माँ का दुलारा पार्ट--8
सावधान........... ये कहानी समाज के नियमो के खिलाफ है क्योंकि हमारा समाज मा बेटे और भाई बहन के रिश्ते को सबसे पवित्र रिश्ता मानता है अतः जिन भाइयो को इन रिश्तो की कहानियाँ पढ़ने से अरुचि होती हो वह ये कहानी ना पढ़े क्योंकि ये कहानी एक मा बेटे के सेक्स की कहानी है
गतान्क से आगे...............
"अब ठीक है राजा. अब दर्द कम है. मुझे लग रहा था जैसे मेरी फट ही जाएगी."
"माँ, अब गांद मारूं?" मैंने उत्सुकता से पूछा.
"मार बेटे पर धीरे धीरे, आज पहली बार है, तू चोदते समाया जैसे धक्के लगाता है, वो मैं सहा नही पाउन्गि." मैंने मोम के कूल्हे पकड़कर धीरे धीरे उसकी गांद मारना शुरू कर दिया. मज़ा आ गया. उसकी मखमली म्यान मुझे ऐसे पकड़े थी जैसे किसीने मुठ्ठी मे मेरे लंड को पकड़. लिया हो. वेसेलीन के कारण लंड फिसल भी बहुत अच्छा रहा था. धीरे धीरे मेरी लय बँध गयी. आँखे बंद करके मैं इस स्वर्गिक सुख का आनंद लेने लगा पर ज़्यादा देर नहीं! तिलमिला के झाड़. गया. झदाने के बाद मोम बोली
"अच्छा लगा अनिल? मज़ा आया जैसा तू सोचता था?"
"माँ, तुमने तो मुझे अपना गुलामा बना लिया. बहुत मज़ा आया मामी, थैंक्स" हाफते हुए मैं बोला. जब झड़ना बंद हुआ तो मैं लंड बाहर निकालने लगा.
"अरे रहने दे ना, क्यों निकालता है, इतनी मुश्किल से डाला है, आ मेरे उपर लेट जा" कहकर मोम ओन्धे मुँहा बिस्तर पर लेट गयी. मैं भी उसके साथ सरकता हुआ उसके उपर लेट गया. मेरा झाड़ा लंड अब भी मोम की गांद मे फँसा था.
मैं मोम के बाल और गर्दन चूमता हुआ उसके मम्मे दबाने लगा. मोम के गुदाज शरीर पर लेटने का मज़ा ही अलग था.
"मोम मेरा फिर खड़ा हो जाएगा" मैंने उसे चेतावनी दी. "फिर निकालने मे मुश्किल होगी, सुपाड़ा फँसेगा अंदर"
"मैंने कब निकालने को कहा बेटे ऐसे में" मोम ने सिर घुमाकर मुझे चुम्मा देते हुए कहा. मैंने बड़ी आशा से पूछा
"याने माँ, मैं फिर से ..."
"हाँ. एक बार और मार ले मेरी. तुझे इतना अच्छा लगता है, अभी जल्दी मे ठीक से कर भी नही पाया मेरे लाल. अभी मुझे भी ठीक लग रहा है, दर्द नही है" मैं खुशी से मोम के बाल और पीठ चूमने लगा. उसके निपल कड़े थे, वह मस्ती मे थी. खुद ही अपनी एक हाथ अपनी जांघों के बीच चला रही थी. मेरा लंड अब फिर सिर उठाने लगा था और धीरे धीरे मोम के चुतदो की गहराई मे उतार रहा था.
"मोम अब इस बार घंटे भर तक तेरी मारूँगा" मेरी इस बात पर मोम बोली
"मार, दो घंटे मार, पर फिर मेरी बारी है, तुझसे पूरा हिसाब लूँगी" उसके स्वर मे गजब की खुमारी थी.
"तुम कुछ भी करवा लो माँ, मैं तैयार हू" कहकर मैंने मोम की गांद मारना शुरू कर दी. उसके स्तन पकड़े हुए उन्हे दबाते हुए, मोम की पीठ चूमते हुए, बीच मे उसके मुँह को अपनी ओर मोड़. कर उसके चुममे लेते हुए मैंने मज़े ले ले कर मोम की गांद मारी. अब वह मेरे लंड की आदि हो गयी थी इसलिए मस्त लंड फिसल रहा था. हाँ मोम बीच बीच मे मुझे तड़पाने को अपनी गांद सिकोड. लेती तो मेरी स्पीड कुछ कम हो जाती. मैं अब भी पूरे धक्के नही लगा रहा था, आज पहली बार मोम को इतनी तकलीफ़ देना ठीक नही था. हाँ मन ही मन सोच रहा था कि अगली बार से मोम की गांद ऐसे हचक हचक के चोदुन्गा की वह भी क्या याद करेगी. पूरा लंड बाहर निकाल निकाल कर अंदर तक पेलुँगा.
इस बार मुझे पूरा मज़ा मिला, मन भर कर मोम की मखमली नली को मैंने चोदा. मोम गरम होकर अपनी चूत मे खुद उंगली कर रही थी
"अनिल राजा, कितना पानी बह रहा है देख, जब तेरा हो जाएगा तो तुझे पिलावँगी. घंटे भर चुसववँगी तुझसे, बहुत नोचा है तूने मुझे आज" मोम की इस बात पर मैंने उत्तेजित होकर फिर सात आठ धक्के लगाए और झाड़. गया. मोम के उपर से उतर कर मैं बाजू मे हुआ. मोम की गांद का छेद अब खुल सा गया था, अंदर की गुलाबी नली दिख रही थी. मोम तुरंत पलट कर उठ बैठी और मुझे नीचे सुला कर मेरी छाती के दोनों ओर घुटने जमा कर तैयार हो गयी.
"दो तकिये ले ले और नीचे सरक" उसने आदेश दिया. फिर आगे सरक कर अपनी बुर मेरे मुँह पर रखकर बैठ गयी. उसकी बुर से ढेर सारा पानी बह रहा था. मैंने चुपचाप उसे चाटना शुरू कर दिया. मोम मेरा सिर पकड़कर अपनी बुर पर दबाते हुए मुझपर चढ़. बैठी और अपनी जांघों मे मेरे सिर को जकाड़कर हचक हचक कर मेरा मुँह चोदने लगी.
मोम ने उस रात सच मे घंटे भर मुझसे बुर चुसवाई. उसकी वासना शांत ही नही होती थी. जब मेरे मुँहा को चोदते हुए थक गयी तो बिस्तर पर अपनी बगल पर लेट गयी और मेरा सिर अपनी जांघों मे भर कर धक्के मारने लगी. मेरे सिर को वह ऐसे कस कर अपनी जांघों मे पकड़े थी जैसे उसे कुचल देना चाहती हो. मुझे कुछ दुख भी पर उन मदमाती जांघों मे गिरफ्तारी का मज़ा उस दर्द से ज़्यादा था. जब हम सोए तो बिलकुल निढाल हो गये थे. मोम ने सोने के पहले मुझे कहा
"रोज ज़िद मत करना अनिल बेटे, हफ्ते मे एक बार ठीक है तेरा यह गांद मारना, उससे ज़्यादा नही मारने दूँगी" मैं असल मे रोज मारने के ख्वाब देख रहा था पर जब उसने कहा कि काफ़ी दुखाता है तो मैं चुप रहा. मेरे लिए यही बहुत था किवाह बीच बीच मे गांद मरवाने को तैयार थी.
अगले दिन से मोम का ऑफीस शुरू हो गया. दो दिन की धुआँधार चुदाइ के बाद मेरा और मोम का संभोग अब एक अधिक संयम रूप मे चलने लगा. मोम जल्दी वापस आने की कोशिश करती थी पर अक्सर लेट हो जाती थी. थक भी जाती थी इसलिए रोज मैं उसे बस एक बार चोदता. अगर एकाध दिन्वह जल्दी वापस आती तोवह कुछ देर सो लेती थी और फिर रात को उसकी वासना ऐसी निखरती कि उसे शांत करने को मुझे अपना पूरा ज़ोर लगाना पड़ता था. अब मैने दोपहर के अपने खेल भी बंद कर दिए थे. मेरा सारा जोश अब मोम के लिए मैं बचा कर रखता था. मोम के घर आते ही पहला काम मैं यह करता कि जब तकवह कपड़े बदलती, मैं उसकी कांखे चाट लेता. उसे चूम कर उसके गाल और माथे पर आए पसीने को सॉफ कर देता.
रविवार को हमारी रति पूरे ज़ोर मे चलती. हफ्ते भर का संयम उस दिन हम ताक पर रख देते. हम साथ साथ नहाते और तभी से शुरू हो जाते. दोपहर को भी रति पूरे निखार मे होती. एक बार वायदे के अनुसार रविवार रात मोम मुझे अपनी गांद मारने देती. उस मौके की मैं हफ्ते भर राह देखता था. रविवार शाम को हम घूमने जाते थे, शॉपिंग करते थे. मोम ने एक दिन कुछ और ब्रा और पॅंटी भी खरीदी. मुझेवह साथ ले गयी और मेरी पसंद की ली. मुझे थोड़ी शरम लग रही थी, वाहा की सेल्स गर्ल के साथ तरह तरह की ब्रा देखने मे बड़ा अटपटा लग रहा था. दुकान मे बस औरते ही थी. पर मोम ने कोई परवाह नही की, मुझे दिखाकर मेरी पसंद पूछकर दो ब्रा और पॅंटी ली. मैं बाहर आकर बोला तो हँसने लगी.
"यहा कौन हमे पहचानता है!" मोम मे जो बदलाव आया था उसकी मैं पहले कभी कल्पना भी नही कर सकता था. अपने जवान किशोर बेटे के साथ संभोग ने उसकी वासना को निखार दिया था. इतने सालों की भुख्वह मानो एक दिन मे बुझा लेना चाहती थी. मुझपर तो अब्वह इतना प्यार करती कि हद नही. एक मोम की तरह मेरे खाने पीने कपड़ों और सेहत का ख़याल करती, सुबह जल्दी उठाकर खाना बना कर जाती कि मुझे बाहर ना खाना पड़े. फिर प्रेयसी के रूप मे मुझसे इतना अभिसार करती जैसी कोई नववधू भी अपने पति के साथ नही करती होगी.
मोम ने मेरी हर कमज़ोरी अच्छी तरह से भाँप ली थी और वह बड़ी चालाकी से उनका उपयोग करने लगी थी. मुझे उत्तेजित करती और अपना काम निकाल लेती. उदाहरण एक रात वह ज़रा ज़्यादा ही गरमा गयी थी. मैंने उसके चूत चॅटी और फिर दो बार उसे कस कर चोदा. फिर भी उसका मन नही भरा था.
मैं पलंग पर लास्ट पड़ा था. लंड फिर से खड़ा होने का कोई चांस नही था. मोम मेरे पास लेटकर मुझे चूमते हुए, मेरे मुँह मे अपनी चुचि देते हुए उसे हाथ से मसलकर अपनी भरसक कोशिश कर रही थी. मैंने भी कहा
"ममी सॉरी, अब मुझसे नही होगा" वह हँस कर बोली
"ठीक है, ना सही. चल एक खेल खेलते है. तेरा चप्पल वाला खेल नही देखा बहुत दिन से. आज ज़रा करके बता" मेरी इच्छा नुसार्वह हमेशा अपनी सैंडल या रबर की स्लिपर पहने रहती, चुदाइ के समय भी. उसने अपनी एक स्लीपर उतारी और मेरा सिर अपनी गोद मे लेकर पलंग के छोर से टिक कर बैठ गयी. अपना दूसरा पैर बढ़ा कर उसने मेरे मुरझाए लंड को अपने पैर के तलवे और चप्पल के बीच पकड़ लिया. फिर धीरे धीरे उसे रगड़ने लगी. मोम के कोमल तलवे और चप्पल के मुलायम रबर की फाइलिंग, मुझे बहुत अच्छा लग रहा था. फिर उसने कहा
"मूह खोल ना अनिल"
"क्यों मोम ?" मैने कहा. अपने हाथ की स्लीपर मेरे होंठों पर हौले हौले रगड़ते हुएवह बोली
"चाट ना मेरी चप्पल. आज बहुत देर पहनी है. तुझे मज़ा आएगा" मैने उसकी आँखों मे देखा.वह मज़ाक नही कर रही थी. मोम की आँखे कामना की खुमारी से भरी थी. मैने जीभ निकालकर उसे चाटना शुरू कर दिया. बहुत उत्तेजना हुई. मोम अब खुद मेरी फेटिश को बढ़ावा दे रही थी. उसने भी खिलखिलाते हुए मुझे सताना शुरू कर दिया. कुछ देर चाटने देती, फिर अचानक उसे मुहासे दूर कर देती. कभी चप्पल का छोर मेरे मूह मे डाल देती और कहती
"ज़रा चूस कर देख ना, मोम का भक्त है ना तू, मोम के चरणों का पुजारी! ले आज करके बता अपनी पूजा ठीक से" दस मिनिट मे मेरा लंड खड़ा हो गया. ऐसा तन्नाया जैसे झाड़ा ही ना हो. मैं अब अपनी कमर हिला हिला कर मोम के तलवे को चोदने की कोशिश कर रहा था. उसने तब तक यहा खिलवाड़. जारी रखा जब तक मेरा कस कर खड़ा नही हो गया. फिर तुरंत मुझे पलंग पर लिटा कर मुझपर चढ़. गयी और मुझे चोदने लगी. अपनी चप्पले उतार कर उसने मेरे मुँह पर रख दीं.
"ले बेटे, तेरे खिलौने. तू इनसे खेल, मैं अपने खिलौने से खेलती हू" मैंने मोम की चप्पले गालों से सटा ली और उन्हे बेतहाशा चाटने और चूसने लगा जैसा पहले मूठ मारते समय करता था. बस वह मेरी ओर देखकर हँसती जाती और मुझे चोदति जाती. उसकी उछलती छातियों और मुँहा पर पड़ी चप्पालों ने मुझपर ऐसा जादू किया कि मैं झदाने को आ गया.
मोम ने तुरंत चोदना बंद कर दिया. चप्पले भी मुझसे छीन ली. तब तक बैठी रही जब तक मेरा ज़ोर कम नही हो गया. फिर मुझे चोदने लगी. उस रात उसने पंद्रहा बीस मिनिट मुझे तड़पा तड़पा कर चोदा. जब खुद पूरी तृपता हो गयी तब मुझे झड़ाया. मैं इतना थक गया था कि बेहोश सा हो गया, लॅंड और गोटियाँ भी दुख रहे थे. मोम ने बत्ती बुझाकर मुझे बाँहों मे लिया और चुम कर सॉरी बोली
"अब सो जा बेटे, क्या करू, आज तू इतना नमकीन लग रहा था कि मेरा मन ही नही भर रहा था. पर सच बता, मेरी चप्पालों को चाटने मे मज़ा आया ना?" मोम की पसंद के दो काम थे. एक मुझसे बुर चुसवाना और मुझे उपर से चोदना. मुझे भिवह उसपर चढ़कर चोदने देती थी पर मुझे नीचे सुलाकर चोदना उसे ज़्यादा अच्छा लगता था. डॉमिनेंट पार्ट्नर बनाने का कोई मौका वा नही छोड़ती थी. उसके पीरियड के दिनों मे ज़रूर परेशानी होती थी. मेरा भी उपवास हो जाता था, दोनों तरह का, चोदने भी नही मिलता था और मोम की बुर का रस भी बंद हो जाता था. मोम से मैने कहा तो बोलती कि अच्छा है, तीन चार दिन तुझे भी आराम मिलना ज़रूरी है. और इससे तू ज़रा संयम रखना भी सीख जाएगा, तेरी सेहत के लिए भी अच्छा है. उसके स्तनों से खेलना मुझे बहुत अच्छा लगता. कई बार मैं उन्हे चुसते हुए कहता
"मोम दूध पीला ना बचपन जैसा" तो कहती
"अब इनमे दूध कैसे आएगा बेटे, तुझे रुकना पड़ेगा अपनी शादी होने तक, अपनी दुल्हनिया का दूध पीना" मैं कहता
क्रमशः.................
दोस्तों पूरी कहानी जानने के लिए नीचे दिए हुए पार्ट जरूर पढ़े ..............................
आपका दोस्त
राज शर्मा
माँ का दुलारा पार्ट -1
माँ का दुलारा पार्ट -2
माँ का दुलारा पार्ट -3
माँ का दुलारा पार्ट -4
माँ का दुलारा पार्ट -5
माँ का दुलारा पार्ट -6
माँ का दुलारा पार्ट -7
माँ का दुलारा पार्ट -8
माँ का दुलारा पार्ट -9
माँ का दुलारा पार्ट -10
gataank se aage...............
"ab thik hai raaja. ab dard kama hai. mujhe lag raha tha jaise meri fat hi jaayegi."
"maam, ab gaamd maarum?" maimne utsukata se pucha.
"maar bete par dhire dhire, aaj pahali baar hai, tu chodate samaya jaise dhakke lagaata hai, we mai saha nahi paaumgi." maimne mom ke kulhe pakad.akar dhire dhire usaki gaamd maarana shuru kar diya. maja a gaya. usaki makhamali myaan mujhe aise pakad.e thi jaise kisine muththi me mere lund ko pakad. liya ho. veselin ke kaaran lund fisal bhi bahut achcha raha tha. dhire dhire meri laya bamdh gayi. aamkhe bamd karake mai is swargik sukh ka anamd lene laga par jyaada der nahim! tilamila ke jhad. gaya. jhad.ane ke baad mom boli
"achcha laga anil? maja aaya jaisa tu sochata thaa?"
"maam, tumane to mujhe apana gulaama bana liya. bahut maja aaya mami, thaimks" haamfate hue mai bola. jab jhad.ana bamd hua to mai lund baahar nikaalane laga.
"are rahane de naa, kyom nikaalata hai, itani mushkil se daala hai, a mere upar let jaa" kahakar mom omdhe mumha bistar par let gayi. mai bhi usake saath sarakata hua usake upar let gaya. mera jhad.a lund ab bhi mom ki gaamd me famsa tha.
mai mom ke baal aur gardan chumata hua usake mamme dabaane laga. mom ke gudaaj sharir par letane ka maja hi alag tha.
"mom mera fir khad.a ho jaayegaa" maimne use chetaawani di. "fir nikaalane me mushkil hogi, supaad.a famsega amdar"
"maimne kab nikaalane ko kaha bete aise mem" mom ne sir ghumaakar mujhe chumma dete hue kaha. maimne bad.i aasha se pucha
"yaane maam, mai fir se ..."
"haam. ek baar aur maar le meri. tujhe itana achcha lagata hai, abhi jaldi me thik se kar bhi nahi paaya mera laal. abhi mujhe bhi thik lag raha hai, dard nahi hai" mai khushi se mom ke baal aur pith chumane laga. usake nipal kad.e the, wah masti me thi. khud hi apani ek haath apani jaamghom ke bich chala rahi thi. mera lund ab fir sir uthaane laga tha aur dhire dhire mom ke chutad.om ki gaharaayi me utar raha tha.
"mom ab is baar ghamte bhar tak teri maarumgaa" meri is baat par mom boli
"maar, do ghamte maar, par fir meri baari hai, tujhase pura hisaab lumgi" usake swar me gajab ki khumaari thi.
"tuma kuch bhi karawa lo maam, mai taiyaar hum" kahakar maimne mom ki gaamd maarana shuru kar di. usake stan pakad.e hue unhe dabaate hue, mom ki pith chumate hue, bich me usake mumha ko apani or mod. kar usake chumme lete hue maimne maje le le kar mom ki gaamd maari. ab wah mere lund ki aadi ho gayi thi isaliye mast lund fisal raha tha. haam mom bich bich me mujhe tad.apaane ko apani gaamd sikod. leti to meri spid kuch kama ho jaati. mai ab bhi pure dhakke nahi laga raha thaa, aaj pahali baar mom ko itani takalif dena thik nahi tha. haam man hi man soch raha tha ki agali baar se mom ki gaamd aise hachak hachak ke chodumga ki wah bhi kya yaad karegi. pura lund baahar nikaal nikaal kar amdar tak pelumga.
is baar mujhe pura maja milaa, man bhar kar mom ki makhamali nali ko maimne choda. mom garama hokar apani chut me khud umgali kar rahi thi
"anil raajaa, kitana paani baha raha hai dekh, jab tera ho jaayega to tujhe pilaaumgi. ghamte bhar chusawaaumgi tujhase, bahut nocha hai tune mujhe aaj" mom ki is baat par maimne uttejit hokar fir saat aath dhakke lagaaye aur jhad. gaya. mom ke upar se utar kar mai baaju me hua. mom ki gaamd ka ched ab khul sa gaya thaa, amdar ki gulaabi nali dikh rahi thi. mom turamt palat kar uth baithi aur mujhe niche sula kar meri chaati ke donom or ghutane jama kar taiyaar ho gayi.
"do takiye le le aur niche sarak" usane aadesh diya. fir aage sarak kar apani bur mere mumha par rakhakar baith gayi. usaki bur se dher saara paani baha raha tha. maimne chupachaap use chaatana shuru kar diya. mom mera sir pakad.akar apani bur par dabaate hue mujhapar chadh. baithi aur apani jaamghom me mere sir ko jakad.akar hachak hachak kar mera mumha chodane lagi.
mom ne us raat sach me ghamte bhar mujhase bur chusawaai. usaki waasana shaamt hi nahi hoti thi. jab mere mumha ko chodate hue thak gayi to bistar par apani bagal par let gayi aur mera sir apani jaamghom me bhar kar dhakke maarane lagi. mere sir ko wah aise kas kar apani jaamghom me pakad.e thi jaise use kuchal dena chaahati ho. mujhe kuch dukha bhi par una madamaati jaamghom me giraftaari ka maja us dard se jyaada tha. jab ham soye to bilakul nidhaal ho gaye the. mom ne sone ke pahale mujhe kaha
"roj jid mat karana anil bete, hafte me ek baar thik hai tera yah gaand maarana, usase jyaada nahi maarane dungi" mai asal me roj maarane ke khwaab dekh raha tha par jab usane kaha ki kaafi dukhata hai to mai chup raha. mere liye yahi bahut tha kiwah beech beech me gaand marawaane ko taiyaar thi.
agale din se mom ka office shuru ho gaya. do din ki dhuaamdhaar chudaai ke baad mera aur mom ka sambhog ab ek adhik samyam rup me chalane laga. mom jaldi waapas aane ki koshish karati thi par aksar let ho jaati thi. thak bhi jaati thi isaliye roj mai use bas ek baar chodata. agar ekaadh dinwah jaldi waapas aati towah kuch der so leti thi aur fir raat ko usaki waasana aisi nikharati ki use shaant karane ko mujhe apana pura jor lagaana padata tha. ab maine dopahar ke apane khel bhi band kar diye the. mera saara josh ab mom ke liye mai bacha kar rakhata tha. mom ke ghar aate hi pahala kaam mai yah karata ki jab takwah kapade badalati, mai usaki kaankhe chaat leta. use chum kar usake gaal aur maathe par aaye pasine ko saaf kar deta.
ravivaar ko hamaari rati pure jor me chalati. hafte bhar ka samyam us din ham taak par rakh dete. ham saath saath nahaate aur tabhi se shuru ho jaate. dopahar ko bhi rati pure nikhaar me hoti. ek baar waayade ke anusaar ravivaar raat mom mujhe apani gaand maarane deti. us mauke ki mai hafte bhar raah dekhata tha. ravivaar shaam ko ham ghumane jaate the, shopping karate the. mom ne ek din kuch aur bra aur panty bhi kharidi. mujhewah saath le gayi aur meri pasand ki li. mujhe thodi sharam lag rahi thi, wahaa ki sales girl ke saath tarah taraha ki bra dekhane me bada atapata lag raha tha. dukaan me bas aurate hi thi. par mom ne koi parawaah nahi ki, mujhe dikhaakar meri pasand puchakar do bra aur panty li. mai baahar aakar bola to hansane lagi.
"yahaa kaun hame pahachaanata hai!" mom me jo badalaaw aaya tha usaki mai pahale kabhi kalpana bhi nahi kar sakata tha. apane jawaan kishor bete ke saath sambhog ne usaki waasana ko nikhaar diya tha. itane saalom ki bhukhwah maano ek din me bujha lena chaahati thi. mujhapar to abwah itana pyaar karati ki had nahi. ek mom ki tarah mere khaane pine kapadom aur sehat ka khayaal karati, subah jaldi uthakar khaana bana kar jaati ki mujhe baahar na khaana pade. fir preyasi ke rup me mujhase itana abhisaar karati jaisi koi navavadhu bhi apane pati ke saath nahi karati hogi.
mom ne meri har kamajori achchi taraha se bhaamp li thi aur wah badi chaalaaki se unaka upayog karane lagi thi. mujhe uttejit karati aur apana kaama nikaal leti. udaaharan ek raat wah jara jyaada hi garama gayi thi. maimne usake chut chaati aur fir do baar use kas kar choda. fir bhi usaka man nahi bhara tha.
mai palamg par last pada tha. lund fir se khada hone ka koi chaams nahi tha. mom mere paas letakar mujhe chumate hue, mere mumha me apani chuchi dete hue use haath se masalakar apani bharasak koshish kar rahi thi. maimne bhi kaha
"mami saa~mri, ab mujhase nahi hogaa" wah hams kar boli
"thik hai, na sahi. chal ek khel khelate hai. tera chappal waala khel nahi dekha bahut din se. aaj jara karake bataa" meri ichcha nusaarwah hamesha apani saindal ya rabar ki slipper pahane rahati, chudaai ke samaya bhi. usane apani ek slipar utaari aur mera sir apani god me lekar palang ke chor se tik kar baith gayi. apana dusara pair badha kar usane mere murajhaaye lund ko apane pair ke talawe aur chappal ke bich pakad liya. fir dhire dhire use ragadane lagi. mom ke komal talawe aur chappal ke mulaayam rabar ki filing, mujhe bahut achcha lag raha tha. fir usane kaha
"muh khol na anil"
"kyom mom ?" maine kaha. apane haath ki slipar mere honthom par haule haule ragadate huewah boli
"chaat na meri chappal. aaj bahut der pahani hai. tujhe maja aayegaa" maine usaki aankhom me dekha.wah majaak nahi kar rahi thi. mom ki aankhe kaamana ki khumaari se bhari thi. maine jeebh nikaalakar use chaatana shuru kar diya. bahut uttejana hui. mom ab khud meri fetish ko badhaawa de rahi thi. usane bhi khilakhilaate hue mujhe sataana shuru kar diya. kuch der chaatane deti, fir achaanak use muhase dur kar deti. kabhi chappal ka chor mere muh me daal deti aur kahati
"jara chus kar dekh naa, mom ka bhakt hai na tu, mom ke charanom ka pujaari! le aaj karake bata apani puja thik se" das minit me mera lund khad.a ho gaya. aisa tannaaya jaise jhad.a hi na ho. mai ab apani kamar hila hila kar mom ke talawe ko chodane ki koshish kar raha tha. usane tab tak yaha khilawaad. jaari rakha jab tak mera kas kar khad.a nahi ho gaya. fir turamt mujhe palamg par lita kar mujhapar chadh. gayi aur mujhe chodane lagi. apani chappale utaar kar usane mere mumha par rakh dim.
"le bete, tere khilaune. tu inase khel, mai apane khilaune se khelati hu" maimne mom ki chappale gaalom se sata li aur unhe betahaasha chaatane aur chusane laga jaisa pahale muththa maarate samaya karata tha. bas wah meri or dekhakar hamsati jaati aur mujhe chodati jaati. usaki uchalati chaatiyom aur mumha par pad.i chappalom ne mujhapar aisa jaadu kiya ki mai jhad.ane ko a gaya.
mom ne turant chodana band kar diya. chappale bhi mujhase chin li. tab tak baithi rahi jab tak mera jor kam nahi ho gaya. fir mujhe chodane lagi. us raat usane pamdraha bis minit mujhe tadapa tadapa kar choda. jab khud puri trupta ho gayi tab mujhe jhadaaya. mai itana thak gaya tha ki behosh sa ho gayaa, land aur gotiyaam bhi dukh rahe the. mom ne batti bujhaakar mujhe baamhom me liya aur chuma kar sorry boli
"ab so ja bete, kya karu, aaj tu itana namakin lag raha tha ki mera man hi nahi bhar raha tha. par sach bataa, meri chappalom ko chaatane me maja aaya naa?" mom ki pasamd ke do kaam the. ek mujhase bur chusawaana aur mujhe upar se chodana. mujhe bhiwah usapar chadhkar chodane deti thi par mujhe niche sulaakar chodana use jyaada achcha lagata tha. dominant partner banane ka koi mauka wah nahi chodati thi. usake piriyad ke dinom me jarur pareshaani hoti thi. mera bhi upawaas ho jaata thaa, donom taraha kaa, chodane bhi nahi milata tha aur mom ki bur ka ras bhi bamd ho jaata tha. mom se maine kaha to bolati ki achcha hai, tin chaar din tujhe bhi aaraam milana jaruri hai. aur isase tu jara samyam rakhana bhi sikh jaayegaa, teri sehat ke liye bhi achcha hai. usake stanom se khelana mujhe bahut achcha lagata. kai baar mai unhe chusate hue kahata
"mom dudh pila na bachapan jaisaa" to kahati
"ab iname dudh kaise aayega bete, tujhe rukana padega apani shaadi hone tak, apani dulhaniya ka dudh pinaa" mai kahata
आपका दोस्त राज शर्मा
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj
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