Wednesday, April 21, 2010

सेक्स स्लेव्स अंजलि की दास्तान पार्ट--3

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अंजलि की दास्तान पार्ट--3

गतांक से आगे.......................
"ऊऊउउउउउउईईई माआ मेयारगॅयेयियीयेयी" मैं पूरी ताक़त से चीख उठी.
" जा जाकर गवलेकर के लिए शराब का एक पेग बना ला. और टेबल तक
घुटनो के बल जाएगी समझी." क़य्यूम ने तेज आवाज़ मे कहा. इतनी
जलालत तो शायद किसी को नहीं मिली होगी. मैं हाथों और घुटनो के
बल डाइनिंग टेबल तक गयी. मेरी चूचिया पके अनरों की तरह झूल
रही थी. मैं उसके लिए एक पेग बना कर लौट आई.
" गुड अब कुच्छ पालतू होती लग रही है."
गोवेलेकर ने मेरे हाथ से ग्लास लेकर मुझे खींच कर वापस अपने
गोद मे बिठा लिया. फिर मेरे होंठों से ग्लास को च्छुअते हुए कहा "ले
एक सीप कर." मैने अपना चेहरा मोड़ लिया. मैने जिंदगी मे कभी
शराब को हाथ भी नहीं लगाया था. हमारे घरों मे ये सब चलता
था मगर मेरे ब्रिज ने भी कभी शराब को नहीं च्छुआ था.
उसने वापस ग्लास मेरे होंठों से लगाया. मैने साँस रोक कर थोडा सा
अपने मुँह मे लिया. बदबू इतनी थी की उबकाई आने लगी. वो नाराज़
होज़ाएँगे सोच कर जैसे तैसे उसे पी लिया.
" और नहीं. प्लीज़, मैं आपलोगों को कुच्छ भी करने से नहीं रोक
रही. ये काम मुझसे नहीं होगा" पता नहीं दोनो को क्या सूझा की
फिर उन्हों ने मुझे पीने के लिए ज़ोर नहीं किया.
गोवलेकर मेरे बदन पर हाथ फेरराहा था. मेरे स्तनों को चूम रहा
था और अपना ग्लास खाली कर रहा था. मुझे फिर अपनी गोद से उतार कर
ज़मीन पर बिठा दिया. मैने उसके पॅंट की ज़िप खोली और उसके लिंग को
निकाल कर उसे मुँह मे ले ली. अपने एक हाथ से क़य्यूम के लिंग को
सहला रही थी. बारी बारी से दोनो लिंग को मुँह मे भर कर कुच्छ देर
तक चूस्टी और दूसरे के लिंग को मुट्ठी मे भर कर आगे पीछे
करती.फिर यही काम दूसरे के साथ करती. काफ़ी देर तक दोनो शराब
पीते रहे फिर गोवलेकर उठ कर मुझे एक झटके से गोद मे उठा लिया
और बेड रूम मे ले गया. बेडरूम मे आकर मुझे बिस्तर पर पटक दिया.
क़य्यूम भी साथ साथ आ गया था. वो तो पहले से ही नग्न था. गोवलेकर
भी अपने अक्पडे उतारने लगा. मैं बिस्तर पर लेटी उसको अपने कपड़े उतार
ते देख रही थी. मैने उनके अगले कदम के बारे मे सोच कर अपने आप
अपने पैर फैला दिए. मेरी योनि बाहर दिखने लगी. गोवलेकर का लिंग
क़य्यूम की तरह ही मोटा और काफ़ी लंबा था. उसने अपने कपड़े वहीं फेक
कर बिस्तर पर चढ़ गया. मैं उसके लिंग को हाथ मे लेकर अपनी योनि की
ओर खींची. मगर वो आगे नहीं बढ़ा. उसने मुझे बाहों से पकड़ कर
उल्टा कर दिया और मेरे नितंबों से चिपक गया. अपने हाथों से दोनो
नितंबों को अलग कर के छेद पर उंगली फिराने लगा मैं उसका इरादा
समझ गयी कि वो मेरे गुदा को फाड़ने का इरादा बनाए हुए है. मैं
डर से चिहुनक उठी क्योंकि इस ओर मैं अभी तक अंजान थी. सुना था की
अप्राकृतिक मैथुन मे बहुत दर्द होता है. और गावलेकर का इतना मोटा
लिंग कैसे जाएगा ये भी सोच रही थी. क़य्यूम ने उसकी ओर क्रीम का एक
डिब्बा बढ़ाया. उसने ढेर सारा क्रीम लेकर मेरे पिच्छाले छेद पर
लगा दिया फिर एक उंगली से उसको छेद के अंदर तक लगा दिया. उंगली के
अंदर जाते ही मैं उच्छल पड़ी. पता नही आज मेरी क्या दुर्गति होने
वाली थी. इन आदमख़ोरों से रहम की उम्मीद करना बेवकूफी थी.
क़य्यूम मेरे चेहरे के सामने आकर मेरा मुँह ज़ोर से अपने लिंग पर दाब
दिया. मैं च्चटपटा रही थी तो उसने मुझे सख्ती से पकड़ रखा था.
मुँह से गूओं गूओं की आवाज़ ही निकल परही थी. गवलेकर ने मेरे
नितंबों को फैला कर मेरे गुदा द्वार पर अपना लिंग सताया. फिर आगे की
ओर एक तेज धक्का लगाया.उसके लिंग के आगे के हिस्सा मेरे पिछे जगह
बनाते हुए धँस गया. मेरी हालत खराब हो रही थी. आँखें बाहर
की ओर उबाल कर आ रही थी. कुच्छ देर उसी पोज़िशन मे रुका रहा दर्द
हल्का सा कम हुआ तो उसने दुगने वेग से एक और धक्का लगाया. मुझे
लगा मानो कोई मोटा मूसल मेरे अंदर डाल दिया गया हो. वो इसी तरह
कुच्छे देर तक रुका रहा. फिर उसने अपने लिंग को हरकत दे दी. मेरी
जान निकली जा रही थी. वो दोनो आगे और पीछे से अपने अपने डंडों
से मेरी कुटाई किए जा रहे थे. धीरे धीरे दर्द कम होने लगा. फिर
तो दोनो तेज तेज धक्के मारने लगे. दोनो मे मानो कॉंपिट्षन हो रही
थी कि कौन देर तक रुकता है. मगर मेरी हालत की किसे चिंता थी.
क़य्यूम के स्टॅमिना की तो मैं लोहा मानने लगी. तकरीबन घंटे भर
बाद दोनो ने अपने अपने लिंग से पिचकारी छोड़ दी. मेरे दोनो छेद
टपकने लगे.
फिर तो रात भर ना तो खुद सोए ना मुझे सोने दिया. सुबह तक तो मैं
भाव शून्य हालत मे हो गयी थी.
सुबह दोनो मुझे जिस्म को जी भर कर नोचने के बाद चले गये. जाते
जाते क़य्यूम अपने नौकर से कह गया.
` इसे गर्म गर्म दूध पीला. इसकी हालत थोड़ा ठीक हो तो घर पर
च्छुड़वा देना. और तू भी कुच्छ देर चाहे तो मुँह मारले `
मैं बिस्तर पर बिना किसी हुलचूल के पड़ी थी. टाँगें फैली हुई
थी. तीनों छेदों पर वीर्य के निशान थे. पूरे बदन पर अनगिनत
दाँतों के और वीर्य के निशान पड़े हुए थे. स्तन और निपल सूजे
हुए थे. कुच्छ यही हालत मेरी योनि की भी हो रही थी.
फटी फटी आँखों से दोनो को देख रही थी.
` तू घर जा तेरे पति को दो एक घंटों मे रिहा कर दूँगा' गवलकर्
ने पॅंट पहनते हुए कहा `भाई क़य्यूम मज़ा आ गया. क्या पटाखा ढूँढ
लाया है. तबीयात खुश हो गयी. हम अपनी बातों से फिरने वाले
नहीं हैं. तुझे कभी भी मेरी ज़रूरत पड़े तो जान हाजिर है.'
क़य्यूम मुस्कुरा दिया. फिर दोनो तैयार होकर निकल गये.
मैं वैसी ही नग्न पड़ी रही बिस्तर पर. तभी भीमा दूध का ग्लास लेकर आया और मुझे सहारा देकर उठाया. मैने उसके हाथों से दूध का ग्लास ले
लिया. उसने मुझे एक पेन किल्लर भी दिया. मैने दूध का ग्लास खाली
कर दिया. उसने खाली ग्लास हाथ से लेकर मेरे होंठों पर लगे दूध
को अपनी जीभ से चाट कर सॉफ कर दिया. कुच्छ देर तक मेरे होंठों
को चूमता रहा और मेरे बदन पर आहिस्ता से हाथ फेरता रहा. फिर वो
उठा और डेटोल लाकर मेरे ज़ख़्मों पर लगा दिया. अब मेरे शरीर मे
कुच्छ जान महसूस कर रही थी. फिर कुच्छ देर बाद आकर मुझे सहारा
देकर उठाया और मेरे बदन को बाहों मे भर कर मुझे उसी हालत मे
बाथरूम मे ले गया. वहाँ काफ़ी देर तक उसने मुझे गर्म पानी से
नहलाया. बदन पोंच्छ कर मुझे बिस्तर पर ले गया. मुझे मेरे कपड़े
लाकर दिया. वो जैसे ही जाने लगा. मैने उसका हाथ पकड़ लिया. मेरे
आँखों मे उसके लिए क्रितग्यता के भाव थे. मैं उसके करीब आकर उसके
बदन से लिपट गयी.
मैं तब बहुत हल्का महसूस कर रही थी. मैं खुद ही उसका हाथ
पकड़ कर बिस्तर पर ले गयी. मैने उस से लिपटे हुए ही उसके पॅंट
की तरफ हाथ बढ़ाया. मैं उसके अहसानों का बदला चुका देना चाहती
थी. वो मेरे होंठों को, मेरी गर्दन को, मेरे गालों को चूमने लगा.
मेरे स्तनों पर हल्के से हाथ फिराने लगा.
« प्लीज़ मुझे प्यार करो. इतना प्यार करो कि कल रात की घटनाएँ
मेरे दिमाग़ से हमेशा के लिए उतर जाएँ. » मैं बेतहासा रोने लगी.
वो मेरे एक एक अंग को चूम रहा था. एक एक अंग को सहलाता प्यार करता.
उसके होंठ फूलों की पंखुड़ियों की तरह पूरे बदन पर महसूस कर
रही थी. अब मैं खुद ही गर्म होने लगी मैं खुद ही उस से लिपटने
लगी उसे चूमने लगी. उसका हाथ मैने अपने हाथों मे लेकर अपनी योनि
पर रख दिया. वो मेरी योनि को सहलाने लगा. फिर उसने मुझे बिस्तर के
कोने पर बिठा कर मेरे सामने घुटनो के बल मूड गया. मेरे दोनो
पैरों को अपने कंधे पर चढ़ा कर मेरी योनि पर अपने होंठ चिपका
दिए. उसकी जीभ साँप की तरह सरसरती हुई. उसकी मुँह से निकाल कर
मेरी योनि मे प्रवेश कर गयी. मैने उसके सिर को अपने हाथों मे ले
रखा था. उत्तेजना मे मैं उसके बालों को सहला रही थी उसके सिर को
योनि पर दाब रही थी. मेरे मुँह से सिसकारियाँ निकल रही थी.
कुच्छ देर मे मैं तो अपनी कमर उचकाने लगी. और उसके मुँह पर ही
ढेर हो गयी. मेरे शरीर से मेरा सारा विसाद मेरे वीर्य के रूप
मे निकल्ने लगा. वो मेरे वीर्य को अपने मुँह मे खींचता जा रहा
था. कल से इतनी बार मेरे साथ संभोग हुआ कि मैं गिनती ही भूल
गयी मगर आज भीमा की हरकतों सेअब मेरा खुल कर वीर्यापत हुआ.
भीमा के साथ मैं पूरे दिल से संभोग कर रही थी. इसलिए अच्च्छा
भी लग रहा था. मैने उसे बिस्तर पर पटका और उसके ऊपर सवार हो
गयी. उसके बदन से कपड़ों को नोच कर हटा दिया. उसका मोटा ताज़ा लिंग
तना हुआ खड़ा था. काफ़ी बालिस्त बदन था. मैं उसके बदन को चूमने
लगी. वो उठने की कोशिश किया तो मैने गुर्र्राटे हुए कहा,
« चुप चाप पड़ा रह. मेरे बदन को भोगना चाहता था ना तो फिर भाग
क्यों रहा है. ले भोग मेरे बदन को »
मैने उसे चित लिटा दिया और उसके लिंग के उपर अपनी योनि रखी. अपने
हाथों से उसके लिंग को सेट किया और उसके लिंग पर बैठ गयी. उसका
लिंग मेरी योनि की दीवारों को चूमता हुआ अंदर चला गया. फिर तो मैं
उसके लिंग पर उठने-बैठने लगी. मैने सिर पीछे की ओर झटक दिया
और अपने हाथों को उसके सीने पर फिराने लगी. वो मेरे स्तनों को
सहला रहा था. मेरे निपल्स को उंगलियों से इधर उधर घुमा रहा
था. निपल्स भी एग्ज़ाइट्मेंट मे खड़े हो गये थे. काफ़ी देर तक इस
पोज़िशन मे करने के बाद मुझे वापस नीचे लिटा कर मेरे टाँगों को
अपने कंधे पर रख दिया. इस से योनि उपर की ओर हो गयी. अब लिंग
योनि मे जाता हुआ सॉफ दिख रहा था. हम दोनो उत्तेजित हो कर एक साथ
झार गये. वो मेरे बदन पर ही लुढ़क गया और तेज तेज साँसें लेने
लगा. मैने उसके होंठों पर एक प्यार भरा चुंबन दिया. फिर नीचे
उतर कर तैयार हो गयी. भीमा मुझे घर तक छोड़ आया.
दोपहर तक मेरे पति रिहा होकर घर आ गये. क़य्यूम ने अपना बयान
बदल लिया था. मैने उन्हें उनके जमानत की कीमत नहीं बताई.
मगर अगले दिन ही उस कंपनी को छोड़ कर वहाँ से वापस जाने का
मैने एलान कर दिया. ब्रिज ने भले ही कुच्छ नहीं पूचछा मगर
शायद उसे भी उसकी रिहाई की कीमत की भनक पड़ गयी थी. इसलिए
उसने भी मुझे ना नहीं किया और हम कुच्छ ही दिन मे अपना थोड़ा बहुत
समान पॅक करके वो सहर छोड़ कर वापस जालंधर आ गये.












आपका दोस्त राज शर्मा
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा

(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj

































































































































































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