Saturday, April 24, 2010

माँ बेटे की कहानिया -माँ का दुलारा --5

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माँ का दुलारा पार्ट--5


सावधान........... ये कहानी समाज के नियमो के खिलाफ है क्योंकि हमारा समाज मा बेटे और भाई बहन के रिश्ते को सबसे पवित्र रिश्ता मानता है अतः जिन भाइयो को इन रिश्तो की कहानियाँ पढ़ने से अरुचि होती हो वह ये कहानी ना पढ़े क्योंकि ये कहानी एक मा बेटे के सेक्स की कहानी है
गतान्क से आगे...............

"अरे तू जाग गया! मैं तुझे जगाना नही चाहती थी पर क्या करूँ बेटे, सुबहा जागी तो तेरा लंड इतना कस कर खड़ा था कि मुझसे रहा नही गया." मैंने मोम को बाँहों मे भरा और नीचे से ही धक्के मारने लगा. मोम पलट कर मुझे उपर लेने की कोशिश करने लगी तो मैंने कहा

"ममी, ऐसे ही चोद ना मुझ पर चढ़. कर, बहुत मज़ा आ रहा है" मोम मुझपर चढ़े चढ़े अब ज़ोर से मुझे चोदने लगी. मुझे चूमने के लिए उसे नीचे झुकना पड़. रहा था. उसके लटकते स्तन मेरी छाती पर अपनी घुंडियाँ चूबो रहे थे. मैंने मोम को पास खींचकर उसका निपल मुँह मे ले लिया और हल्के हल्के चबाते हुए चूसने लगा.

मोम ने मन भर कर मुझे चोदा और झाड़. कर लास्ट मुझपर पड़ी रही. मेरा ज़ोर से खड़ा लंड अब भी प्यासा था इसलिए मैंने अब उसे नीचे पटककर उसपर चढ़ कर. चोद डाला और झाड़. कर ही रुका.

तृप्त होकर मोम उठी और गाउन पहनकर घर का काम करने की तैयारी करने लगी. मुझे बोली की सोया रहूं, कोई जल्दी नही है. मैं फिर सो गया. नींद खुली तो दस बज गये थे.

उस सुबहा को सब कुछ बदला बदला लग रहा था. ऐसा लगता था कि स्वर्ग ज़मीन पर उतर आया है. मों भी बहुत खुश थी. बार बार मुझे चूमा लेती. वह नहा चुकी थी. मैं नहा कर वापस आया तो मेरे लिए मेरी पसंद की डिशस बना रही थी. पहले उसने मुझे ग्लास भर कर बदाम डला दूध दिया. मैंने उसे देखा तो थोड़ी शरमा गयी

"अब तुझे रोज दो ग्लास दूध पीना चाहिए बेटे." मैंने कहा

"मोम मैं तो चार ग्लास पी लूँ अगर तुम अपना दूध पिलाओ." और गाउन के उपर से ही उसके स्तनों को चूमने लगा.

"चल बदमाश, बचपन मे पिया वह काफ़ी नही था क्या!" मों ने कहा. मैं उससे लिपट गया. मुझे उससे दूर रहा ही नही जा रहा था, एक दीवानापन सा सवार हो गया था मुझपर.

"अभी नही बेटे, दिन मे ढेर से काम करने हैं. कोई कभी भी आ सकता है. अभी काम वाली बाई आती होगी. अब लाड. दुलार रात को. और ज़रा सब्र कर, तू आदमी है कि घोड़.आ, इतनी बार करके भी तेरा मन नही भरा" मोम ने मुझे दूर धकेलकर कहा.

"दोपहर को माँ?" मैंने बड़ी आशा से पूछा. मोम ने सिर हलाकर मना किया. हँस रही थी जैसे मुझे चिढ़ा रही हो. फिर भी मैं मोम के पीछे पीछे दुम हिलाता घूमता रहा. बार बार उससे पीछे से चिपक जाता. कल उसके नितंबों को देखा था पर मन भर कर उन्हे छू नही पाया था. इसलिए पीछे से छिपताकर उनपर मैं अपना खड़ा लंड रगड़.आता और मोम को पीछे से बाँहों मे भरकर उसकी चुचियाँ दबाने लगता. वह बार बार मुझे झिड़कती पर मैं फिर आकर चिपेट जाता.

उसे अच्छा लग रहा था पर दिन मे यहा करते हुए शायद वह सकुचा रही थी. अंत मे मेरे कान पकड़कर उसने मुझे अपने कमरे मे बंद कर दिया.
दोपहर को खाना खाने के बाद हमने कुछ देर टीवी देखा. मुझे नींद आ रही थी इसलिए मैं मोम की गोद मे सिर रखकर सो गया. बहुत सालों के बाद मैं यह कर रहा था. मोम भी प्यार से मेरे बालों मे उंगलियाँ चला रही थी.


पर मेरा लंड मुझे चुप रहने दे तब ना. मोम के बदन से आती खुशबू ने मुझे उत्तेजित कर दिया. मैंने पलट कर गाउन के उपर से ही अपना मुँह मोम की जांघों के बीच दबा दिया. मोम की सुगंध मुझे मस्त कर रही थे. ज़रूर उसकी बुर की खुशबू थी. मोम भी तो उत्तेजित थी. मैने अपना सिर और दबा कर मोम की गोद मे रगड़ने लगा. मोम को गुदगुदी हुई तो वह हँसने लगी.

"छोड़. अनिल, मैंने कहा ना अभी नहीं, कैसा उतावला लड़का है" बेल बजी तो मोम ने मुझे ज़बरदस्ती अलग किया. आँखे दिखाकर बोली

"अब जा और सो जा. शाम को घूमने जाएँगे" मैं कमरे मे गया पर सोया नहीं. लंड खड़ा था. मोम का इंतजार करता रहा. पर लंड को हाथ भी नही लगाया. अब मूठ मारना पाप था मेरे लिए, मेरी प्यारी मोम जो थी.

बाई जाने के बाद आधे घंटे बाद मोम आई. मेरी हालत देखकर मुझे डाँटने लगी. पर यहा झूठ मूठ का डांटना था. उसकी भी हालत वही थी जो मेरी थी. पर वह तैयार नही हो रही थी.

"अभी नही अनिल, कोई आ जाएगा तो? कपड़े पहनना मुश्किल हो जाएगा." मैंने कहा

"मामी, कपड़े मत उतारो, बस पैंटी उतार दो. मैं तुम्हारी चूत चुसूँगा. कल से तरस रहा हू." मोम ने कहा

"तू मानेगा नहीं, चल जल्दी से कर ले जो करना हो" और गाउन उपर करके अपनी पैंटी उतार दी. उतारते समय उसकी गोरी चिकनी बुर मुझे दिखी. मोम फिर पलंग पर मेरे साथ लेट गयी. मैंने उठ कर मोम का गाउन उपर किया और उसकी जांघे चूमने लगा. फिर उसकी टांगे अलग करा के पास से उसके बर को देखने लगा. मेरा दिल ज़ोर से धड़क रहा था, अपनी जननी की चूत मैं पहली बार ठीक से देख रहा था.

मोम की बुर से पानी बहाना शुरू हो गया था. जांघे भी गीली थीं. मुझे इतनी देर से तरसा रही थी पर खुद भी मस्ती मे थी. मैंने मोम की बुर के पपोते अलग किए और अंदर की लाल रसती म्यान को देखा. मेरी उंगली गीली हो गयी थी. मैंने उसे चखा. उस चिपचिपे रस ने मुझ पर ऐसा जादू किया कि मैं मोम की टाँगों के बीच लेट कर उसकी बुर चाटने लगा. मोम सिसकने लगी

"बहुत अच्छा लगता है बेटे, और चाट ना, ज़रा उपर, दाने के पास" याने क्लिट पर जीभ चलाने को कह रही थी. मुझे क्लिट दिखा नही तो मैंने फिर मोम की बुर उंगलियों से खोली. उपर दो मांसल पपोतों के बीच छिपा ज़रा सा मकई का दाना मुझे दिखा. उसपर मैं जीभ चलाने लगा. एकदम हीरे जैसा कड़ा दाना था. मोम अब पैर फेंकने लगी.

"बहुत अच्छा कर रहा है रे मेरे लाल, और कर ना, खूब देर कर" मोम की बुर मैंने मन भर कर चॅटी, पूरी जीभ निकालकर उपर से नीचे तक . बीच बीच मे उसके क्लिट को चाटता और फिर उसके रस को चूसने लगता. बीच मे एक दो बार उसकी बुर मे अपनी जीभ डाल कर भी चोदा. मोम की बुर का कसैला खारा रस मेरे होशोहवास उड़ा रहा था. मैं बार बार सोचता

"यही है वह प्यारी गुफा जिससे मैं निकाला था" दस मिनिट मे मोम झाड़. गयी. मेरे मुँह मे उसने ऐसी रस की धार छोड़ी कि मज़ा आ गया. जब मैं उसकी चूत और जांघे अपनी जीभ से पूरी सॉफ करके उठा तो उसने मुझे अपनेसे चिपटा लिया. वह हांफ रही थी. फिर बोली

"अनिल, कैसा करता है बेटे, मुझे पागल कर देगा. तुझे अच्छा लगा बेटे? गंदा तो नही लगा?" मैंने कहा

"माँ, तुम्हारी चूत मे से तो अमृत निकलता है" मोम खुश हो गयी

"सच? या सिर्फ़ मेरा मन रखने को कह रहा है"

"सच माँ, अब मैं रोज कई बार ये रस पीने वाला हू. तुम ही देख लो कि मेरा क्या हाल है तुम्हारा शहद चाट कर" मोम ने टटोल कर मेरा लंड पकड़ा.

"अरे यह तो बेकाबू हो गया है. इस बेचारे का तो मैंने कुछ किया ही नही अनिल. चल तू उलटी ओर से आ जा. मेरा मन नही भरा अभी. तू मेरा रस पी, मैं इस मस्त बदमाश की मलाई निकालती हू. कल से तरस रही हू." मैं मा के पैरों की ओर मुँह करके लेट गया. मोम ने टांगे फैला दी कि मैं ठीक से उसे चाट सकूँ. मैं मों की जांघे पकड़कर उसकी बुर मे मुँह मारने लगा. मोम मेरे लंड से खेल रही थी. बार बार उसे चूमती, अपने गालों पर रगदती और कहती

"कितना जवान हो गया है रे तू, गन्ने जैसा रसीला है मेरे मुन्ने का मुन्ना, लगता है खा कर निगल जाउ" और मुँह मे पूरा भरकर चूसने लगी. मैं धक्के मारता हुआ मोम का मुँह चोदते हुए उसकी बुर चूसने लगा.
मोम बस मेरे लंड से खेलती रही, उसे तरह तरह से चुसती रही, उसपर अपनी जीभ रगड़ कर मुझे सताती रही. आख़िर जब वह दो बार झाड़. चुकी तब मोम ने मेरे लंड को ज़ोर से गन्ने की तरह चूस कर मुझे भी झाड़ा दिया. मुझे लगा था कि वह शायद मेरा लंड मुँह से निकाल दे पर उसने मेरे वीर्य की आखरी बूँद निचोड़. कर ही दम लिया.

मैं मोम से चिपेट कर लेट गया. वह कुछ बोली नही पर उसके चेहरे के भाव से सॉफ था कि वह बहुत खुश है. मुझे फिर झपकी लग गयी और शाम को ही खुली जब मोम ने मुझे हिलाकर जगाया. वह साज धज कर तैयार थी.

"चल उठ, बाहर नही जाना है क्या घूमने?" मैं अंगड़ाई लेकर बोला.

"माँ, बाहर जाकर क्या करेंगे? यही घर मे रहो ना, मेरा मन नही भरा अब तक" मोम बोली

"अरे कुछ तो सब्र कर. कल से लगा हुआ है. चल अब बाहर" उसने आज एक हल्की नीली साड़ी और मैचिंग हाफ़ स्लिव ब्लओज़ पहना था. बालों को जुड़े मे बाँध लिया था. बहुत खूबसूरत लग रही थी.

2

मैं तैयार हुआ. बाहर आया तो मोम सोफे पर बैठी पैर क्रास करके हिलाते हुए मेरा इंतजार कर रही थी. उसकी बाथरुम स्लीपर उसकी उंगलियों से लटक कर हिल रही थी. यहा देखकर मुझसे रहा नही गया. मों के पास मैं नीचे बैठ गया और उसका पैर हाथ मे भर लिया. फिर चूमने लगा. पैरों के साथ साथ मैंने उसकी चप्पल के भी चुममे ले लिए. उसके दोनों पाव मैंने छाती से लगा लिए.

"अरे यहा क्या कर रहे हो बेटे? छी, मैली है मेरी चप्पल, दो तीन दिन से धोयि भी नहीं." मुझे हटाने की कोशिश करते हुए वह बोली.

"करने दो माँ, अच्छा लगता है." कहकर मैं उसके पैर और चप्पल को चूमता ही रहा.

"चल दूर हट, कैसा पागल है रे तू, करना ही है तो बाद मे करना, ऐसी गंदी चप्पल के साथ नहीं" मोम ने मुझे खींच कर अलग कर ही दिया. वह मेरी ओर अजीब तरह से देख रही थी, जैसे उसे समझ मे ना आ रहा हो कि उसके इस आशिक बेटे के पागलपन का कहाँ ख़ात्मा होगा. वह बाहर जाने के सैंडल पहनने को उठाने लगी तो मैंने पूछा

"माँ, मैं पहना दूं?" वह मेरी ओर देखती रही फिर मुस्काराकर हाँ कर दी. मैं भाग कर उसकी काली हाई हिल सैंडल उठा लाया. मोम की स्लीपर निकालकर मैंने बड़े प्यार से उसे वो सैंडल पहनाए. मोम ने मुझे बाँहों मे भरकर चूमकर कहा
क्रमशः.




माँ का दुलारा paart--5

gataank se aage...............

"are tu jaag gayaa! mai tujhe jagaana nahi chaahati thi par kya karum bete, subaha jagi to tera lund itana kas kar khad.a tha ki mujhase raha nahi gaya." maimne mom ko baamhom me bhara aur niche se hi dhakke maarane laga. mom palat kar mujhe upar lene ki koshish karane lagi to maimne kaha

"mami, aise hi chod na mujh par chadh. kar, bahut maja a raha hai" mom mujhapar chadh.e chadh.e ab jor se mujhe chodane lagi. mujhe chumane ke liye use niche jhukana pad. raha tha. usake latakate stan meri chaati par apani ghumdiyaam chubho rahe the. maimne mom ko paas khimchakar usaka nipal mumha me le liya aur halke halke chabaate hue chusane laga.

mom ne man bhar kar mujhe choda aur jhad. kar last mujhapar pad.i rahi. mera jor se khad.a lund ab bhi pyaasa tha isaliye maimne ab use niche patakakar usapar chadh.akar chod daala aur jhad. kar hi ruka.

trupt hokar mom uthi aur gaaun pahanakar ghar ka kaama karane ki taiyaari karane lagi. mujhe boli ki soya rahum, koi jaldi nahi hai. mai fir so gaya. nimd khuli to das baj gaye the.

us subaha ko sab kuch badala badala lag raha tha. aisa lagata tha ki swarg jamin par utar aaya hai. mom bhi bahut khush thi. baar baar mujhe chuma leti. wah naha chuki thi. mai naha kar waapas aaya to mere liye meri pasamd ki dishes bana rahi thi. pahale usane mujhe glaas bhar kar badaama dala dudh diya. maimne use dekha to thod.i sharama gayi

"ab tujhe roj do glaas dudh pina chaahiye bete." maimne kaha

"mom mai to chaar glaas pi lum agar tuma apana dudh pilaao." aur gaaun ke upar se hi usake stanom ko chumane laga.

"chal badamaash, bachapan me piya wah kaafi nahi tha kyaa!" mom ne kaha. mai usase lipat gaya. mujhe usase dur raha hi nahi ja raha thaa, ek diwaanaapan sa sawaar ho gaya tha mujhapar.

"abhi nahi bete, din me dher se kaama karane haim. koi kabhi bhi a sakata hai. abhi kaama waali baai aati hogi. ab laad. dulaar raat ko. aur jara sabra kar, tu aadami hai ki ghod.aa, itani baar karake bhi tera man nahi bharaa" mom ne mujhe dur dhakelakar kaha.

"dopahar ko maam?" maimne bad.i aasha se pucha. mom ne sir halaakar mana kiya. hams rahi thi jaise mujhe chidh.a rahi ho. fir bhi mai mom ke piche piche duma hilaata ghumata raha. baar baar usase piche se chipak jaata. kal usake nitambom ko dekha tha par man bhar kar unhe chu nahi paaya tha. isaliye piche se chipatakar unapar mai apana khad.a lund ragad.ata aur mom ko piche se baamhom me bharakar usaki chuchiyaam dabaane lagata. wah baar baar mujhe jhid.akaarati par mai fir aakar chipat jaata.

use achcha lag raha tha par din me yaha karate hue shaayad wah wah sakucha rahi thi. amt me mere kaan pakad.akar usane mujhe apane kamare me bamd kar diya.
dopahar ko khaana khaane ke baad hamane kuch der tivi dekha. mujhe nimd a rahi thi isaliye mai mom ki god me sir rakhakar so gaya. bahut saalom ke baad mai yaha kar raha tha. mom bhi pyaar se mere baalom me umgaliyaam chala rahi thi.


par mera lund mujhe chup rahane de tab na. mom ke badan se aati khushabu ne mujhe uttejit kar diya. maimne palat kar gaaun ke upar se hi apani mumha mom ki jaamghom ke bich daba diya. mom ki sugamdh mujhe mast kar rahi the. jarur usaki bur ki khushabu thi. mom bhi to uttejit thi. mai apana sir aur daba kar mom ki god me ragad.ane laga. mom ko gudagudi hui to wah hamsane lagi.

"chod. anil, maimne kaha na abhi nahim, kaisa utaawala lad.aka hai" bel baji to mom ne mujhe jabaradasti alag kiya. aamkhe dikhaakar boli

"ab ja aur so ja. shaama ko ghumane jaayemge" mai kamare me gaya par soya nahim. lund khad.a tha. mom ka imtajaar karata raha. par lund ko haath bhi nahi lagaaya. ab muththa maarana paap tha mere liye, meri pyaari mom jo thi.

baai jaane ke baad aadhe ghamte baad mom aai. meri haalat dekhakar mujhe daamtane lagi. par yaha jhuth muth ka daamtana tha. usaki bhi haalat wahi thi jo meri thi. par wah taiyaar nahi ho rahi thi.

"abhi nahi anil, koi a jaayega to? kapad.e pahanana mushkil ho jaayega." maimne kaha

"mami, kapad.e mat utaaro, bas paimti utaar do. mai tumhaari chut chusumga. kal se taras raha hum." mom ne kaha

"tu maanega nahim, chal jaldi se kar le jo karana ho" aur gaaun upar karake apani paimti utaar di. utaarate samay usaki gori chikane bur mujhe dikhi. mom fir palamg par mere saath let gayi. maimne uth kar mom ka gaaun upar kiya aur usaki jaamghe chumane laga. fir usaki taamge alag kara ke paas se usake bur ko dekhane laga. mera dil jor se dhad.ak raha thaa, apani janani ki chut mai pahali baar thik se dekh raha tha.

mom ki bur se paani bahana shuru ho gaya tha. jaamghe bhi gili thim. mujhe itani der se tarasa rahi thi par khud bhi masti me thi. maimne mom ki bur ke papote alag kiye aur amdar ki laal risati myaan ko dekha. meri umgali gili ho gayi thi. maimne use chakha. us chipachipe ras ne mujh par aisa jaadu kiya ki mai mom ki taamgom ke bich let kar usaki bur chaatane laga. mom sisakane lagi

"bahut achcha lagata hai bete, aur chaat naa, jara upar, daane ke paas" yaane klit par jibh chalaane ko kaha rahi thi. mujhe klit dikha nahi to maimne fir mom ki bur umgaliyom se kholi. upar do maamsal papotom ke bich chipa jara sa makai ka daana mujhe dikha. usapar mai jibh chalaane laga. ekadama hire jaisa kad.a daana tha. mom ab pair femkane lagi.

"bahut achcha kar raha hai re mere laal, aur kar naa, khub der kar" mom ki bur maimne man bhar kar chaati, puri jibh nikaalakar upar se niche tak . bich bich me usake klit ko chaatata aur fir usake ras ko chusane lagata. bich me ek do baar usaki bur me apani jibh daal kar bhi choda. mom ki bur ka kasaila khaara ras mere hoshohawaas ud.a raha tha. mai baar baar sochata

"yahi hai wah pyaari gufa jisase mai nikala thaa" das minit me mom jhad. gayi. mere mumha me usane aisi ras ki dhaar chod.i ki maja a gaya. jab mai usaki chut aur jaamghe apani jibh se puri saaf karake utha to usane mujhe apanese chipata liya. wah haamf rahi thi. fir boli

"anil, kaisa karata hai bete, mujhe paagal kar dega. tujhe achcha laga bete? gamda to nahi lagaa?" maimne kaha

"maam, tumhaari chut me se to amrut nikalata hai" mom khush ho gayi

"sach? ya sirf mera man rakhane ko kaha raha hai"

"sach maam, ab mai roj kai baar ye ras pine waala hum. tuma hi dekh lo ki mera kya haal hai tumhaara shahad chaat kar" mom ne tatol kar mera lund pakad.a.

"are yaha to bekaabu ho gaya hai. is bechaare ka to maimne kuch kiya hi nahi anil. chal tu ulati or se a ja. mera man nahi bhara abhi. tu mera ras pi, mai isa mast badamaash ki malaai nikaalati hum. kal se taras rahi hum." mai ma ke pairom ki or mumha karake let gaya. mom ne taamge faila di ki mai thik se use chaat sakum. mai mom ki jaamghe pakad.akar usaki bur me mumha maarane laga. mom an mere lund se khel rahi thi. baar baar use chumati, apane gaalom par ragad.ati aur kahati

"kitana jawaan ho gaya hai re tu, ganne jaisa rasila hai mere munne ka munnaa, lagata hai kha kar nigal jaaum" aur mumha me pura bharakar chusane lagi. mai dhakke maarata hua mom ka mumha chodate hue usaki bur chusane laga.
mom bas mere lund se khelati rahi, use taraha taraha se chusati rahi, usapar apani jibh ragad.akar mujhe sataati rahi. aakhir jab wah do baar jhad. chuki tab mom ne mere lund ko jor se ganne ki taraha chus kar mujhe bhi jhad.a diya. mujhe laga tha ki wah shaayad mera lund mumha se nikaal de par usane mere virya ki aakhari bumd nichod. kar hi dama liya.

mai mom se chipat kar let gaya. wah kuch boli nahi par usake chehare ke bhaav se saaf tha ki wah bahut khush hai. mujhe fir jhapaki lag gayi aur shaama ko hi khuli jab mom ne mujhe hilaakar jagaaya. wah saj dhaj kar taiyaar thi.

"chal uth, baahar nahi jaana hai kya ghumane?" mai amgad.aai lekar bola.

"maam, baahar jaakar kya karemge? yahi ghar me raho naa, mera man nahi bhara ab tak" mom boli

"are kuch to sabra kar. kal se laga hua hai. chal ab baahar" usane aaj ek halki nili saad.i aur maichimg haaf sliv blaauz pahana tha. baalom ko jud.e me bamdh liya tha. bahut khubasurat lag rahi thi.

2

mai taiyaar hua. baahar aaya to mom sofe par baithi pair kraa~ms karake hilaate hue mera imtajaar kar rahi thi. usaki baatharuma slipar usaki umgaliyom se latak kar hil rahi thi. yaha dekhakar mujhase raha nahi gaya. mom ke paas mai niche baith gaya aur usaka pair haath me bhar liya. fir chumane laga. pairom ke saath saath maimne usaki chappal ke bhi chumme le liye. usake donom paav maimne chaati se laga liye.

"are yaha kya kar rahe ho bete? chi, maili hai meri chappal, do tin din se dhoyi bhi nahim." mujhe hataane ki koshish karate hue wah boli.

"karane do maam, achcha lagata hai." kahakar mai usake pair aur chappal ko chumata hi raha.

"chal dur hat, kaisa paagal hai re tu, karana hi hai to baad me karanaa, aisi gamdi chappal ke saath nahim" mom ne mujhe khimch kar alag kar hi diya. wah meri or ajib taraha se dekh rahi thi, jaise use samajh me na a raha ho ki usake is aashik bete ka paagalapan kahaam khatma hoga. wah baahar jaane ke saimdal pahanane ko uthane lagi to maimne pucha

"maam, mai pahana dum?" wah meri or dekhati rahi fir muskaraakar haam kar di. mai bhaag kar usaki kaali haai hil saimdal utha laaya. mom ki slipar nikaalakar maimne bad.e pyaar se use we saimdal pahanaaye. mom ne mujhe baamhom me bharakar chumakar kaha













आपका दोस्त राज शर्मा
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा

(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
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