Friday, April 30, 2010

Kamuk kahaaniya -"छोटी सी भूल --18

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"छोटी सी भूल --18


गतांक से आगे .........................


विवेक को इस रूप में मैने कभी नही देखा था. मुझे बहुत डर लग रहा था उसे यू हंसते देख कर. वैसे मैं उसे इतना जानती भी कहा थी. जब से संजय से शादी हुई थी तब से मुश्किल से कोई 5 या 6 बार ही उस से मेरी मुलाकात हुई थी. मेरा स्वाभाव वैसे भी ज़्यादा लोगो से मिलने जुलने का नही है. इसलिए जब कभी विवेक संजय के साथ घर आता भी था तो मैं अक्सर अपने बेडरूम में ही रहती थी.




मैने विवेक से पूछा, “विवेक क्या मैं जान सकती हूँ कि हम कहा जा रहे है” ?


विवेक ने मेरी और देखा और बोला, “आप बताओ भाभी कि आपको कहा जाना है, वही चल पड़ेंगे, आप की बात हम कैसे टाल सकते है”


“क्या मतलब ? तुम तो कह रहे थे कि संजय के बारे में बात करनी है, रेस्टोरेंट चलते है, कौन से रेस्टोरेंट ले जा रहे हो तुम मुझे” --- मैने हैरानी भरे शब्दो में पूछा.


“रेस्टोरेंट भी चलेंगे भाभी आप चिंता मत करो, पहले आपसे ज़रूरी बात करनी है” ---- विवेक ने मेरी और देखते हुवे कहा.


ये कह कर विवेक ने कार सड़क के एक तरफ रोक ली. रास्ता शुनशान था, और दूर दूर तक कोई भी नही दीख रहा था.


“विवेक ये क्या कर रहे हो, यहा रुकने का क्या मतलब है, और साफ साफ कहो की बात क्या है, मेरे पास ज़्यादा वक्त नही है” ----- मैने विवेक से थोड़ा गुस्से में कहा


“भाभी मुझे आपसे एक शिकायत है, बुरा ना माने तो कहूँ” ----- विवेक ने कहा


“क्या शिकायत है, मैं कुछ समझी नही” --- मैने हैरानी में पूछा.


उसकी बाते मुझे बहुत अजीब लग रही थी, वो मुझे मजाकिया मूड से घूर रहा था. उशके चेहरे पर अभी भी अजीब सी हँसी थी.


“भाभी आपने मेरे साथ बहुत नाइंसाफी की है, आपको ऐसा नही करना चाहिए था” ---- वो मेरी तरफ देख कर बोला


“क्या मतलब विवेक, आख़िर तुम कहना क्या चाहते हो ? और संजय के बारे में तुम्हे जो बात करनी थी, वो बात करो मेरे पास फालतू वक्त नही है” ---- मैने उसकी और देख कर कहा


“फालतू वक्त मेरे पास भी नही है भाभी, पता है मैं फरीदाबाद से यहा स्पेशल आपके लिए ही आया हूँ, और आप है कि ऐसी बाते कर रही है” ---- विवेक ने कहा


अब मुझे डर लगने लगा था, उशके इरादे मुझे ठीक नही लग रहे थे. उसकी कार मैं बैठने से पहले जो मुझे अंदेशा हो रहा था वो सच होता नज़र आ रहा था.


“ये क्या घुमा फिरा कर बात कर रहे हो विवेक साफ साफ क्यो नही कहते कि बात क्या है, और यहा से चलो इस शुनशान सड़क पर रुकने का क्या मतलब है” ----- मैने ज़ोर से पूछा

“चलो अब साफ साफ बात करता हूँ भाभी, आप ये बताओ कि संजय में क्या कमी थी कि आपने उसे इतना बड़ा धोका दिया, आपको ऐसा नही करना चाहिए था” ---- वो गंभीर हो कर बोला.


“तुम्हारा इस सब से कोई लेना देना नही है विवेक, ये मेरे और संजय के बीच की बात है, तुम कौन होते हो मुझ से ये सब पूछने वाले, क्या संजय ने तुम्हे यहा भेजा है” --- मैने उससे गुस्से में कहा

“लेना देना क्यो नही है भाभी, मैं संजय का ख़ास दोस्त हूँ, उशके भले बुरे की मुझे चिंता रहती है. आप ये बताओ कि क्यों आपने संजय को धोका दिया, मुझ से उसकी हालत देखी नही जाती, पता है वो दिन रात परेशान रहता है, आजकल क्लिनिक भी ठीक से नही चला पा रहा.” ---- विवेक ने कहा


ये सुन कर मेरी आँखो में आंशु भर आए और मैने पूछा, “क्या संजय बहुत ज़्यादा परेशान है”

“परेशान क्यों नही होगा भाभी, उसने आपको तीन-तीन लोगो के साथ आयाशी करते हुवे अपनी आँखो से देखा था, आप से ऐसी उम्मीद नही थी. आप बताओ तो सही कि क्या कमी थी संजय में जो कि आप इस हद तक गिर गयी” ---- विवेक ने पूछा.


ऐसा लग रहा था कि वो ऐसी बाते करके मुझे ह्युमिलियेट कर रहा है, क्योंकि ऐसी बाते करते वक्त उशके चेहरे पर गंभीरता के बजाए एक घिनोनी सी मुश्कान थी.


मैने कहा, “विवेक चलो यहा से, मुझे घर जाना है, मुझे किशी रेस्टोरेंट में नही जाना और ना ही तुम्हारे साथ कोई बात करनी है, यहा से जल्दी चलो”

“भाभी क्या ऐसा है कि आपका एक आदमी से मन नही भरता और आपको अपने चारो ओर भीड़ चाहिए, ताकि आप हवश का नंगा नाच खेल सकें” ---- वो अपने चेहरे पर वही बेकार सी हँसी ले कर बोला.

मैने अपने कानो पर हाथ रख लिए और ज़ोर से उशे कहा, “ विवेक बंद करो ये बकवास और चुप हो जाओ, तुम्हे शरम आनी चाहिए मुझ से ऐसी बाते करते हुवे”


वो मुश्कूराते हुवे बोला, “भाभी मैं तो संजय के लिए पूछ रहा था, जाकर उसे बताउन्गा की उसकी बर्बादी का कारण क्या है, आप डीटेल में बताओ ना कि कैसे आप उन लोगो के साथ गयी, कैसे उनके साथ सब कुछ किया, बताओ ना भाभी”


अब मुझे यकीन हो गया था कि वो जान बुझ कर ये बाते कर रहा था. बहुत कमीना नज़र आ रहा था उस वक्त वो

“देखो संजय से मेरा डाइवोर्स हो चुका है, इसलिए ना मैं अब उनकी पत्नी हूँ और ना तुम्हारी भाभी, मैं ये सोच कर तुम्हारे साथ आई थी कि तुम मुझे संजय के बारे में कुछ बताओगे. मैं बस जान-ना चाहती थी कि वो कैसे है. तुम बेकार की बाते कर रहे हो. मैं अब चलती हूँ” ----- मैने विवेक से कहा


“अरे नही रूको भाभी आप तो बुरा मान गयी मैं तो बस यू ही बात कर रहा था, वैसे आप को मेरी बात सुन-नि ही पड़ेगी, मैं यू ही फरीदाबाद से मुंबई नही आया हूँ” ---- वो गंभीर हो कर बोला.



“क्यो सुन-नि पड़ेगी विवेक, मेरी ऐसी कोई मजबूरी नही है समझे, और ये भाभी भाभी कहना बंद करो” ---- मैने गुस्से में कहा



तभी उसने ना जाने कहा से एक पिस्टल निकाल ली और पिस्टल को मेरी और करके बोला, “मेरा दीमाग खराब हो रखा है भाभी, आप या तो मेरी बात शुनोगी या फिर इस पिस्टल की सारी की सारी गोलिया आपके भेजे में डाल दूँगा, आप ही बताओ कि आपको क्या चाहिए”


“ये क्या पागलपन है विवेक इसे दूर हटाओ, मुझे डर लग रहा है” --- मैने विवेक से गुस्से में कहा

आज तक मैने पिस्टल को इतने नज़दीक से नही देखा था. वो पिस्टल को मेरी ओर करके मुश्कुरा रहा था.


“भाभी अगर आप चुपचाप कॉपरेट करेंगी तो मैं कुछ नही करूँगा, ये लीज़िए पिस्टल एक तरफ रख दी” --- विवेक पिस्टल को अपने पाँव के पास नीचे रखते हुवे बोला


मैने कहा “विवेक लगता है तुम अभी होश में नही हो, तुम अभी जाओ, बाद में आराम से बात करेंगे”


“भाभी बात तो आपको अभी करनी पड़ेगी, आप ये बताओ कि अगर संजय आपको सन्तुस्त नही कर पा रहा था तो हूमें बोल दिया होता हम आ जाते आपकी प्यास भुजाने” ---- वो बेशर्मी से बोला.


“ये क्या बकवास है विवेक तमीज़ से बात करो” --- मैने गुस्से में चील्ला कर कहा


“आप शायद भूल रही है कि, मेरे पास पिस्टल है, मैने वो एक तरफ रख दी है तो इश्का मतलब ये नही है कि आप मुझ से चील्ला कर बात करेंगी, मेरा दीमाग घूम गया ना तो अभी के अभी भेजा उड़ा दूँगा” ---- वो भयानक आवाज़ में बोला.


मेरी आँखो में आंशु आ गये, मैने विवेक से पूछा, “तुम ये सब क्यो कर रहे हो विवेक प्लीज़ मुझे जाने दो”



“जाने दूँगा, ज़रूर जाने दूँगा, पहले आप इस बात का जवाब दो कि मैं क्या मर गया था जो आप अजनबी लोगो के आगे अपना नाडा खोल कर झुक गयी, आपको पहले मुझे मोका देना चाहिए था, कसम से मैं आपकी सारी हवश मीटा देता” ---- वो मेरी और देखते हुवे बोला.



मैने अपनी गर्दन दूसरी तरफ घुमा ली, मेरी आँखो से लगातार आंशु बह रहे थे. उसकी बाते और ज़्यादा गंदी होती जा रही थी.

उस वक्त मैं यही सोच रही थी कि हे भगवान ये कौन से पापो की सज़ा मिल रही है मुझे की मुझे इतना कुछ सुन-ना पड़ रहा है. मैं तो मुंबई एक नयी शुरूवात करने आई थी पर फिर से मुझे मेरे पास्ट ने घेर लिया था.


“भाभी बोलिए ना आपने मुझे मोका क्यो नही दिया. संजय कह रहा था कि, आप किसी लड़के से अपने घर के पीछे की झाड़ियों में पता नही क्या क्या करवा रही थी. और तो और बाकी के कोई दौ लोग अपनी बारी का इंतेज़ार कर रहे थे, इतनी भूक थी सेक्स की तो मुझे बोल दिया होता मैं आपकी उन लोगो से ज़्यादा आछे से लेता पर आपने तो मुझे कोई मोका ही नही दिया. अब आप ही बताओ, है ना ये ग़लत बात. जो आपके अपने है वो प्यासे रहें और अजनबी लोग मज़ा करें ये कहा का इंसाफ़ है” ---- विवेक ने मेरे कंधे पर हाथ रख कर कहा.


“विवेक प्लीज़ चुप हो जाओ, मैं मार जाउन्गि, मैं खुद परेशान हूँ, मुझे और परेशान मत करो, मुझे मेरे किए की सज़ा मिल चुकी है, ये सब कहने की बजाए तुम मुझे गोली मार दो तो अछा है” --- मैने रोते हुवे कहा.



“गोली कब मारनी है वो मैं डिसाइड करूँगा भाभी अभी आपको मेरे कुछ सवालो का जवाब देना है” --- वो हाथ में पिस्टल उठा कर बोला.


“मेरे पास तुम्हारे इन बे-हुदा सवालो का कोई जवाब नही है. मैं जा रही हूँ, गोली मारना चाहते हो तो मार दो, आइ आम रेडी टू डाइ” ----- मैने उसकी और देख कर गुस्से में कहा


ये कह कर मैं कार का दरवाजा खोलने की कोशिस करने लगी, पर वो नही खुला, शायद अंदर से लॉक था.



“भाभी कहा जा रही हो, मेरी मर्ज़ी के बीना आप कहीं नही जाएँगी, आज आप मेरी मेहमान है.बहुत मज़े ले लिए लोगो ने आपके साथ, आज मेरी बारी है. चलिए मैं आपको अपने होटेल ले चलता हूँ. आपकी हवश भी मिट जाएगी और मेरी सालो की तमन्ना भी पूरी हो जाएगी” ---- विवेक ने हंसते हुवे कहा


मेरे पर्स में मेरा मोबाइल था, मैं ये सोच रही थी कि चुपचाप किसी तरह पोलीस को 100 नो पर फोन कर देती हूँ, पर उसका पूरा ध्यान मेरे उपर ही था. उपर से उसने मेरी तरफ पिस्टल तान रखी थी.



अचानक मैने देखा की उसका ध्यान दूसरी तरफ है, मैने फॉरन मोबाइल निकाला और 100 नंबर पर डाइयल किया.

पर मैने अभी डाइयल किया ही था की उसने मोबाइल छीन कर काट दिया और बोला, “ग़लत बात… भाभी, आप मुझे भी धोका दे रही है, लगता है, धोका देने में एक्सपर्ट हो गयी है आप. संजय ने तो कुछ नही कहा आपको पर मैं आपको आज सज़ा दूँगा. ये सज़ा इस बात की होगी कि आपने मुझे इग्नोर करके दूसरे लोगो को अपनी जवानी के मज़े दिए और मैं यू ही आपको दूर से देख देख कर अपना डिक मसलता रहा. आज वक्त आ गया है कि आपके होल्स को मैं भी चेक कर लूँ, देखूं तो सही की कितने गहरे होल है आपके. वैसे मैं एक बात बता दूं कि मेरा डिक बड़ा है और आपके जैसी स्लट के लिए ही बना है.


मेरे सबर का बाँध टूट गया और मैने गुस्से में उशके गाल पर इतनी ज़ोर से चाँटा मारा कि उसका चेहरा लाल हो गया. उसके हाथ में जो पिस्टल थीउसकी भी मैने कोई परवाह नही की. ज़्यादा से ज़्यादा वो क्या करता, मुझे गोली ही मारता. ऐसी जींदगी से मुझे मौत ज़्यादा प्यारी नज़र आ रही थी



“यू बिच, तुम्हारी इतनी हिम्मत मैं प्यार से बात कर रहा था और तुमने चाँटा मार दिया, अब तुम नही बचोगी, बहुत हो गयी प्यार से बाते” --- वो गुस्से में झल्ला कर बोला.



ये कह कर उसने मेरी कनपटी पर पिस्टल रख दी और बोला, “बता देती है क्या आराम से या फिर तेरा रेप करूँ. आज मैं किशी भी हद तक जा सकता हूँ”



मैने पिस्टल पकड़ कर कहा मारो गोली विवेक, तुम वेट किश बात का कर रहे हो, भूल जाओ कि मैं तुम्हारे जैसे नीच के झाँसे में आउन्गि. कम ऑन डू इट” मैने चील्ला कर कहा


पता नही मुझे क्या हो गया था. मैं मौत के डर से आज़ाद हो गयी थी. किशी ने सच ही कहा है कि जब इंशान मौत के डर को भुला देता है तो कुछ भी कर सकता है. ऐसा ही कुछ मेरे साथ हो रहा था.


विवेक ने अचानक मेरे सर पर ज़ोर से वार किया और मैं चक्कर खा कर बेहोश हो गयी. बेहोश होते होते मैने अपने सर पर हाथ लगा कर देखा. मेरे सर से खून बह रहा था. अगले ही पल मैं गहरी नींद में सो गयी.




जब मेरी आँख खुली तो मैने खुद को विवेक के हाथो में झूलते हुवे पाया. वो मुझे दोनो हाथो में उठा कर चले जा रहा था. मैने चारो तरफ देखा तो मेरे रोंगटे खड़े हो गये. हर तरफ झाड़िया ही झाड़िया थी. वो मुझे किशी जंगल में ले आया था.


मैने चील्ला कर कहा, “छ्चोड़ो मुझे विवेक, ये कहा ले आए मुझे, जल्दी छ्चोड़ो वरना मुझ से बुरा कोई नही होगा”


“ये जंगल है भाभी, यहा चारो तरफ झाड़िया ही झाड़िया है, आपको तो झाड़ियों में मरवाने का बड़ा शॉंक है ना, अपने घर के पीछे झाड़ियों में ही तो करवा रही थी उस दिन आप उन लोगो से. इसलिए मैं आपको जंगल में ले आया. क्या पता आपका मन बन जाए. देख लीज़िए और अपनी मन पसंद झाड़िया चुन लीज़िए, वही जाकर आपकी चूत मारूँगा” ---- वो चलते-चलते हंसते हुवे बोला.


मैं उसकी बाहों में ज़ोर ज़ोर से छटपत्ता रही थी.पर उसकी भुजाओ में काफ़ी बल था. वो बड़ी मजबूती से मुझे थामे हुवे था.


उस वक्त मुझे बहुत डर लग रहा था. मेरे हाथ पाँव काँप रहे थे. ये सब इसलिए था क्योंकि मैं नही चाहती थी कि मेरे साथ रेप हो.

रेप किसी भी लड़की के लिए मौत से भी बड़ी सज़ा होती है. रेप के बाद औरत की डिग्निटी और उशके औरत होने का गर्व उसकी जींदगी से छीन जाता है.

मैने कभी सपने में भी नही सोचा था कि मेरे साथ रेप होगा, पर मैं उस वक्त ऐसे हालात में थी कि मेरा बचना नामुमकिन नज़र आ रहा था.



विवेक ने मुझे एक घनी झाड़ी के पीछे ले जा कर पटक दिया. मेरा मूह सीधा ज़मीन पर लगा. ज़मीन पर घास नही थी और चारो तरफ मिट्टी ही मिट्टी थी. जैसे ही मेरा मूह ज़मीन पर लगा मेरी आँखो में मिट्टी घुस्स गयी.


शाम का वक्त था, अंधेरे की चादर चारो तरफ फैलने लगी थी. बस हल्की हल्की रोशनी बाकी थी. उपर से शुनशान जंगल की वो बड़ी बड़ी झाड़ियाँ. ऐसा लग रहा था कि जैसे किसी हॉरर मूवी का डरावना सीन चल रहा हो. इतना भयानक सीन मैने जींदगी में नही देखा था.


पर मैने मन ही मन में हिम्मत ना हारने का फैंसला किया. मैं आखरी दम तक लड़ना चाहती थी. रेप मुझे किसी भी हालत में मंजूर नही था.



मैने उपर की और करवट ली तो देखा की विवेक अपनी पॅंट उतार रहा है.

जैसे ही उसने अपनी पॅंट उतार कर एक तरफ रखी मैने अपनी राइट लेग से ज़ोर से उशके टेस्टिकल पर परहार किया.


“ऊऊहह, साली कामिनी, कुतिया तेरी इतनी हिम्मत, आज तक किसी की मेरे साथ ऐसा करने की हिम्मत नही हुई” ---- वो दर्द से चील्लते हुवे बोला और मेरे बाल पकड़ लिए.


“विवेक जो तुम चाहते हो, वो मैं कभी नही होने दूँगी” ----- मैने ज़ोर से चील्ला कर कहा.



हां हां तुझे तो बस वो कमीना बिल्लू ही चाहिए. बिल्लू मर चुका है मेरी जान, आओ ना अब मैं तुम्हारी प्यास भुजाता हूँ. ख़ुसी से नही दोगि तो ज़बरदस्ती दोगि, देनी तो तुम्हे पड़ेगी ही, सोच लो कैसे देना चाहती हो.



मैने उसके मूह पर थूक दिया

और अगले ही पल उसने मेरे चेहरे पर थप्पड़ बर्शाने शुरू कर दिए.

वो बहुत देर तक मेरे गाल पर ठप्पड़ो की बोछार करता रहा.

उसने मुझे इतना मारा कि मैं चक्कर खा कर गिर गयी.



उसने मुझे घुमा कर अपने नीचे उल्टा कर दिया.

मैं पेट के बल मिट्टी पर पड़ी थी, और वो मेरे उपर खड़ा था.


उसने मेरी जीन्स के बटन खोल कर उसे नीचे सरका दिया और मेरे नितंबो पर ज़ोर से थप्पड़ मार कर बोला, “पहले तुम्हारी गांद ही मारता हूँ,……. आई मुझ पर थूकने वाली”


मेरा शरीर जवाब दे चुका था पर फिर भी मैने उठने की कोशिस की पर उसने मेरी पीठ पर एक लात मारी और मैं धदाम से ज़मीन पर वापस गिर गयी.

इस बार मेरा माथा सीधा धूल भरी ज़मीन से जा टकराया और मेरी आँखो में और ज़्यादा मिट्टी भर गयी.


ऐसा लग रहा था कि अब मेरा रेप हो कर रहेगा.


मैने मन ही मन में कहा, हे भगवान अगर ये मेरे पापो की सज़ा है तो सच कहती हूँ कि बहुत बड़ी सज़ा है, मुझे नही लगता कि किसी को भी ऐसी सज़ा मिलनी चाहिए.


विवेक मेरे उपर लेट गया और मेरे बालो को पकड़ कर खींचते हुवे बोला, लात मारती है मेरे लंड पर हूउ……, देख मैं तेरी गांद कैसे फाड़ता हूँ.



मुझे कुछ समझ नही आ रहा था कि अब क्या करूँ. मैं बस वाहा पड़े पड़े छटपटा रही थी.

मैने एक आखरी कोशिस की.

मैने उससे रोते हुवे अपील की, “विवेक प्लीज़ रुक जाओ, ऐसा मत करो, तुम तो ऐसे नही थे, तुम्हे आज क्या हो गया है, तुम मुझे गोली मार दो पर ये सब मत करो प्लीज़, मैं मानती हूँ मैने संजय को धोका दिया है, पर….”


उसके बाद कुछ ऐसा हुवा जिसकी मैने सपने में भी कल्पना नही की थी. मुझे वाहा किसी और की आवाज़ शुनाई दी

“ये ऐसा ही है ऋतु, तुम इस हरामी को नही जानती ये ऐसा ही है”


ये आवाज़ सुन कर मैं एक दम से चोंक गयी, क्योंकि वो मुझे जानी पहचानी सी लगी. मैं मन ही मन में सोच रही थी कि जिसकी ये आवाज़ है उसका वाहा होना नामुमकिन है.

“कौन हो तुम छ्चोड़ो मुझे वरना” --- ये विवेक की आवाज़ थी. वो गिड़गिदा रहा था.


अचानक मुझे महसूष हुवा कि विवेक मेरे उपर नही है. उसे मेरे उपर से खींच लिया गया था.

फिर मैने महसूष किया कि कोई मेरी जीन्स उपर चढ़ा रहा है.

मुझे बचाने वाहा जंगल में कौन आ गया, यही सवाल मेरे मन में घूम रहा था.




मैने गर्दन घुमा कर देखा. अभी तक पूरी तरह से अंधेरा नही हुवा था और रोशनी एक तरह से ठीक ठाक थी. पर मेरी आँखो में इतनी मिट्टी घुस्सी हुई थी कि, मई ठीक से देख ही नही पाई के वाहा विवेक के अलावा दूसरा कौन है


मुझे बस इतना ही दीखा कि कोई विवेक को बुरी तरह मार रहा है. विवेक मेरे पास ही पड़ा हुवा मार खा रहा था.


आअहह नो….विवेक की चीन्ख पूरे जंगल में गूँज रही थी.


“साले तेरी इतनी हिम्मत आज तुझे जींदा नही छ्चोड़ूँगा मैं” --- फिर से वही आवाज़ आई

मैं इतनी उत्शुक हो रही थी कि फॉरन हिम्मत करके वाहा से उठी और मैने अपनी आँखो पर से मिट्टी हटा कर देखने की कोशिश की.


जो मैने देखा उस पर विश्वास करना मुश्किल था.


मेरी आँखो के सामने बिल्लू, विवेक को बुरी तरह मार रहा था.

उसे वाहा देख कर मुझे अपनी आँखो पर विश्वास नही हो रहा था. मैं बस उसे एक टक देखे जा रही थी.


वो जींदा कैसे है ? वो वाहा कैसे आया ? मुंबई में वो क्या कर रहा है ?

ये कुछ ऐसे सवाल थे जो मेरे दिमाग़ में बिल्लू को वाहा देख कर एक दम से घूम गये


यही कल की सबसे चोंकाने वाली घटना थी।

क्रमशः........................
.........








आपका दोस्त राज शर्मा
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा

(¨`·.·´¨) Always
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(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
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