मैं हूँ हसीना गजब की--पार्ट--5
गतान्क से आगे........................
जब बार बार परेशानी हुई तो उन्हों ने मुझे बिस्तर से नीचे उतार
कर पहले बिस्तर के कोने मे मसनद रखा फिर मुझे घुटनो के बल
झुका दिया. अब मेरे पैर ज़मीन पर घुटनो के बल टीके हुए थे और
कमर के उपर का बदन मसनद के उपर से होता हुआ बिस्तर पर पसरा
हुआ था. मसनद होने के कारण मेरे नितंब उपर की उर उठ गये थे.
येअवस्था मेरे लिए ज़्यादा सही थी. मेरे किसी भी अंग पर अब ज़्यादा ज़ोर
नही पड़ रहा था. इस अवस्था मे उन्हों ने बिस्तर के उपर अपने हाथ
रख कर अपने लिंग को वापस मेरी योनि मे ठोक. कुच्छ देर तक इस
तरहठोकने के बाद उनके लिंग से रस झड़ने लगा. उन्हों ने मेरी योनि मे
सेअपना लिंग निकाल कर मुझे सीधा किया और अपने वीर्य की धार मेरे
चेहरे पर और मेरे बालों पर कर दिया. इससे पहले कि मैं अपना मुँह
खोलती, मैं उनके वीर्य से भीग चुकी थी. इस बार झड़ने मे उन्हे
बहुत टाइम लग गया.
मैं थकान से एकद्ूम निढाल हो चुकी थी. मुझमे उठकर बाथरूम मे
जाकर अपने को सॉफ करने की भी हिम्मत नही थी. मैं उसी अवस्था मे
आँखें बंद किए पड़ी रही. मेरा आधा बदन बिस्तर पर था और आधा
नीचे. ऐसे अजीबोगरीब अवस्था मे भी मैं गहरी नींद मे डूब
गयी. पता ही नही चला कब कमल्जी ने मुझस सीधा कर के बिस्तर
पर लिटा दिया और मेरे नग्न बदन से लिपट कर खुद भी सो गये.
बीच मे एक बार ज़ोर की पेशाब आने की वजह से नींद खुली तो मैने
पाया कि कमल्जी मेरे एक स्तन पर सिर रखे सो रहे थे. मैने उठने
की कोशिश की लेकिन पूरा बदन दर्द से टूट रहा था इस लिए मैं
दर्द से कराह उठी. मुझसे उठा नही गया तो मैने कमल्जी को उठाया.
"मुझे सहारा देकर बाथरूम तक ले चलो प्लीईएसए" मैने उनसे
कहा. उन्हों ने उठ कर मुझे सहारा दिया मैं लड़खड़ते कदमों से उनके
कंधे पर सारा बोझ डालते हुए बाथरूम मे गयी. उन्हों ने मुझे
अंदर छ्चोड़ कर खड़े हो गये.
" आप बाहर इंतेज़ार कीजिए. मैं बुला लूँगी." मैने कहा.
" अरे कोई बात नही मैं यहीं खड़ा रहता हूँ अगर तुम गिर गयी
तो?"
" छि इस तरह आपके सामने इस हालत मे मैं कैसे पेशाब कर सकती
हूँ?"
"तो इसमे शरमाने की क्या बात है? हम दोनो मे तो सब कुच्छ हो गया
है अब शरम किस बात की?" उन्हों ने बाथरूम का दरवाजा भीतर से
बंद करते हुए कहा.
"मैने शर्म के मारे अपनी आँखें बंद कर ली. मेरा चेहरा शर्म से
लाल हो रहा था. लेकिन मैं इस हालत मे अपने पेशाब को रोकने मे
असमर्थ थी सो मैं कॉमोड की सीट पर इसी हालत मे बैठ गयी.
जब मैं फ्री हुई तो उन्हों ने वापस मुझे सहारा देकर बिस्तर तक
छ्चोड़ा. मैं वापस उनकी बाहों मे दुबक कर गहरी नींद मे सो गयी.
अगले दिन सुबह मुझे कल्पना दीदी ने उठाया तब सुबह के दस बज
रहे
थे. मैं उस पर भी उठने के मूड मे नही थी और "उन्ह उन्ह" कर रही
थी. अचानक मुझे रात की सारी घटना याद आई. मैने चौंक कर
आँखें खोली तो मैने देखा कि मेरा नग्न बदन गले तक चादर से
ढका हुआ है. मुझ पर किसने चादर ढक दिया था पता नही चल
पाया. वैसे ये तो लग गया था कि ये कमल के अलावा कोई नही हो
सकताहै.
"क्यों बन्नो? रात भर कुटाई हुई क्या?" कल्पना दीदी ने मुझे छेड़ते
हुए पूचछा.
"दीदी आअप भी ना बस……"मैने उठते हुए कहा.
" कितनी बार डाला तेरे अंदर अपना रस. रात भर मे तूने तो उसकी
गेंदों का सारा माल खाली कर दिया होगा."
मैं उठ कर बाथरूम की ओर भागने लगी तो उन्हों ने मेरी बाँह पकड़
कर रोक लिया, "बताया नही तूने?"
मैं अपना हाथ छुड़ा कर बाथरूम मे भाग गयी. कल्पना दीदी
दरवाजा
खटखटती रह गयी लेकिन मैने दरवाजा नही खोला. काफ़ी देर तक
मैं शवर के नीचे नहाती रही और अपने बदन पर बने अनगिनत
दाँतों के दागों को सहलाती हुई रात के मिलन की एक एक बात को याद
करने लगी. मैं बावरइयों की तरह खुद ही मुस्कुरा रही थी कमल्जी
की
हरकतें याद करके. उनका प्यार करना, उनकी हरकतें, उनका गठा हुआ
बदन. उनके बाजुओं से उठती पसीने की खुश्बू, उनकी हर चीज़ मुझ
पर एक नशा मे डुबती जा रही थी. मेरे बदन का रोया रोया किसी
बिन ब्याही युवती की तरह अपने प्रेमी को पुकार रही थी. शवर से
गिरती ठंडे पानी की फुहार भी मेरे बदन की गर्मी को ठंडा नही
कर पा रही थी बकली खुद गर्म भाप बन कर उड़ जा रही थी.
काफ़ी देर तक नहाने के बाद मैं बाहर निकली. कपड़े पहन कर मैं
बेडरूम से निकली तो मैने पाया की जेठ जेठानी दोनो निकलने की
तैयारीमे लगे हुए हैं. ये देख कर मेरा वजूद जो रात के मिलन के बाद
सेबादलों मे उड़ रहा था एक दम से कठोर ज़मीन पर आ गिरा. मेरा
चहकता हुआ चेहरा एकद्ूम से कुम्हला गया.
मुझे देखते ही पंकज ने कहा, "स्मृति खाना तैयार करलो. भाभी
ने काफ़ी कुच्छ तैयारी कर ली है अब फिनिशिंग टच तुम देदो.
भैया भाभी जल्दी ही निकल जाएँगे."
मैं कुच्छ देर तक चुपचाप खड़ी रही और तीनो को समान पॅक करते
देखती रही. कमल्जी कनखियों से मुझे देख रहे थे. मेरी आँखें
भारी हो गयी और मैं तुरंत वापस मूड कर किचन मे चली गयी.
मैं किचन मे जाकर रोने लगी. अभी तो एक प्यारे से रिश्ते की
शुरुआत ही हुई थी और वो पत्थर दिल बस अभी छ्चोड़ कर जा रहा है. मैं
अपने होंठों पर अपने हाथ को रख कर सुबकने लगी. तभी पीछे
सेकोई मेरे बदन से लिपट गया. मैं उनको पहचानते ही घूम कर उनके
सीने से लग कर फफक कर रो पड़ी. मेरे आँसुओं का बाँध टूट गया
था.
"प्लीज़ कुच्छ दिन और रुक जाओ." मैने सुबक्ते हुए कहा.
"नही आज मेरा ऑफीस मे पहुँचना बहुत ज़रूरी है वरना एक
इंपॉर्टेंट मीटिंग कॅन्सल करनी पड़ेगी."
"कितने बेदर्द हो. आपको मीटिंग की पड़ी है और मेरा क्या होगा?"
"क्यों पंकज है ना. और हम हमेशा के लिए थोड़ी जा रहे हैं
कुच्छ
दिन बाद बाद मिलते रहेंगे. ज़्यादा साथ रहने से रिश्तों मे बसीपान
आ जाता है." वो मुझे सांत्वना देते हुए मेरे बालों को सहला रहे
थे. मेरे आँसू रुक चुके थे लेकिन अभी भी उनके सीने से लग कर
सूबक रही थी. मैने आँसुओं से भरा चेहरा उपर किया. कमल ने
अपनी
उंगलियों से मेरे पलकों पर टीके आँसुओं को सॉफ किया फिर मेरे गीले
गालों पर अपने होंठ फिराते हुए मेरे होंठों पर अपने होंठ रख
दिए. मैं तड़प कर उनसे किसी बेल की तरह लिपट गयी. हमारा
वजूद
एक हो गया था. मैने अपने बदन का सारा बोझ उनपर डाल दिया और
उनके मुँह मे अपनी जीभ डाल कर उनके रस को चूसने लगी. मैने
अपने
हाथों से उनके लिंग को टटोला
"तेरी बहुत याद आएगी." मैने ऐसे कहा मानो मैं उनके लिंग से बातें
कर रही हूँ," तुझे नही आएगी मेरी याद?"
" इसे भी हमेशा तेरी याद आती रहे गी." उन्हों ने मुझसे कहा.
"आप चल कर तैयारी कीजिए मैं अभी आती हूँ." मैने उनसे कहा.
वोमुझे एक बार और चूम कर वापस चले गये.
उनके निकलने की तयारि हो चुकी थी. उनके निकलने से पहले मैने
सबकी आँख बचा कर उनको एक गुलाब भेंट किया जिसे उन्हों ने तुरंत
अपने होंठों से छुआ कर अपनी जेब मे रख लिया.
काफ़ी दीनो तक मैं उदास रही. पंकज मुझे बहुत टीज़ करता था
उनका नाम ले लेकर. मैं भी उनके बातों के जवाब मे कल्पना दीदी को ले
आतीथी. धीरे धीरे हुमारा रिश्ता वापस नॉर्मल हो गया. कमल का
अक्सरमेरे पास फोन आता था. हम नेट पर कॅम की हेल्प से एक दूसरे को
देखते हुए बातें करते थे.
लेकिन जो सबसे बुरा हुआ वो ये कि मेरी प्रेग्नेन्सी नही ठहरी. कमल्जी
को एक यादगार गिफ्ट देने की तमन्ना दिल मे ही रह गयी.
उसके बाद काफ़ी दीनो तक ज़्ब कुच्छ अच्च्छा चलता रहा सबसे बुरा तो
येहुआ कि कमल्जी से उन मुलाकात के बाद उस महीने मेरे पीरियड्स आ गये.
उनके स्पर्म से मैं प्रज्नेन्ट नही हुई. ये उनको और ज़्यादा उदास कर
गया.
लेकिन मैने उन्हे दिलासा दिया. उनको मैने कहा कि मैने जब ठान
लियाहै तो मैं तुम्हे ये गिफ्ट तो देकर ही रहूंगी.
वहाँ सब ठीक ठाक चलता रहा लेकिन कुच्छ महीने बाद पंकज
काम से देर रात तक घर आने लगा. मैने उनके ऑफीस मे भी पता
किया तो पता लगा कि वो बिज़्नेस मे घाटे के दौर से गुजर रहा है.
और जो फर्म उनका सारा प्रोडक्षन खरीद कर अब्रोड भेजता था उस
फर्मने उनसे रिस्ता तोड़ देने का ऐलान किया है.
एक दिन जब उदास हो कर घर आए तो मैने उनसे इस बारे मे डिसकस
करने का सोचा. मैने उनसे पूछा कि वो परेशान क्यों रहने लगे
हैं. तो उन्होने कहा,
"एलीट एक्शप्रोटिंग फर्म हुमारी कंपनी से नाता तोड़ रहा है. जहाँ तक
मैने सुना है उनका मुंबई की किसी फर के साथ पॅक्ट हुआ है."
"लेकिन हुमारी कंपनी से इतना पुराना रिश्ता कैसे तोड़ सकते हैं."
"क्या बताउ उस फर्म का मालिक रस्तोगी और छिन्नास्वामी पैसे के अलावा
भी कुच्छ फेवर माँगते हैं जो कि मैं पूरा नही कर सकता." पंकज
ने कहा
"ऐसा क्या डिमॅंड करते हैं?" मैने उनसे पूचछा
"दोनो एक नंबर के रांदबाज हैं. उन्हे लड़की चाहिए."
"तो इसमे क्या परेशान होने की बात हुई. इस तरह की फरमाइश तो कई
लोग करते हैं और करते रहेंगे." मैने उनके सिर पर हाथ फेर कर
सांत्वना दी " आप तो कुच्छ इस तरह की लड़कियाँ रख लो अपनी कंपनी
मे या फिर किसी प्रोस को एक दो दिन का पेमेंट देकर मंगवा लो उनके
लिए."
" अरे बात इतनी सी होती तो परेशानी क्या थी. वो बाजारू औरतों को
नही पसंद करते. उन्हे तो कोई सॉफ सुथरी औरत चाहिए कोई
घरेलू महिला." पंकज ने कहा, "दोनो अगले हफ्ते यहाँ आ रहे हैं
और अपना ऑर्डर कॅन्सल करके इनवेस्टमेंट वापस ले जाएँगे. हुमारी
कंपनी बंद हो जाएगी."
" तो पापा से बात कर लो वो आपको पैसे दे देंगे." मैने कहा
" नही मैं उनसे कुच्छ नही माँगूंगा. मुझे अपनी परेशानी खुद ही
हलकरना पड़ेगा. अगर पैसे दे भी दिए तो भी जब खरीदने वाला कोई
नही रहेगा तो कंपनी को तो बंद करना ही पड़ेगा." पंकज ने
कहा, "
वो यूएसए मे जो फर्म हमारा माल खरीदता है उसका पता देने को
तैयारनही हैं. नही तो मैं डाइरेक्ट डीलिंग ही कर लेता."
"फिर?" मैं कुच्छ समझ नही पा रही थी कि इसका क्या उपाय सोचा जाय.
"फिर क्या....? जो होना है होकर रहेगा." उन्हों ने एक गहरी साँस ली.
मैने उन्हे इतना परेशान कभी नही देखा था.
"कल आप उनको कह दो कि लड़कियों का इंतेज़ाम हो जाएगा." मैने
कहा "देखते है उनके यहाँ पहुँचने से पहले क्या किया जा सकता
अगले दिन जब वो आए तो उन्हे रिलॅक्स्ड पाने की जगह और ज़्यादा टूटा
हुआपाया. मैने कारण पूचछा तो वो टाल गये.
" अपने बात की थी उनसे? "
"हां"
"फिर क्या कहा अपने? वो तैयार हो गये? अरे परेशान क्यों होते हो
हम लोग इस तरह किकिसी औरत को ढूँढ लेंगे. जो दिखने मे सीधी
साधी घरेलू महिला लगे."
" अब कुच्छ नही हो सकता"
"क्यों?" मैने पूचछा.
" तुम्हे याद है वो हुमारी शादी मे आए थे."
" हाँ तो?"
" उन्हों ने शादी मे तुम्हे देखा था."
"तो..?" मुझे अपनी साँस रुकती सी लगी एक अजीब तरह का भय पुर
बदन मे छाने लगा.
" उन्हे सिर्फ़ तुम चाहिए."
" क्या?" मैं लगभग चोंक उठी," उन हरमजदों ने स्मझा क्या है
मुझे? कोई रंडी?"
वो सिर झुकाए हुए बैठे रहे. मैं गुस्से से बिफर रही थी औरूनको
गलियाँ दे रही थी कोस रही थी. मैने अपना गुस्सा शांत करने के
लिए किचन मे जाकर एक ग्लास पानी पिया. फिर वापस आकर उनके पास
बैठ गयी और कहा,
"फिर?......" मैने अपने गुस्से को दबाते हुए उनसे धीरे धीरे
पूछि.
" कुच्छ नही हो सकता." उन्हों ने कहा, " उन्हों ने सॉफ सॉफ कहा
है.
कि या तो तुम उनके साथ एक रात गुजारो या मैं एलीट ग्रूप से अपना
कांट्रॅक्ट ख़तम समझू." उन्हों ने नीचे कार्पेट की ओर देखते हुए
कहा.
" हो जाने दो कांट्रॅक्ट ख़त्म. ऐसे लोगों से संबंध तोड़ लेने मे ही
भलाई होती है. तुम परेशान मत हो. एक जाता है तो दूसरा आ जाता
है."
" बात अगर यहाँ तक होती तो भी कोई परेशानी नही थी." उन्हों ने
अपना सिर उठाया और मेरी आँखों मे झाँकते हुए कहा, " बात इससे
कहीं ज़्यादा गंभीर है. अगर वो अलग हो गये तो एक तो हमारे माल की
खपत बंद हो जाएगी जिससे कंपनी बंद हो जाएगी दूसरा उनसे
संबंध तोड़ते ही मुझे उन्हे 15 करोड़ रुपये देने पड़ेंगे जो उन्हों
नेहमारे फर्म मे इनवेस्ट कर रखे हैं."
मैं चुप चाप उनकी बातों को सुन रही थी लेकिन मेरे दिमाग़ मे एक
लड़ाईछिड़ी हुई थी.
"अगर फॅक्टरी बंद हो गयी तो इतनी बड़ी रकम मैं कैसे चुका
पौँगा. अपने फॅक्टरी बेच कर भी इतना नही जमा कर पौँगा" अब
मुझेभी अपनी हार होती दिखाई दी. उनकी माँग मानने के अलावा अब और कोई
रास्ता नही बचा था. उस दिन और हम दोनो के बीच बात नही हुई.
चुप चाप खाना खा कर हम सो गये. मैने तो सारी रात सोचते हुए
गुज़ारी. ये ठीक है कि पंकज के अलावा मैने उनके बहनोई और उनके
बड़े भैया से सरिरिक संबंध बनाए हैं और कुछ कुछ संबंध
ससुर जी के साथ भी बने थे लेकिन उस फॅमिली से बाहर मैने कभी
किसी से संबंध नही बनाए.
अगर मैं उनके साथ एक रात बिताती तो मुझमे और दो टके की किसी
वेश्या मे क्या अंतर रह जाएगा. कोई भी मर्द सिर्फ़ मन बहलाने के
लिएएक रात की माँग करता है क्योंकि उसे मालूम होता है कि अगर एक बार
उसके साथ शारीरिक संबंध बन गये तो ऐसी एक और रात के लिए
औरत कभी मना नही कर पाएगी.
लेकिन इसके अलावा हो भी क्या सकता था. इस भंवर से निकलने का कोई
रास्ता नही दिख रहा था. ऐसा लग रहा था कि मैं एक ग्रहणी से एक
रंडी बनती जा रही हूँ. किसी ओर भी उजाले की कोई किरण नही दिख
रही थी. किसी और से अपना दुखड़ा सुना कर मैं पंकज को जॅलील नही
करना चाहती थी.
सुबह मैं अलसाई हुई उठी और मैने पंकज को कह दिया, " ठीक है
मैं तैयार हूँ"
पंकज चुपचाप सुनता रहा और नाश्ता करके चला गया. उस दिन
शामको उसने बताया की रस्तोगी से उनकी बात हुई थी और उन्हों ने रस्तोगी
को मेरे राज़ी होने की बात कह दी है."
" हरमज़दा खुशी से मारा जा रहा होगा." मैने मन ही मन सोचा.
"अगले हफ्ते दोनो एक दिन के लिए आ रहे हैं." पंकज ने कहा" दोनो
दिन भर ऑफीस के काम मे बिज़ी होंगे शाम को तुम्हे उनको एंटरटेन
करना होगा.
" कुच्छ तैयारी करनी होगी क्या?"
"किस बात की तैयारी?" पंकज ने मेरी ओर देखते हुए कहा, "शाम
कोवो खाना यहीं खाएँगे. उसका इंतज़ाम कर लेना. पहले हम ड्रिंक्स
करेंगे."
मैं बुझे मन से उस दिन का इंतेज़ार करने लगी
अगले हफ्ते पंकज ने उनके आने की सूचना दी. उनके आने के बाद सारा
दिन पंकज उनके साथ बिज़ी था. शाम को छह बजे के आस पास वो
घर आया और उन्हों ने एक पॅकेट मेरी ओर बढ़ाया.
"इसमे उनलोगों ने तुम्हारे लिए कोई ड्रेस पसंद की है. आज शाम को
तुम्हे यही ड्रेस पहनना है. इसके अलावा बदन पर और कुच्छ नही
रहे ये कहा है उन्हों ने.
मैने उस पॅकेट को खोल कर देखा. उसमे एक पारदर्शी झिलमिलती
सारीथी. और कुच्छ भी नही था. उनके कहे अनुसार मुझे अपने नग्न बदन
पर सिर्फ़ वो सारी पहँनी थी बिना किसी पेटिकोट और ब्लाउस के.
सारीइतनी महीन थी कि उसके दूसरी तरफ की हर चीज़ सॉफ सॉफ दिखाई
देरही थी.
"ये ….?? ये क्या है? मैं ये पहनूँगी? इसके साथ अंडरगार्मेंट्स
कहाँहैं?" मैने पंकज से पूचछा.
"कोई अंडरगार्मेंट नही है. वैसे भी कुच्छ ही देर मे ये भी वो
तुम्हारे बदन से नोच देंगे." मैं एक दम से चुप हो गयी.
"तुम?......तुम कहाँ रहोगे?" मैने कुच्छ देर बाद पूचछा.
" वहीं तुम्हारे पास." पंकज ने कहा.
" नहीं तुम वहाँ मत रहना. तुम कहीं चले जाना. मैं तुम्हारे सामने
वो सब नहीं कर पौँगी. मुझे शर्म आएगी." मैने पंकज से लिपटते
हुए कहा.
" क्या करूँ. मैं भी उस समय वहाँ मौजूद नही रहना चाहता. मेरे
लिए भी अपनी बीवी को किसी और की बाहों मे झूलता सहन नही कर
सकता. लेकिन उन दोनो हरमजदों ने मुझे बेइज्जत करने मे कोई कसर
नही छ्चोड़ी. वो जानते हैं कि मेरी दुखती रग उन लोगों के हाथों मे
दबी है. इसलिए वो जो भी कहेंगे मुझे करना पड़ेगा. उन सालों ने
मुझे उस वक़्त वहीं मौजूद रहने को कहा है." कहते कहते उनका
चेहरा लाल हो गया और उनकी आवाज़ रुंध गयी. मैने उनको अपनी बाहों
मे ले लिया और उनके सिर को अपने दोनो स्तनो मे दबा कर सांत्वना दी.
"तुम घबराव मत जानेमन. तुम पर किसी तरह की परेशानी नही आने
दूँगी."
मैने अपने जेठानी से इस बारे मे कुच्छ घुमा फिरा कर चर्चा की तो
पता चला उसके साथ भी इस तरह के वक्यात होते रहते हैं. मैने
उन्हे दोनो के बारे मे बताया तो उसने मुझे कहा कि बिज़्नेस मे इस
तरह के ऑफर्स चलते रहते हैं और मुझे आगे भी इस तरह की किसी
सिचुयेशान लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए.
उस दिन शाम को मैं बन संवार कर तैयार हुई. मैने कमर मे एक
डोरकी सहयता से अपनी सारी को लपेटा. मेरा पूरा बदन सामने से सॉफ
झलक रहा था कितना भी कोशिश करती अपने गुप्तांगों को छिपाने
कीलेकिन कुच्छ भी नही छिपा पा रही थी. एक अंग पर सारी दोहरी
करतीतो दूसरे अंग के लिए सारे नही बचती. खैर मैने उसे अपने बदन
पर नॉर्मल सारी की तरह पहना. मैने उनके आने से पहले अपने आप को
एक बार आईने मे देख कर तसल्ली की और. सारी के आँचल को अपनी
छातियो पर दोहरा करके लिया फिर भी मेरे स्तन सॉफ झलक रहे
थे.
उन लोगों की पसंद के अनुसार मैने अपने चेहरे पर गहरा मेकप
किया
था. मैने उनके आने से पहले कॉंट्रॅसेप्टिव का इस्तेमाल कर लिया था.
क्योंकि प्रिकॉशन लेने के मामले मे इस तरह के संबंधों मे किसी
परभरोसा करना एक भूल होती है.
उनके आने पर पंकज ने जा कर दरवाजा खोला. मैं अंदर ही रही. उनके
बातें करने के आवाज़ से समझ गयी कि दोनो अपनी रात हसीन होने की
कल्पना करके चहक रहे हैं. मैने एक गहरी साँस लेकर अपने आप
कोसमय के हाथों छ्चोड़ दिया. जब इसके अलावा हुमारे सामने कोई रास्ता ही
नही बचा था तो फिर कोई झिझक कैसी. मैने अपने आप को उनकी
खुशी के मुताबिक पूर्ण रूप से समर्पित करने की ठान ली.
पंकज के आवाज़ देने पर मैं एक ट्रे मे तीन बियर के ग्लास और आइस
क्यूब कंटेनर लेकर ड्रॉयिंग रूम मे पहुँची. सब की आँखें मेरे
हुष्ण को देख कर बड़ी बड़ी हो गयी. मेरी आँखें ज़मीन मे धँसी
जारही थी. मैं शर्म से पानी पानी हो रही थी. किसी अपरिचित के
सामनेअपने बदन की नुमाइश करने का ये मेरा पहला मौका था. मैं धीरे
धीरे कदम बढ़ाती हुई उनके पास पहुँची. मैं अपनी झुकी हुई
नज़रों से देख रही थी कि मेरे आज़ाद स्तन युगल मेरे बदन के हर
हल्के से हिलने पर काँप कांप उठते. और उनकी ये उच्छल कूद सामने
बैठे लोगों की भूकि आँखों को सुकून दे रहे थे.
पंकज ने पहले उन दोनो से मेरा इंट्रोडक्षन कराया,
"माइ वाइफ स्मृति" उन्हों ने मेरी ओर इशारा करके उन दोनो को कहा, फिर
मेरी ओर देख कर कहा, "ये हैं मिस्टर. रस्तोगी और ये हैं…."
"चिन्नास्वामी… ..चिन्नास्वामी एरगुंटूर मेडम. यू कॅन कॉल मी
चिना
इन शॉर्ट." चिन्नास्वामी ने पंकज की बात पूरी की. मैने सामने देखा
दोनो लंबे चौड़े शरीर के मालिक थे. चिन्नास्वामी साढ़े छह फीट
का मोटा आदमी था. रंग एकद्ूम कार्बन की तरह क़ाला और ख्छिछड़ी
दाढ़ी
मे एकद्ूम सौथिन्डियन फिल्म का कोई टिपिकल विलेन लग रहा था. उसकी
उम्र 55 से साथ साल के करीब थी और वेट लगभग 120 केजी के
आसपास होगी. जब वो मुझे देख कर हाथ जोड़ कर हंसा तो ऐसा लगा
मानो बादलों के बीचमे चाँद निकल आया हो.
और रस्तोगी? वो भी बहुत बुरा था देखने मे. वो भी 50 साल के
आसपास का 5'8" हाइट वाला आदमी था. जिसकी फूली हुई तोंद बाहर
निकली हुई थी. सिर बिल्कुल सॉफ था. उसमे एक भी बॉल नही थे.
पूरेमुँह पर चेचक के दाग उसे और वीभत्स बना रहे थे. जब भी वो
बात करता तो उसके होंठों के कोनो से लार की झाग निकलती. मुझे उन
दोनो को देख कर बहुत बुरा लगा. मैं उन दोनो के सामने लगभग नग्न
खड़ी थी. कोई और वक़्त होता तो ऐसे गंदे आदमियों को तो मैं अपने
पास ही नही फटकने देती. लेकिन वो दोनो तो इस वक़्त मेरे फूल से
बदन को नोचने को लालायित हो रहे थे. दोनो की आँखें मुझे देख
करचमक उठी. दोनो की आँखों से लग रहा था कि मैं उस सारी को भी
क्यों पहन रखी थी. दोनो ने मुझे सिर से पैर तक भूखी नज़रों
सेघूरा. मैं ग्लास टेबल पर रखने के लिए झुकी तो मेरे स्तनो के
भर से मेरी सारी का आँचल नीचे झुक गया और मेरे रसीले फलों
की तरह लटकते स्तनो को देख कर उनके सीनो पर साँप लोटने लगे.
मैं ग्लास और आइस क्यूब टेबल पर रख कर वापस किचन मे जाना
चाहती थी की चिन्नास्वामी ने मेरी बाजू को पकड़ कर मुझे वहाँ से
जाने से रोका.
"तुम क्यू जाता है. तुम बैठो. हमारे पास" उन्हों ने थ्री सीटर
सोफे पर बैठते हुए मुझे बीच मे खींच लिया. दूसरी तरफ
रस्तोगी बैठा हुआ था. मैं उन दोनो के बीच सॅंडविच बनी हुई थी.
"पंकज भाई ये समान किचन मे रख कर आओ. अब हुमारी प्यारी
भाभी
यहाँ से नही जाएगी." रस्तोगी ने कहा. पंकज उठ कर ट्रे किचन
मे रख कर आ गया. उसके हाथ मे कोल्ड ड्रिंक्स की बॉटल थी. जब वो
वापस आया तो मुझे दोनो के बीच कसमसाते हुए पाया. दोनो मेरे
बदन
से सटे हुए थे और कभी एक तो कभी दूसरा मेरे होंठों को मेरी
सारी के बाहर झँकति नग्न बाजुओं को और मेरी गर्दन को चूम रहे
थे. रस्तोगी के मुँह से अजीब तरह की बदबू आ रही थी. मैं किसी
तरह सांसो को बंद करके उनके हरकतों को चुपचाप झेल रही थी.
पंकज कॅबिनेट से बियर की कई बॉटल ले कर आया. उसे उसने स्वामी की
तरफ बढ़ाया.
"नाक्को….भाभी खोलेंगी." उसने वो बॉटल मेरे आगे करते हुए कहा
"लो तीनो के लिए बियर डालो ग्लास मे. रस्तोगियान्ना का गला प्यास से
सूख रहा होगा. " छीनना ने कहा
"पंकज युवर वाइफ ईज़ ए रियल ज्यूयेल" रस्तोगी ने कहा" यू लकी
बस्टर्ड, क्या सेक्सी बदन
है इसका. यू आर रियली ए लकी बेगर" पंकज तब तक सामने के
सोफेपर बैठ चुका था दोनो के हाथ आपस मे मेरे एक एक स्तनो को बाँट
चुके थे. दोनो सारी के आँचल को चूचियो से हटा कर मेरे दोनो
स्तनो को चूम रहे थे. ऐसे हालत मे तीनो के लिए बियर उधेलना एक
मुश्किल का काम था. दोनो तो ऐसे जोंक की तरह मेरे बदन से चिपके
हुए थे कि कोशिश के बाद भी उन्हे अलग नही कर सकी.
मैने उसी हालत मे तीनो ग्लास मे ड्रिंक्स डाल कर उनकी तरफ
बढ़ाया.
पहला ग्लास मैने रस्तोगी की तरफ बढ़ाया.
"इस तरह नही. जो सकी होता है पहले वो ग्लास से एक सीप लेता है
फिर वो दूसरों को देता है"
"ल……लेकिन मैं ड्रिंक्स नही करती"
"अरे ये तो बियर है. बियर ड्रिंक्स नही होती."
"प्लीज़ रस्तोगी…. इसे ज़बरदस्ती मत पिलाओ ये आल्कोहॉल नही लेती
है."
पंकज ने रस्तोगी को मनाया.
"कोई बात नही ग्लास के रिम को तो चूम सकती है. इसे बस चूम दो
तो
इसका नशा बढ़ जाएगा"
मैने ग्लास के रिम को अपने होंठों से छुआ फिर उसे रस्तोगी की
तरफ बढ़ा दिया. फिर दूसरा ग्लास उसी तरह चिना स्वामी को दिया
और
तीसरा पंकज को. तीनो ने मेरी खूबसूरती पर चियर्स किया. पंकज
और रस्तोगी ने अपने अपने ग्लास होंठों से लगा लिए. स्वामी कुच्छ
ज़्यादा ही मूड मे हो रहा था. उसने मेरे नग्न स्तन को अपने हाथ से
छुआ कर मेरे निपल को अपने ग्लास मे रखे बियर मे डुबोया फिर उसे
अपने होंठों से लगा लिया. उसे ऐसा करते देख रस्तोगी भी मूड मे
आगेया. दोनो एक एक स्तन पर अपना अधिकार जमाए उसे बुरी तरह मसल
रहे थे और निचोड़ रहे थे. रस्तोगी ने अपने ग्लास से एक उंगली से
बियर की झाग को उठा कर मेरे निपल पर लगा दिया फिर उसे अपनी
जीभसे चाट कर सॉफ किया.
" म्म्म्मम…. मज़ा आ गया." रस्तोगी ने कहा, " पंकज तुम्हारी बीवी तो
बहुत नशीली चीज़ है."
मेरे निपल्स उत्तेजना मे खड़े होकर किसी बुलेट की तरह कड़े हो
गये थे.
मैने सामने देखा. सामने पंकज अपनी जगह बैठे हुए एकटक मेरे
साथ हो रही हरकतों को देख रहे थे. उनका अपनी जगह बैठे
बैठेकसमसाना ये दिखा रहा था कि वो भी किस तरह उत्तेजित होते जा रहे
हैं. मुझे उनका इस तरह उत्तेजित होना बिल्कुल भी अच्च्छा नही लगा.
ठीक है जान पहचान मे स्वापिंग एक अलग बात होती है लेकिन अपनी
बीवी को किसी अंजान आदमी के द्वारा मसले जाने का मज़ा लेना अलग होता
है.
मुझे वहाँ मौजूद हर मर्द पर गुस्सा आ रहा था लेकिन मेरा जिस्म
मेरे दिमाग़ मे चल रहे उथेल पुथल से बिकुल बेख़बर अपनी भूक
सेपागल हो रहा था. रस्तोगी से और नही रहा गया वो उठ कर मुझे
हाथ पकड़ कर खड़ा किया और मेरे बदन पर झूल रहे मेरी इकलौती
सारी को खींच कर अलग कर दिया. अब तक मेरा जिस्म का सारी के
बाहर से आभास मिल रहा था अब बेपर्दा होकर सामने आ गया. मैं शर्म
से दोहरी हो गयी. तो रस्तोगी ने मेरे बदन के पीछे से लिपट कर
मुझे अपने गुप्तांगों को छिपाने से रोका. उनोोने मेरे बगलों के
नीचे से अपने हाथों को डाल कर मेरे दोनो स्तन थाम लिए और उन्हे
अपने हथेलियों से उपर उठा कर स्वामी के सामने करके एक भद्दी सी
हँसी हंसा.
"स्वामी…. देख क्या माल है. साली खूब मज़े देगी." और मेरे दोनो
निपल्स को अपनी चुटकियों मे भर कर बुरी तरह उमेथ दिया. मैं
दर्दसे"आआआआअहह" कर उठी. स्वामी अपनी हथेली से मेरी योनि के उपर
सहला रहा था. मैं अपने दोनो टाँगों को सख्ती से एक दूसरे से
भींचे खड़ी थी जिससे मेरी योनि उनके सामने छिपि रहे. लेकिन
स्वामी ने ज़बरदस्ती अपनी दो उंगलियाँ मेरे दोनो टाँगों के बीच
घुसेडदी.
क्रमशः........................
--
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा
(¨`·.·´¨) ऑल्वेज़
`·.¸(¨`·.·´¨) कीप लविंग &
(¨`·.·´¨)¸.·´ कीप स्माइलिंग !
`·.¸.·´ -- राज
main hun hasina gajab ki--paart--5
gataank se aage........................
jab baar baar pareshani hui to unhon ne mujhe bistar se neeche utar
kar pahle bistar ke kone me masnad rakha fir mujhe ghutno ke bal
jhuka diya. Ab mere pair jameen par ghutno ke bal tike huye the aur
kamar ke upar ka badan masnad ke upar se hota hua bistar par pasra
hua tha. Masnad hone ke karan mere nitamb upar ki ur uth gaye the.
Ye
awastha mere liye jyada sahi thi. Mere kisi bhi ang par ab jyada jor
nahi pad raha tha. Is awastha me unhon ne bistar ke upar apne hath
rakh kar apne ling ko wapas meri yoni me thok. Kuchh der tak is
tarah
thokne ke baad unke ling se ras jhadne laga. Unhon ne meri yoni me
se
apna ling nikal kar mujhe seedha kiya aur apne veerya ki dhar mere
chehre par aur mere balon par kar diya. Isse pahle ki mai apna munh
kholti, mai unke veery se bheeg chuki thi. Is baar jhadne me unhe
bahut time lag gaya.
Mai thakan se ekdum nidhal ho chuki thi. Mujhme uthkar bathroom me
jakar apne ko saaf karne ki bhi himmat nahi thi. Mai usi awastha me
ankhen band kiye padi rahi. Mera adha badan bistar par tha aur adha
neeche. Aise ajeebogarib awastha me bhi mai gahri neend me doob
gayee. Pata hi nahi chala kab Kamalji ne mujhs seedha kar ke bistar
par lita diya aur mere nagn badan se lipat kar khud bhi so gaye.
Beech me ek baar jor ki peshab ane ki wajah se neend khuli to maine
paya ki Kamalji mere ek stan par sir rakhe so rahe the. Maine uthne
ki koshish ki lekin poora badan dard se toot raha tha is liye mai
dard se karah uthi. Mujhse utha nahi gaya to maine Kamalji ko uthaya.
"mujhe sahara dekar bathroom tak le chalo pleeeeese" maine unse
kaha.
Unhon ne uth kar mujhe sahara diya mai ladkhadate kadmon se unke
kandhe par sara bojh dalte huye bathroom me gayee. Unhon ne mujhe
andar chhod kar khade ho gaye.
" aap bahar intezaar kijiye. Mai bula loongi." Maine kaha.
" are koi baat nahi mai yahin khada rahta hoon agar tum gir gayee
to?"
" chhi is tarah apke samne is halat me mai kaise peshab kar sakti
hoon?"
"to isme sharmane ki kya baat hai? Hum dono me to sab kuchh ho gaya
hai abs harm kis baat ki?" unhon ne bathroom ka darwaja bheetar se
band karte huye kaha.
"maine sharm ke mare apni ankhen band kar li. Mera chehra sharm se
laal ho raha tha. Lekin mai is halat me apne peshab ko rokne me
asmarth thi so mai comod ki seat par isi halat me baith gayee.
Jab mai free huyee to unhon ne wapas mujhe sahara dekar bistar tak
chhoda. Mai wapas unki bahon me dubak kar gahri neend me so gayee.
Agle din subah mujhe Kalpana didi ne uthaya tab subah ked us baj
rahe
the. Mai us par bhi uthne ke mood me nahi thi aur "unn unn" kar rahi
thi. Achanak mujhe raat ki sari ghatna yaad aye. Maine chaunk kar
ankhen kholi to maine dekha ki mera nagn badan gale tak chadar se
Dhaka hua hai. Mujh par kisne chadar dhak diya tha pata nahi chal
paya. Waise ye to lag gaya tha ki ye Kamal ke alawa koi nahi ho
sakta
hai.
"kyon banno? Raat bhar kutai hui kya?" Kalpna didi ne mujhe chhedte
huye poochha.
"didi aaap bhi na bus……"maine uthte huye kaha.
" kitni baar daala tere andar apna ras. Raat bhar me tune to uski
gendon ka sara maal khali kar diya hoga."
Mai uth kar bathroom ki or bhagne lagi to unhon ne meri banh pakad
kar rok liya, "bataya nahi tune?"
Mai apna hath chhuda kar bathroom me bhag gayee. Kalpana didi
darwaja
khatkhatati rah gayee lekin maine darwaja nahi khola. Kafi der tak
mai shower ke neeche nahati rahi aur apne badan par bane anginat
danton ke dagon ko sahlati huyee raat ke Milan ki eke k baat ko yaad
karne lagi. Mai bawriyon ki tarah khud hi muskura rahi thi Kamalji
ki
harkaten yaad karke. Unka pyaar karna, unki harkaten, unka gatha hua
badan. Unke bajuon se uthti paseene ki khushbu, unki har chhej mujh
par ek nasha me duboti ja rahi thi. Mere badan ka royan royan kisi
bin byahi yuvati ki tarah apne premi ko pukar rahi thi. Shower se
girti thande paani ki fuhaar bhi mere badan ki garmi ko thanda nahi
kar pa rahi thi bakli khud garm bhap ban kar ud ja rahi thi.
Kafi der tak nahane ke baad mai bahar nikali. Kapde pahan kar mai
bed
room se nikali to maine paya ki Jeth jethani dono nikalne ki
taiyaari
me lage huye hain. Ye dekh kar mera vajood jo rat ke milan ke baad
se
badlon me ud raha tha ek dum se kathor jameen par a gira. Mera
chahkta hua chehra ekdum se kumhla gaya.
Mujhe dekhte hi Pankaj ne kaha, "Smriti khana taiyaar karlo. Bhabhi
ne kafi kuchh taiyaari kar li hai ab finishing touch tum dedo.
Bhaiya
bhabhi jaldi hi nikal jayenge."
Mai kuchh der tak chupchaap khadi rahi aur teeno ko saman pack karte
dekhti rahi. Kamalji kankhiyon se mujhe dekh rahe the. Meri ankhen
bhari ho gayee aur mai turant wapas mud kar kitchen me chali gayee.
Mai kitchen me jakar rone lagi. Abhi to ek pyare se rishte ki
shuruat
hi hui thi aur wo patthar dil bas abhi chhod kar ja raha hai. Mai
apne honthon par apne hath ko rakh kar subakne lagi. Tanhi peechhe
se
koi mere badan se lipat gaya. Mai unko pahchante hi ghoom kar unke
seene se lag kar fafak kar ro padi. Mere ansuon ka bandh toot gaya
tha.
"pleeeeese kuchh din aur ruk jao." Maine subakte huye kaha.
"nahi aaj mera office me pahunchna bahut jaroori hai warna ek
important meeting cancel karni padegi."
"kitne bedard ho. Apko meeting ki padi hai aur mera kya hoga?"
"kyon Pankaj hai na. aur hum hamesha ke liye thodi ja rahe hain
kuchh
din baad baad milte rahenge. Jyada saath rahne se rishton me basipan
a jata hai." Wo mujhe santwana dete huye mere balon ko sahla rahe
the. Mere ansoo ruk chuke the lekin abhi bhi unke seene se lag kar
subak rahi thi. Maine ansuon se bhara chehra upar kiya. Kamal ne
apni
ungliyon se mere palkon par tike ansuon ko saaf kiya fir mere geele
galon par apne honth firate huye mere honthon par apne honth rakh
diye. Mai tadap kar unse kisi bel ki tarah lipat gayee. Hamara
wajood
ek ho gaya tha. Maine apne badan ka sara bojh unpar daal diya aur
unke munh me apni jeebh daal kar unke ras ko choosne lagi. Maine
apne
hathon se unke ling ko tatola
"teri bahut yaad ayegi." Maine aise kaha mano mai unke ling se baten
kar rahi hoon," tujhe nahi ayegi meri yaad?"
" ise bhi hamesha teri yaad ati rahe gi." Unhon ne mujhse kaha.
"aap chal kar taiyaari kijiye mai abhi ati hoon." Maine unse kaha.
Wo
mujhe ek baar aur choom kar wapas chale gaye.
Unke nikalne ki tayaari ho chuki thi. Unke nikalne se pahle maine
sabki ankh bacha kar unko ek gulab bhent kiya jise unhon ne turant
apne honthon se chhua kar apni jeb me rakh liya.
Kaafi dino tak mai udas rahi. Pankaj mujhe bahut tease karta tha
unka
naam le lekar. Mai bhi unkei baton ke jawab me Kalpana didi ko le
ati
thi. Dheere dheere humara rishta wapas normal ho gaya. Kamal ka
aksar
mere paas phone ata tha. Hum net par cam ki help se ek doosre ko
dekhte huye baten karte the.
Lekin jo sabse bura hua wo ye ki meri pregnancy nahi thahri. Kamalji
ko ek yaadgaar gift dene ki tamanna dil me hi rah gayee.
uske baad kafi dino tak sb kuchh achchha chalta raha sabse bura to
ye
hua ki Kamalji se un mulakat ke baad us maheene mer periods a gaye.
Unke sperm se mai prgnent nahi hui. ye unko aur jyada udaas kar
gaya.
lekin maine unhe dilasa diya. unko maine kaha ki maine jab thaan
liya
hai to mai tumhe ye gift to dekar hi rahoongi.
wahan sab theek thaak chalta raha lekin kuchh maheene baad Pankaj
kaam se der raat tak ghar ane laga. maine onke office me bhi pata
kiya to pata laga ki wo business me ghate ke daur se gujar raha hai.
aur jo firm unka sara production khareed kar abrod bhejta tha us
firm
ne unse rista tod dene ka ailaan kiya hai.
ek din jab udaas ho kar ghar aye to maine unse is bare me discuss
karne ka socha. maine unse poochh ki wo pareshaan kyon rahne lage
hain. to unhone kaha,
"Elite Exproting firm humari company se nata tod raha hai. Jahan tak
maine suna hai unka Mumbai ki kisi fir ke saath pact hua hai."
"lekin humari company se itna purana rishta kaise tod sakte hain."
"kya bataun us firm ka malik Rastogi aur chinnaswami paise ke alawa
bhi kuchh favour mangte hain jo ki mai poora nahi kar sakta." Pankaj
ne kaha
"aisa kya demand karte hain?" maine unse poochha
"dono ek number ke raandbaaj hain. unhe ladki chahiye."
"to isme kya pareshaan hone ki baat hui. is tarah ki farmaish to kai
log karte hain aur karte rahenge." maine unke sir par hath fer kar
santwana di " aap to kuchh is tarah ki ladkiyanrakh lo apni company
me ya fir kisi pros ko ek do din ka payment dekar mangwa lo unke
liye."
" are baat itni si hoti to pareshaani kya thi. wo bajaroo aurton ko
nahi pasand karte. unhe to koi saaf suthari aurat chahiye koi
ghareloo mahila." Pankaj ne kaha, "dono agle hafte yahan a rahe hain
aur apna order cancel karke investment wapas le jayenge. humari
company band ho jayegi."
" to Papa se baat kar lo wo apko paise de denge." maine kaha
" nahi mai unse kuchh nahi mangoonga. mujhe apni pareshani khudhi
hal
karna padega. agar paise de bhi diye to bhi jab khareedne wala koi
nahi rahega to company ko to band karna hi padega." pankaj ne
kaha, "
wo USA me jo firm hamara maal khareedta hai uska pata dene ko
taiyaar
nahi hain. nahi to mai direct dealing hi kar leta."
"fir?" mai kuchh samajh nahi pa rahi thi ki iska kya upay socha jay.
"fir kya....? jo hona hai hokar rahega." unhon ne ek gahri saans li.
maine unhe itna pareshan kabhi nahi dekha tha.
"kal aap unko kah do ki ladkiyon ka intezam ho jayega." maine
kaha "dekhte hai unke yahan pahunchne se pahle kya kiya ja sakta
agle din jab wo aye to unhe relaxed pane ki jagah aur jyada toota
hua
paya. maine karan poochha to wo tal gaye.
" apne baat ki thi unse? "
"haan"
"fir kya kaha apne? wo taiyaar ho gaye? are pareshaan kyon hote ho
hum log is tarah kikisi aurat ko dhoondh lenge. jo dikhne me seedhi
saadhi gharelu mahila lage."
" ab kuchh nahi ho sakta"
"kyon?" maine poochha.
" tumhe yaad hai wo humari shadi me aye the."
" haan to?"
" unhon ne shaadi me tumhe dekha tha."
"to..?" mujhe apni saans rukti si lagi ek ajeeb tarah ka bhay poore
badan me chhane laga.
" Unhe sirf tum chahiye."
" kyaa?" mai lagbhag chhek uthi," un haramjadon ne smajha kya hai
mujhe? koi randi?"
wo sir jhukaye hue baithe rahe. mai gusse se bifar rahi thi aurunko
galiyan de rahi thi kos rahi thi. maine apna gussa shant karne ke
liye kitchen me jakar ek glass pani piya. fir wapas akar unke paas
baith gayee aur kaha,
"fir?......" maine apne gusse ko dabate huye unse dheere dheere
poochhi.
" kuchh nahi ho sakta." unhon ne kaha, " Unhon ne saaf saaf kaha
hai.
Ki ya to tum unke saath ek raat gujaro ya mai Elite group se apna
contract khatam samjhoon." Unhon ne neeche carpet ki or dekhte huye
kaha.
" ho jane do contract khatm. Aise logon se sambandh tod lene me hi
bhalai hoti hai. Tum pareshaan mat ho. Ek jata hai to doosra a jata
hai."
" baat agar yahan tak hoti to bhi koi pareshaani nahi thi." Unhon ne
apna sir uthaya aur meri ankhon me jhankte huye kaha, " baat isse
kahin jyada gambir hai. Agar wo alag ho gaye to ek to hamare maal ki
khapat band ho jayegi jisse company band ho jayegi doosra unse
sambandh todte hi mujhe unhe 15 crore rupaye dene padenge jo unhon
ne
hamare firm me invest kar rakhe hain."
Mai chup chap unki baton ko sun rahi thi lekin mere dimag me ek
ladai
chhidi hui thi.
"agar factory band ho gayee to itni badi rakam mai kaise chuka
paunga. Apne factory bech kar bhi itna nahi jama kar paunga" ab
mujhe
bhi apni har hoti dikhai di. Unki maang manne ke alawa ab aur koi
rasta nahi bacha tha. Us din aur hum dono ke beech baat nahi hui.
Chup chaap khana kha kar hum so gaye. Maine to sari raat sochte huye
gujari. Ye theek hai ki Pankaj ke alawa maine unke bahnoi aur unke
bade bhaiyaa se saririk sambandh banaye hain aur kuch kuch sambandh
sasur ji ke saath bhi bane the lekin us family se bahar maine kabhi
kisi se sambandh nahi banaye.
Agar mai unke saath ek raat bitati to mujhme aur do take ki kisi
veshya me kya antar rah jayega. Koi bhi mard sirf man bahlane ke
liye
ek raat ki mang karta hai kyonki use maloom hota hai ki agar ek baar
uske saath sharirik sambandh ban gaye to aisi ek aur raat ke liye
aurat kabhi mana nahi kar payegi.
Lekin iske alawa ho bhi kya sakta tha. Is bhanwar se nikalne ka koi
rasta nahi dikh raha tha. Aisa lag raha tha ki mai ek grahni se ek
randi banti ja rahi hoon. Kisi or bhi ujale ki koi kiran nahi dikh
rahi thi. Kisi aur se apna dukhda suna kar mai Pankaj ko jaleel nahi
karna chahti thi.
Subah mai alsai hui uthi aur maine Pankaj ko kah diya, " theek hai
mai taiyaar hoon"
Pankaj chupchaap sunta raha aur nashta karke chala gaya. Us din
shaam
ko usne bataya ki Rastogi se unki baat hui thi aur unhon ne Rastogi
ko mere raji hone ki baat kah di hai."
" Haramjada khushi se mara ja raha hoga." Maine man hi man socha.
"agle hafte dono ek din ke liye a rahe hain." Pankaj ne kaha" dono
din bhar office ke kam me busy honge shaam ko tumhe unko entertain
karna hoga.
" kuchh taiyaari karni hogi kya?"
"kis baat ki taiyaari?" Pankaj ne meri or dekhte huye kaha, "shaam
ko
wo khana yahin khayenge. Uska intezaam kar lena. Pahle hum drinks
karenge."
Mai bujhe man se us din ka intezaar karne lagi
Agle hafte Pankaj ne unke ane ki soochna di. Unke ane ke baad sara
din Pankaj unke saath busy tha. Shaam ko chhah baje ke aas paas wo
ghar aya aur unhon ne ek packet meri or badhaya.
"isme unlogon ne tumhare liye koi dress pasand ki hai. Aaj shaam ko
tumhe yahi dress pahanna hai. Iske alawa badan par aur kuchh nahi
rahe ye kaha hai unhon ne.
Smriti Part 7
maine us packet ko khol kar dekha. Usme ek pardarshee jhilmilati
sari
thi. Aur kuchh bhi nahi tha. Unke kahe anusaar mujhe apne nagn badan
par sirf wo sari pahanni thi bina kisi petticoat aur blouse ke.
Saree
itni maheen thi ki uske doosri taraf ki har cheej saaf saaf dikhai
de
rahi thi.
"ye ….?? Ye kya hai? Mai ye pahnoongi? Iske saath undergarments
kahan
hain?" maine Pankaj se poochha.
"koi undergarment nahi hai. Waise bhi kuchh hi der me ye bhi wo
tumhare badan se noch denge." Mai ek dum se chup ho gayee.
"tum?......tum kahan rahoge?" Maine kuchh der baad poochha.
" wahin tumhare paas." Pankaj ne kaha.
" Nahin tum wahan mat rahna. Tum kahin chale jana. Mai tumhare samne
wo sab nahin kar paungi. Mujhe sharm ayegi." Maine Pankaj se lipatte
huye kaha.
" kya karoon. Mai bhi us samay wahan maujood nahi rahna chahta. Mere
liye bhi apni biwi ko kisi aur ki bahon me jhoolta sahan nahi kar
sakta. Lekin un dono haramjadon ne mujhe beijjat karne me koi kasar
nahi chhodi. Wo jante hain ki meri dukhti rag un logon ke hathon me
dabi hai. Isliye wo job hi kahenge mujhe karma padega. Un salon ne
mujhe us waqt wahin maujood rahne ko kaha hai." Kahte kahte unka
chehra laal ho gaya aur unki awaj rundh gayee. Maine unko apni bahon
me le liya aur unke sir ko apne dono stano me daba kar santwana di.
"tum ghabrao mat janeman. Tum par kisi tarah ki pareshani nahi ane
doongi."
Maine apne jethani se is bare me kuchh ghuma fira kar charcha ki to
pata chala uske saath bhi is tarah ke vakyat hote rahte hain. Maine
unhe dono ke bare me bataya to usne mujhe kaha ki business me is
tarah ke offers chalte rahte hain aur mujhe age bhi is tarah ki kisi
situationke liye hamesha taiyaar rahna chahiye.
Us din shaam ko mai ban sanwar kar taiyaar hui. Maine kamar me ek
dor
ki sahayta se apni sari ko lapeta. Mera poora badan samne se saaf
jhalak raha tha kitna bhi koshish karti apne guptangon ko chhipane
ki
lekin kuchh bhi nahi chhipa pa rahi thi. Ek ang par saree dohri
karti
to doosre ang ke liye saare nahi bachti. Khair maine use apne badan
par normal saree ki tarah pahna. Maine unke ane se pahle apne aap ko
ek baar aine me dekh kar tasalli ki aur. sari ke anchal ko apni
chhatiyon par dohra karke liya fir bhi mere stan saaf jhalak rahe
the.
Un logon ki pasand ke anusaar maine apne chehre par gahra makeup
kiya
tha. Maine unke ane se pahle contraceptive ka istemal kar liya tha.
Kyonki precaution lene ke mamle me is tarah ke sambandhon me kisi
par
bharosa karna ek bhool hoti hai.
Unke ane par Pankaj ne ja kar darwaja khola. Mai andar hi rahi. Unke
baten karne ke awaj se samajh gayee ki dono apni raat haseen hone ki
kalpana karke chahk rahe hain. Maine ek gahri saans lekar apne aap
ko
samay ke hathon chhod diya. Jab iske alawa humare samne koi rasta hi
nahi bacha tha to fir koi jhijhak kaisi. Maine apne aap ko unki
khushi ke mutabik poorn roop se samarpit karne ki than li.
Pankaj ke awaj dene par mai ek tray me teen Beer ke glass aur Ice
cube container lekar drawing room me pahunchi. Sab ki ankhen mere
hushn ko dekh kar badi badi ho gayee. Meri ankhen jameen me dhansi
ja
rahi thi. Mai sharm se pani pani ho rahi thi. Kisi aparichit ke
samne
apne badan ki numaish karne ka ye mera pahla mauka tha. Mai dheere
dheere kadam badhati hui unke paas pahunchi. Mai apni jhuki hui
najaron se dekh rahi thi ki mere ajad stan yugal mere badan ke har
halke se hilne par kaanp kanp uthte. Aur unki ye uchhal kood samne
baithe logon ki bhooki ankhon ko sukoon de rahe the.
Pankaj ne pahle un dono se mera introduction karaya,
"my wife Smriti" unhon ne meri or ishara karke un dono ko kaha, fir
meri or dekh kar kaha, "ye hain mr. Rastogi aur ye hain…."
"Chinnaswami… ..chinnaswami yeraguntoor madam. You can call me
chinna
in short." Chinnaswami ne Pankaj ki baat poori ki. Maine samne dekha
dono lambe chaude shareer ke malik the. Chinnaswami sadhe chhah feet
ka mota admi tha. Rang ekdum carbon ki tarah kala aur khhichadi
dadhi
me ekdum southindian film ka koi typical villain lag raha tha. Uski
umr 55 se sath saal ke kareeb thi aur weight lagbhag 120 kg ke
aaspaas hogi. Jab wo mujhe dekh kar hath jod kar hansa to aisa laga
mano badlon ke beechme chand nikal aya ho.
Aur rastogi? wo bhi bahut bura tha dekhne me. Wo bhi 50 saal ke
aaspaas ka 5'8" height wala admi tha. Jiski phooli hui tond bahar
nikali hui thi. Sir bilkul saaf tha. Usme ek bhi baal nahi the.
Poore
munh par chechak ke daag use aur vibhats bana rahe the. Jab bhi wo
baat karta to uske honthon ke kono se laar ki jhag nikalti. Mujhe un
dono ko dekh kar bahut bura laga. Mai un dono ke samne lagbhag nagn
khadi thi. Koi aur waqt hota to aise gande admiyon ko to mai apne
paas hi nahi fatakne deti. Lekin wo dono to is waqt mere phool se
badan ko nochne ko lalayit ho rahe the. Dono ki ankhen mujhe dekh
kar
chamak uthi. Dono ki ankhon se lag raha tha ki mai us sari ko bhi
kyon pahan rakhi thi. Dono ne mujhe sir se pair tak bhookhi najron
se
ghoora. Mai glass table par rakhne ke liye jhuki to mere stano ke
bhar se meri sari ka anchal neeche jhuk gaya aur mere raseele phalon
ki tarah latakte stano ko dekh kar unke seeno par sanp lotne lage.
Mai glass aur ice cube table par rakh kar wapas kitchen me jana
chahti thi ki Chinnaswami ne meri baju ko pakad kar mujhe wahan se
jane se roka.
"tum kuyn jata hai. Tum baitho. Hamare paas" unhon ne three seater
sofe par baithte huye mujhe beech me kheench liya. Doosri taraf
Rastogi baitha hua tha. Mai un dono ke beech sandwich bani hui thi.
"Pankaj bhai ye saman kitchen me rakh kar ao. Ab humari pyaari
bhabhi
yahan se nahi jayegi." Rastogi ne kaha. Pankaj uth kar tray kitchen
me rakh kar a gaya. Uske hath me cold drinks ki bottle thi. Jab wo
wapas aya to mujhe dono ke beech kasmasate huye paya. Dono mere
badan
se sate huye the aur kabhi ek to kabhi doosra mere honthon ko meri
sari ke bahar jhankti nagn bajuon ko aur meri gardan ko choom rahe
the. Rastogi ke munh se ajeeb tarah ki badboo a rahi thi. Mai kisi
tarah sanso ko band karke unke harkaton ko chupchap jhel rahi thi.
Pankaj cabinet se beer ki kai bottle le kar aya. Use usne Swami ki
taraf badhaya.
"nakko….bhabhi kholengi." Usne wo bottle mere age karte huye kaha
"Lo teeno ke liye beer dalo glass me. Rastogianna ka gala pyaas se
sookh raha hoga. " Chinna ne kaha
"Pankaj your wife is a real jewel" Rastogi ne kaha" you lucky
bastard, kya sexy badan
hai iska. You are really a lucky beggar" Pankaj tab tak samne ke
sofe
par baith chuka tha dono ke hath apas me mere ek ek stano ko bant
chuke the. Dono sari ke anchal ko chhatiyon se hata kar mere dono
stano ko choom rahe the. Aise halat me Teeno ke liye Beer udhelna ek
mushkil ka kaam tha. Dono to aise jonk ki tarah mere badan se chipke
huye the ki koshish ke baad bhi unhe alag nahi kar saki.
maine usi halat me teeno glass me drinks daal kar unki taraf
badhaya.
Pahla glass maine Rastogi ki taraf badhaya.
"is tarah nahi. Jo saki hota hai pahle wo glass se ek sip leta hai
fir wo doosron ko deta hai"
"L……lekin mai drinks nahi karti"
"are ye to beer hai. Beer drinks nahi hoti."
"please Rastogi…. Ise jabardasti mat pilao ye alcohol nahi leti
hai."
Pankaj ne Rastogi ko manaya.
"koi bat nahi glass ke rim ko to choom sakti hai. Ise bus choom do
to
iska nasha badh jayega"
maine glass ke rim ko apne honthon se chhuaya fir use Rastogi ki
taraf badha diya. Fir doosra glass usi tarah Chinna swami ko diya
aur
teesra Pankaj ko. Teeno ne meri khoobsoorti par cheers kiya. Pankaj
aur Rastogi ne apne apne glass honthon se laga liye. Swami kuchh
jyada hi mood me ho raha tha. Usne mere nagn stan ko apne hath se
chhua kar mere nipple ko apne glass me rakhe beer me duboya fir
use
apne honthon se laga liya. Use aisa karte dekh rastogi bhi mood me
agaya. Dono ek ek stan par apna adhikar jamaye use buri tarah masal
rahe the aur nichod rahe the. Rastogi ne apne glass se ek ungli se
beer ki jhag ko utha kar mere nipple par laga diya fir use apni
jeebh
se chaat kar saaf kiya.
" mmmmm…. Maja a gaya." Rastogi ne kaha, " Pankaj tumhari biwi to
bahut nasheeli cheej hai."
Mere nipples uttejna me khade hokar kisi bullet ki tarah kade ho
gaye
the.
Maine samne dekha. Samne Pankaj apni jagah baithe huye ektak mere
sath ho rahi harkaton ko dekh rahe the. Unka apni jagah baithe
baithe
kasmasana ye dikha raha tha ki wo bhi kis tarah uttejit hote ja rahe
hain. Mujhe unka is tarah uttejit hona bilkul bhi achchha nahi laga.
Theek hai jaan pahchan me swapping ek alag baat hoti hai lekin apni
biwi ko kisi anjaan admi ke dwara masale jane ka maja lena alag hota
hai.
Mujhe wahan maujood har mard par gussa a raha tha lekin mera jism
mere dimaag me chal rahe uthel puthal se bikul bekhabar apni bhook
se
pagal ho raha tha. Rastogi se aur nahi raha gaya wo uth kar mujhe
hath pakad kar khada kiya aur mere badan par jhool rahe meri iklauti
sari ko kheench kar alag kar diya. Ab tak mera jis hoshn ka sari ke
bahar se abhas mil raha tha ab beparda hokar samne a gaya. Mai sharm
se dohri ho gayee. To rastogi ne mere badanke peechhe se lipat kar
mujhe apne guptangon ko chhipane se roka. Unohone mere bagalon ke
neeche se apne hathon ko daal kar mere dono stan tham liye aur unhe
apne hatheliyon se upar utha kar Swami ke samne karke ek bhaddi si
hansi hansa.
"Swami…. Dekh kya maal hai. Saali khoob maje degi." Aur mere dono
nipples ko apni chutkiyon me bhar kar buri tarah umeth diya. Mai
dard
se"aaaaaaaaahhhhh" kar uthi. Swami apni hatheli se meri yoni ke upar
sahla raha tha. Mai apne dono tangon ko sakhti se ek doosre se
bheenche khadi thi jisse meri yoni unke samne chhipi rahe. Lekin
Swami ne jabardasti apni do ungliyan mere dono tangon ke beech
ghused
di.
--
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj
राज शर्मा की कामुक कहानिया हिंदी कहानियाँहिंदी सेक्सी कहानिया चुदाई की कहानियाँ उत्तेजक कहानिया rajsharma ki kahaniya ,रेप कहानिया ,सेक्सी कहानिया , कलयुग की सेक्सी कहानियाँ , मराठी सेक्स स्टोरीज , चूत की कहानिया , सेक्स स्लेव्स , Tags = राज शर्मा की कामुक कहानिया हिंदी कहानियाँ Raj sharma stories , kaamuk kahaaniya , rajsharma हिंदी सेक्सी कहानिया चुदाई की कहानियाँ उत्तेजक कहानिया Future | Money | Finance | Loans | Banking | Stocks | Bullion | Gold | HiTech | Style | Fashion | WebHosting | Video | Movie | Reviews | Jokes | Bollywood | Tollywood | Kollywood | Health | Insurance | India | Games | College | News | Book | Career | Gossip | Camera | Baby | Politics | History | Music | Recipes | Colors | Yoga | Medical | Doctor | Software | Digital | Electronics | Mobile | Parenting | Pregnancy | Radio | Forex | Cinema | Science | Physics | Chemistry | HelpDesk | Tunes| Actress | Books | Glamour | Live | Cricket | Tennis | Sports | Campus | Mumbai | Pune | Kolkata | Chennai | Hyderabad | New Delhi | पेलने लगा | कामुकता | kamuk kahaniya | उत्तेजक | सेक्सी कहानी | कामुक कथा | सुपाड़ा |उत्तेजना | कामसुत्रा | मराठी जोक्स | सेक्सी कथा | गान्ड | ट्रैनिंग | हिन्दी सेक्स कहानियाँ | मराठी सेक्स | vasna ki kamuk kahaniyan | kamuk-kahaniyan.blogspot.com | सेक्स कथा | सेक्सी जोक्स | सेक्सी चुटकले | kali | rani ki | kali | boor | हिन्दी सेक्सी कहानी | पेलता | सेक्सी कहानियाँ | सच | सेक्स कहानी | हिन्दी सेक्स स्टोरी | bhikaran ki chudai | sexi haveli | sexi haveli ka such | सेक्सी हवेली का सच | मराठी सेक्स स्टोरी | हिंदी | bhut | gandi | कहानियाँ | चूत की कहानियाँ | मराठी सेक्स कथा | बकरी की चुदाई | adult kahaniya | bhikaran ko choda | छातियाँ | sexi kutiya | आँटी की चुदाई | एक सेक्सी कहानी | चुदाई जोक्स | मस्त राम | चुदाई की कहानियाँ | chehre ki dekhbhal | chudai | pehli bar chut merane ke khaniya hindi mein | चुटकले चुदाई के | चुटकले व्यस्कों के लिए | pajami kese banate hain | चूत मारो | मराठी रसभरी कथा | कहानियाँ sex ki | ढीली पड़ गयी | सेक्सी चुची | सेक्सी स्टोरीज | सेक्सीकहानी | गंदी कहानी | मराठी सेक्सी कथा | सेक्सी शायरी | हिंदी sexi कहानिया | चुदाइ की कहानी | lagwana hai | payal ne apni choot | haweli | ritu ki cudai hindhi me | संभोग कहानियाँ | haveli ki gand | apni chuchiyon ka size batao | kamuk | vasna | raj sharma | sexi haveli ka sach | sexyhaveli ka such | vasana ki kaumuk | www. भिगा बदन सेक्स.com | अडल्ट | story | अनोखी कहानियाँ | कहानियाँ | chudai | कामरस कहानी | कामसुत्रा ki kahiniya | चुदाइ का तरीका | चुदाई मराठी | देशी लण्ड | निशा की बूब्स | पूजा की चुदाइ | हिंदी chudai कहानियाँ | हिंदी सेक्स स्टोरी | हिंदी सेक्स स्टोरी | हवेली का सच | कामसुत्रा kahaniya | मराठी | मादक | कथा | सेक्सी नाईट | chachi | chachiyan | bhabhi | bhabhiyan | bahu | mami | mamiyan | tai | sexi | bua | bahan | maa | bhabhi ki chudai | chachi ki chudai | mami ki chudai | bahan ki chudai | bharat | india | japan |यौन, यौन-शोषण, यौनजीवन, यौन-शिक्षा, यौनाचार, यौनाकर्षण, यौनशिक्षा, यौनांग, यौनरोगों, यौनरोग, यौनिक, यौनोत्तेजना,
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