माँ का दुलारा पार्ट--2
सावधान........... ये कहानी समाज के नियमो के खिलाफ है क्योंकि हमारा समाज मा बेटे और भाई बहन के रिश्ते को सबसे पवित्र रिश्ता मानता है अतः जिन भाइयो को इन रिश्तो की कहानियाँ पढ़ने से अरुचि होती हो वह ये कहानी ना पढ़े क्योंकि ये कहानी एक मा बेटे के सेक्स की कहानी है
गतान्क से आगे...............
उस शनिवार रात को मोम देरी से आई. थॅकी हुई थी इसलिए खाना खाकर तुरंत सो गयी. गर्मी के कारण उसके कपड़े गीले हो गये थे इसलिए उसने सारे कपड़े बदलकर बाथरुम मे डाल दिए. मेरी चाँदी हो गयी. मोम के सोने के बाद मैं उसका ब्लओज़, ब्रा और पैंटी उठा लाया. सारे पसीने से तर थे. साथ ही उसने उस दिन पहने हुए हाई हिल के सैंडल भी ले लिए. मोम गहरी नींद मे सोई थी इसलिए चुपचाप उसके बेडरूम से उसके स्लीपर भी उठा लाया. आज तो मानों मुझे खजाना मिल गया था.
उस रात मैंने इतनी मूठ मारी जितनी कभी नही मारी होगी. मोम के कपड़े सूँघे, उन्हे मुँह मे लेकर चूसा कि मोम के शरीर का कुछ तो रस मिल जाए. सैंडल छाती से पकड़े, उन्हे मुँह से लगाया और चूमा, लंड को स्लीपरों के मुलायम स्ट्राइप्स मे फंसाया, चप्पालों के नरम नरम तलवे पर रगड़ा और शुरू हो गया. तीन चार बार झाड़. कर मुझे शांति मिली.
पहले मेरा यहा प्लान था कि तुरंत मैं उठाकर सब चीज़े चुपचाप जगहा पर रख दूँगा. पर दो तीन घंटे के घमासान हस्तमैथुन के बाद उस तृप्ति की भावना के जादू ने मेरी आँखे लगा दीं. ऐसा गहरा सोया कि सुबहा देर से आँख खुली. हड़बड़ा कर उठा तो देखा पास के टेबल पर चाय रखी है. ये कहानी कामुक-कहानियाँडॉटब्लॉगस्पॉटडॉ
मुझे समझ मे नही आ रहा था कि कैसे मोम को मुँह दिखाउ. आख़िर किसी तरह कमरे के बाहर आया. मोम किचन मे थी. बिना कुछ कहे उसने मुझे फिर चाय बना दी. उसका चेहरा गंभीर था.
मैं किसी तरह चाय पीकर भागा. नहाया और फिर कमरे मे एक किताब पढ़ने बैठ गया. मोम दिन भर कुछ नही बोली, दोपहर को बाहर निकल गयी. उसे ज़रूर बुरा लगा होगा. आख़िर मैं भी क्या कहता!
रात को खाने के बाद मोम ने आख़िर मुझे पूछा "ये क्या कर रहा था तू मेरे कपड़ो और चप्पालों के साथ?"
मैं चुप रहा, सिर्फ़ सिर झुका कर सॉरी बोला. मोम ने और कठोर स्वर मे पूछा. "ये तूहमेशा करता है लगता है! और उस दिन मेरी काली ब्रा नही मिल रही थी. तूने ही ली थी ना? और चंदा बाई भी कपड़े ठीक से नही धोती, मुझे अपनी ब्रा और पैंटी मे एक दो बार कुछ दाग से मिले थे. तूने लगाए क्या ये गंदी हरकते करते हुए?"
मैं चुप रहा. मोम अब मुझे डाँटने लगी. काफ़ी गुस्से मे थी. बोली कि उसे उम्मीद नही थी कि मैं ऐसा करूँगा. ऐसी गंदी आदते मुझे कहाँ से लगीं? और वह भी अपनी मोम के कपड़ो और चप्पालों के साथ? अंत मे गुस्से मे आकर उसने मुझे एक तमाचा भी रसीद कर दिया और फिर मुझे झिंझोड़. कर बोली
"बोल, ऐसा क्यों किया?" मोम ने अब तक कभी मुझे पीटा नही था. मैं रुआंसा होकर आख़िर बोला
"सॉरी मॉम, अब नही करूँगा, तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो इसलिए ऐसा किया" वह एक क्षण स्तब्ध रहा गयी. कुछ बोलना चाहती थी पर फिर चुप ही रही और अपने कमरे मे चली गयी.
उसके बाद के तीन चार दिन बड़े बुरे गुज़रे. मोम ने मुझसे बात करना ही छोड़. दिया था. ऑफीस से और देर से आती थी और जल्दी सुबह घर से निकल जाती थी. बेडरूम और अलमारी मे ताला लगा देती थी. कपड़े भी धोने को नही डालती थी बल्कि आकर खुद धोती. मेरा भी लंड खड़ा होना बंद हो गया, सारा हस्तमैथुन बंद हो गया. मैने एक दो बार और मोम को सॉरी कहा पर उसने जवाब नही दिया. हाँ उसका कड़ा रूख़ फिर थोड़ा नरम हो गया.
अगले शनिवार को मोम की छुट्टी थी. शुक्रवार को वह जल्दी घर आ गयी. मेरी पसंद का खाना बनाया. मुझसे ठीक से कुछ बाते भी कीं. मैंने चैन की साँस की ली और कान को हाथ लगाया कि अब ऐसा कुछ नही करूँगा. असल मे मैं मोम को बहुत प्यार करता था, एक नारी की तरह ही नही, एक बेटे के तरह भी और उसे खोना नही चाहता था.
रात को मैं अपने कमरे मे पढ़. रहा था तब मोम अंदर आई. उसने गाउन पहन रखा था. सारा मेकअप वग़ैरहा धो डाला था. चेहरा गंभीर था, एक टेंशन सा था उसके चेहरे पर जैसे कुछ फ़ैसला करना चाहती हो. आकर मेरे पास पलंग पर बैठ गयी. मैं थोड़ा घबरा गया, ना जाने क्या बाते करे, फिर डाँटने लगे.
"अनिल, तू बड़ा हो गया है, तेरी कोई गर्ल फ़्रेंड नही है?" उसने मेरे बालों मे हाथ चलाकर पूछा.
"नही माम, मुझे कोई लड़की अच्छी नही लगती आज कल" मैंने कहा.
"तो फिर क्या अच्छा लगता है?" उसने पूछा. ना जाने कैसे मेरे मुँह से निकल गया.
"तुम बहुत अच्छी लगती हो ममी, मैं तुमसे बहुत प्यार करता हू" कहने के बाद फिर मैंने अपने आप को कोस डाला कि ऐसा क्यों कहा. मोम फिर नाराज़ हो गयी तो सब गड़बड़. हो जाएगा.
"अरे पर मैं तेरी मॉं हू. तू भी मुझे अच्छा लगता है पर एक बेटे की तरह. मोम के बारे मे ऐसा नही सोचते बेटे जैसा तू सोचता है" मोम ने मेरे चेहरे पर नज़र गढ़ाकर कहा. आज बात कुछ और थी. मोम शायद मुझसे सब कुछ डिस्कस करना चाहती थी. मैंने साहस करके कहा डाला.
"मैं क्या करूँ माँ, तुम बहुत सुंदर हो, मुझसे रहा नही जाता"
"अरे तूने ही कहा तेरी गर्ल फ़्रेंड नही हैं, तूने और किसी को देखा ही नही है. और मान भी ले कि मैं तुझे अच्छी लगती हू तो यहा तेरा वहम है. आख़िर मेरी उमर हो चली है, मोटी भी हो गयी हम. तेरे जैसे जवान लड़के को तो कमसिन युवतियाँ भानी चाहिए, मुझा जैसी अधेड़ औरते नहीं" मोम ने गंभीर स्वर मे कहा.
"नही माँ, मुझे उनमे कोई दिलचस्पी नही है. तुम नही जानती तुम कितनी खूबसूरत हो. पर मैं तेरा दिल नही दुखाना चाहता ममी, अब मैं कोई गंदी बात नही करूँगा, ठीक से रहूँगा." मैं अपनी बात पर अड़ा रहा. मोम झल्ला कर उठ कर खड़ी हो गयी. उसने एक निश्चय कर लिया था शायद.
"कैसा मूर्ख लड़का है, समझता ही नही मैं क्या कहा रही हू. तू नादान है, आज तुझे समझाना ही पड़ेगा. इस बात का निपटारा मैं आज ही करना चाहती हू कि तू कम से कम अपना यहा पागलपन तो बंद करे. तू फिर शुरू हो जाएगा मैं जानती हू, ऐसी चीज़ों की आदत जल्दी नही जाती. तू बस मेरा चेहरा देखता है और वो तुझे अच्छा लगता है. माना की मेरी सूरत अच्छी है पर शरीर तो बेडौल हो गया है. चल आज तुझे दिखाती हू, फिर शायद तेरा यहा वहम दूर हो जाए." उसने दरवाजा बंद किया और अपना गाउन उतारने लगी. मैं हक्का बक्का देखता ही रहा गया. मोम ने मेरे चेहरे से नज़र हटाकर दूसरी ओर देखते हुए गाउन उतार दिया और बोली
"देख, कैसी मोटी और बेढब हू. अब बोल कि तुझे अच्छी लगती हू" उसके चेहरे पर एक कठोरता सी आ गयी थी. मोम अब सिर्फ़ ब्रा और पैंटी मे मेरे सामने थी. आज उसने अपने अच्छे मादक अंतर्वस्त्रा नहीं, एक पुरानी काटन की ब्रा और बड़ी सी पुरानी सफेद पैंटी पहन रखी थी. शायद यहा सोच रही थी कि अगर मैं सादे पुराने अंतर्वस्त्रों मे लिपटे उसके मध्यमवाइन शरीर को देखूँगा तो मेरी चाहत अपने आप ठंडी हो जाएगी. ऐसा करने मे उसे कितनी मनोवयता हुई होगी, मैं कल्पना कर सकता था. आख़िर कौन औरत खुद ही किसी से अपने आप को बेढब कहलवाने की ज़िद करेगी.
पर हुआ उल्टा ही. मोम का अर्धनगञा शरीर मेरे मन मे ऐसी मतवाली हलचल पैदा कर गया कि इतने दिनों बाद मेरा लंड फिर सिर उठाने लगा. मोम नही जानती थी कि मैं अच्छी तरह से इस बात से वाकिफ़ था कि मोम का शरीर मांसल और भरा हुआ है. वह यह भी नही जानती थी कि उसका भरा पूरा मोटा सा शरीर उसका आकर्षण मेरे लिए और बढ़ा देता था.
मैं मन भर कर मोम के अर्धनगञा रुप को देखने लगा. उसकी जांघे अच्छी मोटी थी पर एकदमा चिकनी और गोरी. पैंटी बड़ी होने से और कुछ नही दिख रहा था पर चौड़े कूल्हे और भारी भरकम नितंबों का आकार उसमे से दिख रहा था. पेट भी थोड़ा थुलथुल था पर उस गोरी चिकनी त्वचा और कमर मे पड़ते मासल बलों से वह बाला की मादक लग रही थी. गोरे गोरे फूले हुए पेट मे गहरी नाभि उसके इस रूप को और मतवाला कर रही थी. पुरानी ढीली ढाली ब्रा मे उसके स्तन थोडे लटक आए थे पर उन माँस के मुलायामा गोलों को देखकर ऐसा लगता था कि अभी इन्हे चबा कर खा जाउ. लंबी गोरी बाँहे तो मैं कई बार देख चुका था पर इस अर्धनगञा अवस्था मे भी और सुंदर लग रही थीं. चिकने भरे हुए कंधे जिनपर ब्रा के स्ट्रैप लगे हुए थे! क्या नज़ारा था. मोम मूडी तो सिर्फ़ ब्रा के स्ट्रैप से धकि उसकी गोरी चिकनी पीठ भी मुझे दिखी. मोम बाजू मे नज़र करके एक बार पूरी घुमा कर मुझसे बोली.
"देख लिया अपनी अधेड़. मोम को? अब तो तसल्ली हुई कि मुझमे ऐसा कुछ नही है जो तुझे भाए. देख मैं कितनी मोटी हो गयी हू, नीचे का भाग देख, बिलकुल कितना चौड़ा और मोटा हो गया है" मैं कुछ ना बोला, बस उसे देखता रहा. मेरी चुप्पी पर झल्ला कर वह बोली
"अरे चुप क्यों है, कुछ बोल ना? वैसे इतना पटारे पाटर बोल रहा था, अब साँप सूंघ गया क्या"" कहकर उसने मेरी ओर देखा तो देखती रह गयी. मेरा लंड अब तन कर खड़ा था और इतना तना था कि पाजामे के ढीले बटन खोल कर बाहर आ गया था. उसकी नज़र लंड पर पड़ी और वह आश्चर्या से उसकी ओर देखने लगी. धीरे धीरे उसके चेहरे की कठोरता कम हुई और एक अजीब ममता और चाहत उसकी आँखों मे झलकने लगी. उसने मेरे चेहरे की ओर देखा. उसमे उसे ज़रूर तीव्र चाहत और प्यार दिखा होगा.
"लगता है कि सच मे मैं तुझे अच्छी लगती हू! मुझे लगा था कि ..." अपनी बात पूरी ना कर के मोम आकर मेरे पास बैठ गयी. उसकी आँखे मेरे लंड पर से हट ही नही रही थी. मैं भले ही यहा खुद कह रहा हू पर मेरा लंड काफ़ी सुंदर है, गोरा और कसा हुआ, भले ही बहुत बड़ा ना हो, फिर भी करीब करीब साढ़े पाँच- छः इंच का तो है ही.
मोम ने अचानक झुक कर मेरा गाल चूमा लिया. उसका चेहरा अब गुलाबी हो गया था, खिल कर उसकी सुंदरता मे और चार चाँद लगा रहा था. मेरे कुछ ना कहने पर भी उसने भाँप लिया था कि वह मुझे कितनी अच्छा लगती थी. और एक औरत के लिए इससे बड़े कामपलिमेंट और क्या हो सकता है, ख़ास कर जब वह खुद अपनी सुंदरता के प्रति आश्वस्त ना हो. मेरा लंड अब ऐसा थारतरा रहा था जैसे फट जाएगा. इतनी खुमारी मैंने जिंदगी मे कभी महसूस नही की थी.
"कितना प्यारा है! तू सच मे बड़ा हो गया है बेटे" मोम मेरे पास सरककर बोली. फिर उसने अपना हाथ बढ़ाया और हिचकते हुए मेरा लंड मुठ्ठी मे पकड़. लिया. वह ऐसे डर रही थी जैसे काट खाएगा.
"कितना सूज गया है! तुझे तकलीफ़ होती है क्या?" उसकी हथेली के मुलायम स्पर्श से मैं ऐसा बहका कि अचानक एक सिसकी के साथ मैं स्खलित हो गया. वीर्य की फुहारे लंड मे से निकलने लगीं. मोम पहले चौंक गयी और अपना हाथ हटा लिया पर मैंने तड़प कर उससे लिपटाते हुए कहा.
क्रमशः........................
दोस्तों पूरी कहानी जानने के लिए नीचे दिए हुए पार्ट जरूर पढ़े ..............................
आपका दोस्त
राज शर्मा
माँ का दुलारा पार्ट -1
माँ का दुलारा पार्ट -2
माँ का दुलारा पार्ट -3
माँ का दुलारा पार्ट -4
माँ का दुलारा पार्ट -5
माँ का दुलारा पार्ट -6
माँ का दुलारा पार्ट -7
माँ का दुलारा पार्ट -8
माँ का दुलारा पार्ट -9
माँ का दुलारा पार्ट -10
gataank se aage...............
us shaniwaar raat ko mom deri se aai. thaki hui thi isaliye khaana khaakar turamt so gayi. garmi ke kaaran usake kapad.e gile ho gaye the isaliye usane saare kapade badalakar baatharuma me daal diye. meri chaamdi ho gayi. mom ke sone ke baad mai usaka blaauz, bra aur paimti utha laaya. saare pasine se tar the. saath hi usane us din pahane hue haai hil ke saimdal bhi le liye. mom gahari nimd me soi thi isaliye chupachaap usake bedarum se usake slipar bhi utha laaya. aaj to maanom mujhe khajaana mil gaya tha.
us raat maimne itani muththa maari jitani kabhi nahi maari hogi. mom ke kapad.e sumghe, unhe mumha me lekar chusa ki mom ke sharir ka kuch to ras mil jaaye. saimdal chaati se pakad.e, unhe mumha se lagaaya aur chumaa, lund ko sliparom ke mulaayama straips me famsaayaa, chappalom ke narama narama talawe par ragad.a aur shuru ho gaya. tin chaar baar jhad. kar mujhe shaamti mili.
pahale mera yaha plaan tha ki turamt mai uthakar sab chije chupachaap jagaha par rakh dumga. par do tin ghamte ke ghamaasaan hastamaithun ke baad us trupti ki bhaavana ke jaadu ne meri aamkhe laga dim. aisa gahara soya ki subaha der se aamkh khuli. hadbada kar utha to dekha paas ke tebal par chaay rakhi hai. yaane mom mere kamare me aayi thi! mai murakh jaisa raat ko darawaaja bhi thik se laga kar nahi soya tha. aur mere bistar par mom ke kapade aur saimdal pade the. slipar gaayab thi. paajaame me se lund bhi nikal kar khad.a thaa, jaisa subaha ko hota hai. mom ne jarur dekh liya hogaa! apani slipar bhi usane pahan li hogi par use kitana atapata laga hoga ki usaka beta usake kapado aur chappalom ke saath kya kar raha thaa!
mujhe samajh me nahi a raha tha ki kaise mom ko mumha dikhaaum. aakhir kisi taraha kamare ke baahar aaya. mom kichan me thi. bina kuch kahe usane mujhe fir chaay bana di. usaka chehara gambhir tha.
mai kisi taraha chaay pikar bhaaga. nahaaya aur fir kamare me ek kitaab padh.ane baith gaya. mom din bhar kuch nahi boli, dopahar ko baahar nikal gayi. use jarur bura laga hoga. aakhir mai bhi kya kahataa!
raat ko khaane ke baad mom ne aakhir mujhe pucha "ye kya kar raha tha tu mere kapad.om aur chappalom ke saath?"
mai chup rahaa, sirf sir jhuka kar sorry bola. mom ne aur kathor swar me pucha. "ye hamesha karata hai lagata hai! aur use din meri kaali bra nahi mil rahi thi. tune hi li thi naa? aur chamda baai bhi kapade thik se nahi dhoti, mujhe apani bra aur paimti me ek do baar kuch daag se mile the. tune lagaaye kya ye gamdi harakate karate hue?"
mai chup raha. mom ab mujhe daamtane lagi. kaafi gusse me thi. boli ki use ummid nahi thi ki mai aisa karumga. aisi gamdi aadate mujhe kahaam se lagim? aur wah bhi apani mom ke kapad.om aur chappalom ke saath? amt me gusse me aakar usane mujhe ek tamaacha bhi rasid kar diya aur fir mujhe jhimjhod. kar boli
"bol, aisa kyom kiyaa?" mom ne ab tak kabhi mujhe pita nahi tha. mai ruaamsa hokar aakhir bola
"sorry mommy, ab nahi karungaa, tum mujhe bahut achchi lagati ho isaliye aisa kiyaa" wah ek kshan stabdh raha gayi. kuch bolana chaahati thi par fir chup hi rahi aur apane kamare me chali gayi.
usake baad ke tin chaar din bad.e bure gujare. mom ne mujhase baat karana hi chod. diya tha. office se aur der se aati thi aur jaldi subaha ghar se nikal jaati thi. bedarum aur almaari me taala laga deti thi. kapade bhi dhone ko nahi daalati thi balki aakar khud dhoti. mera bhi lund khada hona band ho gayaa, saara hastamaithun band ho gaya. maine ek do baar aur mom ko sorry kaha par usane jawaab nahi diya. haam usaka kada rookh fir thoda narama ho gaya.
agale shaniwaar ko mom ki chutti thi. shukrawaar ko wah jaldi ghar a gayi. meri pasamd ka khaana banaaya. mujhase thik se kuch baate bhi kim. maimne chain ki saams ki li aur kaan ko haath lagaaya ki ab aisa kuch nahi karumga. asal me mai mom ko bahut pyaar karata thaa, ek naari ki taraha hi nahi, ek bete ke taraha bhi aur use khona nahi chaahata tha.
raat ko mai apane kamare me padh. raha tha tab mom amdar aai. usane gaaun pahan rakha tha. saara mekap wagairaha dho dhaala tha. chehara gambhir thaa, ek temshan sa tha usake chehare par jaise kuch faisala karana chaahati ho. aakar mere paas palamg par baith gayi. mai thod.a ghabara gayaa, na jaane kya baate kare, fir daamtane lage.
"anil, tu bada ho gaya hai, teri koi girl frend nahi hai?" usane mere baalom me haath chalaakar pucha.
"nahi maam, mujhe koi ladaki achchi nahi lagati aaj kal" maimne kaha.
"to fir kya achcha lagata hai?" usane pucha. na jaane kaise mere mumha se nikal gaya.
"tuma bahut achchi lagati ho mami, mai tumase bahut pyaar karata hum" kahane ke baad fir maimne apane aap ko kos daala ki aisa kyom kaha. mom fir naaraaj ho gayi to sab gadabad. ho jaayega.
"are par mai teri mom hum. tu bhi mujhe achcha lagata hai par ek bete ki taraha. mom ke baare me aisa nahi sochate bete jaisa tu sochata hai" mom ne mere chehare par najar gad.aakar kaha. aaj baat kuch aur thi. mom shaayad mujhase sab kuch diskas karana chaahati thi. maimne saahas karake kaha daala.
"mai kya karum maam, tuma bahut sumdar ho, mujhase raha nahi jaataa"
"are tune hi kaha teri garl frend nahi haim, tune aur kisi ko dekha hi nahi hai. aur maan bhi le ki mai tujhe achchi lagati hum to yaha tera wahama hai. aakhir meri umara ho chali hai, moti bhi ho gayi hum. tere jaise jawaan ladake ko to kamasin yuwatiyaam bhaani chaahiye, mujha jaisi adheda aurate nahim" mom ne gambhir swar me kaha.
"nahi maam, mujhe uname koi dilachaspi nahi hai. tuma nahi jaanati tuma kitani khubasurat ho. par mai tera dil nahi dukhaana chaahata mami, ab mai koi gamdi baat nahi karumgaa, thik se rahumga." mai apani baat par ada raha. mom jhalla kar uth kar khada ho gayi. usane ek nishchaya kar liya tha shaayad.
"kaisa murkh lad.aka hai, samajhata hi nahi mai kya kaha rahi hum. tu naadaan hai, aaj tujhe samajhaana hi pad.ega. is baat ka nipataata mai aaj hi karana chaahati hum ki tu kama se kama apana yaha paagalapan to bamd kare. tu fir shuru ho jaayega mai jaanati hum, aisi chijom ki aadat jaldi nahi jaati. tu bas mera chehara dekhata hai aur wo tujhe achcha lagata hai. maana ki meri surat achchi hai par sharir to bedaul ho gaya hai. chal aaj tujhe dikhaati hum, fir shaayad tera yaha wahama dur ho jaaye." usane darawaaja bamd kiya aur apana gaaun utaarane lagi. mai hakka bakka dekhata hi raha gaya. mom ne mere chehare se najar hataakar dusari or dekhate hue gaaun utaar diya aur boli
"dekh, kaisi moti aur bedhab hum. ab bol ki tujhe achchi lagati hum" usake chehare par ek kathorata si a gayi thi. mom ab sirf bra aur paimti me mere saamane thi. aaj usane apane achche maadak amtarwastra nahim, ek puraani kaatan ki bra aur bad.i se puraani safed paimti pahan rakhi thi. shaayad yaha soch rahi thi ki agar mai saade puraane amtarwastrom me lipate usake madhyamawayin sharir ko dekhumga to meri chaahat apane aap thamdi ho jaayegi. aisa karane me use kitani manowyatha hui hogi, mai kalpana kar sakata tha. akhir kaun aurat khud hi kisi se apane aap ko bedhab kahalawaane ki jid karegi.
par hua ulta hi. mom ka ardhanagna sharir mere man me aisi matawaali halachal paida kar gaya ki itane dinom baad mera lund fir sir uthaane laga. mom nahi jaanati thi ki mai achchi taraha se is baat se waakif tha ki mom ka sharir maamsal aur bhara hua hai. wah yaha bhi nahi jaanati thi ki usaka bhara pura mota sa sharir usaka aakarshan mere liye aur badh.a deta tha.
mai man bhar kar mom ke ardhanagna rupa ko dekhane laga. usaki jaamghe achchi moti thi par ekadama chikani aur gori. paimti bad.i hone se aur kuch nahi dikh raha tha par chaud.e kulhe aur bhaari bharakama nitambom ka aakaar usame se dikh raha tha. pet bhi thod.a thulathula tha par us gori chikani twacha aur kamar me pad.ate maasal balom se wah bala ki maadak lag rahi thi. gore gore fule hue pet me gahari naabhi usake is rup ko aur matawaala kar rahi thi. puraani dhili dhaali bra me usake stan thod.e latak aaye the par un maams ke mulaayama golom ko dekhakar aisa lagata tha ki abhi inhe chaba kar kha jaaum. lambi gori baamhe to mai kai baar dekh chuka tha par is ardhanagna awastha me we aur sumdar lag rahi thim. chikane bhare hue kamdhe jinapar bra ke straip lage hue the! kya najaara tha. mom mud.i to sirf bra ke straip se dhaki usaki gori chikani pith bhi mujhe dikhi. mom baaju me najar karake ek baar puri ghuma kar mujhase boli.
"dekh liya apani adhed.a mom ko? ab to tasalli hui ki mujhame aisa kuch nahi hai jo tujhe bhaaye. dekh mai kitani moti ho gayi hum, niche ka bhaag dekh, bilakul kitana chaud.a aur mota ho gaya hai" mai kuch na bolaa, bas use dekhata raha. meri chuppi par jhalla kar wah boli
"are chup kyom hai, kuch bol naa? waise itana patare patar bol raha thaa, ab saamp sumgh gaya kyaa"" kahakar usane meri or dekha to dekhati raha gayi. mera lund ab tan kar khada tha aur itana tana tha ki paajaame ke dhile batan khol kar baahar a gaya tha. usaki najar lund par padi aur wah aashcharya se usaki or dekhane lagi. dhire dhire usake chehare ki kathorata kama hui aur ek ajib mamata aur chaahat usaki aamkhom me jhalakane lagi. usane mere chehare ki or dekha. usame use jarur tivra chaahat aur pyaar dikha hoga.
"lagata hai ki sach me mai tujhe achchi lagati hum! mujhe laga tha ki ..." apani baat puri na kar ke mom aakar mere paas baith gayi. usaki aamkhe mere lund par se hat hi nahi rahi thi. mai bhale hi yaha khud kaha raha hum par mera lund kaafi sumdar hai, gora aur kasa huaa, bhale hi bahut bada na ho, fir bhi karib karib saadh.e paamch- chaha imch ka to hai hi.
mom ne achaanak jhuk kar mera gaal chuma liya. usaka chehara ab gulaabi ho gaya thaa, khila kar usaki sumdarata me aur chaar chaamd laga raha tha. mere kuch na kahane par bhi usane bhaamp liya tha ki wah mujhe kitani achcha lagati thi. aur ek aurat ke liye isase bad.a kaamplimemt aur kya ho sakata hai, khaas kar jab wah khud apani sumdarata ke prati aashwast na ho. mera lund ab aisa tharathara raha tha jaise fat jaayega. itani khumaari maimne jimdagi me kabhi mahasus nahi ki thi.
"kitana pyaara hai! tu sach me bad.a ho gaya hai bete" mom mere paas sarakakar boli. fir usane apana haath badh.aaya aur hichakate hue mera lund muththi me pakad. liya. wah aise dar rahi thi jaise kaat khaayega.
"kitana suj gaya hai! tujhe takalif hoti hai kyaa?" usaki hatheli ke mulaayama sparsh se mai aisa bahaka ki achaanak ek sisaki ke saath mai skhalit ho gaya. wirya ki fuhaare lund me se nikalane lagim. mom pahale chaumk gayi aur apana haath hata liya par maimne tad.ap kar usase lipatate hue kaha.
आपका दोस्त राज शर्मा
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj
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