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"छोटी सी भूल --22
गतान्क से आगे...............
डेट : 11-02-09
बिल्लू ने जो कुछ भी क्लिनिक में कहा उशे मेरे लिए हजम करना मुश्किल है. ऐसा लगता है कि वो अपने उशी पुराने रूप में आ गया है. बहुत कॉन्फिडेंट हो कर उसने कहा था कि तुम्हे आज भी सिड्यूस कर सकता हूँ. पता नही वो खुद को क्या समझता है.
पर आज मैं जानती हूँ कि वो कौन है. पर वो नही जानता कि आज मैं वो ऋतु नही हूँ, जो उष्की बातो में आ कर बहक जाती थी. बहुत गहरी चोट खाई है मैने बिल्लू के साथ बहक कर. ये ऐसी चोट थी की अब मेरे सारे अहसाश ही मर चुके है. एक औरत होने का गॉरव मैं खो चुकी हूँ. सेक्स नाम से मुझे नफ़रत हो गयी है. अब मुझे प्यार का भी अहसाश नही होता. तभी तो मैं सिधार्थ के प्यार का जवाब प्यार से नही दे पा रही हूँ. इश्लीए मुझे नही लगता कि मैं सिधार्थ से शादी कर के एक पत्नी का फ़र्ज़ निभा पाउन्गि. अछा यही है कि अपनी बाकी की जींदगी का सफ़र मैं अकेले ही तैय करूँ.
वैसे भी मेरे पास चिंटू है, उस के साथ बाकी की जींदगी कट जाएगी.
लेकिन एक बात मेरे मन में आ रही है. कहीं बिल्लू अपनी सिस्टर कविता के रेप की झुटि कहानी तो नही बना रहा. उसने शुरू से मेरे साथ मक्कारी की है. कहीं वो फिर से तो कोई खेल नही खेल रहा. जैसा उष्का क्लिनिक में बिहेवियर था उस से तो यही लगता है कि वो बिल्कुल नही बदला. पहले सेडक्षन कर रहा था अब प्यार है, क्या मज़ाक है ये. उष्की बातो में किशी साजिश की बू आ रही है.
खैर अब मैं उशे आछे से जानती हूँ कि वो क्या है, अब में दुबारा धोका नही खाउन्गि.
डेट : 11-02-09
शाम के 8 बजे है, अभी अभी सिधार्थ यहा से गया है.
आज मैने सिधार्थ को ये बात सॉफ कर दी कि मैं उस से हारगीज़ शादी नही कर सकती.
“क्यों ऋतु क्या बात है, क्या तुम अब मुझे ज़रा भी प्यार नही करती” ---- सिधार्थ ने पूछा.
मैने कहा, “सिधार्थ आइ रेस्पेक्ट यू ए लॉट, बट आइ कान’ट मॅरी यू. क्योंकि मुझे नही लगता कि मैं एक पत्नी का फ़र्ज़ निभा पाउन्गि. मेरी आत्मा तक अंधेरा भरा है. प्लीज़ मेरी बात समझने की कोशिश करो. हम आछे दोस्त बन कर रह सकते है”
“ऋतु कब तक यही बाते करती रहोगी. मैने कहा तो था कि वेट करते है. जब तुम्हारा मन होगा तभी शादी करेंगे. अब क्या हो गया. मैं शादी तुम्ही से करूँगा, चाहे तुम कुछ कर लो” ---- सिधार्थ ने कहा.
“फिर मुझे दुख है सिधार्थ हम दोस्त भी नही रह पाएँगे. मुझ पर ये फैंसला मत थोपो. मैं तुम से ही नही बल्कि किशी से भी शादी नही करना चाहती. मैं बस अपने बेटे के लिए जी रही हूँ, वरना मैं कब की मर चुकी होती. अब तुम जाओ, हम बाद में बात करेंगे. तुम मेरी हालत नही समझ सकते” ---- मैने कहा
“ओके… ओके ऋतु ठीक है, मैं अब दुबारा शादी की बात नही करूँगा. ठीक है हम दोस्त बन कर रहते है. अब खुस” ---- सिधार्थ ने मुश्कूराते हुवे कहा.
“सिधार्थ बात ख़ुसी की नही है, मैं नही समझती की मुझे शादी करनी चाहिए. ये मेरा डिसीजन है. और मुझे उम्मीद है कि तुम मेरे डिसीजन की इज़्ज़त करोगे” ---- मैने कहा.
“ठीक है ऋतु जैसा तुम चाहो. मैं तुम्हे प्यार करता था और करता रहूँगा”
“क्या तुम्हे वाकाई में अब तक कोई लड़की पसंद नही आई” --- मैने पूछा.
“नही.. कहा ना तुम्हारे जैसी कोई मिली ही नही” --- सिधार्थ ने कहा.
“तो अब किशी को ढूंड लो, कहो तो मैं किशी को तलाश करूँ” --- मैने पूछा
“नही नही… ये काम में खुद कर लूँगा. में ये बर्दास्त नही कर पाउन्गा की जिशे में प्यार करता हूँ, वो मेरे लिए लड़की ढूंदे” सिधार्थ ने कहा.
ये कह कर वो चला गया.
मेरे मान में सिधार्थ के लिए अगर ज़रा सा भी प्यार का अहसाश होता तो में कुछ सोचती भी. इश्लीए मैने सिधार्थ को सॉफ सॉफ कहना सही समझा. लगता है वो अब मेरी बात समझ गया है.
………..
डेट : 12-02-09
11:30 पीएम
आज मैने सिधार्थ जैसे आछे दोस्त को खो दिया. आज उसने मेरे साथ वो किया जो मैं सपने में भी नही सोच सकती थी.
लगभग शाम के 8 बजे मेरे घर की बेल बजी. मैने दरवाजा खोला तो देखा कि सिधार्थ है. उशे देखते ही मैं समझ गयी कि वो शराब पी कर आया है.
“ऋतु डार्लिंग अंदर आ जाउ” ---- सिधार्थ ने बहकी हुई आवाज़ में कहा
मुझे नही पता था कि सिधार्थ ड्रिंक करता है.
“सिधार्थ ये क्या हाल बना रखा है, तुम घर जाओ, बाद में बात करेंगे” ---- मैने कहा.
वो मुझे पीछे हटा कर अंदर घुस गया और बोला “बाद में नही… अभी बात करेंगे”
“सिधार्थ तुम अभी होश में नही हो, प्लीज़ अभी जाओ, मुझे वैसे भी ऑफीस का कुछ काम करना है” --- मैने कहा.
“ऋतु डार्लिंग काम तो होता रहेगा, आज मैं तुमसे कुछ लेने आया हूँ” ------ सिधार्थ ने कहा.
“क्या बात है सिधार्थ ? तुम बहकी बहकी बाते कर रहे हो” ----- मैने पूछा.
“मुझे भी तुम्हारी चूत चाहिए ऋतु, दुनिया ने ले ली, मेरी बारी कब आएगी” ------ सिधार्थ ने बहकी हुई आवाज़ में कहा
“सिधार्थ ये क्या बकवास कर रहे हो, फॉरन यहा से चले जाओ, तुम अभी होश में नही हो” ----- मैने ज़ोर से गुस्से में कहा.
“देखो तो सही ऋतु, माइ कॉक ईज़ ऑल्सो बिग लाइक बिल्लू यू विल एंजाय इट” ---- सिधार्थ ने अपनी ज़िप खोलते हुवे कहा.
मैने फॉरन अपनी आँखे बंद कर ली. मुझे बिल्कुल विश्वास नही हो रहा था कि सिधार्थ ऐसा कर रहा है.
मैं दरवाजे के पास आ गयी और बोली “सिधार्थ जल्दी यहा से चले जाओ, मुझे अभी तुमसे कोई बात नही करनी”
सिधार्थ ने आगे बढ़ कर दरवाजे की कुण्डी लगा ली और मुझे अपने हाथो में उठा लिया.
“ये क्या कर रहे हो सिधार्थ, छ्चोड़ो मुझे…तुम्हे क्या हो गया है” ---- मैने ज़ोर से कहा.
“मैं तुमसे शादी करना चाह रहा था और तुमने सॉफ मना कर दिया. अरे वो तो मैं हूँ जो तुम्हे आँख मीच कर अपना रहा था, वरना आज के दिन तुम पर कोई कुत्ता भी नही थुकेगा,…..बिच कहीं की” ---- सिधार्थ ने कहा.
“ओह नो….. सिधार्थ प्लीज़ ये सब क्या कह रहे हो… प्लीज़ मुझे छ्चोड़ दो. हम इस बारे में बाद में बात करेंगे” ----- मैने गिड़गिदाते हुवे कहा.
“फर्स्ट आइ विल फक यू हार्ड… यू बिच, मेरे प्यार का मज़ाक उड़ाती हो. क्या है उस बिल्लू में. उस दिन बड़े प्यार से चारो और उसे ढूंड रही थी. और शाम को शरे आम उशके गले लग कर खड़ी थी. मेरे पास उशके जितना बड़ा है, ले कर देख, तू उशे भूल जाएगी” ---- सिधार्थ ने कहा.
मैं उशके हाथो में छटपटा रही थी.
वो मुझे बेडरूम में ले आया और मुझे बेड पर पटक दिया.
“सिधार्थ ये क्या हो गया है तुम्हे, प्लीज़…..हम बाद में आराम से बात करेंगे” ---- मैने कहा.
“फर्स्ट वी विल फक, दॅन वी विल डिसकस… ओके….., नाउ रिमूव युवर क्लोद्स आंड स्प्रेड युवर लेग्स, आइ वॉंट टू फक यू” ----- सिधार्थ ने कहा.
मेरी मजबूरी ये थी कि मैं सिधार्थ पर हाथ नही उठाना चाहती थी. पर जब उसने अपनी पॅंट नीचे सरका दी तो मैने उठ कर एक ज़ोर दार थप्पड़ उशके मूह पर जड़ दिया.
पर उस पर एक थप्पड़ का कोई असर नही हुवा.
“यू होर,…… मुझ पर हाथ उठाती हो, प्यार करता था मैं तुमसे पर तुमने मुझे क्या दिया. ना पहले शादी के लिए हां की और ना अब शादी के लिए मान रही हो. अब मैं बिना शादी के ही हनिमून मना कर रहूँगा. जब बिल्लू कर सकता है तो मैं क्यों नही” ----- सिधार्थ ने कहा.
बहुत ही पेनफुल था वो वक्त मेरे लिए. मुझे फिर से जलील होना पड़ रहा था.
“ऋतु देखो आराम से कोवापरेट करो. तुम जब बिल्लू के साथ इतना कुछ कर सकती हो तो मेरे साथ तुम्हे क्या प्राब्लम है, जस्ट सी माइ कॉक आंड डिसाइड” ---- सिधार्थ ने अपने लिंग को हाथ में पकड़ कर कहा.
मैने अपनी आँखे बंद कर ली. मुझे कुछ समझ नही आ रहा था की सिधार्थ को कैसे सम्झाउ. वो नशे में अनाप सनाप बेक जा रहा था.
“लेट मी सी युवर पुसी नाउ, आइ वॉंट टू सी वाइ दट बॉय इस क्रेज़ी फॉर यू” --- सिधार्थ ने कहा.
“सिधार्थ बस बहुत हो गया, अब चुप हो जाओ और यहा से चले जाओ”
सिधार्थ बेड पर चढ़ गया और मुझे ज़बरदस्ती लेटा कर मेरे उपर लेट गया.
“बहुत नही हुवा अभी डार्लिंग, अभी तो सारी रात तुम्हारी चूत मारनी है. आज मेरी सुहाग्रात है. इतनी जल्दी थोड़ी ख़तम होगी ये रात” --- सिधार्थ ने कहा.
अब पानी सर के उपर निकल गया था.
मेरे बेड के पास मेरी आइरन पड़ी थी. मैने उशे उठाया और सिधार्थ के सर पर दे मारी. मुझे बड़ा दुख हुवे उशे मारते हुवे पर मुझे ये करना पड़ा.
उशके सर से खून बहने लगा और वो लड़खड़ा कर बेड के पास गिर गया. मैं अपने बेड पर बैठ गयी और अपनी किशमत को रोने लगी. एक पाप की सज़ा मुझे बार बार मिल रही थी. पहले संजय से मिली. फिर विवेक से. और अब सिधार्थ से. उपर से वो बिल्लू अभी भी मेरे पीछे पड़ा है. मैं कोई इंशान ना हो कर बस एक शरीर रह गयी हूँ.
मैं चुपचाप बेड पर बैठी रही और मेरी आँखे रह रह कर चलकती रही. कोई एक घंटे बाद सिधार्थ उठा और बोला, “ऋतु….. ओह्ह मैं ये क्या कर बैठा, प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो, मैं नशे में था”
“सिधार्थ यहा से अभी के अभी चले जाओ, मैं तुमसे कोई बात नही करना चाहती. तुम में और विवेक में क्या अंतर रह गया. मैं तुम्हारी इज़्ज़त करती थी. इश्लीए किशी भी वक्त तुम्हे घर आने देती थी. पर तुम भी औरो की तरह बस मेरे शरीर के प्यासे निकले. चले जाओ सिधार्थ…… अब सब कुछ ख़तम हो चुका है” ----- मैने सिधार्थ की ओर देख कर कहा.
“ओह्ह गॉड मैं ये क्या कर बैठा. ऋतु प्लीज़ फर्गिव मी. दर-असल मैं बर्दास्त नही कर पाया कि तुमने मुझे शादी के लिए मना कर दिया. प्लीज़ फर्गिव मी. सब कुछ नशे के कारण हुवा है. होश में मैं कभी ऐसा नही करता” ---- सिधार्थ ने कहा.
“जो भी है सिधार्थ…. पर तुम अंदर ही अंदर मेरे बारे में क्या सोचते हो वो आज बाहर आ गया. अभी तुम जाओ और आज के बाद यहा मत आना. आइ हेट यू” ---- मैने गुस्से में कहा.
सिधार्थ चला गया और मैं दरवाजा बंद करके अपने बेड पर गिर गयी.
सारे फ़साद की जड़ ये बिल्लू ही है. ना वो मेरी जींदगी में आता और ना मुझे बार बार जॅलील होना पड़ता.
………………
डेट : 13-02-09
आज बहुत बुरा लग रहा है. जब मैं शाम को ऑफीस से आई तो मुझे अपने दरवाजे के नीचे फिर से मनहुष् बिल्लू की एक चिट मिली. ये चिट वाला उसने अछा तरीका ढूंड लिया है ??
चिट में लीखा है :------
“मेरी प्यारी ऋतु,
आज से मुंबई में काम करना शुरू कर दिया है. काम छोटा है पर जल्दी ही कुछ बड़ा भी करूँगा. अभी बस एक टॅक्सी ड्राइवर बन पाया हूँ. मेरे पास सिर्फ़ बी.कॉम की डिग्री है. समझ नही आता उष्का मैं क्या करूँ. इश्लीए इस छोटे से काम से शुरू कर रहा हूँ. वैसे काम कोई छोटा नही होता.बस इंशान की लगन होनी चाहिए. पर तुम ये मत सोचना कि मैं कुछ और नही करूँगा. मैं तुम्हारे प्यार के लिए सब कुछ करूँगा. जब से तुमने उस दिन गेट वे ऑफ इंडिया पर मुझे गले लगाया है. मैं तुम्हारा और ज़्यादा दीवाना हो गया हूँ. मैं तुम्हारे लिए कुछ भी करने को तैयार हूँ. मैं तुमसे शादी करना चाहता हूँ ऋतु. मेरी उमर तुमसे छोटी सही पर मैं तुमसे ज़्यादा मेच्यूर हूँ. जींदगी ने बड़ी जल्दी बहुत कुछ सीखा दिया है. मुझे पूरा यकीन है कि मैं एक पति का फ़र्ज़ निभा पाउन्गा. मुझे बस एक मोका दो ऋतु मैं एक अछा पति बन कर दिखाउन्गा. जो मैने तुम्हारे साथ किया उष्की कोई भी सज़ा मुझे दे दो. चाहो तो अभी गोली मार दो. पर अगर तुम्हे मेरे प्रति ज़रा भी प्यार महसूष हो तो मेरी बात पर ध्यान देना. मैं तुम्हारे लिए कुछ भी करूँगा. बस मुझे एक मोका दो. मुझे अपना लो ऋतु. मेरा अब तुम्हारे शिवा कोई नही है. तुम ही मेरी जीने की उम्मीद हो. आज से टॅक्सी चलानी शुरू कर दी है. जल्दी ही मैं कुछ और भी करूँगा. टॅक्सी सिर्फ़ यहा थोड़ा पाँव जमाने के लिए शुरू की है. मुझे उम्मीद है तुम मेरी बात समझोगी”
पता नही क्या मतलब है इश् बकवास का. वो ऐसा सोच भी कैसे सकता है कि मैं उस से शादी करूँगी. या तो वो अपनी औकात भूल गया है या फिर ज़्यादा ओवेर्स्मर्ट बन-ने की कोशिश कर रहा है.
डेट : 14-02-09
आज जब मैं ऑफीस से निकली तो झट से बिल्लू ने अपनी टॅक्सी मेरे आगे लाकर खड़ी कर दी और बोला, “ऋतु प्लीज़ बैठ जाओ, मैं तुम्हे घर छ्चोड़ दूँगा इशी बहाने कुछ बात भी कर लेंगे”
यहा से दफ़ा हो जाओ बिल्लू, इस घटिया टॅक्सी में जाने का मेरा कोई इरादा नही है.
मुझे अछी तरह याद था कि कैसे एक बार उशके रिक्सा में बैठना मुझे भारी पड़ा था.
तभी मेरी कंपनी की कार आ गयी और मैं उस में बैठ कर घर आ गयी.
……….
रात के 11 बजे है. मैने थोड़ी देर पहले बाहर झाँक कर देखा तो पाया कि एक टॅक्सी मेरे फ्लॅट के बिल्कुल सामने खड़ी है. अचानक टॅक्सी का गेट खुला और बिल्लू बाहर आ गया. मैने फॉरन खिड़की बंद कर दी.
अब उशके पास टॅक्सी है. वो दिन रात यहा सड़क पर मज़े से टॅक्सी लगा कर उसमें पड़ा रह सकता है. समझ नही आता कि इस बिल्लू का क्या करूँ.
………………….
डेट : 15-02-09
आज सुबह मंदिर गयी. फिर वही नाटक हुवा. बिल्लू जाते वक्त तो मुझे नही दीखा पर जब मैं वापस आ रही थी तो मुझे मंदिर के बाहर मिल गया.
“ऋतु थोड़ी देर रुकोगी…. कुछ बात करनी है” --- बिल्लू ने कहा.
मैने गुस्से में उशके गाल पर अपनी पाँचो उंगलिया छाप दी. उष्का चेहरा लाल हो गया.
वो हैरान रह कर मेरी और देखता रह गया. मैने एक और हाथ घुमाया और इस बार उशके दूसरे गाल पर थप्पड़ रसीद कर दिया.
“अब बोलो क्या बात करनी है, ये तुम्हारे उस लेटर का जवाब है जो तुमने कुछ दिन पहले मेरे घर छोड़ा था. अगर तुम सोचते हो की तुम मुझे फिर से फँसा सकते हो तो ग़लत हो. प्यार की बात करते हो तुम. तुम ही थे ना जो बदले की आग में मुझे बर्बाद कर रहे थे. वो भी तुम ही थे ना जो मुझे अशोक के पास ले गये थे. अब मेरी बात ध्यान से सुनो. मुझे तुमसे नफ़रत है. इतनी नफ़रत है कि मैं तुम्हारी शकल तक नही देखना चाहती. यहा से फॉरन दफ़ा हो जाओ वरना पोलीस को बुला लूँगी….ओके” ----- मैने गुस्से में ज़ोर से कहा
“ऋतु अछा किया तुमने थप्पड़ मार दिया. एक और मार दो. अपनी ग़लती के लिए मैं भी शर्मिंदा हूँ. मैने तुम्हे उस दिन क्लिनिक में कहा भी था कि मैं बदले की आग में अँधा तो हो गया था पर मुझे कुछ नही मिला. मैं तुम्हारा गुनहगार हूँ और रहूँगा. पर आज मैं तुम्हे प्यार करता हूँ ऋतु. बहुत प्यार करता हूँ. जैसा की मैने पहले भी कहा है, ये अहसाश मुझे बहुत पहले हो गया था जब मैने उस साइकल वाले को मारा था. आज मैं बस अपनी आँखो में प्यार ले कर खड़ा हूँ. मुझे खुद भी नही पता की ऐसा क्यों है. मैं बस तुम्हे प्यार करता हूँ” ----- बिल्लू ने कहा
तभी वाहा कुछ लोग आ गये और बोले मेडम कोई तकलीफ़ है क्या.
मैं बहुत गुस्से में थी और मैने उन लोगो से कह दिया की ये लड़का मुझे छेड़ रहा है. वैसे ये सच ही था. वो ज़बरदस्ती ही तो मेरे पीछे पड़ा था.
लोगो ने उशे मारना शुरू कर दिया. मैं चुपचाप आगे बढ़ गयी और घर आ गयी.
अछा सबक मिला है बिल्लू को आज. अब उष्की अकल ज़रूर ठीकने आ जाएगी.
……..
रात के 11:30 बजे है और मैने अभी अभी बाहर झाँक कर देखा. सकुन मिला कि बिल्लू बाहर नही है. आज ज़रूर वो समझ गया होगा कि अब उष्की मेरे लिए क्या औकात है.
डेट : 16-02-09
आज फिर ये कमीना बिल्लू मेरे घर में एक चिट छोड़ गया, लीखा है,
“ मेरी प्यारी ऋतु
मैं अपने पापो की सज़ा भुगतने के लिए तैयार हूँ. अछा किया तुमने मुझे थप्पड़ मारा और फिर लोगो से भी पिटवा दिया. कल सारा दिन शरीर दुखता रहा. टॅक्सी भी नही चला पाया. हाँ पर मुझे तुमसे कोई शिकवा या शिकायत नही है. जो पाप मैने किए है, उष्की ये बहुत छोटी सी सज़ा है. जो तुम्हारे साथ किया वो बहुत ग़लत था. रेप मेरी दीदी का हुवा था. उसमें तुम्हारा कोई दोष नही था. पर पता नही क्यों मेरी अकल पर
पथर पड़ गये थे जो तुम्हारे जैसी अछी इंशान को झांसा दे कर फँसा लिया. तभी सोचता हूँ कि मैं तुम्हारे लायक नही हूँ. पर फिर भी अपने प्यार से मजबूर हो कर एक कोशिश कर रहा हूँ तुम्हारे लायक बन-ने की. मैने क्लिनिक में कहा था कि तुम्हे आज भी सिड्यूस कर सकता हूँ. लेकिन अब तुम्हारे तेवर देख कर लगता है कि वो नामुमकिन है. अछा ही है. आज बात वैसे भी प्यार की है. मैं तो तुम्हारे हाथो से मरने को भी तैयार हूँ. जीश दिन मुझ से बहुत परेशान हो जाओ तो बता देना मैं खुद सर झुका कर तुम्हारे आगे खड़ा हो जवँगा, जो करना हो कर लेना. मैं अब बस तुम्हारा हूँ. तुम्हारे लिए ही जी रहा हूँ. मेरी जींदगी अब बस तुम्हारे हाथ में है. तुमसे बात इश्लीए करने की कोशिश करता हूँ क्योंकि मेरे पास और कोई चारा नही है. मैं हर वक्त तुमसे बात करने के लिए तरसता रहता हूँ. मैं हर वक्त तुम्हे सोचता रहता हूँ. और हाँ तुम्हे सोचने का मतलब ये नही है कि मैं तुम्हारे शरीर को सोच रहा हूँ. बल्कि मैं तो तुम्हारे शरीर के अंदर छुपी तुम्हारी आत्मा को सोचता हूँ. तुम बहुत शुनदर हो इश् में कोई शक नही है. पर मैने पहले भी कहा है तुम्हारे शरीर से ज़्यादा शुनदर तुम्हारा मन है. आइ लव यू एज ए पर्सन. नोट युवर बॉडी. दिस लव हॅज़ मूव्ड बियॉंड युवर बॉडी. मैं आज तुमसे सेक्स नही बल्कि प्यार चाहता हूँ ऋतु. हो सके तो कभी आराम से बैठ कर मेरी बात पर ध्यान देना. और हाँ आज से मैं तुम्हे कहीं मिलने नही आउन्गा. मेरा तुम्हे छेड़ने का कोई इरादा नही है. प्यार करता हूँ. अगर मेरा प्यार सच हुवा तो तुम खुद एक दिन मेरे पास आओगी. तब तक मैं तुम्हारे सामने भी नही आउन्गा. हाँ कभी कभी तुमसे कुछ कहना हुवा तो एक लेटर तुम्हारे घर छ्चोड़ दूँगा. प्लीज़ इतना मुझे करने देना. और मेरा लेटर ज़रूर पढ़ना. बहुत प्यार से लीखता हूँ…… बाइ……बिल्लू”
बाते बनानी बिल्लू को खूब आती हैं. कोई भी इस लेटर को पढ़ कर एमोशनल हो जाएगा पर मैने इशे फाड़ कर फेंक दिया. ऐसी बहुत सारी बाते में उस से पहले भी शुन चुकी हूँ. अब वो मुझे हारगीज़ बेवकूफ़ नही बना सकता.
डेट : 22-02-09
11:30 एएम
आज सनडे है, अभी थोड़ी देर पहले पापा का फोन आया था. पूछ रहे थे की मैने सिधार्थ को शादी के लिए क्यों मना कर दिया. शायद शीधार्थ ने फिर से पापा से बात की होगी. आज मजबूरी में मुझे पापा को बताना ही पड़ा कि मैं सिधार्थ से शादी नही कर सकती. मैने उन्हे समझा दिया है कि मैं जींदगी का सफ़र अकेले तैय करना चाहती हूँ.
मैने 12 तारीख वाली बात पापा को बताना ठीक नही समझा. वैसे भी उन्हे शुन कर दुख ही होता.
5:00 पीएम
अभी थोड़ी देर पहले मुझे अपने दरवाजे के बाहर आहट शुनाई दी. मैने तुरंत दरवाजे के पास जा कर देखा तो पाया कि एक काग़ज़ की चिट अंदर सरक रही है. मैं समझ गयी कि ये बिल्लू ही है.
मैने तुरंत दरवाजा खोला और उसे उष्की चिट फाड़ कर वापस दे दी और बोली, “बिल्लू ये नाटक बंद करो. मेरे सबर की भी कोई सीमा है. मैं तुम्हे फिर कह रही हूँ कि ये सब बंद करो, वरना मैं तुम्हारे खिलाफ पोलीस कंप्लेंट करूँगी. आज के बाद मैं यहा कोई चिट नही देखना चाहती. अगर तुमने दुबारा ऐसा किया तो अछा नही होगा. अब यहा से दफ़ा हो जाओ”
वैसे कुछ अजीब किया आज बिल्लू ने. वो आज बिना कुछ कहे चुपचाप चला गया. उशके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे सच में मुझे बहुत प्यार करता है और अपने लेटर के टुकड़े देख कर दुखी है. खैर मुझे क्या लेना देना, वो भाड़ में जाए. आइ जस्ट हेट हिम.
8:00 पीएम
अभी अभी दीप्ति से बात करके हटी हूँ. जो मुझे शक था वो यकीन में बदलता जा रहा है.
मैने दीप्ति को कविता के रेप वाली कहानी बता दी. शुन कर वो बोली, “तुम हर बात देर से ही बताती हो. लगता है तुम्हारा इस केस में कोई इंटेरेस्ट नही है. खैर मनीष ने तो ऐसा कुछ नही बताया. बल्कि वो तो कविता के बारे में कुछ उल्टा ही कह रहा था”
मैने पूछा, “क्या कह रहा था” ?
दीप्ति बोली “कह रहा था कि उसने किशी सुनीता नाम की नर्स से बात की थी. वो काफ़ी समय से संजय के क्लिनिक में है. तुम भी शायद उशे जानती होगी. वो तो यही कह रही थी कि कविता का चरित्र ठीक नही था. उसने यहा तक बताया है कि वो एक कॉल गर्ल थी और एक बड़े गिरोह का हिस्सा थी. बिल्लू भी उशके इस धन्दे में शामिल था. कविता की हर्कतो की वजह से ही संजय ने उशे क्लिनिक से निकाल दिया था. पता नही सच है या नही. मनीष को भी इस बात पर विश्वास तो नही है. पर वो कह रहा था कि सुनीता बहुत विश्वास से ये बात कह रही थी. खैर मनीष तो इस काम पर लगा ही हुवा है. देखते है कि सच क्या है. हां पर कुछ दिन के लिए उसे ये काम छ्चोड़ कर किसी दूसरे केस के शील्षिले में कोलकाता जाना पड़ रहा है.”
मैने कहा, “ये सच ही होगा दीप्ति, ये बिल्लू बहुत धोकेबाज़ और मक्कार है. उष्की बहन भी उशके जैसी ही होगी. मुझे सुनीता की बात पर विश्वास है, वो भला झूठ क्यों बोलेगी”
मुझे यकीन है कि बिल्लू ने मुझे फिर से झांसा देने के लिए ये कविता के रेप की कहानी इज़ाद की है. ताकि वो अपने सारे कारनामे की सफाई दे सके. उसने जो मेरे साथ किया उष्की कोई सफाई नही दी जा सकती. पर वो इस हद तक गिर जाएगा कि अपनी सिस्टर के रेप की कहानी बनाएगा मैने सोचा भी नही था. वैसे वो है भी एक नंबर का कमीना, कुछ भी कर सकता है.
……………..
डेट : 01-03-09
धीरे धीरे मैं कामयाब हो रही हूँ. बिल्लू अब मेरे पीछे नही आता है. मैं आज सुबह मंदिर गयी थी तो वो मनहुष् मुझे कहीं नही दीखा. मेरे फ्लॅट में उसने चिट डालनी भी बंद कर दी है. हाँ पर कभी कभी वो मेरे फ्लॅट के सामने अपनी टॅक्सी ले कर ज़रूर खड़ा होता है. सोच रही हूँ कि उसे जा कर सभी कुछ बता दूं की मुझे उष्की सिस्टर के बारे में सब कुछ पता चल गया है. पर उसकी शकल देखने का मेरा बिल्कुल मन नही है.
…………
डेट : 8-03-09
11:30 पी एम
आज अचानक एक बहुत बड़ा सर्प्राइज़ मिला
आज सनडे था और मैं घर पर ही थी. सुबह सुबह मैने हर सनडे की तरह मंदिर जाने का फैंसला किया. मुझे मंदिर जा कर एक सकूँ सा मिलने लगा है, ऐसा सकूँ जिशे सबदो में कहना मुश्किल है.
जब में मंदिर से बाहर आई तो मुझे सामने से बिल्लू आता दीखाई दिया. मुझे देख कर वो ऐसे चोंक गया जैसे कि मैं अचानक उसे दीख गयी हूँ. मैने मन ही मन में कहा कमीना कहीं का. मुझे पूरा यकीन था कि वो ज़रूर मेरा पीछा कर रहा होगा.
मुझे देख कर वो रुक गया.
जब मैं उशके पास से गुज़री तो वो बोला, “ऋतु थोड़ी देर रुकोगी, बहुत ज़रूरी बात करनी है”
“अब कौन सी कहानी बनाओगे बिल्लू, मुझे सब पता चल गया है कविता के बारे में, तुमने मुझे उशके रेप की झुटि कहानी शुनाई है, है ना, तुमसे ज़्यादा गिरा हुवा इंशान मैने आज तक नही देखा. वैसे जैसे तुम हो वैसी ही तुम्हारी बहन है. मैं सोच भी नही सकती थी कि वो एक कॉल गर्ल होगी. और तुम भी उशके इस धन्दे में शामिल थे. और तुमने मुझे भी एक बाजारू औरत बना कर छ्चोड़ दिया. अब हर किशी की मेरे साथ रेप करने की हिम्मत हो रही है. सब कुछ तुम्हारे कारण है. तुम इस दुनिया पर बोझ हो. मेरा बस चले तो अभी तुम्हे गोली मार दूं. तुम उस दिन बच गये. ज़रा सी भी शरम बाकी हो तो यहा से चले जाओ, वरना मैं अब कुछ भी कर सकती हूँ” ---- मैने गुस्से में कहा
मैने जो देखा उस पर मुझे यकीन नही हुवा. बिल्लू ने कुछ नही कहा और अपनी आँखे बंद कर ली. मैने उसकी आँखो से आंशु टपकते देखे. वो बिना मेरी ओर देखे मंदिर में चला गया.
एक पल को मुझे लगा कि मैने कुछ ज़्यादा ही बोल दिया. पर फिर ये भी लगा की सच बोलने में क्या दिक्कत है. अगर मैं ग़लत कह रही थी तो वो खुद मुझे जवाब देता. पर उसने कुछ नही कहा. इश्का मतलब वो जानता था कि मैं ठीक कह रही हूँ.
खैर मैं सीधी घर आ गयी.
घर आते ही सिधार्थ का फोन आया.
“ऋतु मैं तुमसे मिलना चाहता हूँ. उस दिन की हरकत के लिए शर्मिंदा हूँ, प्लीज़ फर्गिव मी मैं नशे में बहक गया था. मुझे माफ़ कर दो” ----- सिधार्थ ने कहा.
“मैं इस बारे में कोई बात नही करना चाहती सिधार्थ और अभी वैसे भी मेरा मूड बहुत कराब है, बाद में बात करेंगे, और हाँ यहा दुबारा आने की हिम्मत मत करना. बहुत हो गया मेरी जींदगी से मज़ाक. अब मैं कुछ बर्दास्त नही करूँगी… बाइ” ----- मैने गुस्से में कहा.
…………….
और फिर मुझे एक सर्प्राइज़ मिला.
शाम के कोई 6 बजे मेरे घर की बेल बजी. मैं चोंक गयी कि अब कौन आ गया. सिधार्थ को तो मैने आने के लिए मना किया है, फिर ये कौन हो सकता है.
मैने दरवाजा खोला और बाहर देखते ही मेरी आँखे खुली की खुली रह गयी.
मेरे सामने संजय खड़ा था. वही संजय जिसने एक बार भी मेरा फोन तक नही उठाया था.
“देख क्या रही हो, क्या अंदर नही बुलाओगी, कभी तुम्हारा पति था मैं, क्या इतनी जल्दी भूल गयी” --- संजय ने कहा.
“नही संजय ऐसा नही है, मैं बस तुम्हे यहा देख कर हैरान हूँ” ---- मैने कहा.
“होना भी चाहिए, मैं तुमसे मिलने कभी नही आता पर पता नही क्यों मेरे कदम खुद-ब-खुद इस और खींचे चले आए” संजय ने कहा.
ये कह कर संजय अंदर आ गया और पूरे घर को देखने लगा ओर बोला, “अछा बड़ा घर है, काफ़ी तरक्की कर ली है तुमने. तुम ज़रूर खुस होगी ये सब पा कर, है ना. पर तुमने मुझे बर्बाद कर दिया”
“संजय प्लीज़ अब फिर से वही बाते मत करो, मैं खुद बहुत परेशान हूँ. रूको मैं कुछ पीने को लाती हूँ” ---- मैने कहा और कह कर किचन में कोल्ड ड्रिंक लेने चली गयी.
“मुझे पता चला है कि वो बिल्लू यही है, क्या अभी भी तुम उशके साथ अयाशी कर रही हो” ---- संजय ने पूछा.
“संजय प्लीज़ ऐसा मत कहो, मैं अपनी ग़लती की सज़ा भुगत चुकी हूँ. अब बार बार मुझे जॅलील मत करो” --- मैने कहा.
“मैं उस हरामी को जींदा नही छ्चोड़ूँगा” --- संजय ने गुस्से में कहा.
“संजय अगर बुरा ना मानो तो एक बात पूच्छू” ---- मैने कहा.
“वैसे तुम्हे कुछ पूछने का अधिकार नही है, पर फिर भी पूछो क्या पूछना है” ---- संजय ने कहा.
मैने पूछा, “ कविता कहा है संजय”
“देखो उशे मैने निकाल दिया था. बड़ी बचल्लन लड़की थी वो. शी वाज़ पार्ट ऑफ प्रॉस्टिट्यूशन रॅकेट” --- संजय ने कहा
“पर तुमने एक बार कहा था कि वो काम छ्चोड़ कर चली गयी” ----- मैने पूछा.
“हां तो… इतनी गंदी बात तुम्हे कैसे बताता. आज बात दूसरी है, तुम खुद इतना गिर चुकी हो, तुम्हे ये गंदा सच बताया जा सकता है” ---- संजय ने कहा.
समझ नही आ रहा था कि संजय को क्या जवाब दूं. वैसे वो सच ही कह रहा था. दुख बस इस बात का था की एक पाप की सज़ा मुझे बार बार दी जा रही थी.
“ऋतु मेरा एक काम करो” --- संजय ने कहा
“क्या बताओ संजय, मुझे ख़ुसी होगी तुम्हारे लिए कुछ भी करने में” ---- मैने कहा.
“क्या तुम्हे पता है वो बिल्लू कहा मिलेगा” ----- संजय ने कहा.
“संजय छ्चोड़ो उस, अब उस से तुम्हे क्या लेना देना. मैं भी उष से बात नही करती हूँ. मुझे नही पता वो कहा रहता है” ----- मैने कहा
“ऋतु तुम्हे सब पता है, मुझे बताना नही चाहती.वो तुम्हारा पक्का यार है….है ना” --- संजय ने कहा.
“संजय ऐसी बात नही है प्लीज़,….. मैने अपनी ग़लती खुद स्वीकार की थी और मैं अब उस से बिल्कुल कोई भी बात नही करती हूँ. हाँ वो कभी कभी मेरे घर के सामने अपनी टॅक्सी ले कर खड़ा होता है. पर मेरा यकीन करो मेरा उस से अब कोई संबंध नही है.” ---- मैने कहा.
“अभी है क्या वो बाहर देखो तो” ------ संजय ने पूछा.
बड़ी अजीब बात थी. जैसे ही मैने खिड़की खोल कर देखा मुझे बिल्लू की टॅक्सी दीखाई दी. वो टॅक्सी में बैठा था. मैने देखा की वो कुछ लीख रहा था. मुझे यकीन था कि आज सुबह की झाड़ के बाद वो यहा नही आएगा पर वो फिर से टॅक्सी ले कर मेरे घर के बाहर खड़ा था.
मैने देखा की वो गेट खोल कर बाहर आ गया.
मैने संजय से कहा, “हाँ उसकी टॅक्सी खड़ी है”
मैने फिर से झाँक कर देखा तो पाया कि वो अपने हाथ में काग़ज़ का एक टुकड़ा ले कर मेरे फ्लॅट की तरफ आ रहा है.
“क्या कर रहा है वो” ---- संजय ने पूछा
“संजय वो यही घर की तरफ आ रहा है” ----- मैने कहा.
“देखा मैं कहता था ना वो तेरा पक्का यार है, अभी भी तुम्हारा चक्कर चल रहा है, मुझे झूठ बोल रही थी कि मैं उस से बात नही करती” ----- संजय ने कहा.
“संजय ये सच है कि मैं उस से बात नही करती. वही मेरे पीछे पड़ा है. अक्सर मेरे घर में एक चिट डाल जाता है. अभी भी वही डालने आ रहा है शायद. मेरा यकीन करो मेरा उस से अब कोई संबंध नही है” ---- मैने कहा
“आने दो उसे आज मैं उसकी यही लाश बिछा दूँगा, तुम ऐसा करो उसे अंदर बुला लो” संजय ने कहा
ये कह कर जाने कहा से संजय ने एक बंदूक निकाल ली
“क्या ?? ये क्या कह रहे हो, नही मुझ से ये नही होगा. उशे यहा क्यों बुलाना चाहते हो” ------ मैने पूछा.
“उस से कुछ पुराना हिसाब चुकता करना है ऋतु, तुम्हे नही लगता कि जिश्ने हमारे घर को बर्बाद किया उशे सज़ा मिलनी चाहिए” ---- संजय ने कहा.
“संजय इन सब बातो से क्या हाँसिल होगा मैं अब उस से बात नही करती हूँ. मुझे उस से सख़्त नफ़रत है. मैं उशे यहा नही बुला सकती” ---- मैने कहा.
“तुम्हे बुलाना पड़ेगा ऋतु. अगर तुम वाकाई में
उस से नफ़रत करती हो तो उशे यहा बुलाओ मैं उशे तुम्हारी आँखो के आगे मारूँगा. और तुम किशी बात की चिंता मत करो. तुम्हारे उपर कोई बात नही आएगी. उष्की लाश मैं ठीकने लगा दूँगा… अब उशे बुलाओ….मेरी खातिर बुलाओ”
मुझे समझ नही आ रहा था कि क्या करूँ.
मैने पूछा, “संजय क्या ये सब करना ज़रूरी है”
“हाँ ज़रूरी है, अगर वो बच गया तो उमर भर परेशान करेगा. मैं किचन में छुप रहा हूँ. उसे अंदर बुला लेना. फिर मैं संभाल लूँगा…ओके”
संजय किचन में चला गया. उशके जाते ही मुझे अपने डोर के नीचे से एक चिट सरक्ति हुई दीखाई दी.
मैने तुरंत दरवाजा खोला और उष्की ओर देखा.
एक पल को वक्त जैसे ठहर गया
मैने उष्की ओर देखा और हमारी आँखे एक पल को टकराई. उशके चेहरे पर एक दर्द भरी हल्की सी मुश्कान उभर आई. फिर मैने ध्यान से देखा तो पाया कि उष्की आँखे नम थी. मैं उशे ऐसी हालत में देख कर कुछ नही कह पाई.
मुझे समझ नही आ रहा था कि क्या करूँ. क्या मैं उशे मरने के लिए अंदर बुला लूँ. उसने मेरे लिए साइकल वाले को मारा था. उसने उस दिन जंगल में टाइम पर आ कर मेरा रेप होने से भी बचाया था.
मन में यही विचार आया की बिल्लू को यहा से जाने दो ऋतु. ये खून ख़राबा ठीक नही है. मुझे वैसे भी अब बिल्लू से क्या मतलब.
बिल्लू की आँखो के आंशु मुझ पर कुछ अजीब सा असर कर रहे थे. पता नही वो क्यों रो रहा था.
वो मूड कर बिना कुछ कहे चला गया और मैने दरवाजा बंद कर लिया.
तभी संजय किचन से बाहर आ गया.
संजय ने मेरे गाल पर एक ज़ोर से थप्पड़ रसीद कर दिया. थप्पड़ इतनी ज़ोर का था कि मैं लड़खड़ा कर गिर गयी
“ये क्या किया हराम्जादी , तूने उशे अंदर क्यों नही बुलाया, दिखा दिया ना तूने अपना रंग. क्या लगता है वो तेरा जो तू हमेशा मुझे धोका देती है. आज उसका काम तमाम, करने का अछा मोका था” ---- संजय ने चिल्ला कर कहा.
“संजय मुझे उस से कोई मतलब नही है, मैं उसे यहा नही घुस्सने देना चाहती थी” ---- मैने कहा
संजय ने मेरे गाल पर एक और थप्पड़ मारा और कहा, “झूठ बोलती है साली. मारना तो उशे है ही, यहा नही तो कहीं और मरेगा”
ये कह कर संजय दरवाजा खोल कर बाहर चला गया.
कुछ देर तक मैं यू ही पड़ी रही.
कोई 15 मिनूट बाद मैने बाहर देखा तो पाया कि बिल्लू की टॅक्सी अभी भी बाहर सड़क पर खड़ी थी. पर बिल्लू कहीं नही दीख रहा था.
मैने देखा कि बिल्लू की चिट अभी भी दरवाजे के पास पड़ी थी. मैने उशे फाड़ने के लिए हाथ में उठा लिया. पर तभी मेरी आँखो के सामने बिल्लू की वो दर्द भरी मुश्कान आ गयी. मैं चाह कर भी वो लेटर फाड़ नही पाई. मैने लेटर बिना पढ़े अपनी डाइयरी में रख दिया.
डेट : 22-03-09
7:00 पीएम
अभी अभी दीप्ति का फोन आया था. उसने कुछ ऐसा बताया है कि उस की बात सुन कर दिल दहल गया है और आँखे नम हो गयीं हैं
“ अरे ऋतु न्यूज़ देख रही हो कि नही”
मैने पूछा, “क्यों क्या बात है” ?.
“अरे देखो तो सही तुम्हारा फरीदाबाद वाला घर लाइव आ रहा है. तुम्हारे घर के पीछे कविता की लाश मिली है. लाश कंकाल बन चुकी है. बहुत ही खौफनाक नज़ारा है” --- दीप्ति ने कहा
“ओह्ह माइ गॉड, कविता की लाश मेरे घर के पीछे” ---- मैने कहा
“हां, एक बात और सुनो, मनीष को संजय के क्लिनिक से एक पेन ड्राइव मिली है. उस में कविता के रेप की पूरी वीडियो है, वो वीडियो भी मनीष ने मीडीया को दे दी है. उसे भी धुन्दला करके दीखाया जा रहा. चारो लोगो के चेहरे सॉफ दीख रहे हैं. बिल्लू ठीक कह रहा था ऋतु, कविता का बहुत ब्रूटल रेप हुवा था”
“क्या ? ये तुम्हे कब पता चला” --- मैने पूछा
“पेन ड्राइव तो कोई एक हफ्ते पहले मिल गयी थी. मनीष ने मुझे बता भी दिया था पर आज कविता की लाश मिली है”
“ओह्ह गॉड तुम मुझे आज बता रही हो” ---- मैने कहा
मैं भाग कर अपनी खिड़की में गयी और बाहर देखा
बाहर बिल्लू की टॅक्सी खड़ी थी पर उस में कोई नही था
“यार मुझे लगा तुम्हारा इस सब में कोई इंटेरेस्ट नही है” दीप्ति ने कहा
“और वो जो सुनीता ने बताया था वो क्या था दीप्ति” ---- मैने पूछा.
“वो झूठ बोल रही थी ऋतु, दर-असल सुनीता ये अफवाह संजय के कहने पर उड़ा रही थी. मैने तो बताया भी था तुम्हे कि मनीष को खुद उसकी बात पर यकीन नहीं है” ---- दीप्ति ने कहा.
“ओह्ह गॉड,….. दीप्ति, मैने बिल्लू को ना जाने क्या-क्या बोल दिया” --- मैने कहा
तब अचानक मुझे धयान आया कि पीछले 2 हफ्ते से बिल्लू मुझे कहीं नही दीखा. ना ही 2 हफ्ते से उष्की कोई चिट घर में मिली. हां उष्की टॅक्सी अभी भी वहीं की वहीं खड़ी है.
मैने दीप्ति का फोन काट दिया
मैने टीवी ऑन कर के देखा तो सभी चॅनेल्स पर कविता का कंकाल दीखाया जा रहा था. सच में बहुत खौफनाक नज़ारा था. न्यूज़ में बताया जा रहा था कि फोरेन्सिक रिपोर्ट के मुताबिक कविता को जींदा ही दफ़ना दिया गया था.
दीप्ति का फिर से फोन आ गया
“मनीष ने मीडीया को इस सब में इन्वॉल्व करके अछा किया ना ऋतु. अब मुजरिमो को सज़ा मिल सकेगी. अब ये केस मीडीया संभाल लेगी. मनीष बता रहा था कि संजय के साथ साथ बाकी के तीन लोगो को गिरफ्तार कर लिया गया है. पर यार मीडीया वाले कविता के भाई के बारे में पूछ रहें हैं. क्या बिल्लू अभी भी वहीं है” ---- डिप्टी ने कहा
“मुझे नही पता दीप्ति, पीछले 2 हफ्ते से मैने उशे नही देखा. हां उष्की टॅक्सी यहा ज़रूर खड़ी है” --- मैने कहा
मेरा दिल बहुत भारी हो रहा था. मैं बड़ी मुश्किल से दीप्ति से बात कर पा रही थी.
आखरी बार मैने बिल्लू को 8-03-09 को देखा था. उष्की वो दर्द भरी हल्की सी मुश्कान और आँखो की नमी मुझे अभी तक याद है. उस दिन बिल्लू के जाने के बाद संजय भी उशके पीछे पीछे गया था.
कहीं संजय ने तो उशके साथ कुछ ऐसा वैसा नही कर दिया. वो कह तो रहा था कि, “मारना तो उशे है ही, यहा नही तो कहीं और मरेगा”
तभी मुझे याद आया की मैने उस दिन उष्की चिट अपनी डाइयरी में रखी थी.
मैने वो चिट निकाली और उशे पढ़ने लगी
उसमें लीखा था :-------
“ मेरी प्यारी ऋतु.
तुम मानो या ना मानो. मैं तुम्हे बहुत प्यार करता हूँ. मुझे खुद भी नही पता की ऐसा क्यों है. हाँ बस एक अहसाश है क़ि तुम्हारे बिना जी नही सकता. तुम मेरी जींदगी हो ऋतु. मैं बस तुम्हे पाने की एक कोशिश कर रहा था. क्या करूँ अपने दिल के हाथो मजबूर था. पर मैं ये बात भूल रहा था कि तुम मुझे कभी माफ़ नही कर पावगी. करोगी भी क्यों. रेप मेरी दीदी का हुवा था,तुम्हारी इस में क्या ग़लती थी. और हां ऋतु मैने पहले ज़रूर कहानी बनाई है, बहुत झूठ बोले है. इतने झूठ बोले है कि आज तुम्हारा विश्वास खो चुका हूँ. पर मैने अपनी दीदी के रेप की कहानी नही बनाई. हां मेरे पास कोई सबूत नही है. तभी तो बिना सबूत के कुछ कर नही पाया. और दीदी का अब तक कुछ पता नहीं कि कहा है, जो आकर खुद सच बता सकें. तो तुम कुछ भी सोच सकती हो. आज लगता है कि मैं हार गया. कोशिश बहुत कर रहा था तुम्हे अपना प्यार दीखाने की पर….. चलो छ्चोड़ो.. और कुछ नही लीखा जा रहा. दिल भारी हो रहा है और आँखे भर आई है. वैसे पता नही तुम पढ़ोगी भी या नही. बट आइ विल लव योउ फॉरेवर. कभी मेरी याद आए तो यही मत सोचना कि मैने तुम्हे बर्बाद किया था. हो सके तो एक बार ये भी सोचना की मैने तुम्हे प्यार भी किया था. मैं झूठा इंशान सही पर मेरा प्यार सॅचा है.…… बिल्लू”
ये लेटर पढ़ते पढ़ते मेरी आँखो से आंशु टपक रहे थे और लेटर की लीखावट को ढुंदला कर रहे थे.
मुझे ये समझ नही आ रहा था कि आख़िर बिल्लू के दिल में प्यार का फूल कैसे खिल सकता है. पर जो भी हो उष्का प्यार अब मुझे मेरी आत्मा तक महसूष हो रहा है.
डेट : 29-03-09
आज एक हफ़्ता हो गया कविता की लाश को मिले पर बिल्लू का कुछ आता पता नही. ऐसा कैसे हो गया कि वो अपनी सिस्टर की लाश तक देखने नहीं आया.
पूरा हफ़्ता मेरी नज़रे बिल्लू को धुन्दति रही. रोज सुबह ऑफीस जाते वक्त और शाम को ऑफीस से आते वक्त मैं बिल्लू की टॅक्सी को देखती हूँ. वो 8-03-09 से वैसी की वैसी एक ही जगह खड़ी है.
शाम को घर आते ही दरवाजे के आस पास देखती हूँ कि कहीं बिल्लू ने कोई चिट तो नही छ्चोड़ी पर मुझे कुछ नही मिलता.
एक बार वो अपनी दीदी का अंतिम शंसकार कर देता तो अछा होता. मेरे मन से एक बोझ हट जाता. आज फिर से बहुत दुख हो रहा है कि मैने बिना सोचे समझे उस दिन मंदिर के बाहर पता नहीं बिल्लू को उसकी दीदी के बारे में क्या क्या बोल दिया.
आज सुबह मंदिर जाते वक्त मेरी आँखे बिल्लू को ढूंड रही थी. पता नहीं बिल्लू से क्या रिस्ता बन गया है मेरा. वो होता है तो मैं चाहती हूँ कि वो दफ़ा हो जाए. वो नही होता तो कुछ ना कुछ ऐसे हालात हो जाते है कि मेरी नज़रे बस उसे ही धुन्दति हैं
हर पल यही लगता है कि अभी कहीं से बिल्लू आएगा और कहेगा “ऋतु रूको तुमसे कुछ ज़रूरी बात करनी है”
जब भी अपने घर में घुसती हूँ तो मन यही सोचता है कि मुझे अभी एक चिट मिलेगी जीश में लीखा होगा, “मेरी प्यारी ऋतु” और मैं पूरा लेटर प्यार से पढ़ूंगी.
पर ऐसा कुछ नही हो रहा. पता नही बिल्लू कहा चला गया.
मंदिर से आते वक्त मैने उष्की टॅक्सी में झाँक कर देखा तो मुझे एक डाइयरी और गिफ्ट पॅक दीखा
मैने एक पथर उठाया और गाड़ी का शीसा तोड़ दिया और डाइयरी और वो गिफ्ट पॅक बाहर निकाल लिया.
मैं अपने घर के अंदर आ गयी और बेडरूम में बैठ कर उसकी डाइयरी पढ़ने लगी.
उसमें लीखा था :-------
जबसे होश आया है मैं बस ऋतु के लिए ही तड़प रहा हूँ. पता नही किश जनम का रिस्ता है मेरा उस से. ज़रूर कोई जन्मो का रिस्ता है वरना ये प्यार होना मुश्किल था.
मैं तो ऋतु के ज़रिए संजय को बर्बाद करने गया था पर अपना दिल खो बैठा. अछा ही हुवा. जबसे ऋतु से प्यार हुवा है, तब से ये अहसाश हुवा है कि बदला लेने से कुछ हाँसिल नही होता. संजय को बर्बाद करने के चक्कर में मैने ऋतु जैसी एक अछी इंशान की जींदगी बर्बाद कर दी. मुझे क्या मिला ? कुछ नही. ना मेरी दीदी को इंसाफ़ मिला, ना मेरी दीदी का कुछ पता चला.
अब एक कोशिश करता हूँ अपने प्यार को पाने की. मैने ऋतु की आँखो में अपने लिए प्यार देखा है. मुझे उम्मीद है कि मैं एक ना एक दिन अपने प्यार को पा लूँगा. बाकी इस किशमत का कुछ पता नहीं. मैं बस एक उम्मीद ही रख सकता हूँ.
डेट : 12-02-09
आज टॅक्सी का इंटेज़ाम हो गया है. कल से चलाना शुरू कर दूँगा. पता नही कुछ बन पाउन्गा या नही पर एक शुरूवात तो कर ही दी है. मेरे और ऋतु के बीच में बहुत सारी रुकावटे है.
सबसे पहली रुकावट है, ऋतु के मन में मेरे लिए नफ़रत. उस नफ़रत को दूर करना होगा. कोशिश कर रहा हूँ. देखते हैं क्या होता है
सबसे बड़ी रुकावट है मेरा स्टेटस. मेरे पास कुछ नही है ऋतु को देने को. मुझे बहुत मेहनत करनी होगी. अगर पति का फ़र्ज़ निभाना है तो मुझे कुछ बन-ना पड़ेगा. चलो टॅक्सी से स्टार्ट करता हूँ. जल्दी ही मुंबई में पाँव जमाने के बाद कुछ बड़ा काम भी करूँगा.
डेट : 13-02-09
आज ऋतु के घर में एक लेटर छ्चोड़ दिया है. मैने उसमें ऋतु को लीख दिया है कि मैं उस से शादी करना चाहता हूँ. देखते है वो इस बात को कैसे लेती है.
सोच रहा हूँ आइटी फील्ड में कुछ सीख लूँ. मैने देल्ही में इस बारे में ध्यान ही नही दिया. वरना आज आइटी फील्ड में काम कर रहा होता. कंप्यूटर के बेसिक्स तो मुझे पता है, बस हाइ टेक स्किल सीखने की ज़रूरत है. रोज 1-2 घंटा निकाल कर ये काम भी कर सकता हूँ. वक्त कम है. मुझे जल्द से जल्द ऋतु के लायक बन-ना है. वो अस्सीसस्तंट मॅनेजर है और मैं टॅक्सी ड्राइवर वो भला कैसे मुझ से शादी के बारे में सोचेगी. फिलहाल तो बस प्यार का ही सहारा है. शायद उशे मेरी आँखो में प्यार नज़र आ जाए. पर फिर भी मुझे जल्द से जल्द कुछ बन-ना होगा. बात ऋतु की ही नही है. हमारा एक बचा भी है, चिंटू. मैं चिंटू को बहुत प्यार दूँगा. सोच रहा हूँ कि, बस चिंटू को ही रखेंगे. और बच्चो की क्या ज़रूरत है. हम दोनो के लिए एक बच्चा काफ़ी है.
डेट : 8-03-09
कुछ बनता नज़र नही आ रहा. ऋतु के मन में मेरे लिए नफ़रत ज्यों की त्यों है. आज मंदिर के बाहर ऋतु ने कुछ ऐसा कह दिया की दिल टूट कर बीखर गया है. एक एक टुकड़ा कहा जा कर गिरा है, पता नही.
पर मैं ऋतु से बिल्कुल नाराज़ नहीं हूँ. अपनी जींदगी से भला कोई नाराज़ होता है. उशे मुझे कुछ भी कहने का हक़ है. वो मेरी जान जो है. पर लगता है मुझे अपनी जींदगी से दूर रहना पड़ेगा. मैं ऋतु को और ज़्यादा परेशान नही कर सकता. ऐसे प्यार का क्या फ़ायडा जो किशी को परेशान करे.
वैसे भी इतनी जल्दी मैं कहा कुछ बन पाता. और फिर ये स्टेटस और क्लास का चक्कर तो अभी बाकी है. मैं जानबूझ कर हारी हुई बाजी खेल रहा था. कल देल्ही जाने की टिकेट बुक करा ली है. दुखी मन से मुझे यहा से अब जाना ही होगा.
वैसे भी ना ऋतु से बात होती है. बात करने जाता हूँ तो वो परेशान होती है. अब लेटर डालना भी उसने बंद करवा रखा है. मैं कैसे उष्का दिल जीतूँगा. मुझे यहा से चले जाना चाहिए.
मेरे पापो की यही सज़ा है कि मैं अपने प्यार के लिए तड़प तड़प कर मरूं……..
……………
बिल्लू की डाइयरी पढ़ते पढ़ते मेरी आँखे नम हो गयी. उष्का हर एक शब्द मानो मेरे दिल तक पहुँच रहा था और पूछ रहा था, “ऋतु डू यू लव मी”
मैने डाइयरी को माथे से लगा लिया. उस में वो प्यार था, जो मैने अब तक अपनी जींदगी में नही देखा था.
तभी मेरी नज़र गिफ्ट पॅक पर गयी और मैं उशे खोलने लगी.
उसमें एक लाल रंग की सारी थी. जैसे किशी दुल्हन के लिए हो. डाइयरी में उशके बारे में कुछ नही लीखा था. पर मैं जानती हूँ कि वो ये सारी मेरे लिए ही लाया होगा. मैने उस सारी को गले से लगा लिया.
मैने भगवान से पूछा, “हे भगवान अगर आपको मुझे और बिल्लू को प्यार के बंधन में बाँधना था तो हमें इतने लंबे रास्ते से क्यों घुमाया. और अब जब ये प्यार का फूल खिल गया है तो अब बिल्लू कहा है” ???
ये कुछ ऐसे सवाल थे जिनका मेरे पास कोई जवाब नही है और शायद ना ही कभी होंगे.
डेट : 22-06-09
आज पूरे 3 महीने हो गये कविता की लाश को मिले. उसका अंतिम संस्कार भी हो चुका है, पर बिल्लू का कुछ नही पता. पीछले हफ्ते मैं खुद कविता के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए देल्ही गयी थी. बहुत वेट किया बिल्लू का पर आख़िर में थक हार कर कविता का अंतिम संस्कार करना ही पड़ा.
फरीदाबाद जा कर मैं जैल में संजय से भी मिलकर आई हूँ.
मैने पूछा, “बिल्लू कहा है संजय”
“उशके हज़ार टुकड़े करके मैने मुंबई के नालों में बहा दिए है, जाओ जा कर चुन लो, कुतिया कहीं की..हहहे..” ----- संजय ने हंसते हुवे कहा.
इशके अलावा मैं संजय से कुछ और बात नही कर पाई. मैने पाप किया था तो मुझे अहसाश था कि मैने ग़लत किया पर संजय को अपनी ग़लती का कोई अफ़सोश नही है. यही शायद हमारे समाज की सबसे बड़ी कमज़ोरी है. आदमी हज़ार पाप करके भी शीना चोडा करके घूम सकता है, पर औरत की एक ग़लती भी उस पर बहुत भारी पड़ती है और सारी उमर उशे नज़रे झुका कर चलना पड़ता है.
आज मैं उम्मीद खो चुकी हूँ.
एक प्यार का फूल जो बस खीलने ही लगा था, मुरझा गया. बिल्लू के साथ मेरी जो एक हंसिन जींदगी हो सकती थी, होने से पहले ही खो गयी. मुझे बिल्लू को ये कहने का मोका भी नही मिला कि “आइ लव यू टू”.
जब वो शामने था तो मैं हर पल उशे कोश्ति रहती थी. आज जब वो पास नही है तो मैं उशके लिए तरस रहीं हूँ. काश वो कहीं से आ जाए तो मैं अपना दिल उशके आगे चीर कर रख दूँगी और कहूँगी की देखो तुम्हारा प्यार कहा तक पहुँच गया है. मैं उशे कहूँगी क़ि तुम वाकाई में मेरे शरीर से मेरी आत्मा तक पहुँच गये हो. पर अब क्या हो सकता है. ये बाते अब बस सोची जा सकती हैं. जिशे ये सब कहना था, वो तो ना जाने कहाँ है. इस दिनिया में है भी या नही, ये भी नही पता.
पता नही इस सब के लिए कौन ज़िम्मेदार है. बहुत ही अजीब खेल खेला है इस जींदगी ने मेरे साथ.
“प्यार क्या है मुझे नही पता. मुझे बस इतना पता है कि मेरी नज़रे उष इंशान को ढूंड रहीं है, जीशणे मुझे बर्बाद किया था. काश वो कहीं से फिर से आ जाए और मैं दिल खोल कर उशे कह सकूँ की मैने तुम्हे माफ़ कर दिया, प्लीज़ अब मेरे पास रहो और उस प्यार के अहसाश में मुझे डुबो दो जीशमें तुम खुद डूबे हुवे हो”
लव ईज़ वेरी स्पेशल फीलिंग. इट हॅपंड टू मी इन ए वेरी स्ट्रेंज सिचुयेशन. बट आइ वेलकम दिस गिफ्ट ऑफ गॉड इन माइ लाइफ. आइ विल चेरिश दिस लव थ्रू आउट माइ लाइफ.
अब शायद बिल्लू इस दुनिया में नही है, पर क्या हुवा उसका प्यार हमेशा मेरे साथ रहेगा.
हे भगवान बिल्लू को माफ़ करना, फॉर आइ हॅव फर्गिवन हिम. ही ईज़ नाउ माइ लव. वो जहाँ भी हो उष्का ख्याल रखना.
आज ये डाइयरी यहीं बंद कर रहीं हूँ. अब कुछ और लीखने की हिम्मत नहीं है और वैसे भी कुछ और लीखने को बचा भी नही है.
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डेट : 9-08-09
आज ये डाइयरी पढ़ी. पढ़ कर मेरी आँखे नम हो गयी हैं.
ऋतु ने मुझ से ये डाइयरी छुपा कर रखी थी. आज से मैं इसमें लीखना शुरू कर रहा हूँ.
“जतिन उशे मत पढ़ना तुम्हे दुख होगा और मैं अपने पति को दुख नही देना चाहती, वैसे तुम्हे सब कुछ पता ही है” ----- ऋतु ने मुझ से कहा
मैं समझ सकता हूँ कि वो क्यों नही चाहती थी कि मैं ये डाइयरी ना पढ़ुँ.
शादी से पहले ऋतु ने कहा था, “जतिन मुझे एक मोका देना. तुम्हारे लिए मैं कुछ भी करूँगी. मुझे नही पता कि मैं एक पत्नी का फ़र्ज़ निभा पाउन्गि या नही पर जब बात तुम्हारी है तो मैं कुछ भी कर जाउन्गि. आइ लव यू”
जब से ऋतु से शादी हुई है जींदगी खिल उठी है. हमारी शादी को लगबघ एक महीना हो गया है. पर हम अभी नॉर्मल हज़्बेंड वाइफ की तरह करीब नही आ पाए हैं. ऋतु पुरानी बाते नही भुला पाई है. हां मुझ से प्यार बहुत करती है
अभी थोड़ी देर पहले बाथरूम से नहा कर निकली तो शरमाते हुवे भाग कर बेडरूम में घुस्स गयी. वो हमेशा कनसस रहती है कि मैं उशे देख रहा हूँ.
पर जब वो बाथरूम से निकली थी तो मैने खुद अपनी नज़रे घुमा ली थी. मैं उशे पूरा टाइम दे रहा हूँ. मुझे उष्का शरीर पाने की कोई जल्दी नहीं है.
वैसे भी ये जिस्म की बात नही है बल्कि उशके दिल तक पहुँचना है, लंबी दूरी तैय करने में वक्त तो लगता है. ये जगजीत सींग की ग़ज़ल बिल्कुल मेरी सिचुयेशन पर बनी लगती है.
जो भी हो ऋतु के साथ एक छत के नीचे रहने का बहुत प्यारा अहसाश है. शी ईज़ वेरी ब्यूटिफुल विमन. लेट्स सी हाउ और मॅरेज लाइफ मूव्स फॉर्वर्ड. लोकिंग फ़ॉर्वाड़ फॉर ए दे वेन आइ विल हॅव हर इन माइ आर्म्स आंड आइ विल से टू हर वाइल लुकिंग इंटो हर एएस “ऋतु यू आर दा मोस्ट ब्यूटिफुल विमन आंड आइ आम प्राउड टू हॅव यू इन माइ लाइफ”
लेकिन अभी वो शरमाती इतना है कि दूर दूर रहती है. देखते है कब तक मेरे प्यार से दूर रहेगी.
क्रमशः......................
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