Monday, April 5, 2010

हिंदी सेक्सी कहानिया अधूरा प्यार--2 एक होरर लव स्टोरी

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अधूरा प्यार--2 एक होरर लव स्टोरी


दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक और नई कहानी लेकर हाजिर हूँ दोस्तो इस कहानी मैं रहस्य रोमांच सेक्स भय सब कुछ है मेरा दावा जब आप इस कहानी को पढ़ेंगे तो आप भी अपने आप को रोमांच से भरा हुआ महसूस करेंगे दोस्तो कल का कोई भरोसा नही.. जिंदगी कयि बार ऐसे अजीब मोड़ लेती है कि सच झूठ और झूठ सच लगने लगता है.. बड़े से बड़ा आस्तिक नास्तिक और बड़े से बड़ा नास्तिक आस्तिक होने को मजबूर हो जाता है.. सिर्फ़ यही क्यूँ, कुच्छ ऐसे हादसे भी जिंदगी में घट जाते है कि आख़िर तक हमें समझ नही आता कि वो सब कैसे हुआ, क्यूँ हुआ. सच कोई नही जान पाता.. कि आख़िर वो सब किसी प्रेतात्मा का किया धरा है, याभगवान का चमत्कार है या फिर किसी 'अपने' की साज़िश... हम सिर्फ़ कल्पना ही करते रहते हैं और आख़िर तक सोचते रहते हैं कि ऐसा हमारे साथ ही क्यूँ हुआ? किसी और के साथ क्यूँ नही.. हालात तब और बिगड़ जाते हैं जब हम वो हादसे किसी के साथ बाँट भी नही पाते.. क्यूंकी लोग विस्वास नही करेंगे.. और हमें अकेला ही निकलना पड़ता है, अपनी अंजान मंज़िल की तरफ.. मन में उठ रहे उत्सुकता के अग्यात भंवर के पटाक्षेप की खातिर....

रात करीब 2 बजकर 17 मिनिट...... रोहन दरवाजे पर पैरों की आहट सुनकर चौंक गया.. उसकी उम्मीद को पूरी तरह पंख लगे भी ना थे की कमरे में रोशनी च्छा गयी.. हल्की सी नाराज़गी जताती हुई नीरू उसकी आँखों में आँखें डाले उसको घूर रही थी.. हौले हौले चलती हुई वो उसके पैरों के पास आकर उसके पलंग पर बैठ गयी..

"ये कौन है?" नीरू ने झुकते हुए धीरे से नितिन की और इशारा करते हुए पूचछा..

"मेरा दोस्त है.. मेरे भाई जैसा है.. क्यूँ?" रोहन ने भी उसी के अंदाज में जवाब दिया..

"इसको क्यूँ लेकर आए..? मैने अकेले आने को बोला था ना..?" नाराज़गी अब भी नीरू की नाक पर बैठी थी..

"कमाल करती हो? ऐसी ख़तरनाक जगह पर अकेले.. जान लेने का इरादा था क्या?" रोहन ने लेटे लेटे ही जवाब दिया...

"जान तो मैं तुम्हारी लूँगी ही.. एक बार समय आने दो" कहकर नीरू कातिल अदा से मुस्कुराने लगी.. उसकी इसी अदा का तो रोहन दीवाना था," चलो ठीक है.. तुम्हारी ये बात मान लेती हूँ.. इसको लेकर आ जाओ.. पर इसको दूर ही खड़ा कर देना.. मुझे तुमसे ज़रूरी बातें करनी हैं.. जाने कब से तुम्हारे लिए तड़प रही हूँ.. तुम्हे तो अहसास भी नही होगा, मेरी मोहब्बत का.."

"तुम्हारी यही बात मेरी समझ में नही आ रही.. कहती हो मुझसे प्यार करती हो.. पर आज तक कभी छूने की इजाज़त नही दी.. मैं भी तुम्हारे लिए पागल हो चला हूँ.. प्लीज़ एक बार.. एक बार मुझे तुम्हे छू कर महसूस कर लेने दो.. कितनी प्यारी हो तुम.. तुम्हारे लिए मैं यहाँ तक भी आ गया.. एक बार मेरे आगोश में आ जाओ ना.. प्लीज़!" रोहन उसके शरीर से उत्सर्जित हो रही यौवन बयार को अपने अंदर तक महसूस करने को तड़प उठा...

"मैं भी तो उतनी ही तड़प रही हूँ देव! तुम्हे क्या पता, मेरा एक एक पल कैसे बीत'ता है.. उस पल के लिए जब मैं और तुम 'हम' होंगे.. ये फ़ासले कितना तड़पते हैं, मुझसे ज़्यादा कौन समझेगा.. बस इंतज़ार करो... " नीरू की आँखों से उसके लिए बे-इंतहा ज़ज्बात झलक रहे थे...

"कितनी बार बताउ कि मैं रोहन हूँ.. अगर तुम किसी देव के धोखे में मेरे पिछे पड़ी हो तो माफी चाहता हूँ.. पर फिर भी यही कहूँगा कि अब मैं तुम्हारे बिना रह नही पाउन्गा.. तुम्हारे प्यार में जाने.... तुमने मुझे पागल सा कर दिया है.."

"दुनिया के लिए तुम चाहे कुच्छ भी हो.. पर मेरे लिए तो मेरे देव ही हो.. मुझे तुम्हारा यही नाम अच्च्छा लगता है.. मैं तो यही कहूँगी.." आँखों में गहरी प्यास और मादक अहसास लिए नीरू उसकी और टकटकी लगाकर देखती रही...
"तुम मुझे पूरी तरह पागल बना कर ही छ्चोड़ॉगी.. मुझ रोहन को तुम देव कहती हो और अपना नाम नीरू बता रही हो जबकि तुम्हारे पिताजी तुम्हे श्रुति कहते हैं.. मैं क्या समझू और क्या नही.." रोहन नाम के चक्कर से अभी तक भी निकल नही पाया था..

"वहाँ आओगे तो सब समझ आ जाएगा.. अब यहाँ मैं तुम्हे क्या बताउ?" नीरू ने बेबस नज़रों से उसको देखते हुए कहा..

"अजीब लड़की हो.. यहाँ मेरे सामने बैठी हो.. उस वक़्त नज़र उठा कर भी तुमने नही देखा.. और अब ये छ्होटी सी बात बताने के लिए मुझे वहाँ बुला रही हो.. इतनी ख़तरनाक और डरावनी जगह मैने आज तक नही देखी.. पता है.. ?" रोहन के चेहरे पर उस अजीबोगरीब जगह की डरावनी यादों की टीस छा गयी..

"क्या? तुम वहाँ गये थे? पर मैने तुम्हे 12 बजे के बाद आने को कहा था ना.. रुके क्यूँ नही वहाँ पर..." नीरू अधीर होते हुए बोली...

" कैसे रुकते..हम वहाँ गये तो हमें वहाँ एक बच्चा मिला.. इतना खौफनाक मंज़र था कि मेरी तो जान ही निकल गयी होती.. और तुम्हे पता भी है.. वहाँ भूत रहते हैं.. तुम्हारे पिताजी ने ही बताया था.." रोहन ने स्पष्ट किया...

"असमय गुजर चुके लोगों को भूत कहकर उनका मज़ाक ना बनाओ देव.. तुम्हे हम... उनकी पीडाओं का अहसास नही है.. हर पल किस वेदना और दर्द की भत्ति में तपते रहना पड़ता है.. ये तुम्हे क्या मालूम.. तुम तो आज़ाद हो.. कहीं भी आ जा सकते हो.. पर वो हर तरह से एक दायरे में बँधे हैं.. हरपल उसी दर्दनाक मंज़र को आँखों में लिए तड़प्ते रहते हैं.. जिस घड़ी जिंदगी ने बड़ी क्रूरता से उनके सिर से अपना हाथ हटा लिया.. वो हर पल इसी इंतज़ार में रहते हैं कि कब कोई रहनुमा आएगा और उनको वहाँ से, उस जहन्नुम से मुक्ति दिलाएगा.. आ जाओ ना देव.. सिर्फ़ एक बार आ जाओ.. मैं हर पल तुम्हारा इंतजार करती हूँ.. एक बार वहाँ आ जाओ मेरी जान.. मुझे जहन्नुम से निकल कर जन्नत में ले चलो.." नीरू बोलते बोलते भावुक होकर गिदगिडाने सी लगी..

"ऐसे क्यूँ कर रही हो.. मुझसे तुम्हारी ये बेचैनी देखी नही जाती.. पर ऐसा क्या है जो यहाँ नही बता सकती.. वहीं जाना क्यूँ ज़रूरी है नीरू..?"

"वहाँ जाना ज़रूरी नही है देव.. पर मुझे डर है.. मैने यहाँ बता दिया तो तुम वहाँ शायद कभी नही आओगे.." मायूस नीरू की आँखों से आँसू छलक उठे..

"इसका मतलब तुम्हे मेरे प्यार पर भरोसा नही है.. इसका मतलब कुच्छ ऐसा ज़रूर है जो तुम मुझसे छिपा रही हो.. जब तुम मुझ पर विश्वास नही करती तो मैं तुम पर क्यूँ करूँ..?" रोहन बात जान'ने को लालायित लग रहा था..

"तुम्हारे अंदर के देव पर मुझे पूरा विस्वास है.. पर बाहर के रोहन पर नही.. वक़्त जाने कितनी करवटें बदलता है.. इस दरमियाँ जाने तुम कितनी बार बदले होगे.. मैं इसीलिए डर रही हूँ.." नीरू अपना हाथ बढ़कर उसके चेहरे को छूने को हुई पर कुच्छ याद आते ही तुरंत वापस खीच लिया...

"देखो नीरू या श्रुति, तुम जो भी हो.. तुमने अपने प्यार में तो मुझे पागल कर ही दिया है.. अब असलियत में पागल होना नही चाहता.. पहेलियाँ मत बुझाओ.. पर इतना जान लो कि जब तक तुम मुझे सब कुच्छ सच सच नही बताती, मैं वहाँ वापस नही जाउन्गा.. हरगिज़ नही.." रोहन ने दो टुक जवाब दिया..

"ऐसा क्यूँ कह रहे हो देव.. क्या मैं यूँही तड़पति रहूंगी..? तुम मेरी बात समझते क्यूँ नही हो.. आ जाओ ना प्लीज़..." नीरू की हालत दयनीय हो चली थी..
"मैं तो सब समझ रहा हूँ.. अगर समझता नही तो यहाँ तक आता ही क्यूँ.. अच्च्छा चलो.. मैं वादा करता हूँ कि अगर तुम अभी सब कुच्छ बता दोगे तो तुम जहाँ कहोगी, वहाँ आने के लिए तैयार हूँ.."

कुच्छ देर सोचते रहने के बाद नीरू बोली," ये रोहन का वादा है या फिर देव का.."
रोहन झल्ला उठा..," क्या है यार.. देव.. रोहन.. दोनो का वादा रहा.. देव का भी.. और रोहन का भी.. अब तो बता दो..."

"सोच लो.. देव के वादे सूली पर जाकर भी नही टूट'ते.." नीरू को कुच्छ उम्मीद सी बँधी..

"हुम्म.. सोच लिया... वादा रहा.. देव का!" रोहन ने कहते हुए अपना हाथ बढ़ाया पर नीरू की तरफ से कोई प्रतिक्रिया ना मिली....

नीरू ने लंबी साँस छ्चोड़ते हुए छत की और देखा.. और अचानक ही बोलना शुरू कर दिया..," वो बच्चा.. जिसकी तुम बात कर रहे हो.. मेरा छ्होटा भाई है..

"क्याआ?" रोहन नीरू की इस बात को पचा नही पाया और नींद में ही अंदर तक काँप गया.. हड़बड़ा कर लगभग चीखते हुए वह उठ बैठा.. चीख के साथ ही नितिन एक पल में ही उठ कर पलंग से खड़ा हो गया..," क्या हुआ?"

"ये.. ये लाइट क्यूँ बंद कर दी.. नीरू कहाँ गयी.." रोहन का सिर चकरा रहा था.. बंद आँखों में जहाँ उसको उजाला ही उजाला दिख रहा था.. आँखें खोलते ही.. अंधेरे के सिवा उसको कुच्छ नज़र ना आया.. वहाँ तो पहले से ही अंधेरा था.. उजाला तो सपने में नीरू साथ लेकर आई थी...

"नीरू, यहाँ? साले तू पागल हो गया है क्या? सपना देख रहा था या?" नितिन ने रोहन को कंधे से पकड़ कर हिला दिया...

रोहन ने जैसे तैसे खुद को संभाला," हां भाई.. सपना ही था.. सॉरी.. सो जा.."

"अब थोड़ी बहुत रात बची है.. उसमें तो चैन से सो लेने दे तू.. क्या हो गया है तुझे.. बता ना.. तू खुलकर क्यूँ नही बताता..?" नितिन ने उसके कंधे पर हाथ रख कर प्यार से पूचछा...

"कुच्छ नही यार, सो जा.. सुबह बात करेंगे..!" कहते हुए रोहन मुँह ढक कर लेट गया..

"देख.. कोई बात मन में नही रखनी चाहिए.. गाँठ बन जाती है.. और फिर मुझसे छिपा कर तुझे मिलेगा क्या? बाकी तेरी मर्ज़ी है.. सुबह का इंतजार करूँगा.." नितिन ने कहा और दूसरी और करवट लेकर सो गया...

रोहन की समझ में कुच्छ नही आ रहा था.. पिच्छले करीब 2 महीने से उसकी रातों की नींद और दिन का चैन हराम था.. कारण नीरू ही थी.. हर रात को वो उसके सपनो में आती और दिन भर वो उसके सपनो में खोया रहता.. जिंदगी अचानक कितनी बदल गयी थी उसकी.. हमेशा मस्त कलंदर की तरह जीने वाला रोहन शुरू शुरू में तो इन्न सपनो का आनंद लेता और रात को उसके पास आकर उसको पुकार रही इस हसीना के बारे में दिन भर सोच कर आनंदित होता रहता.. नितिन की बात सच ही थी.. नीरू के जितनी प्यारी लड़की उसने भी आज तक नही देखी थी.. पर जल्द ही ये आनंद बेचैनी में और फिर वो बेचैनी एक अंजाने से लगाव में बदल गयी.. आख़िर यही लड़की रोज उसके सपनो में क्यूँ आती है.. क्या रिश्ता है इस लड़की का उसके साथ.. लड़की का सिर्फ़ सपने में आना भर ही होता तो बात अलग थी.. पर वो तो उसको दोनो के प्यार की दुहाई देती थी.. अपने पास बुलाती थी.. सपने में उसकी आवाज़ यूँ लगती थी जैसे किसी गहरी खाई से बोल रही हो.. रुक रुक कर कही गयी उसकी बातें प्रतिध्वनित होकर बार बार उसके कानों में गूँजती रहती थी.. रात भर.. दिन भर...

अपने मस्त अंदाज का मलिक रोहन दोस्तों में उसके हँसी मज़ाक और लड़कियों को भाव ना देने के कारण हमेशा छाया रहता था.. पर अचानक ही वो गुम्सुम सा रहने लगा.. पूच्छने की कोशिश बहुतों ने की.. पर बताता भी तो क्या बताता रोहन.. अंत में जब उसकी बेचैनी और अपने आपको नीरू कहने वाली लड़की के प्रति उसका लगाव चरम को पार कर गया तो उसने एक बार उसके पास जाने की ठान ली.. पर नीरू की एक शर्त ने उसको नितिन का सहारा लेने पर मजबूर कर दिया.. एक तो सिर्फ़ रात को ही मिल पाने की बेबसी और दूसरा उसके पास आने के लिए बताए गये रास्ते की जियोग्रफी..

नितिन उसके सबसे नज़दीकी दोस्तों में से एक था.. वो अग्यात जगह पर जाने, घूमने फिरने और बीहड़ और दूर दराज के इलाक़ों में जाकर वहाँ के लोगों की दिन चर्या जान'ने का शौकीन था.. इनफॅक्ट, अड्वेंचर उसकी लाइफ का एक हिस्सा था...

रोहन ने नितिन को एक कहानी बनाकर सुनाई.. उसको यकीन था अगर सपने वाली बात उसको बताएगा तो साथ देना तो दूर.. उल्टा दोस्तों मैं उसकी किरकिरी करने में भी कसर नही छ्चोड़ेगा.. उसने नितिन को बताया कि बहुत पहले एक लड़की से वो मिला था और अब उसको पता चला है कि वो लड़की उस'से बे-इंतहा प्यार करती है.. और उसको मिलने के लिए बुला रही है.. पहले पहल तो नितिन ने उसको इन्न खाम-खाँ के चक्करों से दूर रहने की हिदायत देकर सॉफ मना कर दिया.. पर जब उसको काई दीनो तक लगातार रोहन का चेहरा उतरा हुआ दिखाई दिया तो एक दिन उसने खुद ही रोहन को टोक दिया," कहाँ है वो लड़की.. चल मिला लाता हूँ.."

"यार.. उनका घर गाँव से दूर है.. काफ़ी आगे चलकर.. " रोहन इस बात को खा गया कि लड़की ने उसको बताया था कि उसको काफ़ी दूर पैदल चलना पड़ेगा....

"अच्च्छा.. फट'ती है तेरी.. इसीलिए मुझको बोला.. है ना.. नही तो तू मुझे बताता भी नही कि तू मजनू बन गया है आजकल..." नितिन ने मज़ाक किया...

"कुच्छ भी समझ ले यार.. पर मुझे उस'से एक बार मिलकर आना है...!"

"हूंम्म.. चल फिर कल ही चलते हैं..!" नितिन तैयार हो गया उसके साथ जाने को...

और वो कल 'आज रात' ही थी...
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पर जो कुच्छ भी आज रात को उन्होने देखा.. उसने उसकी व्याकुलता कम करने की बजाय और बढ़ा दी.. खास तौर से तब, जब उसने सपनो में रोज आने वाली लड़की को साक्षात अपनी नज़रों के सामने देखा.. श्रुति के रूप में.. उस वक़्त तक तो टीले से वापस आते हुए वह यही सोच रहा था कि ये सब महज उसके दिमाग़ के फीतूर के अलावा कुच्छ नही था.. पर अब; अब तो वो कतयि ऐसा नही सोच सकता था.. उसके सपनो की रानी यथार्थ बनकर उस'से रूबरू हो चुकी थी.. भले ही उसका अंदाज बेरूख़ा रहा हो.. भले ही उसका नाम श्रुति रहा हो.. कुच्छ ना कुच्छ तो बात ज़रूर है.. वरना इसी गाँव की लड़की उसके सपने में क्यूँ आती...

पर अब.. आज रात के सपने को वो कैसे ले.. कहीं 'नीरू' सच में कोई भूत तो नही.. उसने टीले पर मिलने वाले बच्चे को 'अपना भाई बताया.. चक्कर क्या है.. और फिर भूत तो डराते हैं.. प्यार थोड़े ही करते हैं.. फिर भूत भी माने तो कैसे माने.. लड़की तो उसके सामने थी ही.. रोहन को लग रहा था जैसे वो भी उस लड़की के प्यार में बुरी तरह जकड़ा जा चुका हो.. वो फिर से उसको अपने सपने में लाना चाहता था.. अपने अनगिनत सवालों के जवाब लेने के लिए.. उस'से उसका संबंध क्या है.. ये जान'ने के लिए... इसी उधेड़बुन में वो कब खो गया और कब खुद को नीरू बताने वाली श्रुति फिर उसके सपने में आ गयी उसको पता ही नही चला...

"क्या हो गया था.. तुम चले क्यूँ गये थे, बीच में ही.." नीरू वहीं बैठी थी.. उसके पैरों के पास..

"मैं कहाँ गया था.. चली तो तुम गयी थी.. मेरे सपने से.." रोहन नींद में बड़बड़ाया...

"हां.. मगर सपना तो तुम्हारा ही था ना.. तुमने वो तोड़ दिया.. मुझे जाना पड़ा..!"

"तुम सपने में ही क्यूँ आती हो..? उठकर आ जाओ ना.. बराबर वाले कमरे में ही तो हो..." रोहन ने जवाब दिया...

नीरू ने यहीं पर उसको सब कुच्छ बताने का इरादा कर लिया था.. उसके देव ने वादा जो किया था.. इस जनम में उसका साथ देने का... " समझने की कोशिश करो देव.. मैं वो नही हूँ.. जो तुम समझ रहे हो.. वो तो श्रुति ही है जिसे तुम अपने सामने बैठी देख रहे हो.... मैं देव की प्रियदर्शिनी हूँ.. और इस जनम की तुम्हारी नीरू.."

रोहन किसी तरह अपने आप पर काबू पाए रहा.. उसको सब कुच्छ जान लेना था.. आज ही,"मतलब हमारा पिच्छले जनम का कोई संबंध है?"

"पिच्छले जनम का नही.. पिच्छले कयि जन्मो का.. प्रियादरिशिनी के हर जनम में मैने तुम्हारा इंतजार किया.. पर मैं तुम्हे इसी जनम में ढूँढ सकी.." नीरू ने जवाब दिया..

"पर तुम मुझे पहले भी तो ढूँढ सकती थी.. मतलब पिच्छले जन्मों में.." रोहन ने तर्क दिया...

"हां.. और मैने बहुत ढूँढा भी.. पर मेरी एक सीमा है... हम एक दायरे से बाहर नही निकल सकते.. 2 महीने पहले तुम इस गाँव के पास से गुज़रे.. और मैने तुम्हे पहचान लिया.. तब से मैं इस बात का इंतजार कर रही हूँ कि तुम कब आओगे मेरे पास.. मतलब नीरू के पास.. कब हमारा मिलन होगा.. इसी वजह से मैने इस घर में रहने वाली लड़की का रूप चुराया.. ताकि तुम्हे इसके आकर्षण में बाँध कर अपने पास ला सकूँ... क्यूंकी इस'से सुंदर कोई और लड़की मुझे आसपास दिखाई नही दी.." नीरू लगातार बोल रही थी कि रोहन ने उसको टोक दिया..

"पर अगर तुम आत्मा हो तो हम कैसे मिल सकते हैं.. बताओ.."

"नही मैं आत्मा नही हूँ.. मैं भी जनम ले चुकी हूँ.. कयि बार.. इस बार भी.. नीरू के रूप में.. सिर्फ़ उसका दिल उस लॉकेट में अटक कर वहीं महल में ही रह गया था जो देव ने प्रियदर्शनि को दिया था.. यानी तुमने मुझे.. प्यार की पहली और आख़िरी निशानी के रूप में.."

"ये लॉकेट का क्या चक्कर है?" रोहन ने उसको फिर टोका..

"वो एक लंबी कहानी है.. हमारे प्यार की.. हमारे मिलने की और मिलन पूरा होने से पहले ही हमारी जुदाई की.. कभी फ़ुर्सत में बताउन्गि.." नीरू अब उसका जवाब सुन'ने को उतावली थी...

रोहन को कुच्छ कुच्छ पल्ले पड़ रहा था.. पर बहुत कुच्छ नही," और अब असली नीरू को कौन ढूंढेगा? कहाँ कहाँ भटकू मैं.. और क्यूँ भटकू?"

"तुम्हे भटकने की ज़रूरत नही है.. हर जनम में वो मेरे संपर्क में रही है.. आख़िर मैं भी उसका हिस्सा हूँ.. अमृतसर से 50 किलोमीटर दूर बतला कस्बे में रहती है वो.. गवरमेंट. कॉलेज के आसपास घर है उसका...मुझे इस बात पर गर्व है कि हर जनम में वो अंजाने में ही सही पर कुँवारी ही रही.. तुम्हारे अलावा मैने किसी के बारे में सोचा तक नही देव.. तुम्हारे अलावा मुझे कोई छू भी नही पाया.." नीरू का गला भर आया..

"ओह.. और मैं..?" रोहन को उसकी अजीब मगर मीठी सी कहानी में मज़ा आने लगा था...

"तुम्हारा मुझे नही पता.. और इस जनम की तो तुम खुद ही जान'ते होगे..." नीरू ने उसको प्यार से देखते हुए कहा...

"तो क्या वो मुझे देखते ही पहचान लेगी..?" रोहन के मन में सवालों की झड़ी लगी हुई थी....

"बस यही एक समस्या है.. उसके लिए तुम्हे उसको वहीं लाना होगा.. महल में.." नीरू के चेहरे पर उदासी छा गयी..

"अब ये महल का क्या चक्कर है?" सवालों में से ही इतने सवाल निकल रहे थे कि पुराने सवाल रोहन भूलता जा रहा था...

"जहाँ तुम गये थे.. वहाँ एक पीपल का पेड़ है.. उसके नीचे ही हमारा महल है.. तुम्हे नीरू को वहीं लेकर आना होगा.."

"एक मिनिट.. एक मिनिट.. जो लड़की मुझे जानती नही, पहचानती नही.. उसको मैं कैसे ला सकता हूँ.. और वो भी ऐसी जगह पर जहाँ के बच्चे भी इतने ख़तरनाक हैं.." रोहन का सिर चकरा गया..

"इसका जवाब मेरे पास नही है.. पर अगर तुम उसके दिल में प्यार जगाओगे तो वो आ सकती है.. तुम्हारे साथ.. तुम्हे उसका प्यार भी जीतना होगा और भरोसा भी... ये काम तुम्हे अपने तरीके से करना होगा...."

" मुझे नही पता कि लड़कियों का दिल कैसे जीत'ते हैं.. इस मामले में एकदम अनाड़ी हूँ... तुम ही कुच्छ बताओ!" रोहन की समझ में कुच्छ नही आ रहा था..

"तुम जब देव थे, तब भी ऐसे ही थे.. शर्मीले और झेंपू.. पर तुम्हे कुच्छ ना कुच्छ तो करना ही होगा..." नीरू अपने देव की यादों में खोकर मुस्कुराने लगी....
" सॉरी नीरू.. ये सब मैं नही कर सकता.. किसी अंजान लड़की से मैने आज तक बात भी नही की है.. और तुम उसको यहाँ लाने को कह रही हो.. ये नही हो सकता.. और फिर उसको भी रात को ही लाना होगा.. है ना?"

"हाँ देव.. ये मेरी मजबूरी है.."

"शिट.. नेवेर पासिबल.. ऐसा कभी नही हो सकता.. और फिर तुम ही बताओ.. मैं तुम्हारी बातों पर क्यूँ विस्वास करूँ.. और विस्वास कर भी लूँ तो मैं इतनी बड़ी टेन्षन मोल क्यूँ लूँ..? ये जान'ने के बाद की तुम कोई भटकती हुई आत्मा हो; मेरे दिल में तुम्हारे लिए सहानुभूति के अलावा कुच्छ नही है.. पर फिर भी मैं माफी चाहता हूँ.. मेरी जिंदगी से निकल जाओ.. तुमने मेरी हँसती खेलती जिंदगी बर्बाद कर दी है.. मैं पागल सा हो गया हून.. तुम्हारी बात को सच मान भी लूँ तो मुझे अब कुच्छ याद नही है.. फिर मैं तो किसी भी लड़की से प्यार कर सकता हूँ.. शादी कर सकता हूँ.. सच बोलूं तो मैं सुबह श्रुति के पापा से अपने रिश्ते के बारे में बात करना चाहता हूँ.. मैने अपनी जिंदगी में इसी लड़की के सपने देखे हैं, जिसका चोला पहने अभी तुम मेरे सामने बैठी हो.. मुझे इस'से प्यार हो गया है.. तो क्यूँ ना मैं नीरू के आगे पिछे बेवजह चक्कर लगाने की बजाय श्रुति पर ही डोरे डाल लूँ..? प्लीज़.. मेरा पिच्छा छ्चोड़ दो.. आज के बाद मेरी जिंदगी में मत आना.. मैं तंग आ गया हूँ तुम्हारी बातें सुनकर... मैं और कुच्छ जान'ना नही चाहता.." रोहन ने सीधे और निर्दयी शब्दों में अपनी बात कह दी...

नीरू का चेहरा सफेद पड़ गया.. रोहन को इस बार पाकर भी खो देने के भय और गुस्से के वो काँपने सी लगी," देव.. तुम्हारे वादे का क्या होगा..?" नीरू के मुँह से कहते ही सिसकी सी निकली...

"भाड़ में गया वादा.. आइ डोंट केर.. मुझे मरना नही है अभी.. जीना है.. अपने लिए.. घर वालों के लिए..!"

नीरू खड़ी हो गयी," ठीक है देव.. मैं जा रही हूँ.. आइन्दा कभी नही आउन्गि.. मैने तो ये सोचकर तुम्हे कभी खुद को हाथ भी नही लगाने दिया कि मेरे द्वारा धारण की गयी देह किसी और की है.. उसको हाथ लगवाकर मैं तुम्हे दूषित करके खुद को पाप का भागी नही बनाना चाहती थी.. अगर तुम्हे यही पसंद है तो लो, नोच डालो अभी इसको, कर लो अपनी हवस पूरी..." कहते हुए नीरू ने गुस्से से अपना गले से पकड़ कर अपना कमीज़ खींच कर तार तार कर डाला.. श्रुति बनी नीरू अर्धनग्न अवस्था में नज़रें झुकाए सिसकियाँ ले रही थी..

रोहन की आँखें शर्म से झुक गयी.. उसको यूँ नज़रें झुकाए देख नीरू ने खड़े खड़े ही बोलना शुरू कर दिया," काश तुम्हे अहसास करवा सकती कि तुम क्या थे, काश तुम्हे देव और प्रियदर्शिनी की मोहब्बत से रूबरू करवा पाती.. तुम्हे देव के वादे की कीमत का अहसास होता तो तुम कभी ऐसा ना कहते, जान पर खेल जाते अपनी नीरू को अपने गले से लगाकर उसको कम से कम इस जनम में पूर्ण नारी बनाने के लिए.. बेशक उसके पास प्रियदर्शिनी का दिल नही.. फिर भी उसने देव को किया वादा हर जनम में निभाया है.. बेशक वो तुम्हारा इंतजार नही करती.. पर किसी का भी इंतजार नही करती वो.. इस जनम में भी ऐसे ही जाएगी.. और मेरा क्या है? काश मुझे तुम्हारे दिए गये लॉकेट से भी उतनी ही मोहब्बत ना होती जितनी कि तुमसे है.. तो मेरी आत्मा मेरे दिल को भी साथ लेकर निकल जाती.. यूँ ना तड़प्ता रहना पड़ता मुझे.. जनम जनम तुम्हारे आने के इंतज़ार में... " नीरू ने भरभराते गले से कहा और चुपचाप सिसकियाँ लेती उसके सपने से गायब हो गयी.....
दोस्तो कहानी कैसी चल रही है बताना ना भूलें
कहानी अभी बाकी है फिर मिलेंगे अगले पार्ट के साथ

साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा

(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
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`·.¸.·´ -- raj





























































































































































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