Saturday, April 3, 2010

गाँव का राजा पार्ट -9

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गाँव का राजा पार्ट -9








हेलो दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक और नई कहानी गाँव का राजा पार्ट -9 लेकर हाजिर हूँ दोस्तो कहानी कैसी है ये तो आप ही बताएँगे

आम के बगीचे में जो मकान या खलिहान जो भी कहे बना था वो वास्तव में चौधरी जब जवान था तब उसकी ऐषगाह थी. वाहा वो रंडिया ले जा कर नाचवाता और मौज मस्ती करता था. जब से दारू के नशे में डूबा तब से उसने वाहा जाना लगभग छोड़ ही दिया था. बाहर से देखने पर तो खलिहान जैसा गाओं में होता है वैसा ही दिखता था मगर अंदर चौधरी ने उसे बड़ा खूबसूरत और आलीशान बना रखा था. दो कमरे जो की काफ़ी बड़े और एक कमरे में बहुत बड़ा बेड था. सुख सुविधा के सारे समान वाहा थे. वाहा पर एक मॅनेजर जो की चौकीदार का काम भी करता था रहता था. ये मॅनेजर मुन्ना के लिए बहुत बड़ी प्राब्लम था. क्यों कि लाजवंती और बसंती दरअसल उसी की बहू और बेटी थी. लाजवंती उसके बेटे की पत्नी थी जो की शहर में रहता था. मुन्ना बाबू घर पहुच कर कुच्छ देर तक सोचते रहे कैसे अपने रास्ते के इस पत्थर को हटाया जाए. खोपड़ी तो शैतानी थी ही. तरक़ीब सूझ गई. उठ कर सीधा आम के बगीचे की ओर चल दिए. मे महीने का पहला हफ़्ता चल रहा था. बगीचे में एक जगह खाट डाल कर मॅनेजर बैठा हुआ दो लड़कियों की टोकरियो में अधपके और कच्चे आम गिन गिन कर रख रहा था. मुन्ना बाबू एक दम से उसके सामने जा कर खड़े हो गये. मॅनेजर हड़बड़ा गया और जल्दी से उठ कर खड़ा हुआ.

"क्या हो रहा है……ये अधपके आम क्यों बेच रहे हो…" मॅनेजर की तो घिघी बँध गई समझ में नही आ रहा था क्या बोले.

"ऐसे ही हर रोज दो टोकरी बेच देते हो क्या …." थोड़ा और धमकाया.

"छ्होटे मलिक….नही छ्होटे मलिक…….वो तो ये बेचारी ऐसे ही…..बड़ी ग़रीब बच्चियाँ है आचार बनाने के लिए माँग रही……" दोनो लड़कियाँ तब तक भाग चुकी थी.

"खूब आचार बना रहे हो…….चलो अभी मा से बोलता हू फिर पता चलेगा….".

मॅनेजर झुक कर पैर पकड़ने लगा. मुन्ना ने उसका हाथ झटक दिया और तेज़ी से घर आ गया. घर आ कर चौधरैयन को सारी बात नमक मिर्च लगा कर बता दी. चुधरैयन ने तुरंत मॅनेजर को बुलवा भेजा खूब झाड़ लगाई और बगीचे से उसकी ड्यूटी हटा दी और चौधरी को बोला कि दीनू को ब्गीचे में भेज दे रखवाली के लिए. अब जितने भी बगीचे थे सब जगह थोड़ी बहुत चोरी तो सारे मॅनेजर करते थे. चौधरी की इतनी ज़मीन ज़ायदाद थी कि उसका ठीक ठीक हिसाब किसी को नही पता था. आम के बगीचे में तो कोई झाँकने भी नही जाता जब फल पक जाते तभी चौधरैयन एक बार चक्कर लगाती थी. मॅनेजर की किस्मत फूटी थी मुन्ना बाबू के चक्कर में फस गया. फिर मुन्ना ने चौधरी से बगीचे वाले मकान की चाभी ले ली. दीनू को बोल दिया मत जाना, गया तो टांग तोड़ दूँगा…तू भी चोर है. दीनू डर के मारे गया ही नही और ना ही किसी से इसकी शिकायत की. जब सब सो जाते तो रात में चाभी ले मुन्ना बाबू खिसक जाते. दो रातो तक लाजवंती की जवानी का रस चूसा आख़िर पायल की कीमत वसूलनी थी. तीसरे दिन लाजवंती ने बता दिया की रात में ले कर आउन्गी. मुन्ना बाबू पूरी तैय्यारि से बगीचे वाले मकान पर पहुच गये. करीब आधे घंटे के बाद ही दरवाजे पर खाट खाट हुई.


मुन्ना ने दरवाजा खोला सामने लाजवंती खड़ी थी. मुन्ना ने धीरे से पोच्छा "भौजी बसंती". लाजवंती ने अंदर घुसते हुए आँखो से अपने पिछे इशारा किया. दरवाजे के पास बसंती सिर झुकाए खड़ी थी. मुन्ना के दिल को करार आ गया. बसंती को इशारे से अंदर बुलाया. बसंती धीरे-धीरे सर्माती सकुचाती अंदर आ गई. मुन्ना ने दरवाजा बंद कर दिया और अंदर वाले कमरे की ओर बढ़ चला. लाजवंती, बसंती का हाथ खींचती हुई पिछे-पिछे चल पड़ी. अंदर पहुच कर मुन्ना ने अंगड़ाई ली. उसने लूँगी पहन रखी थी. लाजवंती को हाथो से पकड़ अपनी ओर खींच लिया और उसके होंठो पर चुम्मा ले बोला "के बात है भौजी आज तो कयामत लग रही हो….."

"हाई छ्होटे मलिक आप तो ऐसे ही…..बसंती को ले आई…." बसंती बेड के पास चुप चाप खड़ी थी.

"हा वो तो देख ही रहा हू…."

"हा मलिक लाजवंती अपना किया वादा नही भूलती……लोग भूल जाते है……" मुन्ना ने पास में पड़े कुर्ते में हाथ डाल कर एक डिब्बा निकाला और लाजवंती के हाथो में थमा दिया. फिर उसकी कमर के पास से पकड़ अपने से चिपका उसके चूतरो को कस कर दबाता हुआ बोला "आते ही अपनी औकात पर आ गई……खोल के देख….." लाजवंती ने खोल के देखा तो उसकी आँखो में चमक आ गई.

"हाई मलिक मैं आपके बारे में कहा बोल रही थी…..मुझे क्या पता नही की चौधरी ख़ानदान के लोग… कितने पक्के होते है….हाई मार दिया …हड्डिया तर्तर गई…"

लाजवंती की गांद की दरार में साडी के उपर से उंगली चलाते हुए उसके गाल पर दाँत गाढ उसकी एक चुचि पकड़ी और कस कर चिपकाया. लाजवंती "आ मालिक आआआअ उईईईई" करने लगी. बसंती एक ओर खड़ी होकर उन दोनो को देख रही थी. मुन्ना ने लाजवंती को बिस्तर पर पटक दिया. बिस्तर इतना बड़ा था की चार आदमी एक साथ सो सके. दोनो एक दूसरे से गुत्थम गुथा हो कर बिस्तर पर लुढ़कने लगे. होंठो को चूस्ते हुए कभी गाल काट ता कभी गर्दन पर चुम्मि लेता. चुचि को पूरी ताक़त से मसल देता था. चूतर दबोच कर गांद में साड़ी के उपर से ऐसे उंगली कर रहा था जैसे पूरी साड़ी घुसा देगा. लाजवंती के मुँह से "आ हा आह….उईईईईईईईईई मालिक निकल रहा था.." तभी फुसफुसाते हुए बोली "मेरे पर ही सारा ज़ोर निकलोगे क्या…..बसंती तो….." मुन्ना भी फुसफुसाते हुए बोला "अरी खड़ी रहने दे तुझे एक बार चोद देता हू….फिर खुद गरम हो जाएगी…." मुन्ना की चालाकी समझ वो भी चुप हो गई. फिर मुन्ना ने जल्दी से लाजवंती को पूरा नंगा कर दिया. अपनी ननद के सामने पूरा नंगा होने पर शर्मा कर बोली "हाई मालिक कुच्छ तो छोड़ दो….." मुन्ना अपनी लूँगी खोलते हुए बोला "आज तो पूरा नंगा करके….साडी उठाने से काम नही चलेगा भौजी"

मुन्ना का दस इंच लंबा लंड देख कर बसंती एकदम सिहर गई. मगर लाजवंती ने लपक कर अपने हाथो में थाम लिया और मसल्ने लगी. मुन्ना मसनद के सहारे बैठ ता हुआ बोला "रानी ज़रा चूसो…". लाजवंती बैठ कर सुपरे की चमड़ी हटा जीभ फिराती हुई बोली "मालिक बसंती ऐसे ही खड़ी रहेगी क्या…."


"आरे मैने कब कहा खड़ी रहने को…बैठ जाए…."

"ऐसी क्या बेरूख़ी मलिक……बेचारी को अपने पास बुला लो ना…." पूरे लंड को अपने मुँह में ले चूस्ते हुए बोली.

" बहुत अच्छा भौजी……अच्छे से चूसो…..मैं कहा बेरूख़ी दिखा रहा हू वो तो खुद ही दूर खड़ी है….."

"है मलिक जब से आई है आपने कुच्छ बोला नही है……बसंती आ जा…..अपने छ्होटे मालिक बहुत अच्छे है…..शहर से पढ़ लिख कर आए है…गाओं के गँवारो से तो लाख दर्जा अच्छे है……" बसंती थोडा सा हिचकी तो लंड छोड़ कर लाजवंती उठी और हाथ पकड़ बेड पर खींच लिया. मुन्ना ने एक और मसनद लगा उसको थप थपाते हुए इशारा किया. बसंती शरमाते हुए मुन्ना की बगल में बैठ गई. लाजवंती ने मुन्ना का लंड पकड़ हिलाते हुए दिखाया "देख कितना अच्छा है अपने छ्होटे मलिक का….एकदम घोड़े के जैसा है….ऐसा पूरे गाओं में किसी का नही…". और फिर से चूसने लगी. झुके पॅल्को के नीचे से बसंती ने मुन्ना का हलब्बी लंड देखा दिल में एक अजीब सी कसक उठी. हाथ उसे पकड़ने को ललचाए मगर शर्मो हया का दामन नही छोड़ पाई. मुन्ना ने बसंती की कमर में हाथ डाल अपनी तरफ खींचा "शरमाती क्यों है आराम से बैठ…….आज तो बड़ी सुंदर लग रही है…..खेत में तो तुझे अपना लंड दिखाया था ना….तो फिर क्यों शर्मा रही है." बसंती ने शर्मा कर गर्दन झुका ली. उस दिन के मुन्ना और आज के मुन्ना में उसे ज़मीन आसमान का अंतर नज़र आया. उस दिन मुन्ना उसके सामने गिडगीडा रहा था उसको लहंगे का तोहफा दे कर ललचाने की कोशिश कर रहा था और आज का मुन्ना अपने पूरे रुआब में था वो इसलिए क्योंकि आज वो खुद उसके दरवाजे तक चल कर आई थी.

"हाई मलिक…मैने आज तक कभी….."

"आरे तेरी तो शादी हो गई है दो महीने बाद गौना हो कर जाएगी तो फिर तेरा पति तो दिखाएगा ही…"


"धात मलिक……."

"तेरा लहनगा भी लाया हू…लेती जाना…..सुहागरात के दिन पहन ना…" कह कर अपने पास खींच उसकी एक चुचि को हल्के से पकड़ा. बसंती शर्मा कर और सिमट गई. मुन्ना ने ठोडी से पकड़ उसका चेहरा उपर उठा ते हुए कहा "एक चुम्मा दे….बड़ी नशीली लग रही है" और उसके होंठो से अपने होंठ सटा कर चूसने लगा. बसंती की आँखे मूंद गई. मुन्ना ने उसके होंठो को चूस्ते हुए उसकी चुचि को पकड़ लिया और खूब ज़ोर ज़ोर से दबाते हुए उसकी चोली में हाथ घुसा दिया. बसंती एक दम से छटपटा गई.

"उईईईईई मलिक सीई…" मुन्ना ने धीरे से उसकी चोली के बटन खोलने की कोशिश की तो बसंती ने शर्मा कर मुन्ना का हाथ हल्के से हटा दिया. लाजवंती लंड को पूरा मुँह में ले चूस रही थी. उसकी लटकती हुई चुचि को पकड़ दबाते हुए मुन्ना बोला "देखो भौजी कैसे शर्मा रही है….पहले तो चुप चाप वाहा खड़ी रही अब कुच्छ करने नही दे रही……" लाजवंती लंड पर से मुँह हटा बसंती की ओर खिसकी और उसके गालो को चुटकी में मसल बोली "हाई मलिक पहली बार है बेचारी का शर्मा रही है…लाओ मैं खोल देती हू…"

"मेरे हाथो में क्या बुराई है…"

"मलिक बुराई आपके हाथो में नही लंड में है….देख कर डर गई है" फिर धीरे से बसंती की चोली खोल अंगिया निकाल दी. बसंती और उसकी भौजी दोनो गेहूए (वीटिश) रंग की थी. मतलब बहुत गोरी तो नही थी मगर काली भी नही थी. बसंती की दोनो चुचियाँ छोटी मुट्ठी में आ जाने लायक थी. निपल गुलाबी और छ्होटे-छ्होटे. एक दम अनटच चुचि थी. कठोर और नुकीली. मुन्ना ने एक चुचि को हल्के से थाम लिया.

"हाई क्या चुचि है…मुँह में डाल कर पीने लायक…" और दूसरी चुचि पर अपना मुँह लगा जीभ निकाल कर निपल को छेड़ते हुए चारो तरफ घुमाने लगा. बसंती सिहर उठी. पहली बार जो था. सिसकते हुए मुँह से निकला " भाभी….." लाजवंती ने उसका हाथ पकड़ कर मुन्ना के लंड पर रख दिया और उसके होंठो को चूम बोली "पकड़ के तू भी मसल छ्होटे मलिक तो अपने खिलोने से खेल रहे है….ये हम लोगो का खिलोना है" मुन्ना दोनो चुचियों को बारी बारी से चूसने लगा. बड़ा मज़ा आ रहा था उसको. कुच्छ देर बाद उसने बसंती को अपनी गोद में खींच लिया और अपने लंड पर उसको बैठा लिया "आओ रानी तुझे झूला झूला दू…..शर्मा मत…शरमाएगी तो सारा मज़ा तेरी भाभी लूट लेगी" मुन्ना का खड़ा लंड उसकी गांद में चुभने लगा. ठीक गांद की दरार के बीच में लंड लगा कर दोनो चुचि मसल्ते हुए गाल और गर्दन को चूमने लगा. तभी लाजवंती ने मुन्ना का हाथ पकड़ अपनी ढीली चुचि पर रखते हुए कहा "हाई मलिक कोरा माल मिलते ही मुझे भूल गये"


"तुझे कैसे भूल जाउन्गा छिनाल…चल आ अपनी चुचि पीला मैं तब तक इसकी दबाता हू"

"हाई मलिक पीजिए……अपनी इस छिनाल भौजी की चुचि को….ओह हो सस्ससे…" मुन्ना तो जन्नत में था दोनो हाथ में दो अछूती चुचि लंड के उपर अनचुड़ी लौंडिया अपना गांद ले कर बैठी हुई थी और मुँह में खुद से चुचि थेल थेल कर पिलाती रंडी. दो चुचियों को मसल मसल कर और दो को चूस चूस कर लाल कर दिया. चुचि चुस्वा कर लाजवंती एकद्ूम गरम हो गई अपने हाथ से अपनी चूत को रगड़ने लगी. मुन्ना ने देखा तो मुस्कुरा दिया और बसंती को दिखाते हुए बोला "देख तेरी भौजी कैसे गरमा गई है… हाथी का भी लंड लील जाएगी." देख कर बसंती शर्मा कर "धात मलिक.....आपका तो खुद घोड़े जैसा…" इतनी देर में वो भी थोड़ा बहुत खुल चुकी थी.

"अच्छा है ना ?"

"धात मलिक….. आपका बहुत मोटा.."

"मोटे और लंब लंड से ही मज़ा आता है…..क्यों भौजी"

"हा छ्होटे मलिक आपका तो बड़ा मस्त लंड है…मेरे जैसी चुदी हुई में भी…..बसंती को भी चुस्वओ मालिक" एक हाथ से बसंती की चुचि को मसल्ते हुए दूसरे से बसंती का लहनगा उठा उसकी नंगी जाँघो पर हाथ फेरते हुए मुन्ना ने पुचछा "चुसेगी….अच्छा लगेगा…..तेरी भौजी तो इसकी दीवानी है..".

"धात मलिक…..भौजी को इसकी आदत है…"

"शरमाना छोड़…..देख मैं तेरी चुचि दबाता हू तो मज़ा आता है ना.."

"हाँ मलिक……अच्छा लगता है"

"और तेरी चुचि दबाने में मुझे भी मज़ा आता है…वैसे ही लंड चुसेगी तो…."

"हाई मलिक भौजी से चुस्वओ…"

"भौजी तो चुस्ती है….तू भी इसका स्वाद ले….शरमाएगी तो फिर….भौजी छोड़ो इसको तुम ही आ जाओ ये बहुत शर्मा रही है…"कह कर मुन्ना ने अपने हाथ बसंती के बदन पर से हटा लिए और उसको अपनी गोद से हल्के से नीचे उतार दिया. बसंती जो अब तक मज़े के लहर में डूबी हुई थी जब उसका मज़ा थोड़ा हल्का हुआ तो होश आया. तब तक लाजवंती फिर से अपने छ्होटे मालिक का लंड अपने मुँह में ले चुचि मीसवाति हुई मज़ा लूट रही थी. बसंती अपनी ललचाई आँखो से उसको देखने लगी. उसका मन कर रहा था की फिर से जा कर मुन्ना की गोद में बैठ जाए और कहे " मालिक चुचि दबाओ…..आप जो कहोगे मैं करूँगी…". पर चुप चाप वही बैठी रही. लाजवंती ने लंड को मुँह से निकाल हिलाते हुए उसको दिखाया और बोली "तेरी तो किस्मत ही फूटी है…वही बैठी रह और देख-देख कर ललचा…".

"धात भाभी मेरे से नही…."

"मैं क्या कोई मा के पेट से सीख के आई थी…चल आ जा मैं सीखा देती हू…" बसंती का मन तो ललचा ही रहा था. धीरे से सरक कर पास गई. लाजवंती ने मोटा बलिश्त भर का लंड उसके हाथ में थमा दिया और उसके सिर को पकड़ नीचे झुकाती हुई बोली "ले आराम से जीभ निकाल कर सुपरा चाट…फिर सुपरे को मुँह भर कर चूसना….पूरा लंड तेरे मुँह में नही जाएगा अभी….". बसंती लंड का सुपरा मुँह में ले चूसने लगी. पहले धीरे-धीरे फिर ज़ोर ज़ोर से. भौजी को देख आख़िर इतना तो सीख ही लिया था. मुन्ना के पूरे बदन में आनंद की तरंगे उठ रही थी. शहर से आने के बहुत दीनो बाद ऐसा मज़ा उसे मिल रहा था. लाजवंती उसको अंडकोषो को पकड़ अपने मुँह में भर कर चुँला ते हुए चूस रही थी. कुच्छ देर तक लंड चुसवाने के बाद मुन्ना ने दोनो को हटा दिया और बोला


"भौजी ज़रा अपनी ननद के लल्मुनिया के दर्शन तो कर्वाओ…"

"हाई मलिक नज़राना लगेगा….एक दम कोरा माल है आज तक किसी ने नही…"

"तुझे तो दिया ही है…अपनी बसंती रानी को भी खुश कर दूँगा…मैं भी तो देखु कोरा माल कैसा…."

" मलिक देखोगे तो बिना चोदे निकाल दोगे…इधर आ बसंती अपनी ननद रानी को तो मैं गोद मैं बैठा कर…" कहते हुए बसंती को खीच कर अपनी गोद मैं बैठा लिया और उसके लहंगे को धीरे-धीरे कर उठाने लगी. शरम और मज़े के कारण बसंती की आँखे आधी बंद थी. मुन्ना उसकी दोनो टांगो के बीच बैठा हुआ उसके लहंगे को उठ ता हुआ देख रहा था. बसंती की गोरी-गोरी जंघे बड़ी कोमल और चिकनी थी. बसंती ने लहंगे के नीचे एक पॅंटी पहन रखी थी जैसा गाओं की कुँवारी लरकियाँ आम तौर पर पहनती है. लहनगा पूरा उपर उठा पॅंटी के उपर हाथ फेरती लाजवंती बोली "कछि फाड़ कर दिखाउ.."

" जैसे मर्ज़ी वैसे दिखा…..तू कछि फाड़ मैं फिर इसकी चूत फाड़ुँगा"

लाजवंती ने कछि के बीच में हाथ रखा और म्यानी की सिलाई जो थोड़ी उधरी हुई थी में अपने दोनो हाथो की उंगलियों को फसा छर्ररर से कछि फाड़ दी. बसंती की 16 साल की कच्ची चूत मुन्ना की भूखी आँखो के सामने आ गई. हल्के हल्के झांतो वाली एक दम कचोरी के जैसी फूली चूत देख कर मुन्ना के लंड को एक जोरदार झटका लगा. लाजवंती ने बसंती की दोनो टाँगे फैला दी और बसंती की चूत के उपर हाथ फेरती हुई पॅंटी को फाड़ पूरा दो भाग में बाँट दिया और उसकी चूत के गुलाबी होंठो पर उंगली चलाते हुए बोली " छ्होटे मालिक देखो हमारी ननद रानी की लल्मुनिया…" नंगी चूत पर उंगली चलाने से बसंती के पूरे बदन में सनसनी दौड़ गई. सिसकार कर उसने अपनी आँखे पूरी खोल दी. मुन्ना को अपनी चूत की तरफ भूखे भेड़िए की तरह से घूरते देख उसका पूरा बदन सिहर गया और शरम के मारे अपनी जाँघो को सिकोड़ने की कोशिश की मगर लाजवंती के हाथो ने ऐसा करने नही दिया. वो तो उल्टा बसंती की चूत के गुलाबी होंठो को अपनी उंगलियों से खोल कर मुन्ना को दिखा रही थी "हाई मलिक देख लो कितना खरा माल है…ऐसा माल पूरे गाओं में नही…वो तो बड़े चौधरी के बाबूजी पर इतने अहसान है कि मैं आपको मना नही कर पाई….नही तो ऐसा माल कहा मिलता है…"

"हा रानी सच कह रही है तू….मार डाला तेरी ननद ने तो…क्या ललगुडिया चूत है.."

"खाओगे मालिक…चख कर देखो"

"ला रानी खिला....कोरी चूत का स्वाद कैसा होता है…" लाजवंती ने दोनो जाँघो को फैला दिया. मुन्ना आगे सरक कर अपने चेहरे को उसकी चूत के पास ले गया और जीभ निकाल कर चूत पर लगा दिया. चूत तो उसने मामी की भी चूसी थी मगर वो चूड़ी चूत थी कच्ची कोरी चूत उपर जीभ फिराते ही उसे अहसास हो गया की अनचुड़ी चूत का स्वाद अनोखा होता है. लाजवंती ने चूत के होंठो को अपनी उंगली फसा कर खोल दिया. चूत के गुलाबी होंठो पर जीभ चलते ही बसंती का पूरा बदन अकड़ कर काँपने लगा.

"उूउउ…….भौजी….सीई मालिक….."

चूत के गुलाबी होंठो के बीच जीभ घुसाते ही मुन्ना को अनचुड़ी चूत के खारे पानी का स्वाद जब मिला तो उसका लंड अकड़ के उप डाउन होने लगा. मुन्ना ने चूत के दोनो छ्होटे छ्होटे होंठो को अपने मुँह में भर खूब ज़ोर ज़ोर से चूसा और फिर जीभ पेल कर घुमाने लगा. बसंती की अनचुड़ी चूत ने पानी छोड़ना शुरू कर दिया. जीभ को चूत के च्छेद में घुमते हुए उसके भज्नसे को अपने होंठो के बीच कस कर चुँलने लगा. लाजवंती उसकी चुचियों को मसल रही थी. बसंती के पूरे तन-बदन में आग लग गई. मुँह से सिसकारियाँ निकालने लगी. लाजवंती ने पुचछा

"बिटो मज़ा आ रहा है…



" मालिक…ऊऊ उउउस्स्स्स्सिईईईई भौजी बहुत…उफफफ्फ़…भौजी बचा लो मुझे कुच्छ हो जाएगा…उफफफफ्फ़ बहुत गुद-गुड़ी…सीई मालिक को बोलो जीभ हटा ले…हीईीई." लाजवंती समझ गई कि मज़े के कारण सब उल्टा पुल्टा बोल रही है. उसकी चुचियों से खेलती हुई बोली " मालिक…चाटो…अच्छे से…अनचुड़ी चूत है फिर नही मिलेगी…पूरी जीभ पेल कर घूमाओ..गरम हो जाएगी तब खुद…"

मुन्ना भी चाहता था कि बसंती को पूरा गरम कर दे फिर उसको भी आसानी होगी अपना लंड उसकी चूत में डालने में यही सोच उसने अपनी एक उंगली को मुँह में डाल थूक से भीगा कर कच से बसंती की चूत में पेल दिया और टीट के उपर अपनी जीभ लफ़र लफ़र करते हुए चलाने लगा. उंगली जाते ही बसंती सिसक उठी. पहली बार कोई चीज़ उसके चूत के अंदर गई थी. हल्का सा दर्द हुआ मगर फिर कच-कच चलती हुई उंगली ने चूत की दीवारों को ऐसा रगड़ा कि उसके अंदर आनंद की एक तेज लहर दौर गई. ऐसा लगा जैसे चूत से कुच्छ निकलेगा मगर तभी मुन्ना ने अपनी उंगली खीच ली और भज्नाशे पर एक ज़ोर दार चुम्मा दे उठ कर बैठ गया. मज़े का सिलसिला जैसे ही टूटा बसंती की आँखे खुल गई. मुन्ना की ओर असहाय भरी नज़रो देखा.

"मज़ा आया बसंती रानी……"

"हाँ मलिक…सीई" करके दोनो जाँघो को भीचती हुई बसंती सरमाई.

"अर्रे शरमाती क्यों है…मज़ा आ रहा है तो खुल के बता…और चाटू.."

"हाई मालिक….मैं नही जानती" कह कर अपने मुँह को दोनो हाथो से ढक कर लाजवंती की गोद में एक अंगड़ाई ली.

"तेरी चूत तो पानी फेंक रही है"

बसंती ने जाँघो को और कस कर भींचा और लाजवंती की छाती में मुँह छुपा लिया.

मुन्ना समझ गया की अब लंड खाने लायक तैय्यार हो गई है. दोनो जाँघो को फिर से खोल कर चूत के फांको को चुटकी में पकड़ कर मसलते हुए चूत के भज्नाशे को अंगूठे से कुरेदा और आगे झुक कर बसंती का एक चुम्मा लिया. लाजवंती दोनो चुचियों को दोनो हाथो में थाम कर दबा रही थी. मुन्ना ने फिर से अपनी दो उंगलियाँ उसकी चूत में पेल दी और तेज़ी से चलाने लगा. बसंती सिसकने लगी. "हाई मलिक निकल जाएगा…सीई म्‍म्म मालिक "

"क्या निकल जाएगा….पेशाब करेगी क्या….."

"हा मलिक….सीई पेशाब निकल….." मुन्ना ने सटाक से उंगली खींच ली..."ठीक है जा पेशाब कर के आ जा…मैं तब तक भौजी को चोद देता हू…"

लाजवंती ने बसंती को झट गोद से उतार दिया और बोली "हा मलिक……बहुत पानी छोड़ रही है…" उंगली के बाहर निकलते ही बसंती आसमान से धरती पर आ गई. पेशाब तो लगा नही था




साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा

(¨`·.·´¨) Always
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`·.¸.·´ -- raj















































































































































































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