Saturday, April 3, 2010

अजय, शोभा चाची और माँ दीप्ति--पार्ट -11

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अजय, शोभा चाची और माँ दीप्ति--पार्ट -11

अजय के सामने ही शोभा दीप्ति को अपने नीचे दबा एक हाथ से उनकी चूत में पांचों उन्गलियां घुसाये दे रही थी और दूसरे से दीप्ति के चूचों को निचोड़ रही थीं. चाची के होंठ दीप्ति के होंठों से चिपके हुये थे और जीभ शायद कहीं मां के गहरे गले में गोते लगा रही थी. आंख के कोने से शोभा चाची ने अजय को लन्ड मुठियाते देखा तो झटके से जेठानी की चूत को छोड़कर अजय की कलाई थाम ली. अजय का हाथ उसके लन्ड पर से खींच कर चाची दीप्ति के कानों मे फ़ुसफ़ुसाई "दीदी, देखो हमारा अजय क्या कर रहा है?"
इस प्रश्न के साथ ही शोभा ने दीप्ति और अपने बीच में चल रहा अजय का विवाद भी जैसे निपटा दिया. और यही तो उन दोनों के बीच चले लम्बे समलैंगिक संभोग का भी आधार था. जिस्मों की उत्तेजना में कुछ भी स्वीकार कर लेना काफ़ी आसान होता है.
हां, अपने बेटे के सामने दीप्ति पूरी तरह से चरित्रहीन साबित हो चुकी थी परन्तु जब उसने शोभा के हाथ को अजय के विशालकाय लंड को सहलाते देखा तो उसे शोभा में अपनी प्रतिद्वंद्धी नहीं, बल्कि अजय को उसके ही समान प्यार करने वाली एक और मां दिखाई दी.
अजय हालांकि रोज अपनी मां को चोदता था और इस तरह से उसकी शारीरिक जरुरतें सीमा में रहती थी. किन्तु मां सिर्फ़ रात में ही उसके पास आती थीं. उसके बेडरूम के बाहर वो सिर्फ़ उसकी मां थीं. अपनी मां के जाने के बाद ना जाने कितनी ही रातों को अजय ने चाची के बारे बारे में सोच सोच कर अपना पानी निकाला था. अन्जाने में ही सही, एक बार तो चाची की चूत के काफ़ी नजदीक तक उसके होंठ जा ही चुके थे और दोनों ही औरतों ने अपने मुख से उसके लण्ड की जी भर के सेवा भी की है. वो भी उन दोनों के इस कृत्य का बदला चुकाने को उत्सुक था. पर किससे कहे, दोनों ही उससे उम्र में बड़ी होने के साथ साथ भारतीय पारिवारिक परम्परा के अनुसार सम्मानीय थी. दोनों ही के साथ उसका संबंध पूरी तरह से अवैध था. अपने दिल के जज्बातों को दबाये रखने के सिवा और कोई चारा नहीं था उसके पास.
इसीलिये जब उसकी चाची ने मात्र एक चादर में लिपट कर उसके कमरे में प्रवेश किया और अपने भारी भारी स्तनों को मां के कन्धे से रगड़ना शुरु किया तो वो उन पर से अपनी नज़र ही नहीं हटा पाया. शोभा की नाजुक उन्गलियां अजय के तने हुये काले लन्ड पर थिरक रही थीं तो बदन दीप्ति के पूरे शरीर से रगड़ खा रहा था. दोनों ही औरतों के बदन से निकला पसीने खुश्बू अजय को पागल किये जा रही थी. दीप्ति ने जब अजय को शोभा के नंगे शरीर पर आंखें गड़ाये देखा तो उन्हें भी अहसास हुआ कि अजय को भरपूर प्यार देने के बाद भी आज तक उसके दिल में अपनी चाची के लिये जगह बनी हुई है. दोनों औरतों के बदन के बीच में दीप्ति की चूत से निकलता आर्गैज्म का पानी भरपूर चिकनाहट पैदा कर रहा था.
"देखो दीदी" शोभा ने अजय के फ़ूले तने पर नजरें जमाये हुए कहा. कुशल राजनीतिज्ञ की तरह शोभा अब हर वाक्य को नाप तोल कर कह रही थी. दीप्ति को बिना जतलाये उसे अजय को पाना था. अजय को बांटना अब दोनों की ही मजबूरी थी और उसके लिये दीप्ति की झिझक खत्म करना बहुत जरूरी था.
"कैसा कड़क हो गया है?" दीप्ति के चूतरस से सने उस काले लट्ठ को मुट्ठी में भरे भरे ही शोभा धीरे से बोली.
दीप्ति के गले से आवाज नहीं निकल पाई. उत्तेजना में उन्होनें शोभा के भारी नितम्बों को थाम कर उसे अपने ऊपर दबाया ताकि जलती हुई चूत की किसी से तो रगड़ मिले. शोभा ने चेहरा दीप्ति की तरफ़ घुमाया और अपने होंठ दीप्ति के रसीले होंठों पर रख दिये. दीप्ति के होंठों को चूसते हुये भी उसने अजय के लंड को मुठियाना जारी रखा. नजाकत के साथ अजय के सुपाड़े पर अंगूठा फ़िराने लगी.
"चाचीईईईईई", अजय सिसक पड़ा. अंगूठे के दबाव से लंड में खून का दौड़ना तेज हो गया.
"इन दोनों को..." दीप्ति के भरे हुये होंठों पर जीभ की नोंक फ़िराते हुये शोभा बोली "यहां होना चाहिये.". अजय लण्ड पर चाची की कसती मुट्ठी से मचल सा गया.
दीप्ति की तो जान ही निकल गई. हे भगवान, शोभा के सामने उसे अपने बेटे का लंड चूसना होगा. लेकिन उसके कुछ कर पाने से पहले ही शोभा ने उसका सिर पकड़ कर अजय के फ़ुंफ़कारते लंड से इंच भर की दूरी पर रख दिया. इन सब कामों में शोभा पूरी सावधानी बरत रही थी कि किसी को भी कुछ भी जोर जबरदस्ती जैसा ना लगे. अजय ने ऊपर को कमर झटका शोभा कि मुट्ठी को चोदने का प्रयास किया पर तब तक शोभा ने अपनी मुट्ठी खोल सिर्फ़ सहारा देने के लिये लंड को दो उन्गलियों से पकड़ा हुआ था.
दीप्ति ने कुछ बोलना चाहा पर समझ में नहीं आया कि क्या कहे. दिमाग पूरी तरह दिल से हारा हुआ अजय और शोभा के हाथों की कठपुतली सा बना हुआ था.
शोभा का इशारा पा अजय ने मां के चेहरे को आगे खींच कर लण्ड उनके खुले मुंह में उतार दिया. अजय ने तुरन्त ही दोनों हाथों से मां का चेहरा दबा जानवरों की तरह धक्के लगा शुरु कर दिया. लंड मां के गले को अन्दर तक भरा हुआ था. दीप्ति को सहारे के लिये बिस्तर पर अपनी टांगे खोल कर पेट के बल लेटना पड़ा. दीप्ति की चूत अब जी भरकर बहना चाहती थी और उसके हाथ शोभा की उन्गलियों को खोज रहे थे ताकि वापिस उन्हें अपनी चूत में डाल सके. पर शोभा तो पहले से ही मां बेटे का सम्पूर्ण मिलन करवाने में व्यस्त थी. एक हाथ की उन्गलियों से अजय के लन्ड को थामे दूसरे से दीप्ति की गांड को सहला सहला कर जेठानी को और उकसा रही थी. "हां दीदी, शाबास, इसको वैसे ही चूसो जैसे हम इससे अपनी चूत चुसवाना चाहते थे. दीप्ति के लंड भरे फ़ूले हुये गालों से गाल रगड़ती हुई शोभा बोली. अजय चौंका. निश्चित ही दोनों औरते उसके ही बारे में बातें कर रही थी.
आंखों के कोनों से दीप्ति ने शोभा के मोटे मोटे चूचों को झूलते देखा. इस स्थिति में भी वो उन दोनों को जी भर के निचोड़ना मसलना चाहती थी. लेकिन अजय के लंड का स्वाद भी वो छोड़ना नहीं चाहती थी. अजय के हर धक्के को वो अजय और उनकी जिन्दगी का सबसे शानदार पल बना देना चाहती थी. मन शोभा के लिये कृतज्ञ था कि उसने मां को अपने बेटे के और करीब ला दिया है.
अजय जो इतनी देर से शान्त पड़ा हुआ अपनी आंखों के सामने अपनी मां और चाची की उत्तेजक हरकतें देख रहा था, अब फ़िर से सक्रिय हो उठा. थोड़ा सा उठ कर उसने दोनों हाथों से शोभा के उछलते स्तनों को दबोच लिया. शोभा को भी अब खुल कर दोनों मां बेटे के बीच में आना ही पड़ा. अजय के हाथ अपने चूचों पर पड़ते ही शोभा कराह उठी. अजय की गहरी आंखों में झाकते हुये शोभा ने उसके गालों को चूम लिया. इतने सालों तक चाची ने उसे कई बार चूमा था. कहीं वो सब भी तो...अजय ने भी प्रत्युत्तर में जीभ शोभा के चिकने गालों पर फ़िरा दी. अन्दर तक सिहर उठी शोभा चाची. अजय के खुले सिग्नल से उनकी चूत में चिकने पानी का दरिया बनना चालू हो गया.
ठीक इसी तरह से अगर अजय मेरी चूत पर भी जीभ फ़िराये तो? पहली बार तो बस चूम कर रह गया था. आज इसको सब कुछ सिखा दूंगी, यहीं इसकी मां के सामने. और इस तरह से दीप्ति के लिये भी रोज चूत चुसाई का इन्तजाम हो जायेगा. इन्ही ख्यालों में डूबी हुय़ी शोभा दीप्ति की गांड को छोड़ भतीजे के सीने को सहलाने लगी. नाखून अजय के निप्पलों को कुरेद रहे थे और अजय अधीरतापूर्वक अपने फ़ड़कते लंड को मां के चुपड़े मुख में पागलों की भांति पेल रहा था.
दीप्ति ने हाथ बढ़ा अजय के दूसरे निप्पल को मसलना चाहा परन्तु शोभा ने बीच में ही उसका हाथ थाम उसे रोक लिया. क्षण भर के लिये मां बेटे को छोड़ शोभा बिस्तर के सिरहाने पर जा कर बैठ गयी. अजय ने चारों तरफ़ नज़र घुमा चाची को देखने का असफ़ल प्रयास किया. अपनी जांघों को दीप्ति की पीठ पर लपेटते हुये आक्रामक रुप से अजय मां के मुहं को चोदने लगा. आंखें बन्द किये हुये भी उसके दिमाग में बस शोभा ही समाई हुई थी.
माथे पर एक गीले गरम चुम्बन से अजय की आंखें खुलीं. शोभा ने उसके पीछे से आकर ये आसन बनाया था. अपने खुले रेशमी बालों को अजय के सीने पर फ़ैला, होठों को खोल कर उसके होठों से भिड़ा दिया. शोभा चाची ने जब अपनी थूक सनी जीभ अजय के मुख में डाली तो जवाब में अजय ने भी लपककर अपनी जुबान को शोभा चाची के गरम मुख में सरका दिया. दोस्तों सम्भोग के समय होने वाली थूक के आदान प्रदान की ये प्रक्रिया बड़ी ही उत्तेजक एवं महत्वपूर्ण होती है. शोभा के स्तन अजय के सिर पर टिके हुये थे और अजय उनको अपने मुहं में भरने के लिये उतावला हो रहा था. चाची का मंगलसूत्र उसके गालों से टकराकर ठंडा अहसास दे रहा था और साथ ही साथ उनके शादीशुदा होने की बात भी याद दिला रहा था. शायद इन्हीं विपरीत परिस्थितियों से निकल कर वो भविष्य में जबर्दस्त चुदक्कड़ बन पायेगा. और फ़िर भीषण चुदाई का अनुभव पाने के लिये घर की ही दो दो भद्र महिलाओं से ज्यादा भरोसेमंद साथी भला कौन मिलेगा?
चाची अब होठों को छोड़ अब अजय के सीने को चूमना लगीं. आगे सरकने से उनके स्तन अजय के चेहरे पर आ गये थे. जब अजय के होठों ने नादानों की तरह गदराये चूचों पर निप्पलों को तलाशा तो स्तनों मे अचानक उठी गुदगुदी से शोभा हंस पड़ी. कमरे के अन्दर का वातावरण अब तीनों प्राणियों के लिये काफ़ी सहज हो चला था. अजय अब सारी शर्म त्याग करके पूरी तरह से दोनों औरतों के मस्त बदन को भोगने के लिये तैयार हो चुका था. दीप्ति के दिमाग से भी बन्धन, मर्यादा और लज्जा जैसे विचार गायब हो चुके थे. अब उन्हें भी अपने बेटे के साथ साथ किसी तीसरे प्राणी के साथ प्रणय क्रीड़ा करने में भी कोई संकोच ना था.
शोभा की शरारतें भी रुकने का नाम नहीं ले रही थी. अजय के पेट का सहारा ले वो बार बार शरीर ऊपर को उठा अपने चूचों को अजय के होठों की पहुंच से दूर कर देतीं. कभी अजय की जीभ निप्पलों पर बस फ़िर कर रह जाती तो बिचारे और उत्तेजित हो कर कड़क हो जाते. खुद ही उन दोनों तरसते यौवन कपोतों को अजय के मुहं में ठूस देना चाहती थी पर अजय की पूरी दीक्षा के लिये उसे औरतों पर बलपूर्वक काबू पाना भी सिखाना था. और अजय ने यहां भी उसे निराश नहीं किया. चाची की उछल-कूद से परेशान अजय ने मां के सिर को छोड़ कर दोनों हाथों से चाची के झूलते स्तनों को कस कर पकड़ा और दोनों निप्पलों को एक दूसरे से भिड़ा कर एक साथ दातों के बीच में दबा लिया मानों कह रहा हो कि अब कहां जाओगे बच कर.
शोभा आंखें बन्द करके सर उठाये सिसक सिसक कर अजय की करतूतों का मजा ले रही थी. अजय उनका अपना भतीजा आज उनके साथ दुबारा से सहवास रत था.



साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा

(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj



































































































































































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