे बोल रहा था की
कही प्रसून जाग ना जाए.देविका को उसकी आँखो मे खुद के लिए प्यार & चिंता
नज़र आई.वो उसके हाथ थामे हुए उठी & दूसरे हाथ से उसके चेहरे को
सहलाया.दोनो प्रेमी 1 दूसरे की आँखो मे झाँक रहे थे.1 दूसरे की आँखो मे
झाँकते हुए कब दोनो 1 दूसरे के गले से लग गये उन्हे पता भी नही चला.

"श,शिवा..!",देविका की आँखो से आँसुओ की धार बह चली.

"नही,देविका,नही..चुप हो जाओ.",शिवा उसके खूबसूरत चेहरे को हाथो मे भर
उसके आँसुओ को चूम रहा था लेकिन उसकी हमदर्दी ने शायद देविका के अंदर का
बाँध तोड़ दिया था & उसकी रुलाई तेज़ हो रही थी.शिवा ने उसे गोद मे उठाया
& जल्दी से उस कमरे से निकल गया,अगर प्रसून उठ जाता तो बड़ी परेशानी
होती.कमरे से निकल वो देविका के कमरे की ओर जाने लगा तो उसने उसे रोक
दिया,"नही,वाहा नही.",अब वो फुट-2 के रो रही थी मगर शिवा ने उसकी बात नही
मानी & उसे वही ले गया.

उसके बिस्तर पे उसे बिठा के वो खुद भी उसकी दाई तरफ बैठ गया & उसे बाँहो
मे भर चुप करने लगा,"कब तक इस कमरे से भगोगी?जानता हू,तुम्हे कैसा लगता
होगा मगर इस तरह से भागने से तो नही होगा..हूँ..",आँसुओ से भीगे उसके
चेहरे को उसने अपनी बाँह से उठाया,"..तुम्हे बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी उठानी
है अभी & जानती हो अगर 1 बार भी कही कमज़ोर पड़ी तो फिर तुम्हारा दिल हर
बार तुम्हे पीछे खींचेगा..",देविका की रुलाई अब धीमी हो गयी थी.

"..& पीछे हटना बहुत आसान होगा.तुमको कोई परेशानी नही होगी मगर 1 दिन सब
कुच्छ तुम्हारे हाथ से निकल जाएगा & तुम पछ्तओगि.",उसकी बातो ने देविका
के उपर जादू सा असर किया..नही!ये सब वो खोने नही देगी..सब उसका है सिर्फ़
उसका!

"..इसलिए अब इस कमरे से भागना छ्चोड़ो.अगर प्रसून को साथ सुलाना है तो
उसे यहा बुलाओ मगर तुम यही सोयोगि.",शिवा उसकी आँसुओ से लाल आँखो मे झाँक
रहा था.वो झुका & उसने उसके गालो पे गिरे आसुओं को अपने लाबो से पोंच्छ
दिया.देविका को उस लम्हे उसपे बहुत प्यार आया.उसने उसे बाहो मे जाकड़
लिया & उसके चेहरे को बेतहाशा चूमने लगी,"आइ लव यू,शिवा!..माइ
डार्लिंग!..माइ जान.. आइ लव यू!"

दोनो प्रेमी 1 दूसरे मे खोने लगे.थोड़ी ही देर मे दोनो बिस्तर पे नंगे 1
दूसरे से गुत्थमगुत्था थे.देविका को अब याद भी नही था की बस चंद दीनो
पहले इसी बिस्तर पे उसके उपर,उसकी चूत मे लंड डाले उसका पति मर गया
था.उसे बस इस लम्हे का होश था जिसमे वो बिस्तर पे पड़ी थी & उसका
हटता-कटता प्रेमी उसकी टाँगो के बीच लेटा उसकी चूत चाट रहा था.

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क्रमशः...................


BADLA paart--22

gataank se aage...
car ka darwaza khol kamini hath me 1 packet thame viren ke bungle ke
ahate me utri.10 din ho gaye the suren sahay ki maut ko & is beech
usne viren se kewal fone pe hi baat ki thi & use vo bahut mayus laga
tha lekin ab waqt aa gaya tha ki use uski mayusi se bahar laya
jaye.seedhiya chadh usne main darwaze ke bahar lagi doorbell bajayi.

"haan....main aapko baad me fone karta hu.",kaan pe mobile lagaye
viren ne darwaza khola.

"khana khaya?",kamini andar dakhil hui to viren ne darwaza band kar diya.

"nahi."

"mujhe pata tha.",kamini ne sath laya packet khane ki mez pe rakh ke
khola,"..chalo baitho main khana nikalti hu.".sath baith ke khana
khate hue kamini ne mehsus kiya ki viren abhi bhi thoda udas tha.usne
tay kar liya ki aaj ki raat hi vo uski is mayusi ko khatm kar ke
rahegi.

"viren,kab tak aise mayus baithe rahoge?",khana khatm hote hi vo
seedhe mudde pe aayi.

"main mayus nahi hu.",viren ne nazre fer li.

"achha!tumhare chehre se to aisa nahi lagta."

"meri shakl hi aisi hai."

"nahi.bilkul nahi hai.meri baat taalo mat..",kamini ne uska chehra
apni or ghumaya,"..viren jo hua achanak & bahut bura hua lekin kya
tumhare bhaiyya abhi tumhe is haal me dekh ke khush ho rahe
honge?",bhai ke zikr ne viren ki aankho me pani la diya,"..is gham ko
dil se nikalo viren varna ye tumhe bhi kha jayega."

"tum..tum aisa kyu nahi karte?"

"kaisa?"

"painting karo..apne dhyan in baato se hatao & rango ki duniya me kho
jao..haan..yehi thik rahega!",kamini khadi hui & uska hath pakad ke
use bhi khada kiya,"chalo..!"

viren ke studio me dakhil ho kamini ne use uske easel ke paas khada
kar uske brush uske hath me thamaye,"ye lo."

kamini uske peechhe 1 kursi khinch ke baith gayi.viren thodi der tak
to aise hi khada raha fir usne aise hi aadi-tirchhi lakire khinchna
shuru kiya.thodi hi der me 1 jungle ki tasvir ban gayi thi.kamini ne
gaur kiya ki viren apne kaam me dub raha tha.vo khadi hui,"very
good.ab main chalti hu.tum painting karo.",vo mudi.

"tum kaha chali.",viren ne jati hui kamini ki dayi kalai tham li.

"tum painting karo na,main yaha kya karungi?"

"jo tumne yaha pichhli baar kiya tha.",viren ne sue khincha to kamini
uske seene se aa takrayi.uska dil khushi se bhar utha tha,itni jaldi
viren apne purane andaz me lautega use pata hi nahi tha.viren ne use
asr se panbv tak nihara,jude me bandhe baalo se saja uska khubsurat
chehra apne premi ki nigaho ki tapish se laal ho raha tha & gulabi
sari me lipta uska badan jaise uski nazro se ghabar khud me hi simatna
chah raha tha.kamini ka sari ka pallu uske daye kandhe se hota hua
pith pe se ghum ke uske baye kandhe pe rakha hua tha & vo is waqt
bilkul gudiya si lag rahi thi.

"aisa roop..aisa..husn..",uski baahe tham viren ne use apne easel ke
bagal me khada kiya & uspe se purana kagaz hata 1 bahut badi si sketch
book tika di.hath me charcoal liye vo kamini ka sketch banae
laga.sharmohaya ki murat ke is sketch ki madad se kal itminan se
painting banayega.sketch taiyyar hote-2 kamini ke roop ne use bechain
karna shuru kar diya tha.

sketch khatm hote jhi usne use baaho me bhar liya & chumne
laga,"ohh..kya karte ho..aaram se karo na..ooww..",usne uske baye kaan
pe kaat liya tha.kamini ne hath ko kaan pe rakh uski or pyar bhare
gusse se dekha,"main ja rahi hu..tum badi badtamizi kar rahe ho aaj!"

"jawab me viren ne uski kamar pe apni baahe kas use khud se bilkul
chipka liya & uske kaan pe chum liya,"lo ab to tamiz se pesh aa raha
hu.",dono premi 1 dusre ke agosh me 1 dusre ke pyase hotho ki pyas
bujhane lage.viren ka lund uske shorts se nikalne ko betab ho raha tha
& kamini ke pet me chubh raha tha.uske hath apni premika ke badan ko
sehla rahe the.kamini uski karibi se madhosh ho gayi thi,uski aankhe
band ho gayi thi & uski ungliya pyar se viren ke baalo se khel rahi
thi.vo uske sar ko apne gale pe daba rahi thi.

viren josh me kuchh zyada aage ho use chumne laga to vo ladkhadayi &
peechhe ke diwan pe gir padi.viren ne use fauran thama & uske sath
diwan pe abith use chumne laga.is afra-tafri me kamini ke kandho se
uska aanchal dhalak gaya & jo nazara viren ne dekha usne uske hosh uda
diye.

kamini ne strapless blouse pehna tha joki uske seene ko chhupa raha
tha yani ki uske kandhe & uski chhatiyo ka hissa puri tarah se nanga
tha,"wow..!",viren ke munh se besakhta nikal gaya.usne apne hath uske
makhmali kandho pe firaye to kamini ki aag aur bhadak uthi.viren jhuk
ke uske kandhe chumne laga.uske honth kamini ke chehre & hontho se
hote hue uski surahidar gardan pe aate & fir neeche ho uske kandho &
fir uski chhatiyo se upar ke hisse pe ghumne lagte.

kamini ka dil kara raha tha ki vo ab bas uske blouse ko hata uski
choochiyo ko apne munh me bhar le lekin viren aisa kuchh nahi kar raha
tha.vo janti thi ki vo use tadpa-2 ke pagal kar dega & uske baad jab
vo jhadegi tab jo khushi use milegi uska koi mukabla nahi hoga.kamini
ne apne apir upar divan pe chadha liya & unhe mod ke apni aediyo ko
apni gand ke neeche daba ke baith gayi.ciren use baaho me bahre vaise
hi chume ja raha tha.

chumte-2 viren ne uski kalaiya pakad dono hath uapr hawa me utha
diye.aisa karne se uski choochiya joki josh ke mare aur badi ho gayi
thi,uske blouse ke upar se bahar nikal khuli hawa me sans lene ko
betab ho uthi magar blouse ke bandhan ne unhe aisa nahi karne diya &
unka bas thoda sa hissa hi bahar aa paya.viren uski kalaiyo ko apne
hatho se hawa me thame uski jibh se jibh lada raha tha & kamini ki
chut se uska ras behne laga tha.usne socha ki ab viren uske kapde
utarna shuru karega magar vo chaunk padi jab viren use chhod bistar se
uth gaya.

"aise hi rehna.hilna mat.",vo sketch book ke agle panne pe jaldi-2
hath chalane laga.kamini ke chehre pe chhayi khumari me thoda sa khij
ka bhav mila hua tha & yehi viren ko chahiye tha.hawa me hath uthaye
bhare sharir vali kamini abhi khajuraho ki murti jaisi lag rahi
thi.viren ki nigahe uske blouse ke neeche dikh rahe uske sapat pet pe
padi to uska lund aur tan gaya.uski nabhi use uski chut ki yaad dila
rahi thi.

sketcha bana vo vapas apni premika ke paas aaya to usne use naraz ho
pare dhakel diya & pith uski taraf kar divan ke uthe hisse pe hath &
unpe apna munh rakh baith gayi,"..main to bas 1 murat hu tumahre
liya..jiski painting banate raho!"

"murat to tum ho..",viren ke mazbut bazuo ne use apni or ghuma
liya,"..ajanta ki murat ho tum.",uski gudaz baaho ko pakad usne uska
matha chum liya,"kaha tha na,tumhara har andaz,har pehlu main canvas
pe utarna chahta hu..kamini..tum kitni khubsurat..kitni haseen ho..ye
tumhe kya pata..ye painting meri sabse behtarin paintings hongi lekin
agar tumhe nahi pasand to thik hai main bas tumhari ibadat karta
hu,apni devi ki tasvir nahi banata hu.",vo jhuk ke uske seene pe
chumne laga.vo abhi bhi khada tha bas uska daya ghutna sahare ke liye
divan pe tha.aise me uska lund kamini ke chehre ke paas hi tha & vo
use pakadne ke liye bechain ho uthi.

"umm..ab zyada baate mat banao.achhi tarah janet ho ki main tumhe
kabhi mana nahi karungi.",kamini neapna hath uski t-shirt me ghusa
uske baalo bhare seene pe machalte hue hath firaye.viren ne fauran
apni shirt nikal di to kamini divan ke uthe hisse se upar uthai & use
apni or khinch liya.uski pith pe bechaini se hath firate hue uske
seene pe vo apne hatho ke nishan chhode ja rahi thi.uske nipples ko
apne nakhuno se chhedte hue jab usne apne tapte hotho se uske seene ko
chuma to viren ka lund uski choochiyo se dab gaya.

ab kamini ke bardasht ki had tut gayi.usne uski shorts ko khinch kar
neeche kiya & apna daya hath uski pith pe lagaye hue baaye me lund ko
tham liya.uski jhanto me ungliya firate hue usne uske ando ko dabaya
to viren ne aankhe band kar maze me aah bhari.usne kamini ke chehre ko
thuddi pakad upar kiya & jhuk ke use chum liya.thodi der chumne ke
baad kamini ne apne gulabi honth uske lund ke gird lapet diye.

viren ne uske reshmi baalo ko jude ke bandhan se azad kiya & kuchh
lato ko pakad apne lund pe lapet diya.kamini muskurayi & apne balo se
uske lund ko lapet hilate hue uska lund chusne lagi.viren pyar se uske
asr & pith pe hath fer raha tha.kamini ke mulayam baal & jibh uske
lund ko jannat ki sair kara rahe the.kamini ne socha ki ab vo ya to
uske munh me jhad jayega ya fir ab fauran uski chudai me lag jayega
magar use viren ke sabr ka andaza nahi tha.kafi der baad viren ne lund
munh se khincha & jhuk ke uske sath divan pe baith gaya.

apni baho me bhar vo use fir se chumne laga.kamini ki zuban pe uske
precum ka swad tha.uske hath kamini ki kamar ke bagal ke maansal hisse
ko daba rahe the & kamini ab bechaini se apni jaanghe ragad apni chut
ko santvana de rahi thi.kamini ke blouse me hooks ki jagah zip thi &
srrrrrrr ki aavaz se viren ke hath ne 1 jhatke me hi use khol
diya.blouse jism se alag hopte hi gulabi strapless bra me kamini ke
seene ke mast ubhar uski aankho ke samne chhalak uthe.

vo jhuka & bra ke upar se jhalak rahi uski aadhi upari choochiyo ko
chumne laga.apne dant se usne jab halke se unhe kata to kamini ki chut
& kasmasa uthi.vo uski kamar ke mansal hisse ko sehlate hue bas uske
seene pe vaise hi chume ja raha tha.jab kamini ne dekha ki vo bra
kholne ka koi jatan nahi kar raha hai to usne khud hi apne hath peeche
le jake bra ke hooks khol apni chhatiyo ko azad kar diya.

viren ne uski chhalchhalati choochiyo ko hatho me pakad uspe jaise hi
apni jibh firayi kamini ki chut me mano koi bandh tut pada & uski chut
se ras ki dhara beh chali,"uunnhh...uunhhhh....!",karahte hue usne
viren ke sar ko apne seene pe bhinch liya & bechaini se kamar
hila,janghe ragadte hue jhadne lagi.viren ne apni baayi banh uske gale
me daal use tham liya & daaye se uski sari upar uthane laga.sari kamar
tak utha vo uski tango & gori jangho ko sehlane laga.abhi kamini puri
tarah se ubri bhi nahi thi ki viren ne use dobare mast kar diya.

uske narm honth chumte hue vo uski jango ke beech hath ghusaye
tha.kamini ne bhi apni janghe bhinch uske hath ko qaid kar liya
tha.viren ka baya hath uski pith pe ghum raha tha.viren ka hath ab
uski panty tak ja pahuncha tha & uski ungliya panty ke kinare se anadr
dakhil ho rahi thi.kamini ne kamar ko thoda aage uchka ungliyo ko chut
ke andar aane ka nyota diya jise unhone badi khushi se kabula.viren ki
ungliya uski chut ke andar-bahar hone lagi & uski zuban uske munh
ke.kamini ab josh se pagal ho rahi thi & apni kamar hilaye ja rahi
thi.uski chut me bahut tanav ban gaya tha & viren ke ungliyo ki raftar
tez hote ja rahi thi.

achanak kamini ne kiss tod di & apne honth "O" ki shakl me gol kar
diye.uski aankhe band ho gayi thi & aisa lag raha tha mano vo behosh
ho gayi hai jabki haqeeqat ye thi ki vo dobare jhad rahi thi.viren ne
use haule se divan pe litaya & uski sari & petticoat ko kholne
laga.kamini ne aankhe kholi,uska chehra dekhne pe aisa lagta tha mano
vo nashe me dubi thi.vo divan pe padi apne premi ke hatho nangi hoti
rahi.jab viren ne uski chut se chipki uski gili panty khinchi to usne
apni kamar utha uski madad ki.

Use lita ke Viren vapas apne easel ke paas aaya & jaldi-2 Kamini ka 1
aur sketch banane laga.kamini ke jism me bahut sukun bhara tha magar
abhi bhi use viren ke lund intezar tha.usne apne premi ko dekha joki
uski khubsurti canvas pe utarne me magan tha.uski nazre neechi hui &
usne uska tana lund dekha.uske dil me 1 kasak si uthi.

raat beeti ja rahi thi & uske jism ka lutf uthamne ke bajay ye aadmi
bas apni kuchi chalaye ja rahe tha!..bevkuf kahinka!kamini divan se
uthi,"..are bas thodi der aur vaise hi leti raho na!",viren ne us se
guzarish ki magar kamini use ansuna kar uske paas aa khadi ho gayi.

usne viren ke gale me baahe dali & uske hontho pe apne honthe kas
diye.viren samajh gaya ki ab aa raat vo use aur apinting nahi karne
degi.usne bhi apni baahe uski kamar me daal di & uski gand ki bhari-2
fanko ko maslate hue uski kiss ka jawab dene laga.jais-2 kiss ki
garmjoshi badh rahi thi vaise-2 kamini ke upar chhayi khumari me bhi
izafa ho raha tha.vo apne badan ko bechaini se viren ke jism se ragad
rahi thi.viren ka lund bhi ab uski chut se milne ko bechain ho gaya
tha.ab viren ne aur der karna thik nahi samjha.

vo thoda jhuka & kamini ki bayi jangh ko utha liya.kamini samajh gayi
ki ab uska intezar khatm hua,usne apni baahe uske kandho pe tika
di.viren ne vaise hi jhuke hue apna lund uski chut me
ghusaya,"ohhh...!",kamini ko halka dard hua.

uske aankhe band kar apne honth bhinch liye.uski chut abhi viren ke
lumbe & behad mote lund ki aadi nahi hui thi.lund pura samate hi viren
ne uski janghe pakad apni god me utha liya & use le divan pe baith
gaya.baithate hi kamini ne use chumte hue apni kamar hilakar chudai
shuru kar di.viren ke hath kabhi uski kamar se khelte to kabhi gand ki
fanko ko dabate.jab vo hath aage la uske kade nipples ko masal uski
chhatiya dabata tab uske badan me jaise bijliya daud jati.

viren ki god me baithi us se chudti kamini ko uska lund seedha apni
kokh pe chot karta mehsus ho raha tha.jab bhi aisa hota use bahut maza
aata.kafi der tak viren vaise hi baithe us se khelta raha.ab tak
kamini koi 3 baar jhad chuki thi & uske badan me bilkul bhi taqat nahi
bachi thi magar viren tha ki jhadne ka naam hi nahi le raha tha.aisa
thakane vala premi use pehli baar mila tha magar is thakan me jo maza
tha uska koi muqabla nahi tha.

"..aaann...aaannhhh...!",kamini jhad ke peechhe divan pe gir gayi.ab
viren ne paintara badla & apne ghutne mod unpe baith usne uski tange
tham li.kamini ko pata tha ki ab vo jhadega magar jab tak vo 1 baar
aur na jhad jaye.viren ke dhakke shuru ho gaye & kamini ki aahe
bhi.usne apna munh bayi taraf fer liya & apna baya hath usha ke apne
hotho pe rakh liya.viren pura lund bahar khinchta & fir andar jad tak
ghuse deta.uske hath kabhi uski chhatiya maslate to kabhi chut ke dane
ko.uske narm pet se uska daya hath ghumta hua uske chehre pe pahuncha
& uski ungliya uske hotho ko sehlane lagi.

kamini sihar uthi & usne un ungliyo ko apne munh me le liya & chusne
lagi.viren ka lund uski chut ko fir se pagal kar raha tha & vo 1 baar
fir se apne masti ke anjam ki or badh rahi thi.vo viren ke dhakko ka
pura lutf utha rahi thi ki tabhi viren ne lund bahar nikal
liya,".aahhh..kya karte ho?",uske chehre pe narazgi saaf jhalak rahi
thi,"..jaldi dalo na..!"

viren bas muskura raha tha,"..ohh..viren..kyu tadpate ho?!!..jaldi se
dalo..pleaseee!!!",kamini ruansi ho gayi.viren ne lund ko daye hath me
liye & uski chut pe thapthapaya,"..ooww..".kamini masti me pagal ho
kamar uchkane lagi,"..aanh..aanh...dalo na..",vo lun dko pakadne ki
koshish karne lagi magar uska hath pakad ke viren ne use rok diya &
uske dane pe lund se marne laga,"..ooww..ooww...aannhh..aanhh...!"

kamini ki aahe kamre me kya pure bungle me gunj rahi thi.uski masti ab
uske sar pe pura chadh agyi thi & jaise hi viren ne dekha ki vomjhadne
vali hai usne lund andar ghused diya & apni premika ke uapr let
gaya.kamini ne use apni baaho & tango me kas liya & neeche se bechaini
se kamar hilane
lagi,"ohh..viren..haa..haan...karte..ra..ho..ka..rte...ra..ho...aaanhhhhhhh...aanhhh...!",1
dusre se guttha-guttha dono premi ! dusre ko chumte 1 dusre me samane
ki koshish karte hue jhad gaye.kamini ki chut aaj viren ke lund pe
kuchh zyada hi kas gayi thi & uski bhi aahe nikal padi thi.uske lund
se uske gadhe virya ki dhar kayi palo tak kamini ki chut me chhutati
rahi.

aaj se zyada maza kamini ko chudai me kabhi nahi aay tha.uske dil me
apne premi ke liya bahut sara pyar umad aaya tha.usne uske sar ko tham
use chum liya.chahti to thi ki vo use apne dil me umad rahi sari baate
us se keh de magar uski thakan ne use is layak nahi chhoda tha.uski
aankhe mund gayi & vo gehri nind me so gayi.


Prasun so raha tha & uske bagal me uski maa leti thi jiski aankho me
nind ka namonishan nahi tha.karwate badalti Devika ko har raat ki
tarah is raat bhi aane vale kal ki chintao ne aa ghera tha..kya vo sab
kuchh bakhubi sambhal payegi?..kya uska beta uske jane ke baad bhi
mehfuz rahega?..

tabhi prasun nind me jaise karahne laga.devika uthke use dekhne
lagi,prasun ka badan jaise jhatke kha raha tha & uske munh se
uunnhh..uunhh ki aavaze aa rahi thi..vo bahut ghabra gayi & vo prasun
ko jhakjhorne hi vali thi ki tabhi uske hotho pe muskan fail
gayi-prasun ke pajame pe 1 gila sa dhabba ubhar raha tha joki pal-2
gehra raha tha.uska beta nind me jhad raha tha.

prasun ki nind khul gayi thi.ye dekh devika ne fauran aankhe band kar
li & sone ka natak karne lagi.prasun hairat se apne pajame ko dekh
raha tha,use bahut sharm aa rahi thi.vo utha & jhat se bathroom me
ghus gaya.devika bhi uske peechhe-2 dabe panv gayi.

bathroom ke andar pajama utare khada prasun achraj se apne lund ko
dekh raha tha.kuchh roz se ye ajib baat ho rahi thi joki prasun ko 1
bahut badi bimari ki nishani lag rahi thi.pehel to usne socha tha ki
vo nind me peshab kar deta hai magar ye peshab nahi tha,ye to ajib sa
chipchipa sa thuk...nahi..thuk bas gila hota tha..ye to gond ki
tarah..nahi..itna bhi chipchipa nahi tha..kya tha ye?

devika ne bete ka lund dekha,kali jhanto se ghira uska lund uske pita
se kahi zyada bada tha.prasun lund dho raha tha to devika vaise hi
dabe panv vapas laut gayi.1 baat to tay thi ki prasun ki mardangi me
koi kami nahi thi.ab bas use ye samjhana tha ki is mardangi ka istemal
kaise & kyu karte hain?

pareshan haal prasun ne apna pajama badla & aake maa ke bagal me so
gaya.uska dil tha to bahut ghabraya hua,uski samajh me nahi aa raha
tha ki is bare me kis se baat kare.us bechare ko kya khabar thi ki
uski maa ko sab pata chal gaya tha & vo kal hi us se baat kar uske man
ke sabhi shubahe dur karne vali thi.

koi aur aurat hoti to apne bete ko nind me jhadte dekh us se kahi
zyada sharm me dub jati & us se baat karna to dur us baat ke bare me
fir kabhi sochna bhi nahi pasand karti magar prasun koi aam,samajhdar
ladka to tha nahi & devika to kahi se bhi aam aurat nahi thi.us
hauslemand aurat ne ye faisla kar liya tha ki karobar ke sath-2 apne
bete ki zindagi ko bhi savarengi & iske liye vo har baat ke liye
taiyyar thi.

thodi der prasun fir se nind ki god me chala gaya tha magar devika bhi
bhi jagi hui thi.tabhi kamre ka darwaza khula & Shiva andar dakhil
hua.devika use aate dekh rahi thi.vo aaya & uske bagal me baith gaya &
uska hath tham liya.devika ne bhi apne hath ki ungliya uski ungliyo me
fansa di.

"thik ho?",shiva ne bade pyar se apni premika ke sar pe hath
fera.jawab me devika ne haa me sar hilaya.

"zara bhi pareshan mat hona,main hu na.",shiva dhimi aavaz me bol raha
tha ki kahi prasun jag na jaye.devika ko uski aankho me khud ke liye
pyar & chinta nazar aayi.vo uske hath thame hue uthi & dusre hath se
uske chehre ko sehlaya.dono premi 1 dusre ki aankho me jhank rahe
the.1 dusre ki aankho me jhankte hue kab dono 1 dusre ke gale se lag
gaye unhe pata bhi nahi chala.

"ohh,shiva..!",devika ki aankho se aansuo ki dhar beh chali.

"nahi,devika,anhi..chup ho jao.",shiva uske khubsurat chehre ko hatho
me bhar uske aansuo ko chum raha tha lekin uski hamdardi ne shayad
devika ke andar ka bandh tod diya tha & uski rulai tez ho rahi
thi.shiva ne use god me uthaya & jaldi se us kamre se nikal gaya,agar
prasun uth jata to badi pareshani hoti.kamre se nikal vo devika ke
kamre ki or jane laga to usne use rok diya,"nahi,vaha nahi.",ab vo
phut-2 ke ro rahi thi magar shiva ne uski baat nahi mani & use vahi le
gaya.

uske bistar pe use bitha ke vo khud bhi uski dayi taraf baith gaya &
use baho me bhar chup karane laga,"kab tak is kamre se bhagogi?janta
hu,tumhe kaisa lagta hoga magar is tarah se bhagne se to nahi
hoga..hun..",aansuo se bhige uske chehre ko usne apni banh se
uthaya,"..tumhe bahut badi zimmedari uthani hai abhi & janti ho agar 1
baar bhi kahi kamzor padi to fir tumhara dil har baar tumhe peechhe
khinchega..",devika ki rulayi ab dhimi ho gayi thi.

"..& peechhe hatna bahut aasan hoga.tumko koi pareshani nahi hogi
magar 1 din sab kuchh tumhare hath se nikal jayega & tum
pachhtaogi.",uski baato ne devika ke upar jadu sa asar kiya..nahi!ye
sab vo khone nahi degi..sab uska hai sirf uska!

"..isliye ab is kamre se bhagna chhodo.agar prasun ko sath sulana hai
to use yaha bulao magar tum yahi soyogi.",shiva uski aansuo se laal
aankho me jhank raha tha.vo jhuka & usne uske galo pe gire aasuon ko
apne labo se ponchh diya.devika ko us lamhe uspe bahut pyar aaya.usne
use baaho me jakad liya & uske chehre ko betahasha chumne lagi,"i love
you,shiva!..my darling!..my jaan.. i love you!"

dono premi 1 dusre me khone lage.thodi hi der me dono bistar pe nange
1 dusre se gutthamguttha the.devika ko ab yaad bhi nahi tha ki bas
chand dino pehle isi bistar pe uske upar,uski chut me lund dale uska
pati mar gaya tha.use bas is lamhe ka hosh tha jisme vo bistar pe padi
thi & uska hatta-katta premi uski tango ke beech leta uski chut chaat
raha tha.

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kramashah...................

आपका दोस्त राज शर्मा साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,मंदिर जाकर जाप भी कर
लेता हूँ ..मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी
कर लेता हूँआपका दोस्तराज शर्मा(¨`·.·´¨) Always`·.¸(¨`·.·´¨) Keep
Loving &(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !`·.¸.·´ -- raj

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