Friday, April 30, 2010

Kamuk kahaaniya -"छोटी सी भूल --21

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"छोटी सी भूल --21


गतांक से आगे ...................


ऐसा नही था कि बिल्लू से मेरी नाराज़गी दूर हो गयी थी, और ना ही ऐसा था कि मैने उसे माफ़ कर दिया था, पर फिर भी एक इंशान होने के नाते मैं बिल्लू के लिए परेशान थी.चाहे उसने मुझे बर्बाद किया हो पर फिर भी उसका मुझ से कोई ना कोई संबंध तो था ही.

बिल्लू को थोड़ी ही देर में होश आ गया. वो हड़बड़ा कर एक दम से उठ गया और बोला, “मैं कहा हूँ”


मैं वही उसके करीब ही थी, सिधार्थ भी मेरे साथ ही खड़ा था.
मैने कहा, “बिल्लू तुम बेहोश हो गये थे, अभी तुम क्लिनिक में हो, चिंता मत करो सब ठीक है”

“कुछ ठीक नही है ऋतु, मुझे तुमसे अकेले में बात करनी है” ------- बिल्लू ने मेरी ओर देख कर कहा.

सिधार्थ ने मेरी और देखा और मैने उसे आँखो ही आँखो में वाहा से बाहर जाने की रिक्वेस्ट की.


सिधार्थ मेरा इशारा समझ गया, और बाहर चला गया. बहुत ही अजीब पल था वो मेरे लिए. सोच रही थी कि कही सिधार्थ को बुरा ना फील हो की मैं बिल्लू से बात क्यो करना चाहती हूँ. पर पता नही क्यो मैं बिल्लू की बात सुन-ना चाहती थी


सिधार्थ के जाने के बाद बिल्लू बोला, “
बैठ जाओ ऋतु”


पहले तुम कुछ खा लो बिल्लू डॉक्टर कह रहा था कि तुमने 2-3 दिन से कुछ नही खाया, क्या तुम्हारी फाइनान्षियल पोज़िशन इतनी खराब है


मेरी बात सुन कर वो थोड़ी देर तक मेरी और देखता रहा, जैसे की मेरे चेहरे पर कुछ पढ़ रहा हो.


मैने उशे ध्यान से देखा तो पाया कि उसकी आँखे नम थी. वो नम आँखे लिए मुझे देखे जा रहा था.


वो बोला, “क्या तुम्हे मेरी चिंता हो रही है ऋतु, ऐसा मत करो मैं इस लायक नही हूँ”

“नही ऐसी बात नही है, डॉक्टर कह रहा था कि तुमने कुछ दीनो से कुछ नही खाया इश्लीए कह रही थी” ---- मैने कहा


“फाइनान्षियल पोज़िशन इतनी भी खराब नही है. कल जब तुमने मंदिर के बाहर मुझे यहा से दफ़ा हो जाने को कहा तो मेरी उमीद टूट गयी. लग रहा था कि तुमसे मिले बिना ही यहा से जाना पड़ेगा. इश्लीए कल मेरा कुछ खाने का मन नही हुवा. और आज इश्लीए नही खा पाया क्योंकि आज मेरी दीदी कविता का बिर्थडे है और मुझे कुछ नही पता कि वो कहा है, किस हाल में है, इस दुनिया में है भी या नही. ऐसी हालत में कोई कैसे खाना खाएगा ऋतु. मैं एक भाई का फ़र्ज़ नीभाने में नाकाम रहा हूँ.” ---- बिल्लू ने एमोटिनल हो कर कहा.


“बिल्लू मैं समझ रही हूँ, पहले तुम खाना खा लो फिर बात करेंगे, मैं तुम्हारी बात सुन-ने के लिए तैयार हूँ” ----- मैने कहा


“नही ऋतु तुम्हे सब कुछ बताए बिना एक नीवाला भी मेरे मूह से नही उतरेगा, पहले मेरी बात सुन लो, खाना पीना तो होता रहेगा” ------ बिल्लू मेरी और देख कर बोला


“चलो ठीक है, शुनाओ मैं शुन रही हूँ” --- मैने कहा

“पहले ये बताओ कैसी हो तुम” ------- बिल्लू ने मेरी ओर देख कर पूछा

“कैसी लग रही हूँ बिल्लू………….. बस जी रही हूँ, वरना तो अब बचा ही क्या है” ---- मैने भावुक हो कर कहा.


“समझ सकता हूँ, पीछले 2 साल से मेरी भी यही हालत है” ------- बिल्लू ने कहा


“इश्लीए तुमने मेरी भी यही हालत कर दी”
? ----- मैने पूछा


“हालात ही कुछ ऐसे थे ऋतु, वरना आज तक मैने किसी को नुकसान नही पहुँचाया, सुनो मैं तुम्हे पूरी बात डीटेल में बताता हूँ.” ----- बिल्लू ने कहा

मैने कहा, “हां सुनाओ मैं जान-ना चाहती हूँ कि मेरी बर्बादी का क्या कारण है”



बिल्लू के शब्दो में :-----



ऋतु, मेरी दीदी कविता मेरे लिए सब कुछ थी. मेरे पेरेंट्स कोई 10 साल पहले एक आक्सिडेंट में मारे गये थे. उसके बाद मेरी दीदी कविता ने ही मुझे पाल पोश कर इतना बड़ा किया है. वो कोई तुमसे 3 साल बड़ी होंगी.


दीदी ने जब 2005 में फरीदाबाद में संजय के क्लिनिक में जाय्न किया था तो वो काफ़ी खुस थी. पर में उनके साथ फरीदाबाद नही आ सकता था. तब मैं बी.कॉम सेकेंड एअर में था. इश्लीए देल्ही में ही रहता था. पर कभी कभी दीदी से मिलने आ जाता था.


सब कुछ अछा चल रहा था. मैं दीदी के लिए कोई लड़का ढूंड रहा था. वैसे वो हमेशा कहती थी कि तुम चिंता मत करो अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो, मैं खुद सब कुछ संभाल लूँगी. पर मैं ये आछे से जानता था कि उन्हे मेरे कारण अपनी शादी की चिंता नही है.


खैर मैने दीदी के लिए एक लड़का ढूंड ही लिया. लड़का सारीफ़ था और उसके घर वालो की कोई डिमॅंड भी नही थी. हमारी हालत वैसे भी ऐसी नही थी कि ज़्यादा दहेज दे सकें. लड़का सेट्ल था, और बॅंक में पी.ओ था.


मैने 2-02-2007 की सुबह को दीदी को फोन करके बताया कि आप छुट्टी ले कर देल्ही आ जाओ, मैने एक लड़का पसंद किया है, लड़के वाले आपको देखना चाहते है.

पहले तो उन्होने मुझे डांटा की अपनी पढ़ाई छ्चोड़ कर बेकार के काम में क्यों लगे हो, पर फिर वो देल्ही आने के लिए मान गयी और मुझे कहा, “ लगता है, अब तुम बड़े हो गये हो”



ये बोल मुझे अभी तक याद है क्योंकि उसके बाद आज तक मैं दीदी की आवाज़ के लिए तरस रहा हूँ. हर पल लगता है कि अभी फोन बजेगा, अभी कोई आहट होगी और दीदी मुझे कहेगी, “बिल्लू तुम पढ़ाई क्यों नही कर रहे”


3-2-07…को मैं सारा दिन बेचैन रहा. सुबह से दोपहर हुई और दोपहर से शाम, लड़के वाले बहुत देर तक बैठ कर चले गये. जाते जाते कह गये, “कोई बात नही बेटा, हम फिर कभी आ जाएँगे”

मैं दीदी का मोबाइल नंबर. ट्राइ कर-कर के थक गया. हर बार उनका मोबाइल स्विच्ड ऑफ आ रहा था.मुझे लग रहा था कि कुछ ना कुछ गड़बड़ है, वरना दीदी कभी अपना मोबाइल ऑफ नही रखती है.

शाम के कोई 6 बजे मैने फरीदाबाद जाने का फ़ैसला किया. एक घंटा तो देल्ही के आइएसबीटी पहुँचने में ही लग गया. मैं कोई 9 बजे फरीदाबाद पहुँच गया और सीधा वाहा पहुँच गया जहा दीदी पेयिंग गेस्ट थी. पर वाहा मुझे लॉक मिला. मैने आस पास के लोगो से पूछा तो उन्होने बताया कि उन्होने कल से कविता को नही देखा. एक लेडी ने ये भी बताया कि कल से वो वाहा आई ही नही थी.


फिर मैने दीदी के क्लिनिक मतलब कि संजय के क्लिनिक जाने का फ़ैसला किया.


क्लिनिक पहुँच कर मैने संजय से पूछा, “डॉक्टर मेरी सिस्टर कविता कहा है” ?


उसने मुझे घूर कर देखा और बोला, “वो तो यहा से काम छ्चोड़ कर चली गयी, मुझे नही पता वो कहा है”

ये सुन कर मैं हैरान रह गया. मैं सोच रहा था कि, दीदी ने तो ऐसा कुछ नही बताया, अभी कल ही तो उनसे मेरी बात हुई थी.


मैं मायूसी भरा चेहरा लेकर क्लिनिक से बाहर आ गया.


तभी मुझे याद आया कि दीदी अक्सर किसी वीना जोसेफ के बारे में बात करती थी. वीना जोसेफ ने दीदी को नर्सिंग फील्ड में काफ़ी प्रॅक्टिकल टिप्स दी थी.


मैं फिर से क्लिनिक में घुस्स गया और एक नर्स से पूछा “क्या आप वीना जोसेफ को जानती है” ?

उसने मुझे हाथ से इशारा किया कि वो सामने वीना जोसेफ ही खड़ी है.


मैं वीना जोसेफ के पास गया और उनसे पूछा कि मेरी दीदी कविता कहा है.


उन्होने मुझे धीरे से कहा कि क्लिनिक के बाहर वेट करो में बाहर आती हूँ.

मुझे कुछ समझ नही आ रहा था कि वो ऐसा क्यो कह रही है


मैं क्लिनिक के बाहर आ गया और थोड़ी देर में वीना जोसेफ भी आ गयी. रह रह कर मुझे दीदी की चिंता हो रही थी. यही सोच रहा था कि आख़िर वो कहा है.


वीना जोसेफ ने मुझे बताया, “बेटा कल कविता शाम को संजय के कॅबिन में गयी थी. कह रही थी कि एक दिन की छुट्टी माँगने जा रही हूँ. पर जब वो बाहर निकली तो उसकी आँखो में आंशु थे. वो बिना किसी से कुछ कहे क्लिनिक से निकल गयी. उशके पीछे पीछे मैने संजय के दोस्त विवेक को जाते देखा. बस इतना ही मुझे पता है. आज वो क्लिनिक नही आई. मैने डॉक्टर से पूछा तो उन्होने मुझे यही बताया कि वो काम छ्चोड़ कर चली गयी. वैसे कविता यहा कुछ दीनो से परेशान थी. ये विवेक अक्सर उसके साथ छेड़-छाड़ करता था. कयि बार मैने खुद अपनी आँखो से उसे कविता को छेड़ते देखा है. पर कल ज़रूर कुछ ज़्यादा हुवा होगा, इश्लीए उसकी आँखो में आन्शु थे.


ये सुन कर मेरा दिल बैठ गया, मैं सोच भी नही सकता था कि दीदी के साथ ऐसा होगा

मैने पूछा, “क्या जब कविता बाहर आई थी, तब डॉक्टर संजय भी अंदर थे”

वीना जोसेफ ने बताया, “ हां . संजय अंदर ही थे”


ये सुनते ही मेरी रागो में खून दौड़ गया. मैं भाग कर संजय के कॅबिन में घुस्स गया और उसे इतना मारा कि उसके मूह से खून निकलने लगा. पर तभी ना जाने कहा से विवेक भी वाहा आ गया और दौनो ने मुझे काबू कर लिया. मैं फिर भी उन्हे संभाल लेता पर विवेक के पास पिस्टल थी.


“कौन है ये संजय” --- विवेक ने पूछा.


“ये कविता का भाई है विवेक, तू इस पर निशाना लगा कर रख मैं इसे बताता हूँ कि कैसे किसी को मारा जाता है” ------- संजय ने विवेक से कहा

संजय ने मेरे पेट में, मूह पर… हर तरफ घूससों की बोछर कर दी

मैं गिर गया, क्या करता वैसे भी विवेक ने मेरे उपर बंदूक तान रखी थी

“ओह्ह हां याद आया मेरा मोबाइल कहा है, इसे ऐसी मौत दूँगा कि तड़प तड़प कर मरेगा साला हरामी, मुझ पर हाथ उठाएगा” ---- संजय ने कहा


संजय ने मेरी आँखो के आगे अपना मोबाइल किया. उसमे एक मूवी क्लिप चल रही थी.

पता है ऋतु उस क्लिप में क्या था.


बिल्लू थोड़ी देर चुप हो गया और मैने देखा कि वो रो रहा है.

मैने पूछा “क्या था बिल्लू बताओ मैं सुन रही हूँ”



मेरी दीदी रो रही थी और रोते-रोते ज़ोर ज़ोर से चील्ला रही थी और विवेक उसके साथ रेप कर रहा था. मुझ से देखा नही गया मैने अपनी आँखे बंद कर ली. पर तभी मेरे सर पर संजय ने कुर्सी दे मारी और मैं ज़मीन पर गिर गया.


तब संजय ने मेरे सर के बॉल पकड़ कर खींचे और अपने मोबाइल को मेरी आँखो के सामने ले आया और बोला, “देख साले क्या हॉट माल है तेरी बहन, क्या मज़े से चील्ला चील्ला कर दे रही है”

मेरी दीदी रो रही थी, और विवेक उसके साथ…..

“बस बिल्लू….. बस करो, मैं और नही सुन पाउन्गि” ---- मैने अपने कानो पर हाथ रख कर कहा.


ऋतु मेरी दीदी के साथ कोई 4 लोग रेप कर रहे थे और मुझे ज़बरदस्ती सब कुछ देखाया गया. संजय और विवेक को तो मैं जानता हूँ, बाकी के 2 लोगो का मुझे नही पता कि वो कौन थे. और पता है जगह कौन सी थी.


“कौन सी बिल्लू” ----- मैने पूछा.


“तुम्हारा बेडरूम ऋतु, वही बेडरूम जहा उस दिन में तुम्हे अपनी बाहों में उठा कर ले गया था. तुम्हारा बेडरूम देखते ही मैं पहचान गया था कि ये वही मोबाइल क्लिप वाली जगह है” --- बिल्लू ने कहा

मैने कहा “ओह याद आया उन दीनो मैं शायद अपने मायके में थी, मतलब कि देल्ही में थी, पर क्या संजय ने भी…”


“कह तो रहा हूँ, वाहा 4 लोग थे संजय उनमे से एक था” ------- बिल्लू ने मेरी ओर देख कर कहा.


“ओह गॉड….. मुझे विश्वास नही होता” ---- मैने कहा


“यही वो वजह थी जिसके कारण मैने उस दिन संजय को वाहा खिड़की पर बुलाया और अपने पीछे अशोक और राजू को खड़ा कर लिया. अशोक और राजू तुम्हारे लिए वाहा नही थे ऋतु, वो संजय को दीखाने के लिए थे. मैं उसे दीखाना चाहता था कि देखो कैसा लगता है किसी अपने को ऐसी हालत में देख कर” ---- बिल्लू ने कहा

“पर क्या तुम्हे मेरी कोई चिंता नही थी, तुमने एक पल को भी नही सोचा कि मेरा क्या होगा” --- मैने बिल्लू की ओर देख कर पूछा


“ऋतु मैं तो उस दिन को टालना चाहता था. तुम्हे याद होगा मैने तुम्हे कहा था कि तुम संजय को सब कुछ बता दौ, याद है ना तुम्हे, मैने कहा था ना. ” बिल्लू ने पूछा

“हां याद है, पर तुम्हे मुझे अशोक के आगे फेंकने की क्या ज़रूरत थी” ---- मैने पूछा

बिल्लू कंटिन्यू….


मैं बस संजय को बर्बाद करना चाहता था और चाहता था कि उसकी बीवी के चरित्र को छलनी छलनी कर दूं.

पर बाद में मुझे अपनी ग़लती का अहसास हुवा. शायद मुझे तुमसे प्यार होने लगा था.

इश्लीए मैने उस साइकल वाले को मारा था. मैं बिल्कुल बर्दस्त नही कर पाया कि उस साइकल वाले ने तुम्हे बस में छेड़ा है. उस वक्त मुझे पहली बार अहसास हुवा था कि मैं तुमसे प्यार करता हूँ.

पर बदले की आग तब तक प्यार पर हावी थी. इश्लीए प्यार इतना उभर नही पाया.

अशोक ने कयि बार बाद में मुझे कहा कि ऋतु को एक बार फिर ले आओ, पर मैने उसे सॉफ मना कर दिया था कि मेरे अलावा उसे कोई नही छूएगा. और उसे ये भी कह दिया था कि तुमने अगर ऐसा सोचा भी तो तुम्हे जान से मार दूँगा. ऐसा असर हुवा था तुम्हारा मुझ पर.

पर उस दिन संजय को दीखाने के लिए ज़रूर अशोक और राजू को पीछे खड़ा किया था. मेरे लिए भी वो पल मुश्किल था. मैं तुम्हे दुख नही देना चाहता था. पर बदले की आग में मैं सब कुछ कर गया”


पर आज सोचता हूँ कि मुझे क्या मिला ?

मुझे कुछ नही मिला ऋतु, मेरी दीदी आज भी गायब है और आज मैं तुम्हारा गुनहगार बन गया हूँ.

उस दिन मैं वही संजय के कॅबिन में ही मर जाता तो अछा होता. पर किसी तरह से मैं बच गया.


उस वक्त संजय से कोई मिलने आ गया था.

किसी नर्स ने बाहर से आवाज़ लगाई, “डॉक्टर आपसे शुक्ला जी मिलने आए है”


संजय और विवेक का ध्यान मेरे उपर से हट गया और मैं मोका देख कर कॅबिन की खिड़की से कूद गया.

पर मैने जो उस मोबाइल में क्लिप देखी थी वो आज भी मेरे दीमाग में घूम रही है.


अपनी दीदी को आखरी बार देखा भी तो कहा देखा, एक मोबाइल की क्लिप में, उनका रेप होते हुवे.

मैने पोलीस में रिपोर्ट की, सब कुछ किया जो मेरे बस में था, पर आज तक मेरी दीदी का कुछ नही पता ऋतु, कुछ नही पता. पता नही रेप करने के बाद उन्होने मेरी दीदी के साथ क्या किया. अब मुझे लगने लगा है कि मेरी दीदी इस दुनिया में नही है. मैं अब यही सोचता हूँ कि वो लोग कम से कम मेरी दीदी को जींदा तो छ्चोड़ देते. किसी से भी जीने का अधिकार यू ही नही छीन लेना चाहिए.



…………



सच में बिल्लू ने जो मुझे बताया उसेसुन कर मेरे रोंगटे खड़े हो गये. क्या बीती होगी बीचरी कविता पर मैं सोच भी नही सकती. अछा किया मैने जो उस दिन विवेक को गोली मार दी.


सबसे ज़्यादा हैरान में संजय के बारे में सुन कर थी.

मेरे मन पर बोझ था कि मैने संजय को धोका दिया है, आज ये बोझ मेरे मन से हट गया.



“ऋतु क्या सोच रही हो” ---- बिल्लू ने पूछा.


“कुछ नही बिल्लू क्या सोचूँ अब, तुमने वो किया जो तुम्हे ठीक लगा, पर बर्बादी तो दौनो तरफ एक औरत की ही हुई. उधर कविता बर्बाद हुई…. इधर मैं…… ये कैसा खेल है” ? ----- मैने बिल्लू की ओर देख कर कहा.


बिल्लू ने अपने हाथ से ग्लूकोस हटा दिया और बेड से उतर कर मेरे कदमो में बैठ गया.


“ऋतु मैं अपनी ग़लती मानता हूँ, इश्लीए सब कुछ भुला कर मुंबई आया हूँ. मुझे अब ये भी याद नही है कि मुझे किसी से बदला लेना है. मैं थक चुका हूँ. मुझे आज बस एक बात याद है, और वो ये है कि “मैं तुम्हे प्यार करता हूँ” -------- बिल्लू ने मेरे हाथो को थाम कर कहा.




“प्यार क्या होता है, तुम्हे इसका मतलब भी पता है बिल्लू” ----- मैने पूछा



“मुझे नही पता, मुझे बस एक अहसास है कि मैं तुम्हारे बिना नही रह सकता. तुम्हारे शरीर को पा कर में तुम्हारी आत्मा तक पहुँच गया हूँ. और पता है मैने क्या पाया है वाहा पहुँच कर” ? ---- बिल्लू ने मेरी आँखो में देख कर पूछा


मैने पूछा, “क्या बिल्लू” ?



“मैने पाया है कि जीतना शुनदर तुम्हारा शरीर है, उस से भी कही शुनदर तुम्हारा मन है” --- बिल्लू ने कहा


“रहने दो बिल्लू मुझे मेरे अंदर अंधेरा नज़र आता है और तुम्हे वाहा शुनदरता दीख रही है” --- मैने कहा


“जो मैने देखा है बता रहा हूँ, और ये सच है” --- बिल्लू ने कहा


“मैं हवश में आँधी हो कर तुम्हारे साथ खो गयी थी, उसे तुम सुंदरता कहते हो, वो मेरी सबसे बड़ी भूल थी” ----- मैने बिल्लू से कहा




“ऋतु तुम्हारे साथ जो मैने किया वो कोई मामूली सेडक्षन नही था. दट वाज़ इन ए वे एक्सट्रीम फॉर्म ऑफ सेडक्षन. मैने तुम्हे बहकने पर मजबूर किया था, और आज भी कर सकता हूँ. पर आज बात प्यार की है. मैं मुंबई तुम्हे पाने आया हूँ. अपनी दीदी को तो मैने खो दिया, पर तुम्हे मैं नही खोना चाहता” ---- बिल्लू ने कहा



मैने गुस्से में पूछा “ये क्या बकवास है बिल्लू, तुम ये सब सोच भी कैसे सकते हो, मैं सोच रही थी कि तुम्हे अपनी ग़लती का अहसास है”


“मेरी ग़लती ये थी कि मैने तुम्हे अशोक के पास भेज दिया. उसी के लिए मैं शर्मिंदा हूँ. पर मुझे लगता है, उसके बाद जो भी मैने किया उस में मेरा प्यार था ऋतु. मैने बहुत गहराई से प्यार किया है तुम्हे. मेरे हर सेक्षुयल आक्ट में प्यार था. बहुत प्यार से चूस्ता था मैं तुम्हारी योनि को. जैसे कोई भगवान की पूजा करता हो. वैसे पुराने जमाने में तो योनि की पूजा होती ही थी. मैने अपने होंटो से तुम्हारी योनि को पूजा है ऋतु. दट वाज़ नोथिन्ग बट सिंपल लव. जब मैं तुम्हे प्यार करता था तो बस तुम में खो जाता था. तुम यू ही मेरे साथ नही बहक जाती थी. मेरा प्यार तुम्हे बहकाता था. वरना तुम खुद सोचो तुम क्यों उस दिन खुद अपने घर के पीछे चली आई थी. वो भी मुझसे भी पहले. मैने तुम्हे डूब कर प्यार किया है ऋतु. वो सब प्यार ही था. वरना आज मैं यहा नही होता. इस बात का अहसास मुझे अब हुवा है, तुम्हे भी जल्दी होगा” बिल्लू ने कहा


“मेरे सारे अहसास ख़तम हो चुके है बिल्लू, मेरे अंदर अब बस अंधेरा है, वो आधेरा जो तुमने भरा है. ऐसी बाते करके तुम फिर से उसी रास्ते पर जा रहे हो” ----- मैने कहा


“नही ऋतु ये वो रास्ता बिल्कुल नही है. वो रास्ता हवश का था, ये रास्ता प्यार का है, आज मुझे तुमसे प्यार है और देर सबेर ये बात तुम्हे भी फील होगी कि तुम भी मुझे प्यार करती हो. हम दोनो जुड़ चुके है ऋतु, हम अंदर तक जुड़े है. वरना आज तुम गेट वे ऑफ इंडिया पर नही आती. अपने दिल से पूछो क्या तुम मेरे लिए बेचन हो कर वाहा नही आई थी” --- बिल्लू ने मेरी ओर देख कर पूछा


“इश्लीए आई थी कि आज मुझे पता चला था कि तुम्हारी सिस्टर गायब है, इश्लीए नही आई थी कि मुझे तुमसे प्यार है” ---- मैने थोडा गुस्से में कहा



“प्यार अपना हिंट देता है ऋतु, प्यार सिचुयेशन क्रियेट करता. ये आप पर है की आप उसके हिंट को पहचाने. तुम समझती क्यों नही. पता है मैं बेहोश क्यों हुवा था” ? ----- बिल्लू ने पूछा


“क्यों…. अब ये भी बता दो” ---- मैने पूछा


“मुझे विश्वास ही नही हुवा कि तुम आ गयी, इश्लीए जब तुमने मुझे पीछे से आवाज़ दी मैं समझ नही पाया कि क्या करूँ. और जब तुम्हारे मूह से अपनी दीदी का नाम सुना तो खुद को संभालना मुश्किल हो गया. मैं इतना खुस था कि रोने लगा और तुम्हारे गले लग कर बेहोश हो गया. ऋतु वी आर मेड फॉर ईच अदर. तुम बस मेरी हो ऋतु…..बस मेरी” ----- बिल्लू ने कहा



मुझ से ये सब सुन-ना मुश्किल हुवा जा रहा था. मैं वाहा से खड़ी हो गयी और बाहर जाने लगी.

बिल्लू ने मुझे पीछे से आवाज़ दी “ तुम कुछ भी कर लो ऋतु तुम मुझे कभी नही भुला पाओगि. जैसे मैं तुम्हारे लिए तड़प रहा हूँ तुम भी मेरे लिए तड़पोगी”


मैं वापस बिल्लू के पास आई और उशे कहा, “बिल्लू वो दिन कभी नही आएगा जिस दिन मैं तुम्हारे लिए ताडपू. आज मैं बस कविता के कारण तुमसे मिलने आई थी. मुझे ये भी दुख था कि तुम 2-3 दिन से भूके हो, पर अब लग रहा है कि तुम बिल्कुल नही सुधरे”


“मैं तुम्हारे कारण ही भूका था ऋतु, और मैं अब वो नही हूँ जो तुम समझ रही हो. आज मैं तुमसे प्यार माँग रहा हूँ. पहले तुम्हारा शरीर माँगता था. पर तुम देख लेना जैसे मैने तुम्हारा शरीर पाया है… वैसे ही तुम्हारा प्यार भी पाउन्गा. अब तुम्हारा प्यार ही मेरी जींदगी का मकसद है ऋतु. अपनी दीदी को खो चुका हूँ, तुम्हे नही खो सकता” ----- बिल्लू ने कहा


“बिल्लू मेरी बात ध्यान से सुनो और यहा से चले जाओ, जो तुम सोच रहे हो वो कभी नही होगा” ---- मैने बाहर जाते हुवे कहा.



“ऋतु एक मिनूट” --- बिल्लू ने मुझे पीछे से आवाज़ दी.

मैं रुक गयी और बोली, “क्या है बिल्लू.. अब तुम हद से आगे बढ़ रहे हो”


वो मेरे पास आ गया और बोला, “ ऋतु थॅंक यू वेरी मच. आज तुम आई. तुम्हे सब कुछ बता कर मन हल्का हो गया. पर आज मैने तुम्हारी आँखो में अपने लिए प्यार देखा है. मुझे यकीन है कि एक दिन तुम भी ये प्यार देख पाओगि. मुझे पूरा यकीन है”

“जिस दिन मुझे तुमसे प्यार होगा वो मेरी जींदगी का आखरी दिन होगा बिल्लू. मैं तुम्हे माफ़ कर सकती हूँ, पर अपने आप को कभी नही. मैं वो अहसास दुबारा जींदगी में कभी नही आने दूँगी. वो पाप था और पाप को तुम आज प्यार नही कह सकते” ----- मैने कहा और मूड कर कमरे से बाहर की ओर चल दी.




“वो पाप जब मेरे लिए प्यार बन गया तो तुम भी नही बच पाओगि ऋतु. देखना एक दिन तुम खुद मेरी बाहों में आओगी. मेरा प्यार तुम्हे खींच लाएगा. मैं अब यहीं मुंबई में ही रहूँगा ऋतु, जब तक मुझे उमीद है तुम्हे पाने की मैं यही रहूँगा. हो सकता है मैं कभी कामयाब ना हो पाउ. पर तुम्हारे लिए कुछ भी कर सकता हूँ” ---- बिल्लू ने मुझे पीछे से आवाज़ लगा कर कहा




मैं कमरे से बाहर आ गयी

सिधार्थ कहीं नही दीख रहा था.

तभी बिल्लू भी बाहर आ गया और एक नर्स से बोला, “प्लीज़ बिल बना दीजिए, मैं जा रहा हूँ. मुझे मेरे प्यार को पाना है”


“ठीक है बना देती हूँ, वेट ए मिनूट” ----- नर्स ने बिल्लू से कहा.


मैं वाहा से आगे बढ़ गयी

तभी सिधार्थ आता हुवा दीखाई दिया.


“कहा चले गये थे तुम सिधार्थ” ---- मैने पूछा


“बस यू ही थोडा टहल रहा था, कैसा है बिल्लू” ? ---- सिधार्थ ने पूछा



“वो ठीक है, बल्कि कुछ ज़्यादा ही ठीक है, चलो चलते है” ---- मैने कहा.


“ह्म… चलो… मुझे कोई प्राब्लम नही है, वैसे क्या बात की उसने” ---- सिधार्थ ने पूछा.


“कुछ नही बस बता रहा था कि क्यों वो मेरे पीछे पड़ा था” ---- मैने कहा……. और सिधार्थ को कविता की कहानी सुना दी.



“ओह वेरी सॅड, पर इतनी देर तक यही बाते चल रही थी क्या” ----- सिधार्थ ने पूछा.


“हां यही सब और कुछ बेकार की बाते, छ्चोड़ो उनसे हमें कोई लेना देना नही है” ----- मैने कहा.



=====


और इस तरह इस दिन का अंत हुवा. सुबह से लेकर शाम तक कुछ ना कुछ होता रहा.


अब बिल्लू प्यार की बात कर रहा है. मुझे नही लगता कि मैं उसे दुबारा देखना भी चाहूँगी. उस से प्यार तो दूर की बात है. बिल्लू से प्यार मेरे लिए ज़हर के समान होगा. ये ज़हर मैं कभी नही खाउन्गि.


क्रमशः..................










आपका दोस्त राज शर्मा
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा

(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj














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