Friday, April 23, 2010

raj sharma stories-कमसिन कन्या पार्ट--8

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कमसिन कन्या पार्ट--8

गतांक से आगे......................

सुबह उठा तो मालूम हुआ मेरे और कोमल के पिताजी फैक्ट्री चले गए हैं, अब वो देर शाम को ही लौटने वाले थे, माँ और कोमल की मम्मी बैठक में नाश्ता कर रहीं थीं और माँ ने बताया की वो दोपहर वो कोमल की मम्मी को बाज़ार करवाने वालीं थीं और ३-४ घंटे लगेंगे वापस आने में इसलिए मैं जल्दी खाना खा लूं ..... कोमल बाथरूम में नहा रही थी... काम करने घर में मेहरी आती थी वो किचेन में व्यस्त थी, मैं
अपने को रोक नहीं सका और बाथरूम की और आया तो अन्दर से पानी की आवाज़ आ रही थी.... मेरी ओर किसीका ध्यान नहीं था, मैंने धीरे से बाथ का दरवाज़ा खटखटाया...कोमल समझ गयी, उसने दरवाज़े के नज़दीक आकर पुछा
"कौन है...", "
"मैं हूँ..दरवाज़ा खोलो " मैंने कहा
"मैं नहा रही हूँ... तुम जाओ ."
मैंने फिर दरवाज़ा खटखटाया तो उसने थोड़ा सा खोल आँख निकाल कहा "मम्मी आ जायेंगी... बेवकूफी मत कर "... मैंने जोर से दरवाज़े पर दबाव डाला दबाया तो उसने थोड़ा सा खोल कर मुझे अन्दर ले लिया,
" क्या करते हो.. पागल हो गए क्या.. मम्मी बाहर बैठीं है... आ जायेंगी..." वो बोली,
"आने दो ... " और उसको देखा, बिलकुल नंगी, बेहद खूबसूरत पानी में नहाई हुई मूर्ती सी मेरे सामने खड़ी थी, कोमल शर्मा गयी, 'क्या देखा रहे हो.. कल रात तो सब देख लिया .... अब क्या है .." उसने दोनों हाथों से स्तनों को ढक लिया और आगे झुक कर अपनी जाँघों के बीच में योनी को छुपाने की कोशिश करने लगी, "मम्मी बाज़ार जा रहीं हैं, तुम मना कर देना...हम बातें करेंगें.." मैंने फुसफुसा कर कहा
" मेरा भी बाज़ार जाने का मन है.. मैं जाऊंगी..." कोमल बोली "शाम को मिलेंगे.. अब तुम भागो .. मुझे नहाने दो...कोई देख लेगा "
मैं बाथरूम से बाहर निकल आया, उसे दुबारा देखा भी नहीं, बहुत गुस्सा आ रहा था, जब खुद का मन होता है तो मेरे पास आती है और जब मैं कहता हूँ तो मना कर देती है, नखरे दिखाती है. येही सब सोचते हुए मैं तैयार हुआ और बैठक में आया तो देखा कोमल सोफे पर बैठी मुस्कुरा रही थी, मुझसे मुहं बनाते हुए इशारे में कहा की बहुत गुस्सा नजर आ रहे हो, क्या बात है ? मैंने कोई जवाब नहीं दिया और नाश्ता कर बाहर
निकल गया, रात को हुए अनुभव के कारण दिमाग कुछ भी सोच नहीं पा रहा था और सिर्फ कोमल ही याद आ रही थी, मैंने स्कूटर उठाया और बाज़ार की ओर निकल गया, पता नहीं क्या सूझा और एक दुकान से ३ पैकेट कोहिनूर के खरीद लिए, जब वापस आया तो माँ, कोमल और उसकी मम्मी ऊपर के कमरे में बहुत किस्म के कपड़े और साड़िया बिछा कर बातें कर रहे थे, मैं नीचे आ गया, थोड़ी देर में कोमल भी अकेले नीचे आयी,
".हमलोग बाहर जाने वाले हैं.. तुम भी चलो ना .." कोमल बोली, मैंने मना कर दिया,
"ठीक है... तुम बोलोगे तो मैं रुक जाऊंगी ...."
"मैं क्यों बोलूँ , जैसी तुम्हारी मर्जी...." मैंने कहा, मुझे बहुत ख़राब लग रहा था....मैं सोच रहा था की किसी तरह कोमल रुक जाए पर मुहं से निकल नहीं रहा था, ....अब मैंने उसपर गौर किया, एक छोटे से फ्रोक में उसकी जवानी बाहर को आ रही थी, दोनों स्तनों के बीच की रेखा गहराई तक दिख रही थी और स्तनों के ऊपर का गुदाज़ हिस्सा उभर कर बाहर निकल रहा था और कोमल की जवानी को बयां कर रहा था, आँखों में वही गरूर, मैं अपने कमरे में चला आया, कोमल ऊपर लौट गयी, कोहिनूर के पैकेट अपने ड्रावर में रक्खी किताबों के बीच छुपा कर मैं बैठक में आ टीवी देखने लगा, मन तो व्याकुल था, नजर और कान ऊपर की तरफ ही थे की वो दिख जाये, थोड़ी देर बाद माँ और सभी नीचे उतरे, माँ ने कहा हम और ताइजी (कोमल की मम्मी) बाज़ार जा रहे हैं तुमलोग खाना खा लेना, रक्खा है...कोमल गर्म कर देगी....
मुझे आस्चर्य हुआ...पूछा " क्यूं, वो नहीं जा रही ? "
" उसे रात को नींद नहीं आयी...कहती है सर बहुत दुःख रहा है.. इसलिए नहीं जायेगी.....हम शाम तक आते हैं... " कोमल की मम्मी ने कहा.. मैंने कोमल की ओर देखा...उसने आँखें झुका रक्खी थीं ... तो ये बात है... मन तो जैसे हवा में उड़ने लगा...
"ठीक है, ताईजी " मैंने कहा, माँ और कोमल की मम्मी बाज़ार निकल गए, महरी भी बस जाने ही वाली थी, छोटा भाई तो घंटो से गायब था... मैंने भगवान को ऐसे मौके के लिए धन्यवाद दिया....
कोमल ने नजदीक आकर कहा " अब तो खुश "
"तुम्हारा मन नहीं था तो चली जातीं ... कोई मेहेरबानी तो नहीं की " झूठी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा...जो कोमल से छुप न सकी ...
"मन में लड्डू और ऊपर से नाराज... बनो मत.. मैं सब जानती हूँ.." उसने हंस कर कहा..
" तो देख अब... " कहते हुए मैं उसपर झपट पड़ा और दबोच लिया, वो तो जैसे तैयार ही थी मुझे सोफे पर धकेलते हुए मेरे पर गिर पडी,
"अभी रुक.. महरी को जाने दे.. " और जोरों से मेरे होठों को चूमते हुए खड़ी होकर अपने कमरे की तरफ भागी...कुछ ही समय में महरी भी काम कर चली गयी... अब हम दोनों घर में बिलकुल अकेले रह गए थे, वो कमरे से बाहर आयी पूछा " महरी गयी.. ? " मेरे हाँ कहते ही दौड़ कर आ मेरी गोद में बैठ लिपट गयी, फ्रोक जांघों पर सरक गयी, उसने मुझे आगोश में बाँध रक्खा था, हम एक दुसरे को बेहतहाशा चूम रहे थे, कोमल ने मेरे हाथ को पकड़ अपने जांघों पर ऊपर सरका अपने योनी के पास ले आयी, वो गर्म थी, मैंने एक अंगुली टाईट पैंटी के किनारे से अन्दर की और योनी द्वार को छुआ... ओह्ह्ह्ह क्या हो रहा था, वो मेरे होठों को काटे जा रही थी, और कभी अपनी जीभ मेरे मुहं के अन्दर घुसा देती... कभी मेरी जीभ अपने मुंह में लेकर चूसने लगती..योनी रस से सरोबर थी... फिर से उसकी सिस्कारियां निकलने लगी.. उसने झट अपने नितम्ब उठाये और अपने हाथों से पैंटी खींच नीचे उतार दी... और मेरे जिप को खोल हाथ अन्दर डाल लिंग को खींच बाहर निकल लिया जो पूरी तरह अब फुफकार रहा था, कोमल मेरे लिंग को देखते ही व्याकुल हो जाती .. मुझे मालूम हो गया था की सबसे ज्यादा मस्ती उसे लिंग और सुपाड़े से खेल कर आती थी .. उसने लिंग को पीछे खींच सुपाडा बाहर किया और उसे प्यार से देखते हुई चूसने लगी, कोमल को सुपाडा चूसने में बहुत मस्ती आती थी यह मैंने बाद में जाना.... वो मेर लिंग को चूस रही थी और मैं उसके मस्त उठान भरे स्तनों को चोली से बाहर निकाल दबा रहा था... क्या अनुभव... अत्यंत गुदाज़ .. मुलायम और स्पंज से .....


क्रमशः......................


दोस्तों पूरी कहानी जानने के लिए नीचे दिए हुए पार्ट जरूर पढ़े .................................
आपका दोस्त
राज शर्मा


कमसिन कन्या पार्ट--1
कमसिन कन्या पार्ट--2
कमसिन कन्या पार्ट--3
कमसिन कन्या पार्ट--4
कमसिन कन्या पार्ट--5
कमसिन कन्या पार्ट--6
कमसिन कन्या पार्ट--7
कमसिन कन्या पार्ट--8
कमसिन कन्या पार्ट--9
कमसिन कन्या पार्ट--10







आपका दोस्त राज शर्मा
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा

(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj




























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