Monday, April 5, 2010

हिंदी सेक्सी कहानिया अधूरा प्यार--16 एक होरर लव स्टोरी

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अधूरा प्यार--16 एक होरर लव स्टोरी

गतांक से आगे ...............................

"ओहू! आप एक बार बात तो कर लो उनसे.. इतना अच्च्छा रिश्ता खुद चलकर आया है.. मैं तो कहती हूँ, बात बन जाए तो चट माँगनी पर ब्याह कर देंगे अपनी शीनू का...." मानव के निकलते ही मम्मी जी ने फोन लगा लिया था...

"अच्च्छा ठीक है.. मैं अभी बात करके बताता हूँ... पर उनको बोलूं क्या?" पापा ने असमन्झस से पूचछा...

"अब ये बात भी क्या मैं ही सम्झाउ? बोल देना की मानव को पसंद है.. और हम भी बहुत खुश हैं इस रिश्ते से....." मम्मी ने बात पूरी भी नही की थी कि नीरू दरवाजा खोलकर अंदर आ गयी

"किसके रिश्ते की बात हो रही है मम्मी..?" नीरू आते ही मम्मी से लिपट गयी...

"अच्च्छा रखती हूँ जी.. आप बता देना मुझे भी..." मम्मी ने कहा और फोन रख दिया...

"क्या हुआ मम्मी? मानव आया था! कुच्छ पता चला...." नीरू ने मम्मी के फोन रखते ही पूचछा...

"मानव आया था!" मम्मी ने मुँह चढ़ा कर मज़ाक मज़ाक में उसकी नकल उतारी," तू तो जैसे घर वालों के अलावा किसी को जानती ही नही.. सामने से बोल नही सकती थी क्या?"

"मैं क्यूँ बोलूं..? मुझे अच्च्छा नही लगता ऐसे किसी को राह चलते में टोकना.. बताओ ना.. आपने उस लेटर की बात की या नही..... और मुझे क्यूँ बुलाया है?" नीरू ने जवाब देते हुए पूचछा....

"हां.. कह रहा था कि अब मैं सब संभाल लूँगा... और कुच्छ हो ना हो.. हमें बहुत अच्च्छा दूल्हा मिल गया; अपनी गुड़िया रानी के लिए.." मम्मी ने नीरू का चेहरा अपने हाथों में लेकर गालों को चूमते हुए कहा...

नीरू बात सुनते ही बिदक गयी," ये क्या कह रही हैं मम्मी.. मैने कह दिया ना मुझे नही करनी शादी वादी.. आप बार बार ये जिकर ना किया करें.. मेरा दम घुटने लगता है...."

"अरी.. सुन तो ले एक बार की रिश्ता किसका आया है... अपने 'मानव' का.. कितना सुंदर और छैल छबिला है.. और थानेदार है.. तू मौज करेगी उसके साथ!" मम्मी ने समझाते हुए कहा...

"थानेदार होगा, अपने घर में.. मुझे नही करनी किसी से शादी... देख लेना, आगे बात बढ़ाई तो!" गुस्से से भरी नीरी ने अपनी किताब उठाई और पैर पटकती हुई वापस चली गयी.. कॉलेज में....!

"ये लड़की भी ना!" मम्मी ने बड़बड़ाते हुए अपने माथे पर हाथ मारा ही था की फोन की घंटी बज उठी..,"मम्मी ने लपकते हुए झट से फोन उठा लिया...,"हां जी!"

"सच में आज का दिन तो बहुत ही शुभ है... वो भी बहुत खुश हुए बात सुनकर.. झट से तैयार हो गये..!" पापा की आवाज़ थी...

"आच्छाआअ!" मम्मी जी चहकति हुई बोली और फिर अचानक नीरू की बात याद आते ही मायूस हो गयी," पर शीनू का क्या करें? ये तो उल्टी ही रामायण पढ़ रही है..."

"क्यूँ क्या हुआ? पापा ने आशंकित होकर पूचछा...

"कह रही है, इसको नही करनी शादी वादी.. मुझसे लड़ाई करके वापस गयी है..." मम्मी का चेहरा उतर गया....

"ओह्हो.. तुमने तो मुझे डरा ही दिया था.. ऐसा तो होता ही है.. लड़की है आख़िर! और क्या शादी की बात सुनकर नाचने लग जाएगी..! लड़कियाँ तो ऐसे करती ही हैं.. तुम उसकी चिंता मत करो.. वो तो इस शनिवार को ही देखने आने की बात कह रहे हैं...." पापा ने बात को आगे बढ़ाया...

"हाई राम! पर शनिवार में तो तीन ही दिन बचे हैं...." मम्मी सोच कर बोली...

"तो हमें क्या करना है.. उनकी देखी भाली तो है ही.. बस आ जाएँगे और 'अपनाकर' चले जाएँगे... तुम किसी बात की चिंता मत करो! मैं रखता हूँ अब.." कहकर पापा ने फोन काट दिया...

मम्मी जी फूली नही समा रही थी.....
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"एक्सक्यूस मी, मिस नीरू!"

नीरू कॉलेज के अंदर कदम रखने ही वाली थी कि अपना नाम सुनकर चौंक कर पलटी..

"मैं अमन हूँ.. रोहन का दोस्त!" अमन ने मुस्कुराते हुए कहा...

पहले से ही गुस्से में भरी हुई नीरू की थयोरियाँ चढ़ गयी,"तो?"

एक बारगी नीरू के तेवर को देख अमन भी सहम सा गया.. इस बात को जानते हुए कि नीरू ने उस रात रोहन और रवि को ऐसे ही निकल जाने दिया था, उस'से काफ़ी विनम्रता की उम्मीद थी.. कुच्छ देर रुक कर संभालते हुए बोला," तो.... मुझे आपसे कुच्छ बात करनी थी.. इसी बारे में.. आप चाहे तो अपनी सहेलियों को साथ ले सकती हैं...."

"नही... मुझे किसी से कोई बात नही करनी..." कहकर वो पलटी ही थी कि ऋतु और शिल्पा ने उसका हाथ पकड़ लिया," सुन तो लो शीनू! सुन'ने में क्या हर्ज़ है..?" ऋतु ने कहा....,"मुझे रोहन की बातें सच्ची लगती हैं...."

"अब तुम भी?" नीरू ने ऋतु को घूरा....

"मुझ पर विस्वास नही है क्या?" ऋतु ने उसका हाथ दबाकर कहा...

"यार.. इसमें विस्वास की क्या बात है? बस, मुझे कोई बात नही करनी..." नीरू अपने फ़ैसले पर अडिग थी...

"देख! मैं तुझे रोहन की बातों में सच्चाई के बहुत से सबूत दे सकती हूँ.. पर तू एक बार हमारे साथ चल.. बस!" ऋतु ने ज़ोर देकर कहा...

"साथ चलूं? ... पर कहाँ?" नीरू ने नरम पड़ते हुए कहा...

"चल आजा... " ऋतु ने कहा और लगभग ज़बरदस्ती सी करते हुए उसको अमन की गाड़ी में बैठा लिया.. साथ ही शिल्पा भी बैठ गयी......

अमन के घर पर सब लोग साथ साथ बैठे थे.. शिल्पा और शेखर एक दूसरे के साथ बैठे थे.. अमन और रोहन एक दूसरे के साथ.. उनके सामने ऋतु के साथ बैठी हुई नीरू खुद को अजीब सी स्थिति में पा रही थी... अगर ऋतु उसके साथ ना होती तो एक पल भी उसका वहाँ ठहरना नामुमकिन था... उसने ऋतु का हाथ कसकर पकड़ा हुआ था..

अचानक दारू की बॉटले छिपाने गया रवि जैसे ही उनके सामने आया.. उसके सिर पर गोला बना देख ऋतु की हँसी छ्छूट गयी.. नीरू ने भी जैसे ही अपना चेहरा उपर उठाया, अपना मुँह दबाकर हँसने से खुद को रोक ना पाई...

"प्रणाम भाभी जी!" रवि ने पहली बार नीरू के चेहरे पर सितारों की चमक जैसी मुस्कुराहट देखी थी.. मौके का फायडा उठाते हुए उसने नीरू को भाभी कह ही दिया....

नीरू ने उसकी बात को अनसुना कर दिया और ऋतु से बोली," हां.. अब बताओ.. क्या बात करनी थी.. जल्दी बोलो.. मुझे जाना है...

रोहन ने बोलने के लिए जैसे ही मुँह खोला.. सब चुप होकर उसकी बात सुन'ने लगे.. अपने सपनो से शुरुआत करके आज तक की सारी कहानी रोहन ने विस्तार से बयान कर दी.. सिर्फ़ उसमें से श्रुति के साथ हुए उस दर्दनाक हादसे को वह खा गया.. इस दौरान श्रुति को याद करते हुए उसकी आँखें भर आई.. और एकाएक सब भावुक हो गये.. जिनको श्रुति के बारे में पता था.. वो श्रुति को याद करके.. और जिन्हे नही पता था.. वो ये समझ कर कि रोहन नीरू को कहानी सुनाते हुए बहक गया है....

"आई बात समझ में....?" ऋतु ने रोहन की बात ख़तम होते ही नीरू से पूचछा...

नीरू का दिमाग़ कहानी सुन'ते हुए सुन्न सा होकर अपना नाम बदले जाने वाली कहानी से तड़ातम्मया बिठा रहा था.. पर प्रत्यक्ष में उसने सिर्फ़ इतनी ही प्रतिक्रिया दी," चलें!"

"अब ये क्या बात हुई...? कुच्छ बोलो तो सही.. आख़िर सब तुम्हारे जवाब का इंतजार कर रहे हैं..." ऋतु ने गुस्से में भरकर कहा....

नीरू कुच्छ बोलने की सोच ही रही थी कि अगले ही पल मानो उसको बिजली का सा झटका लगा..

"उम्मीद करता हूँ कि मैने आप सब को डिस्टर्ब नही किया होगा..." बिना इजाज़त अंदर आने के बाद एक एक चेहरे को घूर्ने के बाद मानव की आँखें नीरू पर आकर टिक गयी....," ओह्हो! इतनी शराफ़त और नज़ाकत भरी शरारत... आइ'एम इंप्रेस्ड!" मानव के चेहरे पर कुटिल मुस्कान तेर गयी.....

"आइए ना इनस्पेक्टर साहब. बैठिए... हम उस दिन इन्ही 'नीरू' की बात कर रहे थे.." अमन इनस्पेक्टर के स्वागत में खड़ा हो गया....

नीरू कुच्छ बोल सकने की हालत में नही थी.. वह उठकर बाहर जाने ही लगी थी की मानव ने उसको टोक दिया,"अरे नही नही... ये तो बहुत ही अच्च्छा हुआ कि आप यहीं मिल गयी.. रोहन को हथकड़ी लगाने से पहले मुझे आपके बयानों की भी ज़रूरत पड़ेगी... हा हा हा!"

मानव की बात सुनकर सभी चौंक कर उसकी और देखने लगे..

"ये क्या कह रहे हैं आप..? रोहन को हथकड़ी?" अमन ने आसचर्यचकित होते हुए पूचछा....

"चिंता ना करें.. मैं सब कुच्छ सपस्ट करके ही इसको यहाँ से ले जाउन्गा..." मानव कुर्सी पर बैठ गया...

रोहन कभी मानव को और कभी नीरू को अजीब सी निगाहों से देखने लगा.....

"तो रोहन जी; आप रात को शीनू के घर में घुसपैठ करते हैं?" सबके चेहरों को अपनी और ताकता छ्चोड़ कर अपनी इनटेरगेशन शुरू कर दी....

सवाल सुनते ही रवि ने अपने सिर के गोले को हाथ से ढक लिया... मानो सबूत छिपाने की कोशिश कर रहा हो...

रोहन ने मायूस होकर शिकायती नज़रों से नीरू की और देखा.. उसको यही अंदाज़ा हुआ कि नीरू ने उसके घर में घुसने की रिपोर्ट करवा दी है... सिर झुका कर वह कबूल करने को बोलने ही वाला था कि चौंक कर उसने नीरू की और देखा...

"नही! ये हमारे घर में कभी नही आया...!" नीरू के जवाब ने सबको हैरत में डाल दिया...

मानव नीरू के बोलने से झल्ला उठा.. उसको नीरू की आवाज़ से ही पता चल गया था कि वो रोहन को बचाने के लिए ऐसा बोल रही है...

"आर यू शुवर मिस.. शीनू उर्फ नीरू जी!" चेहरा नीचे किए हुए ही नज़रें उपर उठा कर मानव ने नीरू की और घूरा....

"हां.. ये कभी हमारे घर नही आया...!" नीरू ने नज़रें झुकाए हुए ही जवाब दिया.. बात सुनकर रवि भी उच्छल पड़ा,"हां हां.. हम भला रात को क्या करने जाएँगे.. हैं ना रोहन!"

रोहन ने नज़रें उपर करके उसके 'गोले' को देखा और उसकी हँसी छ्छूट गयी.. अब रोहन काफ़ी रिलॅक्स महसूस कर रहा था.. जब मियाँ बीवी राज़ी, तो क्या करेगा काज़ी!

"वाह वाह! रोहन को बचाने की आपकी कोशिश काबिल-ए-तारीफ़ है नीरू जी! पर अफ़सोस! इसको हथकड़ी लगाने के लिए जो वजह मेरे पास है.. उसमें आप भी इसकी कोई मदद नही कर सकती.... इसके इस जुर्म के लिए तो मैं इसको समझा कर ही छ्चोड़ने वाला था.... आख़िर तुम्हे भी इसके साथ कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ते... और मेरी तरह कोई भी इज़्ज़तदार मर्द ये नही चाहेगा कि उसकी होने वाली धरमपत्नी इस तरह की छ्होटी छ्होटी बातों के लिए कोर्ट के झमेले में पड़े.."

मानव ने अपनी आख़िरी बात को चबा चबा कर कहा और नीरू के घर मिला खत उसके सामने टेबल पर रख दिया...," अब ये मत कहना कि ये खत भी आपको नही मिला.. आंटी जी ने मुझे दिया है.."

नीरू ने अपनी नज़रें झुका ली.. कुच्छ देर मौन रहने के बाद बोली,"हां.."

मानव कुटिलता के साथ मुस्कुराया,"वेरी गुड!... पढ़ना ज़रा इसको!" कहकर मानव ने खत रोहन को पकड़ा दिया....

रोहन रवि शेखर और अमन आस्चर्य से खत को पढ़ने के बाद एक दूसरे की आँखों में देखने लगे.. किसी की समझ में नही आ रहा था कि ये 'लेटर' वाला क्या फंडा है.. सब एक दूसरे से इशारों ही इशारों में सवाल सा कर रहे थे....

"पढ़ लिया?" मानव ने आराम से पिछे सिर टिकते हुए पूचछा....

"जी हां.. पर इस'से हमारा कोई लेना देना नही...!" रोहन ने ज़ोर देकर कहा....

"मान लिया! चलो अब इसको पढ़ो ज़रा...." मानव ने एक और लेटर रोहन के सामने टेबल पर फैला दिया...

"ययए.. ये तो श्रुति का है...." रोहन ने हाथ में पकड़े श्रुति के स्यूयिसाइड नोट की पहली लाइन पढ़ते ही कहा....

मानव मुस्कुराया," ना! ये श्रुति ने नही लिखा... पहले में मान चुका था कि श्रुति ने आत्महत्या की है... और ये स्यूयिसाइड नोट अपने हाथों से लिखा है... पर अब नही मानूँगा... श्रुति की हत्या हुई है...!"


"क्क्या मतलब..." सभी उच्छल कर खड़े हो गये.. बेचारी नीरू को तो अब तक ये भी पता नही था कि श्रुति अब इस दुनिया में नही है.... सब हैरत से मानव की ओर देख रहे थे....

"दोनो लेटर्स एक साथ रख कर देखो... सॉफ पता चल रहा है कि दोनो एक ही आदमी ने लिखें हैं..." मानव के चेहरे पर सफलता की चमक उभर आई थी....

सबने अपने अपने हाथों में लेटर लेकर देखे.... मानव की बात शत प्रतिशत सच थी.... पर किसी की कुच्छ समझ में नही आ रहा था....

"इसका क्या मतलब है?" अमन ने हड़बड़ा कर पूचछा....

"इसका मतलब ये है कि स्यूयिसाइड नोट श्रुति ने नही लिखा... किसी और ने लिखा है.. और जिसने भी लिखा है.. उसी ने श्रुति का कत्ल किया है...!" मानव तीर छ्चोड़ कर चुप हो गया.... उसको कहीं से किसी तरह की कोई प्रतिक्रिया नही मिली तो मजबूरन उसको खुद ही सारी बात समझानी पड़ी....

"देखो! श्रुति मर चुकी है.. इसीलिए नीरू के घर मिला लेटर श्रुति के हाथ का लिखा नही हो सकता... अब क्यूंकी दोनो खातों में राइटिंग हूबहू एक जैसी है.. इसका मतलब ये हुया कि श्रुति का स्यूयिसाइड नोट भी उसी व्यक्ति ने लिखा है जिसने ये दूसरा खत लिखा...

सॉफ बात है कि उसी व्यक्ति ने ही श्रुति की हत्या भी की है... अब अगर उस दिन के घटनाक्रम पर नज़र डालें तो रोहन ने खुद कहा है कि लास्ट में वो कुण्डी लगाकर श्रुति को अंदर छ्चोड़ आया था.. उसके बाद नितिन ने स्वीकार किया है कि जब वो श्रुति के पास अंदर गया तो श्रुति लाश बन चुकी थी... अगर नितिन बाहर होता तो मैं एक पल को मान भी लेता कि हो सकता है हत्या नितिन ने की हो.. पर उसकी जमानत तो कल होगी.. फिर वो कैसे नीरू के घर लेटर भेज सकता है... नही ना?"

इसका मतलब कहानी शीशे की तरह बिल्कुल सॉफ हो गयी.... नितिन ने श्रुति को जबरन रोहन के पास भेजा और रोहन ने श्रुति की मजबूरी का फायडा उठाते हुए उसके साथ ज़बरदस्ती करने की कोशिश की.. पर जब वो नही मानी तो ज़बरदस्ती के चक्कर में ही इसने उसका गला घोंट दिया... और उसको पंखे से लटका कर बाहर से कुण्डी बंद करके आ गया... समझे! नितिन पर सिर्फ़ ब्लॅकमेलिंग का आरोप रहेगा.. बाकी सारा काम तो जनाब ने अपने हाथों से ही किया है...." मानव ने एक लंबी साँस छ्चोड़ कर अपनी कहानी को विराम दिया....

"आप बेवजह रोहन पर शक कर रहे हैं इनस्पेक्टर... ये सपने में भी ऐसा नही कर सकता....!" अमन ने ज़ोर देकर कहा....

"तो किस पर करूँ प्रोफ़्फेसर साहब!" मानव हंसा," क्या आप पर करूँ? या बाकी लोगों पर... उस रात कोई और मौजूद था ही नही.. अगर आप में से कोई क़ुबूल कर रहा है कि ये कत्ल और दोनो खत आप में से किसी ने किए हैं तो ठीक है.. मैं विचार कर लेता हूँ... वरना सारे सबूत तो रोहन की तरफ ही इशारा कर रहे हैं..." मानव ने कहा...

"हम जायें!" नीरू के चेहरे पर कड़वाहट सॉफ झलक रही थी......

"जी क्यूँ नही..? वैसे अब भी कोई मुग़ालता बचा हो तो आप भी सवाल कर सकती हैं..." मानव ने तीखी नज़रों से नीरू की और देखते हुए कहा...

नीरू, ऋतु और शिल्पा बिना कुच्छ कहे बाहर निकल गयी....

"हम भी चलते हैं लव गुरु.. तुमसे टिप्स लेने फिर कभी आउन्गा.." मानव ने सलाम ठोंकने के अंदाज में अपना हाथ अमन की और उठाया और रोहन का हाथ पकड़ कर खड़ा हो गया....," रोहन को मैं कल सुबह कोर्ट में पेश कर दूँगा.. पर मुझे नही लगता कि 4-5 महीने से पहले इसकी बैल अप्लिकेशन लगाने का कोई फायडा होगा..."
रात को करीब 12 बजे जाकर मानव को बिस्तेर नसीब हुआ.. सारे दिन की भगा दौड़ी से उसको थकान महसूस हो रही थी... रोहन से उसने श्रुति वाले केस से ज़्यादा नीरू के बारे में पूचछा था... ये जानकार उसको सुकून मिला था कि अभी तक रोहन उसके दिल में जगह बनाने में नाकामयाब रहा है... उसको खुद अहसास हो रहा था कि रोहन का नाम नीरू के साथ जुड़ा होने की वजह से वह केस में कुच्छ ज़्यादा ही इंटेरेस्ट ले रहा है.. दोपहर को नीरू के सामने ही सारा खुलासा करने के पिछे भी उसका यही मकसद था...

पर मानवीयता और शायद आत्मीयता सी दिखाते हुए उसने रोहन को अपने साथ ही खाना खिलाया और स्टाफ के ही आदमी के बिस्तेर पर सो जाने को कह दिया... ताकि वह अपने ही मंन के द्वारा धिक्करे जाने से बच सके... वह खुद भी थाने में बने अपने रिटाइरिंग रूम में ही लेट गया...

अचानक दरवाजे पर हुई दस्तक से उसकी नींद टूट गयी,"कौन है?"

पर उसके सवाल का किसी ने भी जवाब नही दिया और वह करवट बदल कर फिर सोने की कोशिश करने लगा...

थोड़ी ही देर बाद दरवाजा लगातार 2 बार जल्दी जल्दी खटखटाया गया.. वह झल्ला कर उठ बैठा और पॅंट पहन कर उठ खड़ा हुआ...

"क्या बात है?" दरवाजा खोल कर मानव ने पास ही खड़े संतरी से पूचछा...

"कुच्छ नही जनाब! क्या हो गया...?" संतरी भाग कर दरवाजे के पास आया...

"दरवाजा क्यूँ खटखटा रहे हो?" मानव ने हुल्के से गुस्से से कहा...

"नही तो जनाब! मैं तो आधे घंटे से यहीं खड़ा हूँ.. दरवाजा तो किसी ने नही खटखटाया...."

मानव ने अजीब सी नज़रों से उसको घूरा और बाहर गेट की तरफ टहलने चला गया.. वापस लौट'ते हुए वा रोहन के कमरे में घुस गया.. रोहन जाग ही रहा था...

"कोई दिक्कत तो नही है भाई?" मानव ने पूचछा...

"आपके रहते दिक्कत क्या हो सकती है?" रोहन ने व्यंग्य सा किया.. मानव ने कुच्छ बोलना उचित नही समझा और बाहर निकल कर अपने कमरे में जाकर लाइट ऑफ की और फिर लेट गया...

मुश्किल से उसको लेटे हुए 5 मिनिट भी नही हुए होंगे की अचानक कमरे की लाइट जल गयी...

हड़बड़ते हुए चौंक कर मानव एक दम उच्छल कर बैठ गया," कौन है?"

पर एक बार फिर किसी से कोई जवाब नही मिला...

मानव के दिल की धड़कने बढ़ने लगी.. वह बिस्तेर से उठा और धीरे धीरे चलते हुए अलमारियों के पिछे बने स्विच बोर्ड की और बढ़ा... वहाँ पर किसी चूहें तक का भी नामोनिशान ना पाकर उसका दिल उसकी बल्लियों पर आ जमा," क्या मुसीबत है?" वह बड़बड़ाया और लाइट बंद कर दी... फिर जाने क्या सोच कर वह पलटा और लाइट फिर से ऑन कर दी....

वापस बिस्तेर की तरफ आते ही मानो उसको बिजली का कोई तेज झटका लगा हो.. हैरत और भय के मारे उसकी आँखें बाहर को निकल आई... धीरे धीरे चलकर उसने बिस्तेर पर पड़े कागज के टुकड़े को उठाया.. लाल रंग से कागज पर सिर्फ़ इतना ही लिखा हुआ था, डेड नेवेर लाइ!

आसमन्झ्स में वहीं जमकर खड़े हो चुके मानव को सपस्ट अहसास हो रहा था कि कमरे में कोई है... पर कौन है; ये उसकी समझ से परे था.. इतना तो तय था ही कि जो कोई भी था.. तीनो राइटिंग एक ही आदमी की थी...

हैरानी से पागल हुए जा रहे मानव ने बिस्तेर के नीचे देखा, दोबारा अलमारियों के पिछे देखा.. पर कहीं आदमी होने का चिन्हा तक उसको नज़र नही आया...

"कौन है भाई? ये आँख मिचौली सी कैसी खेल रहे हो... सामने आकर बात करो ना.." मानव एक जगह खड़ा खड़ा ही चारों तरफ घूम घूम कर देख रहा था...

"अगर तुम रोहन या नितिन को बचाने के इरादे से आए हो तो सामने आ जाओ! मैं भी सच जान'ना चाहता हूँ... सामने आ जाओ यार!" मानव इस तरह बात कर रहा था जैसे किसी से फोन पर बात कर रहा हो.. बोलते हुए उसकी आँखें सामने दीवार पर ठहरी हुई थी.... उसकी बातों और चेहरे से लग रहा था की उसको 'भूतों' के कॉन्सेप्ट पर यकीन हो चला है...

अगले ही पल उसने बड़ी मुश्किल से खुद को बेहोश होने से रोका... उसकी टेबल पर रखा पेन पहले सरका और फिर हवा में उठ गया.. अगले ही पल पेन टेबल पर इस तरह जाकर खड़ा हो गया मानो किसी ने पेन हाथ में लेकर टेबल पर हाथ रख दिया हो....

आअस्चर्य में मानव पलकें झपकना तक भूल गया.. वह दो कदम पिछे हटा और अपने हाथ अलमारी से चिपका लिया... उसकी आँखें हैरत से फटी जा रही थी.. गला सूख चुका था.... पर बोलती बिल्कुल बंद थी.. अब तो उसके साँस भी गिने जा सकते थे... और दिल की धड़कने भी सुनी जा सकती थी....

कुच्छ पल पेन हवा में ही लहराता रहा.. फिर अचानक उसकी सी.डी. (केस डाइयरी) के पन्ने पलटने लगे... आख़िरकार जब पन्ने पलटने बंद हो गये तो पेन डाइयरी के पन्ने से सटकार खड़ा हो गया... और इस तरह लहराने लगा जैसे पन्ने पर कुच्छ लिखा जा रहा हो....

मानव साँस रोके डाइयरी पर पेन का नृत्या देखता रहा.. आज से पहले उसने कभी सोचा भी नही था कि ऐसा भी कभी देखने को मिल सकता है.. हालाँकि अभी तक उसको किसी तरह की हानि नही हुई थी.. पर फिर भी वह पछ्ता रहा था कि रिवॉल्वर उसने टेबल के ड्रॉयर में ही क्यूँ छ्चोड़ दी.. अगर पेन उठ सकता है तो रिवॉल्वेर भी तो..

अचानक डाइयरी पेन को अपने पन्नों में ही समेटे बंद हो गयी.. कुच्छ ही देर बाद चितकनी नीचे हुई और दरवाजा अपने आप खुल गया...

मानव अभी तक सम्मोहित सा दरवाजे की और देख रहा था कि संतरी भगा भगा आया,"जी जनाब! आपने बुलाया..!"

अब तो मानव संतरी को भी शक की निगाहों से ही घूर रहा था.. ,न..नही तो!"

"ज्जई.. वो आपने दरवाजा खोला, इसीलिए मुझे लगा..." संतरी सिर झुका कर बाहर निकलने लगा....

"अरे सुनो!" मानव ने आवाज़ लगाई...

संतरी झट से सेवा में पुन्ह: हाज़िर हो गया.....

"वो... रोहन को यहीं भेज दो.. मेरे पास!"




क्रमशः .........................














आपका दोस्त राज शर्मा
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा

(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj

































































































































































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