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गाँव का राजा पार्ट--15
गतान्क से आगे..........................
“क..क्या मतलब बगीचे पर नही जाना क्या…”
“तू जा…मैं वाहा जा कर क्या करूँगी…” आँखे नचाती बोली.
“ आमो की रखवाली कौन करेगा….” मुन्ना समझ गया कि ये फिर नाटक कर रही है.
“क्यों तू तो कर ही लेता है…जा और अपनी सहेलियों को भी बुला ले…”
“अब…चल ना…देख कैसे तड़प रहा है मेरा…लौरा..एयेए” चिरोरी करते हुए मुन्ना लंड को लूँगी के उपर से सहलाते हुए बोला.
“तड़प रहा तो….खुद ही शांत कर…मैं नही आती….” मुन्ना एक पल उसे देखता रहा फिर चिढ़ कर बोला. “ठीक है मत चल…मैं जा रहा हू…कोई ना कोई तो मिल ही जाएगी…” और फिर तेज़ी के साथ बाहर निकल गया. उसे पहले पता होता तो बसंती को बुला लेता, मगर आज तो कोई जुगाड़ नही था. फिर भी गुस्से में बाहर निकल सीधा बगीचे पर पहुँचा और दरवाज़ा बंद कर बिस्तर पर लेट गया. नींद तो आ नही रही थी. चुप-चाप वही लेटा करवटें बदलने लगा.
मुन्ना के बाहर निकल जाने के थोरी देर तक शीला देवी कुच्छ सोचती रही, फिर धीरे से उठी और बाहर निकल गई. उसके कदम अपने आप बगीचे की तरफ बढ़ते चले गये. कुच्छ समय बाद वो खलिहान के दरवाजे पर थी. दरवाजे पर खाट-खाट की आवाज़ सुन मुन्ना बिस्तर से उच्छल कर नीचे उतरा. कौन हो सकता है सोचते हुए उसने दरवाजा खोल दिया. सामने शीला देवी खड़ी थी पसीने से लत-पथ, लगता है जैसे दौरती हुई आई थी. उसकी साँसे तेज चल रही थी और सांसो के साथ उसकी छातियाँ उपर नीचे हो रही थी. नज़रे नीचे की ओर झुकी हुई थी. मुन्ना ने एक पल को उपर से नीचे शीला देवी को निहारा फिर चेहरे पर मुस्कान लाते हुए बोला “बाहर ही खरी रहोगी या अंदर आओगी”
एक पल रुक कर धीरे से वो अंदर आ गई और धीरे धीरे चलते हुए बिस्तर पर पैर लटका कर बैठ गई. फिर मासूम सा चेहरा बना मायूस आवाज़ में बोली “बेटा ये ठीक नही है… मैं नही चाहती की तू रंडियों के चक्कर में पड़े…ये सब बंद कर दे….” .
“मुझे कौन सा उनके साथ मज़ा आता है…पर तू तो…जब कि कल…”
“मैं तेरी मा हू…मुझे कल रात से खुद पर शरम आ रही है….इसलिए तुझे दुबारा करने से रोका…अंधी हो गई थी…ये ठीक नही है…..फिर तू उन रंडियों के साथ करता था मुझे बहुत बुरा लगता था…”
“तुझे मज़ा नही आया..था…सच बता…. तुझे मेरी कसम…”
“हा…आया था…बहुत मज़ा आया….पर…” शरम से लाल होती शीला देवी बोली. शीला देवी को थोरा सा खिसका कर उसके पास बिस्तर बैठ उसकी जाँघो पर हाथ रख कर मुन्ना उसे समझाने वाले अंदाज में बोला “तू गाओं में रह कर कुएँ की मेंढक बन गई है….दुनिया में सब कितना मज़ा करते है…फिर गाओं भर की जासूस वो बुढ़िया तो तेरे पास आती है, क्या वो तुझे नही बताती कि लोगो के घरो में क्या-क्या होता है.”
“आती है…और बताती भी है मगर…फिर भी हम औरो के जैसा क्यों…”
“तो फिर क्यों आई है भागती हुई”
“मैं तुझे रोकने आई हूँ....मैं नही चाहती तू औरो के जैसे बन जाए”
“बात उनके जैसा बन ने की नही. बात मज़े करने की है. कोई और हमारे बदले मज़ा नही कर सकता ना ही हम किसी को बताने जा रहे है कि हम कितने मज़े करते है. लोगो को अपना मज़ा करने दो हम अपना करते है. घर के अंदर कोई देखने आता है?…खुल कर मज़ा लेगी तभी सुखी रहेगी….शहर में तो….. ”
“तू मुझे ग़लत बाते सीखा रहा है…गंदी औरत बना रहा है…”
“…जिंदगी का असली मज़ा इसी में है…”
“पर तू मेरा…बेटा है…तेरे साथ…ये ग़लत है.
“मतलब मेरे साथ नही करवाएगी…बाहर के किसी से…”
“तू बात को पता नही कहाँ से कहाँ ले जाता है…देख बेटा ऐसा मत…कर…मुझे किसी से नही करवाना और उन रंडियों का चक्कर…ठीक नही…तू भी छ्चोड़ दे”
“तू अपनी सारी उठा कर रखेगी तो मैं बाहर क्यों मुँह मारूँगा…”
“बहुत बरी ….कीमत माँग रहा है….”
“तेरी छेद घिस जाएगी क्या…फिर तुझे भी तो मज़ा आएगा…बाहर करवाएगी तो बदनामी होगी…घर में…खुल कर मज़ा लूट…नही तो…जाम हो जाएगा…छेद…फिर उंगली भी डालेगी तो नही घुसेगी…” मुन्ना का ये भाषण सुन कर शीला देवी हस्ने लगी अब पर उसको ये बात भी समझ आ गई वो मुन्ना को नही रोक सकती. वो बाहर जाएगा ही. कुच्छ पल सोचती रही फिर समझ में आ गया कि अच्छा होगा वो अपनी छेद की सेवा उस से करवाती रहे. उसके दोनो हाथ में लड्डू रहेगा बेटा भी कब्ज़े में रहेगा और उसकी खुजली भी शांत रहेगी. इतना सोच मुस्कुराते हुए बोली “घिसेगी तो नही पर ढीली ज़रूर हो जाएगी…”
दोनो की हसी निकल गई. मुन्ना समझ गया कि सन्सय के बदल छट गये. कल रात से शीला देवी के मन में जो उथल-पुथल चल रहा था वो सब अब शायद ख़तम हो गया था. कल रात जो मज़ा आया था उसकी याद ने शीला देवी के बदन को एक बार फिर से सिहरा दिया. दोनो चुप थे और शीला देवी सिर नीचे किए अपनी चूत में उठ रहे झन-झनाहट और मचल रहे कीड़ो को महसूस कर रही थी. डुप्दुपति चूत को जाँघो के बीच कसती हुई धीरे से बोली “अब किसी रंडी के पास मुँह मारने तो नही जाएगा…”
“नही जौंगा बाबा…लेकिन तू पहले बोल खुल के मज़ा लेगी….”
“हा लूँगी…अब खुल के लूँगी…पर तू…”
“अरी….बोल तो दिया नही जाउन्गा…”
“चल झूठे….तेरा कोई भरोसा नही कसम ले पहले…”
“ठीक चल…तेरी कसम…”
“ना मेरी कसम क्यों खा…रहा है…” मुँह बिचकाती बोली. शीला देवी की आवाज़ से लग रहा था कि अब वो पूरे मज़े के लिए तैय्यार है. चेहरे पर और बोलने के अंदाज में चंचलता आ चुकी थी. मुन्ना कुच्छ पल सोचता रहा फिर बोला “ तब किसकी…”
“….अपने लूँ…ड्ड की कसम खा ना…” मुस्कुराती हुई बोली. ये बोलते हुए चौधरैयन का चेहरा शरम से लाल हो गया और गालो में गड्ढे पर गये. मुन्ना उपर से नीचे तक सन सना गया. शीला देवी ने लंड बोला और मुन्ना की रीढ़ की हड्डी का खून दौरता हुआ सीधा उसके लौरे में उतरता चला गया. शीला देवी की आँखो में झाँकते हुए तपाक से अपनी लूँगी को उठा खरे लंड को हाथ में पकड़ उसकी चमरी उलट कर चमचमाते सुपरे को दिखाता शीला देवी के पास खरा हो बोला “ हाई….इस लनन्ड की कसम जो तेरी चूत छ्चोड़ किसी और की….” कहते हुए आगे झुक कर उसकी गाल पर दाँत काट ते हुए दूसरे हाथ से उसकी एक चुचि को ज़ोर से दबा दिया. शीला देवी “उई मा…” खहते हुए उच्छल कर बैठ गई और मुन्ना को पिछे धकेला.
“इससस्स कितनी ज़ोर से काट लिया मुए…”
“हाई…यही पटक कर ले लूँगा…अफ….ऐसे ही खुल कर मज़ा लेगी तो….”.
कहते हुए मुन्ना ने शीला देवी के चूतर पर चिकोटी काटी. शीला देवी ने एक घूँसा उसकी छाती पर मारा और बोली “हट कुत्ते…भाग यहाँ से…”
लंड लूँगी में फरफारा रहा था. आज मुन्ना ने इरादा कर लिया था कि आराम से मज़ा लूँगा. एक-एक अंग को चाट-चाट कर, काट कर पहले खाउन्गा फिर रात भर गद्देदार चूत में लंड पेल कर चोदुन्गा. साली को आज सोने नही दूँगा.
शीला देवी की कमर में हाथ डाल उस से लिपट कर उसके कान की लौ को मुँह से पकड़ फुसफुसते हुए बोला “हाई बहुत तडपाया है…सुबह से…किसी काम में मन नही लग रहा था….” मुन्ना का हाथ लगते ही शीला देवी का पूरा बदन सिहर गया. मुन्ना कान को चूमने के बाद धीरे से उसकी गर्दन और उसके पिछले भाग पर अपने होंठो को चलाते हुए चूम रहा था. आज शीला देवी ने पीठ पर बटन लगने वाला ब्लाउस पहन रखा था हाथ को धीरे धीरे उसकी पीठ पर सरकाते हुए आहिस्ता आहिस्ता मुन्ना एक-एक बटन खोलने लगा. ब्लाउस के बटन खुलते ही शीला देवी को जैसे होश आया मुन्ना को थोरा परे धकेल्ति हुई बोली “हाई रुक तो ज़रा… हाथ हटा….”
“हाई तो और क्या करू....अब नही रुका जाता… “.
इस पर शीला देवी मुँह बनाती हुई बोली “अर्रे…दरवाजा तो बंद कर ले कुत्ते.....”
“ओह…अभी बंद कर के आता हू…एक चुम्मा दे…”
“नही तू बंद कर के आ…और फिर पहले मेरा पायल दे….फिर माँगना चुम्मा….” शीला देवी ने अपने सारी के पल्लू को ठीक करते हुए मुँह बनाते हुए कहा जैसे गुस्से में हो.
“तो ये बोल ना…कि तुझे पायल चाहिए…”
“वो तो चाहिए ही….रंडियों को देगा और मा…को देने में….तुम सब बाप बेटे …एक जैसे…” कहते हुए उसने मुन्ना को धकेल कर बिस्तर से उतार दिया. मुन्ना दरवाज़ा बंद करने की जगह खोल कर बाहर निकल चारो तरफ देखने लगा. पूरे बगीचे में घनघोर अंधकार फैला हुआ था. आसमान में बदल छाए हुए थे और इसलिए चाँद भी उनके पिछे च्छूपा हुआ था. बारिश के आसार थे. दूर दूर तक एक कुत्ता भी नज़र नही आ रहा था. लूँगी के उपर से अपने लंड को पकड़ ज़ोर से हिलाते हुए अपने हाथ से ही लंड को मरोड़ कर धीरे से बोला साली….कल से तरप रहा हू…मा की चूत…हाई चौधरैयन आज तो तेरी फार दूँगा…. अचानक उसके होंठो पर एक मुस्कान फैल गई और और अपनी जेब में रखे पायल को उसने बाहर निकाल लिया और वही खुले में एक पेड़ के नीचे खड़े हो पेशाब करने के बाद तेज़ी से अंदर घुसा और दरवाजा बंद कर पिछे मुड़ा तो देखा कि शीला देवी कही नज़र नही आई अलबत्ता बाथरूम से तेज सिटी के जैसी आवाज़ आ रही थी. बाथरूम का दरवाज़ा पूरी तरह से बंद नही था. मुन्ना दबे पाव बाथरूम में घुस गया. शीला देवी कमोड के उपर बैठी मूतने में व्यस्त थी, पेटिकोट पिछे से पूरा उठा हुआ था और उसके मस्ताने गद्देदार गोरे गोरे चुट्टर सॉफ दिख रहे थे. चुटटर थोरा उठा हुआ था इसलिए पिछे से उसकी चूत की झांते भी थोरी दिख रही थी, गांद का छेद दोनो भारी चुटटरो के बीच दबा हुआ था. मुन्ना के लंड को झंझणा देने के लिए इतना काफ़ी था. दिल में आया कि पिछे जा कर गांद में लंड सटा दे. दबे पाव शीला देवी के पिछे पहुच उसकी पेशाब करती हुई चूत को देखने की इच्छा से अपने सिर को आगे झुकाया ही था कि शीला देवी उठ कर खड़ी हो गई. मुन्ना को देखते ही चौंक गई शरम और गुस्से से मुन्ना को धकेला “उईईइ….मा..यहा क्या कर रहा है …डरा दिया…मैने सोचा पता नही कौन आ गया….कमीना..”
“देखने आया था तू कैसे मूत….ती है…” हस्ते हुए मुन्ना बोला.
“शरम नही आती…” फ्लस चलाती शीला देवी बोली.
“कल ही देखी थी तेरी…. जिस से तू मूत ती है…”
“उफफफ्फ़….मुए…बेशरम गंदी बाते करता है….सुअर कही का…”
“अब यही खरा रहेगा क्या....” मुन्ना को धकेल्ति बाथरूम से बाहर निकलती और खुद भी निकलती हुई बोली.
“खरा तो ना जाने कब से है….” अपनी लूँगी के उपर से लंड पकड़ के दिखाता हुआ बोला.
“हट मुए…बाहर निकलने के लिए बोल रही हू …चल…” बोलती हुई वो बाथरूम से बाहर निकल गई.
शीला देवी ने इस समय केवल पेटिकोट और ब्रा पहन रखा था. मुन्ना जब दरवाजा बंद करने गया था तभी उसने सारी और ब्लाउस उतार दिया था. ब्रा काले रंग का नॉर्मल सा था बहुत ज़यादा स्टाइलिश नही था. इसलिए चुचे पूरे ढके हुए थे. खाली बीच वाली गोरी घाटी नज़र आ रही थी. काले रंग की एकदम फिट पेटिकोट नाभि से नीचे बँधी हुई थी और चुटटरो से चिपकी हुई उसके मस्ताने गथिले चुटटरो का आकार बता रही थी. शीला देवी भुन-भुनाते हुए बिस्तर पर पैर लटका कर बैठ गई. मुन्ना कुत्ते की तरह जीभ लपलपता उसके पिछे पिछे गया और बिस्तर पर बैठ गया और उसकी कमर में हाथ डाल कर कहा “…चल गुस्सा छ्चोड़…”
“नही तू…बहुत गंदा लड़का है…”
“अरे मा ग़लती हो गई….बरी इच्छा हो रही थी….. कि देखे कैसे करती हो..”
“क्या कैसे….करते हू…”
“पेशाब….और….क्या…”
“छि…गंदे…पता नही कहा से सीख कर आ गया है” मुँह बनाती हाथ चमकती हुई शीला देवी बोली.
अरे मा तू क्या जाने जब मे मामी के यहा था तो मैं अक्सर राज शर्मा के ब्लॉग कामुक-कहानियाँ ब्लॉगस्पॉटडॉट कॉम और
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“धात…बेशरम वो तो औरते जब भी पेशाब करती है तब…आवाज़…”
“हा..वही…ये आवाज़ सुनते ही ना मेरा तो एकदम खड़ा हो जाता…”
“क्या…मतलब…. पेशाब करने की आवाज़ सुन के…छि…कितना कमीना हो गया है तू…”
“हाई..अब जो भी कह ले…देख ना…कैसे खड़ा है…” कहते हुए अपने लूँगी के उपर हाथ लगा लंड दिखाया और अपने हाथ को उसकी ब्रा मे कसी चुचियों पर ले गया. शीला देवी ने बुरा सा मुँह बनाते हुए उसका हाथ हटा दिया. मुन्ना फिर से अपने हाथ को उसकी ब्रा पर ले गया और उसकी बाई चुचि को मुट्ठी में पकड़ ज़ोर से दबाया. शीला देवी को ज़ोर से दर्द हुआ “उई…मा…”करते हुए चौंक गई और मुन्ना को परे धकेला. अपने हाथ से अपनी छाती सहलाती हुई बोली “नोच लेगा क्या…अफ…जुंगली कही का…”
“मा….खोल ना, अब नही खोलेगी तो फाड़ दूँगा तेरा ब्लाउस…” मुन्ना फिर से चिरोरी करते बोला. पर शीला देवी ने उसका हाथ झटक दिया और बोली “ना पहले…पायल दे…उसके बिना हाथ नही लगाने दूँगी…”
“कमाल करती है…पायल के पिछे पड़ी है…”
“रंडी तो तूने बना दिया है….अब तो बिना…पायल के…”
“तो फिर वैसे ही पटक कर लूँगा….”
“ले लेना हरामी….पर पहले पायल दे…..”
“तो ले….” कहते हुए मुन्ना उसके सामने खड़ा हो गया और अपनी लूँगी को खोल कर नीचे गिरा दिया. चौधरायण ने जब देखा तो उसके मुँह से एक तेज किलकरी निकल गई….”उईईइ….मा……मुए कितना कमीना है तू……” मुन्ना का दस इंच का लंड एक दम सीधा खड़ा था अपने लाल चमचमते सुपरे से लार टपका रहा था. पर खास बात ये थी मुन्ना ने पायल को लंड के चारो तरफ लपेट रखा था. उसकी इसी बदमासी ने शीला देवी के मुँह से किलकरी निकाल दी थी. लंड के चारो तरफ पायल लपेटे मुन्ना कमर पर हाथ रखे शान से खड़ा था.
“ले..ले अपना पायल….” कहते हुए उसने एक हाथ से शीला देवी का हाथ पकड़ा और उसको अपने लंड पर रख दिया. मुन्ना की ये अदा शीला देवी को पूरी तरह से मदहोश कर गई. लंड के सुपरे को पकड़ आहिस्ता-आहिस्ता उसने उसके चारो तरफ लपेटा हुआ पायल उतारा और मुन्ना को अपनी बड़ी बड़ी कजरारी आँखो से घूरते अपने एक पैर को घुटने के पास से हल्का सा मोड़ कर बिस्तर पर रखा और फिर अदा के साथ धीरे से अपने अपने पेटिकोट को घुटनो तक उपर उठा कर अपनी गोरी पिंदलियों में पतली सी सोने की पायल पहन ने लगी. उसकी एक चुचि उसके घुटनो से दबी हुई ब्रा के बाहर आने को उतावली हुई थी. शीला देवी की इस अदा ने मुन्ना को ऐसा घायल किया कि उसका दिल कर रहा था इसकी तस्वीर निकाल कर हमेशा के लिए सन्जो ले. अपने काँपते हाथो से उसके तलवे को पकड़ पैर की उंगलियों पर हाथो को फेरा. शीला देवी ने पायल पहन लिया था
क्रमशः........................
gaanv ka raja paart--15
gataank se aage..........................
“k..kya matlab bagiche par nahi jana kya…”
“tu ja…main waha ja kar kya karungi…” ankhe nachati boli.
“ aamo ki rakhwali kaun karega….” Munna samajh gaya ki ye fir natak kar rahi hai.
“kyon tu to kar hi leta hai…ja aur apni saheliyon ko bhi bula le…”
“ab…chal na…dekh kaise tarap raha hai mera…laur..aaa” chirori karte hue munna lund ko lungi ke upar se sahlate hue bola.
“tarap raha to….khud hi shant kar…main nahi aati….” Munna ek pal use dekhta raha fir chidh kar bola. “thik hai mat chal…main ja raha hu…koi na koi to mil hi jayegi…” aur fir teji ke saath bahar nikal gaya. Use pahle pata hota to Basanti ko bula leta, magar aaj to koi jugar nahi tha. Fir bhi gusse mein bahar nikal sidha bagiche par pahuncha aur darwaza band kar bistar par let gaya. Neend to aa nahi rahi thi. Chup-chap wahi leta karwate badalne laga.
Munna ke bahar nikal jane ke thori der tak Sheela Devi kuchh sochti rahi, fir dhire se uthi aur bahar nikal gai. Uske kadam apne aap bagiche ki taraf badhte chale gaye. Kuchh samay baad wo khalihan ke darwaje par thi. Darwaje par khat-khat ki aawaz sun Munna bistar se uchhal kar niche utara. Kaun ho sakta hai sochte hue usne darwaja khol diya. Samne Sheela Devi khari thi pasine se lath-path, lagta hai jaise daurti hui aai thi. Uski sanse tej chal rahi thi aur sanso ke saath uski chhatiyan upar niche ho rahi thi. Nazre niche ki orr jhuki hui thi. Munna ne ek pal ko upar se niche Sheela Devi ko nihara fir chehre par muskan late hue bola “bahar hi khari rahogi ya andar aaogi”
Ek pal ruk kar dhire se wo andar aa gai aur dheere dheere chalet hue bistar par pair latka kar baith gai. Fir masum sa chehra bana mayus aawaz mein boli “beta ye thik nahi hai… main nahi chahti ki tu randiyon ke chakkar mein pare…ye sab band kar de….” .
“mujhe kaun sa unke saath maja aata hai…par tu to…jab ki kal…”
“main teri maa hu…mujhe kal raat se khud par sharam aa rahi hai….isliye tujhe dubara karne se roka…andhi ho gai thi…ye thik nahi hai…..fir tu un randiyon ke sath karta tha mujhe bahut bura lagta tha…”
“tujhe maja nahi aaya..tha…sach bata…. tujhe meri kasam…”
“ha…aaya tha…bahut maja aaya….par…” sharam se laal hoti Sheela Devi boli. Sheela Devi ko thora sa khiska kar uske pass bistar baith uski jangho par hath rakh kar Munna use samjhane wale andaj mein bola “tu gaon mein rah kar kuen ki mendhak ban gai hai….duniya mein sab kitna maja karte hai…fir gaon bhar ki jasus wo budhiya to tere pass aati hai, kya wo tujhe nahi batati ki logo ke gharo mein kya-kya hota hai.”
“aati hai…aur batati bhi hai magar…fir bhi ham auro ke jaisa kyon…”
“to fir kyon aai hai bhagti hui”
“main tujhe rokne aai hun....main nahi chahti tu auro ke jaise ban jaye”
“baat unke jaisa ban ne ki nahi. Baat maje karne ki hai. Koi aur hamare badle maja nahi kar sakta na hi ham kisi ko batane ja rahe hai ki ham kitne maje karte hai. Logo ko apna maja karne do ham apna karte hai. Ghar ke andar koi dekhne aata hai?…khul kar maja legi tabhi sukhi rahegi….shahar mein to….. ”
“tu mujhe galat bate sikha raha hai…gandi aurat bana raha hai…”
“…jindgi ka asli maja isi mein hai…”
“par tu mera…beta hai…tere sath…ye galat hai.
“matlab mere sath nahi karwayegi…bahar ke kisi se…”
“tu baat ko pata nahi kahan se kahan le jata hai…dekh beta aisa mat…kar…mujhe kisi se nahi karwana aur un randiyon ka chakkar…thik nahi…tu bhi chhor de”
“tu apni sari utha kar rakhegi to main bahar kyon munh marunga…”
“bahut bari ….keemat maang raha hai….”
“teri chhed ghis jayegi kya…fir tujhe bhi to maja aayega…bahar karwayegi to badnami hogi…ghar mein…khul kar maja loot…nahi to…jaam ho jayega…chhed…fir ungli bhi daalegi to nahi ghusegi…” Munna ka ye bhashan sun kar Sheela Devi hasne lagi ab par usko ye baat bhi samajh aa gai wo Munna ko nahi rok sakti. Wo bahar jayega hi. Kuchh pal sochti rahi fir samajh mein aa gaya ki achha hoga wo apni chhed ki sewa us se karwati rahe. Uske dono hath mein laddu rahega beta bhi kabje mein rahega aur uski khujli bhi shant rahegi. Itna soch muskurate hue boli “ghisegi to nahi par dhili jarur ho jayegi…”
Dono ki hasi nikal gai. Munna samajh gaya ki sansay ke badal chaat gaye. Kal raat se Sheela Devi ke man mein jo uthal-puthal chal raha tha wo sab ab sayad khatam ho gaya tha. Kal raat jo maja aaya tha uski yaad ne Sheela Devi ke badan ko ek baar fir se sihra diya. Dono chup the aur Sheela Devi sir niche kiye apni Choot mein uth rahe jhan-jhanahat aur machal rahe kiro ko mahsus kar rahi thi. Dupdupati choot ko jangho ke beech kasti hui dhire se boli “ab kisi randi ke pass munh marne to nahi jayega…”
“nahi jaunga baba…lekin tu pahle bol khul ke maja legi….”
“ha lungi…ab khul ke lungi…par tu…”
“aree….bol to diya nahi jaunga…”
“chal jhoothe….tera koi bharosa nahi kasam le pahle…”
“thik chal…teri kasa…”
“na meri kasam kyon kha…raha hai…” Munh bichkati boli. Sheela Devi ki aawaz se lag raha tha ki ab wo pure maje ke liye taiyyar hai. Chehre par aur bolne ke andaj mein chanchalta aa chuki thi. Munna kuchh pal sochta raha fir bola “ tab kiski…”
“….apne lun…dddd ki kasam kha naaa…” muskurati hui boli. Ye bolte hue Chaudhrain ka chehra sharam se laal ho gaya aur gaalo mein gaddhe par gaye. Munna upar se niche tak san sana gaya. Sheela Devi ne lund bola aur Munna ki reedh ki haddi ka khoon daurta hua sidha uske laure mein utarta chala gaya. Sheela Devi ki ankho mein jhankte hue tapak se apni lungi ko utha khare lund ko hath mein pakar uski chamri ulat kar chamchamte supare ko dikhata Sheela devi ke pass khara ho bola “ hi….iss lunnnd ki kasam jo teri cho.oot chhor kisi aur ki….” Kahte hue aage jhuk kar uski gaal par daant kaat te hue dusre hath se uski ek chuchi ko jor se daba diya. Sheela Devi “ui maa…” khahte hue uchhal kar baith gai aur Munna ko pichhe dhakela.
“issss kitni jor se kaat liya mue…”
“hi…yahi patak kar le lunga…uff….aise hi khul kar maja legi to….”.
kahte hue Munna ne Sheela Devi ke chootar par chikoti kati. Sheela Devi ne ek ghunsa uski chhati par mara aur boli “hat kutte…bhag yahan se…”
Lund lungi mein farfara raha tha. Aaj Munna ne irada kar liya tha ki aaram se maja lunga. Ek-ek ang ko chaat-chaat kar, kaat kar pahle khaunga fir raat bhar gaddedar choot mein lund pel kar chodunga. Shali ko aaj sone nahi dunga.
Sheela Devi ki kamar mein hath daal us se lipat kar uske kaan ki lau ko munh se pakar fusfusate hue bola “hi bahut tarapaya hai…subah se…kisi kaam mein man nahi lag raha tha….” Munna ka haath lagte hi Sheela Devi ka pura badan sihar gaya. Munna kaan ko chumne ke baad dhire se uski gardan aur uske pichle bhaag par apne hontho ko chalate hue chum raha tha. Aaj Sheela Devi ne peeth par button lagne wala blouse pahan rakha tha haath ko dhire dhire uski peeth par sarkate hue ahista ashita Munna ek-ek button chatkane laga. Blouse ke button khulte hi Sheela Devi ko jaise hosh aaya Munna ko thora pare dhakelti hui boli “hi ruk to jara… haath hata….”
“hi to aur kya karu....ab nahi ruka jata… “.
Is par Sheela Devi munh banati hui boli “arre…darwaja to band kar le kutte.....”
“oh…abhi band kar ke aata hu…ek chumma de…”
“nahi tu band kar ke aa…aur fir pahle mera payal de….fir mangna chumma….” Sheela Devi ne apne sari ke pallu ko thik karte hue munh banate hue kaha jaise gusse mein ho.
“to ye bol na…ki tujhe payal chahiye…”
“wo to chahiye hi….randiyon ko dega aur maa…ko dene mein….tum sab baap bête …ek jaise…” kahte hue usne Munna ko dhakel kar bistar se utar diya. Munna darwaza band karne ki jagah khol kar bahar nikal charo taraf dekhne laga. Pure bagiche mein ghanghor andhkar faila hua tha. Aasman mein badal chhaye hue the aur isliye chand bhi unke pichhe chhupa hua tha. Barish ke aasar the. Dur dur tak ek kutta bhi nazar nahi aa raha tha. Lungi ke upar se apne lund ko pakar jor se hilata hue apne haath se hi lund ko maror kar dhire se bola saali….kal se tarap raha hu…maa ki choot…hi chaudhrain aaj to teri faar dunga…. achanak uske hontho par ek muskan fail gai aur aur apni jeb mein rakhe payal ko usne bahar nikal liya aur wahi khule mein ek per ke niche khare ho peshab karne ke baad teji se andar ghusa aur darwaja band kar pichhe mura to dekha ki Sheela Devi kahi nazar nahi aai albatta bathroom se tej siti ke jaisi aawaz aa rahi thi. Bathroom ka darwaza puri tarah se band nahi tha. Munna dabe paw bathroom mein ghus gaya. Sheela Devi commode ke upar baithi mootne mein vyast thi, petticoat pichhe se pura utha hua tha aur uske mastane gaddhedar gore gore chuttar saaf dikh rahe the. Chuttar thora utha hua tha isliye pichhe se uski choot ki jhante bhi thori dikh rahi thi, gaand ka chhed dono bhari chuttaro ke beech daba hua tha. Munna ke lund ko jhanjhana dene ke liye itna kafi tha. Dil mein aaya ki pichhe ja kar gaand mein lund sata de. Dabe paw Sheela Devi ke pichhe pahuch uski peshab karti hui choot ko dekhne ki ichha se apne sir ko agge jhukaya hi tha ki Sheela Devi uth kar khari ho gai. Munna ko dekhte hi chaunk gai sharam aur gusse se Munna ko dhakela “uiiii….maa..yaha kya kar raha hai …dara diya…maine socha pata nahi kaun aa gaya….kamina..”
“dekhne aaya tha tu kaise moot….ti hai…” haste hue Munna bola.
“sharam nahi aati…” flus chalati Sheela Devi boli.
“kal hi dekhi thi teri…. jis se tu moot ti i hai…”
“uffff….mue…besharam gandi bate karta hai….suar kahi ka…”
“ab yahi khara rahega kya....” Munna ko dhakelti bathroom se bahar nikalti aur khud bhi nikalti hui boli.
“khara to na jane kab se hai….” Apne lungi ke upar se lund pakar ke dikhata hua bola.
“hat mue…bahar nikalne ke liye bol rahi hu …chal…” bolti hui wo bathroom se bahar nikal gai.
Sheela Devi ne is samay kewal petticoat aur bra pahan rakha tha. Munna jab darwaja band karne gaya tha tabhi usne sari aur blouse utar diya tha. Bra kale rang ka normal sa tha bahut jayada stylish nahi tha. Isliye chuche pure dhake hue the. Khali beech wali gori ghati nazar aa rahi thi. Kale rang ki ekdum fit petticoat nabhi se niche bandhi hui thi aur chuttaro se chipki hui uske mastane gathile chuttaro ka aakar bata rahi thi. Sheela Devi bhun-bhunate hue bistar par pair latka kar baith gai. Munna kutte ki tarah jeebh laplapata uske pichhe pichhe gaya aur bistar par baith gaya aur uski kamar mein hath daal kar kya “hi…chal gussa chhor…”
“nahi tu…bara ganda larka hai…”
“hi galti ho gai….bari ichha ho rahi thi….. ki dekhe kaise karti ho..”
“kya kaise….karte hu…”
“peshab….aur….kya…”
“chhi…gande…pata nahi kaha se sikh kar aa gaya hai” munh banati hath chamkati hui Sheela Devi boli.
are maa jab me maami ke yaha tha to main raj sharma ke kamuk-kahaaniyan.blogspot.com or hindi sexi kahaaniya se sexi kahaani padhta tha vaastav me maa raj sharma ki kahaaniya bahut mast hoti hai “hi…tu jisko…ganda bolti hai…hi peshab karte samay na jab siti jaisi aawaz…”
“dhat…besharam wo to aurte jab bhi peshab karti hai tab…aawaz…”
“ha..wahi…ye aawaz sunte hi na mera to ekdum khara ho jata…”
“kya…matlab…. peshab karne ki aawaz sun ke…chhi…kitna kamina ho gaya hai tu…”
“hi..ab jo bhi kah le…dekh na…kaise khara…” kahte hue apne lungi ke upar hath laga lund dikhaya aur apne hath ko uski bra mei kasi chuchiyon par le gaya. Sheela Devi ne bura sa munh banate hue uska hath hata diya. Munna fir se apne hath ko uski bra par le gaya aur uski bai chuchi ko mutthi mein pakar jor se dabaya. Sheela Devi ko jor se dard hua “uii…maa…”karte hue chaunk gai aur Munna ko pare dhakela. Apne haath se apni chhati sahlati hui boli “noch lega kya…uff…jungli kahi ka…”
“hi….khol na, ab nahi kholegi to faar dung tera blouse…” Munna fir se chirori karte bola. Par Sheela Devi ne uska hath jhatak diya aur boli “na pahle…payal de…uske bina hath nahi lagane dungi…”
“kamal karti hai…payal ke pichhe pari hai…”
“randi to tune bana diya hai….ab to bina…payal ke…”
“to fir waise hi patak kar lunga….”
“le lena harami….par pahle payal de…..”
“to le….” kahte hue Munna uske samne khara ho gaya aur apni lungi ko khol kar niche gira diya. Chaudharain ne jab dekha to uske munh se ek tej kilkari nikal gai….”uiiii….maa……mue kitna kamina hai tu……” Munna ka dus inch ka lund ek dum sidha khara tha apne laal chamchamate supare se laar tapka raha tha. Par khas baat ye thi Munna ne payal ko lund ke charo taraf lapet rakha tha. Uski isi badmasi ne Sheela Devi ke munh se kilkari nikal di thi. Lund ke charo taraf payal lapete Munna kamar par hath rakhe shaan se khara tha.
“le..le apna payal….” Kahte hue usne ek hath se Sheela Devi ka hath pakra aur usko apne lund par rakh diya. Munna ke ye ada Sheela Devi ko puri tarah se madhosh kar gai. Lund ke supare ko pakar ahista-ahista usne uske charo taraf lapeta hua payal utara aur Munna ko apni bari bari kajrari ankho se ghoorte apne ek pair ko ghutne ke pass se halka sa mor kar bistar par rakha aur fir ada ke saath dhire se apne apne petticoat ko ghutno tak upar utha kar apni gori pindliyon mein patli si sone ki payal pahan ne lagi. Uski ek chuchi uske ghutno se dabi hui bra ke bahar aane ko utawali hui thi. Sheela Devi ki is ada ne Munna ko aisa ghayal kiya ki uska dil kar raha tha iski tasvir nikal kar hamesha ke liye sanjo le. Apne kanpte hatho se uske talwe ko pakar pair ki ungliyon par hatho ko fera. Sheela Devi ne payal pahan liya tha
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