Saturday, April 3, 2010

गाँव का राजा पार्ट--14

राज शर्मा की कामुक कहानिया हिंदी कहानियाँ
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गाँव का राजा पार्ट--14
गतान्क से आगे...............

आधे घंटे बाद जब शीला देवी को होश आया तो खुद को नंगी लेटी देख हर्बरा कर उठ गई. चुदाई का नशा उतरने के बाद होश आया तो अपने पर बड़ी शरम आई. बगल में बेटा भी नंगा लेटा हुआ था. उसका लटका हुआ लॉरा और उसका लाल सुपाड़ा उसके मन में फिर से गुद-गुड़ी पैदा कर गया. आहिस्ते से बिस्तर से उतर अपने पेटिकोट और ब्लाउस को फिर से पहन लिया और मुन्ना की लूँगी उसके उपर डाल जैसे ही फिर से लेटने को हुई कि मुन्ना की आँखे खुल गई. अपने उपर रखे लूँगी का अहसास उसे हुआ तो मुस्कुराते हुए लूँगी को ठीक से पहन लिया. शीला देवी भी शरमाते सकुचाते उस से थोरी दूर पर लेट गई. दोनो मा-बेटे एक दूसरे से आँख मिलाने की हिम्मत जुटा रहे थे. चुदाई का नशा उतरने के बाद जब दिल और दिमाग़ दोनो सही तरह से काम करने लगा तो अपने किए का अहसास हो रहा था. थोरी देर तक तो दोनो में से कोई नही बोला पर फिर मुन्ना धीरे से सरक कर शीला देवी की ओर घूम गया और उसके पेट पर हाथ रख दिया और धीरे धीरे हाथ चला कर सहलाने लगा. फिर धीरे से बोला “मा….क्या हुआ…” शीला देवी कुच्छ नही बोली तब फिर बोला “इधर देख ना….” शीला देवी मुस्कुराते हुए उसकी तरफ घूम गई. मुन्ना उसके पेट को हल्के-हल्के सहलाते हुए धीरे से उसके पेटिकोट के लटके हुए नारे के साथ खेलने लगा. नारा जहा पर बाँधा जाता वाहा पर पेटिकोट आम तौर पर थोरा सा फटा हुआ होता है या यू समझिए कि गॅप सा बना होता है. नारे से खेलते-खेलते मुन्ना ने अपनी उंगलियाँ धीरे से उसमे सरका कर चलाई तो गुद-गुडी होने पर उसके हाथ को हटाती बोली “क्या करता है…हाथ हटा…” मुन्ना ने हाथ वाहा से हटा कमर पर रख दिया और थोरा और आगे सरक शीला देवी की आँखो में झाँकते हुए बोला “…मज़ा आया…” शरम से शीला देवी का चेहरा लाल हो गया उसकी छाती पर के मुक्का मारती हुई बोली “...चुप…गधा कही का…” मुन्ना समझ गया कि अभी पहली बार है थोरा तो सरमाएगी ही उसकी नाभि में उंगली चलाता हुआ बोला “मुझे तो बहुत मज़ा...आया…बता ना तुझे कैसा लगा…”
“हाई, नही छोरे…तू पहले हाथ हटा…”

“क्यों…अभी तो…बता ना…मा..”

“..धात…छोड़…वैसे आज कोई आम चुराने वाली नही आई..” शीला देवी ने बात बदलने के इरादे से कहा.

“तूने इतनी मोटी-मोटी गलियाँ दी…कि वो सब…”

“चल…मेरी गालियो का…असर…उनपे कहा से….होने वाला…”

“क्यों इतनी मोटी गलियाँ सुन कर कोई भी भाग जाएगा…मैने तो तुझे पहले कभी ऐसी गलियाँ देते नही सुना”

“वो तो…वो तो ऐसे ही…बस…पता नही…शायद गुस्सा…बहुत ज़यादा…”

“अच्छा गुस्से में कोई ऐसी गलियाँ देता है….वैसे बरी…मजेदार गलियाँ दे रही थी…मुझे तो पता ही नही था…”

“….चल हट बेशरम…”

“….. उन बेचारियों को तो तूने….”

“अच्छा…वो सब बेचारियाँ हो गई…सच -सच बता….लाजवंती थी ना…” आँखे नचती शीला देवी ने पुचछा. हस्ते हुए मुन्ना बोला “तुझे कैसे पता…तूने तो उसका बॅंड बजा…” कहते हुए उसके होंठो को हल्के से चूम लिया. शीला देवी उसको पिछे धकेलते हुए बोली “हट….बदमाश…तूने अब तक गाओं में कितनो के साथ…” मुन्ना एक पल खामोश रहा फिर बोला “क्या..मा…किसी के साथ नही..”

“चल झूठे….मुझे सब पता…है सच सच बता” कहते हुए फिर उसके हाथ को अपने पेट पर से हटाया. मुन्ना ने फिर से हाथ को पेट पर रख उसकी कमर पकड़ अपनी तरफ खींचते हुए कहा “साची साची बताउ…”

“हा साची…कितनो के साथ…” कहती हुई उसकी छाती पर हाथ फेरा. मुन्ना उसको और अपनी तरफ खींचता हुआ अपनी कमर को उसके कमर से सटा धीरे से फुसफुसता हुआ बोला “याद नही पर..बारह तेरह होंगी…”.

“हाई…दैयया…इतनी सारी…कैसे करता था मुए…मुझे तो केवल लाजवंती और बसंती का पता था…”कहते हुए उसके गाल पर चिकोटी काटी.

“वो तो तुझे इसलिए पता है ना क्योंकि तेरी जासूस आया ने बताया होगा…बाकियों को तो मैने इधर उधर कही खेत में कभी पास वाले जंगल में कभी नदी किनारे निपटा दिया था….”

“कमीना कही का…तुझे शरम नही आती…बेशरम…” उसकी छाती पर मुक्का मारती बोली.

“अब तो मा को…. ही निपटा…..” कहते हुए उसने शीला देवी को कमर से पकड़ कस कर भींचा. उसका खरा हो चुका लंड सीधा शीला देवी की जाँघो के बीच दस्तक देने लगा. शीला देवी उसकी बाँहो से छूटने का असफल प्रयास करती मुँह फुलाते हुए बोली “छ्चोड़…बेशरम…मुझे फसा कर…बदमास…” पर ये सब बोलते हुए उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान भी तेर रही थी. मुन्ना ने अपनी एक टांग उठा उसके जाँघो पर रखते हुए उसके पैरो को अपने दोनो पैरों के बीच करते हुए लंड को पेटिकोट के उपर से चूत पर सताते हुए उसके होंठो से अपने होंठो को सटा उसका मुँह बंद कर दिया. रसीले होंठो को अपने होंठो के बीच दबोच चूस्ते हुए अपनी जीभ को उसके मुँह में थेल उसके मुँह में चारो तरफ घूमते हुए चुम्मा लेने लगा. कुच्छ पल तो शीला देवी के मुँह से गो गो करके गोगियाने की आवाज़ आती रही मगर फिर वो भी अपनी जीभ को थेल थेल कर पूरा सहयोग करने लगी. दोनो आपस में लिपटे हुए अपने पैरों से एक दूसरे को रगर्ते हुए चुम्मा-चाती कर रहे थे. मुन्ना ने अपने हाथ कमर से हटा उसकी चुचियों पर रख दिया था और ब्लाउस के उपर से उन्हे दबाने लगा. शीला देवी ने जल्दी से अपने होंठो को उसके चुंबन से छुड़ाया, दोनो हाँफ रहे थे और दोनो का चेहरा लाल हो गया था. मुन्ना के हाथों को अपनी चुचियों पर से हटाती हुई बोली “इश्स…क्या करता है…”. मुन्ना ने शीला देवी के हाथ को पकड़ अपनी लूँगी के भीतर घुसा अपना लंड उसके हाथ में पकड़ा दिया. शीला देवी ने अपना हाथ पिछे खींचने की कोशिश की मगर उसने ज़बरदस्ती उसकी मुत्हियाँ खोल अपना गरम तप्ता हुआ खरा लंड उसके हाथ में पकड़ा दिया. लौरे की गर्मी पा कर उसका हाथ अपने आप लंड पर कसता चला गया.

“….तेरा मन नही भरा क्या…” लंड को पूरी ताक़त से मरोर्ति दाँत पीसती बोली.

“हाई…..नही भरा…एक बार और करने दे…ना…” कहते हुए मुन्ना ने उसके घुटनो तक उठे हुए पेटिकोट के भीतर झटके से हाथ घुसा दिया. शीला देवी ने चिहुन्क कर लंड को छ्चोड़ पेटिकोट के भीतर घुसते उसके हाथो को रोकने की कोशिश करते हुए बोली “इससस्स…..क्या करता है…कहा हाथ घुसा रहा…” मुन्ना ज़बरदस्ती हाथ को उसकी जाँघो के बीच ठेलता हुआ बोला “हाई….एक बार और…देख ना कैसे खड़ा है…”

“उफफफ्फ़…हाथ हटा….बहुत बिगड़ गया है तू…” तब तक मुन्ना का हाथ उसके जाँघो के बीच चूत तक पहुच चुका था. चूत की झांतो के बीच से रास्ता खोजते हुए चूत की छेद में बीच वाली उंगली को धकेला. शीला देवी की चूत पनिया गई थी. थोरा सा ठेलने पर ही उंगली कच से बूर में घुस गई. दो तीन बार कच कच उंगली चलाता हुआ मुन्ना बोला “हाई…पनिया गई है…तेरी चू…” शीला देवी उसकी कलाई पकड़ रोकने की कोशिश करती बोली “अफ…छ्चोड़..ना..क्या करता है…वो पानी तो पहले का है…”. एक हाथ से लूँगी को लंड पर हटाता हुआ बोला “पहले का कहा से आएगा…देख इस पर लगा पानी तो कब का सुख गया…”. नंगा खड़ा लंड देखते ही शीला देवी शरमाई आँखे चुराती कनिखियों से देखती हुई बोली “तेरी लूँगी से पुच्छ गया होगा…मेरा अंदर गिरा था कैसे सूखेगा…” कहते हुए मुन्ना के हाथ को पेटिकोट के अंदर से खींच दिया. पेटिकोट जाँघो तक उठा चुका था. लंड को अपने हाथ से पकड़ दिखाता हुआ मुन्ना बोला “….दुबारा…गिराने का दिल कर रहा है…आराम से जाएगा…इस..बार चिकनी हो गई है…तेरी चू…”

“चुप…बेशरम…बहुत देर हो चुकी है…”

“हाई…मया…एक बार में मन नही भरा…एक बार और…”

“रात भर तू यही करता रहता था क्या…”

“…तीन…चार…बार तो करता ही...”

“….मुआ…तभी दिन भर सोता था…रंडियों के चक्कर में”

“….अब उनका चक्कर छ्चोड़ दिया…अब केवल तेरे साथ…ही…एक बार और…” कहते हुए फिर से उसके पेटिकोट के भीतर हाथ घुसाने की कोशिश की.

“हट…नही करवाना….पायल कहा दिया…बिना पायल दिए ले चुका है…एक बार…पहले पायल…दे” कहते हुए उसके हाथ को झटके से हटाती हस दी. मुन्ना भी हस पड़ा और उसकी चुचि को पकड़ कस कर दबा दाँत पीसते बोला “कल ला दूँगा फिर…कम से कम पाँच बार लूँगा…”

“अफ…सीईई….कमिने छ्चोड़….घड़ी देख….क्या टाइम हुआ…” मुन्ना ने घड़ी देखी. सुबह के 4:30 बज रहे थे टाइम का पता ही नही चला था. पहले तो दोनो मा-बेटा पर पर चढ़ने उतरने का नाटक करते रहे फिर कौन पहल करे, इसी लूका-छिपि और एक बार की चुदाई में सुबह के साढ़े चार बज गये. शीला देवी हर्बरा कर उठ गई क्यों कि वो जानती थी कि गाओं में लोग जल्दी सोते है तो जल्दी उठ भी जाते थोरी देर में सड़को पर लोग चलने लगेंगे और थोरा बहुत उजाला भी हो जाएगा ऐसे में पकड़े जाने की संभावना ज़यादा है. मुन्ना को बोली “चल जल्दी बाकी जो करना होगा कल करेंगे….अंधेरा रहते घर….” मुन्ना का मन तो नही था मगर मजबूरी थी चुप-चाप उठ कर अपनी लूँगी ठीक कर खड़ा हो गया. शीला देवी सारी पहन रही थी उसके पास जा कर उसकी कमर पकर पेट सहलाता हुआ बोला “…है बड़ा दिल कर रहा था दुबारा लेने…का….बरी खूबसूरत….”
“छ्चोड़…पकड़े गये तो…फिर कभी मौका भी नही मिलने वाला…चल जल्दी…” और उसका हाथ हटा जल्दी से बाहर की ओर चल दी. मुन्ना भी पिछे पिछे चल पड़ा. तेज कदमो से चलते हुए दोनो घर पहुच चुप-चाप बिना आवाज़ किए अपने-अपने कमरे में चले गये. थोरी देर तक तो दोनो को नींद नही आई, रात की मीठी यादों ने सोने नही दिया मगर फिर दोनो सो गये. सुबह मुन्ना को तो कोई उठाने नही आया मगर शीला देवी को मजबूरन उठना पड़ा. करीब दस बजे दिन में मुन्ना उठा जल्दी से नहा धो कर खाना खाया और फिर बाहर निकल गया. शीला देवी वापस अपने कमरे में घुस गई और जा कर सो गई. शाम में खाना खाने के समय मुन्ना और शीला देवी मिले. चुप चाप खाना खाया फिर अपने अपने कमरो में चले गये. कमरे में घुसने से पहले शीला देवी और मुन्ना की आँखे एक दूसरे से मिली तो मुन्ना ने इशारा करने की कोशिश की मगर शीला देवी ने होंठ बिचका कर के दूसरी तरफ मुँह घुमा लिया. शाम का आठ बज चुके इसलिए लूँगी पहन बैठ गया. बगीचे पर पहुचने के लिए बेताब था मगर शीला देवी तो कमरे में घुसी पड़ी थी. मुन्ना अपने कमरे से निकल कर शीला देवी के कमरे के पास पहुच गया. दरवाज़ा धीरे से खोलते हुए अंदर झाँक कर देखा तो पाया की शीला देवी बिस्तर पर आँखो पर हाथ रख लेटी हुई थी. उसके पास जा कर हिला कर उठाया. शीला देवी ने ओह आह..करते हुए आँखे खोली और पुचछा क्या बात है. मुन्ना मुँह बनाते हुए बोला “क्या…मा…मैं वाहा इंतेज़ार कर रहा था और तुम यहा…”. थोड़ा मुस्कुराती थोड़ा मुँह बनाती बोली “क्यों…इंतेज़ार कर रहा है…”

क्रमशः........................ .........
आपका दोस्त
राज शर्मा

gaanv ka raja paart--14

gataank se aage...............

Adhe ghante baad jab Sheela Devi ko hosh aaya to khud ko nangi leti dekh harbara kar uth gai. Chudai ka nasha utarne ke baad hosh aaya to apne par bari sharam aai. Bagal mein beta bhi nanga leta hua tha. Uska latka hua laura aur uska laal supara uske man mein fir se gud-gudi paida kar gaya. Ahiste se bistar se utar apne petticoat aur blouse ko fir se pahan liya aur Munna ki lungi uske upar daal jaise hi fir se letne ko hui ki Munna ki ankhe khul gai. Apne upar rakhe lungi ka ahsas use hua to muskurate hue lungi ko thik se pahan liya. Sheela Devi bhi sharmate sakuchate us se thori door par let gai. Dono maa-bete ek dusre se ankh milane ki himmat juta rahe the. Chudai ka nasha utarne ke baad jab dil aur dimag dono sahi tarah se kaam karne laga to apne kiye ka ahsas ho raha tha. Thori der tak to dono mein se koi nahi bola par fir Munna dhire se sarak kar Sheela Devi ki orr ghum gaya aur uske pet par haath rakh diya aur dhire dhire haath chala kar sahlane laga. Fir dhire se bola “maa….kya hua…” Sheela Devi kuchh nahi boli tab fir bola “idhar dekh na….” Sheela Devi muskurate hue uski taraf ghum gai. Munna uske pet ko halke-halke sahlate hue dhire se uske petticoat ke latke hue nare ke sath khelne laga. Nara jaha par bandha jata waha par petticoat aam taur par thora sa fata hua hota hai ya yu samajhiye ki gap sa bana hota hai. Nare se khelte-khelte Munna ne apni ungliyan dhire se usme sarka kar chalai to gud-gudi hone par uske hath ko hatati boli “kya karta hai…hath hata…” Munna ne hath waha se hata kamar par rakh diya aur thora aur aage sarak Sheela Devi ki ankho mein jhankte hue bola “…maja aaya…” Sharam se Sheela Devi ka chehra laal ho gaya uski chhati par ke mukka marti hui boli “...chup…gadha kahi ka…” Munna samajh gaya ki abhi pahli baar hai thora to sarmayegi hi uski nabhi mein ungli chalata hua bola “mujhe to bahut maja...aaya…bata na tujhe kaisa laga…”
“hi, nahi chhor…tu pahle haath hata…”

“kyon…abhi to…bata na…maa..”

“..Dhat…chhor…waise aaj koi aam churane wali nahi aai..” Sheela Devi ne baat badalne ke irade se kaha.

“tune itni moti-moti galiyan di…ki wo sab…”

“chal…meri galiyon ka…asar…unpe kaha se….hone wala…”

“kyon itni moti galiyan sun kar koi bhi bhag jayega…maine to tujhe pahle kabhi aisi galiyan dete nahi suna”

“wo to…wo to aise hi…bas…pata nahi…sayad gussa…bahut jayada…”

“accha gusse mein koi aisi galiyan deta hai….waise bari…majedar galiyan de rahi thi…mujhe to pata hi nahi tha…”

“….chal hat besharam…”

“….. un bechariyon ko to tune….”

“Achha…wo sab bechariyan ho gai…sach -sach bata….Lajwanti thi na…” ankhe nachati Sheela Devi ne puchha. Haste hue Munna bola “tujhe kaise pata…tune to uska band baja…” kahte hue uske hontho ko halke se choom liya. Sheela Devi usko pichhe dhakelte hue boli “hat….badmash…tune ab tak gaon mein kitno ke saath…” Munna ek pal khamosh raha fir bola “kya..maa…kisi ke saath nahi..”

“chal jhoothe….mujhe sab pata…hai sach sach bata” kahte hue fir uske hath ko apne pet par se hataya. Munna ne fir se haath ko pet par rakh uski kamar pakar apni taraf khinchte hue kaha “sachi sachi batau…”

“ha sachi…kitno ke sath…” kahati hui uski chhati par haath fera. Munna usko aur apni taraf khinchta hua apni kamar ko uske kamar se sata dhire se fusfusata hua bola “yaad nahi par..barah terah hongi…”.

“hi…daiyya…itni sari…kaise karta tha mue…mujhe to kewal Lajwanti aur Basanti ka pata tha…”kahte hue uske gaal par chikoti kati.

“wo to tujhe isliye pata hai na kyonki teri jasus aaya ne bataya hoga…bakiyon ko to maine idhar udhar kahi khet mein kabhi pass wale jangal mein kabhi nadi kinare nipta diya tha….”

“kamina kahi ka…tujhe sharam nahi aati…besharam…” uski chhati par mukka marti boli.

“ab to maa ko…. hi nipta…..” kahte hue usne Sheela Devi ko kamar se pakar kas kar bheencha. Uska khara ho chuka lund sidha Sheela Devi ki jangho ke beech dastak dene laga. Sheela Devi uski banho se chhutne ka asfal prayas karti munh fulate hue boli “chhor…besharam…mujhe fasa kar…badmas…” par ye sab bolte hue uske chehre par halki muskan bhi tair rahi thi. Munna ne apni ek tang utha uske jangho par rakhte hue uske pairo ko apne dono pairon ke beech karte hue lund ko petticoat ke upar se choot par satate hue uske hontho se apne hontho ko sata uska munh band kar diya. Rasile hontho ko apne hontho ke beech daboch chuste hue apni jeebh ko uske munh mein thel uske munh mein charo taraf ghumate hue chumma lene laga. Kuchh pal to Sheela Devi ke munh se go go karke gogiyane ki aawaz aati rahi magar fir wo bhi apni jeebh ko thel thel kar pura sahyog karne lagi. Dono apas mein lipte hue apne pairon se ek dusre ko ragarte hue chumma-chati kar rahe the. Munna ne apne haath kamar se hata uski chuchiyon par rakh diya tha aur blouse ke upar se unhe dabane laga. Sheela Devi ne jaldi se apne hontho ko uske chumban se chhuraya, dono hanf rahe the aur dono ka chehra laal ho gaya tha. Munna ke hathon ko apni chuchiyon par se hatati hui boli “iss…kya karta hai…”. Munna ne Sheela Devi ke hath ko pakar apni lungi ke bheetar ghusa apna lund uske haath mein pakra diya. Sheela Devi ne apna hath pichhe khinchne ki koshish ki magar usne jabardasti uski muthhiyan khol apna garam tapta hua khara lund uske haath mein pakra diya. Laure ki garmi paa kar uska haath apne aap lund par kasta chala gaya.

“….tera man nahi bhara kya…” lund ko puri takat se marorti daant pisti boli.

“hi…..nahi bhara…ek baar aur karne de…na…” kahte hue Munna ne uske ghutno tak uthe hue petticoat ke bheetar jhatke se hath ghusa diya. Sheela Devi ne chihunk kar lund ko chhor petticoat ke bheetar ghusti uske haatho ko rokne ki koshish karte hue boli “issss…..kya karta hai…kaha haath ghusa raha…” Munna jabardasti haath ko uski jangho ke beech thelta hua bola “hi….ek baar aur…dekh na kaise khara…”

“uffff…haath hata….bahut bigar gaya hai tu…” tab tak Munna ka haath uske jangho ke beech choot tak pahuch chuka tha. Choot ki jhanto ke beech se rasta khojte hue choot ki chhed mein beech wali ungli ko dhakela. Sheela Devi ki choot paniya gai thi. Thora sa thelne par hi ungli kach se boor mein ghus gai. Do teen baar kach kach ungli chalata hua Munna bola “hi…paniya gai hai…teri choo…” Sheela Devi uski kalai pakar rokne ki koshish karti boli “uff…chhor..na..kya karta hai…wo pani to pahle ka hai…”. Ek haath se lungi ko lund par hatata hua bola “pahle ka kaha se aayega…dekh is par laga pani to kab ka sukh gaya…”. Nanga khara lund dekhte hi Sheela Devi sharmai ankhe churati kanikhiyon se dekhti hui boli “teri lungi se puchh gaya hoga…mera andar gira tha kaise sukhega…” kahte hue Munna ke haath ko petticoat ke andar se kheench diya. Petticoat jangho tak utha chuka tha. Lund ko apne hath se pakar dikhata hua Munna bola “….dubara…girane ka dil kar raha hai…aaram se jayega…is..baar chikni ho gai hai…teri choo…”

“chup…besharam…bahut der ho chuki hai…”

“hi…maa…ek baar mein man nahi bhara…ek baar aur…”

“raat bhar tu yahi karta rahta tha kya…”

“…teen…char…baar to karta hi...”

“….mua…tabhi din bhar sota tha…randiyon ke chakkar mein”

“….ab unka chakkar chhor diya…ab kewal tere sath…hi…ek baar aur…” kahte hue fir se uske petticoat ke bheetar hath ghusane ki koshish ki.

“hat…nahi karwana….payal kaha diya…bina payal diye le chuka hai…ek baar…pahle payal…de” kahte hue uske haath ko jhatke se hatati has di. Munna bhi has para aur uski chuchi ko pakar kas kar daba daant piste bola “kal la dunga fir…kam se kam paanch baar lunga…”

“uff…seeeeee….kamine chhor….ghari dekh….kya time hua…” Munna ne ghari dekhi. Subah ke 4:30 baj rahe the time ka pata hi nahi chala tha. Pahle to dono maa-beta per par chadhne utarne ka natak karte rahe fir kaun pahal kare, isi luka-chhipi aur ek baar ki chudai mein subah ke sadhe chaar baj gaye. Sheela Devi harbara kar uth gai kyon ki wo janti thi ki gaon mein log jaldi sote hai to jaldi uth bhi jate thori der mein sarko par log chalne lagenge aur thora bahut ujala bhi ho jayega aise mein pakre jane ki sambhavna jayada hai. Munna ko boli “chal jaldi baki jo karna hoga kal karenge….andhera rahte ghar….” Munna ka man to nahi tha magar majboori thi chup-chap uth kar apni lungi thik kar khara ho gaya. Sheela Devi saree pahan rahi thi uske pass ja kar uski kamar pakar pet sahlata hua bola “…hi bara dil kar raha tha dubara lene…ka….bari khoobsurat….”
“Chhor…pakre gaye to…fir kabhi mauka bhi nahi milne wala…chal jaldi…” aur uska haath hata jaldi se bahar ki orr chal di. Munna bhi pichhe pichhe chal para. Tej kadmo se chalte hue dono ghar pahuch chup-chap bina aawaz kiya apne-apne kamre mein chale gaye. Thori der tak to dono ko neend nahi aai, raat ki mithi yaadon ne sone nahi diya magar fir dono so gaye. Subah Munna ko to koi uthane nahi aaya magar Sheela Devi ko majbooran uthna para. Karib das baje din mein Munna utha jaldi se naha dho kar khana khaya aur fir bahar nikal gaya. Sheela Devi wapas apne kamre mein ghus gai aur ja kar so gai. Sham mein khana khane ke samay Munna aur Sheela Devi mile. Chup chap khana khaya fir apne apne kamro mein chale gaye. Kamre mein ghusne se pahle Sheela Devi aur Munna ki ankhe ek dusre se mili to Munna ne ishara karne ki koshish ki magar Sheela Devi ne honth bichka kar ke dusri taraf munh ghuma liya. Sham ka aath baj chuke isliye lungi pahan baith gaya. Bagiche par pahuchne ke liye betab tha magar Sheela Devi to kamre mein ghusi pari thi. Munna apne kamre se nikal kar Sheela Devi ke kamre ke pass pahuch gaya. Darwaza dhire se kholte hue andar jhank kar dekha to paya ki Sheela Devi bistar par ankho par hath rakh leti hui thi. Uske paas ja kar hila kar uthaya. Sheela Devi ne oh aah..karte hue ankhe kholi aur puchha kya baat hai. Munna munh banate hue bola “kya…maa…main waha intezar kar raha tha aur tum yaha…”. Thora muskurati thora munh banati boli “kyon…intezar kar raha hai…”

kramshah......................
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आपका दोस्त राज शर्मा
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा

(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj

































































































































































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