Wednesday, April 21, 2010

राज शर्मा की कामुक कहानिया रद्दी वाला पार्ट--7

raj sharma stories राज शर्मा की कामुक कहानिया हिंदी कहानियाँ
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रद्दी वाला पार्ट--7 गतान्क से आगे................... पापा के यूँ जानवरों की तरह पेश आने से रंजना की दर्द से जान तो निकलने को हो ही रही थी मगर एक लाभ उसे ज़रूर दिखाई दिया, यानी लंड अंदर तक उसकी चूत मैं घुस गया था.वो तो चुदवाने से पहले चाह'ती ही ये थी की कब लंड पूरा घुसे और वो मम्मी की तरह मज़ा लूटे. मगर मज़ा अभी उसे नाम मात्र भी महसूस नहीं हो रहा था. सह'सा ही सुदर्शन कुच्छ देर के लिए शांत हो कर धक्के मारना रोक उस'के ऊपर लेट गया और उसे जोरो से अपनी बाँहों मैं भींच कर और तड़ातड़ उसके मूँ'ह पर चुम्मि काट काट कर मूँ'ह से भाप सी छ्चोड़ता हुआ बोला,"आ मज़्ज़ा आ गया आज, एक दम कुँवारी चूत है तुम्हारी.अपने पापा को तुम'ने ईट'ना अच्च्छा तोहफा दिया. रंजना मैं आज से तुम्हारा हो गया." तने हुए मम्मों को भी बड़े प्यार से वो सह'लाता जा रहा था.वैसे अभी भी रंजना को चूत मे बहुत दर्द होता हुआ जान पड़ रहा था मगर पापा के यूँ हल्के पड़ने से दर्द की मात्रा मैं कुच्छ मामूली सा फ़र्क तो पड़ ही रहा था. और जैसे ही पापा की चुम्मि काट'ने, चूचिया मसल्ने और उन्हे सह'लाने की क्रिया तेज़ होती गयी वैसे ही रंजना आनंद के सागर मैं उतरती हुई मह'सूस करने लगी. अब आहिस्ता आहिस्ता वो दर्द को भूल कर चुम्मि और चूची मसलाई की क्रियाओं मैं जबरदस्त आनंद लूटना प्रारंभ कर चुकी थी. सारा दर्द उड़ँच्छू होता हुआ उसे लगने लगा था. सुदर्शन ने जब उसके चेहरे पर मस्ती के चिन्ह देखे तो वो फिर धीरे धीरे चूत मैं लंड घुसेड़ता हुआ हल्के हल्के घस्से मारने पर उतर आया. अब वो रंजना की दर्द पर ध्यान रखते हुए बड़े ही आराम से उसे चोदने मे लग गया था.उसके कुंवारे मम्मो के तो जैसे वो पीछे ही पड़ गया था.बड़ी बेदर्दी से उन्हे चाट चाट कर कभी वो उन पर चुम्मि काट-ता तो कभी चूची का अंगूर जैसा निपल वो होंठो मे ले कर चूसने लगता. चूची चूस्ते चूसते जब वो हाँफने लगता तो उन्हे दोनो हाथो मे भर कर बड़ी बेदर्दी से मसल्ने लगता था.निश्चाए ही चूचियो के चूसने मसल्ने की हरकतों से रंजना को ज़्यादा ही आनंद प्राप्त हो रहा था.उस बेचारी ने तो कभी सोचा भी ना था कि इन दो मम्मो मे आनंद का इतना बड़ा सागर छिपा होगा. इस प्रथम चुदाई मैं जबकि उसे ज़्यादा ही कष्ट हो रहा था और वो बड़ी मुश्किल से अपने दर्द को झेल रही थी मगर फिर भी इस कष्ट के बावजूद एक ऐसा आनद और मस्ती अंदर फुट पड़ रही थी कि वो अपने प्यारे पापा को पूरा का पूरा अपने अंदर समेट लेने की कोशिश करने लगी थी. क्योंकि पहली चुदाई मे कष्ट होता ही है इसलिए इतनी मस्त हो कर भी रंजना अपनी गांद और कमर को तो चलाने मे असमर्थ थी मगर फिर भी इस चुदाई को ज़्यादा से ज्यदा सुखदायक और आनंद दायक बनाने के लिए अपनी और से वो पूरी तरह प्रयत्नशील थी. रंजना ने पापा की कमर को ठीक इस तरह कस कर पकड़ा हुआ था जैसे उस दिन ज्वाला देवी ने चूड़ते समय बिरजू की कमर को पकड़ रखा था. अपनी तरफ से चूत पर कड़े धक्के मरवाने मैं भी वो पापा को पूरी सहायता किए जा रही थी. इसी कारण पल प्रति पल धक्के और ज़्यादा शक्तिशाली हो उठे थे और सुदर्शन ज़ोर ज़ोर से हान्फ्ते हुए पतली कमर को पकड़ कर जानलेवा धक्के मारता हुआ चूत की दुर्गति करने पर तूल उठा था. उस'के हर धक्के पर रंजना कराह कर ज़ोर से सिसक पड़ती थी और दर्द से बचने के लिए वो अपनी गांद को कुछ ऊपर खिसकाये जा रही थी. यहाँ तक कि उसका सिर पलंग के सिरहाने से टकराने लगा, मगर इस पर भी दर्द से अपना बचाव वो ना कर सकी और अपनी चूत मे धक्को का धमाका घूँजता हुआ महसूस करती रही. हर धक्के के साथ एक नयी मस्ती मैं रंजना बेहाल हो जाती थी.कुछ समय बाद ही उसकी हालत ऐसी हो गयी कि अपने दर्द को भुला डाला और प्रत्येक दमदार धक्के के साथ ही उस'के मूँ'ह से बड़ी अजीब से दबी हुई अस्पष्ट किलकरियाँ खुद-ब-खुद निकलने लगी, "ओह पापा अब मज़ा आ रहा है. मैने आप'को कुँवारी चूत का तोहफा दिया तो आप भी तो मुझे ऐसा मज़ा देकर तोहफा दे रहे है.अब देखना मम्मी से इसमें भी कैसा कॉंपिट्षन करती हूँ.ओह पापा बताइए मम्मी की लेने में ज़्यादा मज़ा है या मेरी लेने में?" सुदर्शन रंजना की मस्ती को और ज़्यादा बढ़ाने की कोशिश मैं लग गया. वैसे इस समय की स्तिथि से वो काफ़ी परिचित होता जा रहा था. रंजना की मस्ती की ओट लेने के इरादे से वो चोद्ते चोद्ते उस'से पूच्छने लगा, "कहो मेरी जान..अब क्या हाल है? कैसे लग रहे हैं धक़्की..पहली बार तो दर्द होता ही है.पर मैं तुम्हारे दर्द से पिघल कर तुम्हें इस मज़े से वंचित तो नहीं रख सक'ता था ना मेरी जान, मेरी रानी, मेरी प्यारी." उसके होंठ और गालो को बुरी तरह चूस्ते हुए,उसे जोरो से भींच कर उपर लेते लेते ज़ोरदार धक्के मारता हुआ वो बोल रहा था, बेचारी रंजना भी उसे मस्ती मैं भींच कर बोझिल स्वर मे बोली,"बड़ा मज़ा आ रहा है मेरे प्यारे सा.... पापा,मगर दर्द भी बहुत ज़्यादा हो रहा है.." फ़ौरन ही सुदर्शन ने लंड रोक कर कहा,"तो फिर धक्के धीरे धीरे लगाऊं. तुम्हे तकलीफ़ मैं मैं नहीं देख सकता. तुम तो बोल'ते बोल'ते रुक जाती हो पर देखो मैं बोलता हूँ मेरी सज'नी, मेरी लुगाई." ये बात वैसे सुदर्शन ने ऊपरी मन से ही कही थी. रंजना भी जानती थी कि वो मज़ाक के मूड मैं है और तेज़ धक्के मारने से बाज़ नही आएगा, परंतु फिर भी कहीं वो चूत से ही लंड ना निकाल ले इस डर से वो चीख ही तो पड़ी, "नहीं.. नहीं.! ऐसा मत करना ! चाहे मेरी जान ही क्यों ना चली जाए, मगर तुम धक्कों की रफ़्तार कम नहीं होने देना.. इट'ना दर्द सह कर तो इसे अपने भीतर लिया है. आहह मारो धकक्का आप मेरे दर्द की परवाह मत करो. आप तो अपने मन की करते जाओ. जितनी ज़ोर से भी धक्का लगाना चाहो लगा लो अब तो जब अपनी लुगाई बना ही लिया है तो मत रूको मेरे प्यारे सैंया.. मैं.. इस समय सब कुच्छ बर्दाश्त कर लूँगी.. आ आई रीइ..पहले तो मेरा इम्तिहान था और अब आपका इम्तिहान है.यह नई लुगाई पुरानी लुगाई भुला देगी.मज़बूरन अपनी गांद को रंजना उच्छलने पर उतार आई थी. कुच्छ तो धक्के पहले से ही जबरदस्त व ताक़तवर उसकी चूत पर पड़ रहे थे और उस'के यूँ मस्ती मैं बड़बड़ाने, गांद उच्छलने को देख कर तो सुदर्शन ने और भी ज़्यादा जोरों के साथ चूत पर हमला बोल दिया. हर धक्का चूत की धज्जियाँ उड़ाए जा रहा था. रंजना धीरे धीरे कराहती हुई दर्द को झेलते हुए चुदाई के इस महान सुख के लिए सब कुच्छ सहन कर रही थी. और मस्ती मैं हल्की आवाज़ मे चिल्ला भी रही थी, "आहह मैं मारीयियी. पापा कहीं आप'ने मेरी फाड़ के तो नही रख दी ना? ज़रा धीरे.. है! वाहह! अब ज़रा ज़ोर से.. लगा लो . और लो.. वाहह प्यारे सच बड़ा मज़ा आ रहा है.. आ ज़ोर से मारे जाओ, कर दो कबाड़ा मेरी चूत का." इस तरह के शब्द और आवाज़े ना चाहते हुए भी रंजना के मूँ'ह से निकल पड़ रहे थे. वो पागल जैसी हो गयी थी इस समय. वो दोनो ही एक दूसरे को बुरी तरह नोचने खसोटने लगे थे. सारे दर्द को भूल कर अत्यंत घमासान धक्के चूत पर लगवाने के लिए हर तरह से रंजना कोशिश मे लगी हुई थी. दोनो झड़ने के करीब पहुँच कर बड़बड़ाने लगे. "आह मैं उउदीी जा रही हूँ राज्जा ये मुझे क्या हो रहा हाई, मेरी रानी ले और ले फाड़ दूँगा हाई क्या चूत हाय तेरी आ ऊ" और इस प्रकार द्रुतगाति से होती हुई ये चुदाई दोनों के झड़ने पर जा कर समाप्त हुई. चुदाई का पोर्न मज़ा लूटने के पश्चात दोनो बिस्तर पर पड़ कर हाँफने लगे.थोड़ी देर सुसताने के बाद रंजना ने बलिहारी नज़रो से अप'ने पापा को देखा और तुन्तुनाते हुए बोली, "अपने तो मेरी जान ही निकाल दी थी, जानते हो कितना दर्द हो रहा था, मगर पापा आप'ने तो जैसे मुझे मार डालने की कसम ही खा रखी थी. इतना कह कर जैसे ही रंजना ने अपनी चूत की तरफ देखा तो उसकी गांद फट गयी, खून ही खून पूरी चूत के चारो तरफ फैला हुआ था,खून देख कर वो रुन्वासि हो गयी. चूत फूल कर कुप्पा हो गयी थी. रुआंसे स्वर में बोली, "पापा आपसे कत्ती. अब कभी आप'के पास नहीं आउन्गी. जैसे ही रंजना जाने लगी सुदर्शन ने उसका हाथ पकड़ के अपने पास बिस्तर पर बिठा लिया और समझाया कि उस'के पापा ने उस'की सील तोड़ी है इस'लिए खून आया है. फिर सुदर्शन ने बड़े प्यार से नीट विलआयती शराब से अपनी बेटी की चूत सॉफ की. इसके बाद शराबी आय्यास पापा ने बेटी की चूत की प्याली मे कुछ पेग बनाए और शराब और शबाब दोनों का लुफ्त लिया. अब रंजना पापा से पूरी खुल चुकी है.उसे अपने पापा को बेटी चोद गंडुआ जैसे नामों से संबोधन कर'ने में भी कोई हिचक नहीं है. एंड्स शुरू कर दिय.तो दोस्तो इस प्रकार ये कहानी यही ख़तम होती है फिर मिलेंगे एक नई कहानी के साथ आपका दोस्त राज शर्मा
एंड
Raddi Wala paart--7
gataank se aage...................
Papa ke yun janwaron ki tarah pesh aane se Ranjna ki dard se jan to nikalne ko ho hi rahi thee magar ek labh use jaroor dikhayee diya, yaani lund andar tak uski choot main ghus gaya tha.Wo to chudwane se pahale chaah'tee hi ye thee ki kab lund pura ghuse aur wo mummy ki tarah maza loote. Magar maza abhi use naam matr bhi mahsoos naheen ho raha tha. Sah'sa hi Sudarshan kuchh der ke liye shaant ho kar dhakke maarna rok us'ke oopar let gaya aur use joro se apni baanhon main bheench kar aur tadatad uske mun'h par chummi kaat kaat kar mun'h se bhap si chhodta hua bola,"Ahh mazza aa gaya aaj, Ek dam kunvaaree choot hai tumharee.Apne papa ko tum'ne it'na achchha tohfa diya. Ranjna main aaj se tumhaara ho gaya." Tane hue mammon ko bhi bade pyaar se wo sah'laata jaa raha tha.Waise abhi bhi Ranjna ko choot mai bahut dard hota hua jan pad raha tha magar papa ke yun halke padne se dard ki maatra main kuchh maamooli sa fark to pad hi raha tha. Aur jaise hi papa kee chummi kaat'ne, choochiyaa masalne aur unhe sah'laane ki kriya tez hoti gayee waise hi Ranjna aanand ke saagar main utarti huee mah'soos karne lagi. Ab aahista aahista wo dard ko bhool kar chummi aur choochi maslaayee kee kriyaaon main jabardast aanand lootna prarambh kar chuki thee. Saara dard udanchhu hota hua use lagne laga tha. Sudarshan ne jab uske chehre par masti ke chinh dekhe to wo phir dheere dheere choot main lund ghusedta hua halke halke ghasse maarne par utar aaya. Ab wo Ranjna ki dard par dhyan rakhte hue bade hi aram se use chodne mai lag gaya tha.Uske kunware mammo ke to jaise wo peechhe hi pad gaya tha.Badi bedardi se unhe chat chat kar kabhi wo un par chummi kaat-ta to kabhi chochi ka angoor jaisa nipple wo hontho mai le kar choosne lagta. Choochi chooste choote jab wo hanfne lagta to unhe dono hatho mai bhar kar badi bedardi se masalne lagta tha.Nishchaye hii choochiyo ke choosne masalne ki harkaton se Ranjna ko jyada hi anand praapt ho raha tha.Us bechari ne to kabhi socha bhi na tha ki in do mammo mai aanand ka itna bada saagar chhipaa hoga. Is pratham chudai main jabki use jyaada hi kasht ho raha tha aur wo badi mushkil se apne dard ko jhel rahi thi magar phir bhi is kasht ke baawajood ek aisa aanad aur masti andar foot pad rahi thee ki wo apne pyaare papa ko pora ka pora apne andar samet lene ki koshish karne lagi thee. Kyonki pahalee chudai mai kasht hota hi hai isliye itni mast ho kar bhi Ranjna apni gaand aur kamar ko to chalane mai asmarth thi magar phir bhi is chudai ko jyada se jyda sukhdayak aur anand dayak banaane ke liye apni aur se wo poori tarah prayatnsheel thee. Ranjna ne papa ki kamar ko theek is tarah kas kar pakda hua tha jaise us din Jwala Devi ne chudte samay Birju ki kamar ko pakad rakha tha. Apni taraf se choot par kade dhakke marwane main bhi wo papa ko poori sahaayta kiye jaa rahi thee. Isi kaaran pal prati pal dhakke aur jyaada shaktishaali ho uthe the aur Sudarshan jor jor se haanfte hue patli kamar ko pakad kar janlewa dhakke maarta hua choot ki durgati karne par tul uthaa tha. Us'ke har dhakke par Ranjna karah kar zor se sisak padti thee aur dard se bachne ke liye wo apni gaand ko kuch oopar khiskaye jaa rahi thee. Yahaan tak ki uska sir palang ke sirhaane se takraane laga, magar is par bhi dard se apna bachav wo na kar saki aur apni choot mai dhakko ka dhamaka ghoonjta hua mahsoos karti rahi. Har dhakke ke saath ek nayee masti main Ranjna behal ho jati thee.Kuch samay baad hi uski haalat aisi ho gayee ki apne dard ko bhulaa Daala aur pratyek damdar dhakke ke saath hi us'ke mun'h se badi ajeeb se dabi huee aspasht kilkariyan khud-b-khud nikalne lagi, "oh papa ab maja aa raha hai. Maine aap'ko kunvaree choot ka tohfa diya to aap bhee to mujhe aisa maja dekar tohfa de rahe hai.Ab dekhna mummy se ismen bhee kaisa competetion kartee hoon.oH papa bataiye mummy kee lene men jyaada maja hai ya meree lene men?" Sudarshan Ranjna ki masti ko aur jyada badhane ki koshi main lag gaya. Waise is samay ki stithi se wo kaafi parichit hota jaa raha tha. Ranjna ki masti ki ot lene ke iraade se wo chodte chodte us'se poochhne laga, "Kaho meri jaan..Ab kya haal hai? Kaise lag rahe hain dhakkee..Pahlee baar to dard hota hi hai.Par mai tumhare dard se pighal kar tumhen is maje se vanchit to naheen rakh sak'ta tha na meri jaan, meree raanee, meree pyaaree." Uske honth aur galo ko buri tarah chuste hue,use joro se bheench kar upar lete lete zordar dhakke marta hua wo bol raha tha, bechaari Ranjna bhi use masti main bheench kar bojhil swar mai boli,"Bada maza a raha hai mere pyare saa.... papa,magar dard bhi bahut jyaada ho raha hai.." Fauran hi Sudarshan ne lund rok kar kaha,"To phir dhakke dheere dheere lagaaoon. Tumhe takleef main main naheen dekh sakta. Tum to bol'te bol'te ruk jaatee ho par dekho mai bolta hoon meree saj'nee, meree lugaai." Ye baat waise Sudarshan ne oopri man se hi kahi thee. Ranjna bhi jaanti thee ki wo mazaak ke mood main hai aur tez dhakke maarne se baaz nahee aayega, prantu phir bhi kahin wo choot se hi lund na nikaal le is Dar se wo cheekh hi to paRee, "naheen.. naheen.! aisa mat karna ! chaahe meri jan hi kyon na chali jaaye, magar tum dhakkon ki raftaar kam naheen hone dena.. It'na dard sah kar to ise apne bheetar liya hai. aahh maaro dhakkka aap mere dard ki parwaah mat karo. Aap to apne man ki karte jaao. jitni zor se bhi dhakka lagana chaho laga lo ab to jab apnee lugaai bana hee liya hai to mat ruko mere pyaare sainyaan.. main.. is samay sab kuchh bardaasht kar loongi.. ahh aai riii..pahale to mera imtehan tha aur ab aapka imtihan hai.Yah nai lugai puranee lugai bhula degee.Mazbooran apni gaand ko Ranjna uchhalne par utar aayee thee. Kuchh to dhakke pahale se hi jabardast wa taqatwar uski choot par pad rahe the aur us'ke yun masti main badbadaane, gaand uchhalne ko dekh kar to Sudarshan ne aur bhi jyaada joron ke saath choot par hamla bol diya. Har dhakka choot ki dhajjiyan udaye jaa raha tha. Ranjna dheere dheere karaahati huee dard ko jhelte hue chudai ke is mahaan sukh ke liye sab kuchh sahan kar rahi thee. Aur masti main halki aawaaz mai chilla bhi rahi thee, "aahh main mariii. Papa kaheen aap'ne meree phaaR ke to nahee rakh dee na? Zara dheere.. hai! Waahh! Ab zara jor se.. laga lo . aur lo.. waahh pyaare sach bada maza aa raha hai.. aah jor se maare jaao, kar do kabada meri choot ka." Is tarah ke shabd aur aawaaze na chahte hue bhi Ranjna ke mun'h se nikal pad rahi thee. Wo paagal jaisi ho gaye thee is samay. Wo dono hi ek doosre ko buri tarah nochne khasotne lage the. Saare dard ko bhool kar atyant ghamasan dhakke choot par lagwane ke liye har tarah se Ranjna koshish mai lagi hui thi. Dono jhadne ke kareeb pahunch kar badbadane lage. "ah main uudii ja rahi hoon raajja ye mujhe kya ho raha haii, meri ranii le aur le faadd doongaa hai kya choot haay teri ahh ooh" Aur is prakar drutgati se hoti hui ye chudai donon ke jhadne par ja kar samapt hui. Chudai ka porna maza lootne ke pashchat dono bistar par pad kar hanfne lage.Thodi der sustaane ke baad Ranjna ne balihaari nazaro se ap'ne papa ko dekha aur tuntunaate hue boli, "apne to meri jaan hi nikaal di thee, jaante ho kitna dard ho raha tha, magar papa aap'ne to jaise mujhe maar Daalne ki kasam hi khaa rakhi thee. Itna kah kar jaise hi Ranjna ne apni choot ki taraf dekha to uski gaand fat gayee, khoon hi khoon poori choot ke charo taraf failaa hua tha,khoon dekh kar wo runaasi ho gayee. Choot fool kar kuppa ho gayi thee. Ruaanse swar men boli, "papa aapse kattee. Ab kabhee aap'ke paas naheen aaungee. Jaise hee Ranjana jaane lagee Sudarshan ne uska hath pakad ke apne pas bistar par bitha liya aur samjhaaya ki us'ke papa ne us'kee seal toRee hai is'liye khoon aaya hai. Phir Sudarshan ne bare pyaar se neat vilaaytee sharaab se ap]nee betee kee choot saaf kee. Iske baad sharaabee ayyaas papa ne betee kee choot kee pyalee me kuch peg banaaye aur sharaab aur shabaab donon ka luft liya. Ab Ranjana papa se poori khul chukee hai.Use apne papa ko beti chod gandua jaise naamon se sambodhan kar'ne men bhee koi hichak naheen hai. Ends shuru kar diya. to dosto is tarah ye kakahaani yahi khatam hoti hai . dosto fir milenge ek nai kahaani ke saath aapka dost raj sharma
































































































































































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