Friday, October 1, 2010

सेक्सी कहानी -घर का दूध पार्ट--5

हिंदी सेक्सी कहानियाँ घर का दूध पार्ट--5

गतान्क से आगे............ मैने जल्दी जल्दी अपना लंड तेल से चिकना किया
और फिर उसकी गांद मे तेल लगाने लगा. एकदम सांकरा और छोटा छेद था, वो सच
बोल रही थी की अब तक उसकी गांद मे कभी किसी ने लंड नही डाला था. मैने
पहले एक और फिर दो उंगली डाल दी. वो दर्द से सिसक उठी. "धीरे बाबूजी,
दुख़्ता है ना, दया करो थोड़ी अपनी इस नौकरानी पर, हौले हौले उंगली करो"
मैं तैश मे था. सीधा उसकी गांद का छेद दो उंगलियों से खोल कर बोतल लगाई
और चार पाँच चम्मच तेल अंदर भर दिया. फिर दो उंगली अंदर बाहर करने लगा
"चुप रहो बाई, चूत चुस्वा कर मज़ा किया ना, अब जब मैं लंड से गांद
फाड़ुँगा तो देखना कितना मज़ा आता है. तेरी चूत के रस ने मेरे लंड को
मस्त किया है, अब उसकी मस्ती तेरी गांद से ही उतरेगी". मंजू सिसकते हुए
बोली पर उसकी आवाज़ मे प्यार और समर्पण उमड़ पड़ रहा था "बाबूजी, गांद
मार लो, मैने तो खुद आपको ये चढ़ावे मे दे दी है, आपने मुझे इतना सुख
दिया है मेरी चूत चूस कर, ये अब आपकी है, जैसे चाहो मज़ा कर लो, बस ज़रा
धीरे मारो मेरे राजा" अब तक मेरा लंड भी पूरा फनफना गया था. उठ कर मैं
मंजू की कमर के दोनो ओर घुटने टेक कर बैठा और गुदा पर सुपाड़ा जमा कर
अंदर पेल दिया. उसके संकरे छेद मे जाने मे तकलीफ़ हो रही थी इसीलिए मैने
हाथों से पकड़ कर उसके छ्छूतड़ फैलाए और फिर कस कर सुपाड़ा अंदर डाल
दिया. पक्क से वह अंदर गया और मंजू दबी आवाज़ मे "उई माँ, मर गयी रे" चीख
कर थरथराने लगी. पर बेचारी ऐसा नही बोली की बाबूजी गांद नही मराववँगी.
मुझे रोकने की भी उसने कोई कोशिश नही की. मैं रुक गया. ऐसा लग रहा था
जैसे सुपादे को किसी ने कस के मुठ्ठी मे पकड़ा हो. थोड़ी देर बाद मैने
फिर पेलना शुरू किया. इंच इंच कर के लंड मंजू बाई की गांद मे धंसता गया.
जब बहुत दुख़्ता तो बेचारी सिसक कर हल्के से चीख देती और मैं रुक जाता.
आख़िर जब जड़ तक लंड अंदर गया तो मैने उसके कूल्हे पकड़ लिए और लंड धीरे
धीरे अंदर बाहर करने लगा. उसकी गांद का छल्ला मेरे लंड की जड़ को कस कर
पकड़ा था, जैसे किसीने अंगूठी पहना दी हो. उसके कूल्हे पकड़ कर मैने उसकी
गांद मारना शुरू कर दी. पहले धीरे धीरे मारी. गांद मे इतना तेल था कि लंड
मस्त फॅक फॅक करता हुआ सतक रहा था. वह अब लगातार कराह रही थी. जब उसका
सिसकना थोड़ा कम हुआ तो मैने उसके बदन को बाहों मे भींच लिया और उस पर
लेट कर उसके मम्मे पकड़ कर दबाते हुए कस के उसकी गांद मारने लगा. मैने उस
रात बिना किसी रहम के मंजू की गांद मारी, ऐसे मारी जैसे रंडी को पैसे
देकर रात भर को खरीदा हो और फिर उसे कूट कर पैसा वसूल कर रहा हूँ. मैं
इतना उत्तेजित था कि अगर वह रोकने की कोशिश करती तो उसका मुँह बंद करके
ज़बरदस्ती उसकी मारता. उसकी चूंचियाँ भी मैं बेरहमी से मसल रहा था, जैसे
आम का रस निकालने को पिलपिला करते है. पर वह बेचारी सब सह रही थी. आख़िर
मे तो मैने ऐसे धक्के लगाए की वह दर्द से बिलबिलाने लगी. मैं झाड़ कर
उसके बदन पर लस्त सो गया. क्या मज़ा आया था. ऐसा लगता था की अभी अभी किसी
का बलात्कार किया हो. जब लंड उसकी गांद से निकाल कर उसे पलटा तो बेचारी
की आँखों मे दर्द से आँसू आ गये थे, बहुत दुखा था उसे पर वह बोली कुच्छ
नही क्योंकि उसीने खुद मुझे उसकी गांद मारने की इजाज़त दी थी. उसका
चुम्मा लेकर मैं बाजू मे हुआ तो वह उठकर बाथरूम चली गयी. उससे चला भी नही
जा रहा था, पैर फैला कर लंगड़ा कर चल रही थी. जब वापस आई तो मैने उसे
बाँहों मे ले लिया. मुझसे लिपटे हुए बोली "बाबूजी, मज़ा आया? मेरी गांद
कैसी थी?" मैने उस चूम कर कहा "मंजू बाई, तेरी कोरी कोरी गांद तो लाजवाब
है, आज तक कैसे बच गयी? वो भी तेरे जैसी चुदैल औरत की गांद ! लगता है
मेरे ही नसीब मे थी" वो मज़ाक करते हुए बोली "मैने बचा के रखी बाबूजी आप
के लिए. मुझे मालूम था आप आओगे. अब आप कभी भी मेरी गांद मारो, मैं मना
नही करूँगी. मेरी चूत मे मुँह लगाकर आपने तो मुझे अपना गुलाम बना लिया.
बस ऐसे ही मेरी चूत चूसा करो मेरे राजा बाबू, फिर चाहे जितनी बार मारो
मेरी गांद, पर बहुत दुख़्ता है बाबूजी, आपका लंड है कि मूसल और आप ने आज
गांद की धज्जियाँ उड़ा दी, बहुत बेदर्दी से मारी है मेरी गांद! पर तुमको
सौ खून मांफ है मेरे राजा, आख़िर मेरे सैयाँ हो और मेरे सैयाँ को मेरे ये
छ्छूतड़ इतने भा गये, इसकी भी बड़ी खुशी है मुझे" उसकी इस अदा पर मैने उस
रात फिर उसकी बुर चूसी और फिर उसे मन भर के चोदा. इसके बाद मैं उसकी गांद
हफ्ते मे दो बार मारने लगा, उससे ज़्यादा नही, बेचारी को बहुत दुख़्ता
था. मैं भी मार मार कर उसकी कोरी टाइट गांद ढीली नही करना चाहता था. उसका
दर्द कम करने को गांद मे लंड घुसेड़ने के बाद मैं उसे गोद मे बिठा लेता
और उसकी बुर को उंगली से चोद्कर उसे मज़ा देता, दो तीन बार उसे झड़ाकार
फिर उसकी मारता. गांद मारने के बाद खूब उसकी बुर चूस्ता, उसे मज़ा देने
को और उसका दर्द कम करने को. वैसे उसकी चूत के पानी का चस्का मुझे ऐसा
लगा, की जब मौका मिले, मैं उसकी चूत चूसने लगता. एक दो बार तो जब वह खाना
बना रही थी, या टेबल पर बैठ कर सब्जी काट रही थी, मैने उसकी साड़ी उठाकर
उसकी बुर चूस ली. उसको हर तरह से चोदने और चूसने की मुझे अब ऐसी आदत लग
गयी थी की मैं सोचता था की मंजू नही होती तो मैं क्या करता. यही सब सोचते
मैं पड़ा था. मंजू ने अपने मम्मों पर हुए ज़ख़्मों पर तेल लगाते हुए मुझे
फिर उलहना दिया "क्यों चबाते हो मेरी चून्चि बाबूजी ऐसे बेरहमी से. पिछले
दो तीन दिन से ज़्यादा ही काटने लगे हो मुझे" मैने उसकी बुर को सहलाते
हुए कहा "बाई, अब तुम मुझे इतनी अच्छि लगती हो कि तेरे बदन का सारा रस
मैं पीना चाहता हूँ. तेरी चूत का अमरित तो बस तीन चार चम्मच निकलता है,
मेरा पेट नही भरता. तेरी चूंचियाँ इतनी सुंदर है, लगता है इनमे दूध होता
तो पेट भर पी लेता. अब दूध नही निकलता तो जोश मे काटने का मन होता है" वह
हंसते हुए बोली "अब इस उमर मे कहाँ मुझे दूध छूतेगा बाबूजी. दूध छ्छूटता
है नौजवान छ्हॉकरियों को जो अभी अभी माँ बनी है." फिर वह चुप हो गयी और
कपड़े पहनने लगी. कुच्छ सोच रही थी. अचानक मुझसे पुच्छ बैठी "बाबूजी, आप
को सच मे औरत का दूध पीना है या ऐसे ही मुफ़्त बतिया रहे हो" मैने उसे
भरोसा दिलाया की अगर उसके जैसे रसीली मतवाली औरत हो तो ज़रूर उसका दूध
पीने मे मुझे मज़ा आएगा. "कोई इंतज़ाम करती हूँ बाबूजी. पर मुझे खुश रखा
करो. और मेरी चूंचियों को दाँत से काटना बंद कर दो" उसने हुकुम दिया. उसे
खुश रखने को अब मैने रोज उसकी बुर पूजा शुरू कर दी. जब मौका मिलता, उसकी
चूत चाटने मे लग जाता. मैने एक वी सी आर भी खरीद लिया और उसे कुच्छ ब्लू
फिल्म दिखाई. टेप लगाकर मैं उसे सोफे मे बिठा देता और खुद उसकी साड़ी
उपेर कर के उसकी बुर चूसने मे लग जाता. एक घंटे की कैसेट ख़तम होते होते
वह मस्ती से पागल होने को आ जाती. मेरा सिर पकड़कर अपनी चूत पर दबा कर
मेरे सिर को जांघों मे पकड़कर वह फिल्म देखते हुए ऐसी झड़ती की एकाध घंटे
किसी काम की नही रहती. रात को कभी कभी मैं उसे अपने मुँह पर बिठा लेता.
उच्छल उच्छल कर वो ऐसे मेरे मुँह और जीभ को चोद्ति की जैसे घोड़े की
सवारी कर रही हो. कभी मैं उससे सिक्स्टी नाइन कर लेता और उसकी बुर चूस कर
अपने लंड की मलाई उसे खिलाता. मंजू बाई मुझ पर बेहद खुश थी और मैं राह
देख रहा था कि कब वह मुझ पर मेहरबान होती है. एक इतवार को वह सुबह ही
गायब हो गयी. सुबह से दोपहर हो गयी. फिर दोपहर से शाम फिर शाम से रात पेर
मंजू बाई का कुच्छ अता पता नही था की वो कहाँ गयी है ओर क्यों गयी है.
मैं लेटा लेटा उसकी इंतज़ार करता करता सो गया. रात की नींद के बाद मैं जब
सुबह उठा तो मंजू वापस आ गयी थी. चाय लेकर खड़ी थी. मैने उसकी कमर मे हाथ
डाल कर पास खींचा और ज़ोर से चूम लिया. "क्यों मंजू बाई, कल से कहाँ गायब
थी. मुझे कल सुबह से चम्मच भर शहद भी नही मिला. कहाँ गायब हो गयी थी?" वह
मुझसे छूट कर मुझे आँख मारते हुए धीरे से बोली, "आप ही के काम से गयी थी
बाबूजी. ज़रा देखो, क्या माल लाई हूँ तुम्हारे लिए!" मैने देखा तो दरवाजे
मे एक जवान लड़की खड़ी थी. थोड़ी शर्मा ज़रूर रही थी पर तक लगाकर मेरी और
मंजू के बीच की चुम्मा चॅटी देख रही थी. मैने मंजू को छ्चोड़ा और उससे
पुछा कि ये कौन है. वैसे मंजू और उस लड़की की सूरत इतनी मिलती थी की मैं
समझ गया कि ये "कन्या" कौन है. मंजू ने भी पुष्टि की "बाबूजी, ये गीता
है, मेरी बेटी. बीस साल की है, दो साल पहले शादी की है इसकी. अब एक बच्चा
भी है" मैं गीता को बड़े इंटेरेस्ट से घूर रहा था. मंजू बाई उसे क्यों
लाई थी यह भी मुझे थोड़ा थोड़ा समझ मे आ रहा था. गीता मंजू जैसी ही
साँवली थी पर उससे ज़्यादा खूबसूरत थी. शायद उसकी जवानी की वजह से ऐसी लग
रही थी. मंजू से थोड़ी नाटी थी और उसका बदन भी मंजू से ज़्यादा भरा पूरा
था. एकदम मांसल और गोल मटोल, शायद माँ बनने की वजह से होगा.
क्रमशः....... Ghar Ka Doodh part--5 Gataank se aage............ maine
jaldi jaldi apna land tel se chikna kiya aur fir uski gaand mei tel
lagane laga. ekdam sankara aur chhotaa chhed tha, wo sach bol rahi thi
ki ab tak uski gaand mei kabhi kisi ne land nahi Daala tha. maine
pahale ek aur fir do ungali daal di. wo dard se sisak uthi. "dhire
babuji, dukhta hai na, daya karo thodi apni is naukarani par, haule
haule ungali karo" main taish mei tha. sidhaa uski gaand ka chhed do
ungaliyon se khol kar botal lagayi aur chaar paanch chammach tel ander
bhar diya. fir do ungali ander baahar karne laga "chup raho baayi,
choot chuswaa kar maza kiya na, ab jab main land se gaand faadunga to
dekhna kitna maza aata hai. teri choot ke ras ne mere land ko mast
kiya hai, ab uski masti teri gaand se hi utregi". Manju sisakte hue
boli par uski aawaaj mei pyaar aur samarpan umad pad raha tha "babuji,
gaand maar lo, maine to khud aapko ye chadhaawe mei de di hai, aapne
mujhe itna sukh diya hai meri choot choos kar, ye ab aapki hai, jaise
chaaho maza kar lo, bas jara dhire maaro mere raajaa" ab tak mera land
bhi pura fanfana gaya tha. uth kar main Manju ki kamar ke dono or
ghutane tek kar baitha aur guda par supaada jama kar ander pel diya.
uske sankare chhed mei jaane mei taklif ho rahi thi isiliye maine
haathon se pakad kar uske chhootad failaaye aur fir kas kar supaada
ander Daal diya. pakk se weh ander gaya aur Manju dabi aawaaj mei "ui
maan, mar gayi re" chikh kar thartharaane lagi. par bechaari aisa nahi
boli ki babuji gaand nahi marwaungi. mujhe rokne ki bhi usne koi
koshish nahi ki. main ruk gaya. aisa lag raha tha jaise supaade ko
kisi ne kas ke muththi mei pakda ho. thodi der baad maine fir pelna
shuru kiya. inch inch kar ke land Manju baayi ki gaand mei dhansta
gaya. jab bahut dukhta to bechaari sisak kar halke se chikh deti aur
main ruk jata. aakhir jab jad tak land ander gaya to maine uske kulhe
pakad liye aur land dhire dhire ander baahar karne laga. uski gaand ka
chhalla mere land ki jad ko kas kar pakda tha, jaise kisine anguthi
pehna di ho. uske kulhe pakad kar maine uski gaand maarna shuru kar
di. pehale dhire dhire maari. gaand mei itna tel tha ki land mast fach
fach karta hua satak raha tha. weh ab lagatar karah rahi thi. jab uska
sisakna thoda kam hua to maine uske badan ko baahon mei bhinch liya
aur us per let kar uske mamme pakad kar dabaate hue kas ke uski gaand
maarne laga. maine us raat bina kisi reham ke Manju ki gaand maari,
aise maari jaise randi ko paise dekar raat bhar ko kharida ho aur fir
use kut kar paisa vasul kar raha hoon. main itna uttejit tha ki agar
weh rokne ki koshish karti to uska munh band karke jabardasti uski
maarta. uski chunchiyan bhi main berahmi se masal raha tha, jaise aam
ka ras nikaalne ko pilpila karte hai. par weh bechaari sab seh rahi
thi. aakhir mei to maine aise dhakke lagaye ki weh dard se bilbilane
lagi. main jhad kar uske badan par last so gaya. kya maza aaya tha.
aisa lagta tha ki abhi abhi kisi ka balaatkaar kiya ho. jab land uski
gaand se nikaal kar use palta to bechaari ki aankhon mei dard se aansu
aa gaye the, bahut dukha tha use par weh boli kuchh nahi kyonki usine
khud mujhe uski gaand maarne ki ijaajat di thi. uska chumma lekar main
baaju mei hua to weh uthkar bathroom chali gayi. usse chala bhi nahi
jaa raha tha, pair failaa kar langda kar chal rahi thi. jab waapas
aayi to maine use baanhon mei le liya. mujhse lipate hue boli "babuji,
maza aaya? meri gaand kaisi thi?" maine us chum kar kaha "Manju baayi,
teri kori kori gaand to laajawaab hai, aaj tak kaise bach gayi? wo bhi
tere jaisi chudail aurat ki gaand ! lagta hai mere hi nasib mei thi"
wo mazak karte hue boli "maine bachaa ke rakhi baabuji aap ke liye.
mujhe maalum tha aap aaoge. ab aap kabhi bhi meri gaand maaro, main
mana nahi karungi. meri choot mei munh lagakar aapne to mujhe apna
gulaam bana liya. bas aise hi meri choot choosa karo mere raajaa
baabu, fir chaahe jitani baar maaro meri gaand, par bahut dukhta hai
baabuji, aapka land hai ki musal aur aap ne aaj gaand ki dhajjiyaan
udaa din, bahut bedardi se maari hai meri gaand! par tumko sau khoon
maanf hai mere raajaa, aakhir mere saiyaan ho aur mere saiyaan ko mere
ye chhootad itne bha gaye, iski bhi badi khushi hai mujhe" uski is ada
par maine us raat fir uski bur choosi aur fir use man bhar ke choda.
isake baad main uski gaand hafte mei do baar maarne laga, usse jyaada
nahi, bechaari ko bahut dukhta tha. main bhi maar maar kar uski kori
Taait gaand Dhili nahi karna chahata tha. uska dard kam karne ko gaand
mei land ghusedne ke baad main use god mei bitha leta aur uski bur ko
ungali se chodkar use maza deta, do tin baar use jhadaakar fir uski
maarta. gaand maarne ke baad khoob uski bur chustaa, use maza dene ko
aur uska dard kam karne ko. waise uski choot ke paani ka chaska mujhe
aisa laga, ki jab mauka mile, main uski choot chusane lagta. ek do
baar to jab weh khaana bana rahi thi, yaa Tebal par baith kar sabji
kaat rahi thi, maine uski saadi uthakar uski bur chus li. usko har
tarah se chodane aur chusane ki mujhe ab aisi aadat lag gayi thi ki
main sochta tha ki Manju nahi hoti to main kya karta. yahi sab sochte
main pada tha. Manju ne apne mammon par hue jakhmon par tel lagate hue
mujhe fir ulhana diyaa "kyon chabaate ho meri choonchi babuji aise
berahami se. pichhale do tin din se jyaada hi kaatne lage ho mujhe"
maine uski bur ko sehlaate hue keha "baayi, ab tum mujhe itni achchhi
lagti ho ki tere badan ka saara ras main pina chahata hun. teri choot
ka amarit to bas tin chaar chammach nikalta hai, mera pet nahi bharta.
teri chunchiyaan itni sundar hai, lagta hai inme Doodh hota to pet
bhar pi leta. ab Doodh nahi nikalta to josh mei kaatne ka man hota
hai" weh hanste hue boli "ab is umar mei kehan mujhe Doodh Chhootega
babuji. Doodh Chhootta hai naujawaan Chhokariyon ko jo abhi abhi maan
bani hai." fir weh chup ho gayi aur kapde pahanne lagi. kuchh soch
rahi thi. achaanak mujhse puchh baithi "babuji, aap ko sach mei aurat
kaa Doodh pina hai ya aise hi muft batiyaa rahe ho" maine use bharosa
dilaaya ki agar uske jaise rasili matwaali aurat ho to jarur uska
Doodh pine mei mujhe maza aayega. "koi intjaam karti hun babuji. par
mujhe khush rakha karo. aur meri chunchiyon ko daant se kaatna band
kar do" usane hukum diyaa. use khush rakhne ko ab maine roj uski bur
pujaa shuru kar di. jab mauka milta, uski choot chaatane mei lag jata.
maine ek VCR bhi kharid liya aur use kuchh blue film dikhain. Tape
lagakar main use sofe mei bitha deta aur khud uski saadi Uper kar ke
uski bur chusane mei lag jata. ek ghante ki kaiset khatam hote hote
weh masti se paagal hone ko aa jaati. mera sir pakadkar apni choot par
daba kar mere sir ko jaanghon mei pakadkar weh film dekhate hue aisi
jhadti ki ekaadh ghante kisi kaam ki nahi rehti. raat ko kabhi kabhi
main use apne munh par bitha leta. uchhal uchhal kar wo aise mere munh
aur jibh ko chodti ki jaise ghode ki sawaari kar rahi ho. kabhi main
usse sixty nine kar leta aur uski bur chus kar apne land ki malaai use
khilaata. Manju baayi mujh par behad khush thi aur main raah dekh raha
tha ki kab weh mujh par meharbaan hoti hai. ek itwaar ko weh subah hi
gaayab ho gayi. Subah se dopahar ho gayi. Phir dopahar se sham phir
sham se raat per Manju baai ka kuchh ata pata nahi tha ki wo kahan
gayi hai or kyon gayi hai. Main leta leta uski intzaar karta karta so
gaya. Raat ki nind ke baad main jab subah utha to Manju waapas aa gayi
thi. Chaay lekar khadi thi. Maine uski kamar mei haath daal kar paas
khincha aur jor se chum liya. "kyon Manju baayi, kal se kahan gaayab
thi. Mujhe kal subah se chammach bhar shahad bhi nahi mila. kahan
gaayab ho gayi thi?" weh mujhse chhut kar mujhe aankh maarte hue dhire
se boli, "aap hi ke kaam se gayi thi babuji. Jara dekho, kya maal
laayi hun tumhaare liye!" maine dekha to darwaaje mei ek jawaan ladki
khadi thi. Thodi sharma jarur rahi thi par tak lagakar meri aur Manju
ke beech ki chumma chaati dekh rahi thi. Maine Manju ko chhoda aur
usse puchha ki ye kaun hai. Waise Manju aur us ladki ki surat itni
milti thi ki main samajh gaya ki ye "kanya" kaun hai. Manju ne bhi
pushti ki "babuji, ye Geeta hai, meri beti. Bees saal ki hai, do saal
pahale shaadi ki hai iski. ab ek bachcha bhi hai" main Geeta ko bade
interest se ghoor raha tha. Manju baayi use kyon laayi thi yeh bhi
mujhe thoda thoda samajh mei aa raha tha. Geeta Manju jaisi hi
saanwali thi par usse jyaada khoobsurat thi. Shayad uski jawaani ki
wajah se aisi lag rahi thi. Manju se thodi naati thi aur uska badan
bhi Manju se jyaada bharaa puraa tha. Ekdam maansal aur gol matol,
shaayad maan banne ki wajah se hoga. kramashah....... Tags = Future |
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