Monday, April 26, 2010

Kamuk kahaaniya -"छोटी सी भूल --3

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"छोटी सी भूल --3



“मैं हरी, हरी घास पर लेटी हुई हू. मेरे शरीर पर, कोई कपड़ा नही है. चारो तरफ, घास, फूस और झाड़िया है. मेरी टाँगे हवा मे उपर उठी हुई है. बिल्लू ने मेरी टाँगो को अपने शीने पर थाम रखा है. बिल्लू मुझ मे, समाया हुवा है और जनवरो की तरह मुज़मे धक्के लगा रहा है. बिल्लू गंदी, गंदी बाते बोल रहा है, जिन्हे सुन कर मेरा सर फटा जा रहा है. मेरे चहरे पर अजीब सी गर्मी है. मैं ज़ोर से चिल्लाती हू “नहियीईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई”

और मैं उठ कर अपने बेड पर बैठ जाती हू.

संजय ने, तुरंत उठ कर, मेरे कंधो पर हाथ रखा, और पूछा, कोई बुरा सपना देखा क्या.

मैने कहा, हा बहुत ही बुरा और भयनक सपना था. उसने पूछा, क्या था सपने मे. और मैं चुप हो गयी. बताती भी, तो क्या बताती.

मैने होश संभाला, और कहा अब कुछ याद नही आ रहा. मैने घड़ी मे, वक्त देखा, अभी बस रात के 1:30 ही बजे थे. मैने चैन की साँस ली कि, सुक्र है, ये सपना सच नही होगा, क्योकि सुबह के सपने ही सच होते है.

मैं पानी पी कर वापस लेट गयी और संजय को कहा, सो जाओ, कोई चिंता की बात नही है.

पर मैं सोच मे थी कि, ये बिल्लू क्या, मेरी जींदगी का इतना बड़ा हिस्सा बन गया है कि अब मुझे उसके सपने भी आने लगे है.

मैं ध्यान से सपने का अनॅलिसिस करने लगी. सपने वाली जगह पता नही कोन सी जगह थी. चारो तरफ झाड़िया और पेड़ (ट्री) थे, लगता था कि किसी जंगल का द्रिश्य है.

मैं ये जानना चाहती थी कि ये सपना मुझे क्यो आया. पर कुछ नतीजा नही निकल पाया. अचानक मैने अपनी पॅंटी मे हाथ डाल कर देखा तो पाया की मैं वाहा पर गीली थी. मैं हैरान रह गयी और खुद पर शर्मिंदा हो गयी.

मैं सोच रही थी कि, वो कमीना बिल्लू, मुझे ये कैसी अजीब शी परेशानी दे गया है. पहले उसने, मेरे नितंबो पर अपने दांतो के निशान छोड़ दिए, जिशे संजय ने देख लिया, और मैं बाल-बाल बची.
फिर उसकी कही बाते मेरे दीमाग मे घूम रही थी, और अब मुझे ये इतना गंदा सपना आ गया.
ये बिल्लू आख़िर मेरी जींदगी से दफ़ा क्यो नही होता. मैने सोचा ताज़ा,ताज़ा बात है. शायद धीरे, धीरे सब ठीक हो जाएगा.

मैं सुबह 7 बजे उठी, और चैन की साँस ली कि चलो कल का भयानक दिन अब बीत गया, आज एक नया दिन है और एक नयी सुरुवात है.

संजय क्लिनिक चले गये और चिंटू स्कूल चला गया. मैं घर के काम मे लग गयी.

सुबह के 11 बज चुके थे. जब मैं किचन मे पहुँची तो सोचा की अब इस खिड़की को अलविदा बोल देती हू और मैने फ़ैसला किया कि मैं कम से कम खिड़की की ओर जाउन्गि.

2 कब बज गये पता ही नही चला. मुझे ख्याल आया कि मुझे बाहर देखना तो चाहिए कि, वह अब आता है कि नही, और यहा ना आने का, अपना वादा, निभाता है कि नही.
मैं खिड़की मे आ गयी और चारो तरफ नज़रे घुमा कर देखा, पर वाहा कोई नही था.
मेरे मन को तसल्ली मिली कि सुक्र है, ये कहानी यही ख़तम हुई.

मैं वापस अपने काम मे लग गयी, पर बार बार बाहर देखने के लिए खिड़की की और आने लगी. पर मुझे कोई नही दिखा.
मैने गहरी साँस ली और सोचा, ठीक ही तो है, ये सब यही ख़तम होना चाहिए था और मैं सोचने लगी कि बिल्लू ने अपना वादा निभाया है.

काई दिन बीत गये और मुझे यकीन हो गया कि वो अब दुबारा यहा नही आएगा.

अब मैं, खिड़की से झाँकना लग भग बंद कर चुकी थी. कभी अगर, बाहर देखा भी तो पाया की वाहा कोई नही है.

एक दिन, संजय शाम को जल्दी घर आ गये और बोले, चलो आज मूवी देखने चलते है. और मैं फॉरन सज-संवर कर तैयार हो गयी. मुझे मूवीस देखना, ख़ासकर थियेटर मे बहुत अछा लगता है.

मुझे पानी की प्यास लगी और मैं किचन मे आ गयी. मैने एक बॉटल निकाली और एक गिलास मे पानी डाला. पानी का गिलास ले कर मैं अचानक खिड़की की और मूड गयी.

मैने बहेर देखा तो पानी पीना भूल गयी. खिड़की के बाहर बिल्लू खड़ा था.
मैं सोच मे डूब गयी कि अब क्या करू ?
उसे बहुत दीनो बाद, देख कर मेरे मन मे अजीब सी बेचानी हो रही थी.
मैं हाथ मे पानी का गिलास लिए खड़ी रही और उसे देखती रही.
वह खिड़की के पास आ गया और बोला कैसी है तू.
इस से पहले कि मैं कुछ बोल पाती, अंदर से संजय की आवाज़ आई, ऋतु कहा हो, हम लेट हो रहे है.

मैं घबरा गयी कि कही ,संजय किचन मे ना आ जाए और मैं पानी का गिलास एक तरफ रख कर मूड गयी.
बाहर से बिल्लू की आवाज़ आई, मैं कल आउन्गा, मैने पीछे मूड कर उसकी और देखा, मैं रुक कर उससे ये कहना चाहती थी कि दुबारा यहा आने की कोई ज़रूरत नही है.
पर मेरे पास कुछ भी कहने का वक्त नही था

मैं फॉरन किचन से बाहर आ गयी.
संजय बेडरूम से हाथ मे घड़ी बाँधते हुवे निकल रहे थे. उन्होने पूछा, चले अब, मैने कहा हा चलो, मैं तैयार हू.

हम घर से, अपनी गाड़ी मे निकल पड़े. चिंटू को, मौसी के यहा छोड़ दिया, ताकि आराम से मूवी एंजाय कर सके.

रास्ते भर मैं बिल्लू के बारे मे सोचती रही. मैं सोच रही थी कि वह इतने दीनो बाद आज क्यो आया है ? क्या वह अपना वादा भूल गया ?

पर उसे आज फिर से देख कर दिल मे कुछ-कुछ हो रहा था, रह रह कर मुझे अब तक की सारी बाते याद आ रही थी.

थियेटर कब आ गया पता ही नही चला. हम ठीक टाइम से पहुँच गये थे.

संजय को मूवी बहुत अछी, लग रही थी और मैं बिल्लू के कारण बेचन हो रही थी. मैं ये जानेना चाहती थी कि बिल्लू आज वाहा क्यो आया था.
मैं खुद को बहुत समझा रही थी और अपना ध्यान बार-बार मूवी पर लगा रही थी, पर सब बेकार था.
मैं रह रह कर बिल्लू को कोस रही थी और सोच रही थी कि वह अजीब परेशानी खड़ी कर देता है. मैं उसे भूलने ही लगी थी कि वह आज फिर आ गया और सारे जखम हरे कर गया.

मैं एक पल के लिए भी मूवी एंजाय नही कर पाई.
मूवी कब ख़तम हो गयी पता ही नही चला. मैं खुद पर शर्मिंदा थी कि, मैं पहली बार अपने पति का साथ नही दे पाई.
मैं बार-बार सोच रही थी कि ऐसा क्यो हो रहा है.
मूवी देख कर हम, सीधे घर आ गये. मैने कपड़े चेंज किए और डिन्नर तैयार करने लगी.
अचानक मैं खिड़की मे आई और बाहर झाँका, मैं बाहर देख कर हैरान रह गयी.
बिल्लू एक पेड़ के सहारे खड़ा था, मेरा दिल धक-धक करने लगा.
मुझे देख कर वह खिड़की के पास आ गया.
मैने तुरंत पूछा, तुम अभी तक यही हो.
वो बोला, क्या करता तेरे से बात करने का मन कर रहा था.
मैने कहा तुम्हे यहा नही आना चाहिए था.
वो बोला, इतनी भी जालिम मत बन सिर्फ़ तुझे देखने ही तो आया हू.
मैं बोली, मेरे पति अंदर है, तुम जाओ यहा से.
वो बोला, चला जाउन्गा, बस थोड़ी देर तुझे जी भर के देख लेने दे.
मैं अजीब परेशानी मे थी.
संजय घर पर थे और ये बिल्लू ऐसी बाते कर रहा था.
मैने पूछा, तुम क्या उसके बाद आज ही यहा आए हो ?
वो बोला हा, मैं अपने गाँव चला गया था, मेरे एक चाचा की डेथ हो गयी थी.
उसने पूछा क्यो क्या हुवा ?
मैने कहा, कुछ नही बस यू ही.
वो बोला, कैसी है तू
मैने उसकी बात का कोई जवाब नही दिया और बोली, तुम चले जाओ, मेरे पति घर पर है.

वो बोला, फिर कब आ-ऊ ?
मैं डरते-डरते बोली अभी जा-ओ बाद मे बात करेंगे.
वो बोला, बता तो फिर कब मिलेगी.
मैं बोली तुम जाते हो की नही.
वो बोला मैं कल आउन्गा और मूड गया.
मैने कहा, यहा आने की कोई ज़रूरत नही है, मैं नही मिलूंगी.
वह मेरी और मुड़ा और अपना लिंग पॅंट के उपर से ही, मसलते हुवे बोला, वो तो कल ही देखेंगे.
और मैने मन ही मन मे बोला, कमीना कही का.
मैने अपनी नज़रे फेर ली और सोचा कि ये बिल्कुल नही बदला.
उसने अपनी साइकल उठाई और चला गया. मैं अपने काम मे लग गयी. खाना बना कर मैं चिंटू को लेने चली गयी.
मैं रात भर बेचन रही.
मैं सोच रही थी कि कल क्या करूँगी. एक बार ख्याल आया कि मई संजय और चिंटू के जाने के बाद घर को ताला लगा कर कही चली जाती हू.
पर फिर, ध्यान आया कि मैं अपना घर छोड़ कर क्यो जा-ऊ.

अगले दिन, मैं बेचानी की हालत मे सोकर उठी.
मैने तैय कर लिया की चाहे कुछ हो मैं खिड़की पर नही जाउन्गि.
ब्रेकफास्ट करने के बाद संजय क्लिनिक चले गये और चिंटू स्कूल चला गया.

मैं सब भूल कर घर के कामो मे लग गयी.
2 बज गये और मैं किचन मे खाना बनाने आ गयी.
मुझे ख्याल आया कि वो ज़रूर बाहर खड़ा होगा और सोचा खड़ा रहने दो मुझे क्या, मैने तो उसे नही बुलाया.
बाहर से आवाज़ आई, आ ना इस ग़रीब को इतना भी ना तडपा.
मैं बेचन हो उठी कि क्या करू, ये तो अब आवाज़ लगा कर बुलाने लगा है.
मैं डर रही थी कि अगर किसी ने सुन लिया तो क्या होगा ?
वो फिर बोला, आ ना प्लीज़.
मैं खिड़की मे आ गयी और बोली क्यो चिल्ला रहे हो कोई सुन लेगा.
वो बोला, तू आ क्यो नही रही थी ?
मैने कहा मेरा तुमसे मिलने का कोई मन नही है.
वो बोला, पर तू मेरे लिए तो यहा आ सकती है, मैं सब कम छोड़ कर आया हू.

मैं बोली तुम क्या ख़ास हो.

वो बोला, जिशे तुमने, अपनी सुंदर, सुंदर गांद को छूने दिया, वो क्या ख़ास नही.
मैं बोली, चुप करो अपनी बकवास.
अचानक वो चुप हो गया और अपने पाँव की और देखने लगा.
मैने कहा, जाओ अब मुझे खाना बनाना है.
वो बोला, मेरे पाँव से खून बह रहा है, तुझे खाने की पड़ी है.
मैने उसके पाँव को देखा तो, विचलित हो गयी, उसके अंगूठे से खून बह रहा था.
मैने इंसानियत के नाते पूछा, ये क्या हुवा ?
वो बोला, कुछ नही यहा आते वक्त एक भारी पत्थर से पाँव टकरा गया और अंगूठा छील गया.
मैने कहा, जल्दी डॉक्टर के पास जाओ, यहा क्या कर रहे हो.
वो बोला, मेरी डॉक्टर तो तू है, तू ही कुछ कर ना.
मैने कहा पागल मत बनो डॉक्टर के पास जाकर पट्टी करवा लो.
वो बोला, तेरे पास से मैं कही नही जाउन्गा. तू ही कुछ बाँध दे ना.
मैं सोचने लगी कि क्या करू.
मुझे ख्याल आया कि संजय, ने पट्टी का समान कही रखा तो है पर कहा ? याद नही आ रहा था.
मैने उसे कहा, मैं अभी आई.
मैं, बेडरूम मे फर्स्ट एड ढूँढने लगी. मुझे वह अलमारी मे ही मिल गया.
मैं फॉरन ले कर, खिड़की मे आ गयी और उसे किट देते हुवे बोली, लो दवाई लगा कर पट्टी बाँध लो.
वो बोला, प्लीज़ तू आकर बाँध दे ना.

मैने कहा, नही बिल्लू, मैं नही आ सकती. कोई देख लेगा.
वो बोला, अरे तुझे पता तो है, यहा कों आता है, थोड़ी देर के लिए आजा.
मैं बहुत बेचन हो रही थी कि क्या करू, एक मन कहता था कि ऋतु, रुक जा, वाहा जाना ठीक नही.
दूसरा मन कह रहा था कि पट्टी बाँध कर आ जाती हू.
मैने उसे कहा, ठीक है आती हू, और उस की आँखे चमक उठी.
मैं घर से बाहर आई. दोपहर का वक्त था सभी लोग घरो मे थे. मैं चुपचाप, हाथ मे फर्स्ट एड लिए, टहलते हुवे धीरे से झाड़ियो मे घुस गयी और झाड़ियो से होते हुवे घर के पीछे आ गयी.
मैने पाया कि बारिश के बाद , झाड़िया ओर ज़्यादा बढ़ गयी थी.
मेरे वाहा पहुँचते ही, वो बोला, बड़ी प्यारी लग रही है आज तू, और मैं शर्मा गयी. उसने पूछा तेरी उमर क्या है,
मैने कहा क्यो ?
वो बोला यू ही पूछ रहा हू
मैं बोली 27
और वो बोला, मेरी 21, क्या कॉंबिनेशन है, हैं ना.
मैं उसे 18 या 19 का समझती थी.
मैने सोचा, उसे दर्द मे भी क्या, क्या बाते सूझ रही है.
मैने उससे कहा, बैठ जाओ, मैं अंगूठे मे पट्टी बाँध देती हू.
वो बैठ गया, और मैने आराम से उसके अंगूठे पर दवाई लगा कर पट्टी बाँध दी.
बाँध कर मैं बोली, लो अब सब ठीक है, मैं चलती हू.
वो बोला, आ ही गयी है तो थोड़ी देर रुक ना, चैन से तुझे, जी भर के देख तो लू, तू बड़ी प्यारी लग रही है आज, कसम से बीजली गिरा रही है.

मैने शरमाते हुवे कहा, नही मुझे जाना होगा, खाना बनाना है.
वो बोला, रुक जा ना प्लीज़. मुझे दर्द मे चैन आएगा.
मैने कहा, ठीक है पर बस थोड़ी देर.

वो बोला चल सामने की झाड़ियो मे चल कर आराम से बाते करेंगे,
मैने कहा यहा भी तो चारो तरफ उँची झाड़िया है यही रहते है.
वो बोला चल तो, वाहा ओर भी अछा है.
वो मेरा हाथ पकड़ कर हमारे घर की खिड़की से थोडा आगे की झाड़ियो मे ले गया.

मैने वाहा पहुँच कर पाया कि वाहा हमे किसी भी हालत मे कोई नही देख सकता था. बहुत ही घनी झाड़िया थी, ऐसा लगता था कि झाड़ियो ने एक कॅबिन बना दिया है. अगर पिछली गली मे कोई आता भी, तो भी हमे, देख नही सकता था.
पर ऐसी तन्हाई मे मुझे घबराहट होने लगी.
हम वाहा एक दूसरे के सामने खड़े हो गये.
वो बोला, अब बता कैसी है तू.
मैं बोली ठीक हू.
वो बोला तुझे मेरी याद आई ?
मैने कुछ नही कहा.
मैने उसे कभी अपने आप याद नही किया. वो तो हमेशा ज़बरदस्ती मेरे ख्यालो मे आ जाता था.
वो बोला, मुझे तो तेरी बहुत याद आती थी. पर क्या करता यहा से दूर था.
उसने कहा, मैने अपने सब दोस्तो को तेरे बारे मे बताया, वो सब मुझ से जल गये.
मैं घबराते हुवे बोली, क्या ? तुम क्या मुझे बदनाम करोगे.
वो बोला अरे ऐसा कुछ नही है, मैं गाँव के दोस्तो की बात कर रहा हू. उन्हे यहा का क्या पता.
मैं थोड़ी शांत हुई, और बोली, फिर भी ये ठीक नही है.
वो बोला, चल उस दिन वाली यादे फिर से ताज़ा करे, बहुत मन कर रहा है आज. और ये कहते हुवे उसने मेरे नितंबो को थाम लिया.
मैने उसका हाथ हटाते हुवे कहा, प्लीज़, मैं दुबारा ऐसा नही कर सकती.
वो बोला, क्या तुझे उस दिन अछा नही लगा था.
मैने कहा, तुम तो कहते थे बाते करेंगे.
वो बोला, बाते तो होती रहेंगी, पहले तेरी सेक्सी, सेक्सी गांद तो मसल लू.
मैं शर्मा गयी और सोचने लगी की क्या करू अब ?
वो बोला, तुझ मे खो कर मेरा दर्द कम हो जाएगा.
मैं बोली, मैं उस से ज़्यादा कुछ नही करूँगी, तुम मेरी सीमाए जानते हो.
वो बोला, हा जानता हू तभी तो मैने बस दुबारा वही सब करने को कहा है.
मैं खुस थी कि वो मेरी सीमाओ की कदर कर रहा है.
वो बोला, थोड़ा घुमोगी.
मैने शरमाते हुवे कहा, तुम पीछे आ जाओ ना.
वो बोला, तेरे पीछे, खड़े होने की जगह नही है, नही तो कब का पीछे आ जाता.
मैने पीछे मूड कर देखा तो पाया कि मैं बिल्कुल झाड़ियो से सॅट कर खड़ी हू.
वो फिर बोला, घूम ना शर्मा मत.

मैं शरमाते हुवे उस के सामने घूम गयी.

बिल्लू ने, दोनो हाथो मे, मेरे नितंबो को थाम लिया और उन्हे बहुत बुरे ढंग से मसल्ने लगा.
वो बोला, तेरी गांद तो, ओर भी सेक्सी लग रही है.
उसने पूछा, एक बात पूचू अगर बुरा ना माने तो ?
मैने कहा हा पूछो, पर ऐसी, जिसका जवाब मैं दे सकु ?
वो बोला, अछा ये बता, क्या तेरे पति ने, तेरी सेक्सी गांद मारी है.
मैं उसके सवाल पर हैरान हो गयी और मेरा गला सूख गया.
मैने कोई जवाब नही दिया.

ये वो भी जनता था कि मैं जवाब नही दूँगी.

जिसके बारे मे वो पूछ रहा था, संजय ने काई बार किया था. उन्हे भी मेरे नितंब आछे लगते थे. उन्होने जब पहली बार वाहा डाला था तो बहुत दर्द हुवा था पर बाद मे मैं आसानी से करवा लेती थी. बल्कि मुझे उनका वाहा करना अछा लगने लगा था.
पर मैं अपनी ये निज़ी बाते, बिल्लू को नही बता सकती थी.

मैने पूछा तुम ये क्यो जानेना चाहते हो,

वो बोला, ऐसी सेक्सी गांद उसी की हो सकती है जो खूब चुदति हो.
मैने चुप ही रहना ठीक समझा और सोचा कि कितना कमीना है ये बिल्लू कैसी अजीब बाते करता है.

मैं ये सब सोच रही थी कि, मैने पाया की वह मेरी सलवार मे हाथ डालने की कोशिस कर रहा है.
मैं होश मे आई, और बोली कि, क्या कर रहे हो, बस बाहर-बाहर से करो.
पर वो नही माना, और अपने हाथो से मेरा नाडा खोलने लगा. मैने तुरंत उसके हाथ दूर झटक दिए.
मैं बोली बिल्लू नही, ऐसा कुछ नही होगा, सिर्फ़ उपर, उपर से करो, जैसा उस दिन किया था.

वो बोला, तुझे कपड़ो के बिना महसूस करना चाहता हू, तेरी जवानी को कपड़ो के बिना तो देख लू
मैने कहा नही, मैं ऐसा नही कर सकती.

पर वो नही माना, और मेरे कानो मे बोला, तेरी सुंदरता क्या, कपड़ो मे छुपा कर रखोगी, थोड़ी सलवार नीचे सरका ना, एक बार कपड़ो के बिना तो छूने दे, बस एक बार नाडा खोल कर सलवार नीचे सरका ले, एक मिनूट बाद, उपर कर लेना, बस थोडा सा.


मैने शरमाते हुवे कहा, अगर तुमने कोई बदमासी की तो ?
वो बोला, नही कोई बदमासी नही करूँगा, मैं वादा करता हू

मैने कहा नही प्लीज़, मुझे शरम आएगी.

वो बोला, अपने पति से भी शरमाती है क्या. उसके सामने भी तो नंगी होती होगी.

मैने कहा चुप रहो, उनके बारे मे, कुछ बोला तो मैं चली जाउन्गि.

वो बोला, अछा सॉरी, नही बोलूँगा, थोड़ी सी सलवार सरका ना, बस एक मिनूट के लिए नीचे सरका ले, कुछ नही होगा.

पर मैं अपने हाथो से, उशके लिए अपना नाडा नही खोल सकती थी, ये मेरी मर्यादा के खिलाफ था.
मैं चुपचाप सब सुनती रही.

उसने फिर से मेरा नाडा पकड़ा और खोलने लगा.
इस बार मैने उसे नही रोका और बोली, एक मिनूट मतलब एक मिनूट.

वो बोला ठीक है.

उसने मेरा नाडा, झट से खोल दिया. ऐसा लग रहा था जैसे, रोज किसी का नाडा खोलता है और नाडा खोलने मे एक्सपर्ट है.

मैं अजीब सी बेचानी मे समा गयी.

मैं ने पीछे मूड कर देखा तो वो बड़ी बेशर्मी से मेरे नंगे नितंबो को घूर रहा था.

पहली बार, संजय के अलावा, कोई, मेरे नितंबो को नंगा देख रहा था

उसने मेरी आँखो मे देखा और बोला, सच मे बड़ी जालिम गांद है तेरी, और वो झुक कर मेरे नितंबो को बे-तहासा यहा, वाहा चूमने लगा.

मैं शर्मा कर वापस घूम गयी.

उसने, अपने दोनो हाथ, मेरे नंगे नितंबो पर रख दिए.

मेरे शरीर मे बीजली की ल़हेर दौड़ गयी.
उसके हाथो की छुवन, मुझे बहुत अंदर तक महसूस हो रही थी. वो मेरे नितंबो को ऐसे मसल रहा था जैसे कोई आटा गूँथता है.

पहली बार संजय के अलावा किसी और ने मेरे नंगे नितंबो को छुवा था.

वह बड़ी बे-शर्मी से, उन्हे छूते हुवे बोला, क्या मखमली गांद है. मैं चुपचाप, वाहा खड़ी रही.

फिर उसने, अपने हाथ हटा लिए. मैं उत्सुक हो कर पीछे मूडी तो मेरे होश उड़ गये.

मैने देखा, वह अपनी ज़िप खोल रहा है.

मैं घबरा गयी ओह नो, हम दोनो एक साथ नंगे नही हो सकते.
मैने कहा, एक मिनूट हो गया, और अपनी सलवार, उपर करने लगी.

पर उसने मुझे रोक दिया और , बोला, क्या हुवा.

मैने कहा, तुम उसे क्यो निकल रहे हो.
वो बोला, बस तेरे चूतड़ पर इसे रागडूंगा, कपड़ो के उपर से भी तो रगड़ा था अभी क्या परेशानी है.

मैने कहा, प्लीज़ ऐसा मत करो मुझे कुछ कुछ हो रहा है.
वो बोला, बस एक बार थोड़ा लगाने दे, फिर सलवार चड़ा लेना.

मेरे हाथो से सलवार छूट कर अपने आप नीचे गिर गयी.
उसने मेरे, नितंबो को फैलाया, और उनमे अपना लिंग फसा दिया.
मैं बहाल हो गयी. कुछ अजीब सा अहसास हो रहा था.
वह दोनो हाथ, मेरे नितंबो पर रख कर हल्के, हल्के धक्के मारने लगा.

मैं ये सोच रही थी कि, अगर उसने अंदर घुसा दिया तो मैं लुट जाउन्गि.
मैने कहा, बिल्लू, मैं ये सब नही कर सकती, इसे कही और लगा लो.


वह मेरी अनसुनी कर के, अपने काम मे लगा रहा.



बिल्लू बड़ी बे-सरमी से, हल्के, हल्के, धक्के लगा रहा था, और मुझे उसका लिंग अपने गुदा द्वार पर टकराता हुवा महसूस हो रहा था.
“लग रहा था कि कोई, दरवाजा खड़का रहा है, टॅक, टॅक दरवाजा खोलो”

अचानक बिल्लू हट गया.

थोड़ी देर बाद, उसने, मेरे नितंबो को फैलाया, और मेरे गुदा द्वार पर, कुछ लगा दिया.

मुझे कुछ गीला, गीला सा महसूस हुवा.

मैने पीछे मूड कर देखा तो हैरान रह गयी, वह अपने लिंग पर थूक लगा रहा था और उसे गीला कर रहा था.

मैं समझ गयी कि उसने मेरे गुदा द्वार पर भी थूक लगाया है, मेरे पैरो के नीचे से ज़मीन निकल गयी.
मैं सोच कर घबरा गयी कि क्या ये, वो ? करने जा रहा है.
मैने पूछ ही लिया, बिल्लू ये क्या कर रहे हो ?
वो बोला, कुछ नही- कुछ नही, एक मिनूट.

मुझे ध्यान आया कि संजय ने जब पहली बार वाहा डाला था तो उसने भी अपने लिंग पर थूक लगाया था. पर बाद मे वो, इसके लिए लूब्रिकॅंट ले आया थे.
मैने पूछा एक मिनूट क्या मतलब, तुम क्या करने जा रहे हो.
वो बोला, कुछ नही अपने लिंग को थोड़ा सॉफ कर रहा हू, तेरी गांद इतनी गोरी है, और ये इतना काला इसे थूक से रगड़ के चमका रहा हू.



इस-से पहले कि, मैं कुछ और बोल पाती उसने मेरे नितंबो को फैलाया और अपना लिंग मेरे गुदा द्वार पर रख दिया.

मैं काँप उठी, मैं इस सब के लिए तैयार नही थी. घबरा कर वाहा से आगे बढ़ गयी.
उसका लिंग मेरे नितंबो से निकल कर हवा मे झूल गया.
मैं अब बिल्कुल सॉफ सॉफ समझ चुकी थी कि वो अब मेरी…………………………… और मैं ऐसा करने के लिए बिल्कुल भी तैयार नही थी.

वो बोला, क्या हुवा, आ ना.

मैने कहा, ये क्या बदतमीज़ी है, तुम तो वो करने जा रहे हो, बात सिर्फ़ महसूस करने की थी.

वो बोला, पागल मत बन आजा तुझे अछा लगेगा.

मैं ये बाते सुन कर काँप गयी और मुझे वो सपना याद आ गया. मैं कितने करीब थी उस सपने के आज.

मैने कहा, नही बिल्लू, मैं ये सब नही कर सकती, मैं अपने पति को क्या जवाब दूँगी.

वो बोला, अरे उसे, कुछ पता नही चलेगा. तू चिंता मत कर, आजा मुझे करने दे.

मेरी आँखो के सामने, उसका लिंग हवा मे झूलता हुवा सॉफ दिख रहा था.
मैं सोचने लगी कि, अगर मैं मान भी जा-ऊँ तो भी ये इतना बड़ा अंदर कैसे जाएगा.
मुझे वो दिन याद आ गया जब संजय ने पहली बार वाहा डाला था. संजय का बिल्लू से छोटा था, पर फिर भी मेरी जान निकल गयी थी उनका अपने वाहा अंदर लेने मे.

वो मेरे पास आया और बोला, ऋतु एक बात कहु ?
मैने कहा, कुछ भी कहो पर मैं वो नही करूँगी.

वो बोला सुनो तो सही.

मैने कहा, बोलो क्या बोलना है ?

वो बोला, तेरी गांद बहुत सेक्सी है, मुझे लगता है कि इसे सेक्स का भरपूर मज़ा मिलना चाहिए.

मैं बोली चुप करो.

वो बोला, नही मैं सच कह रहा हू, तेरी गांद जैसी हॉट गांद मैने आज तक नही देखी, इसका सब कुछ पर्फेक्ट है.

सी बाते सुन कर कोन नही शरमाएगा और मैने अपना चेहरा अपने हाथो मे छिपा लिया और बोली, बस करो मुझे शरम आ रही है.

वो फिर बोला,जब तुझे पहली बार देखा था तो यही सोचा था कि इसे तो किसी अगले जनम मे ही पाया जा सकता है, इस जनम मे तो मुझ ग़रीब की दाल नही गलेगी, और सच पूछो तो मुझे तेरा, मेरे इतने करीब आना सपना सा लगता है.

मैं बड़ी एमोशनल हो कर सब सुन रही थी.

मैं बोली, बिल्लू बस करो मैं बहक रही हू.

वो बोला, अगर बहक जाओ तो अछा है, इस ग़रीब का भरम टूट जाएगा कि तुझे सिर्फ़ अगले जनम मे ही पाया जा सकता है.

मैं बोली, प्लीज़ बस करो अब, मुझे कुछ-कुछ हो रहा है, मैं जा रही हू.

वो बोला, क्या तू मेरा ये भरम तोड़ॉगी कि तुझे सिर्फ़ अगले जनम मे पाया जा सकता है.

मैं सोच रही थी कि क्या जवाब दू इस बात का.

मेरे पास कोई जवाब नही था.
इतनी तारीफ़ मैने आज तक किसी और से तो क्या अपने पति से भी नही सुनी थी.

वह मेरे पीछे आ गया और बोला, ले मैं अपना भरम तोड़ने की एक कोशिस करता हू, अब मेरी जीत तेरे हाथ है.

अब तक उसके लिंग से, थूक सुख चुका था, और मेरे वाहा जो उसने थूक लगाया था वो भी गायब हो चुका था.

उसने मेरे नितंबो को फैलाया और मेरे गुदा द्वार पर, ढेर सारा थूक लगा दिया.

मैं कुछ भी कह पाने की स्थिति मे नही थी.

कहती भी तो क्या कहती ?

मेरे सरीर मे बीजली की तेज़ी से लहरे उठने लगी.

मैने पीछे मूड कर देखा तो, वो अपने लिंग पर फिर से थूक लगा रहा था.

उसने मेरी आँखो मे देखा और बोला, प्लीज़ थोडा सा झुक जा.
मैं शर्मा गयी, और उसके लिए मदहोश हो कर झुक गयी
झुक कर मैने एक हाथ से एक मजबूत झाड़ी को थाम लिया.
मेरी सारी मर्यादाओ की उन झाड़ियो मे धज़िया उड़ गयी.
मेरा दीमाग अब काम करना बंद कर चुका था.

उसने अपने दोनो हाथो से, मेरे नितंबो को फैलाया और अपना लिंग मेरे गुदा द्वार पर टीका दिया.

अब बस एक हल्के से धक्के की देर थी और वो मेरे अंदर होता.

वो बोला, जब तक तुम डालने को नही कहोगी मैं नही डालूँगा.

मैं अजीब प्रॉब्लम मे फस गयी.

मैने कहा प्लीज़ जो करना है कर लो, मैं कुछ नही बोल सकती.

वो बोला, मेरा भरम टूटने के लिए ये ज़रूरी है.
वो अपना लिंग वाहा टीकाए खड़ा रहा और मैं खामोसी से झुकी रही.

वो बोला, प्लीज़ बोल ना क्या करू, हटा लू या डाल दू.

मैं आज तक अपने पति को भी ऐसी बाते नही बोल पाई थी, इसलिए बड़ी परेशान हालत मे थी.

वो फिर बोला, प्लीज़ बोल ना क्या करू.

मैं बोल पड़ी, डाल दो.

वो बोला, क्या कहा ? फिर से कहो.

मैने शरमाते हुवे कहा, डाल दो.

और वक्त मानो थम गया.

उसने एक हल्का सा धक्का मारा और उसका लिंग एक इंच अंदर सरक गया.

मैं दर्द से चीन्ख उठी….आआययययीीईईईईईईईई. और बोली, ज़रा धीरे से.

वो वही रुक गया.

वो बोला, मैं धीरे-धीरे पूरा डालूँगा तू चिंता मत करना दर्द नही होने दूँगा.

वह बहुत धीरे-धीरे मेरे गुदा द्वार मे अपना लिंग सरकने लगा.
मैं ये देख रही थी कि, बिल्लू अपने शब्दो का पक्का है.

मुझे दर्द तो बहुत हो रहा था पर मैं चुपचाप वाहा झुके हुवे सब झेल रही थी.

मैं चिल्ला कर पड़ोसियो को नही सुना सकती थी.

धीरे, धीरे उसने अपना पूरा लिंग मेरे अंदर सरका दिया और बोला, अहह , तूने आख़िर मेरा भरम तोड़ ही दिया. तू सच मे सुंदर ही नही एक अछी इंसान भी है.

मैं हैरान थी क़ि उसका इतना लंबा लिंग पूरा मेरी गुदा मे समा चुका है.

मैं उसके जाल मे पूरी तरह फस चुकी थी.
मुझे वाहा झुके, झुके ये ख्याल आ रहा था कि आख़िर इस बिल्लू ने मेरी ……………… मैं अपनी मर्यादाओ की बात हार चुकी थी.

उसने पूछा, क्या अब मैं मारु.

मैं शरम से लाल हो कर बेचन हो गयी.

वो बोला, मैने अब तुझे पा लिया है, तू चाहे तो मैं बाहर निकाल सकता हू, बता निकल लू, या फिर, तेरी सेक्सी गांद मारना सुरू कर दू.

मैं हैरान थी कि हे भगवान ये मुझ से क्या पूछ रहा है, मैं कैसे जवाब दूँगी.

वो बोला, जब तक तू नही बोलेगी मैं आगे नही बढ़ुंगा.

मैं अपने अंदर उसका लिंग लिए, चुपचाप झुकी रही.

वो फिर बोला, बोल ना क्या करू.

मैं पहले भी देख चुकी थी कि ये सुने बगैर नही मानेगा.
मैं सोच रही थी कि जब इसने पूरा मेरे अंदर डाल ही दिया है, तो अब क्या रह गया है.

उसने फिर पूछा बोल ना मारु या नही.

मैने कहा “मार लो”

वो जैसे ये सुन कर पागल हो गया और बोला, थॅंकआइयू.

उसने अपना पूरा लिंग बाहर की ओर खींचा और इस-से पहले कि वो पूरा बाहर निकल पाता, उसे फिर से मेरे अंदर धकेल दिया.

मेरी साँसे थम गयी और मेरी आँखो के आगे अंधेरा छा गया. बहुत ही अछा सा अहसास हो रहा था.

वो बार-बार उसे बाहर की और खींचता और बार-बार अंदर धकेल्ता.

मुझे बहुत ज़्यादा मज़ा आ रहा था. उसका लंबा लिंग मेरे नितंबो की हर गहराई तक पहुँच रहा था.
मैं सोच रही थी कि ऐसा मज़ा तो संजय के साथ भी नही आया, ये बिल्लू चीज़ क्या है.

और मैं अचानक ये बाते सोच कर खुद पर शर्मिंदा हो गयी और मैने सॉरी महसूस किया कि कम से कम मुझे संजय के साथ कुछ कंपेर नही करना चाहिए. आख़िर उनकी क्या ग़लती है ? उन्होने तो अब तक मुझे दुनिया की हर ख़ुसी दी थी.

अचानक मैने महसूस किया कि बिल्लू की स्पीड बढ़ गयी है.

उसके धक्को की स्पीड बढ़ते ही मेरा मज़ा भी काई गुना बढ़ गया.

मैं हैरान थी कि मैं कैसे उसके हर धक्के का मज़ा ले रही हू. अभी कल तक तो मैं उसे भुला देना चाहती थी

बिल्लू ने पूछा, कैसा लग रहा है.

मैने कहा, बहुत अछा.


वो ये सुन कर ज़ोर से हंस पड़ा और बोला, मुझे तेरे से भी ज़्यादा मज़ा आ रहा है. ऐसी सुंदर गांद रोज कहा मिलती है.

मैं ये सुन कर शरम से लाल हो गयी.

मैने अचानक महसूस किया कि मेरी योनि से नादिया बह निकली है और उसका पानी मेरी टाँगो तक आ गया है.

वो बोला, बता कितनी देर तक मारु. तू जितना कहेगी, मैं मारता रहूँगा.

मैं शर्मा गयी और उस से पूछा, टाइम क्या हुवा है. वो बोला 3:30.

ये सुनते ही, मेरे पैरो के नीचे से ज़मीन निकल गयी.
संजय 3 बजे घर आने वाले थे. और चिंटू की स्कूल बस भी आने वाली होगी (चिंटू वैसे 2 बजे तक घर आ जाता था, आज उनके स्कूल से बचो को पिक्निक पर ले गये थे. 4 बजे तक लोटने का प्लान था.)

मैं होश मे आई और बोली, जल्दी ख़तम कर दो, मेरे पति घर आ चुके होंगे और मुझे ढूंड रहे होंगे.

वो बोला, अरे ये तो मुझे भी ध्यान नही रहा.
उसने अपने धक्को की स्पीड और तेज कर दी.

मैं फिर से आनंद के अताह सागर मे डूब गयी.

वो चीन्ख उठा, आआहह………….. और ढेर सारा गरम, गरम पानी मेरी गुदा मे डाल दिया.

वो बोला, ऐसा मज़ा आज तक नही आया, थॅंकआइयू, वेरी मच.

मैने शरमाते हुवे कहा, प्लीज़ अब निकाल लो मुझे जल्दी जाना है.

वो बोला, ओह हा, सॉरी मैं फिर से भूल गया.
उसने धीरे से अपना लिंग बाहर निकाल लिया, और मैं सीधी खड़ी हो गयी.

मेरे पाँव लड़खड़ा रहे थे. मुझे भी ऐसा मज़ा कभी नही आया था. मुझे अपनी गुदा मे अब हल्का हल्का दर्द हो रहा था.

मैने अपनी सलवार पहनी और बिल्लू से कहा, मैं चलती हू.

वो बोला, रुक तो.

मैने कहा, अभी बिल्कुल वक्त नही है. संजय मुझे ढूंड रहे होंगे.

मैं कपड़े पहन कर झाड़ियो से निकली और खिड़की के नीचे से थोडा झुक कर चलने लगी.

मुझे डर था कि अगर संजय घर मे हुवे तो कही मुझे खिड़की से यहा ना देख ले.

मैने पीछे मूड कर देखा तो पाया कि वो उन झाड़ियो से मुझे ऐसे जाते हुवे देख कर मुस्कुरा रहा था.

घर पहुँच कर मैने पाया कि संजय टीवी देख रहे है.

मुझे देखते ही वो बोले, कहा थी तुम ?

मैने डरते, डरते कहा वो मेरे कॉलेज की एक फ्रेंड आई थी उसी के साथ मार्केट चली गयी थी सॉरी लेट हो गयी.

संजय बोले, तुम खाना भी बना कर नही गयी.

मैं खुद पर बहुत ज़्यादा शर्मिंदा हो गयी और आज के दिन को कोसने लगी,

मैने कहा, मैं अभी कुछ बनाती हू. वो बोले कोई बात नही मैं बाहर खा लूँगा, तुम चिंता मत करो, मैं अब लेट हो रहा हू.

उन्होने मेरे चेहरे पर हाथ रखा और बोले, बाइ शाम को मिलते है.

मेरी आँखो मे आँसू आने को हो गये, कि मैं संजय को धोका दे रही हू और ये मुझे इतना प्यार करते है.

मैं संजय के जाने के बाद फॉरन बाथरूम मे चली गयी और नहाने लगी.
नहा कर मैने कपड़े चेंज किए और वो कपड़े अख़बार मे लपेटे कर कूड़ेदान मे डाल दिए.
मैं आज की कोई याद रखना नही चाहती थी.

वक्त जैसे खुद को दोहरा रहा था.

मैं खिड़की मे आई तो पाया बिल्लू अभी भी वही है.

वो मुझे देख कर खिड़की के पास आने लगा और मैने गुस्से मे खिड़की बंद कर दी और अपने बेडरूम मे आकर अपनी किस्मत पर रोने लगी. आज मेरा सब कुछ लूट चुका था.

मैने खुद को संभाला, और फ़ैसला किया कि, ये पहली और आखरी बार था, अब मैं बिल्लू को कभी कोई मोका नही दूँगी.















आपका दोस्त राज शर्मा
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा

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