Thursday, April 8, 2010

raj sharma stories दीदी का दीवाना पार्ट-5

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दीदी का दीवाना पार्ट-5
"फिर से मार खायेगा क्या...जैसा कहती हु वैसा कर..." कहती हुई थोड़ा आगे खिसक कर मेरे पास आई और अपने पेटिकोट को खींच कर घुटनों से ऊपर करते हुए पहले के जैसे बैठ गई. मैंने चुपचाप अपने चुत्तरों को थोड़ा सा ऊपर उठा दिया. दीदी ने सटाक से मेरे पैंट को खींच कर मेरी कमर और चुत्तरों के निचे कर दिया, फिर मेरे पैरों से होकर मेरे पैंट को पूरा निकाल कर निचे कारपेट पर फेंक दिया. मैंने निचे से पूरा नंगा हो गया था और मेरा ढीला लण्ड दीदी की आँखों के सामने था. मैंने हाल ही में अपने लण्ड के ऊपर उगे के बालो को ट्रिम किया था इसलिए झांट बहुत कम थे. मेरे ढीले लण्ड को अपनी मुठ्ठी में भरते हुए दीदी ने सुपाड़े की चमरी को थोड़ा सा निचे खींचते हुए मेरे मरे हुए लण्ड पर जब हाथ चलाया तो मैं सनसनी से भर आह किया. दीदी ने मेरी इस आह पर कोई ध्यान नहीं दिया और अपने अंगूठे को सुपाड़े पर चलाती हुई सक-सक मेरे लण्ड की चमरी को ऊपर निचे किया. दीदी के कोमल हाथो का स्पर्श पा कर मेरे लण्ड में जान वापस आ गई. मैं डरा हुआ था पर दीदी जैसी खूबसूरत औरत की हथेली ने लौड़े को अपनी मुठ्ठी में दबोच कर मसलते हुए, चमरी को ऊपर निचे करते हुए सुपाड़े को गुदगुदाया तो अपने आप मेरे लण्ड की तरफ खून की रफ्तार तेज हो गई. लौड़ा फुफकार उठा और अपनी पूरी औकात पर आ गया. मेरे खड़े होते लण्ड को देख दीदी का जोश दुगुना हो गया और दो-चार बार हाथ चला कर मेरे लण्ड को अपने बित्ते से नापती हुई बोली "बाप रे बाप....कैसा हल्लबी लण्ड है...ओह... हाय...भाई तेरा तो सच में बहुत बड़ा है....मेरी इतनी उम्र हो गई….आज तक ऐसा नहीं देखा था...ओह...ये पूरा नौ इंच का लग रहा है...इतना बड़ा तो तेरे बहनोई का भी नहीं….हाय....ये तो उनसे बहुत बड़ा लग रहा है…..और काफी शानदार है....उफ़....मैं तो....मैं तो……हाय…..ये तो गधे के लण्ड जितना बड़ा है.....उफ्फ्फ्फ़....." बोलते हुए मेरे लण्ड को जोर से मरोर दिया और सुपाड़े को अपनी ऊँगली और अंगूठे के बीच कस कर दबा दिया. दर्द के मारे छटपटा कर जांघ सिकोरते हुए दीदी का हाथ हटाने की कोशिश करते हुए पीछे खिसका तो तो मेरे लण्ड को पकर कर अपनी तरफ खींचती हुई बोली "हरामी....साले....मैं जब सो रही होती हु तो मेरी चूची दबाता है मेरी चुत में ऊँगली करता है....आग लगाता है....इतना मोटा लौड़ा ले कर....घूमता है...और बाएं गाल पर तड़ाक से एक झापड़ जड़ दिया. मैं हतप्रभ सा हो गया. मेरी समझ में नहीं आ रहा था मैं क्या करू. दीदी मुझ से क्या चाहती है, ये भी समझ में नहीं आ रहा था. एक तरफ तो वो मेरे लण्ड को सहलाते हुए मुठ मार रही थी और दूसरी तरफ गाली देते हुए बात कर रही थी और मार रही थी. मैं उदास और डरी हुई नज़रों से दीदी को देख रहा था. दीदी मेरे लण्ड की मुठ मारने में मशगूल थी. एक हाथ में लण्ड को पकरे हुए दुसरे हाथ से मेरे अन्डकोषो को अपनी हथेली में लेकर सहलाती हुई बोली "....हाथ से करता है.... राजू....अपना शरीर बर्बाद मत कर.....तेरा शरीर बर्बाद हो जायेगा तो मैं माँ को क्या मुंह दिखाउंगी...." कहते हुए जब अपनी नजरों को ऊपर उठाया तो मेरे उदास चेहरे पर दीदी की नज़र पड़ी. मुझे उदास देख लण्ड पर हाथ चलाती हुई दुसरे हाथ से मेरे गाल को चुटकी में पकड़ मसलते हुए बोली "उदास क्यों है....क्या तुझे अच्छा नहीं लग रहा है.....हाय राजू तेरा लण्ड बहुत बड़ा और मजेदार है.... तेरा हाथ से करने लायक नहीं है....ये किसी छेद घुसा कर किया कर…..” मैं दीदी की ऐसी खुल्लम खुल्ला बातों को सुन कर एक दम से भोच्चक रह गया और उनका मुंह ताकता रहा. दीदी मेरे लण्ड की चमरी को पूरा निचे उतार कर सुपाड़े की गोलाई के चारो तरफ ऊँगली फेरती हुई बोली "ऐसे क्या देख रहा है....तू अपना शरीर बर्बाद कर लेगा तो मैं माँ को क्या मुंह दिखाउंगी......मैंने सोच लिया है मुझे तेरी मदद करनी पड़ेगी........तू घबरा मत...." दीदी की बाते सुन कर मुझे ख़ुशी हुई मैं हकलाते हुए बोला "हाय दीदी मुझे डर लगता है....आपसे...." इस पर दीदी बोली "राजू मेरे भाई...डर मत....मैंने तुझे....गाली दी इसकी चिंता मत कर.... मैं तेरा मजा ख़राब नहीं करना चाहती...ले……मेरा मुंह मत देख तू भी मजे कर........" और मेरा एक हाथ पकड़ कर अपनी ब्लाउज में कसी चुचियों पर रखती हुई बोली "....तू इनको दबाना चाहता था ना....ले...दबा...तू....भी मजा कर....मैं जरा तेरे लण्ड.... की……कितना पानी भरा है इसके अंदर....” मैंने डरते हुए दीदी की चुचियों को अपनी हथेली में थाम लिया और हलके हलके दबाने लगा. अभी दो तीन बार ही दबाया था की दीदी मेरे लण्ड को मरोरती हुई बोली "साले...कब मर्द बनेगा....ऐसे औरतो की तरह चूची दबाएगा तो...इतना तगड़ा लण्ड हाथ से ही हिलाता रह जायेगा....अरे मर्द की तरह दबा ना...डर मत....ब्लाउज खोल के दबाना चाहता है तो खोल दे....हाय कितना मजेदार हथियार है तेरा....देख....इतनी देर से मुठ मार रही हूँ मगर पानी नहीं फेंक रहा....." मैंने मन ही मन सोचा की आराम से मुठ मारेगी तभी तो पानी फेंकेगा, यहाँ तो जैसे ही लौड़ा अपनी औकात पर आया था वैसे ही एक थप्पर मार कर उसको ढीला कर दिया. इतनी देर में ये समझ में आ गया की अगर मुझे दीदी के साथ मजा करना है तो बर्दाश्त करना ही परेगा, चूँकि दीदी ने अब खुली छूट दे दी थी इसलिए अपने मजे के अनुसार दोनों चुचियों को दबाने लगा, ब्लाउज के बटन भी साथ ही साथ खोल दिए और नीले रंग की छोटी से ब्रा में कसी दीदी की दोनों रसभरी चुचियों को दोनों हाथो में भर का दबाते हुए मजा लूटने लगा. मजा बढ़ने के साथ लण्ड की औकात में भी बढोतरी होने लगी. सुपाड़ा गुलाबी से लाल हो गया था और नसों की रेखाएं लण्ड के ऊपर उभर आई थी. दीदी पूरी कोशिश करके अपनी हथेली की मुट्ठी बना कर पुरे लण्ड को कसते हुए अपना हाथ चला रही थी. फिर अचानक उन्होंने लण्ड को पकरे हुए ही मुझे पीछे की तरफ धकेला, मेरी पीठ पलंग की पुश्त से जाकर टकराई मैं अभी संभल भी नहीं पाया था की दीदी ने थोड़ा पीछे की तरफ खिसकते हुए जगह बनाते हुए अपने सर को निचे झुका दिया और मेरे लाल आलू जैसे चमचमाते सुपाड़े को अपने होंठो के बीच कसते हुए जोर से चूसा. मुझे लगा जैसे मेरी जान सुपाड़े से निकल कर दीदी के मुंह के अन्दर समा गई हो. गुदगुदी और मजे ने बेहाल कर दिया था. अपने नौजवान सुपाड़े को चमरी हटा कर पहले कभी पंखे के निचे हवा लगाता था तो इतनी जबरदस्त सनसनी होती थी की मैं जल्दी से चमरी ऊपर कर लेता था. यहाँ दीदी की गरम मुंह के अन्दर उनके कोमल होंठ और जीभ ने जब अपना कमाल सुपाड़े पर दिखाना शुरू किया तो मैं सनसनी से भर उठा. लगा की लण्ड पानी छोड़ देगा. घबरा कर दीदी के मुंह को अपने लण्ड पर से हटाने के लिए चूची छोड़ कर उनके सर को पकड़ ऊपर उठाने की कोशिश की तो दीदी मेरे हाथ को झटक लौड़े पर से मुंह हटाती हुई बोली "हाय राजू....तेरा लण्ड तो बहुत स्वादिष्ट है....खाने लायक है....तुझे मजा आएगा…....चूसने दे....देख हाथ से करने से ज्यादा मजा मिलेगा...." मैं घबराता हुआ बोला "पर...पर...दीदी मेरा निकल जायेगा,,,,बहुत गुदगुदी होती है.....जब चूसती हो.....हाय. इस पर दीदी खुश होती हुई बोली "कोई बात नहीं भाई....ऐसा होता है.....आज से पहले कभी तुने चुसवाया है..."
"हाय...नहीं दीदी...कभी...नहीं...."
"ओह... हो.....मतलब किसी के साथ भी किसी तरह का मजा नहीं लिया है....."
"हाय...नहीं दीदी....कभी किसी के साथ.....नहीं"
"कभी किसी औरत या लड़की को नंगा नहीं देखा है....."
मैं दीदी की इस बात पर शर्मा गया और हकलाते हुए बोला " जी कभी नहीं..."
"हाय तभी तू इतना तरस रहा है....और छुप कर देखने की कोशिश कर रहा था....कोई बात नहीं राजू....मुझे भी माँ को मुंह दिखाना है....चिंता मत कर....पहले मैं ये तेरा चूस कर इसकी मलाई एक बार निकल देती हूँ...फिर तुझे दिखा दूंगी....." मैं ज्यादा कुछ समझ नहीं पाया की क्या दिखा दूंगी. मेरा ध्यान तो मेरे तन्नाये हुए लौड़े पर ही अटका पड़ा था. मैं बहुत ज्यादा उत्तेजित हो चुंका था और अब किसी भी तरह से लण्ड का पानी निकलना चाहता था. मैंने अपने लण्ड को हाथ से पकड़ा तो दीदी ने मेरा हाथ झटक दिया और अपनी चूची पर रखती हुई बोली “ले इसको पकड़” और मेरे लण्ड को अपनी मुठ्ठी में भर कर ऊपर निचे करते हुए सुपाड़े को अपने मुंह में भर कर चूसने लगी. मैं सीसीयाते हुए दोनों हाथो में दीदी की कठोर चुचियों को मसलते हुए अपनी गांड बिस्तर से उछालते हुए चुसाई का मजा लेने लगा. मेरी समझ में नहीं आ रहा था की मैं क्या क्या करू. सनसनी के मारे मेरा बुरा हाल हो गया था. दीदी मेरे सुपाड़े के चारो तरफ जीभ फ़िराते हुए मेरे लण्ड को लौलीपौप की तरह से चूस रही थी. कभी वो पुरे लण्ड पर जीभ फ़िराते हुए मेरे अंडकोष को अपनी हथेली में लेकर सहलाते हुए चूसती कभी मेरे लौड़े के सुपाड़े के अपने होंठो के बीच दबा कर इतनी जोर-जोर से चूसती की गोल सुपाड़ा पिचक का चपटा होने लगता था. चूची छोड़ कर मैं दीदी के सर को पकड़ गिरगिड़ाते हुए बोला "हाय दीदी मेरा....निकल जाएगा....ओह...सी सी....दीदी अपना मुंह....हटा लो...ओह दीदी....बहुत गुदगुदी हो रही है...प्लीज दीदी....ओह मुंह हटा लो....देखो मेरा....पानी निकल रहा है....." मेरे इतना कहते ही मेरे लण्ड ने एक तेज पिचकारी छोड़ी. कविता दीदी ने जल्दी से अपना मुंह हटाया मगर तब भी मेरे लण्ड की तेज धार के साथ निकली हुई वीर्य की पिचकारी का पहला धार तो उनके मुंह में ही गिरा बाकी धीरे-धीरे पुच-पुच करते हुए उनके पेटिकोट एवं हाथ पर गिरने लगा जिस से उन्होंने लण्ड पकड़ रखा था. मैं डरते हुए दीदी का मुंह का मुंह देखने लगा की कही वो इस बात के लिए नाराज़ तो नहीं हो गई की मैंने अपना पानी उनके मुंह में गिरा दिया है. मगर मैंने देखा की दीदी अपने मुंह को चलाती हुई जीभ निकल कर अपने होंठो के कोने पर लगे मेरे सफ़ेद रंग के गाढे वीर्य को चाट रही थी. मेरी तरफ मुस्कुरा कर देखते हुई बोली "हाय राजू...बहुत अच्छा पानी निकला.... बहुत मजा आया...तेरा हथियार बहुत अलबेला है....भाई....बहुत पानी छोड़ता है....मजा आया की नहीं...बोल...कैसा लगा अपनी दीदी के मुंह में पानी छोड़ना....हाय...तेरा लण्ड जिस बूर में पानी छोड़ेगा वो तो...एक दम लबालब भर जायेगी....". दीदी एकदम खुल्ल्लम खुल्ला बोल रही थी. दीदी के ऐसे बोलने पर मैं झरने के बाद भी सनसनी से भर शरमाया तो दीदी मेरे झरे लण्ड को मुठ्ठी में कसती हुई बोली "अनचुदे लौड़े की सही पहचान यही है...की उसका औजार एक पानी निकालने के बाद कितनी जल्दी खड़ा होता.... " कहते हुए मेरे लण्ड को अपनी हथेली में भर कर सहलाते हुए सुपाड़े पर ऊँगली चलाने लगी. मेरे बदन में फिर से सनसनाहट होने लगी. झरने के कारण मेरे पैर अभी भी काँप रहे थे. दीदी मेरी ओर मुस्कुराते हुए देख रह थी और बोली "इस बार जब तेरा निकलेगा तो और ज्यादा टाइम लगाएगा....वैसे भी तेरा काफी देर में निकलता है.....साला बहुत दमदार लौड़ा है तेरा...." मैं शरमाते हुए दीदी की तरफ देखा और बोला "हाय....फिर से...मत करो...हाथ से...". इस पर दीदी बोली "ठहर जा...पहले खड़ा कर लेने दे...हाय देख खड़ा हो रहा है लौड़ा....वाह....बहुत तेजी से खड़ा हो रहा है तेरा तो....". कहते हुए दीदी और जोर से अपने हाथो को चलाने लगी. "हाय दीदी हाथ से मत करो....फिर निकल जाएगा...." मैं अपने खड़े होते लण्ड को देखते हुए बोला. इस पर दीदी ने मेरे गाल पकड़ खींचते हुए कहा "साले हाथ से करने के लिए तो मैंने खुद रोका था...हाथ से मैं कभी नहीं करुँगी....मेरे भाई राजा का शरीर मैं बर्बाद नहीं होने दूंगी...." फिर मेरे लण्ड को छोड़ कर अपने हाथ को साइड से अपनी पेटिकोट के अन्दर ले जा कर जांघो के बीच पता नहीं क्या, शायद अपनी बूर को छुआ और फिर हाथ निकाल कर ऊँगली दिखाती हुई बोली "हाय देख... मेरी चूत कैसे पनिया गई....बड़ा मस्त लण्ड है तेरा...जो भी देखेगी उसकी पनिया जायेगी....एक दम घोड़े के जैसा है...अनचुदी लौंडिया की तो फार देगा तू....मेरे जैसी चुदी चुतो के लायक लौड़ा है....कभी किसी औरत की नंगी नहीं देखी है....". दीदी के इस तरह से बिना किसी लाज शर्म के बोलने के कारण मेरे अन्दर भी हिम्मत आ रही थी और मैं भी अपने आप को दीदी के साथ खोलना चाह रहा था. दीदी के ये बोलने पर मैंने शर्माने का नाटक करते हुए कहा "हाय दीदी किसी की नहीं...बस एक बार वो ग्वालिन बाहर मुनिसिप्लिटी के नल पर सुबह-सुबह नहा रही थी....तब...." दीदी इस चहकती हुई बोली "हाँ..तब क्या भाई...तब...". मैं गर्दन निचे करते हुए बोला "वो..वो...तो...दीदी कपड़े पहन कर नहा रही थी...बैठ कर...पैर मोड़ कर.....तो उसकी साड़ी बीच में से हट...हट गई...पर...काला...काला दिख रहा था....जैसे बाल हो...." दीदी हँसने लगी और बोली "अरे...वो तो झांटे होंगी....उसकी चूत की....बस इतना सा देख कर ही तेरा काम हो गया....मतलब तुने आजतक असल में किसी की नहीं देखी है..." मैं शरमाते हुए बोला "अब पता नहीं दीदी....मुझे....लगा वही होगी...इसलिए..." दीदी इस पर मुस्कुराते हुए बोली "ओह हो...मेरा प्यारा छोटा भाई.....बेचारा....फिर तुझे और कोई नहीं मिली देखने के लिए जो मेरे कमरे में घुस गया...." मैं इस पर दीदी का थोड़ा सा विरोध करते हुए बोला "नहीं दीदी....ऐसी बात नहीं है....वो तो....तो मैं....मेरे ऑफिस में भी बहुत सारी लड़कियाँ है मगर.....मगर....मुझे नहीं पता....ऐसा क्यों है....मगर मुझे आप से ज्यादा सुन्दर...कोई नहीं.....कोई भी नहीं....लगती....मुझे वो लड़कियाँ अच्छी नहीं...लगती प्लीज़ दीदी मुझे माफ़ कर दो... मैं...मैं...आगे से ऐसा.....नहीं..." इस पर दीदी हँसने लगी और मुझे रोकते हुए बोली "अरे...रे...इतना घबराने की जरुरत नहीं है....मैं तो तुमसे इसलिए नाराज़ थी की तुम अपना शरीर बर्बाद कर रहे थे....मेरे भाई को मैं इतनी अच्छी लगती हूँ की उसे कोई और लड़की अच्छी नहीं लगती....ये मेरे लिए गर्व की बात है मैं बहुत खुश हूँ....मुझे तो लग रहा था की मेरी उम्र बहुत ज्यादा हो चूँकि है इसलिए.....पर....इक्कीस साल का मेरा नौजवान भाई मुझे इतना पसंद करता है ये तो मुझे पता ही नहीं था..." कहते हुए आगे बढ़ कर मेरे होंठो पर एक जोरदार चुम्मा लिया और फिर दुबारा अपने होंठो को मेरे होंठो से सटा कर मेरे होंठो को अपने होंठो के दबोच कर अपना जीभ मेरे मुंह में ठेलते हुए चूसने लगी. उसके होंठ चूसने के अंदाज से लगा जैसे मेरे कमसिन जवान होंठो का पूरा रस दीदी चूस लेना चाहती हो. होंठ चूसते चूसते वो मेरे लण्ड को अपनी हथेली के बीच दबोच कर मसल रही थी. कुछ देर तक ऐसा करने के बाद जब दीदी ने अपने होंठ अलग किये तो हम दोनों की सांसे फुल गई थी. मैं अपनी तेज बहकी हुई सांसो को काबू करता हुआ बोला "हाय दीदी आप बहुत अच्छी हो...."
"अच्छा...बेटा मख्खन लगा रहा है...."
"नहीं दीदी...आप सच में बहुत अच्छी हो....और बहुत सुन्दर हो...." इस पर दीदी हंसते हुए बोली "मैं सब मख्खनबाजी समझती हूँ बड़ी बहन को पटा कर निचे लिटाने के चक्कर में.....है तू...." मैं इस पर थोड़ा शर्माता हुआ बोला "हाय...नहीं दीदी....आप...." दीदी ने गाल पर एक प्यार भरा चपत लगाते हुए कहा "हाँ...हाँ...बोल…..” मैं इस पर झिझकते हुए बोला " वो दीदी दीदी...आप बोल रही थी की मैं….दि…दि…दिखा दूंगी....". दीदी मुस्कुराते हुए बोली "दिखा दूंगी...क्या मतलब हुआ...क्या दिखा दूंगी...." मैं हकलाता हुआ बोला " वो....वो...दीदी आपने खुद बोला था...की मैं....वो ग्वालिन वाली चीज़...."
"अरे ये ग्वालिन वाली चीज़ क्या होती है....ग्वालिन वाली चीज़ तो ग्वालिन के पास होगी...मेरे पास कहाँ से आएगी...खुल के बता ना राजू....मैं तुझे कोई डांट रही हूँ जो ऐसे घबरा रहा है.... क्या देखना है"

"दीदी...वो...वो मुझे...चु....चु...”

"अच्छा तुझे चूची देखनी है....वो तो मैं तुझे दिखा दिया ना...यही तो है...ले देख..." कहते हुए अपनी ब्रा में कसी दोनों चुचियों के निचे हाथ लगा उनको उठा कर उभारते हुए दिखाया. छोटी सी नीले रंग की ब्रा में कसी दोनों गोरी गदराई चूचियां और ज्यादा उभर कर नजरो के सामने आई तो लण्ड ने एक ठुनकी मारी, मगर दिल में करार नहीं आया. एक तो चूचियां ब्रा में कसी थी, नंगी नहीं थी दूसरा मैं चुत दिखाने की बात कर रहा था और दीदी यहाँ चूची उभार कर दिखा रही थी. होंठो पर जीभ फेरते हुए बोला "हाय...नहीं...दीदी आप समझ नहीं रही....वो वो दू…सरी वाली चीज़ चु…चु…चुत दिखाने....के लिए..."

"ओह हो...तो ये चक्कर है.... ये है ग्वालिन वाली चीज़.....साले ग्वालिन की नहीं देखने को मिली तो अपनी बड़ी बहन की देखेगा....मैं सोच रही थी तुझे शरीर बर्बाद करने से नहीं रोकूंगी तो माँ को क्या बोलेगी....यहाँ तो उल्टा हो रहा है....देखो माँ…तुमने कैसा लाडला पैदा किया है....अपनी बड़ी बहन को बुर दिखने को बोल रहा है....हाय कैसा बहनचोद भाई है मेरा....मेरी चुत देखने के चक्कर में है...उफ्फ्फ....मैं तो फंस गई हूँ...मुझे क्या पता था की मुठ मारने से रोकने की इतनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी...."

“दीदी की ऐसे बोलने पर मेरा सारा जोश ठंडा पर गया. मैं सोच रहा था अब मामला फिट हो गया है और दीदी ख़ुशी ख़ुशी सब कुछ दिखा देंगी. शायद उनको भी मजा आ रहा है, इसलिए कुछ और भी करने को मिल जायेगा मगर दीदी के ऐसे अफ़सोस करने से लग रहा था जैसे कुछ भी देखने को नहीं मिलने वाला. मगर तभी दीदी बोली "ठीक है मतलब तुझे चुत देखनी है....अभी बाथरूम से आती हूँ तो तुझे अपनी बुर दिखाती हूँ" कहती हुई बेड से निचे उतर ब्लाउज के बटन बंद करने लगी. मेरी कुछ समझ में नहीं आया की दीदी अपना ब्लाउज क्यों बंद कर रही है मैं दीदी के चेहरे की तरफ देखने लगा तो दीदी आँख नचाते हुए बोली "चुत ही तो देखनी है...वो तो मैं पेटिकोट उठा कर दिखा दूंगी..." फिर तेजी से बाहर निकल बाथरूम चली गई. मैं सोच में पड़ गया मैं दीदी को पूरा नंगा देखना चाहता था. मैं उनकी चूची और चुत दोनों देखना चाहता था और साथ में उनको चोदना भी चाहता था, पर वो तो बाद की बात थी पहले यहाँ दीदी के नंगे बदन को देखने का जुगार लगाना बहुत जरुरी था. मैंने सोचा की मुझे कुछ हिम्मत से काम लेना होगा. दीदी जब वापस रूम में आकर अपने पेटिकोट को घुटनों के ऊपर तक चढा कर बिस्तर पर बैठने लगी तो मैं बोला " दीदी....दीदी...मैं….चू…चू…चूची भी देखना...चाहता हूँ". दीदी इस पर चौंकने का नाटक करती बोली "क्या मतलब...चूची भी देखनी है….चुत भी देखनी है....मतलब तू तो मुझे पूरा नंगा देखना चाहता है....हाय....बड़ा बेशर्म है....अपनी बड़ी बहन को नंगा देखना चाहता है....क्यों मैं ठीक समझी ना...तू अपनी दीदी को नंगा देखना चाहता है...बोल, ...ठीक है ना...." मैं भी शरमाते हुए हिम्मत दिखाते बोला "हां दीदी....मुझे आप बहुत अच्छी लगती हो....मैं....मैं आप को पूरा...नंगा देखना....चाहता..."

"बड़ा अच्छा हिसाब है तेरा....अच्छी लगती हो.....अच्छी लगने का मतलब तुझे नंगी हो कर दिखाऊ...कपड़ो में अच्छी नहीं लगती हूँ क्या...."

"हाय दीदी मेरा वो मतलब नहीं था....वो तो आपने कहा था....फिर मैंने सोचा....सोचा...."

"हाय भाई...तुने जो भी सोचा सही सोचा....मैं अपने भाई को दुखी नहीं देख सकती....मुझे ख़ुशी है की मेरा इक्कीस साल का नौजवान भाई अपनी बड़ी बहन को इतना पसंद करता है की वो नंगा देखना चाहता है....हाय...मेरे रहते तुझे ग्वालिन जैसी औरतो की तरफ देखने की कोई जरुरत नहीं है....राजू मैं तुझे पूरा नंगा हो कर दिखाउंगी.....फिर तुम मुझे बताना की तुम अपनी दीदी के साथ क्या-क्या करना चाहते हो....".

मेरी तो जैसे लाँटरी लग गई. चेहरे पर मुस्कान और आँखों में चमक वापस आ गई. दीदी बिस्तर से उतर कर नीचे खड़ी हो गई और हंसते हुए बोली "पहले पेटिको़ट ऊपर उठाऊ या ब्लाउज खोलू..." मैंने मुस्कुराते हुए कहा "हाय दीदी दोनों....खोलो....पेटिको़ट भी और ब्लाउज भी...."

"इस.....स......स....बेशर्म पूरा नंगा करेगा....चल तेरे लिए मैं कुछ भी कर दूंगी....अपने भाई के लिए कुछ भी...पहले ब्लाउज खोल लेती हूँ फिर पेटिको़ट खोलूंगी....चलेगा ना..." गर्दन हिला कर दीदी ने पूछा तो मैंने भी सहमती में गर्दन हिलाते हुए अपने गालो को शर्म से लाल कर दीदी को देखा. दीदी ने चटाक-चटाक ब्लाउज के बटन खोले और फिर अपने ब्लाउज को खोल कर पीछे की तरफ घूम गई और मुझे अपनी ब्रा का हूकखोलने के लिए बोला

































































































































































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