Friday, October 1, 2010

सेक्सी कहानी -घर का दूध पार्ट--3

हिंदी सेक्सी कहानियाँ घर का दूध पार्ट--3

गतान्क से आगे............ अब मुझसे रहा नही गया. उसे बाँहो मे भींच कर
मैं उसको चूमने लगा. उसके होंठ भी थोड़े खुरदारे थे पर एकदम मीठे, उनमें
से पान की भीनी खुश्बू आ रही थी. वह भी अपनी बाहें मेरे गले मे डाल कर
इतराती हुई मेरे चुंबनो का उत्तर देने लगी, अपनी जीभ उसने मेरे मुँह मे
डाल दी ओर मैं उसे चूसने मे लग गया. बड़ा मादक चुंबन था,उस नौकरानी का
मुँह इतना मीठा होगा, मैने सपने मे सोचा भी नहीं था. मेरा लंड अब ऐसा
फनफना रहा था कि मैं अब उसे पटक कर उसपेर चढ़ने की कोशिश करने लगा. "अरे
क्या भूखे भेड़िए जैसे कर रहे हो बाबूजी, ज़रा मज़ा लो, धीरे धीरे मस्ती
करो. आप आराम से लेटो,मैं करूँगी जो करना है" कहकर उसने मुझे पलंग पर
धकेल दिया. मुझे लिटाकर वह फिर मेरा लंड चूसने लगी. मुझे मज़ा आ रहा था
पर उसे कस के चोदने की इच्छा मुझे शांत नही लेटने दे रही थी. "मंजू बाई
चलो अब चुदवा भी लो, ऐसे ना सताओ. देखो, फिर चूस कर नही झड़ाना, आज मैं
तुझे खूब चोदुन्गा." मैने उसकी एक चूंची हाथ मे लेकर कहा. उसका कड़ा निपल
कांचे जैसा मेरी हथेली मे चुभ रहा था. उसने हंस कर मुंदी हिलाई की समझ
गयी पर मेरे लंड को उसने नही छ्चोड़ा, ओर ज़यादा मुँह में लेकर चूस्ति ही
रही. शायद फिर से मेरी मलाई के पीछे थी वो बिल्ली! मैं तैश मे आ गया, उठ
कर उसके मुँह से ज़बरदस्ती बाहर खींचा ओर उसे बिस्तर पर पटक दिया. वह
कहती रह गयी, " अरे रूको बाबूजी, ऐसे नही" पर मैने उसकी टांगे अलग करके
अपना लंड उसकी चूत पर रखा ओर पेल दिया. बुर इतनी गीली थी की लंड आराम से
अंदर चला गया. मैं अब रुकने की स्थिति मे नही था, एक झटके से मैने लंड
जड़ तक उसकी चूत में उतार दिया ओर फिर उस के उप्पर लेट कर उसे चोदने लगा.
मंजू हंसते हुए मुझे दूर करने की कोशिश करने लगी, " बाबूजी रूको, ऐसे नही
चोदो, ज़रा मज़ा करके चोदो, मैं कहाँ भागी जा रही हूँ? अरे धीरे बाबूजी,
ऐसे जानवर जैसे ना धक्के मारो! ज़रा हौले हौले प्यार करो मेरी बुर को"
मैने उसके मुँह को अपने होंठों मे दबा लिया ओर उसकी बकबक बंद कर दी. फिर
उसे भींच कर कस के हचक हचक कर उसे चोदने लगा. उसकी चूत इतनी गीली थी कि
मेरा लंड गपगाप अंदर बाहर हो रहा था. कुच्छ देर ओर छूटने की कोशिश करने
के बाद मंजू बाई ने हार मान ली ओर मुझसे चेपेट कर अपने चूतड़ उच्छाल
उच्छाल कर चुदवाने लगी. अपने पैर उसने मेरी कमर के इर्द गिर्द कस रखे थे
ओर अपनी बाँहों मे मुझे भींच लिया था. इतना आनंद हो सकता है चुदाई मे
मैने सोचा भी नही था. मंजू का मुँह चूस्ते हुए मैने उसकी चूत की कुटाई
चालू रखी. यह सच कभी समाप्त ना हो ऐसा मुझे लग रहा था. पर मैने बहुत
जल्दी की थी. मंजू बाई की उस मादक देसी काया ओर उसकी गरमागरम चिपचिपी चूत
ने मुझे ऐसा बहकाया कि मैं दो मिनिट मे ही झाड़ गया. पड़ा पड़ा मैं इस सच
मे डूबा मज़ा लेता रहा. मंजू बाई बेचारी अब भी गरम थी ओर नीचे से अपनी
चूत को उपर नीचे कर के चुदने की कोशिश कर रही थी. मुझे अब थोड़ी शरम आई
की बिना मंजू को झड़ाए मैं झाड़ गया. " मांफ करना मंजू बाई, तुमको झदाने
के पहले ही मैं बहक गया." मेरी हालत देखकर मंजू बाई मुझसे चिपटकर मुझे
चूमते हुए बोली "कोई बात नही मेरे राजा बाबू. आप जैसा गरम नौजवान ऐसे नही
बहकेगा तो कौन बहकेगा. और मेरे बदन को देख कर ही आप ऐसे मस्त हुए हो ना?
मैं तो निहाल हो गयी की मेरे बाबूजी को ये गाँव की औरत इतनी अच्छी लगी.
आप मुझसे कितने छ्होटे हो, पर फिर भी आप को मैं भा गयी, पिच्छले जनम मे
मैने ज़रूर अच्छे कर्म किए होंगे. चलो, अब भूख मिट गयी ना? अब तो मेरा
कहना मानो. आराम से पड़े रहो और मुझे अपना काम करने दो." मंजू के कहने पर
मैने अपना झाड़ा लंड वैसे ही मंजू की चूत मे रहने दिया और उसपेर पड़ा
रहा. मुझे बाँहों मे भरके चूमते हुए वह मुझसे तरह तरह की उकसाने वाली
बातें करने लगी "बाबूजी मज़ा आया? मेरी चूत कैसी लगी? मुलायम है ना? पर
मखमल जैसी चिकनी है या रेशम जैसी? कुच्छ तो बोलो, शरमाओ नही!" मैने उसे
चूम कर कहा की दुनिया के किसी भी मखमल या रेशम से ज़्यादा मुलायम है उसकी
बुर. मेरी तारीफ़ पर वह फूल उठी. आगे पाटर पाटर करने लगी. "पर मेरी झाँते
तो नही चुभि आपके लंड को? बहुत बढ़ गयी हैं और घूंघराली भी है, पर मैं
क्या करूँ, काटने का मन नही होता मेरा. वैसे आप कहो तो काट दूं. मुझे
बड़ी झाँते अच्छि लगती है. और मेरा चुम्मा कैसा लगता है, बताओ ना? मीठा
है कि नही? मेरी जीभ कैसी है बताओ. मैने कहा की जलेबी जैसी. मैं समझ गया
था कि वह तारीफ़ की भूखी है. वह मस्ती से बहक सी गयी. "कितना मीठा बोलते
हो, जलेबी जैसी है ना? लो चूसो मेरी जलेबी" और मेरे गाल हाथों मे लेकर
मेरे मुँह मे अपनी जीभ डाल दी. मैने उसे दाँतों के बीच पकड़ लिया और
चूसने लगा. वह हाथ पैर फेकने लगी. किसी तरह छ्छूट कर बोली "अब देखो मैं
तुमको कैसे चोदती हूँ. अब मेरे पल्ले पड़े हो, रोज इतना चोदुन्गि तुमको
की मेरी चूत के गुलाम हो जाओगे" इन कामुक बातों का परिणाम यह हुआ कि दस
मिनिट मे मेरा फिर खड़ा हो गया और मंजू की चूत मे अंदर घुस गया. मैने फिर
उसे चोदना शुरू कर दिया पर अब धीरे धीरे और प्यार से मज़े ले लेकर. मंजू
भी मज़े ले लेकर चुदवाति रही पर बीच मे अचानक उसने पलटकर मुझे नीचे पटक
दिया और मेरे उपेर आ गयी. उपेर से उसने मुझे चोदना चालू रखा. "अब चुपचाप
पड़े रहो बाबूजी. आजकी बाकी चुदाई मुझपर छ्चोड़ दो." उसका यह हुक्म मान
कर मैं चुपचाप लेट गया. वह उठकर मेरे पेट पर बैठ गयी. मेरा लंड अब भी
उसकी चूत मे अंदर तक घुसा हुआ था. वह आराम से घुटने मोड़ कर बैठ गयी और
उपेर नीचे होकर मुझे चोदने लगी. उपेर नीचे होते समय उसके मम्मे उच्छल रहे
थे. मैने हाथ बढ़ाकर उन्हे पकड़ लिया और दबाने लगा. उसकी गीली चूत बड़ी
आसानी से मेरे लंड पर फिसल रही थी. उस मखमली म्यान ने मेरे लंड को ऐसा
कड़ा कर दिया जैसे लोहे का डंडा हो. मंजू मन लगाकर मज़ा ले लेकर मुझे
हौले हौले चोद रही थी. चूत से पानी की धार बह रही थी जिससे मेरा पेट गीला
हो गया था. मैने अपना पूरा ज़ोर लगाकर अपने आप को झदाने से रोका और कमर
उपेर नीचे करके नीचे से ही मंजू की बुर मे लंड पेलता रहा. आख़िर मंजू बाई
एक हल्की सिसकी के साथ झाड़ ही गयी. उसकी आँखों मे झलक आई तृप्ति को
देखकर मुझे रोमाच हो आया. आख़िर मेरे लंड ने पहली बार किसी औरत को इतना
सुख दिया था. झाड़ कर भी वह रुकी नही, मुझे चोदति रही "पड़े रहो बाबूजी,
अभी थोड़े छ्चोड़ूँगी तुमको, घंटा भर चोदुन्गि, बहुत दिन बाद लंड मिला है
और वो भी ऐसा शाही लॉडा. और देखो मैं कहूँ तब तक झड़ना नही, नही तो मैं
आपकी नौकरी छ्चोड़ दूँगी" एस मीठी धमकी के बाद मेरी क्या मज़ाल थी झदाने
की. घंटे भर तो नही, पर बीस एक मिनिट मंजू बाई ने मुझे खूब चोदा, अपनी
सारी हवस पूरी कर ली. चोदने मे वह बड़ी उस्ताद निकली, मुझे बराबर मीठी
च्छुरी से हलाल करती रही, अगर मैं झदाने के करीब आता तो रुक जाती. मुझे
और मस्त करने को वह बीच बीच मे खुद ही अपनी चूंचियाँ मसल्ने लगती. कहती
"चुसोगे बाबूजी?" और खुद ही झुक कर अपनी चून्चि खींच कर निप्पल चूसने
लगती. मैं उठकर उसकी चून्चि मुँह मे लेने की कोशिश करता तो हंस कर मुझे
वापस पलंग पर धकेल देती. तरसा रही थी मुझे! दो बार झदाने के बाद वह मुझ
पर तरस खाकर रुकी. अब मैं वासना से तड़प रहा था. मुझसे साँस भी नही ली जा
रही थी. "चलो पिछे खिसक कर सिरहाने से टिक कर बैठ जाओ बाबूजी, तुम बड़े
अच्छे सैयाँ हो, मेरी बात मानते हो, अब इनाम दूँगी" मैं सरका और टिक कर
बैठ गया. अब वह मेरी ओर मुँह करके मेरी गोद मे बैठी थी. मेरा उच्छलता लंड
अब भी उसकी चूत मे क़ैद था. वह उपेर होने के कारण उसकी छाती मेरे मुँह के
सामने थी. पास से उसके सेब से मम्मे देखकर मज़ा आ गया. किशमिश के दानो
जैसे छ्होटे निप्पल थे उसके और तन कर खड़े थे. मंजू मेरे से लाड करते हुए
बोली "मुँह खोलो बाबूजी, अपनी मंजू अम्मा का दूध पियो. दूध है तो नही
मेरी चून्चि मेी, झुत मूत का ही पियो, मुझे मज़ा आता है" मेरे मुँह मे एक
घुंडी देकर उसने मेरे सिर को अपनी छाति पर भींच लिया और मुझे ज़ोर ज़ोर
से चोदने लगी. उसका आधा मम्मा मेरे मुँह मे समा गया था. उसे चूस्ते हुए
मैने भी नीचे से उचक उचक कर चोदना शुरू कर दिया, बहुत देर का मैं इस
च्छुरी की धार पर था, जल्द ही झाड़ गया. पड़ा पड़ा मैं इस मस्त स्खलन का
लुत्फ़ लेने लगा. मंजू उठी और मुझे प्यार भरा एक चुम्मा देकर जाने लगी.
उसकी आँखों मे असीम प्यार और तृप्ति की भावना थी. मैं उसका हाथ पकड़कर
बोला. "अब कहाँ जाती हो मंजू बाई, यहीं सो जाओ मेरे पास, अभी तो रात बाकी
है" वह हाथ छुड़ा कर बोली "नही बाबूजी, मैं कोई आपकी लुगाई थोड़े ही हूँ,
कोई देख लेगा तो आफ़त हो जाएगी. कुच्छ दिन देखूँगी. अगर किसी को पता नही
चला तो आप के साथ रात भर सोया करूँगी" मुझे पक्का यकीन था कि इस कालोनी
मे जहाँ दिन मे भी कोई नही होता था, रात को कोई देखने वाला कहाँ होगा!.
और उसका घर भी तो भी मेरे बंगले से लगा हुआ था. पर वह थोड़ी घबरा रही थी
इसीलिए अभी मैने उसे जाने दिया. दूसरे दिन से मेरा जीवन ऐसे निखर गया
जैसे खुद भगवान कामदेव की मुझ पर कृपा हो. मंजू सुबह सुबह चाइ बनाकर मेरे
बेडरूम मे लाती और मुझे जगाती. जब तक मैं चाइ पीता, वह मेरा लंड चूस
लेती. मेरा लंड सुबह तन कर खड़ा रहता था और झाड़ कर मुझे बहुत अच्छा लगता
था. फिर नहा धोकर नाश्ता करके मैं ऑफीस को चला जाता. दोपहर को जब मैं घर
आता तो मंजू एकदम तैयार रहती थी. उसे बेडरूम मे ले जाकर मैं फटाफट दस
मिनिट मे चोद डालता. वह भी ऐसी गरम रहती थी की तुरंत झाड़ जाती थी. इस
जल्दबाज़ी की चुदाइ का आनंद ही कुच्छ और था. अब मुझे पता चला कि 'चुदाई'
किस चीज़ का नाम है. चुदने के बाद वह मुझे खुद अपने हाथों से प्यार से
खाना खिलाती, एक बच्च्चे जैसे. मैं फिर ऑफीस को निकल जाता. शाम को हम
ज़रा सावधानी बरतते थे. मुझे क्लब जाना पड़ता था. कोई मिलने भी अक्सर घर
आ जाता था. इसलिए शाम को मंजू बस कित्चन मे ही रहती या बाहर चली जाती. पर
रात को ऐसी धुआँधार चुदाई होती की दिन कि सारी कसर पूरी हो जाती. सोने को
तो बारह बज जाते. अब वह मेरे साथ ही सोती थी. एक हफ़्ता हो गया था और रात
को माहौल इतना सुनसान होता था कि किसी को कुच्छ पता चलने का सवाल ही नही
था. वीकेंड मे शुक्रवार और शनिवार रात तो मैं उसे रात भर चोद्ता, तीन चार
बज जाते सोने को. मैने उसकी तनखुवा भी बढ़ा दी थी. अब मैं उसे हज़ार
रुपये तनखुवा देता था. पहले वह नही मान रही थी. ज़रा नाराज़ होकर बोली
"ये मैं पैसे को थोड़ी करती हूँ बाबूजी, तुम मुझे अच्छे लगते हो इसीलिए
करती हूँ." पर मैने ज़बरदस्ती की तो मान गयी. इसके बाद वह बहुत खुश रहती
थी. मुझे लगता है कि उसकी वह खुशी पैसे के कारण नही बल्कि इसलिए थी की
उसे चोदने को मेरे जैसा नौजवान मिल गया था, करीब करीब उसके बेटे की उमर
का. मंजू को मैं कई आसनो मे चोद्ता था पर उसकी पसंद का आसान था मुझे
कुर्सी मे बिठाकर मेरे उपेर बैठ कर अपनी चून्चि मुझसे चुसवाते हुए मुझे
चोदना. मुझे कुर्सी मे बिठाकर वह मेरा लंड अपनी चूत मे लेकर मेरी ओर मुँह
करके मेरी गोद मे बैठ जाती. फिर मेरे गले मे बाँहे डाल कर मुझे अपनी छाती
से चिपटाकर चोदति. उसकी चून्चि मैं इस आसान मे आराम से चूस सकता था और वह
भी मुझे उपेर से मन चाहे जितनी देर चोद सकती थी क्योंकि मेरा झड़ना उसके
हाथ मे था. उसके कड़े निपल मुँह मे लेकर मैं मदहोश हो जाता. शनिवार
रविवार को बहुत मज़ा आता था. मेरी छुट्टी होने से मैं घर मे ही रहता था
इसलिए मौका देखकर कभी भी उससे चिपत जाता था और खूब चूमता और उसके मम्मे
दबाता. जब वह किचन मे खाना बनाती थी तो उसके पिछे खड़े होकर मैं उससे
चिपेट कर उसके मम्मे दबाता हुआ उसकी गर्दन और कंधे चूमता. उसे इससे
गुदगुदी होती थी और वह खूब हँसती और मुझे दूर करने की झूठी कोशिश करती
"हटो बाबूजी, क्या लपर लपर कर रहे हो कुत्तों जैसे, मुझे अपना काम करने
दो" तब मैं उसके मुँह को अपने मुँह से बंद कर देता. मेरा लंड उसके साड़ी
के उपेर से ही चूतदों के बीच की खाई मे समा जाता और उसे उसकी गांद पर
रगड़ रगड़ कर मैं खूब मज़ा लेता. कभी मौका मिलता तो दिन मे ही बेडरूम मे
ले जाकर फटाफट चोद डालता था. क्रमशः.......... Ghar Ka Doodh part--3
Gataank se aage............ Ab mujhse raha nahi gaya. Use baanho mei
bheench kar main usko choomne laga. Uske honth bhi thode khurdare they
per ekdam meethe, unmein se paan ki bheeni khushboo aa rahi thi. Weh
bhi apni baahen mere gale mei daal kar itraati hui mere chumbano ka
uttar dene lagi, apni jeebh usne mere munh mei daal di or main use
choosne mei lag gaya. Bada maadak chumban tha,us naukarani ka munh
itna meetha hoga, maine sapne mei socha bhi nahin tha. Mera land ab
aisa phanphana raha tha ki main ab use patak kar usper chadne ki
koshish karne laga. "are kya bhukhe bhediye jaise kar rahe ho babuji,
jara maza lo, dheere dheere masti karo. Aap aaraam se leto,main
karoongi jo karna hai" kehkar usne mujhe palang per dhakel diya. Mujhe
litakar weh phir mera land choosne lagi. Mujhe maza aa raha tha per
use kas ke chodne ki ichcha mujhe shaant nahi letne de rahi thi.
"manju bai chalo ab chudwa bhi lo, aise na sataao. Dekho, phir choos
kar nahi jhadaana, aaj main tujhe khoob chodunga." Maine uski ek
chunchi haath mei lekar kaha. Uska kada nipple kanche jaisa meri
hatheli mei chubh raha tha. Usne hans kar mundi hilaayi ki samajh gayi
per mere land ko usne nahi chhoda, or jayaada munh mein lekar choosti
hi rahi. Shayad phir se meri malaayi ke peeche thi wo billi! Main
taish mei aa gaya, uth kar uske munh se jabardasti baahar kheencha or
use bistar per patak diya. Weh kehti reh gayi, " are ruko babuji, aise
nahi" per maine uski taange alag karke apna land uski choot per rakha
or pel diya. Bur itni geeli thi ki land aaraam se andar chala gaya.
Main ab ruknr ki isthiti mei nahi tha, ek jhatke se maine land jad tak
uski choot mein utaar diya or phir us ke upper let kar use chodne
laga. Manju hanste hue mujhe dur karne ki koshish karne lagi, " babuji
ruko, aise nahi chodo, jara maja karke chodo, main kahan bhaagi ja
rahi hoon? Are dheere babuji, aise jaanwar jaise na dhakke maaro! Jara
haule haule pyaar karo meri bur ko" maine uske munh ko apne honthon
mei daba liya or uski bakbak band kar di. Phir use bheench kar kas ke
hachak hachak kar use chodne laga. Uski choot itni geeli thi ki mera
land gapagap andar baahar ho raha tha. Kuchh der or chhutne ki koshish
karne ke baad manju bai ne haar maan li or mujhse cheepat kar apne
chutad uchhaal uchhaal kar chudwaane lagi. Apne pair usne meri kamar
ke ird gird kas rakhe they or apni baanhon mei mujhe bheench liya tha.
Itna aanand ho sakta hai chudaai mei maine socha bhi nahi tha. Manju
ka munh chooste hue maine uski choot ki kutaai chaalu rakhi. Yeh such
kabhi samaapt na ho aisa mujhe lag raha tha. Per maine bahut jaldi kit
hi. Manju bai ki us maadak desi kaaya or uski garmaagaram chipchipi
choot ne mujhe aisa behkaya ki main do minute mei hi jhad gaya. Pada
pada main is such mei dooba maza leta raha. Manju bai bechaari ab bhi
garam thi or niche se apni choot ko upper niche kar ke chudne ki
koshish kar rahi thi. Mujhe ab thodi sharam aayi ki bina manju ko
jhadaaye main jhad gaya. " maanf karna manju bai, tumko jhadaane ke
pehle hi main behak gaya." Mujhe ab thodi sharam aayi ki bina manju ko
jhadaaye main jhad gaya. " maanf karna manju bai, tumko jhadaane ke
pehle hi main behak gaya." meri haalat dekhkar Manju baayi mujhse
chipatkar mujhe chunate hue boli "koi baat nahi mere raja babu. aap
jaisa garam naujawaan aise nahi behkega to kaun behkega. Aur mere
badan ko dekh kar hi aap aise mast hue ho naa? main to nihaal ho gayi
ki mere babuji ko ye gaanv ki aurat itani achchhi lagi. aap mujhse
kitane Chhote ho, par fir bhi aap ko main bhaa gayi, pichhle janam mei
maine jarur achchhe karm kiye honge. chalo, ab bhukh mit gayi naa? ab
to mera kehnaa maano. aaraam se pade raho aur mujhe apna kaam karne
do." Manju ke kehne per maine apna jhada land waise hi Manju ki choot
mei rehne diya aur usper pada raha. mujhe baanhon mei bharke chunte
hue weh mujhse tarah tarah ki uksaane waali baaten karne lagi "babuji
maza aayaa? meri choot kaisi lagi? mulaayam hai naa? par makhmal jaisi
chikni hai yaa resham jaisi? kuchh to bolo, sharmaao nahi!" maine use
chun kar keh ki duniya ke kisi bhi makhmal yaa resham se jyaada
mulaayam hai uski bur. meri taareef par weh fool uthi. aage patar
patar karne lagi. "par meri jhaantain to nahi chubhi aapke land ko?
bahut badh gayi hain aur ghungharali bhi hai, per main kya karun,
kaatne ka man nahi hota mera. waise aap kaho to kaat dun. mujhe badi
jhaantain achchhi lagti hai. aur mera chunma kaisa lagta hai, bataao
naa? meetha hai ki nahi? meri jeebh kaisi hai bataao. maine keha ki
jalebi jaisi. main samajh gayaa tha ki weh taareef ki bhukhee hai. weh
masti se bahak si gayi. "kitnaa meetha bolte ho, jalebi jaisi hai naa?
lo chooso meri jalebi" aur mere gaal haathon mei lekar mere munh mei
apni jeebh Daal di. maine use daanton ke beech pakad liya aur chusne
laga. weh haath pair fekane lagi. kisi tarah Chhoot kar boli "ab dekho
main tumko kaise chodti hun. ab mere palle pade ho, roj itna chodungi
tumko ki meri choot ke gulaam ho jaaoge" In kaamuk baaton kaa parinaam
yeh hua ki das minute mei mera fir khada ho gaya aur Manju ki choot
mei ander ghus gaya. maine fir use chodana shuru kar diya par ab
dheere dheere aur pyaar se maje le lekar. Manju bhi maje le lekar
chudawaati rahi par beech mei achaanak usane palatkar mujhe neeche
patak diya aur mere uper aa gayi. Uper se usne mujhe chodanaa chaalu
rakha. "ab chupachaap pade raho babuji. aajki baaki chudaai mujhpar
Chhod do." uska yeh hukm maan kar main chupchaap let gaya. weh uthakar
mere pet par baith gayi. mera land ab bhi uski choot mei ander tak
ghusaa hua tha. weh aaraam se ghutane mod kar baith gayi aur Uper
neeche hokar mujhe chodne lagi. Uper neeche hote samay uske mamme
uchhal rahe the. maine haath badhaakar unhe pakad liya aur dabaane
laga. uski geelee choot badee aasaanee se mere land par fisal rahi
thi. us makhmali myaan ne mere land ko aisa kada kar diya jaise lohe
ka Danda ho. Manju man lagakar maja le lekar mujhe haule haule chod
rahee thi. choot se paani ki dhaar beh rahi thi jisse mera pet gila ho
gaya tha. maine apna pura jor lagakar apne aap ko jhadane se roka aur
kamar Uper neeche karke neeche se hi Manju ki bur mei land pelta raha.
aakhir Manju baayi ek halki siski ke saath jhad hi gayi. uski aankhon
mei jhalak aayi trupti ko dekhkar mujhe romaach ho aaya. aakhir mere
land ne pehli baar kisi aurat ko itna sukh diya tha. jhad kar bhi weh
ruki nahi, mujhe chodati rahi "pade raho babuji, abhi thode Chhodungi
tumako, ghanta bhar chodungi, bahut din baad land mila hai aur wo bhi
aisa shaahi lauda. aur dekho main kahun tab tak jhadna nahi, nahi to
main aapki naukari Chhod dungi" Es mithi dhamki ke baad meri kya mazal
thi jhadane ki. ghante bhar to nahi, per bees ek minute Manju baayi ne
mujhe khoob chodaa, apni saari hawas puri kar li. chodane mei weh badi
ustaad nikali, mujhe barabar mithi Chhuri se halaal karti rahi, agar
main jhadane ke karib aataa to ruk jaati. mujhe aur mast karne ko weh
bich bich mei khud hi apni chunchiyaan masalne lagti. kehti "chusoge
babuji?" aur khud hi jhuk kar apni choonchi khinch kar nippal chusne
lagati. main uthkar uski choonchi munh mei lene ki koshish karta to
hans kar mujhe waapas palang par dhakel deti. tarsa rahi thi mujhe! do
baar jhadane ke baad weh mujh par taras khaakar ruki. ab main waasna
se tadap raha tha. mujhse saans bhi nahi li jaa rahi thi. "chalo
pichhe khisak kar sirhaane se Tik kar baith jaao babuji, tum bade
achchhe saiyaan ho, meri baat maante ho, ab inaam dungi" main sarka
aur Tik kar baith gaya. ab weh meri or munh karke meri god mei baithi
thi. mera uchhalta land ab bhi uski choot mei kaid tha. weh uper hone
ke kaaran uski Chhaati mere munh ke saamne thi. paas se uske seb se
mamme dekhkar maza aa gaya. kishmish ke daano jaise chhote nippal the
uske aur tan kar khade the. Manju mere se laad karte hue boli "munh
kholo babuji, apni Manju amma kaa Doodh piyo. Doodh hai to nahi meri
choonchi mei, jhut mut ka hi piyo, mujhe maja aata hai" mere munh mei
ek ghundi dekar usne mere sir ko apni chhaati par bhinch liya aur
mujhe jor jor se chodane lagi. uska aadhaa mammaa mere munh mei sama
gaya tha. use chooste hue maine bhi niche se uchak uchak kar chodana
shuru kar diya, bahut der ka main is chhuri ki dhaar par tha, jald hi
jhad gaya. padaa padaa main is mast skhalan ka lutf lene laga. Manju
uthi aur mujhe pyaar bhara ek chunmaa dekar jaane lagi. uski aankhon
mei asim pyaar aur trupti ki bhaavana thi. main uska haath pakadkar
bola. "ab kehan jaati ho Manju baayi, yahin so jaao mere paas, abhi to
raat baaki hai" weh haath chhuda kar boli "nahi babuji, main koi aapki
lugaai thode hi hun, koi dekh lega to aafat ho jaayegi. kuchh din
dekhungi. agar kisi ko pata nahi chala to aap ke saath raat bhar soyaa
karungi" mujhe pakka yakin tha ki is kaaloni mei jahan din mei bhi koi
nahi hota tha, raat ko koi dekhne waala kehan hoga!. aur uska ghar bhi
to bhi mere bangale se laga hua tha. par weh thodi ghabra rahi thi
isiliye abhi maine use jaane diya. dusare din se mera kaamjivan aise
nikhar gaya jaise khud bhagvaan kaamdev ki mujh par kripa ho. Manju
subah subah chai banakar mere bedroom mei laati aur mujhe jagaati. jab
tak main chai pita, weh mera land choos leti. mera land subah tan kar
khada rehta tha aur jhad kar mujhe bahut achcha lagta tha. fir naha
dhokar naashtaa karke main office ko chala jaata. Dopahar ko jab main
ghar aata to Manju ekdam taiyaar rehati thi. use bedroom mei le jaakar
main fatafat das minute mei chod Daalta. weh bhi aisi garam rehati thi
ki turant jhad jaati thi. Is jaldbaaji ki chudaai ka aanand hi kuchh
aur tha. ab mujhe pata chala ki 'kwiki' kis chiz ka naam hai. chudne
ke baad weh mujhe khud apne haathon se pyaar se khaanaa khilaati, ek
bachchhe jaise. main fir office ko nikal jata. shaam ko hun jara
saawdhaani baratte the. mujhe club jaana padta tha. koi milne bhi
aksar ghar aa jata tha. isliye shaam ko Manju bas kitchan mei hi rehti
yaa baahar chali jaati. per raat ko aisi dhuaandhaar chudaai hoti ki
din ki saari kasar puri ho jaati. sone ko to baara baj jaate. ab weh
mere saath hi soti thi. ek hafta ho gaya tha aur raat ko maahaul itna
sunsaan hota tha ki kisi ko kuchh pata chalne ka sawaal hi nahi tha.
weekend mei shukrawaar aur shaniwaar raat to main use raat bhar
chodta, teen chaar baj jaate sone ko. maine uski tankhuwa bhi badha di
thi. ab main use hajaar rupaye tankhuwa deta tha. pehle weh nahi maan
rahi thi. jara naaraaj hokar boli "ye main paise ko thodee karti hun
babuji, tum mujhe achchhe lagate ho isiliye karti hun." par maine
jabardasti ki to maan gayi. iske baad weh bahut khush rehti thi. mujhe
lagta hai ki uski weh khushi paise ke kaaran nahi balki isliye thi ki
use chodane ko mere jaisa naujawaan mil gaya tha, karib karib uske
bete ki umar ka. Manju ko main kai aasano mei chodta tha par uski
pasand ka aasan tha mujhe kursi mei bithakar mere uper baith kar apni
choonchi mujhse chusawaate hue mujhe chodana. mujhe kursi mei bithakar
weh mera land apni choot mei lekar meri or munh karke meri god mei
baith jaati. fir mere gale mei baanhe Daal kar mujhe apni Chhaati se
chiptaakar chodati. uski choonchi main is aasan mei aaraam se chus
sakta tha aur weh bhi mujhe uper se man chaahe jitni der chod sakti
thi kyonki mera jhadana uske haath mei tha. uske kade nipple munh mei
lekar main madhosh ho jaata. shaniwaar ravivaar ko bahut maja aata
tha. meri Chhootti hone se main ghar mei hi rehta tha isliye maukaa
dekhkar kabhi bhi usse chipat jata tha aur khoob chumta aur uske mamme
dabata. jab weh kitchen mei khaana banaati thi to uske pichhe khade
hokar main usse chipat kar uske mamme dabata hua uski gardan aur
kandhe chumta. use isse gudgudi hoti thi aur weh khoob hansti aur
mujhe dur karne ki jhuthi koshish karti "hato babuji, kya lapar lapar
kar rahe ho kutton jaise, mujhe apna kaam karne do" tab main uske munh
ko apne munh se band kar deta. mera land uske saadi ke Uper se hi
chootadon ke bich ki khaai mei sama jata aur use uski gaand par ragad
ragad kar main khoob maza leta. kabhi mauka milta to din mei hi
bedroom mei le jaakar fatafat chod Daalta tha. kramashah..........
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