गाटांक से आगे............ दिखने मे वह साधारण थी. बाल जुड़े मे बाँध रखे
थे, उनमे एक फूलों की वेणी थी. थी तो वह साँवली पर उसकी त्वचा एकदम चिकनी
ओर दमकती हुई. माथे पर बड़ी बिंदी थी ओर नाक मे नथ्नि पहने थी. वह गाओं
की औरतों जैसे धोती की तरह साड़ी पहने थी जिसमे से उसके चिकने सुडौल पैर
ओर मांसल पिंडलियाँ दिख रही थी. चोली ओर साड़ी के बीच दिखती उसकी पीठ और
कमर भी एकदम सपाट ओर मुलायम थी. चोली के नीचे शायद वह कुछ नही पहनती थी
क्योंकि कटोरी से तेल लेने को जब वह मुड़ती तो पिछे से उसकी चोली के पतले
कपड़े मे से ब्रा का कोई स्ट्रॅप नही दिख रहा था. आँचल उसने कमर मे खोंस
रखा था ओर उसके नीचे से उसकी छाती का हल्का सा उभार दिखता था. उसके स्तन
ज़यादा बड़े नही थे पर ऐसा लगता था की जीतने भी हैं, काफ़ी सख़्त ओर कसे
हुए हैं. उसके उस दुबले पतले चेहरे पर एकदम स्वस्थ ओर कसे हुए चिकने शरीर
को देखकर पहली बार मुझे समझ मे आया कि जब किसी औरत को "त्वन्गि" कहते है,
याने जिसका बदन किसी पेड़ के तने जैसा होता है, तो इसका क्या मतलब है.
उसके हाथो के स्पर्श ओर पास से दिखते उसके सादे पर स्वस्थ रूप ने मुझपेर
ऐसा जादू किया कि जो होना था वह हो कर रहा. मेरा लंड उठने लगा. मैं
परेशान था, उसके सामने उसे दबाने को कुच्छ कर भी नही सकता था. इसलिए पलट
कर पेट के बल सो गया. वह कुच्छ नही बोली, पिछे से मेरे टखने की मालिश
करती रही. अब मैं उसके बारे मे कुच्छ भी सोचने को आज़ाद था. मैं मन ही मन
लड्डू खाने लगा. मंजू बाई नंगी कैसी दिखेगी! उसे भींच कर उसे चोदने मे
क्या मज़ा आएगा ! मेरा लंड तन्ना कर खड़ा हो गया. दस मिनिट बाद वह बोली,
" अब सीधे हो जाओ बाबूजी, मैं पैर मोड़ कर मालिश करूँगी, आप एकदम सीधे
चलने लगॉगे". मैं आनाकानी करने लगा. "हो गया, बाई, अब अच्छा लग रहा है,
तुम जाओ." आख़िर खड़ा लंड उसे कैसे दिखता! पर वह नही मानी ओर मजबूर होकर
मैने करवट बदली ओर कुर्ते से लंड के उभार को ढँक कर मन ही मन प्रार्थना
करने लगा कि उसे मेरा खड़ा लंड ना दिखे. वैसे कुर्ते में भी अब तंबू बन
गया था सो अब च्छूपने की कोई गुंजाइश नही थी. वह कुछ ना बोली ओर पाँच
मिनिट मे मालिश ख़तम करके चली गयी. " बस हो गया बाबूजी, अब आराम करो आप".
कमरे से बाहर जाते जाते हुए मुस्करा कर बोली," अब देखो बाबूजी, तुम्हारी
सारी परेशानी दूर हो जाएगी". उसकी आँखों मे एक चमक सी थी. मैं सोचता रहा
कि उसके इस कहने मे ओर कुच्छ मतलब तो नही छुपा. उसकी मालिश से मैं उसी
दिन चलने फिरने लगा. दूसरे दिन उसने फिर एक बार मालिश की, ओर मेरा पैर
पूरी तरह से ठीक हो गया. इसबार मैं पूरा सावधान था ओर अपने लंड पर मैने
पूरा कंट्रोल रखा. ना जाने क्यों मुझे लगा कि जाते जाते मंजू बाई कुच्छ
उदास सी लगी. अब उसको देखने की मेरी नज़र बदल सी गयी थी. जब भी मैं घर
में होता तो उसकी नज़र बचाकर उसके शरीर को घूर्ने का कोई भी मौका नही
छ्चोड़ता था. खाना बनाते समय जब वह किचन के चबूतरे के पास खड़ी होती तो
पिछे से उसे देखना मुझे बहुत अच्छा लगता, उसकी चिकनी पीठ ओर गर्देन मुझ
पर जादू सा कर देती, मैं बार बार किसी ना किसी बहाने से किचन के दरवाजे
से गुज़रता ओर मन भर कर उसे पिछे से देखता. जब वह चलती तो मैं उसके
चूतदों ओर पिंडलियों को घूरता. उसके चूतड़ छ्होटे थे पर एकदम गोल ओर
सख़्त थे. जब वह अपने पंजो पर खड़ी होकर उपर देखते हुए कपड़े सूखने को
डालती तो उसके छ्होटे मम्मे तन कर उसके आँचल मे से अपनी मस्ती दिखने
लगते. उसे भी मेरी इस हालत का अंदाज़ा हो गया होगा,आख़िर मालिश करते समय
कुर्ते के नीचे से मेरा खड़ा लंड उसने देखा ही था. पर नाराज़ होने ओर
बुरा मानने के बजाए वह अब मेरे सामने कुच्छ कुच्छ नखरे दिखाने लगी थी.
बार बार आकर मुझसे बातें करती, कभी बेमतलब मेरी ओर देखकर हल्के से हंस
देती. उसकी हँसी भी एकदम लुभावनी थी, हंसते समय उसकी मुस्कान बड़ी मीठी
होती ओर उसके सफेद दाँत ओर गुलाबी मसूड़े दिखते क्योंकि उसका उपरी होंठ
एक खास अंदाज़ मे उपर कीओर खुल जाता. मैं समझ गया की शायद वह भी चुदासि
की भूखी थी ओर मुझे रिझाने की कोशिश कर रही थी. आख़िर उस जैसी नौकरानी को
मेरे जैसा उच्च वर्गिय नौजवान कहाँ मिलने वाला था? उसका पति तो नलायक
शराबी था ही, उसे संबंध तो मंजू ने कब के तोड़ लिए थे. मुझे यकीन हो गया
था कि बस मेरे पहल करने की देर है यह शिकार खुद मेरे पंजे में आ फँसेगा.
पर मैने कोई पहल नही की. डर था कुच्छ लेफ्डा ना हो जाए, ओर अगर मैने मंजू
को समझने मे कोई भूल की हो तो फिर तो बहुत तमाशा हो जाएगा. वह चिल्ला कर
पूरी कॉलोनी सिर पर ना उठा ले, नही तो कंपनी मे मुँह दिखाने की जगह भी ना
मिलेगी. पर मंजू ने मेरी नज़र की भूख पहचान ली थी. अब उसने आगे कदम
बढ़ाना शुरू कर दिया. वह थी बड़ी चालाक, मेरे ख़याल से उसने मन मे ठान ली
थी की मुझे फँसा कर रहेगी. अब वह मेरे सामने होती, तो उसका आँचल बार बार
गिर जाता. ख़ास कर मेरे कमरे मे झाड़ू लगाते हुए तो उसका आँचल गिरा ही
रहता. वैसे ही मुझे खाना परोसते समय उसका आँचल अक्सर खिसकने लगा ओर वैसे
मे ही वो झुक झुक कर मुझे खाना परोसती. अंदर ब्रा तो वो पहनती नही थी
इसलिए ढले आँचल के कारण उसकी चोली के उपर से उसके छ्होटे ओर कड़े मम्मो
ओर उनकी घुंडीयों का आकार सॉफ सॉफ दिखता. भले छ्होटे हों पर बड़े खूबसूरत
मम्मे थे उसके. बड़ी मुश्किल से मैं अपने आप को संभाल पाता, वरना लगता तो
था कि अभी उन कबूतरों को पकड़ लूँ ओर मसल डालूं, चूस लूँ. मैं अब उसके
मोहज़ाल मे पूरा फँस चुक्का था. रोज़ रात को मूठ मारता तो इस तीखी
नौकरानी के नाम से. उसकी नज़रों से नज़र मिलाना मैने छ्चोड़ दिया था कि
उसे मेरी नज़रों की वासना की भूख दिख ना जाए. बार बार लगता कि उसे उठा कर
पलंग पर ले जाउ ओर कचकच छोड़ मारू. अक्सर खाना खाने के बाद मैं दस मिनिट
तक बैठा रहता, उठता नही था ताकि मेरा तना लंड उसको दिख ना जाएँ. यह
ज़यादा दिन चलने वाला नही था. आख़िर एक शनिवार को छुट्टी के दिन की
दोपेहर में बाँध टूट ही गया. उस दिन खाना परोसते हुए मंजू चीख पड़ी कि
चिंटी काट रही है ओर मेरे सामने अपनी सारी उठा कर अपनी टाँगो मे चिंटी
ढूँढने का नाटक करने लगी. उसकी पुश्त सुडौल साँवली चिकनी जांघे पहली बार
मैने देखी थी. उसने सादी गुलाबी पेंटी पहनी हुई थी. उस टांग पॅंटी मे से
उसकी फूली बुर का उभार सांफ दिख रहा था. साथ ही पॅंटी के बीच के संकरे
पट्टे के दोनो ओर से घनी काली झाँतें बाहर निकल रही थी. एकदम देसी नज़ारा
था. ओर यह नज़ारा मुझे पूरे पाँच मिनिट मंजू ने दिखाया. उउई उउई करती हुई
मेरी ओर देखकर हंसते हुए वो चिंटी ढूँढती रही जो आख़िर तक नही मिली. मैने
खाना किसी तरह ख़तम किया ओर आराम करने के लिए बेडरूम मे आ गया. दरवाजा
उड़का कर मैं सीधा पलंग पर गया ओर लॅंड हाथ मे लेकर हिलाने लगा. मंजू की
वी चिकनी झंघे मेरी आँखों के सामने तेर रही थी. मैं हथेली मे लंड पकड़ कर
उसे मुत्हियाने लगा, मानो मंजू की टाँगों पर उसे रगड़ रहा हूँ. इतने मे
बेडरूम का दरवाजा खुला ओर मंजू अंदर आ गयी. वह चतुर औरत जानबूझ कर मुझे
धुला पाजामा देने का बहाना करके आई थी. दरवाजे की सितकनी मैं लगाना भूल
गया था इसीलिए वो सीधे अंदर घूस आई थी. मुझे मूठ मारते देख कर वहीं खड़ी
हो गयी ओर मुझे देखने लगी. मैं सकते मे आकर रुक गया. अब भी मेरा तननाया
हुआ लंड मेरी मुठ्ठी मे था. मंजू के चेहरे पर शिकन तक नही थी, मेरी ओर
देखकर हँसी ओर आकर मेरे पास पलंग पर बैठ गयी. "क्या बाबूजी, मैं यहाँ हूँ
आपकी हर खातिर ओर सेवा करने को फिर भी ऐसा बच्पना करते हो! मुझे मालूम है
तुम्हारे मन मे क्या है. बिल्कुल अनाड़ी हो आप बाबीजी, इतने दीनो से
इशारे कर रही हूँ पर आप नही समझते, क्या भोन्दु हो बिल्कुल आप!" मैं चुप
था, उसकी ओर देख कर शर्मा कर बस हंस दिया. आख़िर मेरी चोरी पकड़ी गयी थी.
मेरी हालत देख कर मंजू की आँखें चमक उठी," मेरे नाम से सदका लगा रहे थे
बाबूजी? अरे मैं यहाँ आपकी सेवा मे तैयार हूँ ओर आप मूठ मार रहे हो. चलो
अब हाथ हटाओ, मैं दिखाती हूँ कि ऐसे सुन्दर लंड की पूजा कैसे की जाती
है". ओर मेरे हाथ से लंड निकाल कर उसने अपने हाथ मे ले लिया ओर उसे
हथेलियों के बीच रगड़ने लगी. उसकी खुरदरी हथेलियों के रगड़ने से मेरा लंड
पागल सा हो गया. मुझे लग रहा था की मंजू को बाँहो मे भींच लूँ ओर उस पर
चढ़ जाउ, पर उसके पहले ही उसने अचानक मेरी गोद मे सिर झुककर मेरा सूपड़ा
अपने मुँह मे ले लिया ओर मेरे लंड को चूसने लगी. उसके गीले तपते मुँह ओर
मच्चली सी फुदक्ति जीभ ने मेरे लंड को ऐसा तडपाया कि मैं झड़ने को आ गया.
मैं चुप रहा ओर मज़ा लेने लगा. सोचा अब जो होगा देखा जाएगा. हाथ बढ़ा कर
मैने उसके मम्मे पकड़ लिए. क्या माल था! सेब से कड़े थे उसके स्तन.
सूपड़ा चूस्ते चूस्ते वह अपनी एक मुठ्ठी मे लंड का डंडा पकड़कर सदका लगा
रही थी, बीच मे आँखे उपर करके मेरी आँखो मे देखती ओर फिर चूसने लग जाती.
उसकी आँखो मे इतनी शैतानी खिलखिला रही थी कि दो मिनिट मे मैं हुमक कर
झाड़ गया. "मंजू बाई, मुँह हटा लो, मैं झड़ने वाला हूँ ओ:ओ:, मैं कहता रह
गया पर उसने तो ओर लंड को मुँह मे अंदर तक ले लिया ओर जब तक चूस्ति रही
जब तक मेरा पूरा विर्य उसके हलक के नीचे नही उतर गया". मैने हान्फ्ते हुए
उसे पूंच्छा, "कैसी हो तुम बाई, अरे मुँह बाजू मे क्यों नही किये, मैने
बोला तो था कि झड़ने के पहले!" "अरे मैं क्या पगली हूँ बाबूजी इतनी मस्त
मलाई छ्चोड़ देने को? तुम्हारे जैसा खूबसूरत लॉडा कहाँ हम ग़रीबों को
नसीब होता हैं! ये तो भगवान का प्रषाद है हमारे लिए" वह बड़े लाड़ के
अंदाज़ मे बोली. उसकी इस अदा पर मैने उसे बाहों मे जाकड़ लिया ओर चूमने
लगा पर वह छ्छूट कर खड़ी हो गयी ओर खिलखिला उठी " अभी नही बाबूजी, बड़े
आए अब चूमा चाति करने वाले. इतने दिन तो कैसे मिट्टी के माधो बने घूमते
थे अब चले आए चिपक्ने. चलो जाने दो मुझको" कपड़े ठीक करके वह कमरे के
बाहर चली गयी. जाते जाते मेरे चेहरे की निराशा देखकर बोली, " ऐसे मुँह मत
लटकाओ मेरे राजा बाबू मैं आउन्गि फिर अभी कोई आ जाएगा तो? अब ज़रा सबर
करो मैं रात को आउन्गि. देखना कैसी सेवा करूँगी अपने राजकुमार जैसे
बाबूजी की. अब मूठ नही मारना आपको मेरी कसम!" मैं तिरुप्त होकर लूड़क गया
ओर मेरी आँख लग गयी. विश्वास नही हो रहा था की इस मतवाली औरत ने अभी अभी
मेरा लंड चूसा है. सीधा शाम को उठा. मन मे खुशी के लड्डू फुट रहे थे.
क्या औरत थी! इतना मस्त लंड चूसने वाली ओर एकद्ूम तीखी कटारी. कमरे के
बाहर जाकर देखा तो मंजू गायब थी. अच्छा हुआ क्योंकि जिस मूड मे मैं था
उसमें उसे पकड़कर ज़रूर उसे ज़बरदस्ती चोद डालता. टाइम पास करने को मैं
क्लब मे चला गया. जब रात को नौ बजे वापस आया तो खाना टेबल पर रखा था.
मंजू अब भी गायब थी. मैं समझ गया कि वो अब सीधे सोने के समय ही आएगी.
आख़िर उसे भी एहसास होगा कि कोई रात को उसे मेरे घर मे देख ना ले. दिन की
बात ओर थी. वैसे घर की चाभी उसके पास थी ही. मैं जाकर नहाया ओर फिर खाना
खाकर अपने कमरे मे आ गया. अपने सारे कपड़े निकाल दिए ओर अपने खड़े लंड को
पूचकारता हुआ मंजू का इंतज़ार करने लगा. दस बजे दरवाजा खोल कर मंजू बाई
अंदर आई. तब तक मेरा लंड सूज़ कर सोंटा बन गया था. बहुत मीठी तक़लीफ़ दे
रहा था. मंजू को देखकर मेरा लंड ओर ज़यादा थिरक उठा. उसकी हिम्मत की मैने
मन ही मन दाद दी. मैं यह भी समझ गया की उसे भी तेज़ चुदासी सता रही होगी!
मंजू बाई बाहर के कमरे मे अपने सारे कपड़े उतार कर आई थी एकदम मादरजात
नंगी. पहली बार उसका नागन मादक असली देसी रूप मैने देखा. साँवली छर्हरि
काया, छ्होटे सेब जैसी ठोस चूचियाँ, बस ज़रा सी लटकी हुई, स्लिम पर मजबूत
झांघे ओर घनी झांतों से भरी बुर, मैं तो पागला सा गया. उसके शरीर पर कहीं
भी चर्बी का ज़रा सा काटना नहीं था, बस एकदम कड़क दुबला पतला शरीर था. वो
मेरी ओर बिना झिझके देख रही थी पर मैं थोड़ा शर्मा गया था. पहली बार किसी
औरत के सामने मैं नंगा हुआ था ओर किसी औरत को पूरा नंगा देख रहा था. ओर
वह आख़िर उम्र मे मुझसे काफ़ी बड़ी थी, करीब मेरी मौसी की उम्र की. पर वह
बड़ी सहजता से चलती हुई मेरे पास आकर बैठ गयी. मेरा लंड हाथ मे पकड़ कर
बोली,"वाह बाबूजी, क्या खड़ा है? मेरी याद आ रही थी? ये मंजू बाई पसंद आ
गयी है लगता है आपके लौदे को." क्रमशः........................ Ghar Ka
Doodh part--2 Gataank se aage............ Dikhne mei weh saadhaaran
thi. Baal jude mei baandh rakhe they, unmei ek phoolon ki veni thi.
Thi to weh saanwali per uski twacha ekdam chikni or damakti huithi.
Maathe per badi bindi thi or naak mei nathni pehne thi. Weh gaon ki
aurton jaise dhoti ki tarah saadi pehne thi jisme se uske chikne
sudaul pair or maansal pindaliyan dikh rahi thi. Choli or saadi ke
beech dikhti uski peenth or kamar bhi ekdam sapaat or mulaayam thi.
Choli ke niche shayad weh kuch nahi pehanti thi kyonki katori se tel
lene ko jab weh mudti to pichhe se uski choli ke patle kapde mei se
bra ka koi strap nahi dikh raha tha. Aanchal usne kamar mei khons
rakha tha or uske niche se uski chhati ka halka sa ubhaar dikhta tha.
Uske stan jayada bade nahi they per aisa lagta tha ki jitney bhi hain,
kafi sakht or kase hue hain. Uske us duble patle chharhare per ekdam
swasth or kase hue chikne sharer ko dekhkar pehli baar mujhe samajh
mei aaya ki jab kisi aurat ko "twangi" kehte hai, yane jiska badan
kisi ped ke tane jaisa hota hai, to iska kya matlab hai. Uske hanthon
ke sparsh or pass se dikhte uske saade per swasth roop ne mujhper aisa
jaadu kiya ki jo hona tha weh ho kar raha. Mera land sie uthane laga.
Main pareshan tha, uske saamne use dabaane ko kuchh kar bhi nahi sakta
tha. Isliye palat kar pet ke bal so gaya. Weh kuchh nahi boli, pichhe
se mere takhne ki maalish karti rahi. Ab main uske bare mei kuchh bhi
sochne ko aazaad tha. Main man hi man laddu khaane laga. Manju bai
nangi kaisi dikhegi! Use bheench kar use chodne mei kya maza aayega !
MERA LAND TANNA KAR KHADA HO GAYA. Das minute baad weh boli, " ab
sidhe ho jao babuji, main pair mod kar maalish karoongi, aap ekdam
sidhe chalne lagoge". Main aanakaani karne laga. "ho gaya, bai, ab
achcha lag raha hai, tum jaao." Aakhir khada land use kaise dikhata!
Per weh nahi maani or majboor hokar maine karwat badly or kurte se
land ke ubhaar ko dhank kar man hi man prathana karne laga ki use mera
khada land na dikhe. Waise kurte mein bhi ab tambu ban gaya tha so ab
chhupne ki koi gunjaayish nahi thi. Weh kuch na boli or paanch minute
mei maalish khatam karke chali gayi. " bas ho gaya babuji, ab aaraam
karo aap". Kamre se baahar jaate jaate hue muskara kar boli," ab dekho
babuji, tumhari saari preshaani door ho jaayegi". Uski aankhon mei ek
chamak sit hi. Main sochta raha ki uske is kehne mei or kuchh matlab
to nahi chhupa. Uski maalish se main usi din chalne phirne laga. Dusre
din usne phir ek baar maalish ki, or mera peir puri tarah se thik ho
gaya. Isbaar main poora saavdhaan tha or apne land per maine poora
control rakha. Na jaane kyon mujhe laga ki jaate jaate manju bai kuchh
udaas si lagi. Ab usko dekhne ki meri nazar badal si gayi thi. Jab bhi
main ghar mein hota to uski nazar bachakar uske sharer ko ghoorne ka
koi bhi mouka nahi chhodta tha. Khaana banaate samay jab weh kitchen
ke chabootare ke pass khadi hoti to pichhe se use dekhna mujhe bahut
achcha lagta, uski chikni peeth or garden mujh per jaadu sa kar deti,
main baar baar kisi na kisi bahaane se kitchen ke darwaaje se gujarta
or man bhar kar use pichhe se dekhta. Jab weh chalti to main uske
chutadon or pindaliyon ko ghoorta. Uske chutad chhote they per ekdam
gol or sakht they. Jab weh apne panjo per khadi hokar upper dekhte hue
kapde sukhane ko daalti to uske chhote mummey tan kar uske aanchal mei
se apni masti dikhane lagte. Use bhi meri is haalat ka andaza ho gaya
hoga,aakhir maalish karte samay kurte ke niche se mera khada land usne
dekha hi tha. Per naraaj hone or bura maanne ke bajaaye weh ab mere
saamne kuchh kuchh nakhre dikhane lagi thi. Baar baar aakar mujhse
baatein karti, kabhi bematlab meri or dekhkar halke se hans deti. Uski
hansi bhi ekdam lubhavani thi, hanse samay uski muskaan badi meethi
hoti or uske safed daant or gulaabi masoode dikhte kyonki uska upri
honth ek khas andaaz mai upper kior khul jata. Main samajh gaya ki
shayad weh bhi chudaasi ki bhookhi thi or mujhe rijhaane ki koshish
kar rahi thi. Aakhir us jaisi naukarani ko mere jaisa uch vargiya
naujawaan kahan milne wala tha? Uska pati to nalaayak sharaabi tha hi,
use sambandh to manju ne kab ke tod liye they. Mujhe yakin ho gaya tha
ki bas mere pehal karne ki der hai yeh shikaar khud mere panje mein aa
phansega. Per maine koi pehal nahi ki. Dar tha kuchh lafda na ho
jaaye, or agar maine manju ko samajhne mei koi bhool ki ho to phir to
bahut tamaasha ho jaayega. Weh chilla kar poori colony sir per na utha
le, nahi to company mei munh dikhane ki jagah bhi na milegi. Per manju
ne meri nazar ki bhookh pehchaan lit hi. Ab usne aage kadam badhana
shuru kar diya. Weh thi badi chalaak, mere khayaal se usne man mei
than lit hi ki mujhe phansa kar rahegi. Ab weh mere saamne hoti, to
uska aanchal baar baar gir jaata. Khaas kar mere kamre mei jhaadu
lagaate hue to uska aanchal gira hi rehta. Waise hi mujhe khaana
paroste samay uska aanchal aksar khisakne laga or waise mei hi wo jhuk
jhuk kar mujhe khaana parosti. Andar bra to wo pehanti nahi thi isliye
dhale aanchal ke kaaran uski choli ke upper se uske chhote or kade
mammo or unki ghundiyon ka aakaar saanf saanf dikhta. Bhale chhote hon
per bade khoobsurat mamme they uske. Badi mushkil se main apne aap ko
sambhaal paata, varna lagta to tha ki abhi un kabootaron ko pakad loon
or masal daaloon, choos loon. Main ab uske mohjaal mei poora phans
chukka tha. Roz raat ko muthhmaarta to is tikhi naukarani ke naam se.
uski nazaron se nazar milaana maine chhod diya tha ki use meri nazaron
ki vaasna ki bhookh dikh na jaaye. Baar baar lagta ki use utha kar
palang per le jaaun or kachakach chod maaroon. Aksar khaana khaane ke
baad main das minute tak baitha rehta, uththa nahi tha taki mera tana
land usko dikh na jaayen. Yeh jayada din chalne waala nahi tha. Aakhir
ek shanivaar ko chhutti ke din ki dopehar mein baandh toot hi gaya. Us
din khaana paroste hue manju cheekh padi ki chinti kaat rahi hai or
mere saamne apni saari utha kar apni tango mei chinti dhundhne ka
naatak karne lagi. Uski pushth sudoul saanwali chikni jhaanghe pehli
baar maine dekhi thi. Usne saadi gulaabi penti pehni hui thi. Us tang
panty mei se uski phooli bur ka ubhaar saanf dikh raha tha. Sath hi
panty ke beech ke sankare patte ke dono or se ghani kaali jhaantein
baahar nikal rahi thi. Ekdam desi najaara tha. Or yeh najaara mujhe
poore paanch minute manju ne dikhaya. Uuiiee uuiiee karti hui meri or
dekhkar hanste hue wo chinti dhoondhti rahi jo aakhir tak nahi mili.
Maine khaana kisi tarah khatam kiya or aaraam karne ke liye bedroom
mei aa gaya. Darwaaja udka kar main sidha palang per gaya or land
haanth mei lekar hilaane laga. Manju ki we chikni jhanghe meri aankhon
ke saamne tair rahi thi. Main hatheli mei land pakad kar use
muthhiyane laga, maano manju ki taangon per use ragad raha hoon. Itne
mei bedroom ka darwaaja khula or manju andar aa gayi. Itne mei bedroom
ka darwaaja khula or manju andar aa gayi. Weh chatur aurat jaanbujh
kar mujhe dhula pajama dene ka bahaana karke aayi thi. Darwaaje ki
sitakni main lagaana bhool gaya tha isiliye wo sidhe andar ghoos aayi
thi. Mujhe muthh maarte dekh kar wahin khadi ho gayi or mujhe dekhne
lagi. Main sakte mei aakar ruk gaya. Ab bhi mera tannaya hua land meri
muththi mei tha. Manju ke chehre per shikan tak nahi thi, meri or
dekhkar hansi or aakar mere pass palang per baith gayi. "kya babuji,
main yahan hoon aapki har khaatir or sewa karne ko phir bhi aisa
bachpana karte ho! Mujhe maaloom hai tumhare man mei kya hai. Bilkul
anaadi ho aap babiji, itne dino se ishaare kar rahi hoon per aap nahi
samajhte, kya bhondu ho bilkul aap!" Main chup tha, uski or dekh kar
Sharma kar bas hans diya. Aakhir meri chori pakadi gayi thi. Meri
haalat dekh kar manju ki aankhen chamak uthi," mere naam se sadka laga
rahe they babuji? are main yahan aapki sewa mei taiyaar hoon or aap
muthh maar rahe ho. Chalo ab haath hataao, main dikhati hoon ki aise
sunder laude ki pooja kaise ki jaati hai". Or mere hath se land nikaal
kar usne apne hath mei le liya or use hatheliyon ke beech ragadne
lagi. Uski khurdari hatheliyon ke ragadne se mera land paagal sa ho
gaya. Mujhe lag raha tha ki manju ko baanhomein bheench loon or us per
chad jaaun, per uske pehle hi usne achanak meri god mei sir jhukakar
mera supada apne munh mei le liya or mere land ko choosne lagi. Uske
geele tapte munh or machhli si phudakti jeebh ne mere land ko aisa
tadpaya ki main jhadne ko aa gya. Main chup raha or maza lene laga.
Socha ab jo hoga dekha jaayega. Haath badakar maine uske mamme pakad
liye. Kya maal tha! Seb se kade they uske stan. Supada chooste chooste
weh apni ek muththi mei land ka danda pakadkar sadka laga rahi thi,
beech mei aankhe upper karke meri aankho mei dekhti or phir choosne
lag jaati. Uski aankho mei itni shaitani khilkhila rahi thi ki do
minute mei main humak kar jhad gaya. "manju bai, munh hata lo, main
jhadne wala hoon O:o:, main kehta reh gaya per usne to or land ko munh
mei andar tak le liya or jab tak choosti rahi jab tak mera poora virya
uske halak ke niche nahi utar gaya". Maine haanfte hue use poonchha,
"kaisi ho tum bai, are munh baju mei kyon nahi kiay, maine bola to tha
ki jhadne ke pehle!" "are main kya pagli hoon babuji itni mast malaai
chhod dene ko? Tumhare jaisa khoobsurat lauda kahan hum garibon ko
naseeb hota hain! Ye to bhagwaan ka prashaad hai hamaare liye" weh
bade laad ke andaaz mei boli. Uski is ada per maine use baahon mei
jakad liya or choomne laga per weh chhoot kar khadi ho gayi or
khilkhila uthi " abhi nahi babuji, bade aaye ab chooma chaati karne
waale. Itne din to kaise mitti ke maadho bane ghoomte the ab chale
aaye chipakne. Chalo jaane do mujhko" Kapade theek karke weh kamare ke
bahaar chali gayi. Jaate jaate mere chehre ki niraasha dekhkar boli, "
aise munh mat latkaao mere raja babu main aaungi phir abhi koi aa
jaayega to? Ab jara sabar karo main raat ko aaungi. Dekhna kaisi sewa
karoongi apne raajkumar jaise babuji ki. Ab mutthh nahi maarna aapko
meri kasam!" Main tirupt hokar ludak gaya or meri aankh lag gayi.
Vishwaas nahi ho raha tha ki is matwaali aurat ne abhi abhi mera land
choosa hai. Seedha sham ko utha. Man mei khushi ke laddu foont rahe
they. Kya aurat thi! Itna mast land choosne waali or ekdum teekhi
kataari. Kamare ke baahar jaakar dekha to manju gaayab thi. Achcha hua
kyonki jis mood mei main tha usmein use pakadkar jaroor use jabardasti
chod daalta. Time pass karne ko main club mei chala gaya. Jab raat ko
nau baje vaapas aaya to khaana table per rakha tha. Manju ab bhi
gaayab thi. Main samajh gaya ki wo ab seedhe son eke samay hi aayegi.
Aakhir use bhi ehsaas hoga ki koi raat ko use mere ghar mei dekh na
le. Din ki baat or thi. Waise ghar ki chaabhi uske pass thi hi. Main
jaakar nahaaya or phir khaana khaakar apne kamare mei aa gaya. Apne
saare kapde nikaal diye or apne khade land ko puchkaarta hua manju ka
intzaar karne laga. Das baje darwaaja khol kar manju bai andar aayi.
Tab tak mera land sooz kar sonta ban gaya tha. Bahut meethi taqleef de
raha tha. Manju ko dekhkar mera land or jayada thirak utha. Uski
himmat ki maine man hi man daad di. Main yeh bhi samajh gaya ki use
bhi tez chudaasi sata rahi hogi! Manju bai baahar ke kamre mei apne
saare kapade utaar kar aai thi ekdam maadarjaat nangi. Pehli baar uska
nagan maadak asli desi roop maine dekha. Saanwali chharhari kaaya,
chhote seb jaisi thhoos choochiyan, bas jara si latki hui, slim per
majboot jhaanghe or ghani jhaanton se bhari bur, main to pagla sa
gaya. Uske sharer per kahin bhi charbi ka jara sa katna nahin tha, bas
ekdum kadak dubla patla sharer tha. Wo meri or bina jhijhke dekh rahi
thi per main thoda Sharma gaya tha. Pehli baar kisi aurat ke saamne
main nanga hua tha or kisi aurat ko poora nanga dekh raha tha. Or weh
aakhir umra mei mujhse kafhi badi thi, karib meri mausi ki umra ki.
Per weh badi sehjhta se chalti hui mere pass aakar baith gayi. Mera
land haath mei pakad kar boli,"wah babuji, kya khada hai? Meri yaad aa
rahi thi? Ye manju bai pasand aa gayi hai lagta hai aapke laude ko."
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Friday, October 1, 2010
सेक्सी कहानी -घर का दूध पार्ट--2
हिंदी सेक्सी कहानियाँ घर का दूध पार्ट--2
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