Wednesday, April 21, 2010

राज शर्मा की कामुक कहानिया रद्दी वाला पार्ट--5

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रद्दी वाला पार्ट--5
गतान्क से आगे...................
मुश्किल से कोई घंटा दो घंटा वो सो पाई थी. सुबह जब वो जागी तो हमेशा से एक दम अलग उसे अपना हर अंग दर्द और थकान से टूट-ता हुआ महसूस हो रहा था,ऐसा लग रहा था बेचारी को,जैसे किसी मज़दूर की तरह रात मैं ओवर टाइम ड्यूटी कर'के लौटी है.जबकि चूत पर लाख चोटें खाने और जबरदस्त हमले बुलवाने के बाद भी ज्वाला देवी हमेशा से भी ज़्यादा खुश और कमाल की तरह महकती हुई नज़र आ रही थी. खुशिया और आत्म-संतोष उस'के चेहरे से टपक पड़ रहा था. दिन भर रंजना की निगाहे उस'के चेहरे पर ही जमी रही.वो उसकी तरफ आज जलन और गुस्से से भरी निगाहो से ही देखे जा रही थी.ज्वाला देवी के प्रति रंजना के मन मैं बड़ा अजीब सा भाव उत्पन्न हो गया था. उसकी नज़र मैं वो इतनी गिर गयी थी कि उस'के सारे आदर्शो, पतिव्रता के ढोंग को देख देख कर उसका मन गुस्से के मारे भर उठा था. उस'के सारे कार्यों मैं रंजना को अब वासना और बदचालनी के अलावा कुछ भी दिखाई नही देता था. मगर अपनी मम्मी के बारे मैं इस तरह के विचार आते आते कभी वो सोचने लगती थी कि जिस काम की वजह से मम्मी बुरी है वही काम करवाने के लिए तो वो खुद भी चाह रही है. वास्तविकता तो ये थी की आजकल रंजना अपने अंदर जिस आग मैं जल रही थी, उसकी झुलस की वो उपेक्षा कर ही नहीं सकती थी.जितना बुरा ग़लत काम करने वाला होता है उतना ही बुरा ग़लत काम करने के लिए सोचने वाला भी बस! अगर ज्वाला की ग़लती थी तो सिर्फ़ इतनी कि असमय ही चुदाई की आग रंजना के अंदर उसने जलाई थी.अभी उस बेचारी की उम्र ऐसी कहा थी कि वो चुदाई करवाने के लिए प्रेरित हो अपनी चूत कच्ची ही फाडवाले. बिरजू और ज्वाला देवी की चुदाई का जो प्रभाव रंजना पर पड़ा,उसने उसके रास्ते ही मोड़ कर रख दिए थे.उस रोज़ से ही किसीमर्द से चुदने के लिए उसकी चूत फदाक उठी थी. केयी बार तो चूत की सील तुड़वाने के लिए वो ऐसी ऐसी कल्पनाएं करती कि उसका रोम रोम सिहर उठता था. अब पढ़ाई लिखाई मैं तो उसका मन कम था और एकांत कमरे मैं रह कर सिर्फ़ चुदाई के ख़याल ही उसे आने लगे थे. केयी बार तो वो गरम हो कर रात मैं ही अपने कमरे का दरवाजा ठीक तरह बंद करके एकदम नंगी हो जाया करती और घंटो अपने ही हाथों से अपनी चूचियों को दबाने और चूत को खुजने से जब वो और भी गरमा जाती थी तो नंगी ही बिस्तर पर गिर कर तड़प उठती थी, कितनी ही देर तक अपनी हर्कतो से तंग आ कर वो बुरी तरह छटपताती रहती और अंत मैं इसी बेचैनी और दर्द को मन मे लिए सो जाती थी.उन्ही दीनो रंजना की नज़र मैं एक लड़'का कुच्छ ज़्यादा ही चढ़ गया था. नाम था उसका मृदुल, उसी की क्लास मैं पढ़ता था. मृदुल देखने मैं बेहद सुंदर-स्वस्थ और आकर्षक था,मुश्किल से दो वर्ष बड़ा होगा वो रंजना से,मगर देखने मैं दोनो हम उम्र ही लगते थे.मृदुल का व्यवहार मन को ज़्यादा ही लुभाने वाला था ना जाने क्या ख़ासियत ले कर वो पैदा हुआ होगा कि लरकियाँ बड़ी आसानी से उसकी ओर खींची चली आती थी, रंजना भी मृदुल की ओर आकर्षित हुए बिना ना रह सकी थी.मौके बेमौके उससे बात करने मैं वो दिलचस्पी लेने लगी थी. खूबसूरती और आकर्षण मैं यूँ तो रंजना भी किसी तरह कम ना थी, इसलिए मृदुल दिलोजान से उस पर मर मिटा था. वैसे लड़'कियों पर मर मिटना उसकी आदत मैं शामिल हो चुका था, इसी कारण रंजना से दो वर्ष बड़ा होते हुए भी वो अब तक उसी के साथ पढ़ रहा था. फैल होने को वो बच्चो का खेल मानता था. बहुत ही जल्द रंजना और मृदुल मैं अच्छी दोस्ती हो गयी थी. अब तो कॉलेज मैं और कॉलेज के बाहर भी दोनो मिलने लगे थे. इसी क्रम के साथ दोनो की दोस्ती रंग लाती जा रही थी.उस दिन रंजना का जनम दिन था, घर पर एक पार्टी का आयोजन किया गया था,जिसमें परिचित वा रिश्तेदारो के अलावा ज़्यादातर संख्या ज्वाला देवी के चूत के दीवानो की थी. आज बिरजू भी बड़ा सज धज के आया था, उसे देख कर कोई नही कह सकता था कि वो एक रद्दी वाला है.रंजना ने भी मृदुल कोइस दावत के लिए इनवितेशन कार्ड भेजा था, इसलिए वो भी पार्टी मैं शामिल हुआ था.जिस तरह ज्वाला देवी अपने चूत के दीवानो को देख देख कर खुश हो रही थी उसी तरह मृदुल को देख कर रंजना के मन मैं भी फुलझड़ियाँ सी फूटे जा रही थी.वो बे-इंतेहा प्रसन्न दिखाई पड़ रही थी आज. पार्टी मैं रंजना ज़्यादातर मृदुल के साथ ही रही. ज्वाला देवी अपने यारो के साथ इतनी व्यस्त थी कि रंजना चाहते हुए भी मृदुल का परिचय उससे ना करा सकी थी. मगर पार्टी के समाप्त हो जाने पर जब सब मेहमान विदा हो गये तो रंजना ने जानबूझ कर मृदुल को रोके रखा. बाद मैं ज्वाला देवी से उसका परिचय करती हुई बोली, "मम्मी ! ये मेरे ख़ास दोस्त मृदुल है." "ओह्ह! हॅंडसम बॉय." ज्वाला देवी ने साँस सी छ्चोड़ी और मृदुल से मिल कर वो ज़रूरत से ज़्यादा ही प्रसन्नता ज़ाहिर करने लगी. उसकी निगाहें बराबर मृदुल की चौड़ी छाती, मजबूत कंधों, बलशाली बाँहें और मर्दाने सुर्ख चेहरे पर ही टिकी रही थी.रंजना को अपनी मम्मी का यह व्यवहार और उसके हाव-भाव बड़े ही नागवार गुज़र रहे थे. मगर वो बड़े धैर्य से अपने मन को काबू मैं किए सब सहे जा रही थी. जबकि ज्वाला देवी पर उसे बेहद गुस्सा आ रहा था.उसे यू लग रहा था जैसे वो मृदुल को उस'से छ्चीनने की कोशिश कर रही थी. मृदुल से बातें करने के बीच ज्वाला देवी ने रंजना की तरफ देख कर बदमाश औरत की तरह नैन चलाते हुए कहा, "वाह रंजना ! कुच्छ भी हो, मृदुल अcछी चीज़ ढूंढी है तुमने, दोस्त हो तो मृदुल जैसा." अपनी बात कह कर कुच्छ ऐसी बेशर्मी से मुस्कुराते हुए वो रंजना की तरफ देखने लगी की बेचारी रंजना उसकी निगाहो का सामना ना कर सकी और शर्मा कर अपनी गर्दन झुका ली. ज्वाला देवी ने मृदुल को छाती से लगा कर प्यार किया और बोली, "बेटा ! इसे अपना ही घर समझ कर आते रहा करो, तुम्हारे बहाने रंजना का दिल भी बहाल जाया करेगा, बेचारी बड़ी अकेली सी रहती है ये.""यस मम्मी !मैं फिर आउन्गा."मृदुल ने मुस्कुरा कर उसकी बात का जवाब दिया और जाने की इजाज़त उसने माँगी, रंजना एक पल भी उसे अपने से अलग होने देना नहीं चाहती थी,मगर मजबूर थी. मृदुल को छ्चोड़ने के लिए वो बाहर गेट तक आई. विदा होने से पहले दोनो ने हाथ मिलाया तो रंजना ने मृदुल का हाथ ज़ोर से दबा दिया, इस पर मृदुल रहस्य से उसकी तरफ मुस्कुराता हुआ वहाँ से चला गया. अब आलम ये था की दोनो ही अक्सर कभी रेस्टोरेंट मैं तो कभी पार्क मैं या सिनिमा हॉल मे एक साथ होते थे. पापा सुदर्शन की गैर मौजूदगी का रंजना पूरा पूरा लाभ उठा रही थी. इतना सब कुच्छ होते हुए भी मृदुल का लंड चूत मैं घुस्वाने का शौभाग्य उसे अभी तक प्राप्त ना हो पाया था. हां, चूमा छाती तक नौबत आवश्य जा पहुँची थी. रोज़ाना ही एक चक्कर रंजना के घर का लगाना मृदुल का परम कर्तव्या बन चुका था. सुदर्शन जी की खबर आई की वो अभी कुच्छ दिन और मेरठ मैं ही रहेंगे. इस खबर को सुन कर मा बेटी दोनो का मानो खून बढ़ गया था.रंजना रोजाना कॉलेज मैं मृदुल से घर आने का आग्रह बार बार करती थी.जाने क्या सोच कर ज्वाला देवी के सामने आने से मृदुल कतराया करता था.वैसे रंजना भी नहीं चाह'ती थी कि मम्मी के सामने वो मृदुल को बुलाए. इसलिए अब ज़्यादातर चोरी-चोरी ही मृदुल ने उस'के घर जाना शुरू कर दिया था.वो घंटो रंजना के कमरे मे बैठा रहता और ज्वाला देवी को ज़रा भी मालूम नहीं होने पाता था. फिर वो उसी तरह से चोरी चोरी वापस भी लौट जाया करता था. इस प्रकार रंजना उसे बुला कर मन ही मन बहुत खुश होती थी. उसे लगता मानो कोई बहुत बड़ी सफलता उसने प्राप्त कर ली हो. चुदाई संबंधो के प्रति तरह तरह की बाते जानने की इच्च्छा रंजना के मन मैं जन्म ले चुकी थी, इसलिए उन्ही दीनो मे कितनी चोदन विषय पर आधारित पुस्तकें ज्वाला देवी के कमरे से चोरी चोरी निकाल कर काफ़ी अध्ययन वो करती जा रही थी.इस तरह जो कुछ उस रोज़ ज्वाला देवी वा बिरजू के बीच उसने देखा था इन चोदन संबंधी पुस्तको को पढ़ने के बाद सारी बातों का अर्थ एक एक कर'के उसकी समझ मैं आ गया था. और इसी के साथ साथ चुदाई की ज्वाला भी प्रचंड रूप से उस'के अंदर बढ़ उठी थी.फिर सुदर्शानजी मेरठ से वापिस आ गये और मा का बिरजू से मिलना और बेटी का मृदुल से मिलना कम हो गया.फिर दो महीना बाद रंजना के छ्होटे मामा की शादी आ गयी और उसी समय रंजना की फाइनल एग्ज़ॅम्स भी आ गये ज्वाला देवी शादी पर अप'ने मयके चली गयी और रंजना पढ़ाई में लग गई. उधर शादी संपन्न हो गई और इधर रंजना की परीक्षा भी समाप्त हो गई, पर ज्वाला देवी ने खबर भेज दी की वह 15 दिन बाद आएगी. सुदर्शानजी ऑफीस से शाम को कुच्छ जल्द आ जाते. ज्वाला के नहीं होने से वे प्रायः रोज ही प्रतिभा की मार'के आते इसलिए थके हारे होते और प्रायः जल्द ही आप'ने कमरे में चले जाते. रंजना और बेचैन रहने लगी.और एक दिन जब पापा अपने कमरे मे चले गये तो रंजना के वहशिपन और चुदाई नशे की हद हो गयी, हुआ यू कि उस रोज़ दिल के बहकावे मे आ कर उसने चुरा कर थोड़ी सी शराब भी पी ली थी.शराब का पीना था कि चुदाई की इक्च्छा का कुछ ऐसा रंग उसके सिर पर चढ़ा कि वो बेहाल हो उठी. दिल की बेचैनी और चूत की खाज से घबरा कर वो अपने बिस्तर पर जा गिरी और बर्दाश्त से बाहर चुदाई इच्च्छा और नशे की अधिकता के कारण वो बेचैनी से बिस्तर पर अपने हाथ पैर फैंकने लगी और अपने सिर को ज़ोर ज़ोर से इधर उधर झटकने लगी. कमरे का दरवाजा खुला हुआ था दरवाजे पर एकमात्र परदा टंगा हुआ था.रंजना को ज़रा भी पता ना चला कि कब उस'के पापा उस'के कमरे मैं आ गये हैं. वो चुपचाप उस'के बिस्तर तक आए और रंजना को पता चलने से पहले ही वो झुके और रंजना के चेहरे पर हाथ फेर'ने लगे फिर एकदम से उसे उठा कर अपनी बाँहों मैं भींच लिया. इस भयानक हमले से रंजना बुरी तरह से चौंक उठी, मगर अभी हाथ हिलाने वाली ही थी की सुदर्शन ने उसे और ज़्यादा ताक़त लगा कर जाकड़ लिया. अपने पापा की बाँहों में कसी होने का आभास होते ही रंजना एक दम घबरा उठी, पर नशे की अधिक'ता के कारण पापा का यह स्पर्श उसे सुहाना लगा.तभी सुदर्शानजी ने उस'से प्यार से "क्यों रंजना बेटा तबीयत तो ठीक है ना. मैं ऐसे ही इधर आया तो तुम्हें बिस्तर पर छ्ट'पटाते हुए देखा. और यह क्या तुम्हारे मूँ'ह से कैसी गंध आ रही है. रंजना कुच्छ नहीं बोल सकी और उस'ने गर्दन नीचे कर ली. सुदर्शानजी कई देर बेटी के सर पर प्यार से हाथ फेर'ते रहे और फिर बोले,"मे समझ'ता हूँ कि तुम्हे मम्मी की याद आ रही है.अब तो हमारी बेटी पूरी जवान हो गई है.तुम अकेली बोर हो रही हो. चलो मेरे कम'रे में. रंजना मन्त्र मुग्ध सी पापा के साथ पापा के कमरे मे चल पड़ी. कमरे में टेबल पर शराब की बॉटल पड़ी थी, आइस बॉक्स था और एक तस्त्री में कुछ काजू पड़े थे. पापा सोफे पर बैठे और रंजना भी पापा के साथ सोफे पर बैठ गई.सुदर्शानजी ने एक पेग बनाया और शराब की चुस्कियाँ लेने लगे.इस बीच दोनो के बीच कोई बात नहीं हुई. तभी सुदर्शन ने मौन भंग किया. "लो रंजना थोड़ी पी लो तो तुम्हें ठीक लगेगा तुम तो लेती ही हो.अब धीरे धीरे रंजना को स्थिति का आभास हुआ तो वह बोली, "पापा आप यह क्या कह रहे है? तभी सुदर्शन ने रंजना के भरे सुर्ख कपोलों पर हाथ फेर'ना शुरू किया और बोले, "लो बेटी थोड़ी लो शरमाओ मत. मुझे तो पता ही नहीं चला कि हमारी बेटी इतनी जवान हो गई है. अब तो तुम्हारी परीक्षा भी ख़तम हो गई है और मम्मी भी 15 दिन बाद आएगी. अब जब तक मैं घर में रहूँगा तुम्हें अकेले बोर होने नहीं दूँगा. यह कह'ते हुए सुदर्शन ने अप'ना ग्लास रंजना के होंठों के पास किया.रंजना नशे में थी और उसी हालत में उस'ने एक घूँट शराब का भर लिया. सुदर्शन ने एक के बाद एक तीन पेग बनाए और रंजना ने भी 2-3 घूँट लिए. रंजना एक तो पह'ले ही नशे में थी और इन 2-3 और शराब की घूँटों की वजह से वह कल्पना के आकाश मैं उड़ने लगी थी. अब सुदर्शानजी उसे बाँहों में ले हल्के हल्के भींच रहे थे. सुदर्शन को प्रतिभा जैसी जवान चूत का चस्का तो पहले ही लगा हुआ था, पर 16 साल की इस मस्त आनच्छुई कली के साम'ने प्रतिभा भी कुछ नहीं थी. इन दिनों रंजना के बारे में उन'के मन में बूरे ख़याल पनप'ने लगे थे पर इसे कोरी काम कल्प'ना समझ वे मन से झटक देते थे.पर आज उन्हें अपनी यह कल्प'ना साकार होते लगी और इस अनायास मिले अवसर को वे हाथ से गँवाना नहीं चाह'ते थे. रंजना शराब के नशे में और पिच्छले दिनों मृदुल के साथ चुदाई की कल्प'नाओं से पूरी मस्त हो उठी और उसने भी अपनी बाँहें उठा कर पापा की गर्दन मे डाल दी और पापा के आगोश में समा अप'नी कुँवारी चूचिया उनकी चौड़ी छाती पर रगड़नी शुरू कर डाली.रंजना का इतना करना था कि सुदर्शन खुल कर उसके शरीर के जाय'का लूटने पर उतर आया. अब दोनो ही काम की ज्वाला मैं फूँके हुए जोश मे भर कर अपनी पूरी ताक़त से एक दूसरे को दबाने और भींचने लगे. तभी सुदर्शन ने सहारा देकर रंजना को आप'नी गोद में बिठा लिया. रंजना एक बार तो कसमसाई और पापा की आँखों की तरफ देखी.तब सुदर्शन ने कहा,"आहा! इस प्यारी बेटी को बचपन में इतना गोद में खिलाया है. पर इन दिनों में मैने तुम्हारी और ध्यान ही नहीं दिया. सॉरी, और तुम देख'ते देख'ते इट'नी जवान हो गई हो. आज प्यारी बेटी को गोद में बिठा खूब प्यार करेंगे और सारी कसर निकाल देंगे.सुदर्शन ने बहुत ही काम लोलुप नज़रों से रंजना की छातियो की तरफ देख'ते हुए कहा. परंतु मस्ती और नशे मैं होते हुए भी रंजना इस ओर से लापरवाह नहीं रह सकी कि कमरा का दरवाजा खुला था. वह एकाकेक पापा की गोद से उठी और फटाफट उसने कमरे का दरवाजा बंद किया. दरवाजा बंद कर'के जैसे ही लौटी तो सुदर्शन संभाल कर खड़ा हो चुका था और वासना की भूख उसकी आँखों में झलक'ने लगी.वो समझ गया कि बेटी चुद'ने के लिए खूब ब खुद तैयार है तो अब देर किस बात की.पापा ने खड़े खड़े ही रंजना को पकड़ लिया और बुरी तरह बाँहो मैं भींच कर वो पागलो की तरह ज़ोर ज़ोर से उस'के गालों पर कस कर चूमि काटने लगे. गालों को उन्होने चूस चूस कर एक मिनिट मे ही कश्मीरी सेब की तरह सुरंग बना कर रख दिया था.मस्ती से रंजना की भी यही हालत थी,मगर फिर भी उसने गाल चुस्वते चुस्वाते सिसक कर कहा, "हाई छ्चोड़ो ना पापा आप यह कैसा प्यार कर रहे हैं.अब मैं जाती हूँ अप'ने कम'रे में सोने के लिए.पर काम लोलुप सुदर्शन ने उसकी एक ना सुनी और पहले से भी ज़्यादा जोश मे आ कर उसने गाल मुँह मैं भर भर कर उन्हे पीना उउउँ हूँ. अब नहीं जाने दूँगा. मेरे से मेरी जवान बेटी की तड़प और नही देखी जा सक'ती. मैने तुम्हें अप'ने कम'रे में तड़प'ते मचलते देखा.जानती हो यह तुम्हारी जवानी की तड़प है. तुम्हें प्यार चाहिए और वह प्यार अब मैं तुझे दूँगा.मजबूरन वो ढीली पड़ गयी.बस उसका ढीला पड़ना था कि हद ही करके रख दी सुदर्शन ने. वहीं ज़मीन पर उसने रंजना को गिरा कर चित्त लिटा लिया और झपट कर उस'के ऊपर चढ़ बैठा. इसी खींचातानी मैं रंजना की स्कर्ट जाँघो तक खिसक गयी और उसकी गोरी गोरी तंदुरुस्त जांघें सॉफ दिखाई देने लगी. बेटी की इतनी लंड मार आकर्षक जांघों को देखते ही सुदर्शन बदहवास और ख़ूँख़ार पागल हो उठा था.सारे धैर्या की मा चोद कर उसने रख दी,एक मिनिट भी चूत के दर्शन किए बगैर रहना उसे मुश्किल हो गया था. अगले पल ही झटके से उसने रंजना की स्कर्ट खींच कर फ़ौरन ही ऊपर सरका दी.उसका विचार था कि स्कर्ट के ऊपर खींचे जाते ही रंजना की कुँवारी चूत के दर्शन उसे हो जाएँगे और वो जल्दी ही उसमे डुबकी लगा कर जीभर कर उसमें स्नान करने का आनंद लूट सकेगा, मगर उसकी ये मनोकामना पूरी ना हो सकी,क्योंकि रंजना स्कर्ट के नीचे कतई नंगी नही थी बल्कि उस'के नीचे पॅंटी वो पहने हुए थी.चूत को पॅंटी से ढके देख कर पापा को बड़ी निराशा हुई.रंजना को भी यदि यह पता होता कि पापा उस'के साथ आज ऐसा करेंगे तो शायद वह पॅंटी ही नहीं पहन'ती. रंजना सकपकाती हुई पापा की तरफ देख रही थी कि सुदर्शन शीघ्रता से एकदम उसे छ्चोड़ कर सीधा बैठ गया. एक निगाह रंजना की जांघों पर डाल कर वो खड़ा हो गया और रंजना के देखते देखते उसने जल्दी से अपनी पॅंट और कमीज़ उतार दी. इस'के बाद उसने बनियान और अंडरवेर भी उतार डाला और एकदम मदरजात नंगा हो कर खऱ लंड रंजना को दिखाने लगा.अनुभवी सुदर्शन को इस बात का अच्छी तरह से पता था कि चुद'ने के लिए तैयार लड़'की मस्त खड़े लंड को अपनी नज़रों के साम'ने देख सारे हथियार डाल देगी. इस हालत मे पापा को देख कर बेचारी रंजना उन'से निगाहे मिलाने और सीधी निगाहों से लंड के दर्शन करने का साहस तक ना कर पा रही थी बल्कि शरम के मारे उसकी हालत अजीब किस्म की हो चली थी.मगर ना जाने नग्न लंड मैं कशिश ही ऐसी थी कि अधमुंदी पलकों से वो बराबर लंड की ओर ही देखती जा रही थी.उसके सगे बाप का लंड एक दम सीधा तना हुआ बड़ा ही सख़्त होता जा रहा था.रंजना ने वैसे तो बिरजू के लंड से इस लंड को ना तो लंबा ही अनुभव किया और ना मोटा ही मगर अपनी चूत के छेद की चौड़ाई को देखते हुए उसे लगा कि पापा का लंड भी कुच्छ कम नहीं रह पाएगा और उसकी चूत को फाड़ के रख देगा. नंगे बदन और जांघों के बीच टनटनाते सुर्ख लंड को देख कर रंजना की चुदाई की इच्च्छा और भी भयंकर रूप धारण करती जा रही थी.जिस लंड की कल्पना में उस'ने पिच्छ'ले कई महीने गुज़ारे थे वह साक्षात उस'की आँखों के साम'ने था चाहे अपने पापा का ही क्यों ना हो.तभी सुदर्शन ज़मीन पर चित लेटी बेटी के बगल मे बैठ गया. वह बेटी की चिकनी जांघों पर हाथ फेर'ने लगा. उस'ने बेटी को खड़ा लंड तो नंगा होके दिखा ही दिया अब वह उस'से कामुक बातें यह सोच कर कर'ने लगा क़ी इससे छोकरी की झिझक दूर होगी. फिर एक शरमाती नई कली से इस तरह के वास'ना भरे खेल खेल'ने का वह पूरा मज़ा लेना चाहता था.वा रंजना! इन वर्षों में क्या मस्त माल हो गई हो.रोज मेरी नज़रों के सामने रहती थी पर देखो इस और मेरा ध्यान ही नहीं गया. वाह क्या मस्त चिक'नी चिकनी जंघे है.हाय इन पर हाथ फेरने मे क्या मज़ा है.भाई तुम तो पूरी जवान हो गई हो और तुम्हे प्यार करके तो बड़ा मज़ा आएगा.हम तो आज तुम्हे जी भर के प्यार करेंगे और पूरा देखेंगे कि बेटी कित'नी जवान हो गई है.
क्रमशः........................
... Raddi Wala paart--5
gataank se aage...................
Mushkil se koi ghanta do ghanta wo so payee thee. Subah jab wo jaagi to hamesha se ek dam alag use apna harang dard aur thakan se toot-ta hua mahsoos ho raha tha,aisa lag raha tha bechari ko,jaise kisi mazdoor ki tarah raat main over time duty kar'ke lauti hai.Jabki choot par lakh choten khane aur jabardast hamle bulwane ke baad bhi Jwala Devi hamesha se bhi jyada khush aur kamal ki tarah mahakti hui nazar aa rahi thi. Khushiya aur atm-santosh us'ke chehre se tapak pad raha tha. Din bhar Ranjna ki nigaahe us'ke chehre par hi jami rahi.Wo uski taraf aaj jalan aur gusse se bhari nigaaho se hi dekhe jaa rahi thee.Jwala Devi ke prati Ranjna ke man main bada ajeeb sa bhaav utpann ho gaya tha. Uski nazar main wo itni gir gayee thee ki us'ke saare aadarsho, pativrta ke dhong ko dekh dekh kar uska man gusse ke maare bhar uthaa tha. us'ke saare kaaryon main Ranjna ko ab vasna aur badchalni ke alawa kuch bhi dikhaayi nahee deta tha. Magar apni mummy ke baare main is tarah ke vichaar aate aate kabhi wo sochne lagti thee ki jis kaam ki wajah se mummy buri hai wahi kaam karwaane ke liye to wo khud bhi chaah rahi hai. Vaastwikta to ye thee ki aajkal Ranjna apne andar jis aag main jal rahi thee, uski jhulas ki wo upeksha kar hi naheen sakti thee.Jitna bura galat kaam karne wala hota hai utna hi bura galat kaam karne ke liye sochne wala bhi Bas! agar Jwala ki galti thee to sirf itni ki asamay hi chudai ki aag Ranjna ke andar usne jalayee thee.Abhi us bechari ki umr aisi kaha thee ki wo chudai karwaane ke liye prerit ho apni choot kachchi hi fudwaale. Birju aur Jwala Devi ki chudai ka jo prabhav Ranjna par pada,usne uske raste hi mod kar rakh diye the.Us roz se hi kisimard se chudne ke liye uski choot fadak uthee thee. Kayee baar to choot ki seal tudwane ke liye wo aisi aisi kalpanayen karti ki uska rom rom sihar uthtaa tha. Ab padhaai likhaai main to uska man kam tha aur ekaant kamre main rah kar sirf chudai ke khayaal hi use aane lage the. Kayee baar to wo garam ho kar raat main hi apne kamre ka darwaja theek tarah band karke ekdam nangi ho jaya karti aur ghanto apne hi hathon se apni choochiyon ko dabaane aur choot ko khujane se jab wo aur bhi garma jaati thee to nangi hi bistar par gir kar tadap uthti thee, kitni hi der tak apni harkato se tang aa kar wo buri tarah chhatpataati rahti aur ant main isi bechaini aur dard ko man mai liye so jaati thee.Unhi dino Ranjna ki nazar main ek laR'ka kuchh jyaada hi chadh gaya tha. Naam tha uska Mridul, usi ki class main padhta tha. Mridul dekhne main behad sundar-swasth aur aakarshak tha,mushkil se do varsh bada hoga wo Ranjna se,magar dekhne main dono ham umr hi lagte the.Mridul ka vyavhar man ko jyaada hi lubhaane wala tha Na jane kya khasiyat le kar wo paida hua hoga ki larkiyaan badi aasaani se uski or khinchi chali aati thee, Ranjna bhi Mridul ki or aakarshit hue bina na rah saki thee.mauke bemauke usse baat karne main wo dilchaspi lene lagi thee. Khoobsurti aur aakarshaan main yun to Ranjna bhi kisi tarah kam na thee, isliye Mridul dilojaan se us par mar mita tha. Vaise laR'kiyon par mar mitna uski aadat main shaamil ho chuka tha, isi karan Ranjna se do varsh bada hote hue bhi wo ab tak usi ke sath padh raha tha. Fail hone ko wo bachcho ka khel maanta tha. Bahut hi jald Ranjna aur Mridul main achchhee dosti ho gayee thee. Ab to college main aur college ke baahar bhi dono milne lage the. Isi kram ke saath dono ki dosti rang lati ja rahi thee.Us din Ranjna ka janam din tha, ghar par ek party ka aayojan kiya gaya tha,jismen parichit va rishtedaaro ke alaawaa jyadatar sankhya Jwala Devi ke choot ke diwano ki thee. Aaj Birju bhi bada sajh dhaj ke aaya tha, use dekh kar koi nahi kah sakta tha ki wo ek raddi wala hai.Ranjna ne bhi Mridul kois dawat ke liyeinvitation card bheja tha, isliye wo bhi party main shaamil hua tha.Jis tarah Jwala Devi apne choot ke diwaano ko dekh dekh kar khush ho rahi thee usi tarah Mridul ko dekh kar Ranjna ke man main bhi fuljhadiyaan si phoote jaa rahi thee.Wo be-inteha prasann dikhayee pad rahi thee aaj. Party main Ranjna jyadatar Mridul ke saath hi rahi. Jwala Devi apne yaaro ke saath itni vyast thi ki Ranjna chahte hue bhi Mridul ka parichay usse na karaa saki thee. Magar party ke samapt ho jaane par jab sab mehmaan vidaa ho gaye to Ranjna ne jaanboojh kar Mridul ko roke rakha. Baad main Jwala Devi se uska parichay karati huee boli, "Mummy ! ye mere khaas dost Mridul hai." "Ohh! Handsome boy." Jwala Devi ne saans si chhodi aur Mridul se mil kar wo jaroorat se jyaada hi prasannta zaahir karne lagi. Uski nigaahen brabbar Mridul ki chaudi chhaatee, majboot kandhon, balshaali baanhen aur mardaane surkh chehre par hi tiki rahi thi.Ranjna ko apni mummy ka yah vyawhar aur uske haav-bhaav bade hi nagwaar guzar rahe the. Magar wo bade dhairya se apne man ko kaabu main kiye sab sahe jaa rahi thee. Jabki Jwala Devi par use behad gussa aa raha tha.Use yu lag raha tha jaise wo Mridul ko us'se chheenne ki koshish kar rahi thee. Mridul se baaten karne ke beech Jwala Devi ne Ranjna ki taraf dekh kar badmaash aurat ki tarah nain chalaate hue kaha, "Waah Ranjna ! kuchh bhi ho, Mridul acchhee cheez dhoondhi hai tumne, dost ho to Mridul jaisa." Apni baat kah kar kuchh aisi besharmi se muskuraate hue wo Ranjna ki taraf dekhne lagi ki bechaari Ranjna uski nigaaho ka samna na kar saki aur sharma kar apni gardan jhuka li. Jwala Devi ne Mridul ko chhaatee se laga kar pyaar kiya aur boli, "Beta ! ise apna hi ghar samjh kar aate raha karo, tumhaare bahaane Ranjna ka dil bhi bahal jaya karega, bechaari badi akeli si rahti hai ye.""Yes Mummy !mai phir aaunga."Mridul ne muskura kar uski baat ka jawaab diya aur jaane ki ijaazat usne mangi, Ranjna ek pal bhi use apne se alag hone dena naheen chahtee thee,magar majboor thee. Mridul ko chhodne ke liye wo bahar mai gate tak aayee. Vidaa hone se pahale dono ne haath milaaya to Ranjna ne Mridul ka hath zor se daba diya, is par Mridul rahasya se uski taraf muskuraata hua wahaan se chala gaya. Ab aalam ye tha ki dono hi aksar kabhi restaurant main to kabhi park main ya cinema hall mai ek sath hote the. Papa Sudarshan ki gair maujoodgi ka Ranjna poora poora laabh uthaa rahi thee. Itna sab kuchh hote hue bhi Mridul ka lund choot main ghuswaane ka shaubhagya use abhi tak praapt na ho paaya tha. Haan, chooma chaati tak naubat aavashya jaa pahunchi thee. Rozaana hi ek chakkar Ranjna ke ghar ka lagana Mridul ka param kartavya ban chuka tha. Sudarshan jee ki khabar aayee ki wo abhi kuchh din aur Merrut main hi rahenge. Is khabar ko sun kar maa beti dono ka mano khoon baDh gaya tha.Ranjna rojana college main Mridul se ghar aane ka aagrah baar baar karti thee.Jane kya soch kar Jwala Devi ke saamne aane se Mridul katraya karta tha.Waise Ranjna bhi naheen chaah'tee thee ki mummy ke saamne wo Mridul ko bulaaye. Isliye ab jyadatar chori-chori hi Mridul ne us'ke ghar jaana shuru kar diya tha.Wo ghanto Ranjna ke kamre mai baitha rahta aur Jwala Devi ko zara bhi maaloom naheen hone paata tha. Phir wo usi tarah se chori chori waapas bhi laut jaaya karta tha. Is prakar Ranjna use bula kar man hi man bahut khush hoti thee. Use lagtaa maano koi bahut badi safalta usne praapt kar li ho. Chudai sambhandho ke prati tarah tarah ki baate jaanne ki ichchha Ranjna ke man main janm le chuki thee, isliye unhi dino mai kitni chodan vishay par aadhaarit pustaken Jwala Devi ke kamre se chori chori nikaal kar kafi adhyyan wo karti jaa rahi thee.Is tarah jo kuch us roz Jwala Devi va Birju ke beech usne dekha tha in chodan sambhandhi pustako ko padhne ke baad sari baaton ka arth ek ek kar'ke uski samajh main aa gaya tha. Aur isi ke saath sath chudai ki jwaalaa bhi prachand roop se us'ke andar baDh uthee thee.Phir Sudarshanji meerut se waapis aa gaye aur maa ka Birju se milna aur betee ka Mridul se milna kam ho gaya.Phir do mahina baad Ranjana ke chhote mama ki shaadee aa gayee aur usi samay Ranjana kee final exams bhi aa gaye Jwala Devi shaadee par ap'ne mayke chalee gayee aur Ranjana paDhai men lag gai. Udhar shaadee sampann ho gai aur idhar Ranjana ki pariksha bhee samaapt ho gai, par Jwala Devi ne khabar bhej dee ki wah 15 din baad aayegee. Sudershanji office se sham ko kuchh jald aa jaate. Jwaala ke naheen hone se ve praayah roj hee Pratibha kee maar'ke aate isliye thake haare hote aur praayah jald hee ap'ne kamre men chale jate. Ranjana aur bechain rahne lagee.Aur ek din jab papa apne kamre me chale gaye to Ranjna ke vahshipan aur chudai nashe ki had ho gayee, hua yu ki us roz dil ke bahkave mai aa kar usne chura kar thodi si sharab bhi pi li thee.Sharaab ka pina tha ki chudai ki icchha ka kuch aisa rang uske sir par chadha ki wo behaal ho uthi. Dil ki bechaini aur choot ki khaaj se ghabra kar wo apne bistar par ja giri aur bardasht se baahar chudai ichchha aur nashe ki adhikta ke kaaran wo bechaini se bistar par apne haath pair phainkne lagi aur apne sir ko zor zor se idhar udhar jhatkane lagi. Kamre ka darwaaja khula hua tha darwaaje par ekmaatr parda tanga hua tha.Ranjna ko zara bhi pata na chala ki kab us'ke papa us'ke kamre main aa gaye hain. We chupchaap us'ke bistar tak aaye aur Ranjna ko pata chalne se pahale hi we jhuke aur Ranjana ke chehre par haath pher'ne lage phir ekdam se use utha kar apni baanhon main bheench liya. Is bhayanak hamle se Ranjna buri tarah se chaunk uthee, magar abhi haath hilane waali hi thee ki Sudershan ne use aur jyada taaqat laga kar jakad liya. Apne papa kee baanhon men kasee hone ka aabhaas hote hi Ranjna ek dam ghabra uthee, par nashe kee adhik'ta ke kaaraN papa ka yah sparsh use suhana laga.Tabhee Sudarshanji ne us'se pyaar se "Kyon Ranjana beta tabiyat to theek hai na. Main aise hee idhar aaya to tumhen bistar par chhat'pataate hue dekha. Aur yah kya tumhaare mun'h se kaisee gandh aa rahee hai. Ranjana kuchh naheen bol sakee aur us'ne gardan neeche kar lee. Sudarshanjee kai der betee ke sar par pyaar se haath pher'te rahe aur phir bole,"Mai samajh'ta hoon ki tumhe mummy kee yaad aa rahee hai.Ab to hamaaree betee poori jawan ho gai hai.Tum akeli bore ho rahee ho. chalo mere kam're men. Ranjana mantra mugdh si papa ke sath papa ke kamre me chal paRi. Kamre men table par sharaab kee bottle paRee thee, ice box tha aur ek tastree men kuch kaajoo paRe the. Papa sofe par baithe aur Ranjana bhee papa ke saath sofe par baith gai.Sudershanjee ne ek peg banaaya aur sharaab kee chuskiyaan lene lage.Is beech dono ke beech koi baat naheen hui. Tabhee Sudarshan ne maun bhang kiya. "Lo Ranjana thoRee pee lo to tumhen theek lagega tum to letee hi ho.Ab dheere dheere Ranjana ko sthiti ka aabhaas hua to wah boli, "Papa aap yah kya kah rahe hai? tabhee Sudarshan ne Ranjana ke bhare surkh kapolon par haath pher'na shuru kiya aur bole, "Lo betee thoRee lo sharmaao mat. Mujhe to pata hee naheen chala ki hamaaree betee itnee jawaan ho gai hai. Ab to tumhaaree pariksha bhee khatam ho gai hai aur mummy bhee 15 din baad aayegee. Ab jab tak main ghar men rahoonga tumhen akele bore hone naheen doonga. Yah kah'te huye Sudarshan ne ap'na glass Ranjana ke honthon ke paas kiya.Ranjana nashe men thee aur usee haalat men us'ne ek ghoont sharab ka bhar liya. Sudarshan ne ek ke baad ek teen peg banaaye aur Ranjana ne bhee 2-3 ghoont liye. Ranjana ek to pah'le hee nashe men thee aur in 2-3 aur sharaab kee ghoonton kee vajah se vah kalpna ke aakaash main udne lagi thee. Ab Sudarshanjee use baanhon men le halke halke bheench rahe the. Sudarshan ko Pratibha jaisee jawaan choot ka chaska to pahle hee laga hua tha, par 16 saal kee is mast anchhui kalee ke saam'ne Pratibha bhee kuch naheen thee. In dinon Ranjana ke baare men un'ke man men boore khayaal panap'ne lage the par ise koree kaam kalp'na samajh ve man se jhatak dete the.Par aaj unhen apnee yah kalp'na saakar hote lagee aur is anaayaas mile avasar ko ve hath se ganvana naheen chaah'te the. Ranjana sharaab ke nashe men aur pichhle dinon Mridul ke saath chudai kee kalp'naaon se pooree mast ho uthee aur usne bhi apni baanhen uthaa kar papa ki gardan mai Daal di aur papa ke aagosh men sama ap'nee kunwaari choochiya unki chaudi chati par ragadni shuru kar Dali.Ranjna ka itna karna tha ki Sudarshan khul kar uske shareer ke jaay'ka lootne par utar aaya. Ab dono hi kaam ki jwaala main phunke hue josh mai bhar kar apni poori taaqat se ek doosre ko dabaane aur bheenchne lage. Tabhee Sudarshan ne sahara dekar Ranjana ko ap'nee god men bitha liya. Ranjana ek baar to kasmasai aur papa kee ankhon kee taraf dekhee.Tab sudarshan ne kaha,"Aha! is pyaree beti ko bachpan men itna god men khilaya hai. Par in dinon men maine tumharee aur dhyan hee naheen diya. Sorry, aur tum dekh'te dekh'te it'nee jawaan ho gai ho. aaj pyaaree betee ko god men bitha khoob pyaar karenge aur saaree kasar nikaal denge.Sudarshan ne bahut hee kaam lolup nazaron se Ranjana kee chhaatiyon kee taraf dekh'te hue kaha. Parantu masti aur nashe main hote hue bhi Ranjna is or se laparwaah naheen rah saki ki kamra ka darwaaja khula tha. Wah ekaakek papa kee god se uthee aur fatafat usne kamre ka darwaaja band kiya. Darwaaja band kar'ke jaise hi lauti to Sudarshan sambhal kar khaRa ho chuka tha aur vaasna kee bhookh uskee aankhon men jhalak'ne lagee.Vo samajh gaya ki betee chud'ne ke liye khub b khud taiyaar hai to ab der kis baat ki.Papa ne khaRe khaRe hee Ranjana ko pakad liya aur buri tarah banho main bheench kar we paaglo ki tarah zor zor se us'ke galon par kas kar chumi katne lage. gaalon ko unhone choos choos kar ek minute mai hi kashmiri seb ki tarah surang bana kar rakh diya tha.Masti se Ranjna ki bhi yahi halat thi,magar phir bhi usne gaal chuswate chuswaate sisak kar kaha, "hai chhodo na papa aap yah kaisa pyaar kar rahe hain.Ab main jatee hoon ap'ne kam're men sone ke liye.Par kaam lolup Sudarshan ne uski ek na suni aur pahale se bhi jyada josh mai aa kar usne gaal munh main bhar bhar kar unhe peena Uuun hoon. Ab naheen jaane doonga. Mere se meree jawan betee kee taRap aur neahe dekhee ja sak'tee. Maine tumhen ap'ne kam're men taRap'te machalte dekha.Jantee ho yah tumhari jawaanee kee taRap hai. Tumhen pyaar chaahiye aur wah pyaar ab main tujhe doonga.Majbooran wo dheelee pad gayee.Bas uska dheela padna tha ki had hi karke rakh di Sudarshan ne. wahin zameen par usne Ranjna ko gira kar chitt lita liya aur jhapat kar us'ke oopar chadh baitha. Isi kheenchataani main Ranjna ki skirt jangho tak khisak gayee aur uski gori gori tandurust jaanghen saaf dikhaayee dene lagi. Betee kee itnee lund mar aakarshak janghon ko dekhte hi Sudarshan badhawaas aur khunkhaar pagal ho uthaa tha.Saare dhairya ki maa chod kar usne rakh di,ek minute bhi choot ke darshan kiye bagair rahna use mushkil ho gaya tha. Agle pal hi jhatke se usne Ranjna ki skirt kheench kar fauran hi oopar sarka di.Uska vichar tha ki skirt ke oopar kheenche jaate hi Ranjna ki kunwari choot ke darshan use ho jayenge aur wo jaldi hi usme dubki laga kar jeebhar kar usmen snaan karne ka aanand loot sakega, magar uski ye manokamna poori na ho saki,kyonki Ranjna skirt ke neche katai nangi nahe thee balki us'ke neeche panty wo pahne huye thee.Choot ko panty se Dhake dekh kar papa ko badi nirasha hui.Ranjna ko bhee yadi yah pata hota ki papa us'ke saath aaj aisa karenge to shaayad wah panty hee naheen pahan'tee. Ranjna sakpakaati huee papa kee taraf dekh rahi thee ki Sudarshan sheeghrataa se ekdam use chhod kar seedha baith gaya. Ek nigaah Ranjna ki jaanghon par Daal kar wo khaRa ho gaya aur Ranjna ke dekhte dekhte usne jaldi se apni pant aur kameez utaar di. is'ke baad usne baniyaan aur underwear bhi utaar Daala aur ekdam madarjat nanga ho kar khaRa lund Ranjna ko dikhane laga.Anubhavi Sudarshan ko is baat ka achchhee tarah se pata tha ki chud'ne ke liye taiyaar laR'kee mast khaRe lund ko apnee nazaron ke saam'ne dekh saare hathiyaar Daal degee. Is haalat me papa ko dekh kar bechaari Ranjna un'se nigaahe milaane aur seedhee nigaahon se lund ke darshan karne ka saahas tak na kar paa rahi thee balki sharam ke maare uski halat ajeeb kism ki ho chali thee.Magar na jaane nagn lund main kashish hi aisi thee ki adhmundi palkon se wo barabar lund ki or hi dekhti ja rahi thi.Uske sage baap ka lund ek dam sidha tana hua bada hi sakht hota ja raha tha.Ranjna ne waise to Birju ke lund se is lund ko na to lamba hi anubhav kiya aur na mota hi magar apni choot ke ched ki chaudai ko dekhte hue use laga ki papa ka lund bhi kuchh kam naheen rah payega aur uski choot ko phaR ke rakh dega. Nange badan aur janghon ke beech tantanate surkh lund ko dekh kar Ranjna ki chudai ki ichchha aur bhi bhayankar roop dharan karti ja rahi thee.Jis lund kee kalpna men us'ne pichh'le kai mahine gujaare the vah sakshaat us'kee aankhon ke saam'ne tha chahe apne papa ka hee kyon na ho.Tabhi Sudarshan jameen par chit leti beti ke bagal me baith gaya. Vah betee kee chikni jaanghon par haath pher'ne laga. Us'ne betee ko khaRa lund to nanga hoke dikha hee diya ab vah us'se kaamuk baaten yah soch kar kar'ne laga ki isse chokri kee jhijhak door hogee. Phir ek sharmaatee nai kalee se is tarah ke vaas'na bhare khel khel'ne ka wah poora maja lena chaahta tha.Wah Ranjana! in varshon men kya mast mal ho gai ho.Roj meree nazaron ke samne rahti thee par dekho is aur mera dhyan hi naheen gaya. Waah kya mast chik'nee chikni janghe hai.Haay in par hath pherne me kya maja hai.Bhai tum to puri jawaan ho gai ho aur tumhe pyaar karke to baRa maja aayega.Ham to aaj tumhe ji bhar ke pyar karenge aur poora dekhenge ki betee kit'nee jawan ho gai hai.
kramshah...........................

































































































































































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