"छोटी सी भूल --11
गतांक से आगे .........................
मैं इस कदर मदहोश हो कर बिल्लू के साथ खो जाउन्गि मैने सोचा भी नही था. वो पहली बार था कि मैं थोडा सा खुल कर बिल्लू के साथ खो पाई थी.
ना जाने ऐसी क्या बात थी बिल्लू में कि मैं अपनी शादी शुदा जिंदगी से खिलवाड़ कर बैठी थी. मुझे बार बार यही डर सता रहा था कि अगर कोई आ जाता तो मेरा क्या होता. मैं कहीं की ना रहती. कोई भी ये बात नही समझ सकता था कि मैने जो कुछ भी किया भावनाओ में बहक कर किया.
होशो हवाश में, मैं कभी बिल्लू के साथ ये सब नही कर सकती थी.
पर इतना ज़रूर था कि सेक्स का जो अनुभव मुझे बिल्लू के साथ हुवा था, वो मुझे बहुत अनमोल सा लग रहा था, क्योंकि मैने आज तक ऐसे सेक्स की कल्पना भी नही की थी.
बिल्लू मुझे सेक्स की अजीब सी गहराई में ले गया था. ऐसा लग रहा था जैसे की बिल्लू में साक्षात , कामदेव उतर आए हो.
दुख बस इस बात का था कि ये अनुभव मुझे अपने पति के साथ नही बल्कि बिल्लू के साथ हुवा था.
यही बात थी जो मुझे अंदर ही अंदर खाए जा रही थी. मुझे समझ नही आ रहा था कि जिस रास्ते पर मैं जाने अंजाने चल पड़ी हूँ वो मुझे कहा ले जाएगा. मुझे चारो तरफ अंधेरा ही अंधेरा नज़र आ रहा था.
मुझे बार बार यही डर सता रहा था कि अगर संजय को कही से ये सब पता चल गया तो मैं उन्हे कैसे समझा पाउन्गि. क्योंकि ये सब तो मेरी खुद की समझ से भी बाहर था. जो भी हो मुझे अपनी शादी शुदा जिंदगी ख़तरे में लग रही थी.
पर मेरी चिंता का कारण यही सब नही था. एक और बात थी जो कि शुरू से मुझे परेशान किए हुवे थी.
एक तरफ तो मेरे मन में ये सब करने के बाद गिल्ट और शर्मिंदगी की भावना उभर जाती थी, और एक तरफ दुबारा यही सब करने की इच्छा उभर आती थी, किस वक्त मुझ पर कौन सी बात हावी होगी मुझे कुछ पता नही था. सब कुछ एक माया जाल की तरह लग रहा था.
उस दिन बिल्लू के जाने के बाद मैं अपने बेड पर थोड़ी देर तकिये में मूह छुपाए पड़ी रही. मैं पड़े पड़े यही सोच रही थी कि सूकर है बिल्लू किसी के आने से पहले चला गया.
मेरी साँसे अभी भी उखड़ी हुई थी. और दिल की धड़कन तो जैसे थमने का नाम ही नही ले रही थी.
चिंटू आने वाला था इसलिए मैं जैसे तैसे बेड से उठ कर लड़खड़ते हुवे कदमो से बेडरूम से बाहर आ गयी. मेरा पूरा शरीर बिल्लू के कारण दुख रहा था.
जैसे ही मैं बाहर निकली चिंटू की स्कूल बस आ गयी.
2 बज चुके थे, इसलिए मैं लंच बनाने के लिए किचन में आ गयी. खाना बनाते वक्त अचानक मेरा ध्यान बंद खिड़की पर चला गया.
मैं सोचने लगी की ये खिड़की तो बंद है पर इसके कारण मेरी जींदगी में जो तूफान आया था, वो अभी भी चल रहा है, ना जाने मेरा क्या होगा.
खाना बनाने के बाद मैं नहाने चली गयी. नहाते हुवे मुझे ना चाहते हुवे भी अपने अंग अंग पर बिल्लू के हाथो की छुवन महसूष हो रही थी. मैने अपने अंग अंग को रगड़ रगड़ कर सॉफ किया कि कही बिल्लू का कोई निशान ना रह जाए, पर जो अहसास वो दे गया था उन्हे मिटाना मुस्किल था.
संजय ठीक 3 बजे आ गये और मैं लंच सर्व करने लगी.
मेरा कुछ भी खाने का मन नही था पर मैं फिर भी थोड़ा थोड़ा निगलने लगी
अचानक संजय ने कुछ ऐसा पूछा की मेरे गले में नीवाला अटक गया.
संजय ने पूछा, कोई आया था क्या घर में आज ?
मैने पूछा क्यो क्या हुवा ?
उन्होने कहा, नही यू ही शर्मा अंकल का फोन आया था कि उन्होने किसी लड़के को हमारे घर से निकलते हुवे देखा है , वो पूछ रहे थे कि कोई मेहमान आया है क्या आपके घर.
मैं डर तो बहुत गयी थी, पर मुझे अचानक बिल्लू की बात याद आ गयी कि मुझे एलेक्ट्रीशियन बता देना.
मैने अपनी सांसो को थामते हुवे कहा, अछा वो तो एक एलेक्ट्रीशियन को बुलाया था, वो वॉशिंग मशीन वाला प्लग अचानक खराब हो गया था, वही ठीक करने के लिए बुलाया था उशे.
मुझे ही पता है कि उस वक्त एक एक शब्द मैने कैसे कहा, मेरा गला डर के मारे सूखा जा रहा था.
संजय ने कहा, अरे मुझे अपने क्लिनिक में भी एलेक्ट्रीशियन की ज़रूरत है, तुमने जिशे बुलाया था, उसका नंबर, या अड्रेस दे दो मैं उसे क्लिनिक बुला लूँगा.
मुझे समझ नही आ रहा था कि मैं क्या करूँ.
मैने कहा, अभी तो नंबर नही है एक कागज पर लिखा था, जाने कहा पड़ा होगा अब, मैं शाम को ढूंड कर दे दूँगी.
संजय ने कहा ठीक है शाम को दे देना मैं उशे कल बुला लूँगा.
जैसे तैसे मेरी जान में जान आई. पर अब मैं ये सोच रही थी कि अब शाम को क्या जवाब दूँगी.
संजय के जाने के बाद, मैं और ज़्यादा बेचन हो गयी.
बार बार मुझे यही डर सता रहा था की कही संजय को मुझ पर शक तो नही हो गया.
मैं अब सोच रही थी कि शायद अब वक्त आ गया है जब मुझे संजय को सब कुछ बता देना चाहिए. मुझे लग रहा था कि इस से पहले की संजय को ये सब कही और से पता चले मुझे खुद उन्हे सब कुछ बता कर उनसे माफी माँग लेनी चाहिए.
पर मुझ में संजय को कुछ बताने की हिम्मत नही हो पा रही थी.
मैं ये सब सोच ही रही थी कि अचानक फोन की घंटी बज उठी.
ये बिल्लू का फोन था.
मैने कहा, अछा हुवा तुमने फोन किया ?
उसने पूछा, क्यो क्या हुवा ?
मैने कहा, तुमने मुझे अजीब मुसीबत में फँसा दिया है.
उसने कहा, बताओ तो सही की बात क्या है.
मैने कहा, हमारे घर के सामने शर्मा अंकल रहते है, उन्होने तुम्हे मेरे घर से निकलते हुवे देख लिया और बातो बातो में संजय को फोन पर पूछ लिया कि आपके घर कोई आया है क्या ?
वो बोला, मुझे इसी बात का डर था, मैने भी उस अंकल को देख लिया था, तभी तो मैने तुझे फोन किया.
मैने कहा, मैने अपने पति को बता दिया कि एक एलेक्ट्रीशियन को बुलाया था, वॉशिंग मशीन का प्लग ठीक करने के लिए.
वो बोला, ये तूने अछा किया.
मैने गुस्से में कहा, क्या खाक अछा है, मेरे पति ने एलेक्ट्रीशियन का पता माँगा है, उन्हे अपने क्लिनिक में कुछ ठीक करवाना है.
वो बोला, तू इतनी चिंता क्यो करती है, मैं अभी अपनी एलेक्ट्रिक शॉप का नंबर दे देता हू.
मैने पूछा, तो तुम खुद जाओगे ना उनके क्लिनिक.
वो बोला, नही किसी और को भेजूँगा.
मैने कहा, अरे तुम पागल हो क्या, किसी और को तुम कैसे भेज सकते हो, मेरे पति ने मेरे घर की वॉशिंग मशीन के प्लग की प्राब्लम के बारे में उस से पूछा तो.
वो बोला, तो इस में क्या दिक्कत है, मैं जीशको भेजूँगा उसे सब कुछ समझा दूँगा, तू चिंता मत कर.
मैने कहा, क्या तुम किसी और को हमारे बारे में सब कुछ बता कर मुझे बदनाम करोगे.
वो बोला, ऐसा कर तू इस सब को छोड़, और अपने पति को सब कुछ सच सच बता दे, कब तक उसे धोका देगी, यही मोका है उसे सब कुछ बताने का.
मैने कहा, मज़ाक मत करो.
वो बोला, मैं मज़ाक नही कर रहा, जो हमारे बीच शुरू हुवा, वो कही ना कही तो ख़तम होगा ही ना. तो अभी सब ख़तम हो जाने दे.
एक पल को मैं गहरी चिंता में डूब गयी.
मुझे बिल्लू से ये सब सुन-ने की उम्मीद नही ही. मुझे तो अपने कानो पर विश्वास ही नही हो रहा था.
मैने पूछा, आख़िर तुम चाहते क्या हो.
वो बोला, मैं ये चाहता हूँ कि तू अपने पति को सब कुछ बता कर अपना मन हल्का कर ले कब तक यू ही सब कुछ छुपाटी रहेगी.
मैने गुस्से में पूछा, तुम्हे क्या लगता है, वो ये सब कुछ सुन कर मुझे ख़ुसी से गले लगा लेंगे और मुझ से खुश हो जाएँगे कि मैने सब सच-सच बता दिया. ये सब पाप करके तो मैं खुद अपने आप को माफ़ नही कर पा रही हूँ. उनकी तो बात ही दूर है.
वो बोला, कुछ भी बोल पर हमारे रिस्ते को पाप मत बोल, बड़ी गहराई से प्यार किया है मैने तुझे.
मैने कहा, ना जाने कैसा प्यार है तुम्हारा जो मुझे बर्बाद करने पर उतारू है. कभी तुम मुझे किसी और के आगे परोस देते हो, कभी मेरी चिंता करते हो और मेरे लिए किसी की जान भी ले लेते हो और कभी मुझे कामदेव की तरह किसी दूसरी दुनिया में ले जाते हो, आख़िर तुम कौन हो, क्या हो ? मुझे लग रहा है तुम ज़रूर मेरे साथ कोई ख़तरनाक खेल खेल रहे हो.
वो मुस्कुराते हुवे बोला, अछा अछा ठीक है भाई, मैं देखता हूँ कि मैं क्या कर सकता हूँ, ज़्यादा एमोशनल मत हो, तू मेरी एलेक्ट्रिक शॉप का नंबर लिख ले.
बिल्लू ने मुझे नंबर दे दिया और बोला, देखता हूँ या तो तेरे पति के क्लिनिक मैं खुद जाउन्गा या फिर राज शर्मा को भेज दूँगा
मैने पूछा ये राज शर्मा कोन है
वो बोला, अरे वही जो तुम्हे करियर देने आया था,सब उसे राजू कह कर बुलाते है उसे तो सब पता ही है, तू चिंता मत कर. वैसे मैं खुद जाने की कोशिस करूँगा. मैं ये इश्लीए बोल रहा हूँ कि हो सकता है मुझे कल या परसो कही बाहर कम से जाना पड़े. मेरे पीछे राज सब संभाल लेगा.
मैने कहा, देख लो तुम्हे जैसा ठीक लगे, मैं अब चलती हूँ
वो बोला, अरे रुक तो
मैने पूछा, क्यो क्या बात है.
वो बोला, सच बता आज कैसा लगा तुझे.
मैने कहा, मुझे नही पता, मैं अभी बहुत परेशान हूँ मुझ से ऐसी बाते मत करो, तुमने मुझे आज बुरी तरह फँसा दिया.
वो बोला, अब सल्यूशन हो तो गया, अब किस बात की चिंता है तुझे.
मैने कहा, वो तो ठीक है पर मैं खुद को माफ़ नही कर पा रही हूँ, तुम्हारे बहकावे में आ कर मैने अपने पति को धोका दे दिया, मैं अंदर ही अंदर घुट रही हूँ.
वो बोला, तू इतना क्यो सोचती है, मुझे देख मैं तो खूब मज़े से सब कुछ करता हूँ और किसी बात की चिंता नही करता.
मैने कहा, तुम मेरी जगह होते तो तुम्हे पता चलता
वो बोला, छोड़ ना ये बाते कुछ अछी बात कर.
मैने कहा, मेरे पास अभी वक्त नही है बाद में बात करेंगे.
वो बोला, जाते जाते एक बात तो बता जा.
मैने पूछा, क्या ?
वो बोला, जब मैने तेरी पीछे से मारते हुवे पूछा था कि, “कैसा….. लग… रहा…..है… अब” तब तूने कहा था “आ…आ…अक्चहाा…बहुत…आचाअ”
क्या सच में तुझे आज बहुत अछा लगा.
जो बात मैने मदहोशी में कही थी वो मैं अब होशो हवाश में नही दोहरा सकती थी. मैं चुप ही रही.
उसने फिर पूछा, बता ना शरमाती क्यो है, मुझे पता तो चलना चाहिए कि मैं तुम्हे वाकाई में कुछ ख़ास दे रहा हूँ या नही ताकि मैं यू ही तुम्हे प्यार करता रहूं.
मैने कहा, बिल्लू मुझे नही पता इन बातो के पीछे तुम्हारा मकसद क्या है, हाँ पर तुमने मुझे कुछ नये अहसाश दिए है, पर मैं इस रास्ते पर तुम्हारे साथ दूर तक नही जा सकती ये रास्ता ग़लत है और ग़लत ही रहेगा.
वो बड़े विश्वास के साथ बोला, ये ग़लत रास्ता नही है बिल्कुल सही रास्ता है. प्यार कभी ग़लत नही होता.
मैने कहा ये प्यार नही है बिल्लू ये पाप है तुम समझते क्यो नही.
वो बोला, ठीक है बाद में बात करेंगे.
मैने कहा, रूको
वो बोला, हाँ कहो
मैने कहा, तुम अब यहा मत आना, आज मैं फँसते फँसते बची हूँ. मैं नही चाहती कि फिर से कोई तुम्हे यहा देखे. और वैसे भी मैं अब तुम्हे घर के अंदर नही घुसने दूँगी.
वो बड़ी बेशर्मी से हंसते हुवे बोला, घर तो क्या मैं तेरे अंदर भी घुस्सुंगा
मैने गुस्से में कहा बकवास बंद करो, ये कोई मज़ाक नही है. तुम मेरी जींदगी से मत खेलो.
वो थोडा सोच कर बोला, ठीक है यार मैं अब तेरे घर नही आउन्गा, तू बुलाएगी तो भी नही आउन्गा, अब खुस.
मैने कहा, ठीक है देखते है कितना वादा निभाते हो.
वो बोला, देख लेना फिर, और हाँ किसी बात की चिंता मत करना मैं सब कुछ संभाल लूँगा, तू बस खुस रह. ये कह कर उसने फोन रख दिया.
मैं उससे कुछ नही कह पाई.
मैने तुरंत संजय का फोन मिलाया और उन्हे बिल्लू की एलेक्ट्रिक शॉप का नंबर दे दिया. ना जाने क्यो मुझे बिल्लू पर यकीन था कि वो सब कुछ संभाल लेगा.
संजय ने कहा, ठीक है मैं आज ही उसे फोन कर के बुला लूँगा.
मैने कहा, ठीक है और फोन रख दिया.
ना जाने क्यो मुझे बार बार ये लग रहा था कि कही संजय को मुझ पर शक तो नही हो गया. मुझे लग रहा था कि उन्होने एलेक्ट्रीशियन का नंबर मुझ से ही क्यो माँगा, क्या उन्हे किसी एलेक्ट्रीशियन का नही पता ?
मैं समझ नही पा रही थी कि आख़िर बात क्या है. ऐसा लग रहा था कि मुझे मेरे किए की सज़ा मिलने वाली है.
शाम के कोई 6 बजे मैने बिल्लू की शॉप पर फोन किया, फोन बिल्लू ने ही उठाया.
मैने पूछा, मेरे पति का फोन आया था क्या ?
वो बोला, हां आया था, मैने राजू को वाहा भेज दिया था, तू चिंता मत कर वाहा सब ठीक है. राजू से मेरी बात हो गयी है. तेरे पति ने सिर्फ़ उस से इतना ही पूछा की “क्या तुम आज मेरे घर पर कुछ ठीक करने गये थे’. तो राजू ने बता दिया कि मुझे नही पता आपका घर कहा है, हां पर एक जगह वॉशिंग मेचीने का प्लग ठीक करने ज़रूर गया था.
मैने पूछा, क्या उन्होने एलेक्ट्रीशियन बस ये पूछने के लिए बुलाया था.
वो बोला, नही कुछ एलेक्ट्रिक वर्क तो था, वो राजू ने कर दिया है और अब क्लिनिक से आने ही वाला है.
ये सब सुन कर मेरी जान में जान आई. मैने बिल्लू से कहा चलो फिर मैं फोन रखती हूँ मुझे कुछ काम है.
वो बोला, यार थोड़ी देर रुक जाओ ना, मेरा तुझ से बात करने का मन कर रहा है.
मैने कहा, ठीक है बोलो क्या बोलना है.
वो बोला, तूने तब मेरी बात का जवाब नही दिया था.
मैने पूछा, किस बात की बात कर रहे हो
वो मुस्कुराते हुवे बोला, अरे वही बहुत अछा लगने वाली बात.
मैने कहा, तुम मुझे छोड़ कर अपनी चिंता किया करो, बार बार ऐसी बाते ठीक नही.
वो बोला, मुझे तो बहुत अछा लगा आज. कसम से तेरी चिकनी चूत में बड़े प्यार से फिसल रहा था मेरा लंड, बता दुबारा कब देगी.
मैने पूछा, तुम्हे क्या लगता है ये हमेशा चलता रहेगा.
वो बोला, जब तक तुम चाहोगी तब तक तो चलेगा ही.
मैने कहा, मैने कभी कुछ नही चाहा, जो भी हुवा, तुम्हारे कारण हुवा.
वो बोला, वो तो मैं भी जानता हूँ.
हम ये बाते कर रहे थे कि अचानक दरवाजे की घंटी बाजी. मुझे लगा शायद संजय आ गये है.
मैने तुरंत फोन रख दिया और दरवाजा खोलने के लिए दरवाजे पर आ गयी.
दवाजे पर संजय ही थे.
उन्होने अंदर आते हुवे कहा, अछा एलेक्ट्रीशियन था वो बड़ी जड़ी से काम करके चला गया.
मैने कहा, चलो अछा हुवा.
डिन्नर करने के बाद मैं किचन में आकर काम करने लगी.
अचानक संजय ने मेरे कान में आकर कहा, जल्दी काम निपटा कर आओ, आज बहुत मन है.
मैने हंसते हुवे कहा ठीक है मैं आती हूँ.
जब मैं बेडरूम में आई तो संजय, बिल्कुल नंगे हो कर मेरा इंतेज़ार कर रहे थे.
मेरे अंदर आते ही उन्होने मेरे कपड़े उतार कर एक तरफ फेंक दिए. अचानक मुझे लगा जैसे की मैं अभी भी बिल्लू के साथ हूँ.
संजय ने मुझे बाहो में भर लिया और मेरे होंटो को बेतहासा चूमने लगे.
उन्होने कहा, नीचे बैठ जाओ, थोडा सा सक कर लो.
संजय अक्सर मुझे अपना लिंग सक करने को कहते थे, पर मुझे हमेशा झीजक होती थी.
संजय मेरे सामने खड़े रहे और मुझे नीचे बैठा दिया. मैं पंजो के बल बैठ गयी.
मैं थोड़ा झीजक रही थी, दरअसल मुझे ये सब करना बिल्कुल अछा नही लगता था, फिर भी संजय के कारण मुझे कभी कभी करना पड़ता था.
उन्होने मेरे होंटो पर अपना लिंग रगड़ना शुरू कर दिया, और बोले खोलो ना मूह ऋतु तुम हमेशा यू ही नाटक करती हो.
मैने मूह खोल कर संजय के लिंग को मूह में ले लिया, और उसे धीरे धीरे चूसने लगी.
ना जाने मुझे क्या सूझी मैने उनका लिंग मूह से निकाल कर कहा, आज तुम भी मेरी योनि सक करो ना.
उन्होने कहा, कैसी बात करती है, ये कोई अदला बदला है क्या.
मैने कहा, नही मेरा मन कर रहा है.
मेरे मन में वाकाई में ये इच्छा हो रही थी कि संजय मेरी योनि पर अपने होंठो को रख कर मुझे वाहा प्यार करे.
संजय ने थोडा सोच कर कहा, ऋतु मुझे वो करना नही आता, फिर कभी ट्राइ करेंगे ठीक है.
ये कह कर उन्होने मुझे बाहो में उठा लिया और बेड लेटा कर मेरे उपर आ गये.
उन्होने मेरी टाँगो को उपर उठाया और एक झटके में मुझ में शमा गये. मेरे मूह से आआहह निकल गयी.
उशके बाद में सब कुछ भूलती चली गयी.
संजय ने मेरी योनि को अंदर से रगड़ना शुरू कर दिया.
मेरी साँसे तेज होती चली गयी.
अचानक संजय ने पूछा, कैसा लग रहा है ?
मैने कहा, अछा, पर पूरा अंदर डालो ना.
संजय ने चोंक कर कहा, पूरा ही तो डाल रखा है.
अचानक मुझे लगा कि मुझे ये क्या हो गया है, मैं बिल्लू के अहसाश संजय के साथ क्यो दोहराना चाहती हूँ.
फिर मैं जैसे संजय कर रहे थे उशी में ध्यान लगा कर खो गयी, और मुझे धीरे धीरे मज़ा आने लगा.
संजय ने रफ़्तार तेज की तो मेरी सांसो की रफ़्तार भी तेज हो गयी और मैं अचानक ढेर हो गयी.
अचानक तभी संजय भी ढेर हो कर मुझ पर गिर गये.
उष दिन खूब थकने के कारण मुझे बहुत गहरी नींद आई.
सुबह उठ कर मैने खुद से ये सवाल पूछा कि मेरी मेरे पति के साथ सेक्स लाइफ तो अछी है फिर मैं क्यो बिल्लू के साथ अपनी जींदगी से खेल रही हूँ.
फिर मुझे ख्याल आया कि इश्का कारण सेक्स नही खुद बिल्लू ही है. वो ऐसी बाते करता है कि मैं ना चाहते हुवे भी बहक जाती हूँ.
मैं अब हर हाल में अपनी छोटी सी भूल को जींदगी से मिटा देना चाहती थी.
पर मैं ये भी जानती थी कि ये इतना आसान नही होगा.
कुछ दिन मेरे शांति से बीत गये. बिल्लू का ना तो कोई फोन आया और ना ही वो कभी घर आया.
एक दिन मैने संजय से कहा कि चलो कही घूमने चलते है थोडा चेंज हो जाएगा. उन्होने कहा ठीक है चलेंगे बस एक हफ़्ता रुक जाओ फिर आराम से चलेंगे, अभी क्लिनिक में काफ़ी काम है.
मैने पूछा, क्या शिमला ठीक रहेगा.
वो बोले, हां ठीक है.
मैं खुस थी की संजय ने मेरी बात मान ली थी.
दरअसल मैं अब सब कुछ भुला कर अपनी शादी शुदा जींदगी में खो जाना चाहती थी.
सब कुछ ठीक चल रहा था. मैं अपनी जींदगी में खोने की कोशिस कर रही थी.
एक दिन अचानक कोई 10:30 पर फोन की घंटी बज उठी.
मुझे पूरा यकीन था कि ये बिल्लू का ही होगा. मैं फोन उठना तो नही चाहती थी पर फिर भी मैने फोन उठा ही लिया.
मैं सही सोच रही थी, फोन बिल्लू का ही था.
मैने फॉरन फोन रख दिया.
फोन की घंटी फिर बज उठी.
मैने फोन उठा कर गुस्से में पूछा क्या बात है ?
बिल्लू बोला, कुछ नही बस यू ही तेरी याद आ रही थी.
मैने पूछा, तो मैं क्या करूँ ? तुम यहा फोन मत किया करो.
वो बोला, पर मैं क्या करूँ मैं तेरे बिना तड़प रहा हूँ.
मैने बिना कुछ कहे फोन पटक दिया.
उष दिन उष्का कोई फोन नही आया. मुझे यकीन था कि शायद वो अब मेरे घर आने की कोशिश करेगा. पर वो घर भी नही आया.
बिल्लू के दिए अहसाश हर पल मेरे साथ थे पर मैं अपने मन को मजबूत बनाए हुवे थी कि अब बिल्लू को कोई मोका नही देना है.
दिन तो मेरा शांति से बीत गया पर रात बहुत भारी पड़ी.
संजय चैन से शो रहे थे और मैं बेचानी की हालत में करवटें बदल रही थी.
मैं बार बार यही सोच रही थी कि अब बिल्लू को मुझ से क्या चाहिए, वो मेरा सब कुछ तो ले चुका है.
मैने ये सोचा ही था कि मेरी योनि में अचानक बिल्लू के लिंग की रगड़ ताज़ा हो गयी. ऐसा लग रहा था मानो बिल्लू अभी अभी मेरी योनि में धक्के लगा कर गया हो.
मेरी योनि कब गीली हो गयी पता ही नही चला.
दिन में मैने बिल्लू से बात तो नही की थी पर फिर भी वो दूर बैठे बैठे मुझे सता रहा था.
मुझे कब नींद आई पता नही पर इतना ज़रूर था कि मेरी पूरी रात बेचानी में बीती थी.
अगले दिन फिर से ठीक 10:30 पर फोन की घंटी बज उठी.
मैने दौड़ कर फोन उठा लिया.
जैसा की मुझे यकीन था, फोन बिल्लू का ही था.
मैने पूछा, तुम मुझसे चाहते क्या हो, मुझे अकेला क्यो नही छोड़ देते.
वो बोला, छोड़ रहा हूँ, अब तुझे अकेला ही छोड़ रहा हूँ. मैं ये सहर छोड़ कर जा रहा हूँ.
एक पल को मैं समझ नही पाई की क्या कहूँ.
फिर मैने पूछा, कहा जा रहे हो ?
वो बोला, पता नही जहा किस्मत ले जाएगी चला जाउन्गा. वैसे भी यहा तेरे बिना रहने का क्या फ़ायडा.
मैने पूछा, ये क्या पागलपन है ?
वो बोला, अगर तू किसी की दीवानी होती ना तो तुझे पता चलता.
मैने कहा, अब तुम मुझसे क्या चाहते हो.
वो बोला, बस आखरी बार तुझ से मिलना चाहता हूँ.
मैने कहा, तुमसे मिलना मुझे हर बार भारी पड़ता है.
वो बोला, इस बार सबसे ज़्यादा भारी पड़ेगा.
मैने पूछा क्या मतलब ?
वो बोला, मतलब की मैं आखरी बार तेरी जी भर कर लेना चाहता हूँ. तुझसे भी ये रिक्वेस्ट है कि कम से कम आखरी बार मेरे साथ खुल कर एंजाय कर लो.
मुझे समझ नही आ रहा था कि मैं क्या कहूँ.
मैं रात की तरह फिर से बहकने लगी थी, फरक सिर्फ़ इतना था कि अब बिल्लू फोन पर था, जिसके कारण मेरी हालत रात से भी ज़्यादा खराब हो रही थी.
वो बोला बता, आओगी ना मुझ से आखरी बार मिलने, इस के बाद में कभी तुझे परेशान नही करूँगा.
मैने झीज़कते हुवे पूछा, पर हम कहा मिलेंगे ?
वो बोला, वही जहा से ये सब शुरू हुवा था, तेरे घर के पीछे. वही पर ये कहानी ख़तम करेंगे.
मैने कहा, पर वाहा ख़तरा रहेगा, कोई आ गया तो.
वो बोला, कोई नही आएगा, बड़ी बड़ी झाड़ियों से हमें कौन देखेगा. तू आस पास ध्यान से देख कर चुपचाप आजा मैं कोई 10 मिनूट में वाहा पहुँच रहा हूँ.
मैने चोन्कते हुवे कहा, अरे क्या आज ही मिलना है ?
वो बोला हाँ आज ही मिलना है, तू क्या आखरी बार देने के लिए मुझे महीनो तक तडपाएगी.
मैं फोन पर थी, फिर भी मैं ये सुन कर शर्मा उठी.
वो बोला, चल अब जल्दी तैयार हो कर आ जा, मैं यहा से निकल रहा हूँ. वाहा 10 मिनूट में पहुँच जाउन्गा.
ये कह कर उसने फोन रख दिया.
ये सोच कर की बिल्लू वाहा झाड़ियों में मेरे साथ क्या करेगा, मेरी साँसे भड़क उठी.
मैं आखरी बार अपने कामदेव में खो जाना चाहती थी.
बिल्लू इस कदर मुझ पर हावी हो चुका था कि मुझे एक पल को भी ये ख्याल नही आया कि ये सब ठीक नही है.
मुझे बस यही ख्याल आ रहा था कि, ये सब आखरी बार करना है तो क्यो ना खुल कर करूँ.
पर फिर भी मेरे लिए खुद चल कर बिल्लू के लिए घर के पीछे जाना आसान नही था.
पर मदहोशी मुझ पर इस कदर हावी थी कि मेरे कदम कब दरवाजे की और बढ़ गये मुझे पता ही नही चला.
मैने घर को लॉक कर दिया और चुपचाप आस पास देख कर घर के पीछे आ गयी.
मुझे यकीन था कि मुझे किसी ने नही देखा.
मैं अपनी बंद खिड़की के बिल्कुल सामने खड़ी थी.
बिल्लू अभी तक नही आया था, मुझे लग रहा था कि कहीं मैं जल्दी तो नही आ गयी.
अचानक मुझे किसी के कदमो की आहत शुनाई दी.
मैं घबरा कर एक तरफ झाड़ियों में छुप गयी.
ये बिल्लू ही था.
उसे देख कर मैं दबे पाँव रख कर बाहर आ गयी.
मुझे देख कर वो खिल उठा.
वो मुस्कुराते हुवे बोला, मुझे यकीन तो था कि तू आएगी ज़रूर, पर मुझसे पहले यहा पहुँच जाएगी मैने सोचा भी नही था.
मैने शरम से आँखे झुका ली.
मैने कहा, मैं तो ठीक 10 मिनूट बाद आई हूँ, तुमने ही तो कहा था कि मैं 10 मिनूट में आ रहा हूँ.
वो हंसते हुवे बोला, चल ठीक है मैं तो यू ही मज़ाक कर रहा था.
वो मेरे पास आ गया और मेरे बहुत करीब खड़ा हो गया.
मेरी आँखे शरम से अभी भी झुकी हुई थी, जैसे ही वो मेरे करीब आया मेरा दिल ज़ोर ज़ोर से धक धक करने लगा.
अचानक मेरी नज़र उसकी पॅंट में उभरे हुवे भाग पर गयी. ये देख कर मैने आँखे बंद कर ली.
वो बोला, तू जब शरमाती है तो और भी ज़्यादा सुन्दर लगती है. काश मैं तेरा पति होता तो तुझे हर पल आँखो के सामने बिठाए रखता.
मैने कुछ नही कहा.
बिल्लू ने मेरा हाथ पकड़ा और उसे उसकी पॅंट के उभरे हुवे भाग पर रख दिया, और बोला, लेइसे खुल कर महसूष कर आज.
मेरी साँसे और ज़्यादा फुलती जा रही थी.
मैं उशके लिंग को पॅंट के उपर से ही महसूष करने लगी.
बिल्लू हल्की हल्की सिसकियाँ भरने लगा.
वो बोला, मेरी ज़िप खोल कर लंड बाहर निकाल लो, और आछे से महसूष करो.
मैने हकलाते हुवे कहा, तुम खुद निकाल लो ना.
वो बोला, कम से कम आखरी बार तो खुल कर प्यार कर लो मुझ से.
मैने थोड़ा गुस्से में कहा, मैं क्या करूँ मुझे झीजक होती है, तुम समझते क्यो नही, हर काम तुम मुझ से ही क्यो करवाते हो.
वो बोला, ठीक है, ठीक है, मैं तो यू ही कह रहा था. लो मैं खुद निकाल कर दे देता हूँ.
बिल्लू ने अपनी ज़िप खोल कर अपने लिंग को बाहर निकाल लिया.
हमेशा की तरह मैं मदहोश हो कर उसे एक टक देखने लगी.
अचानक मुझे अपने बेडरूम में बिल्लू के साथ बिताए पल याद आ गये. मैं उन पॅलो में खो गयी जब मेरी आँखो के सामने झूलता ये लिंग मेरी योनि में बहुत गहराई तक जा कर उसे अंदर से ज़ोर ज़ोर से रगड़ रहा था.
अचानक मेरा ध्यान बिल्लू की आवाज़ से टूट गया.
वो बोला, क्या हुवा खेलो ना इस बेचारे से.
मैने हंसते हुवे उशके लिंग को थाम लिया और उसे आछे से दबा दबा कर महसूष करने लगी.
वो बोला, इस लंड के नीचे लटकते आँड को भी तो सहला दो, वो भी तेरे प्यार के प्यासे है.
आज तक कभी संजय ने अपने टेस्टेस को छूने के लिए नही कहा था, हां मैं खुद उन्हे वाहा कभी कभी छू लेती थी. मुझे समझ नही आ रहा था कि वाहा बिल्लू को क्या अछा लगता है.
मैने बिल्लू के टेस्टेस को हाथ में थाम लिया और उन्हे हल्का हल्का सहलाने लगी.
बिल्लू ने पूछा, क्या मेरे गन्ने को मूह में लेकर चूसोगी.
मैने कहा, नही मुझे ये सब अछा नही लगता.
वो बोला, कोई बात नही, मैने तो बस यू ही पूछ
लिया, जो तुम्हे अछा नही लगता वो मेरे लिए भी बेकार है. पर एक बात कहूँ.
मैने कहा, हाँ कहो.
वो बोला, मुझे तुम्हारी चूत चूसने में बहुत मज़ा आता है, ये कह कर वो मेरे आगे बैठ गया.
मैने शरम से आँखे झुका ली.
वो बोला, अब शरमाने से कुछ नही बनेगा, जल्दी नाडा खोलो और लंड अंदर लेने से पहले थोड़ा सा चूस्वा लो, अंदर लेने में आसानी होगी.
मैने पूछा, तुम्हे वाहा मूह लगा कर क्या मिलता है.
वो बोला, प्यार में क्या मिलता है ?
मैने पूछा, क्या मतलब ?
वो बोला, ये तेरी चूत और मेरे मूह के बीच की बात है तुम नही समझोगी, चल खोल अब.
मैने अपना नाडा खोल दिया और सलवार नीचे गिरा दी. मैं पॅंटी पहन कर नही आई थी, इश्लीए अब बिल्लू के सामने मेरी नंगी योनि थी.
बिल्लू ने मेरी योनि पर मूह टीका दिया और वाहा एक बहुत गहरी किस की.
मेरे तन बदन में बीजली की लहर दौड़ गयी. मुझे उसके होंटो की छुवन बहुत गहराई तक महसूष हो रही थी.
मैं समझ नही पा रही थी कि सेक्स का ये रूप बिल्लू ने कहा से सीखा. उस वक्त वो मेरे लिए कामदेव से कम नही था.
बिल्लू अचानक उठ गया और मेरा हाथ पकड़ कर मेरे किचन की खिड़की के बिल्कुल सामने ले आया.
मैने पूछा, क्या हुवा.
वो बोला, कुछ नही, आज सब कुछ इस बंद खिड़की के सामने करेंगे, इसी खिड़की से तो हमारा रिस्ता शुरू हुवा था, इसी खिड़की के सामने आज ये रिस्ता ख़तम करेंगे.
वो बोला, अब झुक जाओ.
मैने पूछा, अब क्या करोगे.
वो बोला, तेरी चूत अलग स्टाइल से चूसूंगा.
मैं बिल्लू के आगे झुक गयी, मेरा मूह खिड़की की तरफ था.
बिल्लू ने पीछे से मेरे नितंबो को थाम लिया और नीचे बैठ कर पीछे से मेरी योनि को चाटने लगा.
ये मेरे लिए बिल्कुल ही नया अहसाश था.
उसने अपनी पूरी जीभ मेरी योनि में घुस्सा दी और अपनी जीभ से मेरी योनि को अंदर से रगड़ने लगा.
मैं और ज़्यादा बहकति चली गयी.
मेरी योनि अंदर से पूरी तरह गीली हो गयी थी.
अचानक बिल्लू खड़ा हो गया.
मैने बेचन हो कर पूछा क्या हुवा ?
वो बोला, अब मेरे लंड की बारी है, कब से तड़प रहा है तेरे अंदर घुस्सने के लिए.
उसने पूछा, तुम तैयार हो ना ?
मैने कहा, मुझे नही पता.
वो बोला, तेरी चूत रस टपका रही है, मुझे तो लगता है कि तू अब मरवाने के लिए तैयार है. डाल दूं क्या अंदर ?
मैने झीज़कते हुवे कहा, डाल दो.
मैं अब बिल्लू को अपने अंदर महसूष करने के लिए बेचन हो रही थी और बिल्लू बेकार की बाते कर के मुझे तडपा रहा था.
वो बोला, पर तू ये तो बता कि तू तैयार तो है ना, वरना तुझे इतना मोटा लेने में दर्द होगा..
मैने थोडा गुस्से में कहा प्लीज़ डाल दो मैं तैयार हूँ, ये खेल बंद करो.
वो बोला, पर इस खेल में मज़ा बहुत आता है, ले संभाल अब मैं तेरे होल में घुस्सा रहा हूँ.
ये कह कर बिल्लू ने एक झटके में अपना पूरा लिंग मेरी योनि में धकैल दिया.
मैं दर्द से छील्ला उठी
आबीयेयायीयियीयैआइयैआइयैआइयैयि
प्लीज़ निकाल लो दर्द हो रहा है.
वो बेशर्मी से बोला, अभी तो कह रही थी डाल दो और अब कह रही हो निकाल लो, आख़िर तुम चाहती क्या हो.
मैने गुस्से में पूछा, तुमने एक दम पूरा अंदर क्यो डाल दिया.
वो हंसते हुवे बोला, ये सेक्स का एक और खेल है. पूरा एक साथ घुस्साने में बहुत मज़ा आता है, तुझे भी दर्द के बावजूद मज़ा ही आएगा.
वो सच कह रहा था, उसकी ये एंट्री मेरी योनि में हलचल पैदा कर रही थी.
दर्द के साथ साथ मुझे अब मेरी योनि में अजीब सा अहसाश हो रहा था, जो मुझे बहुत अछा लग रहा था.
बिल्लू मेरे अंदर डाले हुवे खड़ा रहा.
मैं बेचन हुई जा रही थी.
मैं उशके लिंग को अपने अंदर रगडे खाते हुवे महसूष करना चाहती थी. पर ना जाने क्यो बिल्लू आराम से खड़ा था. मेरी साँसे फुलती जा रही थी.
मैने कहा, कोई आ जाएगा जल्दी करो.
वो बोला, क्या करूँ बताओ तो सही मुझे तो ऐसे ही अछा लग रहा है.
मैने गुस्से में कहा, तुम बहुत बदमाश हो.
वो बोला, वो तो मैं हूँ.
मैने कहा, देखो मैं ज़्यादा देर तक झुकी नही रह सकती प्लीज़ जल्दी करो.
वो बोला, पर बताओ तो क्या करूँ
मैने गुस्से में कहा तुम बाहर निकाल लो, मुझे कुछ नही करना.
वो बोला, यार तुम तो बुरा मान गयी मैं तो बस एरॉटिक गेम खेल रहा था.
मैने कहा, तो हो गया खेल, चलो मारो अब.
वो बेशर्मी से बोला, ये हुई ना बात, ये खेल में तेरे लिए ही तो खेलता हूँ, अब तक तो तुझे आदत हो जानी चाहिए थी, तुझे ये खेल जींदगी भर याद आएगा.
मैने पूछा, क्या तुम सच में ये सहर छोड़ कर जा रहे हो.
वो बोला, सहर ही नही शायद ये भी हो सकता है कि मैं कल का सूरज ही ना देंखु.
ये सुन कर मैं चोंक गयी. मैं समझ नही पा रही थी कि आख़िर बिल्लू ये क्या कह रहा है और क्यो कह रहा है ?
मैने पूछा, ये क्या मज़ाक कर रहे हो ?
वो बोला, ये मज़ाक नही सच है.
ये कह कर बिल्लू ने अपना पूरा लिंग बाहर निकाल लिया और एक झटके में फिर से मेरे अंदर घुस्सा दिया.
मैं मन ही मन सोच रही थी कि ये बिल्लू हर वक्त एक खेल खेलता रहता है.
फिर बिल्लू ने अचानक बिना रुके मेरी योनि को रगड़ना शुरू कर दिया.
जिस पल का मैं इंतेज़ार कर रही थी उसके अचानक आने से मैं थोड़ा सकपका गयी और मेरे कदम थोड़ा लड़खड़ा गये.
पर बिल्लू ने मुझे मेरे नितंबो पर से मजबूती से थाम रखा था जिसके कारण मैं संभाल गयी.
बिल्लू काफ़ी देर तक लगातार मेरी योनि में धक्के लगता रहा और मैं उशके हर धक्के के साथ हवा में आगे पीछे झूलती रही.
मैं इतनी ज़्यादा मदहोश हो गयी कि मुझे कुछ होश नही रहा.
बिल्लू ने पूछा, कैसा लग रहा है ?
मैने हड़बड़ाते हुवे कहा, बहुत अछा, प्लीज़ रुकना मत मेरे संयम का बाँध टूटने वाला है.
वो बोला, तू चिंता मत कर ये गाड़ी स्टेशन से पहले नही रुकेगी. वो और तेज़ी से मेरी योनि में धक्के मारने लगा.
मेरी साँसे बहुत तेज हो गयी, मैं खुद को रोक नही पाई और अचानक भावनाओ के सागर में बह गयी.
मैने बिल्लू से कहा प्लीज़ रुक जाओ अब नही सहा जा रहा.
बिल्लू तुरंत रुक गया और मेरी योनि से अपना लिंग निकाल लिया.
मैं खड़ी होने लगी तो बिल्लू ने मुझे रोक दिया.
वो बोला, थोड़ा रूको आखरी बार तेरी गांद तो मार लू.
बिल्लू मेरे नितंबो को थाम कर बोला, इनका तो मैं देवाना हूँ.
ये कह कर वो मेरे नितंबो को बेतहासा चूमने लगा.
मैं फिर से मदहोश होने लगी.
अचानक बिल्लू ने कुछ अजीब किया.
उसने मेरे नितंबो को फैलाया और मेरी गुदा को अपनी जीभ से चाटने लगा.
मैने पूछा, ये क्या कर रहे हो.
वो बोला, तुझे प्यार कर रहा हूँ ताकि तू मुझे हमेशा याद रखे.
मुझे विश्वास नही हो रहा था कि वो मुझे वाहा चूम रहा है पर ये बात सच थी कि मुझे अछा लग रहा था.
मेरी गुदा को ठीक से गीला कर के बिल्लू उठ गया उसका लिंग मेरे नितंबो पर लग रहा था.
उसने कहा, अपनी गांद को दोनो हाथो से पकड़ कर फैला लो अंदर लेने में आसानी होगी.
मैं इतनी मदहोश हो चुकी थी कि मैने बिना झीजक के अपने नितंबो को फैला लिया.
उसने मेरे गुदा द्वार पर अपना लिंग लगा दिया और बोला, चिंता मत करना मैं आराम से डालूँगा.
ये कह कर उसने मेरी गुदा में अपना लिंग घुस्सा दिया.
मैं फिर से दर्द में चील्ला उठी आआआआअहह
उसने पूछा, ज़्यादा दर्द है क्या ? निकाल लू क्या बाहर.
मैने कहा, नही ठीक है तुम कर लो, पर आराम से.
बिल्लू ने धीरे धीरे अपना पूरा लिंग मेरी गुदा में सरका दिया.
इस बार उसने मुझे परेशान नही किया और धीरे धीरे मेरे नितंबो में धक्के लगाने लगा.
मुझे फिर से मज़ा आने लगा. फराक सिर्फ़ इतना था कि ये मज़ा मुझे योनि में नही बल्कि मेरी गुदा में आ रहा था.
अचानक बिल्लू तेज तेज धक्के मारने लगा.
मेरी साँसे फुलती चली गयी.
तभी अचानक मुझे अपने पीछे कुछ आहट सुनाई दी.
मैने पीछे मूड कर देखा, तो मेरे पैरो के नीचे से ज़मीन निकल गयी, मेरी आँखो के आगे अंधेरा छा गया.
बिल्लू के थोडा पीछे अशोक खड़ा था और अशोक के साथ बिल्लू का दोस्त राजू खड़ा था.
दोनो ने अपनी ज़िप खोल रखी थी और दोनो अपने हाथो से अपने लिंग को सहला रहे थे.
मैने बिल्लू से चील्ला कर कहा, हटो, वरना मैं शोर मचाउन्गि.
वो मुझे मजबूती से थामे रहा और मेरे नितंबो में तेज तेज धक्के लगता रहा.
अचानक मेरे किचन की खिड़की खुली.
मैने जो देखा वो मेरी जींदगी का सबसे बड़ा शॉक था, एक शॉक तो मैं ऑलरेडी देख चुकी थी.
खिड़की में संजय थे, मैं उन्हे अपने सामने देख कर शरम से पानी पानी हो गयी.
इतने बड़े शॉक के कारण मैं लगभग अनकनसियस हो गयी थी. मैं समझ नही पा रही थी कि आख़िर हो क्या रहा है.
मेरे हाथ पाँव काम करना बंद कर चुके थे, बिल्लू अभी भी बड़ी बेशर्मी से मेरे अंदर धक्के लगा रहा था.
अचानक मैने खिड़की में देखा तो पाया कि संजय वाहा नही है.
मैने बेहोशी की हालत में ही बिल्लू से कहा, बिल्लू……. हट……… जाओ.
पर बिल्लू नही माना.
अचानक मुझे गोली की आवाज़ सुनाई दी.
मैने नज़र उठा कर देखा तो पाया कि संजय खिड़की पर वापस लॉट आए है और उनके हाथ में पिस्टल है.
अचानक बिल्लू मेरे पीछे से हट गया.
मैं लड़खड़ा कर नीचे गिर गयी, गिरते हुवे मैने देखा कि बिल्लू को गोली लगी है. मैं मन ही मन दुआ कर रही थी वो मर जाए और काश एक गोली मुझे भी लग जाए. ये सब सोचते सोचते मैं बेहोश हो गयी.
क्रमशः ..............................
आपका दोस्त राज शर्मा
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा
(¨`·.·´¨) Always
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(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj
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