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"छोटी सी भूल --19
गतांक से आगे ...................
बिल्लू को वाहा देख कर मैं गहरे शॉक में थी. यही सवाल मन में उठ रहा था कि आख़िर वो बच कैसे गया.
मैं सोच रही थी कि अगर वो जींदा है तो वो कौन थे जो नेहा के अनुशार अशोक के साथ मारे गये थे.
खैर वो मेरी आँखो के सामने था और विवेक को बुरी तरह मार रहा था.
कोई भी अगर ऐसे हालात में आपकी इज़्ज़त बचाएगा तो आप उसका अह्शान मानेंगे
पर आप क्या कहेंगे उस इंशान को जो पहले तो आपको बर्बाद करता है और फिर आपकी इज़्ज़त बचाने आ जाता है.
समझ नही आ रहा था कि बिल्लू को वाहा देख कर मैं कैसे रिक्ट करूँ. उशके कारण मेरा सब कुछ बर्बाद हो चुका था. और अब वो मेरे सामने मेरा रेप करने की कोशिस करने वाले विवेक को मार रहा था.
अगर विवेक मेरे शरीर का रेप करना चाहता था तो, बिल्लू उस से भी बढ़ कर मेरे चरित्र का रेप पहले ही कर चुका था.इश्लीए मैं बिल्लू को अपना रखवाला कैसे मान सकती थी.
आख़िर वही तो था वो, जिसने बड़ी चालाकी से मुझे पाप के दलदल में फँसाया था.
वाहा खड़े खड़े, मुझे याद आया कि कैसे उसने एक दिन अपने पाँव में चिकन का ब्लड लगा कर मुझे बड़ी चालाकी से मेरे घर के पीछे बुलाया था. कह रहा था पाँव में चोट लगी है, खून बह रहा है, कुछ करो ना. और फिर उशके बाद उसकी वो एमोशनल बातें.
खुद तो उसने मुझे जैसे तैसे फँसा कर मेरे साथ किया ही, फिर मुझे बड़ी चालाकी से अशोक के सामने भी परोश दिया. और फिर उस दिन, अशोक और राजू को भी साथ ले आया . क्या कुछ नही किया था उसने मेरे साथ. उसने जो मेरे साथ किया था वो मेरे शरीर का रेप ना सही पर मेरे कॅरक्टर का रेप ज़रूर था. अगर बिल्लू मेरी जींदगी में ना आता तो ना तो मुझे अशोक का शिकार होना पड़ता, ना उस साइकल वाले की भद्दी बाते सुन-नि पड़ती और ना ही विवेक की इतनी हिम्मत होती कि मुझ से इतनी बेहूदा बाते करे और मेरा रेप करने की कोशिश करे. इन सब बातो के कारण मुझे बिल्लू का वाहा होना कुदरत का एक घिनोना मज़ाक लग रहा था.
मैने देखा कि बिल्लू और विवेक में बहुत तगड़ी हाथा-पाई चल रही थी. कभी विवेक हावी होता दीखता था तो कभी बिल्लू. दौनो एक दूसरे से बुरी तरह उलझ रहे थे.
“साले तू बच गया हां, पर आज मेरे हाथो से नही बचेगा” ---- विवेक ने बिल्लू के पेट में लात मारते हुवे कहा.
अगले ही पल विवेक नीचे पड़ा था और बिल्लू फिर से उसकी धुनाई कर रहा था.
अचानक मेरी नज़र ज़मीन पर पड़ी पिस्टल पर गयी. वो विवेक की पॅंट के पास ही पड़ी थी.
मैं लड़खड़ाते हुवे पिस्टल के पास पहुँची और काँपते हाथो से पिस्टल उठा ली.
मैने पिस्टल को दोनो हाथो में पकड़ा और उन दौनो की तरफ तान दी. मैने किसी की और निशाना नही लगाया बस गोली चला दी…….. मैं सोच रही थी कि किसी को भी लग जाए, दौनो मेरे लिए एक समान है.
पर गोली किसी को नही लगी, पता नही कहा चली गयी.
हां इतना ज़रूर हुवा कि एक पल को दौनो रुक गये.
“भाभी रूको, गोली मत चलाओ,आइ अम सॉरी, मैं बहक गया था, आप सच कह रही थी, मैं आज होश में नही हूँ” ---- विवेक मेरी और गिड़गिदा कर बोला.
अगले ही पल बिल्लू ने उसके उपर लातो की बोछार कर दी और बोला, “साले तू कब होश में रहता है”
मैने एक और फाइयर किया और बिल्लू लड़खड़ा कर गिर गया.
“भाभी अछा किया, बहुत अछा किया, एक और गोली मारो इस साले को” ---- विवेक मेरी ओर गिड़गिदा कर बोला.
“शूट अप यू बस्टर्ड” ---- मैने चील्ला कर कहा और विवेक की तरफ पिस्टल कर के गोली चला दी.
“आहह…. नो… भाभी प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो मैं बहक गया था” ------ विवेक दर्द से चील्ला कर बोला.
गोली शायद विवेक के पेट में लगी थी. गोली लगते ही वो भी बिल्लू के पास गिर गया.
“ऋतु, बंदूक मुझे दो, मैं इसका खेल ख़तम करता हूँ” ---- बिल्लू मेरी और देख कर बोला.
बिल्लू अपनी टाँग पकड़े पड़ा था.
तब मैने सोचा, “अछा इसकी टाँग में गोली लगी है, इसके तो सर में गोली लगनी चाहिए थी.”
और मैने इस बार बिल्लू की ओर फाइयर किया
लेकिन ये निशाना मैं चूक गयी.
पर एक दम से विवेक ने फुर्ती से मेरी और बढ़ कर मेरे हाथ से पिस्टल छीन ली और मेरे मूह पर एक चाँटा मारा, जिसके कारण मैं लड़खड़ा कर गिर गयी.
“साली मुझे मारेगी, मैं आज तुम दौनो की यही कबर खोद दूँगा” ---- विवेक चील्ला कर बोला.
ये कह कर उसने पिस्टल मेरी कनपटी पर रख दी और बोला, “अब मैं तुम्हे बताता हूँ कि गोली कैसे चलाई जाती है”
मैने भगवान को याद किया और मन ही मन में प्रेयर की, “हे भगवान अगर अब मुझे मेरे पापो की सज़ा मिल चुकी हो तो मुझे माफ़ कर दो, मेरे चिंटू का ख्याल रखना”
पर अगले ही पल मैने महसूस किया की मेरी कनपटी पर पिस्टल नही है.
मैने देखा कि बिल्लू विवेक के उपर है और पिस्टल मुझ से थोड़ी दूर ज़मीन पर पड़ी है. शायद बिल्लू ने विवेक पर पीछे से हमला किया था, और उसके हाथ से पिस्टल दूर जा गिरी थी.
मैं ज़मीन पर रेंगते हुवे पिस्टल के पास पहुँच गयी.
मैने पिस्टल उठाई ही थी कि विवेक किसी तरह से वाहा से भाग खड़ा हुवा. मैने तुरंत उसकी ओर फाइयर किया और वो गिर गया. इस बार गोली उसकी पीठ पर लगी थी.
बिल्लू ज़मीन पर पड़ा था, वो अपनी राइट लेग को पकड़ कर दर्द से कराह रहा था.
मैं हिम्मत करके खड़ी हुई और उसकी तरफ पिस्टल तान दी.
“ऐसे नही ऋतु, ऐसे मत मारो मुझे, रूको मैं थोड़ा करीब आ जाता हूँ, तब आराम से निशाना लगा कर मारना, मैं तुम्हारे कदमो में मरना चाहता हूँ” ---- वो दर्द से कराहते हुवे बोला.
“बंद करो ये बकवास बिल्लू, मेरे करीब मत आना, मुझे अब तुम्हारे बारे में सब कुछ पता है, बड़ी चालाकी से बर्बाद किया है तुमने मुझे, आज मैं तुम्हे जींदा नही छ्चोड़ूँगी” ----- मैने चील्ला कर कहा.
“बिल्कुल ऋतु, मैं भी यही चाहता हूँ कि अगर मेरी मौत हो तो तुम्हारे हाथो से हो, मैं तुम्हारा गुनहगार हूँ” --- वो मेरी तरफ रेंगते हुवे बोला.
“रुक जाओ बिल्लू वरना मैं गोली चला दूँगी” ---- मैने फिर से उसे चील्ला कर कहा.
पर वो नही रुका और ज़मीन पर रेंगते हुवे मेरी तरफ बढ़ने लगा. मैने उसके उपर फाइयर किया पर गोली ना जाने कहा लगी, क्योंकि वो रुका नही और मेरे कदमो के बिल्कुल पास आ कर लेट गया.
“कहा था ना ऐसे मत मारो, मरने वाले की आखरी खावहिश का ध्यान रखा जाता है, लो अब मारो मुझे, गोली सीधी सर में मारो, मैं तुम्हारे कदमो में ही मरना चाहता हूँ” ---- बिल्लू ने मेरे कदमो पर हाथ रख कर कहा.
मैने कहा, “बंद करो ये नाटक बिल्लू, कुछ भी हो जाए, आज मैं तुम्हारी बातो के जाल में नही फसूंगी”
बिल्लू ने मेरे पाँव पर सर रख दिया और बोला, “नाटक नही है ये, मैं तुम्हारा गुनहगार हूँ, मैं मानता हूँ. मुंबई मैं बस तुम्हारे लिए ही आया हूँ. पीछले हफ्ते से रोज छुप छुप कर तुम्हे देख रहा हूँ. तुम्हारा सामना करने की हिम्मत नही हो रही थी मेरी. पर आज मैने जब तुम्हे विवेक की गाड़ी में बैठते देखा तो मैने तुम्हारा पीछा किया. मुझे डर था कि विवेक ज़रूर कोई ना कोई घिनोनी हरकत करेगा. पर रास्ते में मेरा एक छोटा सा आक्सिडेंट हो गया, जिसके कारण यहा पहुँचने में देर हो गयी. विवेक की गाड़ी मुझ से काफ़ी आगे निकल कर आँख से ओझल हो चुकी थी. मैं हर तरफ तुम्हे ढूंड रहा था. जब इस जंगल की तरफ आया तो देखा कि बाहर सड़क पर विवेक की गाड़ी खड़ी थी, उसी से मुझे लगा कि वो तुम्हे ज़रूर यहा लाया है”
“इस सब से तुम क्या साबित करना चाहते हो बिल्लू, कुछ भी करलो पर मैं तुम्हे कभी माफ़ नही करूँगी, तुमने मेरे साथ बहुत गंदा खेल खेला है” ---- मैने भावुक हो कर कहा.
“जानता हूँ ऋतु, और मैं भी खुद को शायद कभी माफ़ ना करूँ. अपनी भूल का अहसाश मुझे तब हुवा जब मुझे उस दिन गोली लगने के बाद होश आया. मुझे यकीन नही था कि मैं बचूँगा. पर वीना आंटी ने मुझे बचा लिया. मैं बदले की आग में अपने होश खो बैठा था ऋतु, मुझे माफ़ कर दो” --- बिल्लू गिड़गिदाते हुवे बोला.
“मैं क्या तुम्हे माफ़ करूँगी बिल्लू, मैं तो खुद को ही माफ़ नही कर पा रही हूँ, तुम्हारी तो बात ही दूर है” --- ये कहते हुवे मेरी आँखो में आन्षू उतर आए.
मैने पिस्टल बिल्लू के सर पर रखने की बजाए अपनी कनपटी पर लगा दी, और कहा, “मुझे नही पता कि तुमने मेरे साथ ऐसा क्यों किया और ना मुझे अब कुछ जान-ना है, मैं इतना ज़रूर जानती हूँ कि जितनी ग़लती तुम्हारी थी, उतनी ही मेरी थी, इश्लीए मैं तुम्हे मारने की बजाए अब खुद ही मर रही हूँ”
“नही ऋतु, मारना है तो मुझे मारो, तुम्हारी कोई ग़लती नही है, तुम्हारे साथ जो कुछ भी हुवा वो मेरे कारण हुवा है, मुझे गोली मारो ऋतु…. प्लीज़” ---- बिल्लू मेरे पाँव पकड़ कर बोला.
मैने फाइयर कर दिया. और वक्त जैसे थम गया.
पर किशमत को मेरी मौत मंज़ूर नही थी. बंदूक की गोलिया ख़तम हो चुकी थी.
मैं वाहा से हट गयी और लड़खड़ाते हुवे वाहा से चल पड़ी. अंधेरा घिर आया था और जंगल में तरह तरह की भयानक आवाज़े गूँज रही थी.
मुझे कुछ नही पता था कि सड़क किस तरफ है, मैं बस बिना सोचे समझे चल पड़ी.
हर इंशान की जींदगी में एक ऐसा पल आता है, जब वो अपने अंदर झाँक कर देखता है कि वो वाकाई में क्या है. मैं उस वक्त इशी अवस्था में थी. पर मुझे उस वक्त अपने अंदर जंगल से भी भयानक अंधेरा नज़र आ रहा था.
जो कुछ विवेक ने मेरे साथ किया था वो मेरी बची कूची आत्मा को मार गया था. बाकी सब कुछ तो बिल्लू पहले ही ख़तम कर चुका था.
“ऋतु रूको ये जंगल बहुत बड़ा है, कहा जा रही हो, तुम भटक जाओगी. मैं भी आ रहा हूँ” ----- बिल्लू ने मेरे पीछे से चील्ला कर कहा.
मैने पीछे मूड कर देखा, वो लड़खदाता हुवा मेरे पीछे आ रहा था. मैने एक पठार उठाया और उसकी और फेंक कर मारा. मुझे यकीन नही हुवा, वो सीधा उसके सर पर जाकर लगा और वो गिर गया.
जब मुझे होश आया था तो मैने देखा था कि विवेक मुझे किस रास्ते से लाया था. उसी रास्ते पर मैं आगे बढ़ रही थी, बिना किसी डर के, बिना किसी ख़ौफ़ के.डरता वो है जिसके पास खोने को कुछ बचा हो. मेरे पास खोने को कुछ नही था.
चलते चलते मुझे दूर से सड़क दिखाई दी.
मैने सड़क पर विवेक की कार खड़ी देखी. कार से थोड़ी दूर एक बाइक खड़ी थी. शायद वो बिल्लू की थी. विवेक की कार में मेरा पर्स था और मोबाइल था. मैने एक बड़ा सा पथर उठाया और ज़ोर से कार की खिड़की में मारा. खिड़की का शीसा थोड़ा चटक गया. मैने एक और पथर मारा और वो इतना टूट गया कि मैं अंदर हाथ डाल कर अपना पर्स निकाल सकूँ.
मैने पर्स निकाला और शुनशान सड़क पर चल पड़ी. दूर दूर तक कोई नही था. मेरे सर पर खून लगा था, चेहरे पर मिट्टी थी और सारे कपड़े धूल से भरे थे. कुछ नही पता था कि किस तरफ जाउ, मैं बस चले जा रही थी.
कोई 5 मिनूट बाद मुझे एक कार आती दीखाई दी. मैने सोचा कोई टॅक्सी होगी तो ही हाथ दूँगी.
पर वो टॅक्सी नही थी, इश्लीए मैने हाथ नही दिया. और वो कार आगे बढ़ गयी.
मुझ से थोड़ा आगे जा कर कार अचानक रुक गयी और पीछे की तरफ मेरी और आने लगी.
“अरे आप इस शुनशान सड़क पर अकेली क्या कर रही है, ओह्ह आपके सर पर तो खून लगा है, सब ठीक तो है” ------- कार में बैठी लेडी ने पूछा.
वो लेडी अकेली थी और खुद ही कार ड्राइव कर रही थी.
मैने कहा, “आप प्लीज़ मुझे ऐसी जगह छ्चोड़ दीजिए जहाँ से मैं टॅक्सी ले कर कोलाबा जा सकूँ”
“अरे हां हां आओ बैठो, ये सब क्या हुवा है आपके साथ” ? ------ उस लेडी ने पूछा.
“कुछ नही… जींदगी ने एक भद्दा मज़ाक किया है, आप प्लीज़ मुझे जल्दी कही छ्चोड़ दो” ---- मैने रोते हुवे कहा.
“पोलीस को फोन करूँ क्या” ? --- उस लेडी ने पूछा.
“अब पोलीस आकर क्या करेगी जो होना था सो हो गया” ----- मैने उस लेडी से कहा.
“क्या तुम्हारे साथ रेप हुवा है” ? अगर ऐसा है तो हमें तुरंत पोलीस स्टेशन चलना चाहिए” ---- उस लेडी ने कहा.
“नही रेप से भी ज़्यादा भयानक. आप मुझ से कुछ मत पूछो, मैं कुछ भी कहने की हालत में नही हूँ” ---- मैने उस लेडी को कहा.
“ठीक है….ठीक है, आप आराम से बैठो मैं अभी आपको किसी टॅक्सी तक पहुँचा देती हूँ” ------ वो लेडी बोली.
उसने मुझे एक टॅक्सी वाले के पास उतार दिया. टॅक्सी वाला भी मुझे ऐसी हालत में देख कर हैरानी में बोला, “मेडम ये क्या हुवा है, आपके सर पर तो खून लगा है”
मैने कहा, “कुछ नही मैं गिर गयी थी, मुझे जल्दी कोलाबा ले चलो”
“कोलाबा में कहा जाना है मेडम” ---- उसने पूछा.
मैने कहा, “होटेल ताज के पास”
जैसे ही मैं अपने फ्लॅट के बाहर पहुँची वाहा सिधार्थ खड़ा था.
वो मुझे देख कर बोला, “अरे ये क्या हुवा है तुम्हे ऋतु, ये चेहरे पर मिट्टी और ये सर पर खून, कैसे हुवा ये सब, मैं कब से फोन लगा रहा हूँ, फोन भी नही उठाया तुमने”
मैं इतनी भावुक हो उठी कि सिधार्थ के गले लग कर फूट फूट कर रोने लगी
“अरे क्या हुवा ऋतु, बताओ तो सही” ---- सिधार्थ ने मेरे सर पर हाथ रख कर पूछा
पर मैं कुछ भी बताने की हालत में नही थी
अछा चलो पहले तुम्हारे फ्लॅट में चलते है, आराम से बैठ कर बात करेंगे” ---- सिधार्थ ने मेरे सर पर हाथ फिराते हुवे कहा.
सिधार्थ मेरा हाथ पकड़ कर मुझे मेरे फ्लॅट पर ले आया.
“मैं कब से तुम्हारा फोन ट्राइ कर रहा हूँ, आज तुम्हे कुछ सर्प्राइज़ देना था, लेकिन खुद तुम्हे ऐसी हालत में देख कर सर्प्राइज़ हो गया, बताओ ये सब कैसे हुवा”
“सिधार्थ मैं तुम्हे कुछ नही बता सकती, ये एक लंबी कहानी है” ---- मैने कहा
“ठीक है ऋतु तुम चिंता मत करो बाद में आराम से बात करेंगे. पर तुम्हारे सर पर चोट लगी है, मैं किसी डॉक्टर को ले कर आता हूँ” ---- सिधार्थ ने कहा.
“नही सिधार्थ में खुद पट्टी बाँध लूँगी, डॉक्टर की बीवी रह कर बहुत कुछ सीखा है, मेरे पास सब समान है, तुम अभी जाओ मैं अभी अकेली रहना चाहती हूँ” ---- मैने सिधार्थ की ओर देख कर कहा
“ऋतु क्या मेरा तुम पर इतना भी हक नही है कि मैं सुख दुख में तुम्हारे साथ रह सकूँ. देख रहा हूँ कि जब से मिली हो, मुझ से दूर दूर रहने की कोशिश करती हो. क्या तुम वही ऋतु हो जो कभी मुझ से शादी करने को तैयार थी” ---- सिधार्थ ने पूछा
“नही सिधार्थ में वो ऋतु नही हूँ, वो ऋतु मर चुकी है, तुम प्लीज़ अभी जाओ, बाद में बात करेंगे” ---- मैने नज़रे झुका कर कहा. ऐसे कड़वे बोल मैं उसकी और देख कर नही बोल सकती थी.
“ठीक है मैं जा रहा हूँ, पर याद रखना मैं तुम्हे बहुत प्यार करता हूँ” ------- वो जाते हुवे बोला.
मैने उशके जाने के बाद दरवाजा बंद कर लिया और दरवाजे पर खड़े खड़े ही आंशु बहाने लगी.
सिधार्थ मुझे प्यार दे रहा था, और मैं उसे खुद से दूर धकैल रही थी. दर-असल मैं नही चाहती थी कि मेरे जैसी लड़की उसकी जींदगी में आए. वो बहुत अछा है, पर मैं क्या हूँ मई आछे से जानती हूँ. मैं अपनी बाकी की जींदगी का सफ़र अकेले बिताना चाहती हूँ…………. बिल्कुल अकेले.
सिधार्थ के जाने के बाद मैने अपनी मरहम पट्टी की और गरम पानी से नहा कर सो गयी. बहुत देर तक नींद नही आई पर जब आई तो सुबह 11 बजे आँख खुली. मैने उठते ही ऑफीस फोन किया कि मैं आज नही आउन्गि.
…………………………..
डेट 01-02-09
आज सनडे है और मैं घर पर हूँ. शाम का वक्त है और 6 बजने वाले है. पर एक अजीब समश्या आन खड़ी हुई है.
अभी अभी थोड़ी देर पहले डोर बेल बजी थी. मैने दरवाजे पर आकर देखा तो पाया कि किसी ने दरवाजे के नीचे से एक काग़ज़ का टुकड़ा सरका रखा था.
मैने काग़ज़ उठा कर देखा तो उस पर लीखा था
“ऋतु मैं तुम्हे सब कुछ बताना चाहता हूँ, गेट वे ऑफ इंडिया के सामने आ जाओ मैं तुम्हारा इंतेज़ार कर रहा हूँ. प्लीज़ एक बार मेरी बात सुन लो फिर कभी मुझ से बात मत करना. मैं तुम्हारे लिए ही मुंबई आया हूँ. मैं तुम्हारा इंतेज़ार कर रहा हूँ. बस एक बार मिल लो, प्लीज़”………..बिल्लू
मैने काग़ज़ फाड़ कर फेंक दिया है. बिल्लू की कोई भी बात सुन-ने का मेरा कोई इरादा नही है. वैसे भी मनीष सचाई के काफ़ी करीब है.
कल मैने दीप्ति को फोन किया था, उसने मुझे कहा था, “ऋतु, हो सकता है कि बिल्लू जींदा हो क्योंकि उसकी लाश नही मिली है. मनीष के अनुशार अशोक के साथ जो मारे गये है उनमे से एक राजू है और एक अशोक का लड़का दिनेश है”
मैने कहा, “बिल्लू यहा मुंबई में है दीप्ति”
“क्क़..क्या तुम्हे कैसे पता” --- दीप्ति ने हैरानी में पूछा.
मैने दीप्ति को 21 जन्वरी की पूरी घटना सुना दी.
“अरे तुमने तो कमाल कर दिया….. पर ये बात तुम मुझे आज बता रही हो, तुम्हे पता है ना मनीष इसी काम पर लगा है” ---- दीप्ति ने कहा.
“दीप्ति अब मेरा कुछ जान-ने का मन नही है, सॉफ लग रहा है कि बिल्लू की संजय और विवेक से कोई दुश्मनी है और संजय से बदला लेने के लिए उसने मुझे बर्बाद किया है. याद है ना वो खून से लीखी लाइन “डॉक्टर की तो यही सज़ा है पर वकील को हर हाल में मरना होगा” ---- मैने कहा
“वो तो मैं भी समझ रही हूँ, पर क्या तुम नही जान-ना चाहोगी कि बिल्लू क्यो संजय और विवेक के पीछे पड़ा है” ---- दीप्ति ने पूछा
“संजय से मेरा डाइवोर्स हो चुका है दीप्ति और विवेक से मेरा कोई लेना देना नही है. बाकी संजय खुद सब कुछ संभाल लेंगे, बिल्लू उनके पीछे पड़ा है तो पड़ा रहने दो. मैं इस चक्कर में नही पड़ना चाहती” ---- मैने कहा.
“वो तो ठीक है ऋतु, पर मनीष कह रहा था कि बहुत जल्द सचाई हमारे सामने होगी” ---- दीप्ति ने कहा.
इश्लीए मेरा बिल्लू से मिलने का कोई इरादा नही है. सचाई वैसे भी जल्दी ही सामने आ जाएगी.
……………………..
डेट : 2-02-09
आज सुबह की शुरूवात बहुत बुरी तरह हुई. सुबह कोई 8 बजे मैने अपनी खिड़की से बाहर झाँक कर देखा तो पाया कि मेरे फ्लॅट के बिल्कुल सामने सड़क पर बिल्लू खड़ा था.
मुझे खिड़की में देखते ही वो हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया, जैसे की कह रहा हो कि प्लीज़ मुझ से मिल लो.
मैने झट से खिड़की बंद कर दी और ऑफीस के लिए तैयार होने लगी.
शाम को जब घर आई तो फिर से मुझे अपने घर के अंदर दरवाजे के पास एक काग़ज़ मिला
उस पर लिखा था
“मैं बहुत देर तक कल तुम्हारा इंतेज़ार करता रहा, तुम्हे सब कुछ बता कर वापस देल्ही जाना चाहता हूँ, मेरे पास यहा ज़्यादा वक्त नही है. जैसे तैसे यहा किसी फ्रेंड के पास रह रहा हूँ. वो भी अब परेशान होने लगा है. मेरी फाइनान्षियल पोज़िशन ऐसी नही है कि इस सहर में ज़्यादा दिन ठहर पाउ. तुम्हे सब कुछ बता देता तो दिल को तस्सल्ली मिलती. तुम्हे बताए बिना मर गया तो मेरी आत्मा भटकती रहेगी. मेरी जींदगी का कोई भरोसा नही है. किसी भी वक्त मैं मर सकता हूँ, मेरी जान को हर वक्त ख़तरा है. प्लीज़ एक बार मिल लो. मैं तुमसे और कुछ नही चाहता”……………….बिल्लू
पता नही क्यों, एक मन हो रहा है कि एक बार उसकी बात सुन लूँ, पर फिर उसकी पिछली हरकते याद आती है. क्या पता ये उसकी कोई चाल हो, उस पर विश्वास
करना मुश्किल है.
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