बदला पार्ट--48
गतान्क से आगे..
रात कामिनी फिर से इंदर के पीछे-2 बंगल के अंदर थी.देविका फिर से इंदर की
बाहो मे थी लेकिन आज वो रो नही रही थी.आज फिर वही बात हो रही थी दोनो के
बीच मे.कामिनी को समझ नही आ रहा था की आख़िर इंदर क्यू चाहता था की रोमा
के नाम जयदाद कर दी जाए.कही रोमा भी तो नही मिली हुई इस साज़िश
मे?..लेकिन शिवा क्या 1 ही ग़लती 2 बार कर सकता है?उसने इंदर को पहचानने
मे थोड़ी देर की पर क्या रोमा भी....
इंदर देविका के होंठ चूम रहा था & कामिनी ने देखा की देविका भी बड़ी
बेचैनी से अपने हाथ इंदर की पीठ पे घुमा रही थी.दोनो करवट से लेटे हुए थे
कि इंदर ने करवट बदल देविका को अपने नीचे किया & उसके उपर चढ़ गया.देविका
इंदर की कमीज़ को उसकी पॅंट से निकाल अपने हाथ उसके अंदर घुसा उसकी पीठ
पे चला रही थी.कामिनी समझ गयी की अब आज रात उसे इन दोनो की आहो & मस्त
आवाज़ो के सिवा और कुच्छ सुनने को नही मिलने वाला.वो वाहा से जाने लगी की
तभी रोमा के कमरे के पास उसके कदम ठिठक गये.
रोमा के कमरे से बातो की आवाज़े आ रही थी..इतनी रात गये उसके कमरे मे था
कौन?कामिनी पलटी तो देखा की संजय अपने कमरे मे नही है.दोनो भाई-बेहन इतनी
रात गये क्या बात कर रहे थे.लकड़ी के भारी-भरकम दरवाज़े के बंद होने के
कारण उसे कुच्छ सुनाई नही दे रहा था.कामिनी का दिमाग़ तेज़ी से दौड़ने
लगा तो उसे याद आया की पीछे के लॉन की तरफ उपरी मंज़िल के 2 कमरो की
बाल्कनी दिखती थी,1 पहले कमरे की & 1 आख़िरी कमरे की.पहला कमरा रोमा का
था & आख़िरी देविका का.
कामिनी फ़ौरन बंगल के बाहर गयी & लॉन मे खड़ी हो रोमा के कमरे को देखने
लगी.बाल्कनी का दरवाज़ा खुला था....किसी तरह वो बाल्कनी पे पहुँच
जाए..बस!वो इधर-उधर देखने लगी तो उसे 1 छ्होटा सा स्टोर रूम दिखा जिसमे
बाग़बानी का समान रखा था.वाहा उसे 1 सीढ़ि मिल गयी.कामिनी ने सीधी को
बाल्कनी से लगाया & कुच्छ ही देर मे वो बाल्कनी पे थी.हवा से हिलते पर्दे
की ओट से उसने अंदर का नज़ारा देखा तो उसकी आँखे फटी रह गयी.
रोमा बिस्तर पे नंगी पड़ी थी & संजय उसकी फैली टाँगो के बीच सर घुसाए
उसकी चूत चाट रहा था,"आन्न्न्नह.....संजू....वॉवववव..!!",रोमा उसके बाल
खींच रही थी.रोमा कमर उचका रही थी & आहे भरे जा रही थी.कामिनी समझ गयी थी
की रोमा झाड़ रही थी.उसके झाड़ते ही संजय उपर हुआ & अपना लंड उसकी चूत मे
घुसा दिया,"हाअन्न्न्न....संजू...आहह..कितने दीनो
बाद..तुम्हारा...ऊओवव्वव...लंड मेरे अंदर है जान.....!"
कामिनी की समझ मे कुच्छ नही आ रहा था.भाई-बेहन के बीच ऐसा रिश्ता.कितने
घिनोने लोग थे ये!
"ओवववव......संजू...धीरे चोदो ना!..बच्चे का तो ख़याल करो..आनह..!",रोमा
ने उसे अपने उपर से उठाया तो संजय अपने हाथो पे अपना वज़न संभाल उसके
सीने & पेट से अपने बदन को उठा धक्के लगाने लगा.
"वो पागल रोज़ चोद्ता था तुम्हे?"
"हां.",संजय के धक्के और तेज़ हो गये.
"हाईईइ..आराम से करो ना!",रोमा ने उसके निपल्स को नोच लिया.
"आह..",संजय करहा,"..तुम्हे मज़ा आता था?"
"बहुत मेरी जान.जब तक ना काहु तब तक नही झाड़ता था वो
पागल...आईइईयईए..!",संजय गुस्से से पागल हो
गया,"..संजू...प्लीज़....जानते हो ना..ये बच्चा कितना ज़रूरी है हमारे
लिए..आनह...हां..ऐसे ही करो...मैं तो छेड़ रही थी तुम्हे जानू.",रोमा ने
प्यार से उसके बालो मे हाथ फिराए & उसे अपने खींच के चूमने लगी,"..जानती
हू तुम कितना तडपे होगे पर ये ज़रूरी था ना संजू हमारे इन्तेक़ाम के
लिए."
इन्तेक़ाम..कामिनी के माथे पे बल पड़ गये पर तभी उसके सर पे पीछे से बहुत
ज़ोर से किसी ने मारा & वो बेहोश हो गयी.
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कामिनी को जैसे बहुत दूर से कोई आवाज़े आती सुनाई दे रही थी,"..सब बिगड़
दिया इसने..तो अब क्या होगा....कुच्छ नही..इसे ठिकाने लगा
देंगे....",कामिनी को जैसे-2 होश आया तो उसने पाया की वो किसी बिस्तर पे
पेट के बल पड़ी थी & उसके हाथ पीछे करके बँधे हुए थे साथ ही उसके पैर
भी.1 आवाज़ तो रोमा की थी & दूसरी संजय की मगर ये तीसरी आवाज़ किसकी
थी..ये इंदर नही था..कौन था ये?वो दिमाग़ पे ज़ोर डालने लगी तो उसे लगा
की दर्द से उसका सर फॅट जाएगा लेकिन आवाज़ थी जानी-पहचानी,उसने सुनी थी
ये आवाज़ कही.
"तो क्या करेंगे?..इसे भी देविका के साथ.."
"नही..",उस जानी-पहचानी आवाज़ ने कहा,"..इसे किसी और तरकीब से ठिकाने
लगाएँगे पर पहले इंदर को बुलाओ."
"भाय्या तो इस वक़्त देविका के साथ होगा.",रोमा ने कहा.
"तो देखो उसके कमरे मे."
थोड़ी ही देर बाद इंदर भी उनके साथ था,"ये यहा कैसे आ गयी?"
"पहले ये बताओ की देविका को तो शक़ नही हुआ अभी?"
"नही,वो तो गहरी नींद मे सो रही है."
"बहुत बढ़िया.तुमने दस्तख़त ले लिए उसके?"
"जी.ये रही उसकी वसीयत.",ये कब किया इंदर ने..कामिनी सोच रही थी.
"वेरी गुड.अब तुम लोग यही बैठो मैं अभी आता हू.",दरवाज़े के खुलने बंद
होने की आवाज़ से कामिनी समझ गयी को वो शख्स कमरे से बाहर निकल गया है.
"ओह्ह..भाय्या!आख़िर हमारा बदला पूरा हो ही जाएगा अब!",रोमा की आवाज़ से
खुशी झलक रही थी.
"हां,रोमा & इसके लिए तुझे बहुत बड़ी क़ुर्बानी देनी पड़ी है & तुम्हे भी
संजय.",तो रोमा इंदर की बेहन थी..कामिनी सब आँखे बंद किए सुन रही थी.
"भाय्या,हमारे मा-बाप को झेलना पड़ा उसके सामने तो ये कुच्छ भी नही."
"तुम्हे तो इसमे पड़ने की कोई ज़रूरत भी नही थी संजय फिर भी तुमने हमारी मदद की."
"आपने तो मुझे पल मे पराया कर दिया इंदर भाय्या.क्या रोमा का पति होने के
नाते मैं आपके परिवार का हिस्सा नही?",अब तो कामिनी की हैरत का ठिकाना ही
नही था..तो संजय रोमा का भाई नही पति था!..कितना बड़ा खेल खेला था इन
लोगो ने!
"ये बदबू कैसी?"
"हूँ.कुच्छ जल रहा है शायद.मैं देखता हू.",इंदर दरवाज़े की तरफ बढ़ा,"अरे
दरवाज़ा तो बंद है!ऐसा कैसे हुआ!"
"भाय्या,धुआँ कमरे के अंदर आ रहा है."
"ये दरवाज़ा बंद कैसे हुआ?मौसा जी को फोन लगाओ रोमा,जल्दी!",वो तीनो नही
समझे मगर कामिनी समझ गयी थी."मौसा जी" ने वसीयत ले ली थी & अब बंगले मे
आग लगा दी थी.थोड़ी ही देर मे सहाय परिवार का अंत हो जाएगा & उसके साथ ही
इस साज़िश मे शामिल सभी लोगो का भी मगर वो ये मौत नही मरना चाहती थी.
कमरे के अंदर बहुत धुआँ भर गया था....ये सब बाल्कनी के रास्ते क्यू नही
भाग रहे?कामिनी को तीनो के खांसने की आवाज़ से ख़याल आया.उसका भी बुरा
हाल था.उसने गर्दन घुमाई & ज़ोर लगाके करवट ली तो देखा कि वो रोमा के
कमरे मे नही थी बल्कि शायद संजय के कमरे मे थी जिसमे कोई बाल्कनी थी ही
नही.कामिनी चिल्ला के उन्हे अपनी रस्सी खोलने को कहने लगी मगर तीनो धुए
से बेदम थे.
उस वक़्त कामिनी को 1 फिल्म का सीन याद आया & वो घुटने मोड़ अपनी टाँगे
अपने बँधे हाथो से निकालने लगी.रोज़ की जॉगिंग & वर्ज़िश के कारण अभी भी
उसके बदन मे लोच था & थोड़ी ही देर मे टाँगे निकल गयी & उसके बँधे हाथ अब
आगे की ओर थे.कामिनी ने बँधे हाथो से ही पैरो के बंधन खोले & कमरे के
दरवाज़े को बँधे हाथो से ही खींचने लगी लेकिन कोई फ़ायदा नही.
उसने इंदर को हिलाया,"इंदर..उठो..यहा से निकलना है हमे तुम्हारे मौसा को
पकड़ना है हमे.",मगर धुआ अब इंदर के फेफड़ो मे भर चुका था.कामिनी उसकी
जेबे टटोलने लगी & उसके हाथो मे इंदर का लाइटर आ गया.कामिनी ने फ़ौरन उसे
जलाया & उसकी लौ अपने हाथो के बंधन की गाँठ पे लगाई.उसके हाथ जल रहे थे
मगर उसकी उसे परवाह नही थी.
क्रमशः......
बदला पार्ट--48
गतान्क से आगे..
raat kamini fir se inder ke peechhe-2 bungle ke andar thi.devika fir
se inder ki baaho me thi lekin aaj vo ro nahi rahi thi.aaj fir vahi
baat ho rahi thi dono ke beech me.kamini ko samajh nahi aa raha tha ki
aakhir inder kyu chahta tha ki Roma ke naam jaydad kar di jaye.kahi
roma bhi to nahi mili hui is sazish me?..lekin shiva kya 1 hi galti 2
baar kar sakta hai?usne inder ko pehchanane me thodi der ki par kya
roma bhi....
inder devika ke honth chum raha tha & kamini ne dekha ki devika bhi
badi bechaini se apne hath inder ki pith pe ghuma rahi thi.dono karwat
se lete hue the ki inder ne karwat badal devika ko apne neeche kiya &
uske upar chadh gaya.devika inder ki kamiz ko uski pant se nikal apne
hath uske andar ghusa uski pith pe chala rahi thi.kamini samajh gayi
ki ab aaj raat use in dono ki aaho & mast aavazo ke siva aur kuchh
sunane ko nahi milne wala.vo vaha se jane lagi ki tabhi roma ke kamre
ke paas uske kadam thithak gaye.
roma ke kamre se baato ki aavaze aa rahi thi..itni raat gaye uske
kamre me tha kaun?kamini palti to dekha ki Sanjay apne kamre me nahi
hai.dono bhai-behan itni raat gaye kya baat kar rahe the.lakdi ke
bhari-bharkam darwaze ke band hone ke karan use kuchh sunai nahi de
raha tha.kamini ka dimagh tezi se daudne laga to use yaad aaya ki
peechhe ke lawn ki taraf upri manzil ke 2 kamro ki balcony dikhti
thi,1 pehle kamre ki & 1 aakhiri kamre ki.pehla kamra roma ka tha &
aakhiri devika ka.
kamini fauran bungle ke bahar gayi & lawn me khadi ho roma ke kamre ko
dekhne lagi.balcony ka darwaza khula tha....kisi tarah vo balcony pe
pahunch jaye..bas!vo idhar-udhar dekhne lagi to use 1 chhota sa store
room dikha jisme bagbani ka saman rakha tha.vaha use 1 seedhi mil
gayi.kamini ne seedhi ko balcony se lagaya & kuchh hi der me vo
balcony pe thi.hawa se hilte parde ki ot se usne andar ka nazara dekha
to uski aankhe fati reh gayi.
roma bistar pe nangi padi thi & sanjay uski faili tango ke beech sar
ghusaye uski chut chaat raha
tha,"aannnnhhhhh.....sanju....wowwww..!!",roma uske baal khinch rahi
thi.roma kamar uchka rahi thi & aahe bhare ja rahi thi.kamini samajh
gayi thi ki roma jhad rahi thi.uske jhadte hi sanjay upar hua & apna
lund uski chut me ghusa diya,"haaannnn....sanju...aahhhh..kitne dino
baad..tumhara...ooowwww...lund mere andar hai jaan.....!"
kamini ki samajh me kuchh nahi aa raha tha.bhai-behan ke beech aisa
rishta.kitne ghinone log the ye!
"owwww......sanju...dhire chodo na!..bachche ka to khayal
karo..aanhhh..!",roma ne use apne upar se uthaya to sanjay apne hatho
pe apna vazan sambhal uske seene & pet se apne badan ko utha dhakke
lagane laga.
"vo pagal roz chodta tha tumhe?"
"haan.",sanjay ke dhakke aur tez ho gaye.
"haiiii..aaram se karo na!",roma ne uske nipples ko noch liya.
"aah..",sanjay karaha,"..tumhe maza aata tha?"
"bahut meri jaan.jab tak na kahu tab tak nahi jhadta tha vo
pagal...aaiiiyyeee..!",sanjay gusse se pagal ho
gaya,"..sanju...please....jante ho na..ye bachcha kitna zaruri hai
humare liye..aanhhh...haan..aise hi karo...main to chhed rahi thi
tumhe janu.",roma ne pyar se uske baalo me hath firaye & use apne
khinch ke chumne lagi,"..janti hu tum kitna tadpe hoge par ye zaruri
tha na sanju humare inteqam ke liye."
inteqam..kamini ke mathe pe bal pad gaye par tabhi uske sar pe peechhe
se bahut zor se kisi ne mara & vo behosh ho gayi.
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kamini ko jaise bahut door se koi aavaze aati sunai de rahi thi,"..sab
bigad diya isne..to ab kya hoga....kuchh nahi..ise thikane laga
denge....",kamini ko jaise-2 hosh aaya to usne paya ki vo kisi bistar
pe pet ke bal padi thi & uske hath peechhe karke bandhe hue the sath
hi uske pair bhi.1 aavaz to roma ki thi & dusri sanjay ki magar ye
teesri aavaz kiski thi..ye inder nahi tha..kaun tha ye?vo dimagh pe
zor daalne lagi to use laga ki dard se uska sar phat jayega lekin
aavaz thi jani-pehchani,usne suni thi ye aavaz kahi.
"to kya karenge?..ise bhi devika ke sath.."
"nahi..",us jani-pehchani aavaz ne kaha,"..ise kisi aur tarikes e
thikane lagayenge par pehle inder ko bulao."
"bhaiyya to is waqt devika ke sath hoga.",roma ne kaha.
"to dekho uske kamre me."
thodi hi der baad inder bhi unke sath tha,"ye yaha kaise aa gayi?"
"pehle ye batao ki devika ko to shaq nahi hua abhi?"
"nahi,vo to gehri nind me so rahi hai."
"bahut badhiya.tumne dastkhat le liye uske?"
"ji.ye rahi uski vasiyat.",ye kab kiya inder ne..kamini soch rahi thi.
"very good.ab tum log yehi baitho main abhi aata hu.",darwaze ke
khulne band hone ki aavaz se kamini samajh gayi ko vo shakhs kamre se
bahar nikal gaya hai.
"ohh..bhaiyya!aakhir humara badla pura ho hi jayega ab!",roma ki aavaz
se khushi jhalak rahi thi.
"haan,roma & iske liye tujhe bahut badi qurbani deni padi hai & tumhe
bhi sanjay.",to roma inder ki behan thi..kamini sab aankhe band kiye
sun rahi thi.
"bhaiyya,humare maa-baap ko jhelna pada uske samne to ye kuchh bhi nahi."
"tumhe to isme padne ki koi zarurat bhi nahi thi sanjay fir bhi tumne
humari madad ki."
"aapne to mujhe pal me paraya kar diya inder bhaiyya.kya roma ka pati
hone ke nate main aapke parivar ka hissa nahi?",ab to kamini ki hairat
ka thikana hi nahi tha..to sanjay roma ka bhai nahi pati tha!..kitna
bada khel khela tha in logo ne!
"ye badbu kaisi?"
"hun.kuchh jal raha hai shayad.main dekhta hu.",inder darwaze ki taraf
badha,"are darwaza to band hai!aisa kaise hua!"
"bhaiyya,dhuan kamre ke andar aa raha hai."
"ye darwaza band kaise hua?mausa ji ko fone lagao roma,jaldi!",vo
teeno nahi samjhe magar kamini samajh gayi thi."mausa ji" ne vasiyat
le li thi & ab bungle me aag laga di thi.thodi hi der me sahay parivar
ka ant ho jayega & uske sath hi is sazish me shamil sabhi logo ka bhi
magar vo ye maut nahi marna chahti thi.
kamre ke andar bahut dhuan bhar gaya tha....ye sab balcony ke raste
kyu nahi bhag rahe?kamini ko teeno ke khansane ki aavaz se khayal
aaya.uska bhi bura haal tha.usne gardan ghumayi & zor lagake karwat li
to dekha ki vo roma ke kamre me nahi thi balki shayad sanjay ke kamre
me thi jisme koi balcony thi hi nahi.kamini chilla ke unhe apni rassi
kholne ko kehne lagi magar teeno dhue se bedam the.
us waqt kamini ko 1 film ka scene yaad aaya & vo ghutne mod apni tange
apne bandhe hatho se nikalne lagi.roz ki jogging & varzish ke karan
abhi bhi uske badan me loch tha & thodi hi der me tange nikal gayi &
uske bandhe hath ab aage ki or the.kamini ne bandhe hatho se hi pairo
ke bandhan khole & kamre ke darwaze ko bandhe hatho se hi khinchne
lagi lekin koi fayda nahi.
usne inder ko hilaya,"inder..utho..yaha se nikalna hai hume tumhare
mausa ko pakadna hai hume.",magar dhua ab inder ke fefdo me bhar chuka
tha.kamini uski jebe tatolne lagi & uske hatho me inder ka lighter aa
gaya.kamini ne fauran use jalaya & uski lau apne hatho ke bandhan ki
ganth pe lagayi.uske hath jal rahe the magar uski use parwah nahi thi.
kramashah......
आपका दोस्त राज शर्मा साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,मंदिर जाकर जाप भी कर
लेता हूँ ..मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी
कर लेता हूँआपका दोस्तराज शर्मा(¨`·.·´¨) Always`·.¸(¨`·.·´¨) Keep
Loving &(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !`·.¸.·´ -- raj
--
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