Monday, April 26, 2010

Kamuk kahaaniya -"छोटी सी भूल --6

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"छोटी सी भूल --6

वो बोला, चल कोई बात नही तू मुझे बता, मैं तेरी मार लू क्या ?

मैं हैरान थी कि ये सब कुछ बिल्लू की तरह कर रहा है, बिल्कुल उसी की तरह कमीना है.

मैने कुछ नही कहा.

मुझे महसूस हुवा कि वो अपना लिंग बाहर की और खींच रहा है.

उसका लिंग बाहर की और निकला ही था कि उसने पूरा वापस घुस्सा दिया और मैं पूरी की पूरी हिल गयी.

वो बोला, तू कहे या ना कहे मैं तो मार रहा हू, तू तो यू ही शरमाती रहेगी.

ये कहते ही उसने मेरी योनि में तेज, तेज धक्के मारने सुरू कर दिए.



ना चाहते हुवे भी मैं हर धक्के के साथ हवा में झूल रही थी.

मैं कब सातवे आसमान पर पहुँच गयी पता ही नही चला.

मेरा मन गिल्ट से भरा था पर मैं ये नही झुटला सकती थी कि मेरी योनि में मुझे बहुत मज़ा आ रहा है.

उसके लिंग की रगड़ मेरी योनि में बहुत गहराई तक महसूस हो रही थी.

फिर उसने कुछ ऐसी बात की जिसे सुन कर मैं चोंक गयी.

वो एक ज़ोर दार धक्का अंदर की ओर लगा कर, रुक गया और बोला, तूने जो मेरे साथ किया था, उसकी ये बहुत छोटी सज़ा है.


मैने हैरानी भरे शब्दो में पूछा, क्या मतलब ?




वो बोला, तूने मुझे बिल्कुल नही पहचाना ?

मैने फिर हैरानी में जवाब दिया, नही.

वो बोला, याद कर कभी मैं ऐसे ही तेरे पीछे खड़ा था, फराक सिर्फ़ इतना था कि मेरा लंड मेरी पॅंट में था, तेरी चूत में नही, तू पानी पी रही थी, मैं तेरे पीछे लाइन में लगा था.

मैं हड़बड़ते हुवे बोली… क…..क……. क….. क्या ?

मुझे यकीन ही नही हो रहा था कि मैं क्या सुन रही हू. मैने ज़ोर लगा कर वाहा से हटाने की कोशिस की पर उसने मेरे कंधो को मजबूती से पकड़ रखा था.

वो बोला कुछ याद आया मेडम, और फिर से तेज तेज धक्के मारने लगा और मेरी साँसे फूल गयी.

मैने पूछा, क….क…..क्या तुम अशोक हो.

वो रुक कर बोला, हा बिल्कुल ठीक पहचाना, आप की याददाश्त तो बहुत अछी है.

मेरी आँखो के आगे अंधेरा छा गया. मुझे यकीन ही नही हो रहा था कि ये सब सच है. मुझे सब एक बुरा सपना सा लग रहा था.

पर काश वो सपना होता.

वो सपना नही हक़ीकत थी.

मेरी योनि में मेरे कॉलेज के दीनो का पेओन, अशोक लिंग डाले खड़ा था. मैं सोच भी नही पा रही थी कि क्या करू.

मैने छटपटाते हुवे गुस्से में कहा, छोड़ मुझे कामीने.

वो हसने लगा और मुझे मजबूती से पकड़ कर फिर से तेज़ी से मेरे अंदर धक्के मारने लगा.


वो थोड़ी देर बाद रुका और बोला, मेडम में आप की मर्ज़ी से कर रहा हू. मेने कोई ज़बरदस्ती नही की. में तो हर पल आपके सामने था आपने ही मुझे नही पहचाना.

में सोच रही थी कि आख़िर में अशोक को क्यो नही पहचान पाई.

मुझे लगा में इतनी परेसान थी और उपर से उसकी लंबी दाढ़ी, मुझ से भूल हो गयी. कॉलेज के टाइम उसकी दाढ़ी नही थी. और मैने उसकी घिनोनी सूरत ठीक से ना तब देखी थी और ना अब देखी थी.

वो बोला, क्या सोचने लगी मेडम ?

मैने कहा अशोक देखो ये ठीक नही है, तुमने धोका किया है, प्लीज़ निकाल लो बाहर और मुझे जाने दो.

वो बोला, जहा इतनी देर इतना कर लिया थोडा और कर लेने दे, तेरा क्या जाएगा, और बहुत तेज, तेज मेरी योनि में धक्के मारने लगा.

मैं कुछ नही बोल पाई. उसके एक एक धक्के के साथ मेरी साँसे फूल रही थी और मेरी योनि के साथ साथ पूरे सरीर में हलचल हो रही थी.

मैने कहा, रुक जाओ प्लीज़.

वो बोला, बस थोड़ी देर और मेडम और, धक्के मारता रहा.

अचानक वो ज़ोर से चीलया आआहह और उसके धक्को की स्पीड चरम पर पहुँच गयी.

मेरी सांसो की स्पीड भी सातवे आसमान पर पहुँच गयी. मेरी योनि में अजीब सी हलचल होने लगी…अचानक मेरे मूह से निकल गया ह बस……रुक जाओ और मेरी योनि ने पानी की नादिया बहा दी.


वो ज़ोर से बोला, बस एक मिनूट आआहह……..हह , और एक झटके में मेरी योनि में ढेर सारा पानी गीरा दिया.

फिर उसने धीरे से अपना लिंग निकाल लिया और बोला, मज़ा आ गया.

मैं बेहोस हो कर वही ज़मीन पर गिर गयी.



अशोक ने मुझे गोदी मे उठाया और मुझे बेड पर लेटा दिया.

वो बोला, क्या हुवा तू ठीक तो है ना ?

मेरी आँखो से अपने आप आँसू टपक रहे थे.

वो बोला, क्या तुझे पता है मेरे साथ क्या हुवा है ?

उसके बाद ग़रीबी और लाचारी ने मुझे घेर लिया. मेरी बेटी की मौत टीबी से हो गयी. मैं उसका इल्लाज भी ठीक से नही करा सका. करता भी क्या मेरी नौकरी तो तूने छीन ली थी.

मैने कहा, तुमने ही मेरा रेप करने की कोशिस की थी.

वो बोला, मुझे रेप जैसे शब्द से भी नफ़रत है. आख़िर मेरी भी एक लड़की थी.

मैने पूछा, तो तुम उस दिन मेरा पीछा क्यो कर रहे थे.

वो बोला, मैं तो बस माफी माँगना चाहता था. मैने तेरे कॉलेज की एक से एक सुंदर लड़की के साथ किया था, ये तू भी जानती होगी, मैं सिड्यूस करने में विस्वास करता हू, रेप में नही, रेप सिर्फ़ नपुंसक लोग करते है.

मैने पूछा, तो ये अब क्या था ?

वो बोला, तू खुद यहा आई थी, मैने तुझे मजबूर नही किया था.

मैने कहा, अछा वो तुम ब्लॅकमेल करने मेरे घर नही आए थे.

वो बोला, तू खुद अपने पति से सब छुपाना चाहती थी. मैने कोई ब्लॅकमेल नही किया, याद है ना तूने खुद कहा था कि मैं कुछ भी करूँगी यहा से चले जाओ.


मैं सोच रही थी की बात तो उसकी सही है. अगर मैं अपने पति को सब बता देती, तो आज यहा नही होती. पर ऐसा करना किसी भी पत्नी के लिए मुस्किल है, वो भी तब जबकि उसका पति उसे बहुत प्यार करता हो.

मेरी इसी मजबूरी का फायडा तो उसने उठाया था.

मैने सामने दीवार पर तंगी घड़ी में देखा तो 2:30 बज चुके थे.

उसने मुझे घड़ी देखते हुवे देख लिया और बोला, जाना है ना तुझे ?

मैने गुस्से में कहा, हा.

वो बोला, तेरा पति घर आने वाला होगा ना. चल तू जा अब, बाद में बात करेंगे और बेशर्मी से हँसने लगा.

मैने लड़खड़ाते हुवे कपड़े पहने. मेरे पूरे शरीर में दर्द हो रहा था.

वो बोला, बिल्लू तुझे छोड़ देगा.

मैने कहा कोई ज़रूरत नही है, मैं चली जाउन्गि.

वो बोला, तुझे यहा से बाहर का रास्ता नही मिलेगा, मेरी बात मान बिल्लू तुझे जल्दी घर छोड़ देगा.

मैं मन ही मन में उसे और बिल्लू को ढेर सारी गलिया दे रही थी.


अशोक ने दरवाजा खोल दिया और बिल्लू को आवाज़ लगाई.


वो झट से वाहा आ गया.

बिल्लू मेरी तरफ बड़ी बेशर्मी से देखते हुवे बोला, लगता है इस कमरे में तूफान आया है.


अशोक ने कहा, चुप कर और इसे घर छोड़ आ, इसका पति आने वाला है ?


मैं बड़ी लाचारी की फीलिंग लिए सब सुन रही थी.


मैं बिल्लू के साथ कमरे से बाहर निकली ही थी कि मैने देखा वही लड़का जो कूरीएर ले कर घर आया था वाहा खड़ा था.

मेरा सर घूम गया.

मुझे अब सब कुछ सॉफ हो गया था कि कितनी प्लानिंग से इन कामीनो ने मुझे फँसाया था.

मुझे देखते ही वो लड़का बड़ी बेशर्मी से, अपनी पॅंट के उपर से ही, अपने लिंग को मसल्ने लगा.

मैने गिल्ट और शरम से अपनी नज़रे झुका ली.


बिल्लू ये सब देख कर हंसते हुवे बोला, राजू डरा मत बेचारी को.

मैं चुपचाप आगे बढ़ गयी, और बाहर आ कर रिक्से में बैठ गयी.

मैं हैरान और परेशान थी कि आख़िर मेरे साथ ही ये सब क्यो हो रहा है. पर मेरे पास कोई जवाब नही था.


पर इतना ज़रूर था कि अब मुझे अपनी खिड़की से झाँकना बहुत भारी पड़ रहा था.
कोई ये सब सुनेगा तो यही समझेगा कि ये सब सच नही हो सकता और सच पूछो तो मुझे खुद भी अभी तक सब सपना सा लगता है.

पर काश ये मेरा कोई भयानक सपना ही होता तो अछा होता.

बिल्लू ने रिक्सा तेज़ी से उस स्लम एरिया से बाहर निकाल लिया.

मुझे रह, रह कर एक बात परेशान कर रही थी.

मैं ये बिल्कुल विस्वास नही कर पा रही थी कि बिल्लू का बापू कोई और नही, बल्कि वही अशोक था, जिसने मेरे साथ कॉलेज में घिनोनी हरकत की थी, और आज उसने ये सब……………

मैं हैरान थी की इतनी बड़ी साजिस आख़िर कामयाब कैसे हो गयी.

मुझ से रहा नही गया और मैने बिल्लू से गुस्से में पूछ ही लिया, तो आख़िर ये सब तुम लोगो की साजिस थी ?

वो हंसते हुवे बोला, इसे तू साजिस नही कह सकती, तू हर वक्त इसमे सामिल थी, हा तू ये ज़रूर कह सकती है कि तुझे बड़े प्यार से पटाया गया है, क्या तुझे नही लगता की तूने हर मोड़ पर हमारा साथ दिया है ?


मैने कहा, मैने तुम लोगो का कोई साथ नही दिया.

वो बोला, अछा, वो खिड़की से झाँक कर मेरा लंड कौन देखता था.

मैं चुप हो गयी, आख़िर वही तो मेरी छोटी सी भूल थी, जिसके कारण मैं इस मुसीबत में फँसी थी.

वो बोला, और उस दिन बारिश में अपनी गांद कौन मसलवा रहा था ?

मैने गिड़गिदते हुवे कहा प्लीज़ चुप हो जाओ, ऐसा कुछ नही था.

वो बोला, और उष दिन दोपहर को कों कह रहा था की डाल दो, मार लो, तू ही थी ना ?

मई कुछ नही कह पाई.

वो बोला, और उस दिन खूब मज़े से गांद कौन मरवा रहा था ?

मैने गुस्से में कहा, बस करो अब.

वो बोला, मैं तो बस ये बता रहा था कि अगर ये साजिश थी तो तू हर पल इस में सामिल थी, और ये सब लेटर और डाइयरी का नाटक इसलिए करना पड़ा क्योंकि तूने खिड़की बंद कर दी थी और अब मिलने को तैयार भी नही थी, वरना तो हमारा प्लान था कि एक दिन अशोक हम दोनो को तेरे घर के पीछे पकड़ लेगा और फिर वो तेरी उन्ही झाड़ियो में लेगा.

में सहम गयी कि कितनी गहरी चाल थी इन लोगो की. उस से तो में बच गयी पर आज फँस गयी, और मुझे याद आ गया कि कैसे अशोक उस कमरे में मेरे साथ………….वो सब कुछ कर रहा था.

मैं कुछ भी नही कह पाई, आख़िर कहने को बचा भी क्या था.


वो बोला, हमने बस एक जाल फेंका था, तू खुद उस में आकर फँस गयी, अगर तुम हमारा साथ नही देती तो हम कभी कामयाब नही होते.

मैं गहरी चिंता में डूब गयी. वो सच ही तो कह रहा था, अगर में होश से काम लेती तो ऐसा कभी नही होता.

वो फिर बोला, क्या ये सच नही है कि तूने भी अपनी जवानी का पूरा, पूरा मज़ा लिया है ?

मैने अपने कानो पर हाथ रख लिए और चिल्ला कर बोली, प्लीज़ चुप हो जाओ, ऐसा कुछ नही है.

वो चुपचाप रिक्सा चलाने लगा.

थोड़ी देर बाद मैने पूछा, अछा तो उस दिन पाँव में खून भी नाटक था क्या ?

वो हंसते हुवे बोला, अछा वो, वो तो मैने चिकन का ब्लड लगा रखा था, वो तो बस तुझे तेरे घर के पीछे बुलाने के लिए था, और तू आ गयी, तुझे क्या लगता है ? क्या मैं दर्द में तेरी गांद मारने का मज़ा ले पाता ?

मैने गुस्से में कहा बस चुप करो, जैसा बाप वैसा बेटा.

वो चुप हो गया और थोड़ी देर बाद बोला, अशोक मेरा बाप नही है, मेरा बाप तो गुजर चुका है.

मैने पूछा, तो फिर तुम मुझे उस कामीने के पास क्यो ले गये ? तुमने मेरा विश्वास तोड़ा है.

वो बोला, अशोक कुछ भी सही पर मेरे लिए अछा है. उसने मुझे मेरी जिंदगी में बहुत हिम्मत दी है. ये रिक्सा जो में चला रहा हू उसी का है.

मैने कहा उस से मुझे क्या मतलब, तुम्हे पता नही उसने मेरे साथ क्या किया था.

वो बोला, मुझे सब पता है. उसने मुझे सब बताया है. तेरे कारण उसकी नौकरी चली गयी, उसकी बेटी बिना इलाज के मर गयी. तेरे साथ, साथ तेरा बाप भी दोषी है.

मैने कहा, मेरे पापा को इसमे मत घसीतो, उनकी कोई ग़लती नही है.

वो हँसने लगा और बोला, ये तो वक्त ही बताएगा कि किसकी ग़लती है.

मैने पूछा, तुम लोग ग़लत काम भी करते हो और उसे सही भी बताते हो, आख़िर तुम कैसे इंसान हो.

वो पीछे मूड कोर बोला, तेरे जैसी मस्त आइटम को पटाने के लिए अगर मरना भी पड़े तो कम है, जो हमने किया वो तो कुछ भी नही था, तुझे पता नही तू कितनी सुंदर है, जो मज़ा तेरे साथ आया है आज तक कभी नही मिला था.

मैं ना चाहते हुवे भी एक पल को शर्मा गयी, और अपनी नज़रे झुका ली.


मैने पूछा, पर तुम्हे ये सब नाटक करने की क्या ज़रूरत थी, मैने तुम्हे अपना सब कुछ दे दिया और तुमने मुझे बर्बाद कर दिया.

वो ज़ोर से हँसने लगा और बोला, अभी तू कुछ नही समझेगी, वक्त आने दे तुझे सब पता चल जाएगा.

मैं सोच में पड़ गयी की आख़िर ये किस वक्त का इंतेज़ार कर रहा है.


हम एक दूसरे से बहस कर रहे थे कि अचानक मुझे सामने से साइकल पर वही घिनोनी सूरत वाला आदमी आता दिखाई दिया जो कि उस दिन रिक्से में मुझे परेसान कर रहा था.

मैने झट से सर घुमा लिया, कि कही वो कमीना फिर से परेशान करने ना आ जाए.


पर जिस बात का डर था वही हुवा, उसने मुझे और बिल्लू को पहचान लिया और अपनी साइकल मोड़ कर हमारे रिक्से के पीछे लगा दी.

मैं मन ही मन सोचने लगी कि बस इसी की कमी रह गयी थी.

मेरा दिल ज़ोर, ज़ोर से धड़कने लगा.

मुझे लग रहा था कि शायद ये आदमी भी इन्ही लोगो के साथ है.

वो तेज़ी से रिक्से के बिल्कुल पास आ गया और साथ, साथ चलने लगा.

मैं और ज़्यादा सहम गयी, मैने मन ही मन कहा, ओह नो, नोट अगेन.


वो बोला, अरे वह लगता है तुम दोनो का गरमा, गरम चक्कर चल रहा है.

मैं मन ही मन पिश कर रह गयी.


उसने बिल्लू से पूछा, क्यो बे, ली की नही इस परी की ?

बिल्लू ने उसे डाँटते हुवे कहा, आबे चल आगे बढ़, अपना काम कर.

वो बोला, अपना काम ही तो कर रहा हू.

उसने मेरी और देखा और बोला, क्या बात है मेरी जान आज तो कमाल लग रही हो.

मैने उसकी और गुस्से से देखा, वो बड़ी बेशर्मी से मेरी और मुस्कुरा रहा था.

उसे देखते ही मेरा मन उल्टी करने का हो गया, बहुत बदसूरत जो था वो.

वो बोला, आजा मेरी जान आज मुझे भी दे दे.

बिल्लू ने रिक्सा रोक दिया, और रिक्से से नीचे उतर गया, वो आदमी चुपचाप पीछे देखते हुवे आगे बढ़ गया.

मैने चैन की साँस ली.

मैने पूछा, इस सब नाटक के पीछे तुम लोगो का क्या मकसद है ? इस आदमी से तुम लोग मुझे जॅलील क्यो करवा रहे हो, मुझे बर्बाद तो कर ही चुके हो अब इश्कि क्या ज़रूरत है तुम लोगो को ?




बिल्लू बोला, मैं उसे नही जानता, और ये कोई नाटक नही था, अगर वो हमारे साथ होता तो उसे घर ही ना बुला लेते तुझे जॅलील करने को.

मैं चुप हो गयी.

बिल्लू बोला, और हमने तुझे बर्बाद नही किया है, तुझे तेरी जवानी के मज़े दिए है.

मैने कहा, बंद करो ये बकवास और मुझे जल्दी घर छोड़ दो मैं लेट हो रही हू.

फिर हमारे बीच कोई बात नही हुई.


बिल्लू ने ठीक 3 बजे रिक्सा घर के सामने लगा दिया. घर पर लॉक था, मतलब कि संजय अभी नही आए थे.

बिल्लू बोला, मैं फोन करूँगा.

मैने गुस्से में कहा ऐसी जुर्रत भी मत करना, अब तुम लोगो का कोई नाटक नही चलेगा, दफ़ा हो जाओ यहा से.

वो बोला, मैं तो तेरे लिए कह रहा था, तू तो शरमाती है, कभी खुद तो बुलाएगी नही.

मैने उसकी बात का कोई जवाब नही दिया और आगे बढ़ गयी.

मैने देखा कि, घर के दरवाजे पर एक नोट लगा था.

उस पर लिखा था कि चिंटू मौसी के घर है.

क्योंकि मैं घर पर नही थी इश्लीए मौसी चिंटू को लेकर अपने घर चली गयी थी.

मैं ताला खोल कर जल्दी से अंदर आ गयी.

मैने फॉरन कपड़े चेंज किए और फटाफट किचन में खाना बना-ने लग गयी.

आज मैं फिर से संजय को बिना लंच किए घर से नही भेज सकती थी. मेरे साथ तो जो हो रहा था सो हो रहा था, मैं अपने पति को कोई दुख नही देना चाहती थी.

संजय 3:30 पर घर आ गये. मैं चिंटू को भी मौसी के यहा से ले आई. हम सब ने एक साथ लंच किया.

पर सच तो ये था की खाना मेरे गले से उतर ही नही रहा था, मुझे रह, रह कर, बिल्लू के घर मेरे साथ जो भी हुवा याद आ रहा था, और मैं गिल्ट से मरी जा रही थी.



संजय ने मुझ से पूछा, अरे ऋतु आजकल तुम्हे क्या हो गया है, किस सोच में डूबी रहती हो तुम, सब ठीक तो है ना ?

मैं हड़बड़ा गयी और मैने धीरे से कहा, हा सब ठीक है बस यू ही.

संजय बोले, अगर मोम, डॅड की याद आ रही है तो चली जाओ, जाकर मिल आओ.

मैने कहा, नही ऐसी कोई बात नही है.

संजय बोले, और हा तुम कह रही थी ना कि कोई काम तलाश करना, मेरे दोस्त ने एक कंपनी खोली है तुम इस वीक कभी भी, वाहा जाकर मिल आओ, मैने बात कर ली है, मॅनेजर लेवेल की पोस्ट मिल जाएगी, अछा लगे तो जोइन कर लेना.





मैं ये सब सुन कर मन ही मन झूम उठी.

मैं कब से संजय को कह रही थी की, मेरे लिए कोई काम तलाश करो, मेरी एमबीए की डिग्री बेकार जा रही है.

मैने संजय को बोल दिया ठीक है मैं वाहा जाकर देख आउन्गि की कैसा माहॉल है फिर बताउन्गि कि जोइन करना है कि नही.

संजय ने मुझे वाहा का अड्रेस दे दिया, वो जगह घर से थोडा दूर थी.

संजय ने कहा तुम कार चलना शीख लो, एक कार खरीद दूँगा, फिलहाल तुम बस से चली जाना, कोई 40 या 50 मिनूट का रास्ता है बस से.

मैने कहा ठीक है.


एक पल को मैं सारे दुख भूल गयी. मैं भूल गयी की थोड़ी देर पहले बिल्लू के घर मेरे साथ क्या हुवा था.

पर संजय के जाने के बाद मुझे फिर से दुख के बादलो ने घेर लिया.

मैं जब नहा रही थी तो मुझे अचानक याद आ गया की अशोक ने कैसे मुझे अपने सामने झुका कर मेरे साथ……………………….. और मैं गम में डूबती चली गयी.

मैं नहा धो कर लेटी ही थी कि फोन की घंटी बज उठी.

मैने फोन उठाया तो पाया कि ये अशोक का फोन था.

वो बोला, ठीक से पहुँच गयी ना तू ?

मैने गुस्से में कहा, “तुम्हे इस से क्या मतलब, यहा दुबारा फोन मत करना” और ये कह कर फोन पटक दिया.

फोन फिर से बज उठा,

फिर से अशोक ही था, वो बोला, मुझे मतलब है, कितने प्यार से दी थी तूने आज, सच अभी तक मेरे लंड पर तेरी चूत की गर्माहट महसूस हो रही है, तुझे इतने दीनो बाद ही सही, एक बार पा कर मन झूम रहा है, बता फिर कब मिलेगी, मैं तुझे जी भर कर चोदना चाहता हू.

मैने झट से फोन पटक दिया, पर मेरे पूरे शरीर में ये सब सुन कर एक अजीब सी हलचल हो गयी और ना चाहते हुवे भी मुझे उसका मेरी योनि में एक एक धक्का याद आ गया. मैं गिल्ट से भर गयी और फोन को गुस्से से ज़ोर से दूर फेंक दिया.

मैं पछता रही थी कि आख़िर मैने बिल्लू को ये नंबर क्यो दे दिया. अगर कभी संजय ने उठा लिया तो ?

मैं बेड पर गिर गयी और कब मुझे गहरी नींद आ गयी पता ही नही चला. पिछली रात की नींद जो भरी हुई थी आँखो में.

में कोई 7 बजे उठी. चिंटू ने ज़ोर ज़ोर से टीवी पर गाने चला रखे थे, शायद उसी की वजह से मैं थोड़ा जल्दी उठ गयी वरना तो सोती रहती.


पर उठते ही फिर से पूरे दिन की घटना मेरे दीमाग में घूम गयी. और में फिर से गिल्ट और शर्मिंदगी से भर गयी.

मैं ये सोच रही थी कि अब क्या करना है इन लोगो का, इन्होने तो बड़ी चालाकी से फँसाया है मुझे. मैने फ़ैसला किया कि अब चाहे जो हो मैं इन लोगो के झाँसे में नही आउन्गि.

अगर वो संजय को सब बताते है तो बता दे, अब में किसी भी हालत में उनके हाथो का खिलोना नही बनूँगी

पर तब मुझे ख्याल आया कि उन्होने तो मुझे कुछ करने को नही कहा था.

पर ये सच था कि अशोक ने ऐसे हालात पैदा कर दिए थे कि मुझे खुद कहना पड़ा कि में कुछ भी करूँगी.

अगर में उनकी चाल समझ पाती तो ऐसा कभी ना कहती.



उस रात में बहुत बेचन रही. संजय चुपचाप सो रहे थे और मैं बार, बार करवटें बदल रही थी.

रह रह कर पूरा दिन मेरी आँखो में घूम रहा था.

मैं समझ नही पा रही थी कि आख़िर अपने मन को कैसे शांत करू. इतनी बड़ी घटना के बाद शायद ये सब नॅचुरल था.

पर तभी मुझे अचानक वो पल याद आ गया जब मेरी योनि ने अशोक के धक्को के कारण अपना पानी बहा दिया था. मैं समझ नही पा रही थी कि आख़िर ऐसा क्यो हुवा था ?

पर जो भी था मैं इस कारण बहुत गिल्ट महसूस कर रही थी

सी कसम्कश में अचानक मुझे कॉलेज के दीनो की एक घटना याद आ गयी.



कॉलेज मैं एक लड़की थी, नेहा बहुत ही सुंदर और स्मार्ट. वो मेरी एक साल सीनियर थी, और कॉलेज के पास ही हॉस्टिल में रहती थी. उसके बारे में चर्चा थी की उसके पीछे कयि लड़के दीवाने है. पर वो किसी को भी लाइन नही देती थी. मेरी तो उस से कोई बोलचाल नही थी, पर वो मेरी फ्रेंड दीप्ति की अछी दोस्त थी.

एक दिन की बात है मैं और दीप्ति कॉलेज कॅंटीन में कुछ स्नॅक्स खा रहे थे. सामने से नेहा आ गयी, और दीप्ति ने उसे बुला लिया.

दीप्ति ने उस से पूछा, और आजकल क्या चल रहा है ?

वो बोली कुछ ख़ास नही, बस टाइम पास.

दीप्ति ने मज़ाक में पूछा पर टाइम पास भी अछा कर लेती हो.

नेहा ने पूछा क्या मतलब, मैं भी दीप्ति के इस मज़ाक पर हैरान थी.

दीप्ति ने कहा मतलब आज कल तुम्हारा नाम रोहित से जोड़ा जा रहा है, क्या ये सच है.

नेहा ने कहा, यार ये लड़के भी ना, ऐसा कुछ नही है, मैं तो उसे ठीक से जानती भी नही.

दीप्ति ने कहा, ओह हा ये बात तो है, लड़के यू ही अफवाह फैलाते रहते है.


दीप्ति ने कहा, पर एक बात है, बुरा ना मानो तो पूछ लू.

नेहा का चेहरा हैरानी के कारण लाल हो गया वो बोली, पूछ ना आख़िर क्या बात है.

दीप्ति ने कहा चल जाने दे.

नेहा ने चोंक कर पूछा, क्या है बताओ तो ?

दीप्ति ने कहा तुम्हारा नाम उस कामीने पेओन अशोक से भी जोड़ा जा रहा है, बता ना ये क्या चक्कर है ?

नेहा के, एक पल को होश उड़ गये और वो गहरी चिंता में डूब गयी.

उसकी हालत वैसी ही लग रही थी जैसी कि आजकल मेरी है.

नेहा ने मेरी और देखा, दीप्ति समझ गयी और बोली, अरे घबरा मत ये मेरी अछी दोस्त है, बता बात क्या है ?

वो बोली समझ नही आ रहा कैसे बताउ, तू जाने दे फिर कभी बात करेंगे, यहा कोई सुन लेगा.

दीप्ति बोली चल फिर तेरे हॉस्टिल में चलते है.

मैं भी बेचन थी सब जानेने के लिए.

नेहा ने झीज़कते हुवे कहा चल ठीक है, चलो, मेरा मन भी हल्का हो जाएगा, कब से इस बारे में बात करना चाहती थी.

हम 10 मिनूट में उसके हॉस्टिल के रूम में आ गये.

नेहा ने पूछा, कुछ टी, कॉफी चलेगी.

मैने और दीप्ति ने मना कर दिया.

नेहा अपने बेड पर बैठ गयी और हम दोनो ने एक एक चेर खिसका ली.

दीप्ति ने पूछा, हा बता अब क्या बात है ?

नेहा ने गहरी साँस ली और बोली, पर वादा करो तुम दोनो ये बात किसी को नही बताओगि.

दीप्ति बोली अरे ये भी कोई कहने की बात है, तू डर मत और बता क्या बात है ?

नेहा ने कहा पर ये तुम्हे सुन-ने में बहुत बेकार लगेगी.

दीप्ति बोली, कोई बात नही तू बता तो सही.

फिर नेहा ने बताना सुरू किया.

“नेहा ने कहा, अशोक के बारे में मुझे कुछ नही पता था. पीछले साल की बात है, एक दिन मैं कुछ काम से प्रिन्सिपल से मिलने गयी थी, दरअसल मुझे घर जाने के लिए लीव चाहिए थी, इसलिए प्रिन्सिपल से मिलने गयी थी, उनकी सॅंक्षन मिलनी ज़रूरी थी.

प्रिन्सिपल के गेट के बाहर, अशोक खड़ा था.

मैने उस से पूछा, प्रिन्सिपल अंदर है क्या?

वो बोला, जी मेडम अभी तो वो कही बाहर गये है.

मैने मन ही मन कहा ओह नो.

अशोक ने पूछा मेडम क्या काम है.

मैने ना जाने क्यो बता दिया कि मुझे लीव सॅंक्षन करवानी थी, उनसे मिलना था.

वो बोला, मेडम जी आप अपनी अप्लिकेशन मुझे दे दो मैं सॅंक्षन करवा दूँगा, आप जाओ.

मैने कहा, ठीक है, और अपनी लीव अप्लिकेशन उसे दे आई.

अगले दिन वो मुझे कॅंटीन के बाहर मिला और बोला, मेडम जी आप की लीव सॅंक्षन हो गयी है.

मैने ख़ुसी में उसे कहा थॅंक यू.

उसके बाद वो जब भी कही कॉलेज में कही टक-राता तो बोलता नमस्ते मेडम जी, कोई काम हो तो बताना.”



फिर नेहा चुप हो गयी और किसी गहरी चिंता में डूब गयी.

दीप्ति ने पूछा, बस इतनी शी बात थी या कुछ और भी है.

नेहा ने गहरी साँस ली और बोली, काश बस इतनी ही बात होती.

दीप्ति ने कहा, तो फिर आगे बता ना क्या बात है ?

नेहा ने फिर से बताना शुरू किया.

“ एक दिन की बात है कॉलेज में छुट्टी थी. मैं सुबह 11 बजे अकेली ही मार्केट चली गयी, मुझे कुछ समान खरीदना था. खरीदारी करते, करते 12:30 बज गये.

अचानक आसमान में बादल छा गये. मैने सोचा जल्दी हॉस्टिल चलना चाहिए. मैं किसी ऑटो या रिक्सा का वेट करने लगी.

तभी अचानक अशोक वाहा आ गया, वो अपनी बाइक पर था, वो बोला, मेडम जी आप क्या अपने हॉस्टिल जा रही है.

मैने कहा हा.

वो बोला, अगर बुरा ना मानो तो मैं आप को छोड़ दूँगा, मौसम खराब होता जा रहा है.

मैने कहा नही कोई बात नही मैं ऑटो लेकर चली जाउन्गि.

वो बोला, मेडम जी मैं उसी तरफ जा रहा हू, आप बैठ जाओ, जल्दी से हॉस्टिल छोड़ दूँगा.

मुझे लगा चलो ठीक है, किसी भी वक्त बारिश आ सकती है बारिश से पहले अगर ये मुझे हॉस्टिल छोड़ देगा तो अछा होगा.

मैं उसकी बाइक पर बैठ गयी.

थोड़ी देर ही हुई थी कि बहुत तेज बारिश होने लगी.

अशोक बोला, मेडम जी थोड़ी देर रुक जाते है और उसने एक घने पेड़ के नीचे बाइक रोक दी.

हम दोनो उतर कर पेड़ के नीचे खड़े हो गये.

वो बोला, मेडम जी अचानक कितनी तेज बारिश आ गयी, मौसम का कुछ भरोसा नही है.

मैने कहा, हा.

मुझे बहुत ही अजीब लग रहा था कि मैं अपने कॉलेज के पेओन के साथ वाहा पेड़ के नीचे खड़ी थी.

वो बोला, मेडम जी बुरा ना मानो तू एक बात कहु.

मैने कहा, हा कहो.

वो बोला, कॉलेज में आप सबसे सुंदर हो, सारे लड़के आपके बारे में बाते करते रहते है.

मैं ये सुन कर थोडा शर्मा गयी पर हैरान थी कि आख़िर वो ऐसी बाते क्यो कर रहा है.

वो बोला, आपको मेरी बात बुरी तो नही लगी ?

मैने झीज़कते हुवे कहा नही नही कोई बात नही.

फिर वो बोला, आप मुझे भी बहुत अछी लगती हो.

अब मुझे कुछ अजीब लगने लगा.

मैं बिल्कुल चुप हो गयी और बारिश को देखने लगी.

तब उसने कुछ ऐसी बात बोली जिसे सुन कर मेरे पैरो के नीचे से ज़मीन निकल गयी, वो बोला, मेडम जी, आप बुरा ना मानो तो मैं वाहा पीछे जा कर, थोडा पेसाब कर लू.

मैने कोई जवाब नही दिया, अब उसकी बातो से मुझे डर लगने लगा था.

वो थोड़ा घूम गया, और अपनी ज़िप खोलने लगा.

मैने कहा, अरे ये क्या बदतमीज़ी है ?

वो बोला, मेडम जी वाहा बारिश में भीग जाउन्गा और ये कहते हुवे वो मेरी तरफ घूम गया.

मुझे तो विस्वास ही नही हुवा, उसका वो मेरी आँखो के सामने झूल रहा था, मैने अपनी आँखे बंद कर ली.”



तभी दीप्ति बोल उठी, ओह माइ गोड उसकी इतनी जुर्रत.

मैं भी सब हैरानी से सुन रही थी.

दीप्ति ने पूछा फिर क्या हुवा, तूने उसे थप्पड़ मारा कि नही.

नेहा बोली, यार मैं कुछ नही कर पाई.

दीप्ति बोली, तुझे कुछ तो करना चाहिए था.

नेहा बोली, यार मैने पहली बार आदमी का पेनिस देखा था, मैं समझ नही पा रही थी कि क्या करू.

दीप्ति ने पूछा, तो क्या तूने फिर आँखे खोल कर देखा.

नेहा ने धीरे से कहा, हा.

दीप्ति ने उसे डाँटते हुवे कहा, अरे तू पागल हो गयी थी क्या ?

नेहा ने जवाब दिया, पर मैने उसे बोल दिया था कि प्लीज़ इसे अंदर कर लो, कोई देख लेगा.

दीप्ति बोली, वाह ये अछा किया तूने, तुझे तो उसे एक थप्पड़ मारना चाहिए था, और तू उसे रिक्वेस्ट कर रही थी.

नेहा, बिल्कुल चुप हो गयी.

दीप्ति ने पूछा, अछा फिर क्या हुवा आगे बता.

नेहा ने फिर से बताना शुरू किया.

“ अशोक बोला, मेडम जी, पेड़ के पीछे आ जाओ, वाहा कोई नही देख पाएगा.

सड़क पर बारिश के कारण सुन्शान था, पर फिर भी कभी, कभी एक दो गाडिया गुजर रही थी.

मैने कहा नही, यही ठीक है.

पर उसने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे पेड़ के पीछे ले गया.”



दीप्ति फिर से चीन्ख पड़ी, ओह माइ गोड ये क्या किया तूने ?

नेहा बोली, तू समझने की कोशिस कर मैं, कुछ समझ नही पा रही थी कि क्या करू, उसका वो देख कर मेरे होश उड़ गये थे.

दीप्ति बोली फिर क्या हुवा.

नेहा ने बताया,

“ वो बोला मेडम जी यहा ठीक है, आप आराम से देख लो.

मुझे ना जाने क्या हो गया था, मैं उशके पेनिस को एक टक देखने लगी.

उसने पूछा, मेडम जी आपने क्या किसी और का भी देखा है.

मैने धीरे से गर्दन हिला कर कहा ना.

तब तो आपको पता नही चल पाएगा.

मैने मद-होशी में पूछा क्या ?





आपका दोस्त राज शर्मा
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा

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