raj sharma stories राज शर्मा की कामुक कहानिया हिंदी कहानियाँ
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रद्दी वाला पार्ट--6 गतान्क से आगे................... फिर सुदर्शन ने रंजना को बैठा दिया और स्कर्ट खोल दी.स्कर्ट के खुलते ही रंजना की ब्रा मे क़ैद शख्त चूचिया सिर उठाए वासना में भरे पापा को निमन्त्रण देने लगी. सुदर्शन ने फ़ौरन उन पर हाथ रख दिया और उन्हें ब्रा पर से ही दबाने लगा. वाह रंजना तुम'ने तो इत'नी बड़ी बड़ी कर ली. तुम्हारी चिकनी जांघों की ही तरह तुम्हारी चूचियाँ भी पूरी मस्त है. भाई हम तो आज इन'से जी भर के खेलेंगे, इन्हें चूसेंगे. यह कह कर सुदर्शन ने रंजना की ब्रा उतार दी. ब्रा के उतर'ते ही रंजना की चूचियाँ फुदक पड़ी. रंजना की चूचियाँ अभी कच्च्चे अमरूदों जैसी ही थी. आनच्छुई होने की वजह से चूचिया बेहद सख़्त और अंगूर के दाने की तरह नुकीली थी. सुदर्शन उन'से खेल'ने लगा और उन्हें मुख में लेकर चूसने लगा. रंजना मस्ती में भरी जा रही थी और ना तो पापा को मना ही कर रही थी और ना ही कुच्छ बोल रही थी.इससे सुदर्शन की हिम्मत और बढ़ी और बोला, अब हम प्यारी बेटी की जवानी देखेंगे जो उस'ने जांघों के बीच च्छूपा रखी है.ज़रा लेटो तो.रंजना ने आँखें बंद कर ली और चित लेट गई. सुदर्शन ने फिर एक बार चिकनी जाँघो पर हाथ फेरा और ठीक चूत के छेद पर अंगुल से दबाया भी जहाँ पॅंटी गीली हो चुकी थी. हाय रंजू तेरी चूत तो पानी छोड़ रही है. यह कह'के सुदर्शन ने रंजना की पॅंटी जांघों से अलग कर दी.फिर वो उसकी जांघों, चूत,गांद और कुंवारे मम्मो को सहलाते हुए आहें भरने लगा. चूत बेहद गोरी थी तथा वहाँ पर सुनेहरी रेशमी झांतों के हल्के हल्के रोए उग रहे थे. इसलिए बेटी की इस आनच्छुई चूत पर हाथ सहलाने से बेहद मज़ा सुदर्शन को आ रहा था. सख़्त मम्मों को भी दबाना वो नहीं भूल रहा था.इसी बीच रंजना का एक हाथ पकड़ कर उसने अपने खड़े लंड पर रख कर दबा दिया और बड़े ही नशीले से स्वर मैं वो बोला, "रंजना! मेरी प्यारी बेटी ! लो अप'ने पापा के इस खिलोने से खेलो. ये तुम्हारे हाथ मैं आने को छॅट्पाटा रहा है मेरी प्यारी प्यारी जान.. इसे दबाओ आह!"लंड सह'लाने की हिम्मत तो रंजना नहीं कर सकी, क्योंकि उसे शर्म और झिझक लग रही थी. मगर जब पापा ने दुबारा कहा तो हल'के से उसे उसे मुट्ठी मैं पकड़ कर भींच लिया. लंड के चारों तरफ के भाग मैं जो बाल उगे हुए थे, वो काले और बहुत सख़्त थे. ऐसा लगता था, जैसे पापा सेव के साथ साथ झाँटेन भी बनाते हैं. लंड के पास की झाँते रंजना को हाथ मे चुभती हुई लग रही थी,इसलिए उसे लंड पकड़ना कुच्छ ज़्यादा अच्छा सा नहीं लग रहा था.अगर लंड झाँत रहित होता तो शायद रंजना को बहुत ही अच्छा लगता क्योंकि वो बोझिल पल'कों से लंड पकड़े पकड़े बोली थी,"ओह्ह पापा आप'के यहाँ के बाल भी दाढ़ी की तरह चुभ रहे हैं.. इन्हे सॉफ कर'के क्यों नहीं रख'ते." बालों की चुभन सिर्फ़ इसलिए रंजना को बर्दस्त करनी पड़ रही थी क्योंकि लंड का स्पर्श बड़ा ही मन भावन उसे लग रहा था.एका एक सुदर्शन ने लंड उसके हाथ से छुड़ा लिया और उसकी जांघों को खींच कर चौड़ा किया और फिर उस'के पैरो की तरफ उकड़ू बैठा.उसने अपना फंफनाता हुआ लंड कुद्रति गीली चूत के अनछुए द्वार पर रखा. वो चूत को चौड़ाते हुए दूसरे हाथ से लंड को पकड़ कर काफ़ी देर तक उसे वहीं पर रगड़ता हुआ मज़ा लेता रहा. मारे मस्ती के बावली हो कर रंजना उठ-उठ कर सिसकार उठी थी, "उई पापा आपके बाल .. मेरी पर चुभ रहे हैं.. उसे हटाओ. बहुत गड़ रहे हैं. पापा अंदर मत कर'ना मेरी बहुत छ्होटी है और आप'का बहुत बड़ा." वास्तव मैं अपनी चूत पर झाँत के बालों की चुभन रंजना को सहन नही हो रही थी,मगर इस तरह से चूत पर सुपादे का घससों से एक जबरदस्त सुख और आनंद भी उसे प्राप्त हो रहा था. घससों के मज़े के आगे चुभन को वो भूलती जा रही थी. रंजना ने सोचा कि जिस प्रकार बिरजू ने मम्मी की चूत पर लंड रख कर लंड अंदर घुसेड़ा था उसी प्रकार अब पापा भी ज़ोर से धक्का मार कर अपने लंड को उसकी चूत मैं उतार देंगे,मगर उसका ऐसा सोचना ग़लत साबित हुआ. क्योंकि कुच्छ देर लंड को चूत के मूँ'ह पर ही रगड़ने के बाद सुदर्शन सह'सा उठ खड़ा हुआ और उसकी कमर पकड़ कर खींचते हुए उसने ऊपर अपनी गोद मैं उठा लिया. गोद मैं उठाए ही सुदर्शन ने उसे पलंग पर ला पट'का था. अपने प्यारे पापा की गोद मैं भरी हुई जब रंजना पलंग तक आई तो उसे स्वर्गिया आनंद की प्राप्ति होती हुई लगी थी. पापा की गरम साँसों का स्पर्श उसे अपने मूँ'ह पर पड़ता हुआ महसूस हो रहा था,उसकी साँसों को वो अपने नाक के नथुनो मैं घुसता हुआ और गालों पर लहराता हुआ अनुभव कर रही थी.इस समय रंजना की चूत मैं लंड खाने की इच्च्छा अत्यंत बलवती हो उठी थी.पलंग के ऊपर उसे पटक सुदर्शन भी अपनी बेटी के ऊपर आ गया था. जोश और उफान से वो भरा हुआ तो था ही साथ ही साथ वो काबू से बाहर भी हो चुका था, इसलिए वो चूत की तरफ पैरो के पास बैठते हुए टाँगों को चौड़ा करने मे लग गया था.टाँगों को खूब चौड़ा कर उसने अपना लंड उपर को उठा चूत के फड़फड़ाते सुराख पर लगा दिया था.रंजना की चूत से पानी जैसा रिस रहा था शायद इस्लियेशुदर्शन ने चूत पर चिकनाई लगाने की ज़रूरत नहीं समझी थी. उसने अच्छी तरह लंड को चूत पर दबा कर ज्यों ही उसे अंदर घुसेड़ने की कोशिश मे और दबाव डाला कि रंजना को बड़े ज़ोरो से दर्द होने लगा और असेहनीय कष्ट से मरने को हो गयी.दबाव पल प्रति पल बढ़ता जा रहा था और वो बेचाती बुरी तरह तड़फने लगी थी. लंड का चूत मैं घुसना बर्दाश्त ना कर पाने के कारण वो बहुत जोरो से कराह उठी और अपने हाथ पाँव फैंकती हुई दर्द से बिलबिलाती हुई वो ताड़-पी, "हाई !पापा अंदर मत डालना. उफ़ मैं मरी जा रही हूँ. हाय पापा मुझे नही चाहिए आप'का ऐसा प्यार.रंजना के यू चीखने चिल्लाने और दर्द से कराह'ने से तंग आ कर सुदर्शन ने लंड का सूपड़ा जो चूत मैं घुस चुका था उसे फ़ौरन ही बाहर खींच लिया. फिर उसने उंगलियों पर थूक ले कर अपने लंड के सुपादे पर और चूत के बाहर व अंदर उंगली डाल कर अच्छि तरह से लगाया. पुनः चोदने की तैयारी करते हुए उसने फिर अपना दहाकता सुपाड़ा चूत पर टीका दिया और उसे अंदर घुसेड़ने की कोशिश करने लगा.हालाँकि इस समय चूत एकदम पनियाई हुई थी, लंड के छेद से भी चिपचिपी बूंदे चू रही थी और उस'के बावजूद थूक भी काफ़ी लगा दिया था मगर फिर भी लंड था कि चूत मैं घुसना मुश्किल हो रहा था. कारण था चूत का अत्यंत टाइट छेद. जैसे ही हल्के धक्के मैं चूत ने सुपाड़ा निगला कि रंजना को जोरो से कष्ट होने लगा, वो बुरी तरह कराहने लगी, "धीरे धीरे पापा, बहुत दर्द हो रहा है. सोच समझ कर घुसाना.. कहीं फट .. गयी. तो. अफ. मर. गयी. हाई बड़ा दर्द हो रहा है.. टीस मार रही है. है क्या करूँ." चूँकि इस समय रंजना भी लंड को पूरा सटाकने की इच्च्छा मैं अंदर ही अंदर मचली जा रही थी.इसलिए ऐसा तो वो सोच भी नही सकती थी कि वो चुदाई को एकदम बंद कर दे. वो अपनी आँखों से देख चुकी थी कि बिरजू का खूँटे जैसा लंड चूत मैं घुस जाने के बाद ज्वाला देवी को जबरदस्त मज़ा प्राप्त हुआ था और वो उठ उठ कर चुदी थी. इसलिए रंजना स्वयं भी चाहने लगी कि जल्दी से जल्दी पापा का लंड उसकी चूत मैं घुस जाए और फिर वो भी अपने पापा के साथ चुदाई सुख लूट सके,ठीक बिरजू और ज्वाला देवी की तरह.उसे इस बात से और हिम्मत मिल रही थी कि जैसे उसकी मा ने उसके पापा के साथ बेवफ़ाई की और एक रद्दी वाले से चुद'वाई अब वो भी मा की अमानत पर हाथ साफ कर'के बद'ला ले के रहेगी. रंजना यह सोच सोच कर कि वह अप'ने बाप से चुदवा रही है जिस'से चुद'वाने का हक़ केवल उस'की मा को है और मस्त हो गई.क्योंकि जबसे उसने अपनी मा को बिरजू से चुद'वाते देखा तबसे वह मा से नफ़रत कर'ने लगी थी. इसलिए अपनी गांद को उचका उचका कर वो लंड को चूत मैं सटाकने की कोशिश करने लगी, मगर दोनो मैं से किसी को भी कामयाबी हासिल नहीं हो पा रही थी. घुसने के नाम पर तो अभी लंड का सुपाड़ा ही चूत मैं मुश्किल से घुस पाया था और इस एक इंची घुसे सुपादे ने ही चूत मैं दर्द की लहर दौड़ा कर रख दी थी. रंजना ज़रूरत से ज़्यादा ही परेशान दिखाई दे रही थी. वो सोच रही थी कि आख़िर क्या तरकीब लड़ाई जाए जो लंड उसकी चूत मैं घुस सके. बड़ा ही आश्चर्य उसे हो रहा था. उसने अनुमान लगाया था कि बिरजू का लंड तो पापा के लंड से ज़्यादा लंबा और मोटा था फिर भी मम्मी उसे बिना किसी कष्ट और असुविधा के पूरा अपनी चूत के अंदर ले गयी थी और यहाँ उसे एक इंच घुसने मैं ही प्राण गले मैं फँसे महसूस हो रहे थे. फिर अपनी सामान्य बुद्धि से सोच कर वो अपने को राहत देने लगी, उसने सोचा कि ये छेद अभी नया नया है और मम्मी इस मामले मैं बहुत पुरानी पड़ चुकी है. चोदु सुदर्शन भी इतना टाइट व कुँवारा च्छेद पा कर परेशान हो उठा था मगर फिर भी इस रुकावट से उसने हिम्मत भी नहीं हारी थी. बस घभराहट के कारण उसकी बुद्धि काम नहीं कर पा रही थी इसलिए वो भी उलझन मैं पड़ गया था और कुच्छ देर तक तो वो चिकनी जांघों को पकड़े पकड़े ना जाने क्या सोचता रहा.रंजना भी सांस रोके गरमाई हुई उसे देखे जा रही थी. एका एक मानो सुदर्शन को कुछ याद सा आ गया हो वो अलर्ट सा हो उठा,उसने रंजना के दोनो हाथ कस कर पकड़ अपनी कमर पर रख कर कहा, "बेटे! मेरी कमर ज़रा मजबूती से पकड़े रहना, मैं एक तरकीब लड़ाता हूँ, घबराना मत." रंजना ने उसकी आग्या का पालन फ़ौरन ही किया और उसने कमर के इर्द गिर्द अपनी बाँहें डाल कर पापा को जाकड़ लिया. वो फिर बोला, "रंजना! चाहे तुम्हे कितना ही दर्द क्यों ना हो, मेरी कमर ना छ्चोड़ना,आज तुम्हारा इम्तहान है.देखो एक बार फाटक खुल गया तो समझ'ना हमेशा के लिए खुल गया."इस बात पर रंजना ने अपना सिर हिला कर पापा को तसल्ली सी दी.फिर सुदर्शन ने भी उसकी पतली नाज़ुक कमर को दोनो हाथों से कस कर पकड़ा और थोडा सा बेटी की फूल'ती गांद को ऊपर उठा कर उसने लंड को चूत पर दाबा तो, "ओह! पापा रोक लो. उफ़ मरी.."रंजना फिर तदपि मगर सुदर्शन ने सूपड़ा छूत मे अंदर घुसाए हुए अपने लंड की हरकत रोक कर कहा, "हो गया बस मेरी इत'नी प्यारी बेटी. वैसे तो हर बात में अप'नी मा से कॉंपिट्षन कर'ती हो और अभी हार मान रही हो. जान'ती हो तुम्हारी मा बोल बोल के इसे अपनी वाली में पिल्वाती है और जब तक उसके भीतर इसे पेल'ता नहीं सोने नहीं देती. बस. अब इसे रास्ता मिलता जा रहा है. लो थोड़ा और लो.." यह कह सुदर्शन ने ऊपर को उठ कर मोर्चा संभाला और फिर एकाएक उछल कर उसने जोरो से धक्के लगाना चालू कर दिया. इस तरह से एक ही झट'के मैं पूरा लंड सटाकने को रंजना हरगिज़ तैयार ना थी इसलिए मारे दर्द के वो बुरी तरह चीख पड़ी. कमर छ्चोड़ कर तड़पने और च्चटपटाने के अलावा उसे कुछ सूझ नहीं रहा था, "मार्रिई.. आ. नहीं.. मर्रिई.छोड दो मुझे नहीं घुस्वाना... उऊफ़ मार दिया. नहीं कर'ना मुझे मम्मी से कॉंपिट्षन.जब मम्मी आए तब उसी की में घुसाना.मुझे छोड़ो.छ्चोड़ो निकालो इसे .. आईई हटो ना उऊफ़ फट रही है.. मेरी अयेयीई मत मारो."पर पापा ने ज़रा भी परवाह ना की. दर्द ज़रूरत से ज़्यादा लंड के यूँ चूत मैं अंदर बाहर होने से रंजना को हो रहा था. तड़प कर अपने होंठ अपने ही दांतो से बेचारी ने चबा लिए थे, आँखे फट कर बाहर निकलने को हुई जा रही थी. जब लंड से बचाव का कोई रास्ता बेचारी रंजना को दिखाई ना दिया तो वो सूबक उठी, "पापा ऐसा प्यार मत करो.हाई मेरे पापा छ्चोड़ दो मुझे.. ये क्या आफ़त है.. अफ नहीं इसे फ़ौरन निकाल लो.. फाड़ डाली मेरी . है फट गयी मैं तो मरी जा रही हूँ. बड़ा दुख रहा है . तरस खाओ आ मैं तो फँस गयी.." इस पर भी सुदर्शन धक्के मारने से बाज़ नही आया और उसी रफ़्तार से ज़ोर ज़ोर से धक्के वो लगता रहा.टाइट व मक्खन की तरह मुलायम चूत चोदने के मज़े मे वो बहरा बन गया था दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा ये पार्ट यही ख़तम होता है आगे की कहानी जानने के लिए रद्दी वाला पार्ट ७ पढ़ना ना भूले
क्रमशः............
Raddi Wala paart--6
gataank se aage...................
Phir Sudershan ne Ranjana ko baitha diya aur skirt khol dee.Skirt ke khulte hi Ranjana ki bra me qaid shakht chochiya sir uthaye vaasna men bhare papa ko nimantraN dene lagee. Sudarshan ne phauran un par hath rakh diya aur unhen bra par se hee dabaane laga. Vaah Ranjana tum'ne to it'nee baRee baRee kar lee. Tumhaaree chiknee janghon kee hee tarah tumhari choochiyaan bhee pooree mast hai. Bhai ham to aaj in'se jee bhar ke khelenge, inhen choosenge. Yah kah kar Sudarshan ne Ranjana kee bra utaar dee. Bra ke utar'te hee Ranjana kee choochiyaan phudak paRee. Ranjna ki choochiyaan abhi kachchhe amroodon jaisi hi thee. Anchhuyee hone ki wajah se choochiya behad sakht aur angoor ke daane ki tarah nukeeli thee. Sudarshan un'se khel'ne laga aur unhen mukh men lekar choosne laga. Ranjana mastee men bharee jaa rahee thee aur na to papa ko mana hee kar rahee thee aur na hee kuchh bol rahi thee.Isse Sudarshan kee himmat aur baDhee aur bola, Ab ham pyaaree betee kee jawaanee dekhenge jo us'ne jaanghon ke beech chhupa rakhee hai.Jara leto to.Ranjana ne ankhen band kar lee aur chit let gai. Sudarshan ne phir ek baar chiknee jangho par hath phera aur theek choot ke chhed par angul se dabaaya bhee jahaan panty gilee ho chukee thee. Haay Ranjoo teree choot to paanee chhoR rahee hai. Yah kah'ke Sudarshan ne Ranjana kee panty jaanghon se alag kar dee.Phir wo uski janghon, choot,gaand aur kunware mammo ko sahlate hue aahen bharne laga. Choot behad gori thee tatha wahaan par sunehari reshmi jhanton ke halke halke roye ug rahe the. Isliye betee kee is anchhui choot par haath sahlane se behad maza Sudarshan ko aa raha tha. Sakht mammon ko bhi dabana wo naheen bhool raha tha.Isi beech Ranjna ka ek haath pakad kar usne apne khaRe lund par rakh kar daba diya aur bade hi nasheele se swar main wo bola, "Ranjna! meree pyaree betee ! lo ap'ne papa ke is khilone se khelo. ye tumhare hath main aane ko chhatpata raha hai meree pyaaree pyaaree jaan.. ise dabao aah!"lund sah'laane ki himmat to Ranjna naheen kar saki, kyonki use sharm aur jhijhak lag rahi thee. magar jab papa ne dubaara kaha to hal'ke se use use mutthee main pakad kar bheench liya. lund ke chaaron taraf ke bhaag main jo baal uge hue the, wo kaale aur bahut sakht the. Aisa lagta tha, jaise papa save ke saath saath jhaanten bhee banaate hain. lund ke paas ki jhaante Ranjna ko haath mai chubhti huee lag rahi thee,isliye use lund pakadna kuchh jyaada achcha sa naheen lag raha tha.Agar lund jhaant rahit hota to shaayad Ranjna ko bahut hi achcha lagta kyonki wo bojhil pal'kon se lund pakde pakde boli thee,"Ohh papa aap'ke yahaan ke baal bhee DaadDhee kee tarah chubh rahe hain.. Inhe saaf kar'ke kyon naheen rakh'te." baalon ki chubhan sirf isliye Ranjna ko bardasth karni pad rahi thi kyonki lund ka sparsh bada hi man bhawan use lag raha tha.Eka ek Sudarshan ne lund uske haath se chhudaa liya aur uski janghon ko kheench kar chaudaa kiya aur phir us'ke pairo ki taraf ukdoo baitha.usne apna fanfanaata hua lund kudrati geeli choot ke anchue dwar par rakha. wo choot ko chaudaate hue doosre haath se lund ko pakad kar kaafi der tak use wahin par ragadta hua maza leta raha. mare masti ke bawali ho kar Ranjna uth-uth kar siskaar uthee thee, "Uee papa aapke baal .. meri par chubh rahe hain.. Use hataao. bahut gaD rahe hain. Papa andar mat kar'na meree bahut chhotee hai aur aap'ka bahut baRa." vastav main apni choot par jhaant ke baalon ki chubhan Ranjna ko sahan nahee ho rahi thee,magar is tarah se choot par supaade ka ghasson se ek jabardast sukh aur aanand bhi use praapt ho raha tha. Ghasson ke maze ke aage chubhan ko wo bhoolti jaa rahi thee. Ranjna ne socha ki jis prakaar Birju ne mummy ki choot par lund rakh kar lund andar ghuseda tha usi prakaar ab papa bhi zor se dhakka maar kar apne lund ko uski choot main utar denge,magar uska aisa sochna galat saabit hua. Kyonki kuchh der lund ko choot ke mun'h par hi ragadne ke baad Sudarshan sah'sa uth khaRa hua aur uski kamar pakad kar kheenchte hue usne oopar apni god main utha liya. God main uthaaye hi Sudarshan ne use palang par laa pat'ka tha. Apne pyare papa ki god main bhari huee jab Ranjna palang tak aayee to use swargiya aanand ki prapti hoti huee lagi thee. Papa ki garam saanson ka sparsh use apne mun'h par padta hua mahsoos ho raha tha,uski sanson ko wo apne naak ke nathuno main ghusta hua aur gaalon par lehrata hua anubhav kar rahi thi.Is samay Ranjna ki choot main lund khaane ki ichchha atyant balwati ho uthee thee.Palang ke oopar use patak Sudarshan bhi apnee beti ke oopar aa gaya tha. Josh aur ufaan se wo bhara hua to tha hi saath hi saath wo kabu se bahar bhi ho chuka tha, isliye wo choot ki taraf pairo ke pas baithte hue tangon ko chauda karne mai lag gaya tha.Tangon ko khoob chauda kar usne apna lund upar ko uth choot ke fadfadaate surakh par laga diya tha.Ranjna ki choot se paani jaisa ris raha tha shayad isliyeSudarshan ne choot par chiknaayee lagaane ki jaroorat naheen samjhi thee. Usne achchhee tarah lund ko choot par daba kar jyon hi use andar ghusedne ki koshish mai aur dabav Dala ki Ranjna ko bade zoro se dard hone laga aur asehaniye kasht se marne ko ho gayee.Dabav pal prati pal badhtaa jaa raha tha aur wo bechaati buri tarah tadafane lagi thee. lund ka choot main ghusna bardasht na kar paane ke karan wo bahut joro se karah uthee aur apne hath paanv fainkti huee dard se bilbilaati huee wo tadafi, "Haai !papa andar mat Daalna. uf main marii jaa rahee hoon. Haay papa mujhe nahee chaahiye aap'ka aisa pyar.Ranjna ke yu cheekhne chillaane aur dard se karaah'ne se tang aa kar Sudarshan ne lund ka supada jo choot main ghus chuka tha use fauran hi baahar kheench liya. Phir usne ungliyon par thook le kar apne lund ke supaade par aur choot ke bahar wa andar ungli Daal kar achchhi tarah se lagaaya. Puneh chodne ki taiyari karte hue usne phir apna dehakta supaada choot par tika diya aur use andar ghusedne ki koshish karne laga.Halanki is samay choot ekdam paniyayi hui thee, lund ke chhed se bhi chipchipi boonde choo rahi thee aur us'ke baawajood thook bhi kaafi laga diya tha magar phir bhi lund tha ki choot main ghusna mushkil ho raha tha. Karan tha choot ka atyant tight chhed. Jaise hi halke dhakke main choot ne supaada niglaa ki Ranjna ko joro se kasht hone laga, wo buri tarah karaahane lagi, "Dheere dheere papa, bahut dard ho raha hai. Soch samajh kar ghusaana.. kahin fat .. gaye. too. uff. Mar. gayee. Haai bada dard ho raha hai.. tes maar rahi hai. hai kya karoon." Choonki is samay Ranjna bhi lund ko poora satakne ki ichchha main andar hi andar machli jaa rahi thi.Isliye aisa to wo soch bhi nahee sakti thee ki wo chudai ko ekdam band kar de. Wo apni aankhon se dekh chuki thee ki Birju ka khoonte jaisa lund choot main ghus jaane ke baad Jwala Devi ko jabardast maza prapt hua tha aur wo uth uth kar chudi thee. Isliye Ranjna swayam bhi chaahne lagi ki jaldi se jaldi papa ka lund uski choot main ghus jaaye aur phir wo bhi apne papa ke sath chudai sukh loot sake,theek Birju aur Jwala Devi ki tarah.Use is baat se aur himmat mil rahee thee ki jaise uskee maa ne uske papa ke saath bewafaai kee aur ek radde waale se chud'vaai ab wo bhee maa kee amanat par hath saaf kar'ke bad'la le ke rahegee. Ranjana yah soch soch kar ki wah ap'ne baap se chudwa rahi hai jis'se chud'vaane ka haq keval us'kee maa ko hai aur mast ho gai.Kyonki jabse usne apnee maa ko Birju se chud'vaate dekha tabse vah maa se nafarat kar'ne lagee thee. Isliye apni gaand ko uchkaa uchka kar wo lund ko choot main satakne ki koshish karne lagi, magar dono main se kisi ko bhi kaamyaabi haasil naheen ho paa rahi thee. Ghusne ke naam par to abhi lund ka supaada hi choot main mushkil se ghus paaya tha aur is ek inchi ghuse supaade ne hi choot main dard ki lahar daudaa kar rakh di thee. Ranjna jaroorat se jyaada hi pareshaan dikhaayee de rahi thee. Wo soch rahi thee ki aakhir kya tarkeeb ladaai jaaye jo lund uski choot main ghus sake. Bada hi aashcharya use ho raha tha. Usne anumaan lagaya tha ki Birju ka lund to papa ke lund se jyada lamba aur mota tha phir bhi mummy use bina kisi kasht aur asuvidha ke poora apni choot ke andar le gayee thee aur yahaan use ek inch ghusne main hi praan gale main fanse mahsoos ho rahe the. Phir apni saamanya buddhi se soch kar wo apne ko raahat dene lagi, usne socha ki ye chhed abhi naya naya hai aur mummy is maamle main bahut puraani pad chuki hai. Chodu Sudarshan bhi itna tight wa kunwaara chhed paa kar pareshaan ho utha tha magar phir bhi is rukaawat se usne himmat bhi naheen haari thee. Bas ghabhraahat ke kaaran uski buddhi kaam naheen kar paa rahi thee isliye wo bhi uljhan main pad gaya tha aur kuchh der tak to wo chikni janghon ko pakde pakde na jane kya sochta raha.Ranjna bhi sans roke garmayee huee use dekhe jaa rahi thee. Eka ek mano Sudarshan ko kuch yaad sa aa gaya ho wo alert sa ho utha,usne Ranjna ke dono haath kas kar pakad apni kamar par rakh kar kaha, "Bete! meri kamar zara majbooti se pakde rahna, main ek tarkeeb ladaata hoon, ghabhrana mat." Ranjna ne uski aagyaa ka palan fauran hi kiya aur usne kamar ke ird gird apni banhen Daal kar papa ko jakad liya. Wo phir bola, "Ranjna! Chahe tumhe kitna hi dard kyon na ho, meri kamar na chhodna,aaj tumhara imtehan hai.Dekho ek baar phatak khul gaya to samajh'na hamesha ke liye khul gaya."Is baat par Ranjna ne apna sir hila kar papa ko tasalli si di.Phir Sudarshan ne bhi uski patli naazuk kamar ko dono haathon se kas kar pakada aur thoda sa betee kee phool'tee gaand ko oopar uthaa kar usne lund ko choot par daaba to, "Oh! papa rok lo. uf marii.."Ranjna phir tadapi magar Sudarshan ne supada choot mai andar ghusaye hue apne lund ki harkat rok kar kaha, "Ho gaya bas meri it'nee pyaree betee. Vaise to har baat men ap'nee maa se competetion kar'tee ho aur abhee haar maan rahee ho. Jaan'tee ho tumhaaree maa bol bol ke ise apnee waalee men pilvaatee hai aur jab tak uske bheetar ise pel'ta naheen sone naheen detee. Bas. Ab ise rasta milta jaa raha hai. lo thoda aur lo.." Yah kah Sudarshan ne oopar ko uth kar morcha sambhaala aur phir ekaek ucchal kar usne joro se dhakke lagana chaalu kar diya. Is tarah se ek hi jhat'ke main poora lund satakne ko Ranjna hargiz taiyar na thee isliye mare dard ke wo buri tarah cheekh paRee. Kamar chhod kar tadapne aur chhatpatane ke alawa use kuch sujh naheen raha tha, "Marrii.. aa. nahin.. marrii.chhoD do mujhe naheen ghuswana... uuf maar diyaa. Naheen kar'na mujhe mummy se competetion.Jab mummy aaye tab usee kee men ghusaana.Mujhe choRo.chhodo nikaalo ise .. aaiiee hatoo na uuf fat rahi hai.. merii aaiee mat maro."Par papa ne jara bhi parwaah na ki. Dard jaroorat se jyaada lund ke yun choot main andar baahar hone se Ranjna ko ho raha tha. tadap kar apne honth apne hi daanto se bechari ne chaba liye the, aankhe fat kar baahar nikalne ko huee jaa rahi thee. Jab lund se bachaaw ka koi rasta bechaari Ranjna ko dikhayee na diya to wo subak uthee, "Papa aisa pyaar mat karo.Haai mere papa chhod do mujhe.. Ye kya aafat hai.. uff naheen ise fauran nikaal lo.. faad Daali meri . hai fat gayee main to marii jaa rahee hoon. bada dukh raha hai . Taras khaao ahh main to fans gayee.." Is par bhi Sudarshan dhakke maarne se baaz nahee aaya aur usi raftar se jor jor se dhakke wo lagata raha.Tight wa makhkhan ki tarah mulayam choot chodne ke maze mai wo behra ban gaya tha. kramshah............
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