Wednesday, April 21, 2010

राज शर्मा की कामुक कहानिया रद्दी वाला पार्ट--2

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रद्दी वाला पार्ट--2
गतान्क से आगे...................
मैं ऐसा ही करूँगी पर मेरी प्यास जी भर कर बुझाते रहिएगा आप भी. ज्वाला देवी उनसे लिपट गई, उसे ज़ोर से पकड़ अपने लंड को उसकी गांद से दबा कर वो बोले,"प्यास तो तुम्हारी मैं आज भी जी भर कर बुझाउन्गा मेरी जान .. पुच. पुच.. पुच.." लगातार उसके गाल पर काई चूमि काट कर रख दी उन्होने. इन चुंबनो से ज्वाला इतनी गरम हो उठी कि गांद पर टकराते लंड को उसने हाथ मैं पकड़ कर कहा, "इसे जल्दी से मेरी गुफा मैं डालो जी." "हां. हां. डालता .. हूँ.. पहले तुम्हे नंगी कर'के चुदाई के काबिल तो बना लूँ जान मेरी." एक चूची ज़ोर से मसल डाली थी सुदर्शन जी ने,सिसक ही पड़ी थी बेचारी ज्वाला.सुदर्शन जी ने ज्वाला की कमर कस कर पकड़ी और आहिस्ता से उंगलिया पेटिकोट के नडे पर ला कर जो उसे खींचा कि कुल्हों से फिसल कर गांद नंगी करता हुआ पेटिकोट नीचे को फिसलता चला गया."वाह. भाई.. वाह.. आज तो बड़ी ही लपलापा रही है तुम्हारी! पुच!" मूँ'ह नीचे कर'के चूत पर हौले से चुंबी काट कर बोले. "आई.. नही.. उफ़फ्फ़.. ये.. क्या .. कर . दिया.. आ. एक.. बारर.. और .. चूमओ.. राजा.. आहह एम्म स" चूत पर चूमि कटवाना ज्वाला देवी को इतना मज़ेदार लगा कि दोबारा चूत पर चूमि कटवाने के लिए वो मचल उठी थी. "जल्दी नहीं रानी! खूब चुसूंगा आज मैं तुम्हारी चूत, खूब चट चट कर पियुंगा इसे मगर पहले अपना ब्लाउस और पेटिकोट एकदम अपने बदन से अलग कर दो.""आए रे ..मैं तो आधी से ज़्यादा नंगी हो गयी सय्या.." तुम इस साली लूँगी को क्यों लपेटे पड़े हुए हो?" एक ज़ोरदार झटके से ज्वाला देवी पति की लूँगी उतारते हुए बोली.लूँगी के उतरते ही सुदर्शन जी का डंडे जैसा लंबा व मोटा लंड फन्फना उठा था. उसके यूँ फुंफ़कार सी छ्चोड़ने को देख कर ज्वाला देवी के तन-बदन मैं चुदाई और ज़्यादा प्रज्वलित हो उठी. वो सीधी बैठ गयी और सिसक-सिसक कर पहले उसने अपना ब्लाउस उतारा और फिर पेटिकोट को उतारते हुए वो लंड की तरफ देखते हुए मचल कर बोली, "हाई. अगर.. मुझे.. पता. होता.. तो मैं . पहले . ही .. नंगी.. आ कर लेट जाती आप के पास. आहह. लो.. आ.. जाओ.. अब.. देर क्या है.. मेरी.. हर.. चीज़... नंगी हो चुकी है सय्याँ..." पेटिकोट पलंग से नीचे फैंक कर दोनो बाँहे पति की तरफ उठाते हुए वो बोली.सुदर्शन जी अपनी बनियान उतार कर बोले, "मेरा ख़याल है पहले तुम्हारी चूत को मुँह मैं लेकर खूब चूसू" "हाँ. हां.. मैं भी यही चाह'ती हूं जी.. जल्दी से .. लगा लो इस पर अपना मूँ'ह. दोनो हाथो से चूत की फाँक को चौड़ा कर वो सिसकरते हुए बोली, "मेरा लंड भी तुम्हे चूसना पड़ेगा ज्वाला डार्लिंग. अपनी आँखों की भावें ऊपर चढ़ाते हुए बोले,"छुसुन्गि. मैं.. चूसुन्गि.. ये तो मेरी ज़िंदगी है ... आहा.. इसे मैं नही चूसुन्गि तो कौन चूसेगा,मगर पहले .. आहह. आऊओ.. ना.." अपने होंठो को अपने आप ही चूस्ते हुए ज्वाला देवी उनके फन्फनते हुए लंड को देख कर बोली. उसका जी कर रहा था कि अभी खरा लंड वो मूँ'ह मैं भर ले और खूब चूसे मगर पहले वो अपनी चूत चुस्वा चुस्वा कर मज़े लेने के चक्कर मे थी.लंड चुसवाने का वादा ले सुदर्शन जी घुटने पलंग पर टेक दोनो हाथों से ज्वाला की जंघे कस कर पकड़ झुकते चले गये.और अगले पल उनके होंठ छूट की फाँक पर जा टीके थे. लेटी हुई ज्वाला देवी ने अपने दोनो हाथ अपनी दोनो चूचियो पर जमा कर सिग्नल देते हुए कहा,"अब ज़ोर से .. चूसो..जी.. यू.. कब.. तक. होंठ रगड़ते रहोगे.. आह.. पी. जाओ. इसे."पत्नी की इस मस्ती को देख कर सुदर्शन जी ने जोश मैं आ कर जो चूत की फांको पर काट काट कर उन्हे चूसना शुरू किया तो वो वहशी बन उठी. खुश्बुदार,बिना झांतो की दरार मैं बीच-बीच मैं अब वो जीभ फँसा देते तो मस्ती मैं बुरी तरह बैचैन सी हो उठती थी ज्वाला देवी.चूत को उच्छाल उच्छल कर वो पति के मूँ'ह पर दबाते हुए चूत चुसवाने पर उतर आई थी. "ए..आइए.. नहीं.. ई. मैं.. नहीं.. आए.ए.. ये. क्या.. आइईइ.. मर... जाउन्न्ग्गीइ राअज्जजा. आहह. दान्नाअ मत चोस्सो जी.. उउफ़फ्फ़... आहह नहीं.."सुदर्शन जी ने सोचा कि अगर वे चंद मिनिट और चूत चूस्ते रहे तो कही चूत पानी ही ना छ्चोड़ दे.काई बार ज्वाला का पानी वे जीभ से चूत को चाट चाट कर निकाल चुके थे.इसलिए चूत से मुँह हटाना ही अब उन्होने ज़्यादा फ़ायदेमंद समझा.जैसे ही चूत से मुँह हटा कर वो उठे तो ज्वाला देवी गीली चूत पर हाथ मलतःुए बोली, "ओह.. चूसनी क्यों बंद कर दी जी." "मैने रात भर तुम्हारी चूत ही पीने का ठेका तो ले नहीं लिया, टाइम कम है, तुम्हे मेरा लंड भी चूसना है, मुझे तुम्हारी चूत भी मारनी है और बहुत से काम करने है,अब तुम अपनी ना सोचो और मेरी सोचो यानी मेरा लंड चूसो आई बात समझ मैं." सुदर्शन जी अपना लंड पकड़ कर उसे हिलाते हुए बोले,उनके लंड का सूपड़ा इस समय फूल कर सुर्ख हुआ जा रहा था."मैं.. पीछे हटने वाली नहीं हूँ.. लाओ दो इसे मेरे मुँह मे."तुरंत अपना मुँह खोलते हुए ज्वाला देवी ने कहा.उसकी बात सुन कर सुदर्शन जी उसके मुँह के पास आ कर बैठ गये और एक हाथ से अपना लंड पकड़ कर उस'के खुले मुँह मे सूपड़ा डाल कर वो बोले, "ले.. चूस.. चूस इसे साली लंड खोर हरामन." "अयै..उई.. आ..उउंम." आधा लंड मूँ'ह मैं भर कर उऊँ.. उ उहं करती हुए वो उसे पीने लगी थी.लंड के चारो तरफ झांतो का झुर्मुट उस'के मूँ'ह पर घस्से से छ्चोड़ रहा था. जिस'से एक मज़ेदार गुदगुदी से उठती हुए वो माह'सूस कर रही थी, चिकना व ताक़तवर लंड चूस'ने मैं उसे बड़ा ही जाएकेदार लग रहा था. जैसे जैसे वो लंड चूस्ति जा रही थी, सुपाड़ा मूँ'ह के अंदर और ज़्यादा उच्छल उच्छल कर टकरा रहा था. जब लंड की फुंफ़कारें ज़्यादा ही बुलंद हो उठी तो सुदर्शन जी ने स्वैम ही अपना लंड उस'के मुँह से निकाल कर कहा,"मैं अब एक पल भी अपने लंड को काबू मैं नहीं रख सकता ज्वाला.. जल्दी से इसे अपनी चूत मैं घुस जाने दो." "वाह.. मेरे . सैय्या. मैने भी तो यही चाह रही हूँ. आओ.. मेरी जांघों के पास बैठो जी..." इस बार अपनी दोनो टांगे ज्वाला देवी ऊपर उठा कर चुदने को पूर्ण तैयार हो उठी थी. सुदर्शन जी दोनो जांघों के बीच मे बैठे और उन्होने लपलपाति गीली चूत के फड़फदते छेद पर सुपाड़ा रख कर दबाना शुरू किया. आच्छी तरह लंड जमा कर एक टाँग उन्होने ज्वाला देवी से अपने कंधे पर रखने को कहा, वो तो थी ही तैयार फ़ौरन उसने एक टाँग फुर्ती से पति के कंधे पर रख ली. चूत पर लगा लंड उसे मस्त किए जा रहा था. ज्वाला देवी दूसरी टाँग पहले की तरह ही मोड हुए थी. सुदर्शन जी ने थोड़ा सा झुक कर अपने हाथ दोनो चूचियों पर रख कर दबाते हुए ज़ोर लगा कर लंड जो अंदर पेलना शुरू किया कि फॅक की आवाज़ के साथ एक साँस मैं ही पूरा लंड उसकी चूत साटक गयी. मज़े मैं सुदर्शन जी ने उसकी चूचियाँ छ्चोड़ ज़ोर से उसकी कोली भर कर ढ़ाचा ढ़च लंड चूत मैं पेलते हुए अटॅक चालू कर दिए. ज्वाला देवी पति के लंड से चुद्ते हुए मस्त हुई जा रही थी. मोटा लंड चूत मैं घुसा बड़ा ही आराम दे रहा था. वो भी पति के दोनो कंधे पकड़ उच्छल उच्छल कर चुद रही थी तथा मज़े मैं आ कर सिसकती हुई बक बक कर रही थी, "आहह. श. शब्बास.. सनम.. रोज़.. चोदा करो . वाहह.तुम..वाकाय.. सच्चे... पती.. हो .. चोडो और चोदो.... ज़ोर... से चोदो... उम्म्म... आ.. मज़ाअ.. आ.. रहा आ.. है जी.. और तेज़्ज़.... आहह.." सुदर्शन जी मस्तानी चूत को घोटने के लिए जी जान एक किए जा रहे थे. वैसे तो उनका लंड काफ़ी फँस-फँस कर ज्वाला देवी की चूत मैं घुस रहा था मगर जो मज़ा शादी के पहले साल उन्हे आया था वो इस समय नही आ पा रहा था.खैर चूत भी तो अपनी ही चोदने के अलावा कोई चारा ही नही था.उन चेहरे को देख कर लग रहा था कि वो चूत नहीं मार रहे हैं बल्कि अपना फ़र्ज़ पूरा कर रहे है,ना जाने उनका मज़ा क्यों गायब होता जा रहा था. वास्टिविक्ता ये थी की प्रतिभा की नयी नयी जवान चूत जिसमें उनका लंड अत्यंत टाइट जाया करता था उसकी याद उन्हे आ गयी थी. उनकी स्पीड और चोदने के ढंग मैं फ़र्क मह'सूस करती हुई ज्वाला देवी चुद्ते चुद्ते ही बोली,"ओह.. ये. ढीले..से.. क्योन्न.. पड़ड़.. रहे हैं.. आप.. अफ.. मैं .. कहती हूँ.... ज़ोर.. से .करो... आ. क्यो.. मज़ा.खराब..किए जा रहे हो जीई... उउफ्फ.." "मेरे बच्चों की मा .. आहह.. ले. तुझे. खुश.. कर'के ही हटूँगा.. मेरी.. अच्छी.. रानी.. ले.. और ले. तेरीई.. चूत का.. मैं अपने.. लंड.. से ... भोसड़ा... बना. चुका हूँ.. रंडी..और.ले.. बड़ी अcछी चूत हे.. आह. ले.. चोद. कर रख दूँगा..तुझे.." सुदर्शन जी बड़े ही करारे धक्के मार मार कर आंट शॅंट बकते जा रहे थे, अचानक ज्वाला देवी बहुत ज़ोर से उनसे लिपट लिपट कर गांद को उच्छलते हुए चुदने लगी.सुदर्शन जी भी उसका गाल पीते पीते तेज़ रफ़्तार से उसे चोदने लगे थे.तभी ज्वाला देवी की चूत ने रज की धारा छ्चोड़नी शुरू कर दी. "ओह.. पत्टीी..देव... मेरे. सैयाँ.. ओह. देखो.. देखो.. हो.. गया..ए.. मई..गई..."और झड़ती हुई चूत पर मुश्किल से 8-10 धक्के और पड़े होंगे कि सुदर्शन जी का लंड भी ज़ोरदार धार फेंक उठा. उन'के लंड से वीर्य निकल निकल कर ज्वाला देवी की चूत मैं गिर रहा था,मज़े मैं आ कर दोनो ने एक दूसरे को जाकड़ डाला था. जब दोनो झाड़ गये तो उनकी जकड़न खुद ढीली पड़ती चली गयी.कुछ देर आराम मैं लिपटे हुए दोनो पड़े रहे और ज़ोर ज़ोर से हानफते रहे. करीब 5 मिनिट बाद सुदर्शन जी, ज्वाला देवी की चूत से लंड निकाल कर उठे और मूतने के लिए बेडरूम से बाहर चले गये. ज्वाला देवी भी उठ कर उन'के पीछे पीछे ही चल दी थी.थोड़ी देर बाद दोनो आ कर बिस्तर पर लेट गये तो सुदर्शन जी बोले, "अब! मुझे नींद आ रही है डिस्टर्ब मत करना." "तो क्या आप दोबारा नहीं करेंगे? भूखी हो कर ज्वाला देवी ने पूचछा." "अब! बहुत हो गया इतना ही काफ़ी है, तुम भी सो जाओ." उन्होने लेटते हुए कहा.वास्तव मैं वे अब दोबारा इसलिए चुदाई नही करना चाहते थे क्योंकि प्रतिभा केलिए भी थोड़ा बहुत मसाला उन्हे लंड मे रखना ज़रूरी था.उनकी बात सुन कर ज्वाला देवी लेट तो गयी परंतु मन ही मन ताव मैं आ कर अपने आप से ही बोली, "मा चोद साले, कल तेरी ये अमानत रद्दी वाले को ना सौंप दूँ तो ज्वाला देवी नाम नहीं मेरा. कल सारी कसर उसी से पूरी कर लूँगी साले." सुदर्शन जी तो जल्दी ही सो गये थे, मगर ज्वाला देवी काफ़ी देर तक चूत की ज्वाला मैं सुलगती रही और बड़ी मुश्किल से बहुत देर बाद उसकी आँखे झपकने पर आई. वह भी नींद के आगोश मैं डूबती जा रही थी. अगले दिन ठीक 11 बजे बिरजू की आवाज़ ज्वाला देवी के कानो मैं पड़ी तो खुशी से उसका चेहरा खिल उठा, भागी भागी वो बाहर के दरवाजे पर आई. तब तक बिरजू भी ठीक उसके सामने आ कर बोला,"में साहब ! वो बॉटल ले आओ, ले लूँगा." "भाई साइकल इधर साइड मैं खड़ी कर अंदर आ जाओ और खुद ही उठा लो." वो बोली. "जी आया अभी" बिरजू साइकल बरामदे के बराबर मे खड़ी कर ज्वाला देवी के पीछे पीछे आ गया था.इस समय वह सोच रहा था कि शायद बिविजी की चूत के आज भी दर्शन हो जाय. मगर दिल पर काबू किए हुए था. ज्वाला देवी आज बहुत लंड मार दिखाई दे रही थी. पति वा बेटी के जाते ही चुदाई की सारी तैयारी वह कर चुकी थी. किसी का डर अब उसे ना रहा था.गुलाबी सारी और हल्के ब्लाउस मे उसका बदन और ज़्यादा खिल उठा था. ब्लाउस के गले मे से उसकी चूचियों का काफ़ी भाग झँकता हुआ बिरजू सॉफ दिख रहा था. चूचियाँ भींचने को उसका दिल मचलता जा रहा था. तभी ज्वाला देवी उसे अंदर ला कर दरवाजा बंद करते हुए बोली,"अब दूसरे कमरे मैं चलो, बॉटल वहीं रखकी हैं." "जी, जी, मगर आपने दरवाजा,क्यों बंद कर दिया." बिरजू बेचारा हकला सा गया था. घर की सजावट और ज्वाला देवी के इस अंदाज़ से वह हड़बड़ा सा गया था.वह डरता हुआ सा वहीं रुक गया और बोला, "देखिए मेम साहब ! बॉटल यहीं ले आइए, मेरी साइकल बाहर खड़ी है." "अरे आओ ना, तुझे साइकल मैं और दिलवा दूँगी."बिरजू की बाँह पकड़ कर उसे ज़बरदस्ती अपने बेडरूम पर खींच ही लिया था ज्वाला देवी ने.इस बार सारी बातें एक एक पल मे समझता चला गया, मगर फिर भी वो काँपते हुए बोला,"देखिए,मैं ग़रीब आदमी हूँ जी, मुझे यहा से जाने दो,मेरे बाबा मुझे घर से निकाल देंगे." "अर्रे घबराता क्यों है, मैं तुझे अपने पास रख लूँगी, आजा तुझे बॉटल दिखाउ, आजा ना." ज्वाला देवी बिस्तर पर लेट कर अपनी बाँहें उसकी तरफ बढ़ा कर बड़े ही कामुक अंदाज़ मैं बोली."मैं. मगर.. बॉटल कहा है जी.." बिरजू बुरी तरह हड़बड़ा उठा था."अर्रे!लो ये रही बॉटल, अब देखो इसे जीभर कर मेरे जवान आजा." अपनी सारी व पेटिकोट ऊपर उठा कर सफाचट चूत दिखाती हुई ज्वाला देवी बड़ी बेहयाई से बोली. वो मुस्कुराते हुए बिरजू की मासूमियत पर झूम झूम जा रही थी.चूत के दिखाते ही बिरजू का लंड हाफ पॅंट मैं ही खड़ा हो उठा मगर हाथ से उसे दबाने का प्रयत्न करता हुआ वो बोला, "मेम साहब ! बॉटल कहाँ है . मैं जाता हूँ, कहीं आप मुझे चक्कर मैं मत फँसा देना." "ना.. मेरे .. राजा.. यूँ दिल तोड़ कर मत जाना तुझे मेरी कसम! आजा पत्थे इसे बॉटल ही समझ ले और जल्दी से अपनी डॉट लगा कर इसे ले ले." चुदने को मचले जा रही थी ज्वाला देवी इस समय. "तू नहा कर आया है ना." वो फिर बोली. "जी .. जी. हां. मगर नहाने से आपका मतलब."चौंक कर बिरजू बोला, "बिना नहाए धोए मज़ा नहीं आता राजा इसलिए पूच्छ रही थी." ज्वाला देवी बैठ कर उस'से बोली."तो आप मुझसे गंदा काम करवाने के लिए इस अकेले कमरे मैं लाए हो." तेवर बदलते हुए बिरजू ने कहा, "हाई मेरे शेर तू इसे गंदा काम कह'ता है! इस काम का मज़ा आता ही अकेले मे है, क्या कभी किसी की तूने ली नहीं है?" होंठो पर जीभ फिरा कर ज्वाला देवी ने उस'से कहा और उस'का हाथ पकड़ उसे आप'ने पास खींच लिया. फिर हाफ पॅंट पर से ही उस'का लंड मुट्ठी में भींच लिया.बिरजू भी अब ताव में आ गया और उसकी कोली भर कर चूचियों को भींचता हुए गुलाबी गाल पीत पीता वो बोला, "चोद दूँगा बिविजी, कम मत समझ'ना. हाई रे कल से ही मैं तो तुम्हारी चूत के लिए मरा जा रहा था." शिकार को यूँ ताव मे आते देख ज्वाला देवी की खुशी का ठिकाना ही ना रहा, वो तबीयत से गाल बिरजू को पीला रही थि.दोस्तो अब इस पार्ट को यही ख़तम करते है बिरजू से ज्वाला की चुदाई अगले मे लेकर मिलेंगे
क्रमशः.....................
Raddi Wala paart--2
gataank se aage...................
main aisa hi karungi par meri pyaas ji bhar kar bujhaate rahiyega aap bhi. Jwala Devi unse lipat paree, use zor se pakad apne lund ko uski gaand se daba kar wo bole,"Pyas to tumharee mai aaj bhi ji bhar kar bujhaunga meri jaan .. Puchch. puchh.. puchh.." Lagatar uske gaal par kayee chumi kaat kar rakh di unhone. In chumbano se Jwala itni garam ho uthe ki gaand par takrate lund ko usne haath main pakad kar kaha, "Ise jaldi se meri gufa mai Dalo ji." "Haan. Haan. Dalta .. Hoon.. pahale tumhe nangi kar'ke chudai ke kaabil to bana loon jaan meri." Ek choochi zor se masal Daali thee Sudarshan jee ne,siskaar hi paree thee bechaari Jwala.Sudarshan jee ne Jwala ki kamar kas kar pakdi aur ahista se ungliyaa petticoat ke nade par laa kar jo use khecnha ki kulhon se fisal kar gaand nangi karta hua petticoat neche ko fisalta chala gaya."Wah. bhai.. waah.. aaj to badi hi laplapaa rahi hai tumharee! Puchh!" mun'h neeche kar'ke choot par haule se chumbee kaat kar bole. "ayee.. nahee.. Ufff.. ye.. Kya .. kar . diya.. aa. ek.. Baarr.. Aur .. choomo.. raja.. ahh mmm ss" choot par chumi katwaana Jwala Devi ko itna mazedaar laga ki dobara choot par chumi katwaane ke liye wo machal uthee thee. "Jaldi naheen rani! Khoob chosunga aaj mai tumhari choot, khoob chat chat kar piyunga ise magar pahle apna blouse aur petticoat ekdam apne badan se alag kar do.""aaye re ..mai to aadhi se jyada nangi ho gayi sayyaa.." tum is sali lungi ko kyon lapete pade hue ho?" ek zordaar jhatke se Jwala Devi pati ki lungi utarte hue boli.Lungi ke utarte hi Sudarshan ji ka dande jaisa lamba va mota lund fanfanaa utha tha. uske yun funfkaar si chhodne ko dekh kar Jwala Devi ke tan-badan main chudai aur jyaada prajwalit ho uthee. Wo seedhi baith gayee aur sisak-sisak kar pahale usne apna blouse utaara aur phir petticoat ko utaarte hue wo lund ki taraf dekhte hue machal kar boli, "Hai. agar.. mujhe.. pata. hota.. to mai . pahale . hi .. Nangi.. Aa kar let jaati aap ke paas. ahh. lo.. aa.. jaaoo.. ab.. Der kya hai.. Meri.. Har.. Cheez... nangi ho chuki hai sayyaan..." Petticoat palang se niche phaink kar dono banhe pati ki taraf uthate hue wo boli.Sudarshan jee apni baniyaan utaar kar bole, "Mera khayaal hai pahale tumhaaree choot ko munh main lekar khoob choosu" "Haan. haan.. main bhi yahee chaah'tee hoon ji.. Jaldi se .. Laga lo is par apna mun'h. Dono haatho se choot ki phank ko chauda kar wo siskarte hue boli, "Mera lund bhi tumhe choosna padega Jwala darling. Apni aankhon ki bhaven oopar chadhate hue bole,"Chusungi. mai.. choosungi.. Ye to meri zindagi hai ... aaha.. ise mai nahee choosungi to kaun choosega,magar pahale .. aahh. aaooo.. na.." Apne hontho ko apne aap hi chooste hue Jwala Devi unke fanfanate hue lund ko dekh kar boli. Uska ji kar raha tha ki abhi khara lund wo mun'h mai bhar le aur khoob choose magar pahale wo apni choot chuswa chuswaa kar maze lene ke chakkar mai thi.Lund chuswane ka wada le Sudarshan jee ghutne palang par tek dono hathon se Jwala ki janghe kas kar pakad jhukte chale gaye.Aur agle pal unke honth choot ki phaank par jaa tike the. Leti huee Jwala Devi ne apne dono haath apni dono choochiyo par jama kar signal dete hue kaha,"Ab zor se .. Chooso..Ji.. yu.. Kab.. tak. honth ragadte rahoge.. ah.. Pee. jao. Ise."Patni ki is masti ko dekh kar Sudarshan ji ne josh main aa kar jo choot ki phanko par kaat kaat kar unhe chosna shuru kiya to wo vehshi ban uthi. Khushbudar,bina jhanto ki darar main beech-beech main ab wo jeebh phansa dete to masti main buri tarah baichain si ho uthti thee Jwala Devi.Choot ko uchhaal uchhal kar wo pati ke mun'h par dabaate hue choot chuswaane par utar aayee thee. "e..aie.. naheen.. ee. main.. naheen.. aaye.e.. ye. kya.. aaiii.. mar... jaaunnggiii raaajjjaa. aahh. daannaaa mat chosso ji.. uufff... aahh nahin.."Sudarshan jee ne socha ki agar ve chand minute aur choot chooste rahe to kahi choot pani hi na chhod de.Kayee bar Jwala ka pani ve jeebh se choot ko chaat chaat kar nikaal chuke the.Isliye choot se munh hatana hi ab unhone jyaada faaydemand samjha.Jaise hi choot se munh hata kar wo uthe to Jwala Devi gili choot par hath maltehue boli, "Oh.. Choosni kyon ban kar di ji." "Maine raat bhar tumharee choot hi peene ka theka to le naheen liya, time kam hai, tumhe mera lund bhi choosna hai, mujhe tumhaaree choot bhi maarni hai aur bahut se kaam karne hai,ab tum apni na soch aur meri socho yani mera lund chooso aayee baat samajh main." Sudarshan jee apna lund pakad kar use hilaate hue bole,unke lund ka supada is samay phool kar surkh hua jaa raha tha."Main.. peechhe hatne waali naheen hoon.. Laao do ise mere munh mai."Turant apna munh kholte hue Jwala Devi ne kaha.Uski baat sun kar Sudarshan jee uske munh ke paas aa kar baith gaye aur ek hath se apna lund pakad kar us'ke khule munh mai supada daal kar wo bole, "Le.. choos.. Choos ise saalee lund khor haraaman." "Uie..uiee.. ahh..uumm." aadha lund mun'h main bhar kar uum.. u uhhm karti hue wo use peene lagi thee.lund ke charo taraf jhanto ka jhurmut us'ke mun'h par ghasse se chhod raha tha. jis'se ek mazedaar gudgudi se uthti hue wo mah'soos kar rahi thee, chikna va taqatwar lund choos'ne main use bada hi jayekedaar lag raha tha. Jaise jaise wo lund choosti jaa rahi thee, supaada mun'h ke andar aur jyaada uchhal uchhal kar takraa raha tha. Jab lund ki phumphkaaren jyaada hi buland ho uthee to Sudarshan jee ne swaim hi apna lund us'ke munh se nikal kar kaha,"Mai ab ek pal bhi apne lund ko kaabu main naheen rakh sakta Jwala.. Jaldi se ise apni choot main ghus jaane do." "Waah.. Mere . saiyyan. maine bhi to yahee chaah rahi hoon. aaoo.. Meri jaanghon ke paas baitho ji..." is baar apni dono taange Jwala Devi oopar utha kar chudne ko poorna taiyaar ho uthee thee. Sudarshan jee dono janghon ke beech mai baithe aur unhone laplapati gili choot ke phadphadate chhed par supaada rakh kar dabaana shuru kiya. Achchhee tarah lund jama kar ek taang unhone Jwala Devi se apne kandhe par rakhne ko kaha, wo to thee hi taiyaar fauran usne ek taang furti se pati ke kandhe par rakh li. Choot par laga lund use mast kiye jaa raha tha. Jwala Devi doosri taang pahale ki tarah hi mode hue thee. Sudarshan jee ne thoda sa jhuk kar apne haath dono choochiyon par rakh kar dabaate hue zor laga kar lund jo andar pelna shuru kiya ki fach ki aawaaz ke saath ek saans main hi poora lunduski choot satak gayee. Maze main Sudarshan jee ne uski choochiyaan chhod zor se uski koli bhar kar dhacha dhach lund choot main pelte hue attack chaalu kar diye. Jwala Devi pati ke lundse chudte hue mast huee jaa rahi thee. Mota lund choot main ghusa bada hi aaram de raha tha. Wo bhi pati ke dono kandhe pakad uchhal uchhal kar chud rahi thee tatha maze main aa kar sisakti hui bak bak kar rahi thee, "aahh. ohh. shabbaas.. Sanam.. roz.. Choda karo . Wahh.tum..Wakaii.. Sachche... patii.. Ho .. Chodo aur chodo.... Zor... se chodo... ummm... aa.. Mazaaa.. aa.. raha aa.. Hai ji.. aur tezz.... ahh.." Sudarshan jee mastaani choot ko ghotne ke liye ji jaan ek kiye jaa rahe the. Waise to unka lund kaafi phans-phans kar Jwala devi ki choot main ghus raha tha magar jo maza shaadi ke pahale saal unhe aaya tha wo is samay nahee aa pa raha tha.Khair choot bhi to apni hi chodne ke alawa koi chara hi nahee tha.Un chehre ko dekh kar lag raha tha ki wo choot naheen maar rahe hain balki apna farz poora kar rahe hai,na jaane unka maza kyon gaayab hota jaa raha tha. Vaastivikta ye thee ki Pratibha ki nayee nayee jawaan choot jismen unka lund atyant tight jaaya karta tha uski yaad unhe aa gayee thee. Unki speed aur chodne ke dhang main fark mah'soos karti huee Jwala Devi chudte chudte hi boli,"Oh.. Ye. dheele..se.. kyonn.. Padd.. rahe hain.. aap.. uff.. Mai .. kehti hoon.... Zor.. se .karo... ahh. kyo.. mazaa.Kharab..kiye ja rahe ho jiiii... uuff.." "Mere bachchon ki maa .. aahh.. le. Tujhe. Khush.. kar'ke hi hatungaa.. Merii.. achchhee.. raani.. Le.. Aur le. teriiii.. Choot ka.. mai apne.. lund.. se ... bhosada... bana. chuka hoon.. randi..Aur.le.. badi acchhee choot hay.. ah. le.. Chod. kar rakh doonga..Tujhe.." Sudarshan jee bade hi karare dhakke mar mar kar ant shant bakte jaa rahe the, achaanak Jwala Devi bahut zor se unse lipat lipat kar gaand ko uchhalte hue chudne lagi.Sudarshan jee bhi uska gaal peete peete tez raftar se use chodne lage the.Tabhi Jwala Devi ki choot ne raj ki dhara chhodni shuru kar di. "oh.. pattii..dev... mere. saiyaan.. oh. dekho.. dekho.. Ho.. gayaa..e.. mai..gaee..."aur jhadti hui choot par mushkil se 8-10 dhakke aur pade honge ki Sudarshan jee ka lund bhi zordaar dhaar phenk utha. un'ke lund se virya nikal nikal kar Jwala Devi ki choot main gir raha tha,maze main aa kar dono ne ek doosre ko jakad Daala tha. Jab dono jhad gaye to unki jakdan khud dheeli padti chali gayi.Kuch der aaraam main lipte hue dono pade rahe aur zor zor se haanfte rahe. Kareeb 5 minute baad Sudarshan jee, Jwala Devi ki choot se lund nikaal kar uthe aur mootne ke liye bedroom se baahar chale gaye. Jwala Devi bhi uth kar un'ke peechhe peechhe hi chal di thee.Thodi der baad dono aa kar bistar par let gaye to Sudarshan jee bole, "Ab! Mujhe neend aa rahi hai disturb mat karna." "To kya aap dobaara naheen karenge? Bhookhi ho kar Jwala Devi ne poochha." "Ab! bahut ho gaya itna hi kafi hai, tum bhi so jaao." Unhone lette hue kaha.Vaastav mai ve ab dobara isliye chudai nahi karna chahte the kyonki Pratibha keliye bhi thoda bahut masala unhe lund mai rakhna jaroori tha.Unki baat sun kar Jwala Devi let to gayee parantu man hi man taav main aa kar apne aap se hi boli, "Maa chod saale, kal teri ye amanat raddi waale ko na saump doon to Jwala Devi naam naheen mera. Kal saari kasar usee se poori kar loongi saale." Sudarshan jee to jaldi hi so gaye the, magar Jwala Devi kaafi der tak choot ki jwaala main sulagti rahi aur badi mushkil se bahut der bad uski ankhe jhapakane par aayi. Wah bhi neend ke agosh main doobti jaa rahi thee. Agle din theek 11 baje Birju ki aawaaz Jwala Devi ke kaano main paree to khushi se uska chehra khil uthaa, bhaagi bhagi wo baahar ke darwaaje par aayee. Tab tak Birju bhi theek uske samne aa kar bola,"Mem saahab ! wo bottle le aao, le loonga." "Bhai cycle idhar side main khari kar andar aa jaao aur khud hi utha lo." Wo boli. "Ji aaya abhi" Birju cycle baramde ke barabar mai khari kar Jwala Devi ke pechhe peechhe aa gaya tha.Is samay wah soch raha tha ki shayad biwijee kee choot ke aaj bhee darshan ho jaay. Magar dil par kaaboo kiye hue tha. Jwala Devi aaj bahut lund maar dikhayee de rahi thee. Pati wa beti ke jaate hi chudai ki saari taiyaaree wah kar chuki thee. Kisi ka dar ab use na raha tha.Gulaabi saaree aur halke blouse mai uska badan aur jyaada khil uthaa tha. Blouse ke gale mai se uski choochiyon ka kafi bhag jhankta hua Birju saaf dekh raha tha. Choochiyaan bheenchne ko uska dil machalta jaa raha tha. Tabhi Jwala Devi use andar laa kar darwaaja band karte hue boli,"Ab doosre kamre main chalo, bottle wahin rakhkhi hain." "Ji, ji, magar aapne darwaja,kyon band kar diya." Birju bechaara haklaa sa gaya tha. Ghar ki sajawat aur Jwala Devi ke is andaz se wah hadbada sa gaya tha.Wah darta hua sa wahin ruk gaya aur bola, "Dekhiye mem saahab ! bottle yahin le aayiye, meri cycle baahar khari hai." "Are aaoo na, tujhe cycle mai aur dilwa dungi."Birju ki baanh pakad kar use jabardasti apne bedroom par kheench hi liya tha Jwala Devi ne.Is baar sari baaten ek ek wo samajhta chala gaya, magar phir bhi wo kampte hue bola,"Dekhiye,mai gareeb aadmi hoon ji, mujhe yaha se jaane do,mere baba mujhe ghar se nikaal denge." "Arre ghabraata kyon hai, main tujhe apne pas rakh loongi, aaja tujhe bottle dikhaun, aajaa naa." Jwala Devi bistar par let kar apni banhen uski taraf badha kar bade hi kamuk andaz main boli."Main. magar.. bottle kaha hai ji.." Birju buri tarah hadbada utha tha."Arre!lo ye rahi bottle, ab dekho ise jeebhar kar mere jawaan aja." Apni saaree wa petticoat oopar utha kar safachat choot dikhati huee Jwala Devi badi behayayi se boli. Wo muskurate hue Birju ki masoomiyat par jhoom jhoom ja rahi thee.Choot ke dikhate hi Birju ka lund half pant main hi khara ho uthaa magar hath se use dabaane ka prayatn karta hua wo bola, "Mem saahab ! bottle kahaan hai . mai jaata hoon, kahin aap mujhe chakkar main mat phansaa dena." "Na.. mere .. raajaa.. yun dil tor kar mat jaana tujhe meri kasam! aaja paththe ise bottle hi samajh le aur jaldi se apni dot laga kar ise le le." Chudne ko machle jaa rahi thee Jwala Devi is samay. "Tu naha kar aaya hai na." Wo phir boli. "Ji .. Ji. haan. magar nahane se aapka matlab."Chaunk kar Birju bola, "Bina nahaaye dhoye maza naheen aata raja isliye poochh rahi thee." Jwala Devi baith kar us'se boli."To aap mujhse ganda kam karvane ke liye is akele kamre main laaye ho." Tewar badalte hue Birju ne kaha, "Hai mere sher tu ise ganda kaam kah'ta hai! is kaam ka maza aata hi akele mai hai, kya kabhi kisi ki tune li naheen hai?" hontho par jeebh fira kar Jwala Devi ne us'se kaha aur us'ka haath pakar use ap'ne paas kheench liya. Phir half pant par se hee us'ka lund muthee men bheench liya.Birju bhee ab taav men aa gaya aur uski koli bhar kar choochiyon ko bheenchta hue gulaabi gaal peeta peeta wo bola, "Chod doonga biwijee, kam mat samajh'na. haai re kal se hi main to tumhaaree choot ke liye mara jaa raha tha." Shikaar ko yun taav mai aate dekh Jwala Devi ki khushi ka thikaana hi na raha, wo tabiyat se gaal Birju ko pila rahi thi. kramshah.....................































































































































































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