माँ का दुलारा पार्ट--6
सावधान........... ये कहानी समाज के नियमो के खिलाफ है क्योंकि हमारा समाज मा बेटे और भाई बहन के रिश्ते को सबसे पवित्र रिश्ता मानता है अतः जिन भाइयो को इन रिश्तो की कहानियाँ पढ़ने से अरुचि होती हो वह ये कहानी ना पढ़े क्योंकि ये कहानी एक मा बेटे के सेक्स की कहानी है
गतान्क से आगे...............
"तू सचमुच पागल है मेरी हर चीज़ के लिए. मुझे ही कुछ करना पड़ेगा" पर यह नही बोली कि क्या करेगी. हम घूमने गये. एक जगह जल्दी ही डिनर किया. लौटते हुए मलाड की बड़े शापिंग माल मे घूमने चले गये. मोम ने शायद कुछ निश्चय कर लिया था. सीधे मुझे लेकर एक फुटवियर स्टोर मे गयी.
वहाँ ढेर सी लेडीज़ चप्पले और सैंडले थीं. मोम ने मेरे कान मे धीरे से कहा
"पसंद कर ले अनिल बेटे, कौन सी लूँ? एक सैंडल लूँगी और एक स्लीपर" मैं उसकी ओर देखने लगा. मुस्काराकर वह फिर धीरे से बोली
"तेरा दीवानापन नही जाएगा. सोचती हू कि एक ख़ास तेरे लिए ले लूँ, तेरे खेलने के लिए. उन्हे सिर्फ़ बेडरूम मे पहनूँगी. कम से कम साफ तो रहेंगी, नही तो मेरी चप्पालों को चाटने के चक्कर मे तू बीमार पड़. जाएगा." मैं बहुत खुश हुआ. आँखों आँखों मे ममी को थैंक यू कहा. मेरी फेटिश की गहराई को समझ कर वह मुझे खुश करने के लिए यह कर रही थी याने उसने मेरी इस चाहत को ऐईक्सेपट कर लिया था.
मैंने खूब ढूँढ कर एक नाज़ुक सिल्वर कलर की हाई हिल सैंडल और हल्के क्रिम कलर की पतले पत्तों वाली एकदम पतली रबर की स्लीपर पसंद की. मोम ने पहन कर देखे. उसके पाँव मे वी बहुत फब रहे थे. दोनों महँगी थीं, मिलाकर हज़ार रुपये हो गये. मैं वापस रखने वाला था पर मोम ने मेरा हाथ पकड़. लिया.
"तुझे सुख मिलता है बेटे तो कोई कीमत मेरे लिए ज़्यादा नही है" वापस घर आने तक मेरी ऐसीहालत हो गयी थी. लंड ऐसा खड़ा था कि चलना मुश्किल हो रहा था. किसी तरह उसे पैंट की साइड मे छिपा कर मैं चल रहा था. एक तो मेरे हाथ मे वह चप्पालों वाला पैकेट, दूसरे मोम के ब्लओज़ की पसीने से भीगी कांख . मोम मेरी हालत देख कर बस मुस्करा रही थी.
घर आते ही जैसे ही मोम ने दरवाजा अंदर से बंद किया, मैं उससे लिपट गया और अपना चेहरा उसकी कांख मे छुपा कर ब्लओज़ को चाटने लगा. मोम के खारे पसीने के स्वाद ने मुझपर किसी अफ़रोदिज़ियाक जैसा काम किया. मोम सैंडल उतारते हुए मुझे कहती ही रह गयी कि अरे रुक, इतना दीवाना ना हो, अभी रात पड़ी है, पर मैं कहा मानने वाला था. वैसा ही मोम को धकेलकर सीधा बेडरूमा मे ले गया. उसे पलंग पर बिठा कर मैं उसके सामने बैठ गया और उसकी साड़ी उपर कर दी.
मों हँसते हुए विरोध कर रही थी, पर नाम मात्र क़ा, सिर्फ़ दिखाने के लिए. साड़ी उठाकर मैंने खींचकर उसकी पैंटी उतारी और उसकी जांघे फैलाकर उनमे मुँहा डालकर उसकी बुर चूसने मे लग गया. बुर चू रही थी, याने मोम जो मुझसे इतनी इतराकर सब्र करने को कह रही थी, खुद भी अच्छी ख़ासी गरमा हो गयी थी.
कुछ देर बाद मैं उठा और पैकेट खोल कर सैंडल निकाले. मोम अब झाड़. कर पलंग पर लेट गयी थी और लंबी लंबी साँसे ले रही थी. मैंने मोम को सैंडल पहनाए और उसके पैरों को चूमा. मोम उस हालत मे बहुत प्यारी लग रही थी, पूरे कपड़े और सैंडल पहने थी पर साड़ी कमर के उपर थी और उसकी मतवाली जांघे और चूत नंगी थी.
मुझे अपने कपड़े निकालने का धीरज नही था, मैंने अपना लंड पैंट की ज़िप से निकाला और मोम की बुर मे घुसेड. दिया. फिर उसपर चढ़. कर उसे चोद डाला. चोदते चोदते मैंने मोम के हाथ उपर करके उसकी कांखो को ब्लओज़ के उपर से ही चूस डाला. पाँच मिनिट मे चुदाई ख़तम हो गयी. जब मैं मोम के उपर पड़ा पड़ा सुस्ता रहा था तो मों ने मीठा उलाहना दिया
"हो गया तेरा? अब रात भर क्या करेगा? मैं कह रही थी तुझसे, अगर सच का मज़ा लेना हो तो सब्र करना सीख . ये क्वीकी बहुत मीठी थी बेटे पर मैं तुझसे बहुत देर प्यार करना चाहती हू" मैंने मोम की छाती मे मुँहा दबा कर कहा
"ये तो शुरूवात है माँ, पूरी रात पड़ी है" मों मेरी पीठ पर चपत मार कर बोली
"बड़ा आया पूरी रात वाला. कल से अब तक पाँच बार झाड़. चुका है, थक गया होगा अब तक! सो जा चुप चाप!"
"नही माँ, मैं सच कहा रहा हू. आज मुझे मत रोको प्लीज़."
"ठीक है, तू पड़ा रह, मैं काफ़ी बनाकर लाती हू" मोम ने उठकर साड़ी निकालना शुरू कर दी. मुझे लगा कि वह गाउन पहनेगी. पर उसने बस साड़ी, ब्लओज़ और पेटीकोत निकाले. पैंटी फिर पहन ली. उसके कमरे से जाने के पहले मैंने उसकी कांख मे मुँहा डाल कर उसका पसीना चाट लिया. पहले वह नाराज़ हुई और बोली
"हट क्या कर रहा है" कहने लगी पर फिर चुपचाप हाथ उठा कर खड़ी हो गयी. उसे गुदगुदी हो रही थी इसलिए वह हँस कर बार बार मुझे रोक देती. पर मैंने पूरा पसीना चाट कर ही उसे छोड़ा. वह अपने उतारे कपड़े बाथरुम मे ले जाने लगी तो मैंने उसके हाथ से ब्लओज़ छीन लिया.
"ये छोड़. दो मोम मेरे लिए. मीठी काफ़ी के पहले कुछ खारा मसालेदार स्वाद तो ले लूँ" मेरे मुँहा पर ब्लओज़ फैंक कर मोम झूठ मूठ का गुस्सा दिखाते हुए चली गयी.
"ना जाने तेरा पागलपन कब ख़तम होगा" मैं मोम का ब्लओज़ लेकर पलंग पर लेट गया और उसकी भीगी कांखे मुँहा मे लेकर चबाने और चूसने लगा.
इसी अर्धनग्न अवस्था मे जाकर वह काफ़ी बना लाई. मोम के उस रूप का मुझ पर प्रभाव होना ही था. अपनी सैंडले उसने अब भी पहन रखी थी. ब्रा और पैंटी मे उँची एडी की सैंडल पहनकर उसे इधर उधर चलते देखना ऐसा लगता रहा था जैसे किसी लिंगरी कंपनी की फैशन परेड हो रही हो. आधे घंटे के अंदर मैं फिर अपने काम मे जुट गया.
उस रात मैंने मोम को दो बार और चोदा. पहली बार पीछे से उसे घोड़ी बनाकर. सामने अलमारी के आईने मे मोम के लटककर डोलाते मम्मे और उसके चेहरे पर के कामना से भरे भाव दिख रहे थे. उसे बहुत मज़ा आ रहा था और बीच मे जब चुदासि असहनिय हो जाती तो उसकी मीठी छटपटाहट देखते ही बनती थी. उन लटकते मम्मों को मैं बीच बीच मे आगे झुक कर दबा देता.
दूसरी बार मैं नीचे लेटा रहा और मोम ने मुझपर चढ़कर मुझे चोदा क्योंकि मैं थक गया था पर लंड खड़ा था. आखरी चुदाई सबसे मीठी थी क्योंकि मेरा लंड काफ़ी देर खड़ा रहा और मोम ने भी मज़ा ले लेकर रुक रुक कर मुझे चोदा. बिलकुल चेहरे के सामने उसके उछलते स्तन मेरी मदहोशी को और गहरा कर देते. बीच मे ही मैं मोम की चुचियाँ दबाने लगता या उसे नीचे खींचकर उसकी घुंडियाँ चूसने लगता.
हम सोए तो लास्ट हो गये थे. सोते समय मों ने मुझे बाँहों मे भरकर पूछा
"तेरे दिमाग़ मे ये सब आसन कहाँ से आए बेटे? ऐसा अनुभवी लगता है जैसे कोई मंजा खिलाड़ी हो" मैंने मोम को कहा कि मोम मैने आपको बताया तो था कि राज शर्मा के कामुक-कहानियाँडॉटब्लॉगस्पॉटडॉ
"और माँ, सपने मे ये सब मैं तेरे साथ कितनी ही बार कर चुका हू, इसलिए आज पहली बार करते हुए भी कोई तकलीफ़ नही हुई मुझे" मेरी गोटियाँ अब दुख रही थीं. लंड भी एकदमा मुरझा गया था. मोम ने मुझे प्यार से डाँटते हुए कहा
"अब कल कुछ नहीं. तेरा कल का भी सारा कोटा पूरा हो गया. बीमार पड़ना है क्या? अब दो तीन दिन के लिए सब बंद." मैंने मोम से खूब मिन्नटे कीं, बोला कि जैसा वह कहेगी मैं करूँगा, बस कम से कम एक बार कल मुझे चोदने दे. पहले वह नही मान रही थी, मेरी हज़ार प्रार्थना के बाद मान गयी "ठीक है, कल रात को. पर दिन भर अब अच्छे बच्चे जैसे रहना. मुझे भी घर के बहुत काम करने हैं."
दूसरे दिन रविवार था. हम आरामा से उठे. मोम ने घर का काम निकाला. मुझे भी लगा दिया. मेरा कमरा और मोम के बेडरूम को जमाया, पुराना सामान निकालकर फेका. उसी समय मेरी अलमारी की तह मे रखी कुछ मेगेज़ीन उसे मिलीं. वह पन्ने पलटने लगी तो चहरा लाल हो गया. हर तरह के तस्वीरे उसमे थीं. स्त्री पुरुष, स्त्री स्त्री, पुरुष पुरुष, ग्रुप, बड़ी उम्र की औरते और जवान लड़के.
"छी कितनी गंदी किताबे हैं. शरम नही आती तुझे" एक गुदा संभोग का चित्र देखते हुए उसने मुझे पूछा. उसकी साँसे तेज हो गयी थी उस चित्र को वह बहुत देर देखती रही. मैंने उसके गले मे बाँहे डाल कर कहा
"हाँ माँ, पर है बहुत मजेदार. है ना?" मोम ने उन्हे अपने कमरे की अलमारी मे रख दिया.
"अब से ये देखना बंद. तभी दोपहर को तरह तरह की हरकते करता रहता था" मोम उन्हे देख कर उत्तेजित हो गयी थी. पर उसीने मुझे कहा था कि आज मुहब्बत बंद है इसलिए आगे कुछ ना बोली. बस मुझे ज़ोर से चूमा लिया.
दोपहर को खाने के बाद मोम बाजार चली गयी. मुझे सुला कर गयी कि आराम कर. जब मैं शाम को उठा तो देखा कि मोम वापस आ गयी है और मेरे बाजू मे सो रही है. मैं उसे चिपटना चाहता था पर फिर सोचा वह भी थक गयी होगी. चुपचाप उठाकर उसकी पुरानी स्लीपरे बाथरूम ले गया. उन्हे खूब धोया और सुखाने को रख दीं. तभी मोम आ गयी. आश्चर्य से बोली
"अरे ये क्या कर रहा है? मैंने ली तो है नयी वाली तेरी पसंद की" मैंने कहा
"वो तो नयी है माँ, अभी उनमे तुम्हारे पैरों की खुशबू कहाँ लगी है! उन्हे बाद मे पहनना पहले इन्हे पहन कर घिसो तब मुझे मज़ा आएगा. तब तक के लिए मैंने ये सॉफ कर ली हैं"
"क्या करेगा इनका" मोम की बात पर मैंने कहा
"माँ, आज रात इन्हे पहनना ना प्लीज़, बहुत मज़ा आएगा" मोम ने चाय बनाई. मेरी बात से वह भी उत्तेजित हो गयी थी. उसकी आँखों से ही मुझे उसकी हालत का पता चल गया था. मेरा भी लंड खड़ा था. पर मोम से मैंने वादा किया था कि आज रात सिर्फ़ एक बार चोदुन्गा. एक बात भी मेरे दिमाग़ मे भर गयी थी, उसके लिए मोम की सहमति ज़रूरी थी.
उस दिन हम बाहर नही गये, घर मे ही आराम किया. शाम को मोम जब टी वी देख रही थी तो आख़िर मुझसे नही रहा गया. मैं जाकर उसके सामने नीचे बैठ गया और उसकी साड़ी उपर कर दी.
"अरे क्या कर रहा है? याद है ना मैंने क्या कहा था?" मों मेरे हाथ पकड़कर बोली.
"माँ, मैं सच मे अभी कुछ नही करूँगा. रात को ही करूँगा. पर तुम क्यों परेशान हो रही हो? मुझे बस अपनी बुर चूसा दो"
"चल हट, बड़ा आया बुर चूसने वाला. और उसके बाद क्या करेगा यह भी मालूमा है" मोम ने मेरे कान पकड़कर कहा.
"नही माँ, प्रामिस, बस तुम्हारी बुर चुसूँगा घंटे भर. मुझे महक आ रही है, मुझे मालूमा है कि तुम्हारी क्या हालत है. और कुछ नही करूँगा माँ, बिलकुल सच्ची. रात तक ना चोदने की प्रामिस तो मेरी है, तुमने ने झदाने की कोई प्रामिस थोड़े की है" मैंने अपने बचपन के अंदाज मे कहा. मोम निरुत्तर हो गयी, मेरा हाथ छोड़ कर बोली
क्रमशः........................
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दोस्तों पूरी कहानी जानने के लिए नीचे दिए हुए पार्ट जरूर पढ़े .................................
आपका दोस्त
राज शर्मा
माँ का दुलारा पार्ट -1
माँ का दुलारा पार्ट -2
माँ का दुलारा पार्ट -3
माँ का दुलारा पार्ट -4
माँ का दुलारा पार्ट -5
माँ का दुलारा पार्ट -6
माँ का दुलारा पार्ट -7
माँ का दुलारा पार्ट -8
माँ का दुलारा पार्ट -9
माँ का दुलारा पार्ट -10
दोस्तों पूरी कहानी जानने के लिए नीचे दिए हुए पार्ट जरूर पढ़े ..............................
आपका दोस्त
राज शर्मा
माँ का दुलारा पार्ट -1
माँ का दुलारा पार्ट -2
माँ का दुलारा पार्ट -3
माँ का दुलारा पार्ट -4
माँ का दुलारा पार्ट -5
माँ का दुलारा पार्ट -6
माँ का दुलारा पार्ट -7
माँ का दुलारा पार्ट -8
माँ का दुलारा पार्ट -9
माँ का दुलारा पार्ट -10
gataank se aage...............
"tu sachamuch paagal hai meri har chij ke liye. mujhe hi kuch karana pad.egaa" par yaha nahi boli ki kya karegi. hama ghumane gaye. ek jagaha jaldi hi dinar kiya. lautate hue malaad ki bad.i shaapimg maal me ghumane chale gaye. mom ne shaayad kuch nishchaya kar liya tha. sidhe mujhe lekar ek futawiyar stor me gayi.
wahaam dher si lediz chappale aur saimdale thim. mom ne mere kaan me dhire se kaha
"pasamd kar le anil bete, kaun si lum? ek saimdal lumgi aur ek slipar" mai usaki or dekhane laga. muskaraakar wah fir dhire se boli
"tera diwaanaapan nahi jaayega. sochati hum ki ek khaas tere liye le lum, tere khelane ke liye. unhe sirf bedaruma me pahanumgi. kama se kama saaf to rahemgi, nahi to meri chappalom ko chaatane ke chakkar me tu bimaar pad. jaayega." mai bahut khush hua. aamkhom aamkhom me mami ko thaimk yu kaha. meri fetish ki gaharaayi ko samajh kar wah mujhe khush karane ke liye yaha kar rahi thi yaane usane meri is chaahat ko aiksept kar liya tha.
maimne khub dhumdh kar ek naajuk silvar kalar ki haai hil saimdal aur halke krima kalar ki patale pattom waali ekadama patali rabar ki slipar pasamd ki. mom ne pahan kar dekhe. usake paamv me we bahut fab rahe the. donom mahamgi thim, milaakar hajaar rupaye ho gaye. mai waapas rakhane waala tha par mom ne mera haath pakad. liya.
"tujhe sukh milata hai bete to koi kimat mere liye jyaada nahi hai" waapas ghar aane tak meri haalat ho gayi thi. lund aisa khad.a tha ki chalana mushkil ho raha tha. kisi taraha use paimt ki saaid me chipa kar mai chal raha tha. ek to mere haath me wah chappalom waala paiket, dusare mom ke blaauz ki pasine se bhigi kaamkh . mom meri haalat dekh kar bas muskara rahi thi.
ghar aate hi jaise hi mom ne darawaaja amdar se bamd kiyaa, mai usase lipat gaya aur apana chehara usaki kaamkh me chupa kar blaauz ko chaatane laga. mom ke khaare pasine ke swaad ne mujhapar kisi afrodiziaak jaisa kaama kiya. mom saimdal utaarate hue mujhe kahati hi raha gayi ki are ruk, itana diwaana na ho, abhi raat pad.i hai, par mai kaha maanane waala tha. waisa hi mom ko dhakelakar sidha bedaruma me le gaya. use palamg par bitha kar mai usake saamane baith gaya aur usaki saad.i upar kar di.
mom hamsate hue virodh kar rahi thi, par naama maatra kaa, sirf dikhaane ke liye. saad.i uthaakar maimne khimchakar usaki paimti utaari aur usaki jaamghe failaakar uname mumha daalakar usaki bur chusane me lag gaya. bur chu rahi thi, yaane mom jo mujhase itani itaraakar sabra karane ko kaha rahi thi, khud bhi achchi khaasi garama ho gayi thi.
kuch der baad mai utha aur paiket khol kar saimdal nikaale. mom ab jhad. kar palamg par let gayi thi aur lambi lambi saamse le rahi thi. maimne mom ko saimdal pahanaaye aur usake pairom ko chuma. mom us haalat me bahut pyaari lag rahi thi, pure kapad.e aur saimdal pahane thi par saad.i kamar ke upar thi aur usaki matawaali jaamghe aur chut namgi thi.
mujhe apane kapad.e nikaalane ka dhiraj nahi thaa, maimne apana lund paimt ki zip se nikaala aur mom ki bur me ghused.a diya. fir usapar chadh. kar use chod daala. chodate chodate maimne mom ke haath upar karake usaki kaamkhom ko blaauz ke upar se hi chus daala. paamch minit me chudaai khatama ho gayi. jab mai mom ke upar pad.a pad.a susta raha tha to mom ne mitha ulaahana diya
"ho gaya teraa? ab raat bhar kya karegaa? mai kaha rahi thi tujhase, agar sach ka maja lena ho to sabra karana sikh . ye kwiki bahut mithi thi bete par mai tujhase bahut der pyaar karana chaahati hum" maimne mom ki chaati me mumha daba kar kaha
"ye to shuruwaat hai maam, puri raat pad.i hai" mom meri pith par chapat maar kar boli
"bad.a aaya puri raat waala. kal se ab tak paamch baar jhad. chuka hai, thak gaya hoga ab tak! so ja chup chaap!"
"nahi maam, mai sach kaha raha hum. aaj mujhe mat roko pliz."
"thik hai, tu pad.a raha, mai kaa~mfi banaakar laati hum" mom ne uthakar saad.i nikaalana shuru kar di. mujhe laga ki wah gaaun pahanegi. par usane bas saad.i, blaauz aur petikot nikaale. paimti fir pahan li. usake kamare se jaane ke pahale maimne usaki kaamkh me mumha daal kar usaka pasina chaat liya. pahale wah
"hat kya kar raha hai" kahane lagi par fir chupachaap haath utha kar khad.i ho gayi. use gudagudi ho rahi thi isaliye wah hams kar baar baar mujhe rok deti. par maimne pura pasina chaat kar hi use chod.a. wah apane utaare kapad.e baatharuma me le jaane lagi to maimne usake haath se blaauz chin liya.
"ye chod. do mom mere liye. mithi kaafi ke pahale kuch khaara masaaledaar swaad to le lum" mere mumha par blaauz faimk kar mom jhuth muth ka gussa dikhaate hue chali gayi.
"na jaane tera paagalapan kab khatama hogaa" mai mom ka blaauz lekar palamg par let gaya aur usaki bhigi kaamkhe mumha me lekar chabaane aur chusane laga.
isi ardhanagna awastha me jaakar wah kaafi bana laayi. mom ke us rup ka mujh par prabhaav hona hi tha. apani saimdale usane ab bhi pahan rakhi thi. bra aur paimti me umchi aid.i ki saimdal pahanakar use idhar udhar chalate dekhana aisa lagata raha tha jaise kisi limgari kampani ki faishan pared ho rahi ho. aadhe ghamte ke amdar mai fir apane kaama me jut gaya.
us raat maimne mom ko do baar aur choda. pahali baar piche se use ghod.i banaakar. saamane almaari ke aaine me mom ke latakakar dolate mamme aur usake chehare par ke kaamana se bhare bhaav dikh rahe the. use bahut maja a raha tha aur bich me jab chudaasi asahaniya ho jaati to usaki mithi chatapataahat dekhate hi banati thi. un latakate mammom ko mai bich bich me aage jhuk kar daba deta.
dusari baar mai niche leta raha aur mom ne mujhapar chadh.akar mujhe choda kyomki mai thak gaya tha par lund khad.a tha. aakhari chudaai sabase mithi thi kyomki mera lund kaafi der khad.a raha aur mom ne bhi maja le lekar ruk ruk kar mujhe choda. bilakul chehare ke saamane usake uchalate stan meri madahoshi ko aur gahara kar dete. bich me hi mai mom ki chuchiyaam dabaane lagata ya use niche khimchakar usaki ghumdiyaam chusane lagata.
hama soye to last ho gaye the. sote samaya mom ne mujhe baamhom me bharakar pucha
"tere dimaag me ye sab aasan kahaam se aaye bete? aisa anubhavi lagata hai jaise koi mamja khilaad.i ho" maimne mom ko kaha ki bahut si kaamuk megezin maimne dekhi thim.
"par maam, sapane me ye sab mai tere saath kitani hi baar kar chuka hum, isaliye aaj pahali baar karate hue bhi koi takalif nahi hui mujhe" meri gotiyaam ab dukh rahi thim. lund bhi ekadama murajha gaya tha. mom ne mujhe pyaar se daamtate hue kaha
"ab kal kuch nahim. tera kal ka bhi saara kota pura ho gaya. bimaar pad.ana hai kyaa? ab do tin din ke liye sab bamd." maimne mom se khub minnate kim, bola ki jaisa wah kahegi mai karumgaa, bas kama se kama ek baar kal mujhe chodane de. pahale wah nahi maan rahi thi, meri hajaar praarthana ke baad maan gayi "thik hai, kal raat ko. par din bhar ab achche bachche jaise rahana. mujhe bhi ghar ke bahut kaama karane haim."
dusare din raviwaar tha. hama aaraama se uthe. mom ne ghar ka kaama nikaala. mujhe bhi laga diya. mera kamara aur mom ke bedaruma ko jamaayaa, puraana saamaan nikaalakar feka. usi samaya meri almaari ki taha me rakhi kuch megezin use milim. wah panne palatane lagi to chahara laal ho gaya. hara taraha ke taswire usame thim. stri purush, stri stri, purush purush, grup, bad.i umra ki aurate aur jawaan lad.ake.
"chi kitani gamdi kitaabe haim. sharama nahi aati tujhe" ek guda sambhog ka chitra dekhate hue usane mujhe pucha. usaki saamse tej ho gayi thi us chitra ko wah bahut der dekhati rahi. maimne usake gale me baamhe daal kar kaha
"haam maam, par hai bahut majedaar. hai naa?" mom ne unhe apane kamare ki almaari me rakh diya.
"ab se ye dekhana bamd. tabhi dopahar ko taraha taraha ki harakate karata rahata thaa" mom unhe dekh kar uttejit ho gayi thi. par usine mujhe kaha tha ki aaj muhabbat bamd hai isaliye aage kuch na boli. bas mujhe jor se chuma liya.
dopahar ko khaane ke baad mom baajaar chali gayi. mujhe sula kar gayi ki aaraama kar. jab mai shaama ko utha to dekha ki mom waapas a gayi hai aur mere baaju me so rahi hai. mai use chipatana chaahata tha par fir socha wah bhi thak gayi hogi. chupachaap uthakar usaki puraani slipare baatharuma le gaya. unhe khub dhoya aur sukhaane ko rakh dim. tabhi mom a gayi. aashcharya se boli
"are ye kya kar raha hai? maimne li to hai nayi waali teri pasamd ki" maimne kaha
"wo to nayi hai maam, abhi uname tumhaare pairom ki khushabu kahaam lagi hai! unhe mahana par pahan kar ghiso tab mujhe maja aayega. tab tak ke liye maimne ye saaf kar li haim"
"kya karega inakaa" mom ki baat par maimne kaha
"maam, aaj raat inhe pahanana na pliz, bahut maja aayegaa" mom ne chaay banaayi. meri baat se wah bhi uttejit ho gayi thi. usaki aamkhom se hi mujhe usaki haalat ka pata chal gaya tha. mera bhi lund khad.a tha. par mom se maimne waada kiya tha ki aaj raat sirf ek baar chodumga. ek baat bhi mere dimaag me bhar gayi thi, usake liye mom ki sahamati jarurai thi.
us din hama baahar nahi gaye, ghar me hi aaraama kiya. shaama ko mom jab ti vi dekh rahi thi to aakhir mujhase nahi raha gaya. mai jaakar usake saamane niche baith gaya aur usaki saad.i upar kar di.
"are kya kar raha hai? yaad hai na maimne kya kaha thaa?" mom mere haath pakad.akar boli.
"maam, mai sach me abhi kuch nahi karumga. raat ko hi karumga. par tuma kyom pareshaan ho rahi ho? mujhe bas apani bur chusa do"
"chal hat, bad.a aaya bur chusane waala. aur usake baad kya karega yaha bhi maaluma hai" mom ne mere kaan pakad.akar kaha.
"nahi maam, praamis, bas tumhaari bur chusumga ghamte bhar. mujhe mahak a rahi hai, mujhe maaluma hai ki tumhaari kya haalat hai. aur kuch nahi karumga maam, bilakul sachci. raat tak na chodane ki praamis to meri hai, tumane ne jhad.ane ki koi praamis thod.e ki hai" maimne apane bachapan ke amdaaj me kaha. mom niruttar ho gayi, mera haath chod.akar boli
आपका दोस्त राज शर्मा
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा
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`·.¸.·´ -- raj
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