Friday, April 30, 2010

Kamuk kahaaniya -"छोटी सी भूल --20

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"छोटी सी भूल --20


गतांक से आगे ...................

डेट 7-02-09


पीछले 5 दीनो से देख रही हूँ, बिल्लू रोज सुबह मुझे ऑफीस जाते वक्त मेरे फ्लॅट के बाहर मिल जाता है, और जब मैं वापस आती हूँ तो भी मुझे वही मिलता है. उसके चेहरे पर ऐसे भाव रहते है, जैसे की वो बहुत इनोसेंट हो, लगता ही नही है कि उसी ने मुझे बर्बाद किया है. बिल्लू का ये दूसरा ही रूप देख रही हूँ. पता नही क्या राज है. मैं अब दीप्ति के फोन का इंतेज़ार कर रही हूँ. कल उसने बताया था कि बस एक दौ दिन की बात है सचाई सामने आ जाएगी. रोज मुझे ऑफीस से आते ही घर के अंदर दरवाजे के नीचे बिल्लू की लीखी चिट मिलती है. रोज यही लीखा होता है कि “आज फिर मैं गेट वे ऑफ इंडिया पर तुम्हारा इंतेज़ार करूँगा, हो सके तो आ जाओ”


पर मैं उस से मिलने कैसे चली जाउ, जो उसने मेरे साथ किया है उसे मैं कभी नही भुला सकती. और क्या पता वो मुझे कौन सी कहानी शुनाएगा. बातें बनाने में तो वो एक्सपर्ट है ही. क्या पता कोई नयी चाल चल रहा हो.


इश्लीए मैं बिल्लू को इग्नोर करके अपने काम पर ध्यान दे रही हूँ.


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रात के 10 बज रहे है. अभी थोड़ी देर पहले पापा से फोन पर लंबी बात की.


“बेटे सिधार्थ का फोन आया था, तुमने बताया नही कि वो वही मुंबई में है, बहुत अछा लड़का है” ---- पापा ने कहा


“जी पापा मुझे ध्यान ही नही रहा, सिधार्थ हमारी कंपनी का सीए है, अक्सर ऑफीस में उस से मुलाकात हो जाती है, पर उसने आपको क्यो फोन किया” ----- मैने हैरानी में पूछा.


“बेटा, वो तुमसे शादी करना चाहता है, मुझ से कह रहा था कि आप मान जाओ तो ऋतु भी मान जाएगी. मैं तो पहले भी तुम लोगो के साथ ही था, बस उसके पापा की इज़ाज़त के बिना कुछ नही होने देना चाहता था. अछा लड़का है, उसके साथ तुम जींदगी की नयी शुरूवात कर सकती हो, बाकी सब कुछ तुम्हारे उपर है, मैं तुम्हे कुछ नही कहूँगा, जैसा तुम्हे अछा लगे करो, मैं तुम्हारे साथ हूँ.” ---- पापा ने कहा


आज तक मैने पापा की बात नही टाली है, इश्लीए मैने उन्हे कुछ नही कहा कि मैं क्या चाहती हूँ. मैं सोच रही हूँ कि अब सिधार्थ से ही बात करूँगी.



डेट : 8-02-09


आज मन बहुत उदास है चिंटू का बिर्थडे है और मैं उसके पास नही हूँ, पर क्या करूँ उस से मिलने भी नही जा सकती. नयी नयी नौकरी जाय्न की है, और फिर अभी काम भी ज़्यादा है. सुबह का वक्त है सोच रही हूँ कि मंदिर चली जाउ. शायद मन को कुछ सकुन मिले. वैसे भी आज सनडे है और मेरे पास काफ़ी वक्त है



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11:30 एम (8-02-09)

मंदिर में घुसते ही मुझे एक अनोखा सा सकुन मिला. मंदिर में बहुत प्यारा भजन चल रहा था.



♫♪♫….. हरे कृष्णा… हरे कृषणे…..कृष्णा कृष्णा….हरे.. हरे.. हरे रामा…हरे रामा… रामा रामा.. हरे…हरे....♫♪♫


किसी ने सच ही कहा है कि जब आप भगवान के पास हाथ जोड़ कर जाते है तो भगवान आपको गले लगा लेते है. कुछ ऐसा ही अहसाश मुझे हो रहा था.



ये भजन मेरी अन्तेर आत्मा में उतरता चला गया. बहुत दीनो बाद मन को कुछ शांति मिली. पर ये शांति ज़्यादा देर नही रह पाई.




मैं भगवान के आगे आँखे बंद करके खड़ी थी और मन ही मन चिंटू के लिए लंबी उमर की कामना कर रही थी. अपने लिए मैं क्या मांगती बस यही दुवा कर रही थी कि हे भगवान मुझे हमेशा आछे रास्ते पर रखना. मुझे इतनी शक्ति देना कि जब भी मेरे सामने दौ रास्ते आयें तो मैं सही रास्ते का चुनाव कर सकूँ.

सभी कुछ अछा चल रहा था आँखे बंद करके में अंदर ही अंदर खो गयी थी और हरे कृष्णा हरे रामा भजन मेरे कानो में गूँज रहा था.

अचानक मुझे एक आवाज़ शुनाई दी


“भगवान मुझे आपसे कुछ नही चाहिए, वैसे भी जो था वो तो आपने पहले ही छीन लिया है, अगर मुझे कुछ देने को बचा हो तो वो इस देवी को दे दो. मैं ज़्यादा दिन नही जीना चाहता, मेरी उमर आप इस देवी को लगा दो. और ये देवी आपसे जो भी मांगती है दे दो भगवान मैं इस देवी को बहुत प्यार करता हूँ…”


मैने हैरानी में आँखे खोल कर देखा और चोंक गयी..


बिल्लू मेरे पास आँखे बंद करके भगवान के आगे हाथ जोड़े खड़ा था. मैने मन ही मन में सोचा कि इसकी हिम्मत कैसे हो गयी यहा आने की और ऐसे मेरे साथ खड़े होने की.


मैने पुजारी से परसाद लिया और झट से मंदिर से बाहर आ गयी.




“ऋतु रुक जाओ, प्लीज़…. एक बार मेरी बात तो सुन लो, मैं बस तुम्हे कुछ बताना चाहता हूँ, और तो कुछ नही चाहता, प्लीज़….” ---- बिल्लू ने मेरे पीछे आते हुवे कहा.

मैं रुक गयी और पीछे मूड कर उसे कहा, “बिल्लू अगर तुम में ज़रा सी भी शरम बाकी है तो यहा से चले जाओ. और मुझे तुमसे कुछ नही सुन-ना. वैसे भी मुझे काफ़ी कुछ पता चल गया है. मेरा पीछा छ्चोड़ दो और यहा से दफ़ा हो जाओ.”




मंदिर मेरे फ्लॅट के नज़दीक ही था, इश्लीए तेज़ी से चल कर मैं अपने घर आ गयी. मुझे बहुत बुरा लग रहा था कि वो मेरे पीछे मंदिर तक आ गया. पता नही बिल्लू ऐसा क्यो कर रहा है ?



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रात के 11 बजने को है और मन बहुत बेचन हो रहा है. ये बेचानी सिधार्थ के कारण है. समझ नही आता की उसे कैसे सम्झाउ.



जैसे ही मैं मंदिर से आई थी सिधार्थ घर आ गया था.



“ऋतु मैं बिना बताए आ गया, तुम बुरा तो नही मानोगी” ---- सिधार्थ ने हंसते हुवे पूछा.


“नही कोई बात नही, बैठो मैं कॉफी बनाती हूँ” --- मैने कहा.

मैं खुद उस से मिलना चाहती थी. अब जब उसने पापा से बात कर ली थी तो उसे सब कुछ बताना ज़रूरी हो गया था.


“ऋतु, मैने कल तुम्हारे पापा से बात की थी, शायद उन्होने तुम्हे बताया होगा. वो तो तैयार है, अब बस तुम्हारे हाँ कहने की देर है, जो सपना हम पहले पूरा नही कर पाए थे वो अब कर सकते है. तुम बताओ, क्या मुझ से शादी करोगी” ? --- सिधार्थ ने कॉफी पीते हुवे पूछा.



“ह्म्म…. सिधार्थ आइ रेस्पेक्ट यू ए लॉट. यू आर रियल जेन्तल्मेन. एनी वोमेन वुड लव टू मॅरी यू. बट..” ---- मैने कहा


“बट क्या, वो वोमेन तुम क्यो नही हो सकती ? आख़िर तुम क्यो मुझ से शादी नही करना चाहती ? बहाना बना रही हो है ना, तुम्हे शायद अब मैं अछा नही लगता” ? --- सिधार्थ ने एमोशनल टोन में कहा.



“ऐसी बात नही है सिधार्थ, मेरी जींदगी उलझी हुई है, मैं तुम्हे कैसे सम्झाउ” ---- मैने कहा.


“मुझे मोका तो दो मैं तुम्हारी हर उलझन दूर कर दूँगा, पर ऐसे बहाना मत बनाओ. मैं तुम्हे बहुत प्यार करता हूँ और तुम मुझे सता रही हो” ---- सिधार्थ ने कहा.


“मैं तुम्हे सता नही रही हूँ सिधार्थ, मैं तुम्हे कैसे बताउ, अछा रूको मैं तुम्हे कुछ देती हूँ” --- मैने सिधार्थ से कहा.


“क्या ऋतु” ? ---- सिधार्थ ने पूछा.



मैं अपने बेडरूम में गयी और अपनी डाइयरी ले आई. मैं सिधार्थ को अपने मूह से सब कुछ नही बता सकती थी. इश्लीए सिधार्थ को अपनी डाइयरी देने का फ़ैसला किया.



“ये लो सिधार्थ तुम इसे पढ़ लो, तुम खुद समझ जाओगे कि आज मैं किस हालात में हूँ” ---- मैने सिधार्थ को अपनी डाइयरी देते हुवे कहा.


“क्या है इस डाइयरी में ऋतु, तुम खुद क्यो नही बता देती” ? ---- सिधार्थ ने पूछा.


“तुम खुद पढ़ लो सिधार्थ, तब तक मैं लंच बनाती हूँ” ----- मैने कहा


“वाउ…. क्या तुम मुझे अपने हाथ का खाना खिलाओगी, आज तो मज़ा आ जाएगा, बहुत दीनो से मैने घर का खाना नही खाया, तुम्हे तो पता ही है, मैं भी तुम्हारी तरह यहा मुंबई में अकेला रह रहा हूँ, अक्सर बाहर ही खाना पड़ता है” ----- सिधार्थ ने मुश्कूराते हुवे कहा.


“हाँ सिधार्थ हम दोनो साथ लंच करेंगे. और हाँ इस डाइयरी में लीखी कहानी हो सकता है तुम्हे भद्दी लगे. दर-असल मैने कुछ नही छुपाया. जो कुछ भी मेरे साथ पीछले दीनो हुवा है सब कुछ सच सच लीख दिया है ” --- मैने कहा.



“ठीक है मैं पढ़ता हूँ तुम जल्दी से लंच बनाओ मैं खाना खाने के लिए मरा जा रहा हूँ” सिधार्थ ने कहा.



मैं किचन में खाना बनाने लगी और सिधार्थ मेरी डाइयरी पढ़ने में बिज़ी हो गया.


जैसे ही मैं लंच बना कर किचन से बाहर आई तो मैने देखा कि वो डाइयरी को एक तरफ रख कर चुपचाप बैठा है.



मैने पूछा “लंच तैयार है सिधार्थ क्या लंच करें”


“ऋतु ये सब कैसे हो गया, मुझे बिल्कुल विश्वास नही हो रहा. मैं समझ नही पा रहा हूँ कि कैसे रिक्ट करूँ” ---- सिधार्थ ने मेरी ओर देख कर कहा.


“लंच करते है सिधार्थ, मैं इस बारे में कोई बात नही कर पाउन्गि. हां इतना ज़रूर कहूँगी कि इस डाइयरी की एक एक बात सच है. सच के अलावा मैने इस में कुछ नही लीखा.” --- मैने कहा.



“ऋतु अछा किया तुमने मुझे ये डाइयरी दे दी. मेरे दिल में तुम्हारे लिए सम्मान और बढ़ गया है. मुझे अछा लगा कि तुमने संजय को सब कुछ सच सच बता दिया था. ” ---- सिधार्थ ने कहा.


“पर सच बताने में मैने देर कर दी थी सिधार्थ. ” ---- मैने सिधार्थ से कहा.



“ऋतु, अगर तुम सोचती हो कि इस डाइयरी में लीखी बाते हमारी शादी में रुकावट है तो तुम ग़लत हो. हां मुझे बुरा लगा, बल्कि बहुत बुरा लगा, पर जैसे जैसे मैं पढ़ता गया मुझे ये भी लगा कि तुम एक अछी इंशान हो जिसमे कि आछे बुरे की समझ बाकी है. तुम्हे अपनी ग़लती का अहसाश है, और क्या चाहिए. मैं तुमसे शादी करने के लिए तैयार हूँ. मुझे इस डाइयरी से कोई मतलब नही है. तुम इसमें आग लगा दो और सब कुछ भूल कर मेरी जींदगी में आ जाओ. हम दौनो नयी शुरूवात करते है” सिधार्थ ने कहा.


ऐसा लग रहा था जैसे की सिधार्थ मेरे प्यार में अँधा हो गया है


“ओह नो सिधार्थ ये डाइयरी तुम्हे देने का ये मतलब नही था. तुम समझते क्यो नही हो. मैं अभी बहुत उलझन में हूँ” ----- मैने कहा.


“ऋतु मैं तुम्हे अभी शादी करने को नही कह रहा हूँ. अब जब मैने ये डाइयरी पढ़ ली है तो मैं समझ सकता हूँ. तुम आराम से अपने काम पर ध्यान दा. और रही उस बिल्लू की बात मुझे दिखाओ कि वो कौन है, उसकी अकल मैं ठीकाने लगाता हूँ” ------ सिधार्थ ने कहा.




मैने अपने फ्लॅट की सड़क की तरफ वाली खिड़की से बाहर झाँक कर देखा. पर बिल्लू वाहा नही दीखा.


“अभी वो यहा नही है. पर जब भी मैं सुबह ऑफीस जाती हूँ और जब शाम को वापस आती हूँ तो वो आजकल मेरे फ्लॅट के सामने सड़क पर मिलता है” ---- मैने कहा


“तुम चिंता मत करो मैं कल सुबह 9 बजे आ जाउन्गा. तुम कंपनी की कार में मत जाना, हम साथ चलेंगे, ठीक है. मैं देखना चाहता हूँ कि ये बिल्लू आख़िर क्या बला है” --- सिधार्थ ने कहा.



फिर हम दोनो ने लंच किया.

लंच करने के बाद सिधार्थ ने कहा, “तुम सोच लो ऋतु, तुम्हारे पास बहुत वक्त है, पर मैं शादी तुम से ही करूँगा, आइ लव यू फ्रॉम दा बॉटम ऑफ माइ हार्ट. बड़े से बड़ा तूफान भी मेरे प्यार को नही हिला सकता. ये तुम्हारी डाइयरी भी नही. आइ विल वेट फॉर यू. अब मैं चलता हूँ, किसी क्लाइंट के पास जाना है. कल सुबह मिलते है ठीक है”

उसकी बात सुन कर मेरी आँखो में आंशू आने को हो गये. पर मैने खुद को थाम लिया. पता नही सिधार्थ मुझे इतना प्यार क्यो करता है. मुझे यकीन नही था कि वो ये डाइयरी पढ़ कर भी ऐसी बात कहेगा. यही कारण है कि मैं बेचन हूँ. अब सिधार्थ को मैं कैसे मना करूँगी, समझ नही पा रही हूँ.






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डेट : 9-02-09 11:30 पीयेम


आज बहुत बड़े राज से परदा खुल गया
आज सुबह सुबह अलार्म की बजाए मुझे दीप्ति के फोन ने उठाया.


सुबह 7 बजे मेरा फोन बज उठा.

“दीप्ति …., क्या बात है, इतनी सुबह क्यो फोन किया” ---- मैने हैरानी में पूछा



“ऋतु बहुत बड़ी बात पता चली है, अभी अभी मनीष का फोन आया था. सारी गुथि सुलझती नज़र आ रही है” ---- दीप्ति ने कहा.


मैं झट से अपने बेड पर बैठ गयी और कहा, “अछा, जल्दी बताओ क्या पता चला है”


“ये सारी कहानी एक ही नाम पर जा कर रुक गयी है, वो है कविता” ---- दीप्ति ने कहा


“ कविता … कौन कविता, अब ये कविता कहा से आ गयी” --- मैने पूछा


“संजय के क्लिनिक में नर्स थी वो, तुम तो उसे जानती होगी” ---- दीप्ति ने पूछा


“ओह हां…. याद आया… तुम उस कविता की बात कर रही हो. बहुत अछी और सारीफ़ लड़की थी. एक बार चिंटू के बर्तडे पर घर भी आई थी. मेरी उस से अछी बोल चाल थी. पर वो तो कोई 2 साल पहले क्लिनिक छ्चोड़ कर चली गयी थी”


“शी ईज़ मिस्सिंग ऋतु, 2 साल से वो गायब है, उसके साथ क्या हुवा, वो अब कहा है, जींदा है भी या नही …किसी को नही पता” ??? ---- दीप्ति ने कहा.


“ओह्ह मुझे इस बारे में नही पता था, एक बार जब में क्लिनिक गयी थी तो संजय से पूछा था कि कविता कहा है, उन्होने तो यही कहा था कि वो वाहा से काम छ्चोड़ कर चली गयी” --- मैने कहा


“संजय तो यही कहेगा, क्योंकि हो सकता है कि कविता के गायब होने में उसका हाथ हो, मनीष को इस बारे में शक है. हां पर विवेक का इसमें पक्का हाथ है” ---- दीप्ति ने कहा


“पर मेरे साथ जो कुछ हुवा, उस से कविता का क्या लेना देना दीप्ति” --- मैने हैरानी में पूछा.


“बिल्लू कविता का छोटा भाई है ऋतु. और ये पता चला है कि वो 2 साल से अपनी सिस्टर को ढूंड रहा है. बहुत प्यार करता है वो कविता को. उशके मा बाप के मरने के बाद कविता ने ही उसे पाला है. पोलीस कुछ नही कर रही. या फिर ये समझ लो कि किसी के दबाव के कारण पोलीस कुछ करना नही चाहती. मनीष बिल्लू के देल्ही वाले घर गया था. वाहा पता चला है कि बिल्लू तो बहुत सरीफ़ और नेक लड़का है”



“बस-बस मुझे पता है वो कितना नेक है, हां पर कविता के लिए मुझे दुख है, बहुत मेहनती थी वो. मैं जब भी क्लिनिक जाती थी उसे काम करते हुवे ही पाती थी. संजय भी उसकी काफ़ी तारीफ़ करते थे, कहते थे कि कविता ने अकेले ही काफ़ी काम संभाल रखा है” ---- मैने दीप्ति से कहा.



“कविता के ही कारण मनीष पर उस दिन जान लेवा हमला हुवा था. मुझे यकीन है कि संजय और विवेक नही चाहते कि किसी को पता चले कि कविता के गायब होने में उनका हाथ है. वो हमला उन दौनो ने ही करवाया होगा” ----- दीप्ति ने कहा


“संजय ऐसा नही करेंगे, हां विवेक कुछ भी कर सकता है. पर वो तो मर गया होगा. मैने खुद उसे गोली मारी थी.” ---- मैने कहा.

“इस बारे में मुझे नही पता. पर इतना ज़रूर सॉफ हो गया है कि बिल्लू कविता के कारण ही तुम्हारे पीछे पड़ा था. शायद उसे शक होगा कि कविता के गायब होने में संजय का हाथ है” ---- दीप्ति ने कहा.



“इस से उसका गुनाह कम नही हो जाता” --- मैने कहा.


“वो तो ठीक है ऋतु, मैं तो बस बिल्लू का मोटिव बता रही थी. पर यार मनीष अब कविता के केस पर लग गया है. हे ईज़ टेकिंग इट पर्सनली नाउ, वो समझ ही नही रहा है कि इस में उसकी जान को ख़तरा है, मुझे डर लग रहा है” ----- दीप्ति ने कहा


“दीप्ति लगता है वो ज़िद्दी है. तुम बस उसे ये समझाओ कि अपना ख्याल रखे. मुझे नही लगता कि उसे समझाने का कोई फाय्दा होगा. और तुम डरो मत अब तो वो बिल्कुल ठीक है, है ना”


“कहा ठीक है, लड़खड़ा कर चलता है अभी भी, पर चलो, अब मैं चलती हूँ, मुझे ऑफीस के लिए भी तैयार होना है” ---- दीप्ति ने कहा


“ओह्ह… मैं भी लेट हो रही हूँ, बाइ फिर फ़ुर्सत में बात करेंगे” --- मैने कहा



मैने जल्दी से फ्रेश हो कर ब्रेकफास्ट किया और ऑफीस के लिए तैयार हो गयी. पर हर पल मेरे मन में दीप्ति की कही बातें घूम रही थी.


मैने खिड़की से बाहर झाँक कर देखा, वाहा कोई नही था. मैने सोचा कि शायद बिल्लू थोड़ी देर में आने वाला होगा.


ठीक 9 बजे सिधार्थ ने डोर बेल बजाई.

जैसे ही मैने दरवाजा खोला उसने पूछा, “ बाहर सड़क पर तो कोई नही है, ये डाइयरी तुम्हारी कोई फिक्षन स्टोरी तो नही है”


नही सिधार्थ बिल्लू रोज सुबह सड़क पर खड़ा मिलता है. आज शायद वो नही आया. फिर मैने सिधार्थ को सुबह वाली बात बता दी. मैने उसे वो सब कुछ बता दिया जो कि दीप्ति ने मुझे बताया था.


“ह्म्म…..वेरी सॅड… बट स्टिल, बिल्लू ईज़ ए क्रिमिनल” ---- सिधार्थ ने कहा.


“हां में भी यही सोचती हूँ” ---- मैने कहा


जैसे ही मैं अपने घर से सिधार्थ के साथ निकली मेरी आँखे चारो तरफ बिल्लू को ही ढूंड रही थी. मैं उस से मिलना तो नही चाहती थी, हां पर ये ज़रूर सोच रही थी कि आख़िर वो आज यहा क्यों नही आया.



“बिल्लू को ही ढूंड रही हो, है ना” ? ---- सिधार्थ ने एमोशनल टोन में पूछा



मैने उसकी और देखा और बोली, “मैं हैरान हूँ कि आज वो क्यो नही आया”

“अछा ही तो है, उस से अब तुम्हे क्या मतलब, भाड़ में जाए वो” ---- सिधार्थ ने थोड़ा गुस्से में कहा


में समझ गयी कि सिधार्थ को हर्ट हुवा है. मैं चुपचाप उसकी कार में बैठ गयी और यहा वाहा देखना बंद कर दिया.


कितनी अजीब बात है, कयि बार हम ऐसी हरकते कर जाते है क़ि हमें भी नही पता चलता कि हम क्यो कर रहे है. दर-असल सुबह दीप्ति से बात करने के बाद मैं बिल्लू से एक बार मिलना चाहती थी. यही कारण था कि मैं सुबह उसे सड़क पर ना पा कर हैरान हो रही थी. सिधार्थ को ये बात बुरी लगनी ही थी. वो मुझे प्यार जो करता है.



सारा दिन ऑफीस में बड़ा ही मुश्किल बीता. मन कर रहा था कि अभी घर चली जाउ, बिल्लू ज़रूर मेरे फ्लॅट के आस पास ही होगा. एक एक पल मेरा बड़ी मुश्किल से बीत रहा था. कविता का चेहरा भी बार बार मेरे मन में घूम रहा था. मैं ये भी सोच रही थी कि अगर बिल्लू इतना नेक है तो मेरे साथ इतनी घिनोनी हरकत क्यो की उसने. जो भी हो, मैं एक बार बिल्लू से मिलना चाहती थी.


मैने लंच टाइम में अपने ऑफीस के बाहर भी देखा, पर वो वाहा भी नज़र नही आया. मैने सोचा कि हो सकता है वो देल्ही चला गया हो. फिर ख्याल आया कि शाम को घर जाते वक्त वो ज़रूर सड़क पर मिल जाएगा.



सी उधेड़बुन में मेरा हर पल बीत रहा था.



5:30 बजे में झट से सभी काम निपटा कर घर के लिए निकल पड़ी. बहुत बेचन थी मैं घर पहुँचने के लिए.


मेरा घर आ गया पर बिल्लू कही नज़र नही आ रहा था. मैने कार से उतर कर चारो और नज़र दौड़ाई पर दूर दूर तक मुझे बिल्लू की परछाई तक नही दीखी. मैने मन ही मन सोचा कहा चला गया आज वो ?

ड्राइवर ने पूछा, “मेडम किशी को ढूंड रहे हो क्या:”


“नही तुम जाओ और कल टाइम पर आ जाना” ---- मैने ड्राइवर से कहा.


मैं तेज़ी से अपने फ्लॅट की तरफ चल पड़ी. चलते चलते सोच रही थी कि ज़रूर बिल्लू ने आज भी कोई चिट छ्चोड़ी होगी



पर आज कोई चिट नही थी

“बिल्लू कहा गया, क्या वो वापस देल्ही चला गया, वैसे वो कह तो रहा था कि मेरी फाइनान्षियल पोज़िशन ठीक नही है, मैं यहा ज़्यादा देर नही ठहर सकता” ------- यही सब मेरे दीमाग में घूम रहा था.


फिर मुझे ख्याल आया कि गेट वे ऑफ इंडिया पर जाकर देखती हूँ, वो ज़रूर वही होगा.

सिधार्थ ने मुझे बताया था कि गेट वे ऑफ इंडिया तुम्हारे घर से वॉकिंग डिस्टेन्स पर है


मैने झट से घर को लॉक किया और पैदल ही लोगो से पूछते पूछते गेट वे ऑफ इंडिया की तरफ चल पड़ी.


और जैसा क़ि मुझे लग रहा था, बिल्लू मुझे वही मिला. वो गेट वे ऑफ इंडिया के पास जो समुंदर के चारो और दीवार बनी है उस से सॅट कर खड़ा था.

उसका चेहरा समुंदर की ओर था और ऐसा लग रहा था जैसे कि वो गहरे विचारो में खोया है.

मैं उशके करीब आ गयी. पर वो जैसे एक मूर्ति की तरह खड़ा था और एक तक समुंदर को देखे जा रहा था. ऐसा लग रहा था जैसे की उसे होश ही नही है कि उसके आस पास क्या हो रहा है.


मैं बिल्कुल उशके पीछे खड़ी थी. समझ नही पा रही थी कि उसे कैसे बुलाउ.


“बिल्लू, कविता के बारें में सुन कर दुख हुवा” ---- मैने धीरे से कहा.


पर बिल्लू के शरीर में कोई हरकत नही हुई. वो वैसे ही मूर्ति की तरह वाहा खड़ा रहा


मैने उसके कंधे पर हाथ रखा और कहा, “बिल्लू मुझे कविता के लिए दुख है”

वो धीरे से मेरी और घुमा और मैने उसकी आँखो में आंशू देखे. यकीन ही नही हो रहा था कि बिल्लू रो भी सकता है. उसकी आँखो में आंशु देख कर मेरी आँखे भी नम हो गयी.


वो मेरे गले लग गया और फूट फूट कर रोने लगा और बोला, “ पता नही कहा गायब कर दिया मेरी दीदी को कमिनो ने ऋतु”


मैं भी भावुक हो गयी. मैने उसे रोकने की कोशिस नही की. बिल्लू आज एक बच्चा लग रहा था. मैं सोच भी नही सकती थी कि वो इस तरह रो सकता है.


मैं उसे चाह कर भी अपने सीने से नही हटा पाई. चारो और लोग हमें ही देख रहे थे. तभी मैने दूर से सिधार्थ को आते देखा. मैं सिधार्थ को देख कर हड़बड़ा गयी. सोच रही थी कि पता नही वो क्या सोचेगा मुझे बिल्लू के साथ ऐसी हालत में देख कर.


मैने बिल्लू से कहा, बिल्लू बस हट जाओ, लोग हमें ही देख रहे है

मैने उसके कंधो को पकड़ा और उसे दूर हटाने की कोशिस की पर तभी वो मेरे हाथ से छूट कर ज़मीन पर गिर गया.


“बिल्लू उठो….. क्या हो गया तुम्हे” ---- मैने बिल्लू को हिलाते हुवे कहा


तभी सिधार्थ भी वाहा आ गया.


“क्या हुवा इसे ऋतु” ---- सिधार्थ ने पूछा


पता नही सिधार्थ अभी मेरे गले लग कर बहुत रो रहा था, अचानक नीचे गिर गया

“ओह्ह ये बेहोश हो गया है. इसे हॉस्पिटल ले चलते है, हटो मैं इसे उठाता हूँ” ---- सिधार्थ ने मुझे बिल्लू के उपर से हटाते हुवे कहा.


सिधार्थ ने बिल्लू को अपने दौनो हाथो में उठा लिया और उठा कर अपनी कार की तरफ चल दिया और बोला, “जल्दी चलो ऋतु सोचने का वक्त नही है, पता नही इसे क्या हुवा है”


मुझे कुछ समझ नही आ रहा था कि क्या हो रहा है. पर ये सच था कि मैं बिल्लू के लिए बहुत परेशान थी. ऐसा क्यों था. इसका मेरे पास कोई जवाब नही है.



सिधार्थ ने बिल्लू को कार की पिछली शीट पर लेटा दिया और हम दौनो आगे बैठ गये.


“क्या कह रहा था बिल्लू” --- सिधार्थ ने पूछा


“कुछ नही उसने बस एक ही बात कही कि ‘पता नही कहा गायब कर दिया मेरी दीदी को कमिनो ने ऋतु’ और फिर फूट फूट कर रोने लगा” --- मैने सिधार्थ से कहा


“ह्म्म…… लगता है किसी गहरे शॉक में है वो” --- सिधार्थ ने कहा


“हां होगा ही सिधार्थ, उसकी दीदी गायब है 2 साल से” ---- मैने कहा


जल्दी ही सिधार्थ ने कार एक क्लिनिक के बाहर रोक दी.


सिधार्थ ने झट से बिल्लू को कार से बाहर निकाला और उसे उठा कर सीधा क्लिनिक में घुस्स गया.


पता नही सिधार्थ ये सब क्यो कर रहा था. पर इतना ज़रूर था कि इस से ये बात साबित हो रही थी कि सिधार्थ बहुत अछा इंशान है. क्योंकि वो उस लड़के की मदद कर रहा था जिसके कारण वो सुबह हर्ट हुवा था.


डॉक्टर ने बिल्लू को ग्लूकोस चढ़ाया और चेक करने के बाद कहा.

“लगता है कोई बहुत गहरा मेंटल शॉक लगा है इसे. पर इसे खाना तो ठीक से खिलाया करो आप लोग. लगता है 2-3 दिन से इसने कुछ नही खाया है” ---- डॉक्टर ने कहा


मैने मन ही मन में सोचा “ओह्ह गॉड क्या बिल्लू की फाइनान्षियल पोज़िशन इतनी खराब थी कि उसके पास खाने तक को पैसे नही थे”. और मेरी आँखो में आंशु भर आए. कैसी अजीब बात हो रही थी. मैं उस बिल्लू के लिए आंशु बहा रही थी जिसने मुझे बर्बाद किया था. जींदगी भी अजीब खेल खेलती है.
क्रमशः........................
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आपका दोस्त राज शर्मा
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा

(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj
















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