"छोटी सी भूल --2
दोस्तों मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक और लॉन्ग स्टोरी लेकर आपके लिए हाजिर हूँ कहानी कैसी हैं ये तो आपही बताएँगे दोस्तों जिंदगी मैं इंसान छोटी छोटी बहुत सी भूल करता लेकिन दोस्तों ये कोई नही जानता की कब कोई छोटी सी भूल जिंदगी को नरक बना दे ऐसा ही कुछ इस कहानी में मैं दिखाना चाह रहा हूँ अब आप इस कहानी का मजा लीजिये
गतांक से आगे...........................
मौसम खराब, होता जा रहा था, और मैं अब घबराने लगी थी. मुझे अब, बिल्लू से डर लग रहा था.
मैं सोच रही थी कि कही ये कोई चालाकी तो नही कर रहा. मैने उसे आवाज़ लगाई और बोली कि, तुम जो मुझ से चाहते हो वो मैं तुम्हे नही दे सकती, तुम बेकार मे अपना वक्त बर्बाद कर रहे हो.
वो पीछे मुड़ा, और बोला कि तेरे उपर तो मैं, वक्त क्या, अपना सब कुछ बर्बाद कर सकता हू. मैं सोच मे पड़ गई कि, आख़िर ये क्या मुशिबत है.
सामने से, एक खाली रिक्शा आता हुवा दिखाई दिया तो, मैने सोचा, अछा मोका है, इस बिल्लू के चंगुल से, निकलने का, और मैने उसे आवाज़ लगाई, भैया ज़रा रुकना. मैने बिल्लू को कहा कि तुम मुझे यही छोड़ दो, मैं अब और तुम्हारे साथ नही चल सकती.
उसने रिक्शा नही रोका और चलता रहा. मैने गुस्से मे कहा बिल्लू रोक रिक्शा मुझे उतरना है. और उसने रिक्शा रोक दिया. दूसरे रिक्शा वाला हमारे रिक्से के पास आया, और बोला कि मेडम कोई परेशानी है क्या. बिल्लू बोला हे, चल तू अपना काम कर, यहा कोई परेशानी नही है.
मैं रिक्से से उतरने लगी तो बिल्लू बोला, ऋतु जी प्लीज़ रुक जाओ, मैं अब कोई ग़लती नही करूँगा. मैं आपको अभी तेज़ी से घर पहुँचा दूँगा. ये सुन कर, मैने अपने कदम रोक लिए. मैं हैरान थी कि, उसने पहली बार, शभ्य भासा का इश्तेमाल किया था.
मैं वापस रिक्से मे बैठ गयी, और उसने रिक्सा आगे बढ़ा दिया.
हवा की तेज़ी बढ़ती जा रही थी, और अब चारो तरफ घन-घोर अंधेरा छा गया था. कुछ देर तक, सब ठीक रहा, और वो, चुपचाप, रिक्सा चलाता रहा.
पर, अचानक उसने ऐसी हरकत की, जिशे देख कर मैं फिर घबरा गयी. उसने तेज़ी से रिक्सा एक सुनसान गली मे मोड़ दिया. मैं परेशान हो गई. चारो तरफ तन्हाई थी. शायद मौसम के कारण लोग घरो मे बैठे थे. मेरे दीमाग मे चिन्ताओ के बदल छा गये. मुझे तरह तरह के बुरे खेयाल आने लगे.
ऐसे मे, ना जाने कहा से, मुझे अचानक, मेरे कॉलेज के दीनो की एक खौफनाक घटना याद आ गयी. उस दिन भी मैं ऐसे ही डर गई थी.
एग्ज़ॅम के दीनो का वक्त था. मैं कॉलेज की, लाइब्ररी मे एग्ज़ॅम के लिए, कुछ नोट्स बना रही थी. पढ़ते, पढ़ते, शाम हो गयी, और मैने देखा की, लाइब्ररी मे सिर्फ़ मैं ही पढ़ रही हू.
मुझे लगा, मुझे अब चलना चाहिए. मैने अपना बेग उठाया, और बाहर आ गयी. मुझे अचानक पानी की प्यास लगी. मैने दिन भर से, पानी नही पिया था. पर पानी का कूलर, जहा मैं खड़ी थी, उसके उपर वाले फ्लोर पर था. मैं पानी, पीने के लिए उपर आ गयी.
वाहा गिलास नही था, इसलिए मैं झुक कर हाथ से पानी पीने लगी. अचानक, मुझे अपने नितंबो पर हल्का सा दबाव महसूस हुवा, और मैने उसी पोज़िशन मे, पीछे मूड कर, देखा. मैने जो देखा, उशे देख कर, मेरे होश उड़ गये.
हमारे कोल्लेज का पेओन, अशोक, मेरे पीछे खड़ा था, और उसने अपने शरीर का वो हिस्सा, जहा आदमी का लिंग होता है, मेरे नितंबो से सटा रखा था. कोई अगर, दूर से देखता, तो उसे ऐसा लगता कि, वो मेरे साथ इस पोज़िशन मे कुछ कर रहा है.
मैं पानी, पीना भूल कर फॉरन सीधी खड़ी हो गयी. पर वो बड़ी बेशर्मी से वही खड़ा रहा.
मैने देखा की उसकी पॅंट मे उसका लिंग तना हुवा था. मैने गुस्से मे पूछा की ये क्या बाद-तमीज़ी है. वो बोला, मैडम कुछ नही, मैं तो यहा पानी पीने आया था, आप पानी पी, रही थी, इसलिए मैं आपके पीछे, लाइन मे खड़ा हो गया.
अशोक दीखने मे, बहुत ही बदसूरत था, उसकी नाक बहुत घिनोनी थी, और चेहरा एक दम काला था. पर मैने, उसके बारे मे, सुन रखा था कि, वह इस कॉलेज की, कई लड़कियो को, पटा कर, उनकी, ले चुका है. मुझे पूरा यकीन था कि, आज वह मुझ पर डोरे डाल रहा है, और उसने ये सब मेरे साथ जान-बुझ कर किया है. उसकी पॅंट मे, तना लिंग, भी यही गवाही, दे रहा था. मुझे बहुत, गंदी फीलिंग हो रही थी कि, ऐसे आदमी ने मेरे साथ ऐसी हरकत की है. मैं बर्दस्त नही कर पा रही थी. वो वाहा खड़े, खड़े मुझे घूर रहा था.
मैं घबरा गई, और सहम गई कि, यहा आस पास कोई भी नही है, और ये बदमास ऐसी, अश्लील हालत मे मेरे सामने खड़ा है.
वह मेरी परवाह किए बगार, अपने लिंग पर हाथ फेरते हुवे बोला, मेडम जी, आपको कोई ग़लत फ़हमी हो रही है. और मैने अपनी नज़रे दूसरी और घुमा ली.
मैं उसे कैसे कहती की, क्या ये तुम्हारी पॅंट मे तना हुवा लिंग, मेरी ग़लत फ़हमी है.
मैने कुछ भी कहना , मुनासिब नही समझा, और चुपचाप वाहा से चल पड़ी.
मैं शीधियो से उतर कर, फॉरन नीचे आ गयी और तेज़ी से कॉलेज के गेट की ओर चल दी. तभी मैने देखा क़ी वो जिस रास्ते पर मैं जा रही थी, उसी रास्ते मे, आगे खड़ा है. शायद वो किसी और रास्ते से वाहा पहुँच गया था.
मैने फॉरन अपना रास्ता बदला और भागना सुरू कर दिया और 2 मिनूट मे कॉलेज के बाहर आ गयी.
बाहर आ कर, मैने फॉरन एक ऑटो पकड़ा, और सीधी घर आ गयी. घर पहुँच कर मैने अपने पापा को पूरी बात बता दी. मेरे पापा जाने-माने आड्वोकेट है और उनके आचे ख़ासे कनेक्षन्स है. उन्होने अपने कनेक्षन्स का इश्तेमाल कर के उसे कॉलेज से निकलवा दिया.
वो एक दिन, मुझे कॉलेज के बाहर मिला, और रिक्वेस्ट करने लगा की, मेडम मुझे माफ़ कर दो. मेरी नौकरी, का सवाल है, मेरा एक छोटा बेटा है, एक बेटी है, उनकी मा भी नही है, मैं कैसे नौकरी के बिना उनको पलूँगा.
मैने उसे कहा, यहा से दफ़ा हो जाओ, ऐसी घिनोनी हरकत करने से पहले, तुम्हे सोचना चाहिए था.
मैने कहा मुझे सब पता है तुम लड़कियो को फँसा कर उनके साथ क्या करते हो. उसने मेरी आँखो मे झाँक कर पूछा, क्या करता हू मेडम.
और मैने नज़रे फेर ली, और उसे डाँट ते हुवे कहा, चुप कर, और यहा से दफ़ा हो जा. वो वाहा से हिला नही, और बोला मेडम आप मुझे अछी लगती हो, आप बहुत सुंदर हो, इस लिए मेरा मन फिसल गया, मैने जब आपको वाहा झुके हुवे देखा तो, ना जाने मुझे क्या हो गया, और मैं आपके पीछे सॅट कर, खड़ा हो गया, मुझे माफ़ कर दो मैं दोबारा ऐसा नही करूँगा.
उसके मूह से ये सब सुन कर मेरा मन खराब हो गया, मैं सोचने लगी कि ये बदसूरत मेरे बारे मे कैसी बाते कर रहा है. इसकी हिम्मत कैसे हुई ये सब सोचने की और कहने की.
मैने कहा, चुप कर ये अपनी बकवास, और एक ऑटो वाले को रोका और घर चली आई. उसको कॉलेज से निकाले जाने पर सभी लड़किया खुश थी.
उसके बाद, मैने उसे कॉलेज के आस पास भी नही देखा और मैने चैन से कॉलेज की डिग्री हाँसिल की. थोड़े दीनो बाद, मेरी शादी संजय से हो गयी और मैं इस सहर मे आ गयी.
ये घटना, मुझे इसलिए याद आई, क्योंकि आज भी, मुझे डर लग रहा था कि, कही ये, बिल्लू मेरे साथ कोई, ग़लत हरकत ना कर दे. मुझे अपनी और अपने परिवार की इज़्ज़त की चिंता हो रही थी.
पर आज सब कुछ मेरी अपनी ग़लती के कारण हो रहा था. अगर मैं, खिड़की वाला किस्सा, आगे ना बढ़ने देती, तो मैं आज इस मुसीबत मे ना होती.
मैं पछता रही थी कि मुझे उस बिल्लू की बात नही सुन-नि चाहिए थी, और उस दूसरे रिक्से मे घर चलना चाहिए था.
तेज हवा चल रही थी और बारिश कभी भी आ सकती थी. मैने पूछा ये कोन सा रास्ता है. वो बोला, तुझे घर जाना है ना, मैं तुझे घर ही ले जा रहा हू, ये शॉर्टकट है.
अचानक मुझे, अपने घर के पीछे का भाग दीखा और मेरी जान मे जान आई.
उसने रिक्शा, सीधे मेरी किचन की, खिड़की के पास ला कर, रोक दिया, और मैं सहम गयी कि, अब क्या होगा.
चारो तरफ अंधेरा था, और दूर-दूर तक कोई नही था. वाहा तो, दिन मे ही कोई नही होता था, रात मे तो किसी के होने का, सवाल ही नही था. यही कारण था कि, मैं घबरा रही थी.
पर मुझे ये भी सेकून था की अब मैं अपने घर के पास तो हू. मैं रिक्शे से उतर गई. वो भी उतर कर मेरे पास आ गया और बोला कि लो तुम्हारा घर आ गया.
मैने उस से पूछा कि कितने पैसे हुवे. वो बोला मुझे तेरे पैसे नही चाहिए. मैं जल्दी से जल्दी, वाहा से, चल देना चाहती थी. मैने 50 रुपये निकाले और कहा ये रख लो, पर उसने नही लिए. मैने सोचा यहा खड़े रहना ठीक नही है और, मैं अपने घर की तरफ चल दी.
चारो तरफ घास, फूस और लंबी झाड़िया थी, जो की अंधारे के कारण और भी भयनक लग रही थी.
अचानक, उसने आगे बढ़ कर, मेरा हाथ पकड़ लिया और बोला कि, क्या तू थोड़ी देर रुक सकती है.
मैने कहा नही, और उसने मेरा हाथ छोड़ दिया, और बोला आराम से जा, मैं यही खड़ा हू, कोई डरने की ज़रूरत नही है.
मैं झाड़ियो से निकल कर, अपने घर के सामने आ गयी, और अपने घर का दरवाजा खोल कर, अंदर आ गयी.
मैने घर के अंदर आ कर चैन की साँस ली. मैने सोचा हे भगवान मैं आज बाल-बाल बच गयी.
मुझे इस बात का, सेकून था कि, बिल्लू ने वाहा अंधेरी झाड़ियो मे, मेरे साथ कोई ग़लत हरकत नही की, और मुझे चुपचाप घर आने दिया.
मैने पानी पिया, और सीधे हमारे बेडरूम मे, आ गयी. मैने देखा की, संजय सोए हुवे है. मैने कपड़े चेंज किए और किचन मे खाना बनाने लग गई.
तभी मुझे चिंटू का ख्याल आया. मैने सोचा आराम से खाना बनाने के बाद मैं चिंटू को मौसी के यहा से ले आउन्गि.
मैने बिल्लू का दिया खाना, जान-बुझ कर, उसके रिक्शे मे ही, छोड़ दिया था. मैने, रिक्से मे बैठे, बैठे ही ये सोच लिया था कि, ये किस्सा आज यही ख़तम कर दूँगी.
मुझे बहुत ही, गिल्टी फीलिंग हो रही थी कि, मैं कैसे इस लड़के की गंदी हरकते, और गंदी बाते, बर्दास्त कर रही थी. मुझे चुलु भर पानी मे, डूब जाना, चाहिए था.
मैने उसे एक बार भी ये अहसास नही कराया था कि मैं उसके साथ कुछ करूँगी या उसे कुछ दूँगी. वो खुद ही बेकार की अश्लील बाते कर रहा था. ये सब सोचते-सोचते खाना बन गया, पर संजय अभी, शो ही रहे थे. मैने उन्हे उठना, सही नही समझा.
मैं फ्रेश होने के लिए, नहाने चली गयी. मैं नहा कर, बाहर आई तो मुझे बारिश की आवाज़ सुनाई दी, मैने मन ही मन, चैन की साँस ली कि, शुक्र है बारिश पहले नही आई, वरना वो बिल्लू पागल हो जाता. मैं बारिश का नज़ारा लेने के लिए किचन की खिड़की मे आ गयी.
मैने बाहर देखा तो, हैरान रह गई कि, बिल्लू अभी भी, खिड़की के पास खड़ा है. मुझे देख कर, वो खिड़की के, और पास आ गया. मैने पूछा, क्या हुवा ? तुम अभी तक गये क्यो नही.
वो बोला, ऐसे मौसम मे, मैं घर जा कर, क्या करूँगा, घर जा कर भी, बार-बार तेरी याद आएगी, और मैं मूठ मार कर सो जा-उँगा, इससे अछा है मैं यही खड़ा रहू.
बाहर अंधेरा बहुत था, पर मैं उसे हल्का हल्का देख पा रही थी. मैने कहा पागल मत बनो, यहा से चले जाओ.
वो बोला, नही आज मैं यही रिक्शा पर सो
जा-उँगा.
मैं असमंजस मे पड़ गई कि क्या करू. अगर किशी ने इशे यहा देख लिया तो क्या होगा.
ये सच था कि, वाहा पीछे कोई नही आता जाता, पर अगर, बाइ चान्स किसी ने, उसे यहा मेरी खिड़की पर, नज़र गड़ाए देख लिया तो, मेरी बदनामी होगी.
मुझे उस पर भी, तरस आ रहा था कि बेचारा यहा मेरे लिए, यहा बारिश मे भीग रहा है. मैने सोचा इसे पीछे जा कर समझाती हू.
मैं बेडरूम मे गई, देखा संजय अभी भी सोए हुवे है. मैने सोचा, मैं जल्दी से उसे, यहा से भेज कर, वापस आ सकती हू. मैं चुपचाप छाता ले कर घर से बाहर आई, तो पाया की बारिश और तेज हो गयी थी.
ये एक तरह से अछा ही हुवा, अब मुझे कोई घर के पीछे जाते हुवे, नही देख सकता था, क्योंकि सभी लोग घरो मे थे.
कोई 2 मिनूट चलने के बाद, झाड़ियो से होते हुवे, मैं अपने घर के, पीछे आ गयी. मुझे यकीन था कि, मुझे किसी ने नही देखा.
मैने देखा कि, बिल्लू एक पेड़ के नीचे खड़े हुवे, मेरे किचन की तरफ देख रहा है.
मुझे देखते ही वो खिल उठा. वो भाग कर मेरे पास आया, और बोला अरे मैं तो, तुझे कब से, खिड़की मे बुला रहा था, और तुम यहा आ गयी.
मैने कहा, ये क्या पागल पन है ? वो बोला, आओ पहले उस पेड़ के नीचे चलो. मैं उसके पीछे,पीछे उस पेड़ के नीचे आ गयी जहा वो पहले खड़ा था.
मैने कहा, मेरे पास ज़्यादा वक्त नही है, मेरे पति किसी भी वक्त उठ सकते है, तुम प्लीज़ यहा से चले जाओ.
मैने कहा, देखो कितनी तेज बारिश हो रही है, ऐसी बारिश मे कोई बाहर रहता है क्या.
वो बोला, मैं तेरे जैसी मस्त आइटम को यहा छोड़ कर घर पर क्या करूँगा.
मैने कहा, देखो अब मज़ाक बंद करो. मैं शादी, शुदा हू, और मैं, अपने परिवार मे खुस हू. मेरा एक छोटा बेटा है. मेरी कुछ मर्यादाए है, जो मैं नही लाँघ सकती. तुम मुझ पर, वक्त बर्बाद मत करो, और किसी अपनी उमर की, लड़की से दोस्ती कर लो.
वो बोला, ये क्या मर्यादाओ की बात करती है, तू किस जमाने मे जी रही है, सेक्स मे कोई मर्यादा नही होती.
मैने कहा, सेक्स मे मर्यादा हो, या ना हो, पर मेरी जिंदगी मे मर्यादा है.
वो बोला, अगर तुझे मर्यादाए, इतनी ही प्यारी थी, तो तू रोज खिड़की मे आ कर, मेरा लंड क्यो देखती थी, और क्यो, मेरी सेक्सी बाते सुन-ती थी. मैं कुछ भी ना कह सकी, और शर्मिंदगी से, आँखे झुका ली.
मैने हिम्मत जुटा कर कहा, मैं भी एक इंसान हू, मुझसे ग़लती हो गई, पर अब मैं अपनी ग़लती सुधारना चाहती हू.
मैने उससे कहा, मैं आज के बाद तुम्हे नही मीलुन्गि और ना ही खिड़की पर से तुम्हे देखने आउन्गि, ये मेरा वादा है. तुम भी अब, सही रास्ते पर आ जाओ. अगर तुम्हे सेक्स की, इतनी ही भूक है, तो जल्दी से किसी लड़की से शादी कर लो.
वो तुरंत बोला, अरे मेरी उमर अभी शादी की नही है, और रही बात लड़कियो की मैने बहुत लड़कियो को ठोका है, मुझे सेक्स की नही तुम्हारी भूक है.
मैने कहा, तो फिर मुझे अफ़सोस है कि, तुम्हारी ये भूक, कभी नही बुझेगी. थोड़ी देर वाहा शांति छा गई, और हम दोनो कुछ नही बोले, मैने सोचा शायद वो मेरी बात समझ रहा है.
पर मैं ग़लत थी, उसने अचानक अपना दाया हाथ मेरे नितंबो पर रख दिया और उन्हे मसालने लगा. मेरे शरीर मे बिजली सी कोंध गयी.
मैने उसका हाथ, वाहा से फॉरन हटा दिया, और बोली, प्लीज़ ऐसा मत करो. मैं तुम्हे यहा समझाने आई हू, ना कि ये सब, बदतमीज़ी झेलने, आई हू. दुबारा ऐसा मत करना, वरना मैं चली जा-उंगी.
पर उस पर, मानो कोई असर नही हुवा, और मेरे नितंबो पर फिर से हाथ टीका दिया और उन्हे मसल्ने लगा. पहली बार किसी गैर मर्द के हाथ मेरे नितंबो पर थे, और मैं खुद पर शर्मिंदा हो रही थी.
मेरे नितंबो को, मसालते-मसालते, वो बोला, तू मुझे, कुछ मत दे, पर कम से कम, तेरी बॉडी को छू कर, महसूस तो कर लेने दे. मैं फिर यहा नही आ-उँगा. बस प्लीज़ एक बार मुझे तेरे शरीर को आछे से महसूस कर लेने दे.
मैं कुछ नही बोल पाई, और नज़रे झुका कर, खड़ी हो गयी.
मैं सोच मे पड़ गयी कि, क्या करू इस लड़के का, ये यहा से जाने को तैयार ही नही है. और मैं हर हाल मे उसे वाहा से दफ़ा करना चाहती थी.
मैने सोचा, ये मेरे नितंबो पर फिदा है, चलो इसे, उन्हे छू लेने दो. ये कहानी अगर, नितंबो से, ख़तम होती है तो, हरज ही क्या है, इसके बाद, मुझे मन की शांति तो मिलेगी.
मैने उसका हाथ, अपने नितंबो से हटाया, और बोली कि, यहा छूने से पहले, तुम वादा करो कि तुम, मेरे नितंबो को छूने, के बाद यहा से चले जा-ओगे, और फिर यहा नही आ-ओगे.
वो मेरी आँखो मे देख कर बोला, पक्का वादा, मैं तेरी गांद को, आछे से, महसूस करके, यहा से चला जा-उँगा, और दुबारा यहा नही आ-उँगा.
ये सब सुन कर, मेरा रोम-रोम कांप उठा. मैं असमंजस मे थी कि कही मई ग़लत तो नही कर रही. मैने अपने फ़ैसले को, सही ठहराने के लिए, तरक दिया कि मेरी, छोटी सी भूल की, शायद यही सज़ा है.
मैं सोच रही थी की, मुझे, कुछ ना कुछ कीमत तो चुकानी ही पड़ेगी.
वो बोला, मैं आराम से, तेरी गांद दबो-चुँगा, कोई जल्दी-जल्दी मत करना. मैने शरम और गिल्ट से अपनी नज़रे झुका ली और चुप-चाप खड़ी रही.
वो मेरे पीछे आ कर, खड़ा हो गया और अपने दोनो हाथो मे, मेरे नितंबो का एक-एक भाग थाम लिया और बोला, कब से तम्माना थी तेरी गांद पर हाथ फिराने की, कसम से तेरी गांद बड़ी कातिल है साली, जब भी तुझे मार्केट मे, देखता था, यही तम्माना होती थी कि, तेरी गांद को हाथो मे थाम कर, देखु कि, कैसी मुलायम है तेरी गांद. मैं तेरी गांद छूने को, तरसता रहता था, और तू अपनी गांद छलकती हुई चलती जाती थी. तू बहुत कमिनि चीज है.
मैने उसे कहा प्लीज़ कुछ मत बोलो मुझे शरम आती है, बस चुप-चाप छूते रहो. पर उसने मेरी बात नही मानी. वो तरह तरह से मेरे नितंबो को छू रहा था और गंदी-गंदी बाते बोल रहा था.
मैं ये सब सुन कर शरम से लाल हो गयी , और चुप-चाप नज़रे झुकाए वाहा खड़ी रही ताकि वो मेरे नितंबो से खेल कर, खुस हो कर, अपना जी भर कर, वाहा से हमेसा के लिए चला जाए.
उसने अचानक, बड़े ज़ोर से मेरे नितंबो को दबो-चा और मेरे मूह से अचानक निकल गया, आई… आराम से दबो-चो, दर्द होता है.
मैं वाहा चुपचाप, शर्मिंदगी से, नज़रे झुकाए खड़ी रही, और वो बड़ी बेशर्मी से मेरे, नितंबो से खेलता रहा.
मैं घबरा रही थी कि, कही किसी ने कुछ, देख लिया तो मेरा क्या होगा, मेरा परिवार बीखर जाएगा.
ये तो अछा था कि, बारिश बहुत तेज, हो रही थी, आस पास के सभी लोग घरो मे थे. मैं सोच रही थी कि, ये बदमास लड़का कब रुकेगा.
चारो तरफ अंधेरा था, जिस से मुझे बहुत डर लग रहा था. सुक्र है, मैं अपने किचन की, लाइट जला कर छोड़ आई थी. खिड़की से रोस्नी जहा हम खड़े थे वाहा तक पहुँच रही थी. ज़्यादा तो नही थी, पर मेरा डर कम करने को काफ़ी थी.
अचानक मैं चीख पड़ी ‘आईईईईई’, ये क्या किया. बदमास बिल्लू ने, मेरे नितंबो के दाए भाग पर काट खाया था. मैने कहा, बिल्लू दुबारा ऐसा मत करना. वो बोला, सॉरी, ग़लती से दाँत लग गये.
अचानक अपने सामने मुझे, झाड़िया हिलती हुई दीखाई दी. मेरा ये सोच कर, बुरा हाल हो गया कि, कही कोई, यहा आ तो नही रहा.
पर मैने सोचा इस बारिश मे यहा झाड़ियो मे किसी का क्या काम. मैने बिल्लू को कहा, बिल्लू रुक जाओ, वाहा झाड़ियो मे कोई है.
बारिश की आवाज़ मे शायद उसने कुछ नही सुना. तभी एक कुत्ता, झाड़ियो से उभरा, और हमे वाहा देख कर रुक गया.
मुझे कुत्ते को देख कर, चैन मिला क़ि सुक्र है वाहा कोई और नही था, पर मुझे हँसी आ गयी कि कुत्ता सामने खड़ा है और ये बिल्लू खुद कुत्ते की तरह मुझे काट रहा है.
वह कुत्ता, हुमे घूरते हुवे, वाहा से आगे गुजर गया. मैं डर रही थी कि कही वो हमारी तरफ ना, आ जाए.
बिल्लू अपने काम मे लगा हुवा था. अचानक वह रुक गया, और मैने महसूस किया कि, उसके हाथ मेरे नितंबो पर नही है. मैने सोचा चलो काम ख़तम हुवा, अब मैं घर जा सकती हू.
पर मैने, पीछे मूड कर देखा तो, चोंक गयी. बिल्लू अपने दोनो हाथो से, अपने पॅंट की, ज़िप खोल रहा था.
जैसे ही, मैने पीछे देखा, उसने मेरी तरफ बड़े ही, वहसी तरीके, से देखा. मैं सहम गयी, और इस से पहले कि, मुझे उसका लिंग दीखाई दे, मैने अपनी गर्दन वापस सामने घुमा ली.
मैं उसका लिंग नही देखना चाहती थी. उसे देखने के कारण ही तो मैं इस मुसीबत मे पड़ गयी थी.
मुझे खुद पर, शरम आ रही थी कि, मैं अपने ही घर के पीछे, यहा झाड़ियो मे, इस लड़के के हाथो का खिलोना बने खड़ी थी. पर मुझे संतोस था कि आज ये कहानी यही ख़तम होगी.
मैने बिल्लू को कहा, बिल्लू देखो, अब बहुत हो गया. मैं काफ़ी देर से यहा खड़ी हू. मैं घर से ईतनी देर तक, बाहर नही रह सकती, मेरे पति उठ गये तो क्या सोचेंगे.
पर वो कुछ नही बोला. एक मिनूट हो गया, और मुझे अपने नितंबो पर, कुछ महसूस नही हुवा. मैने पीछे मूड कर देखा, तो वो अभी भी अपनी पॅंट की ज़िप खोलने मे लगा था.
उसकी ज़िप शायद अटक गयी थी. मैं सोच रही थी कि चलो अछा हुवा.
वो बोला, मेरी मदद करो ना, देखना ये अटक गयी है. वह परेशान दीख रहा था. मैने कोई जवाब नही दीया.
मैने कहा बिल्लू, अब मैं जा रही हू, और वो बोला एक मिनूट-एक मिनूट, बस खुल गयी. मैने तुरंत अपनी गर्दन आगे घुमा ली.
मैने बिल्लू से कहा, प्लीज़ इसे, पॅंट के अंदर ही रखो.
उसने फिर से, दोनो हाथो से, मेरे नितंबो को थमा, और मेरे नितंबो के बीच अपना लिंग लगा कर धक्के मारने लगा.
मैने कहा, बिल्लू ये ग़लत बात है, बात सिर्फ़ हाथो से
छूने की हुई थी, अपने लिंग को मुझ से दूर रखो.
पर वो नही रुका और धक्के लगाता रहा. उसका लिंग, मेरे नितंबो मे, चुभता हुवा महसूस हो रहा था.
वह बोला, तू भी क्या बात करती है, गांद को क्या, लंड के बीना, कोई महसूस कर सकता है. ये कह कर, उसने मेरे नितंबो से, अपने हाथ हटा कर, मुझे पीछे से, बाहो मे भर लिया, और नितंबो पर लिंग लगा कर धक्के मारने लगा. वो बोला, मैं तुझे आछे से, महसूस कर के ही, यहा से जाउन्गा.
मैं ये सुन कर पानी, पानी हो गयी. मेरी योनि से पानी की नादिया बह नीकली.
फीर उसने, अचानक अपने दोनो हाथो से, मेरा नाडा थाम लिया, और उसे खोलने लगा, मैने उसे डाँट दिया, बिल्लू सिर्फ़ कपड़ो के उपर-उपर से करो, और उसके हाथ अपने नाडे से दूर झटक दीए.
मैने सोचा, ये लड़का कितना चालक है, आगे ही आगे बढ़ता जा रहा है. मैं अब उसकी बाँहो मे थी और वो पीछे से धक्के मारे जा रहा था.
मैने सोचा, ईतना बहुत है. बल्कि मुझे अहसास हो रहा था क़ी, ये कुछ ज़्यादा ही, हो रहा है, और मुझे अब इशे दफ़ा कर के, अपने परिवार मे लॉट जाना चाहिए. मैने उसे अब यही, रोकने का फ़ैसला कीया और बोली, बस बिल्लू रुक जाओ, मैं अब जा रही हू.
वो बोला, अरे रूको ना, अभी तो, मज़ा आना, शुरू हुवा है.
मैने कहा, बस चुप हो जाओ ,छोड़ो मुझे और जाने दो.
वह बोला क्या तुम्हे मज़ा नही आ रहा.
मैने उससे कहा, अपने हाथ हटाओ, मैं यहा अपने मज़े के लिए नही खड़ी हू.
वो बोला, पर फिर भी तुझे मज़ा तो आ रहा होगा. मैने कहा, अगर तुमने, एक और गंदी बात बोली, तो मैं पथर उठा कर तुम्हारा सर फोड़ दूँगी.
उसने मुझे छोड़ दिया और बोला आ फोड़ दे सर.
मैं थोड़ी शांत हुई, और वो फिर से, मेरे नितंबो पर लिंग मसल्ने लगा.
मैं घूमी, और बोली की मैं अब जा रही हू. घूमते ही, मेरी नज़र उशके लिंग पर गयी, वह पूरा तना हुवा था, और ईतने करीब से, और भी ज़्यादा बड़ा लग रहा था. ऐसा लग रहा था जैसे कोई काला नाग मेरी तरफ फन उठाए खड़ा है, मैं उसे ईतने करीब से देख कर डर गयी.
उसने मुझे, उसके लिंग को घूरते हुवे, देख लिया और बोला, अछा लगता है ना तुझे ये.
मैने शरम से, नज़रे झुका ली, और कुछ नही बोली.
उसने मेरा हाथ पकड़ा, और अपने लिंग की तरफ खींचते हुवे बोला, ले, पकड़ ले, शरमाती क्यो है, ये पूरा का पूरा, तेरा ही है. मैने तुरंत अपना हाथ वापस खींच लिया.
मेरे रोम-रोम मे बीजली की ल़हेर दौड़ गयी.
मैं सोच रही थी कि, आख़िर इसका, ईतना मोटा और लंबा क्यो है.
अब तक मैने सिर्फ़ अपने पति का ही देखा था, और आज उसे ईतने करीब से देख कर लग रहा था के संजय का शायद इस से आधा ही होगा.
मैने सोचा, मैं संजय से, लिंग के साइज़ के बारे मे बात करूँगी, वो डॉक्टर है, उन्हे कुछ ज़रूर पता होगा.
मैं सोच मे, डूबी हुई थी, और बिल्लू कब मेरे नज़दीक आ गया मुझे पता ही नही चला.
उसका लिंग, मेरी योनि से, टकराने ही वाला था कि, मई तुरंत पीछे हट गयी.
मैने खुद को, कोसा की हे भगवान, मैं ये कैसी बाते सोच रही थी. मुझे लगा इश्का लिंग बार बार मुझे फसा देता है.
मैने अब बिल्लू की तरफ देखा और बोली, बिल्लू अब बहुत हो गया. प्लीज़ अब इसे पॅंट मे वापस डाल लो मुझे कुछ-कुछ होता है. वो बोला क्या होता है.
मैने उसे डाँटते हुवे कहा, तुम नही समझ सकते. मैने अपनी खिड़की की और देखा और उसे कोसने लगी.
मैं मूड कर चलने लगी, पर उसने, आगे बढ़ कर मेरा हाथ थम लिया. वो बोला एक मिनूट रुक तो.
मैने कहा ठीक है, पहले उसे पॅंट मे डालो.
उसने अपना लिंग पॅंट मे वापस डाल लीया और बोला, मैं बहुत खुस हू, मुझे बहुत-बहुत मज़ा आया. ईतना मज़ा तो किसी लड़की की चूत ले कर भी नही आया था, जितना मज़ा तेरी गांद से खेल कर आ गया.
मैं शरमा उठी, और नज़रे झुका कर बोली, प्लीज़ ऐसी बाते मत करो. पर वो बोला, नही पर ये सच है.
मैने कहा, मैं चलती हू, तुम अब यहा से चले जाओ, और अपना वादा मत भूलना कि, तुम अब यहा नही आ-ओगे.
वह बोला, ठीक है, मैं जेया रहा हू, तेरे यहा अब नही आउन्गा, पर अगर तुझे कभी मेरी ज़रूरत पड़े तो, मदन एलेक्ट्रॉनिक्स की, शॉप पर चली आना, वो तेरे ब्यूटी पार्लर के बिल्कुल साथ मे ही है.
मैने कहा, मुझे तुम्हारी कोई ज़रूरत नही है, मैं अपने पति के साथ खुस हू. वो बोला, पर तू अभी, मेरा लंड तो, ऐसे देख रही थी जैसे की, तुझे कोई कमी हो.
मैं बोली, बिल्लू चुप कर, मुझे अपनी जिंदगी मे कोई कमी नही है, तुम अब चले जाओ और बाते मत बनाओ.
वो बोला, ठीक है मैं अब चलता हू. वह मेरे कानो के पास, अपना मूह लाकर बोला, थॅंकआइयू ऋतु, तेरी गांद मुझे हमेशा याद रहेगी.
मुझे अब गुस्सा आ गया, और बोली कि तुम अब जाते हो या नही. वह बोला सॉरी बाबा, मैं जा रहा हू. वह अपने, रिक्शे की और, बढ़ गया और मैं छाता उठा कर अपने घर की और चल दी.
मैं पूरी तरह भीग गयी थी. मैने सोचा, अगर संजय देखेंगे, तो पूछेंगे की, छाता होते हुवे भी कैसे भीग गयी. मैं डरते, डरते, झाड़ियो को, पार करके, अपने घर मे आ गयी.
मैने चुपके से, बेडरूम मे झाँक कर देखा तो, पाया कि, संजय अभी भी सो रहे थे. मैने फॉरन, गीले कपड़े उतारे, और नहाने चली गयी. मैने उन कपड़ो को अख़बार मे लपेट कर कूड़ेदान मे डाल दिया. मैं आज के दिन की कोई याद अपने साथ नही रखना चाहती थी.
मैं नहाने के, बाद किचन मे आकर, डिन्नर सर्व करने की तैयारी करने लगी. अचानक मुझे, अपने नितंबो पर, हाथ की छुवन महसूस हुई, और मेरे होंटो तक तुरंत आया बिल्लू, पर मैने खुद को ये बोलने से रोक लिया, क्योकि मैं समझ गयी थी कि संजय मेरे पीछे खड़े है, और उनका हाथ मेरे नितंबो पर है.
मैने पूछा, आप कब उठे, वो बोले, बस अभी उठा हू, और मेरी गर्दन को चूम लिया. मैं पछता रही थी कि काश आज का दिन मेरी जिंदगी मे ना होता.
संजय बोले, कब आई पार्लर से, मैने डरते, डरते जवाब दिया यही , यही कोई एक घंटा पहले. उन्होने पूछा चिंटू कहा है, मैने कहा मौसी के यहा है, हम अभी उसे लेने चलेंगे.
हम दोनो छाता लेकर, चिंटू को लेने निकल पड़े. संजय बोले आज मौआसम बहुत बढ़िया है ना, मैने बड़ी मायूसी से, जवाब दिया हा है तो सही.
घर वापस आ कर, हमने खाना खाया और मैं सब काम कर के सोने के लिए लेट गयी. संजय बाहर बारिश का मज़ा ले रहे थे.
अचानक वो कमरे मे आए, और मुझ से लिपट गये, और मुझे बेतहासा चूमने लगे. वो बोले, आज मौसम ईतना अछा है, और तुम सो रही हो. मैने मन ही मन कहा ये, मौसम क्या आज मेरी जान लेगा.
उन्होने जल्दी जल्दी मेरे कपड़े उतारे और मुझे यहा वाहा चूमने लगे. उन्होने मुझे उल्टा घुमाया और मेरी पीठ से लेकर टाँगो तक चूमने लगे.
अचानक वो बोले, अरे ये तुम्हारे चूतड़ पर लाल निशान क्यो है. मेरे तो, पैर के नीचे से ज़मीन निकल गयी. मैने अपने कपड़े तो, फेंक दिए, पर ये भूल गयी कि, बिल्लू ने मेरे नितंबो पर काटा था. मुझे ध्यान ही, नही रहा कि वाहा, उसके काटे का निसान भी हो सकता है.
मैने मन ही मन मे, कहा, कुत्ता कही का और सोचने लगी कि वो बदमास लड़का चला तो गया पर जाते-जाते मेरे नितंबो पर अपना निशान छोड़ गया.
मैं सोच रही थी कि क्या जवाब दू संजय को. मुझे खामोस देख कर वो फिर से बोले की बताओ ना ये निशान कैसा है.
मैने डरते डरते कहा क..क…कुछ नही, मैं आज बाथरूम मे फिसल गयी थी, सायड उसका निशान होगा.
उन्होने कहा कि, मुझे बताना था ना, और आगे बढ़ कर उस निशान को चूम लिया और बोले ये अब ठीक हो जाएगा.
वो उसी पोज़िशन मे, मुझे तैयार करने लगे, और मेरी योनि को छू कर बोले, अरे आज तुम कुछ ज़्यादा ही गीली हो. मेरे पास इसका कोई जवाब नही था.
वो मुझ मे, समा गये और मैं खोती चली गयी. जैसे ही वो मुझ मे समाए, मेरे कानो मे बिल्लू के वो बोल गूँज गये कि, आज तेरा पति तेरी ज़रूर लेगा. मैं हैरान थी कि वो बदमास मेरे दीमाग मे भी अपनी छाप छोड़ गया है. फिर मैने सब कुछ भुला दीया और संजय के प्यार मे डूब गयी.
आपका दोस्त राज शर्मा
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा
(¨`·.·´¨) Always
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(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj
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