"छोटी सी भूल --17
गतांक से आगे .........................
20 एप्रिल 2008, से लेकर 26 सेप्टेंबर 2008 तक, कोई 5 महीनो में, मेरे साथ इतना कुछ हो गया और मेरी हँसती खेलती जींदगी बर्बाद हो गयी. वो 26 सेप्टेंबर का ही दिन था जिस दिन दीप्ति मुझे अपनी इतनी लंबी कहानी शुना रही थी.
उस दिन दीप्ति के जाने के बाद मैं अंदर ही अंदर गहरे विचारो में खो गयी. मुझे भी अब ये बात परेशान कर रही थी कि आख़िर बात क्या है.
अचानक मुझे याद आया कि बिल्लू ने कयि बार मुझ से कहा था कि तुम्हे वक्त आने पर सब कुछ पता चल जाएगा. आख़िर क्या पता छल्लेगा मुझे, मुझे कुछ समझ नही आ रहा था ??
मुझे बस इतना ही पता चला था कि संजय और विवेक बिल्लू को जानते थे, क्यो जानते थे, उनकी क्या जान पहचान थी, इशके बारे में मैं किसी भी नतीज़े पर नही पहुँच पा रही थी.
वही वो पल था जीशमें की मैने अपनी छोटी सी भूल को एक डाइयरी में लिखने का फैंसला किया, ताकि उसे पढ़ कर बाद में किसी नतीज़े पर पहुँचा जा सके.
पर अगले ही दिन यानी के 27 सेप्टेंबर को घर पर डाइवोर्स के पेपर आ गये और मैं टूट कर बिखर गयी और कुछ भी नही लिख पाई. दिन रात अपने कमरे में पड़े पड़े मैं आँसू बहाती रही. इशके अलावा कर भी क्या सकती थी. जो पाप मैने किया था उशी की सज़ा तो मुझे मिल रही थी.
मुझे अंदेशा तो था कि संजय शायद ऐसा ही करेंगे और मैं खुद को मेंटली प्रिपेर भी कर रही थी, पर फिर भी जब वाकाई में ऐसा हो गया तो आंशुओं को रोकना मुश्किल हो गया. खुद से ज़्यादा में चिंटू के लिए परेशान थी, मेरे कारण वो अपने पापा के प्यार से जुदा होने जा रहा था.
आज 6 जन्वरी 2009 है और मैं पीछले चार दीनो से ये डाइयरी लिख रही हूँ. जब पीछले हफ्ते 29 डिसेंबर 2008 को संजय से डाइवोर्स हो गया तो कुछ समझ नही आया कि क्या करूँ. बार बार अपनी किशमत को रो रही हूँ.
2 जन्वरी को मैं यू ही परेशान बैठी थी कि अचानक मुझे अपनी टेबल पर एक डाइयरी दीखाई दी और मैने एक पेन उठाया और अपनी दर्द भारी दास्तान लीखनी शुरू कर दी.
आज 6 जन्वरी 2009 है और मैं मुंबई में हूँ. चिंटू अपने नाना नानी के साथ देल्ही में है. अभी 15 दिन ही हुवे है मुझे यहा आए, इसलिए यहा बिल्कुल मन नही लग रहा. यहा सेट्ल हो कर चिंटू को थोड़े दीनो बाद ले आउन्गि
दीप्ति ने मुझे बताया था कि उनकी कंपनी की सिस्टर क्न्सर्न ज़ेडको प्राइवेट लिमिटेड में असिश्टेंट मॅनेजर की पोस्ट खाली है, तुम चाहो तो जाय्न कर लो. पर तुम्हे मुंबई जाना पड़ेगा.
मैने बहुत सोचने के बाद जाय्न करने का फ़ैसला कर लिया और इस तरह मैं मुंबई आ गई. अब मुझे चिंटू के लिए तो जीना ही था इसलिए मैने जाय्न करना ठीक समझा. कंपनी ने मेरे रहने के लिए कोलाबा में एक फ्लॅट दे दिया है पर इतने बड़े घर में मुझे बहुत अकेला महसूष हो रहा है.
अभी अभी ऑफीस से आई हूँ और पहली बार इतना काम करके थक गयी हूँ. थोड़ा फ्रेश होने के बाद आगे की कहानी लीखूँगी.
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उस दिन यानी के 26 सेप्टेंबर 2008 को जाते जाते दीप्ति ने पूछा, यार एक बात पूछनी थी, बुरा तो नही मानोगी ?
मैने कहा, “पूछो ना, मैं बुरा क्यो मानूँगी”
“एक बात बताओ, बिल्लू में ऐसा क्या था जो की तुम उशके चक्कर में पड़ गयी, क्या तुम भी उन लॅडीस की तरह हो जीनके लिए लिंग का साइज़ इंपॉर्टेंट है, ना कि पति का प्यार ??
“कैसी बात कर रही हो दीप्ति, छी, तुम ऐसा सोच भी कैसे सकती हो” ---------- मैने थोड़ा गुस्से में कहा.
“तभी पूछ रही थी कि तुम बुरा तो नही मानोगी, सॉरी इफ़ आइ हर्ट यू” ---- दीप्ति ने सॉरी फील करते हुवे कहा.
“दीप्ति….., बिल्लू देखने में बहुत भोला भला और शरीफ सा लगता था और काफ़ी स्मार्ट भी था, हां उसकी बातें ज़रूर बहुत गंदी होती थी, और सच बताउ तो मुझे खुद अभी तक नही पता कि मुझे क्या हो गया था कि मैं उशके साथ पाप के दलदल में डूबती चली गयी, और शायद मैं ये कभी जान भी ना पाउ”
“ह्म्म… अछा ठीक है, सॉरी टू हर्ट यू, मैं अब चलती हूँ, ऑफीस का कुछ काम भी करना है. तुम अब किसी बात की चिंता मत करो. बुरे से बुरा वक्त भी बीत जाता है. देखना ख़ुसीया फिर से आएँगी. भगवान ने दिन और रात यू ही नही बनाए है. ना हमेशा दिन होता है और ना हमेशा रात रहती है” ---- दीप्ति मेरे सर पर हाथ रख कर बोली.
मैने कहा, “पर दुनिया में ऐसी भी काई जगह है, जहाँ कि कयि महीनो तक सूरज नही दिखता”
“होगी ऐसी जगह, पर तुम वाहा नही हो समझी, कम ऑन, अंड हॅंग ऑन, यू विल सी दट, सूनर ओर लेटर थिंग्स आर गेटिंग बेटर” ----- दीप्ति ने मेरी पीठ तप-थपाते हुवे कहा.
“… ठीक है, देखते है, थॅंक्स फॉर बीयिंग सच ए नाइस फ्रेंड” --------- मैने दीप्ति का हाथ पकड़ कर कहा.
“मैं कल मनीष से मिल कर उसको इस काम पर लगा दूँगी, और जैसे ही कुछ पता चलेगा तुम्हे फोन करूँगी” ------- दीप्ति ने कहा.
मैने पूछा, “क्या तुम मनीष को सब कुछ बता दोगि”
“तुम चिंता मत करो, मनीष ईज़ ए नाइस मॅन, पर मैं उशे जितना ज़रूरी है उतना ही बताउन्गि, बाकी वो डीटेक्टिव है, तुम तो जानती ही हो” --- दीप्ति ने कहा
मैने कहा, “ठीक है, जैसा तुम ठीक समझो, पर मेरी बात ध्यान रखना, मेरा नाम नही आना चाहिए”
“ओक ऋतु, मैं ध्यान रखूँगी, तुम्हे फोन करके सब कुछ बताती रहूंगी, डॉन’ट वरी अबौट एनितिंग” – दीप्ति ने जाते हुवे कहा.
मैने कहा, “ओक बाइ-बाइ, मुझे बहुत अछा लगा कि तुम आई, पर तुम्हारी ट्रॅजिडी सुन कर थोड़ा दुख भी हुवा, फोन करती रहना”
दीप्ति चली गयी और जैसा की मैने पहले कहा, उसके जाने के बाद मैं गहरे विचारो में खो गयी
फरीदाबाद में तो संजय ने लॅंडलाइन लगवाया हुवा था, इसलिए कभी मोबाइल लेने की ज़रूरत ही नही पड़ी. पर वाहा देल्ही में पापा ने मुझे अपना मोबाइल दे दिया था और खुद दूसरा खरीद लिया था. वही नंबर मैने दीप्ति को दे दिया था.
अगले दिन जब संजय ने डाइवोर्स पेपर भेजे तो मैने उन्हे अपने मोबाइल से ही फोन किया था, पर उन्होने एक बार भी मेरा फोन नही उठाया.
कुछ दिन यू ही बीत गये. मैं अक्सर अपने कमरे में ही पड़ी रहती थी. एक बार चिंटू खेलता खेलता मेरे पास आया और बोला, “हम अपने घर कब जाएँगे”
ये ऐसा सवाल था जीशका की मेरे पास कोई जवाब नही था.
मैने उशे कहा, “तुम खेलो बेटा, अभी हम कुछ दिन यही रहेंगे”
और वो वाहा से खेलता हुवा भाग गया. वो तो वैसे भी वाहा खुस ही था, उसे वाहा स्कूल जो नही जाना पड़ रहा था.
पर क्योंकि संजय ने डेवोर्स केस कर दिया था इसीलिए मैने उशे वही, देल्ही में ही एक स्कूल में अड्मिट करवा दिया. मैं नही चाहती थी कि उसकी स्कूलिंग में ब्रेक आए.
10 अक्टोबर को दीप्ति का फोन आया, उसने जो बताया वो मुझे और ज़्यादा सोचने पर मजबूर कर गया.
“ऋतु तुमने कहा था ना कि बिल्लू रिक्शा भी चलाता है” ---- दीप्ति ने पूछा
“हां कहा था, क्यो क्या हुवा” ---- मैने हैरानी में पूछा
“ मनीष ने फरीदाबाद में तुम्हारे घर के आश् पास रिक्से वालो से बात की थी, उनके अनुशार वाहा कोई बिल्लू नाम का रिक्सा चलाने वाला नही है”
मैने हैरानी में पूछा, “ क्या !! ऐसा कैसे हो सकता है ? एलेक्ट्रिक शॉप और उशके घर पर पता किया”
“वो घर उसका नही था, वो वाहा मार्च 2008 से रेंट पर रह रहा था. पदोषियों को उशके बारें में कुछ नही पता. लोगो के अनुशार वो गुम शुम, चुपचाप रहने वाला लड़का था, ज़्यादा लोगो से बात नही करता था, इसीलिए किसी को उशके बारे में नही पता. हां लोगो ने ये ज़रूर बताया कि बिल्लू एक बार रिक्से में किसी खुब्शुरत लड़की को लाया था. शायद वो उशी दिन की बात होगी जब वो तुम्हे अपने घर ले गया था. उशके मकान मालिक ने बताया कि बिल्लू ने मकान ये कह कर लिया था कि कोई 5 या 6 महीनो के लिए चाहिए, उशके बाद वो वापस देल्ही चला जाएगा.अब देल्ही में वो कहा रहता था, क्या करता था अभी कुछ नही पता.” --- दीप्ति ने कहा.
मैं ये सब सुन कर चोंक गयी थी
मैने दीप्ति से पूछा, “और कुछ पता चला या फिर बस इतना ही पता चला है”
“हाँ, हां पूरी बात तो सुनो” --- दीप्ति ज़ोर से बोली.
“उशके कमरे में मनीष को एक डाइयरी मिली है. डाइयरी में एक पेपर पर संजय का नाम पता सब कुछ लिखा है. और तो और उस में विवेक का भी नाम पता लिखा है. हैरानी की बात ये है कि पूरी डाइयरी में बस उन दोनो का ही नाम, पता है” ----- दीप्ति ने कहा
“अछा और कोई बात भी है क्या डाइयरी में” ? --- मैने उत्शुकता में पूछा
“उस में संजय के क्लिनिक और घर का पूरा अड्रेस लिखा हुवा है, पता नही इश्का क्या मतलब है. खैर ये तो हम जानते ही थे कि संजय बिल्लू को जानता है, ये बात अब कन्फर्म भी हो गयी. पर सबसे बड़ी बात सुनो” --- दीप्ति ने कहा.
मैने कहा, “हां शुनाओ”
दीप्ति ने डीटेल में कहा “डाइयरी में तुम्हारे बारे में, संजय के बारे में और चिंटू के बारे में कुछ डीटेल लिखी थी. लिखा है कि संजय सुबह किस वक्त क्लिनिक जाता है, किस वक्त लंच करने आता है, और किस वक्त तक शाम को घर वापस आता है. चिंटू के बारे में लीखा है कि किस वक्त स्कूल जाता है, और किस वक्त दोपहर को वापस आता है. चिंटू के स्कूल का अड्रेस भी लिखा है.तुम्हारे बारे में काफ़ी डीटेल लीखी थी. जैसे कि तुम किस वक्त दोपहर को किचन की खिड़की से झाँकति हो, कौन से ब्यूटी पार्लर जाती हो, कब अक्सर संजय के साथ शाम को घूमने जाती हो….. इत्यादि, मतलब की उसने तुम्हारे घर का डेली रुटीन चार्ट बना रखा है”
मैने हैरानी में पूछा, “ यार ये सब उसने कहा से पता किया होगा”
दीप्ति बोली, “आगे तो शुनो”
मैने कहा, “हां, हां शुनाओ”
“डाइयरी में लाल अक्षरो में एक बात लिखी थी, जीशका की मतलब अभी क्लियर नही हो रहा. मनीष के अनुशार वो इंशानी खून से लीखी थी” दीप्ति ने कहा
“क्या लिखा था बताओ तो सही” ---- मैने ज़ोर से पूछा
दीप्ति ने कहा, लिखा था कि “डॉक्टर की तो यही सज़ा है पर वकील को हर हाल में मारना होगा”
“इसका क्या मतलब है दीप्ति, कुछ समझ नही आया” ---- मैने हैरानी में दीप्ति से पूछा.
“वही तो मैं कह रही थी, अभी कुछ नही पता, लेकिन मनीष पूरी कोशिस कर रहा है, वो इस राज की गहराई तक जा कर रहेगा. पर तुम ये देखो मैं कह रही थी ना की कही ना कही कुछ भारी गड़बड़ ज़रूर है” ---- दीप्ति बोली.
“हां यार पर मुझे अब बहुत डर लग रहा है, ऐसा लग रहा है जैसे की मैं किशी क्रिमिनल के साथ इन्वॉल्व थी” ---- मैने दीप्ति से कहा.
“अगर वो क्रिमिनल था तो, वो मर चुका है, फिर अब डरने की क्या बात है” ---- दीप्ति ने मुझे दिलासा देते हुवे कहा.
मैने पूछा “और वो एलेक्ट्रिक शॉप वाहा कुछ पता चला”
वही बता रही हूँ, “वाहा भी वो नया नया ही लगा था. शॉप ओनर को उशके बारे में कुछ नही पता. ओनर ने बताया कि उन्होने न्यूसपेपर में एक एलेक्ट्रीशियन के लिए अड्वर्टाइज़्मेंट निकाली थी, बिल्लू सबसे पहले आ गया और उन्होने उशे रख लिया. उन्हे तो उशके घर तक का नही पता. ओनर ने भी यही बताया कि वो बहुत कम बोलता था और अक्सर चुपचाप रहता था. पर वो उशके काम से खुस नही थे, क्योंकि उनके अनुशार वो अक्सर शॉप से गायब रहता था.”
ये सब सुन कर मैं हैरान रह गयी. ये ज़रूर था कि इन बातो से किसी नतीज़े पर नही पहुँचा जा सकता था. हां पर ये बात ज़रूर अजीब लग रही थी कि वो नया नया ही फरीदाबाद में आया था. क्या वो देल्ही से ही था. क्या वो देल्ही से ही मुझे जानता था, ये कुछ ऐसे सवाल थे जो मुझे बार बार परेशान कर रहे थे.
मैं हैरान थी कि लोगो के अनुशार वो गुम शुम चुपचाप रहता था, पर मेरे साथ तो बहुत ही बे-हुदा बकवास करता था, आख़िर क्यो ? मेरे लिए बिल्लू एक रहश्य बनता जा रहा था.
मुझे अब बिल्लू कोई बहुत ही ख़तरनाक मुजरिम मालूम हो रहा था. मैने मन ही मन में सोचा की अछा हुवा कि वो मारा गया, ऐसे कामीनो की इस दुनिया में कोई जगह नही है.
दीप्ति ने कहा, “ऋतु, बस इतना ही पता चला है अभी तक. मनीष बहुत मेहनत कर रहा है, कह रहा था कि जल्दी ही वो इस राज की गहराई तक पहुँच जाएगा”
“अब तो मुझे भी लग रहा है कि अछा किया तुमने मनीष को ये काम दे कर. सच में अब तो सॉफ हो गया है कि दाल में कुछ काला ज़रूर है” --- मैने गंभीरता से कहा
“कुछ काला नही, मुझे तो पूरी दाल ही काली लग रही है. खैर तुम चिंता मत करो, मेरा जेम्ज़ बॉन्ड सब कुछ पता करके जल्दी ही बता देगा” --- दीप्ति ने कहा
मैने हंसते हुवे पूछा, “ मेरा मतलब, लगता है तुम्हे उस से प्यार हो गया है, है ना”
“ह्म्म… पता नही यार बट आइ लाइक हिम वेरी मच” --- डिप्टी सोचते हुवे बोली.
मैने कहा, “ ओके, अछा ये बताओ तुम्हे क्या लगता है कि क्या बात हो सकती है.”
“पहले तुम ये बताओ कि क्या वो विवेक वकील है” ? --- दीप्ति ने पूछा.
“ हां है तो सही, पर क्यो” ----- मैने हैरानी में पूछा.
अरे पागल याद कर वो खून में लीखी बात, “डॉक्टर की तो यही सज़ा है पर वकील को हर हाल में मरना होगा” ---- दीप्ति ज़ोर से बोली.
“ओह नो, क्या तुम भी वही सोच रही हो जो मैं सोच रही हूँ” --- मैने दीप्ति से पूछा.
“तुम्हारा तो पता नही पर मुझे लगता है कि डॉक्टर का मतलब है संजय और वकील का मतलब है विवेक. मुझे जल्द से जल्द ये बात मनीष को बतानी होगी कि विवेक, वकील है, उसका काम आसान हो जाएगा” --- दीप्ति ने कहा
“मैने कहा, हां में भी यही सोच रही हूँ पर यार तुम इतने यकीन से कैसे कह सकती हो कि उस लीख़ावट का मतलब संजय और विवेक से ही है” --- मैने दीप्ति से पूछा.
“पूरी डाइयरी में बस संजय और विवेक की ही डीटेल है और क्या चाहिए यकीन करने के लिए. अछा मैं फोन रखती हूँ, मनीष को ये बात बतानी ज़रूरी है कि विवेक वकील है, बाद में बात करेंगे” ---- दीप्ति ने बाइ करते हुवे कहा.
दीप्ति जाते जाते मुझे बहुत सारे सवाल दे गयी. मैं सारा दिन यही सब सोचती रही
16 अक्टोबर को दीप्ति का फोन आया
वो बोली, “ ऋतु, मनीष इस राज की गहराई तक पहुँचने वाला है. उसने मुझे कहा है कि कल तक सारी बात पता चल जाएगी. बस एक दिन की बात है और सचाई हमारे सामने होगी.
मैने कहा, “ ठीक है, मैं कल का बेशबरी से इंतेज़ार करूँगी, मैं बार बार सब कुछ सोच कर परेशान हो रही हूँ. जब तक मुझे पूरी बात पता नही चलती तब तक मुझे चैन नही आएगा.
दीप्ति बोली, “ठीक है फिर, कल का इंतेज़ार करो”
दीप्ति ने फोन रख दिया और मैं बे-सबरी से कल का इंतेज़ार करने लगी.
अगले दिन यानी 17 अक्टोबर 2008 को, शाम को दीप्ति का फोन आया
मैने झट से फोन उठा लिया.
“यार एक बहुत बुरी खबर है” --- दीप्ति मायूसी से बोली
मैने पूछा, “ क्या है बताओ तो सही”
“मनीष हॉस्पिटल में है, उस पर जानलेवा हमला हुवा है, बड़ी मुश्किल से जान बची है, मैं उस से मिलने फरीदाबाद जा रही हूँ, मुझे डर लग रहा है” ---
दीप्ति रोते हुवे बोली.
“क्या…. ये कैसे हो गया. किसने करवाया ये हमला. तुम चिंता मत करो में भी तुम्हारे साथ चलती हूँ” --- मैने दीप्ति से कहा.
“पता नही यार, अभी मनीष को होश नही आया है, उसके असिश्टेंट का फोन आया था कि वो हॉस्पिटल में है. मनीष ही होश में आकर बता सकता है कि ये किसका काम है.” – दीप्ति ने कहा
मैने कहा, “ह्म्म…. चलो तुम चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा, ऐसा करो यही मेरे पास आ जाओ, यही से साथ साथ चलेंगे”
“ठीक है मैं अभी तुम्हारे घर आ जाती हूँ, वही से फरीदाबाद के लिए निकल लेंगे” ---- दीप्ति ने कहा
वो ऐसा पल था, जब मैं भी बहुत घबरा गयी थी. मैं सोच रही थी कि दीप्ति को कह दूं कि वो मनीष को बोल दे कि बंद करदे ये काम. मैं नही चाहती थी कि मनीष को कुछ हो. मुझे अब दीप्ति और मनीष की चिंता हो रही थी.
दीप्ति अपनी कार ले कर 8 बजे मेरे घर आ गयी.
मैने पूछा, क्या तुम्हे फरीदाबाद का रास्ता पता है, नही तो कोई प्राइवेट टॅक्सी कर लेते है.
दीप्ति ने कहा, “हां, हां पता है, मैं काई बार ऑफीस के काम से वाहा खुद ड्राइव करके जा चुकी हूँ, तुम्हे तो पता ही है, रास्ता लंबा नही है, कोई 2 घंटे में वाहा पहुँच जाएँगे”.
मैने कहा, “ठीक है चलो फिर”
पापा घर पर नही थे, मैने जाते जाते मॅमी को बता दिया कि मैं दीप्ति के साथ ज़रूरी काम से जा रही हूँ.
मन में फरीदाबाद जाते हुवे अपने घर की याद आ रही थी, सोच रही थी कि काश किसी तरह से संजय कहीं मिल जाए. पर ऐसा नही हुवा.
हम कोई रात 10:30 पर फरीदाबाद पहुँच गये.
मनीष एक प्रिवेते हॉस्पिटल में था, जो की संजय के क्लिनिक से काफ़ी दूर था.
जैसे ही हम हॉस्पिटल पहुँचे, बाहर हमें मनीष का असिश्टेंट रहमान मिल गया.
दीप्ति ने रहमान से पूछा, “कैसा है मनीष अब”
वो बोला, अभी अभी होश आया है, राइट लेग में फ्रेक्चर आया है, रोड डालनी पड़ी है, डॉक्टर ने कहा है कि वो 2 या 3 महीने चल नही सकेंगे.
“ओह माइ गोद, इतना ज़्यादा सीरीयस हमला था क्या” --- दीप्ति ने रहमान से पूछा.
“हां मेडम, मैं भी उस वक्त उनके साथ ही था, हम आज सुबह प्रिंसटीन माल की ओर जा रहे थे. मैं फुटपॅत पर बैठे एक सिगरेट वाले से सिगरेट लेने लगा कि अचानक एक कार ने मनीष सर को टक्कर मार दी” --- रहमान ने कहा
“ पर तुम तो कह रहे थे कि हमला हुवा है, ये तो आक्सिडेंट लग रहा है” ---- दीप्ति ने रहमान से पूछा.
“एक टक्कर मारने के बाद वो कार फिर से, मूड कर मनीष सर की ओर आ रही थी, जैसे की एक और टक्कर मारनी हो, पर मैने जल्दी से मनीष सर को वाहा से हटा लिया” ---- रहमान ने कहा
“तुमने किसी का चेहरा देखा कि कौन था कार में” ---- डिप्टी ने पूछा
“ नही मेडम कार में ब्लॅक स्क्रीन लगी हुई थी, अंदर कौन था, कुछ नही दीख रहा था” ---- रहमान ने बताया.
“ह्म्म…. चलो ठीक है, हम मनीष के पास चलते है, कौन से कमरे में है वो” दीप्ति ने रहमान से पूछा.
“जी, रूम नंबर 7…… आप चलिए मैं ज़रा अपना फोन रीचार्ज कराने जा रहा हूँ” --- रहमान ने दीप्ति से कहा.
जैसे ही हम रूम नंबर 7 में घुस्से हमने देखा कि मनीष, किन्ही गहरे विचारो में खोया हुवा है, और बिस्तर पर पड़े हुवे रूम की छत को घूर रहा है.
हमें देखते ही वो उठने की कोशिस करने लगा, उशके चेहरे पर दर्द के भाव सॉफ दीख रहे थे.
“अरे लेट रहो उठो मत, देखो तुमसे मिलने कौन आया है” ----- दीप्ति ने मनीष से कहा.
मनीष ने मुझे एक नज़र उठा कर देखा और विश करके अपनी नज़रे झुका ली.
बहुत कम आदमी एक औरत को ऐसी रेस्पेक्ट दे पाते है. ज़्यादा तर लोग तो किसी भी लड़की को उपर से नीचे तक हवश भरी नज़रो से देखते है.
मुझे तब अहसास हुवा कि, रियली मनीष ईज़ ए नाइस मॅन
“सॉरी ऋतु जी आपका काम पूरा नही हो पाया पर मुझ पर भरोसा रखिए, मैं ठीक होते ही आपको पूरी सचाई बता दूँगा” --- मनीष सॉरी फील करते हुवे बोला.
“मुझे कोई जल्दी नही है, आप अपना ख्याल रखिए, मेरे साथ तो जो होना था, सो हो चुका” ----- मैने मनीष से कहा.
“पर क्या तुम्हे कुछ पता चला कि ये हमला किसने करवाया है” ---- दीप्ति ने मनीष से पूछा
“देखो अभी बहुत कुछ उलझा हुवा है, कुछ नही कह सकते कि कौन ऐसा करवा सकता है, हां इतना ज़रूर है कि कोई है जो नही चाहता की हम कुछ जान पायें” --- मनीष ने कहा.
“कौन हो सकता है वो” --- दीप्ति ने पूछा
“कोई भी हो सकता है, बिल्लू का कोई साथी हो सकता है, या फिर……” ---- मनीष ने कहा.
“या फिर मतलब” – दीप्ति ने मनीष से पूछा.
‘मतलब की कोई भी हो सकता है, अभी कुछ क्लियर नही है” ---- मनीष ने कहा.
मैं चुपचाप सब कुछ शुन रही थी.
“अछा तुम तो कह रहे थे कि कल तक सब कुछ पता चल जाएगा, क्या तुम इस राज के बहुत करीब पहुँच गये थे” ---- दीप्ति ने मनीष से पूछा
“मुझे परसो एक फोन आया था, किसी वीना जोसेफ का, उन्होने मुझे आज सुबह 10 बजे प्रिस्टिन माल के बाहर मिलने को कहा था, मैं रहमान के साथ वहीं जा रहा था कि ये सब हो गया.” --- मनीष ने दीप्ति की ओर देखते हुवे कहा.
“अब ये वीना जोसेफ कौन हैउसका इस सब से क्या लेना देना है” ---- दीप्ति ने मनीष से पूछा.
वीना का नाम सुन कर मैं चोंक गयी थी, उसे मैं जानती थी. वो संजय के क्लिनिक में नर्स थी. उसकी उमर कोई 40 या 42 साल की होगी.
“वही तो पता करने मैं जा रहा था, मुझे बिल्लू के घर के पास रहने वाले एक पदोषी ने बताया था कि एक-दौ बार उसने वीना जोसेफ को बिल्लू के घर आते जाते देखा था. मैं वीना जोसेफ के घर का पता लगा कर, उशके घर पहुँच गया , पर वो उस वक्त घर पर नही मिली. मैं एक चिट वीना जोसेफ के घर छ्चोड़ आया था कि जब वो फ्री हो तो मुझे फोन करें, मुझे बिल्लू के बारे में कुछ बात करनी है. मैने अपना फोन नंबर चिट पर लीख दिया था” --- मनीष ने कहा
“मैं कुछ कहूँ” ? मैने मनीष और दीप्ति को रोकते हुवे कहा
दीप्ति बोली, “हां हां कहो क्या बात है”
“एक वीना जोसेफ को मैं जानती हूँ, वो केरला से थी, उमर कोई 40 या 42 साल, और अभी एक साल पहले तक वो संजय के क्लिनिक में नर्स थी” ----- मैने उन दौनो से कहा
“अछा ये बात पहले क्यो नही बताई” ---- दीप्ति ने मुझ से पूछा.
“अरे भाई, मुझे क्या पता था कि उसका इस मामले से कोई लेना देना है” ---- मैने दीप्ति की और देखते हुवे कहा.
“आप ठीक कह रही है” ---- मनीष मेरी और देखते हुवे बोला.
“अछा अब क्या होगा” --- दीप्ति ने पूछा.
“मुझे यकीन था कि वीना जोसेफ से मिल कर सारे राज खुल जाएँगे, पर…..” --- मनीष ने गहरी साँस ले कर कहा.
“पर क्या, उस से हम मिल लेते है या फिर रहमान मिल लेगा, इस में परेशानी वाली क्या बात है” --- दीप्ति ने मनीष से कहा.
मनीष ने अपनी जेब से एक काग़ज़ निकाला और दीप्ति को देते हुवे बोला, “अभी किसी ने, एक नर्स के हाथो, ये मेरे कमरे में भीज़वाया था, पढ़ो तुम खुद समझ जाओगी”
वो काग़ज़ पढ़ कर दीप्ति के चेहरे का रंग उड़ गया
मैने उशके हाथ से वो काग़ज़ ले कर पढ़ा, तो मेरे पैरो के नीचे से भी ज़मीन निकल गयी
उस में लीखा था
“ आबे डीटेक्टिव, बहुत होशियार समझता है क्या खुद को, चुपचाप ये बेकार की इनक़ुआरी बंद कर और यहा से रफ़ा दफ़ा हो जा. जीश से तुम आज मिलने जा रहे थे, वो वीना जोसेफ भी मारी जा चुकी है. तुम्हारी किशमत अछी है कि तुम आज बच गये, पर अगर यहा से नही गये तो अगली बार नही बचोगे”
मैने रोते हुवे कहा. “प्लीज़ बंद करो अब ये सब, इस सब से मिलने वाला भी क्या है”
“लगता है तुम ठीक कह रही हो ऋतु, मनीष इस काम को फॉरन बंद करो, और जल्दी यहा से चलो, यहा मुझे अब डर लग रहा है” दीप्ति ने कहा.
उशके कहने के अंदाज़ से सॉफ लग रहा था की वो काफ़ी डरी हुई है.
मनीष बोला, “मैने आज तक ऐसा केस नही देखा. आज तक किसी की हिम्मत नही हुई कि कोई मुझे यू हॉस्पिटल में पहुँचा दे. पर मैं अपना कोई काम अधूरा नही छ्चोड़ता. अब वैसे भी ये मेरा पर्सनल काम हो गया है. जिसने भी मेरे साथ ऐसा किया है, उशे मैं नही छ्चोड़ूँगा”
दीप्ति बोली, "अपनी हालत देखो मनीष, तुम अभी 2 या 3 महीने तक चल नही पाओगे, बाद में सोचेंगे की क्या करना है इस बारे में, फिलहाल यहा से निकलते है".
हम मनीष को कन्विन्स करके जैसे तैसे वाहा से देल्ही ले आए.
……….
अभी तक कहानी वही की वही लटकी हुई है. मनीष के घाव भर गये है पर वो अभी भी ठीक से चलने की हालत में नही नही.
ये सब बाते थी जिनके कारण मैने ये डाइयरी लीखने का फैंसला किया. संजय से डेवोर्स के बाद, फ्रस्ट्रेशन में मैने अपनी अब तक की कहानी लीख दी है. देखते है की आगे क्या होता है.
वैसे मैं अब सब कुछ भुला कर, नयी शुरूवात करना चाहती हूँ.
आज मैं सपनो के सहर मुंबई में हूँ, नयी शुरूवात करने की इस से अछी जगह और क्या हो सकती है.
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डेट : 8-01-09
आज मुझे ऑफीस में कोई ऐसा मिला जिश्कि कि मुझे बिल्कुल उम्मीद नही थी. सिधार्थ को वाहा देख कर मैं चोंक गयी थी
“अरे ऋतु, तुम यहा, कैसे” --- सिधार्थ ने पूछा
“मैं यहा असिश्टेंट मॅनेजर हूँ” --- मैने जवाब दिया.
“अछा फिर तो तुम मेरी क्लाइंट हुई” --- उसने हंसते हुवे कहा.
“वो कैसे सिधार्थ” --- मैने हैरानी में पूछा.
“वो ऐसे कि मैं तुम्हारी कंपनी का का हूँ, सारे फाइनान्षियल मॅटर्स मैं ही तो संभालता हूँ, ख़ासकर टॅक्स से रिलेटेड” --- सिधार्थ ने मुझे समझाते हुवे कहा.
मेरे लिए संजय से पहले सिधार्थ का ही रिस्ता आया था, मुझे वो बहुत पसंद आया था और मैने पापा को उशके लिए हां कह दी थी. सिधार्थ ने सभी के सामने कहा था कि “मुझे ऋतु बहुत पसंद है, मैं ऋतु को अपनी पत्नी बना कर खुद को ख़ुसनसीब समझूंगा”
हम ने नज़रो ही नज़रो में एक दूसरे के लिए बहुत सारे खवाब बुन लिए थे.
पर किशमत को ये रिस्ता मंज़ूर नही था.
सिधार्थ के पापा ने हम दोनो की कुंडली पर बवाल खड़ा कर दिया.
उन्हे किशी ज्योतिषी ने बता दिया था कि इस लड़की के आपके घर में आते ही, आप के घर में तबाही आ जाएगी.
इसीलिए रिस्ता बनते बनते बिगड़ गया.
उशके बाद सिधार्थ का काई बार घर पर फोन आया और वो बार बार मुझ से माफी माँगता रहा.
वो अपने पापा के कारण बहुत शर्मिंदा महसूष कर रहा था.
एक बार उसने मुझे फोन किया और बोला, ऋतु एक काम करते है”
मैने पूछा, “क्या”
“मैं तुम से अभी शादी करने को तैयार हूँ, भाड़ में जाए ये कुंडली का चक्कर. मुझे इन बातो पर बिल्कुल विश्वास नही है, चलो किसी मंदिर में जा कर शादी कर लेते है” ---- सिधार्थ ने बड़े प्यार से कहा
एक पल को मुझे भी लगा की मुझे उशके साथ चल देना चाहिए
पर मैं अपने पापा के खिलाफ नही जा सकती थी.
मैने पापा को बता दिया था कि सिधार्थ शादी करने के लिए तैयार है, हमें क्या करना चाहिए
पापा ने मुझे समझाया “तुम्हारे लिए हज़ार रिस्ते है बेटा, तुम उशे भूल जाओ, बात सिर्फ़ तुम्हारी और सिधार्थ की नही है, शादी में दौ परिवार एक दूसरे से जुड़ते है. इस तरह ज़बरदस्ती शादी करके कुछ हाँसिल नही होगा. सिधार्थ के पापा तुम्हे कभी स्वीकार नही करेंगे”
मैने सिधार्थ को बड़ी मुश्किल से मना किया था.
“सिधार्थ मेरे पापा नही मान रहे है और मैं उनकी मर्ज़ी के बिना कुछ नही कर सकती” ---- मैने मायूसी में सिधार्थ से कहा था
“ठीक है ऋतु, मैं तुम्हे मजबूर नही करूँगा, पर तुम हमेशा मेरे दिल के करीब रहोगी” ---- सिधार्थ ने एमोटिनल हो कर कहा था
मैने रोते हुवे फोन काट दिया. उष वक्त यही करना ठीक लग रहा था
एक दम से सिधार्थ को आज सामने देख कर मुझे समझ नही आया कि मैं कैसे रिक्ट करूँ, पर इतना ज़रूर हुवा कि उसकी यादे मेरी आँखो में घूम गयी.
मैने सिधार्थ से ज़्यादा बात नही की और चुपचाप अपने कॅबिन में आ गयी. मैं नही चाहती थी कि वो मुझ से मेरी जींदगी के बारे में कोई सवाल करे और मैं किसी उलझन में फँस जाउ.
पर थोड़ी देर बाद सिधार्थ मेरे कॅबिन में झाँक कर बोला, “मे आइ कम इन ऋतु मेडम”
मैं क्या करती, उसे अंदर आने को कहना ही पड़ा. वैसे भी वो हमारी कंपनी का का था इसलिए उस से मुझे मिलना जुलना तो था ही.
“हां तो और बताओ कैसी चल रही है तुम्हारी शादी शुदा जींदगी” --- सिधार्थ ने पूछा.
“मेरा डाइवोर्स हो गया है, सिधार्थ” ---- मैने नज़रे झुका कर कहा
“क्या, किस बेवकूफ़ ने तुम्हे डाइवोर्स दे दिया, तुमने दिया है या फिर तुम्हारे पति ने दिया है” ---- सिधार्थ ने पूछा.
“उस से क्या फरक पड़ता है, सिधार्थ, सचाई ये है की मेरा डाइवोर्स हो चुका है, बस” मैने सिधार्थ की और देखते हुवे कहा.
“श, सॉरी तो हियर दट” ---- सिधार्थ ने चेहरे पर सॉरी के भाव ला कर कहा.
मैं सिधार्थ के साथ उस वक्त अनकंफर्टबल महसूष कर रही थी, क्योंकि मुझे डर था की कही वो डाइवोर्स का कारण ना पूछ ले, क्योनि सच बोलना मेरे लिए मुश्किल था और झूठ मैं बोल नही पाउन्गि.
पर अचानक सिधार्थ का मोबाइल बज उठा और उसने मुझे कहा, “ओह मुझे जाना होगा, एक दूसरे क्लाइंट का फोन आ रहा है.
उसने जाते जाते कहा, “ऋतु मैं तुम्हे आज तक भुला नही पाया, पता नही तुम्हे आज मुझ से मिल कर कैसा लगा, पर मैं तो बहुत भावुक हो रहा हूँ”
मैने सिधार्थ की आँखो में देखा उनमें आज भी मेरे लिए वही प्यार नज़र आ रहा था.
मैने धीरे से पूछा, “तुम्हारी शादी कहा हुई है सिधार्थ”
“कहीं नही, मैने अब तक शादी नही की, कोई तुम्हारे जैसी मिली ही नही” --- सिधार्थ ने मेरी और देखते हुवे कहा
ये कह कर वो मूह फेर कर चला गया, शायद उसकी आँखो में आन्शु थे.
मुझे अब ये लग रहा है कि मैं कैसे रोज-रोज सिधार्थ का सामना कर पाउन्गि. कभी ना कभी तो वो मेरे डाइवोर्स के बारे में पूछेगा ही.
……………………..
डेट : 15-01-09
आज जब मैं ऑफीस में थी तो दीप्ति का फोन आया
उसने मुझे बताया कि मनीष कल अचानक फरीदाबाद चला गया.
मैने उस से पूछा, “तुमने उसे क्यो जाने दिया, अभी तो वो ठीक से चल भी नही पता”
वो बोली, “चलने तो वो लगा है, पर टाँगो में अभी भी काफ़ी वीकनेस है, वो बिना बताए वाहा चला गया है, वाहा पहुँच कर ही उसने फोन किया था. मुझे तो डर लग रहा है”
“ डर तो मुझे भी लग रहा है, मैं तो यही चाहती थी कि इस इन्वेस्टिगेशन को यही ख़तम किया जाए” ---- मैने दीप्ति से कहा
“चाहती तो मैं भी यही हूँ, पर मनीष अब इसे पर्सनली ले रहा है, वो इस केस को सॉल्व किए बिना नही मानेगा” --- दीप्ति ने कहा.
मैने उशे दिलासा दिया की हॉंसला रखो, सब कुछ ठीक होगा.
मुझे हिम्मत देने वाली लड़की आज खुद हिम्मत हारती नज़र आ रही थी. ये सब मनीष के कारण है. वो उसे बहुत प्यार करने लगी है.
जैसे ही मैने दीप्ति से बात करके फोन रखा तो सिधार्थ मेरे कॅबिन में आ गया.
उसने पूछा, “आज शाम को क्या तुम फ्री हो”
मैने पूछा, “क्यो, क्या बात है”
“कुछ नही सोच रहा था आज तुम्हे मुंबई दर्शन करवा दूं, तुम पहली बार आई हो ना यहा” ---- सिधार्थ ने हंसते हुवे कहा.
मैने कहा, “आज मेरा घूमने का मन नही है सिधार्थ, फिर कभी देखेंगे”
“क्या तुम मेरे लिए इतना भी नही कर सकती, बस तुम्हारे मन की ही तो बात है, मुझे ख़ुसी होगी अगर तुम मेरे साथ चलो” ---- सिधार्थ ने कहा
मैने उसे बहुत समझाया पर वो नही माना और शाम को ऑफीस के बाद वो मुझे गेट वे ऑफ इंडिया ले गया.
वैसे गेट वे ऑफ इंडिया मेरे फ्लॅट के करीब ही था पर जब से में मुंबई आई थी तब से वाहा जाने का मोका ही नही लगा था.
सिधार्थ मेरे लिए आइस-क्रीम ले आया और हम होटेल ताज के सामने घूमते हुवे आइस-क्रीम खाने लगे. लग ही नही रहा था कि ताज होटेल पर कभी टेररिस्ट अटॅक हुवा था. सभी लोग वाहा शांति से घूम रहे थे.
वो आइस-क्रीम खाते खाते मुझे ही देखे जा रहा था.
अचानक उसने कुछ ऐसा पूछा की मैं आइस-क्रीम खाना भूल गयी.
“ऋतु, मुझ से शादी करोगी” ----- उसने मुझे रोक कर पूछा
मेरे हाथ से आइस-क्रीम छूट कर सड़क पर गिर गयी.
मैने उसकी और देखा, उसकी आँखे नम हो रही थी
“मैं तुम्हे आज भी उतना ही चाहता हूँ, मुझे नही पता कि तुम्हारे पति ने तुम्हे डाइवोर्स क्यो दिया और ना ही मैं जान-ना चाहता हूँ, मैं बस इतना जानता हूँ कि मैं तुम्हे प्यार करता हूँ, अगर तुम उस वक्त मान जाती तो तुम आज मेरी ही पत्नी होती” ----- सिधार्थ ने अपने रुमाल से मेरे होंटो पर से आइस-क्रीम पूछते हुवे कहा.
“सिधार्थ मैं ऐसा नही कर सकती, तुम्हे कैसे बताउ….” ---- मैने उशे समझाते हुवे कहा
“क्यों नही कर सकती ऋतु, तुम आज अकेली हो, मैं भी अकेला हूँ, मेरे पापा भी आज इस दुनिया में नही है, फिर क्या दिक्कत है. हमारे बीच अब कोई नही है. प्लीज़ कम इन माइ लाइफ” --- सिधार्थ ने भावुक हो कर कहा
“सिधार्थ मैं तुम्हे कैसे बताउ, आज मैं वो ऋतु नही हूँ, जिश ऋतु को तुम जानते थे, वो ऋतु कब की मर चुकी है” ---- मैने भावुक हो कर कहा.
ये कहते कहते मेरी आँखो में आंशु आ गये थे
“ऋतु ये क्या कह रही हो, प्लीज़ रोना बंद करो, क्या मैं जान सकता हूँ कि बात क्या है” --- सिधार्थ ने पूछा.
“मैने अपने पति को धोका दिया था, सिधार्थ, इसलिए उन्होने मुझे डाइवोर्स दे दिया है” --- मैने नज़रे झुका कर कहा.
“ये क्या कह रही हो ऋतु, मुझे तुम्हारी बात पर यकीन नही है, तुम फिर से कोई बहाना बना रही हो है ना, पर तुम चाहे कुछ भी कहो, मैं तुमसे शांदी करने के लिए तैयार हूँ” ---- सिधार्थ ने हैरानी भरे शब्दो में कहा
मैने कहा, “चाहे तुम जो कहो पर सच यही है, सिधार्थ, चाहो तो तुम मेरे पति संजय से फोन करके पूछ सकते हो”
सिधार्थ ने कहा, “मुझे किसी से फोन करके नही पूछना समझी, आइ लव यू आंड माइ लव ईज़ बियॉंड एनितिंग”
मुझे बहुत रोना आ रहा था, मैं सिधार्थ को कुछ भी समझाने की हालत में नही थी. वो मेरी बात सुन-ने को तैयार भी नही था
मैने उसे कहा, “सिधार्थ मुझे घर जाना है, बाद में बात करेंगे ठीक है, मैं अभी बहुत परेशान हूँ”
मैं टॅक्सी ले कर घर आ गयी और जब से आई हूँ, तब से बार बार मुझे सिधार्थ का मॅरेज प्रपोज़ल याद आ रहा है.
एक शादी तो मैं ठीक से नीभा नही पाई फिर दूसरी शादी के बारे में कैसे सोच लूँ.
ऐसा लग रहा है कि वाकाई में मेरी कुंडली में कोई दोष है, तभी मैने संजय की जींदगी बर्बाद कर दी. अब मैं ऐसा सिधार्थ के साथ नही कर सकती. उशे किसी और से शादी कर लेनी चाहिए. इशी में उसकी भलाई है.
………………………….
डेट : 22-01-09
21 जन्वरी मेरी जींदगी में अब तक का सबसे भयानक दिन बन गया है. और सब से चोंकाने वाला दिन भी…कल जो मेरे साथ हुवा वो मैं सपने में भी नही सोच सकती थी...
कल की घटना को लीखते हुवे मेरे हाथ काँप रहे है.
कल शाम को कोई 6 बजे मैं ऑफीस से निकल रही थी कि अचानक मेरे सामने एक कार आकर रुकी.
“अरे ये तो विवेक है, ये यहा क्या कर रहा है” – मैने मन ही मन में सोचा.
उसने कार का दरवाजा खोला और बोला, “भाभी, आपसे संजय के बारे में कुछ बात करनी थी, क्या आप मेरे साथ चलेंगी, कही किसी रेस्टोरेंट में बैठ कर बात करते है”
मुझे उसका वाहा होना मन ही मन में खटक रहा था, पर ना जाने क्यो संजय का नाम सुन कर मैं उत्शुक हो गयी थी.
मैने पूछा, “क्या बात है, बताओ”
पहले आप बैठ तो जाओ भाभी, कहीं बैठ कर आराम से बात करेंगे.
मेरा मन पता नही क्यों बार बार मुझे कह रहा था कि कहीं ना कहीं कुछ गड़बड़ है, इशके साथ मत जाओ, ये यहा मुंबई में क्या कर रहा है, पर संजय के बारे में जान-ने के लिए मैं झेजकते हुवे उशके साथ बैठ गयी.
जैसे ही मैं अंदर बैठी वो कार तेज़ी से यहा वाहा से निकालते हुवे एक शुनशान सड़क पर ले आया.
मैने पूछा, कितने रेस्टोरेंट निकल गये विवेक तुम कहा जा रहे हो.
मैने उसकी और देखा तो उशके चेहरे पर बहुत ही भयानक हँसी थी.
क्रमशः ..............................
आपका दोस्त राज शर्मा
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj
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