Monday, April 5, 2010

हिंदी सेक्सी कहानिया अधूरा प्यार--18 एक होरर लव स्टोरी

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अधूरा प्यार--18 एक होरर लव स्टोरी

गतांक से आगे ...............................

"आज तो बड़ी सी पार्टी होनी चाहिए... क्यूँ?" अमन रोहन और रवि के साथ आज सारा दिन घर पर ही रहा.. शेखर घंटा भर पहले ही यहाँ से निकल कर गया था...

रोहन को छ्चोड़ कर दोनो के चेहरे खिले हुए थे.. हालाँकि सबको विस्वास था कि रोहन बे-कसूर है और जल्द ही वापस आ जाएगा... पर सुबह उनके थाने में जाने से पहले ही रोहन को वापस आया देख तीनो की खुशी का ठिकाना ही नही रहा था... तभी सुबह से ही सभी के चेहरे पर उल्लास सॉफ नज़र आ रहा था....

"काहे की पार्टी यार... बेवजह नीरू के सामने ज़िल्लत का सामना करना पड़ा.. पता नही क्या समझ रही होगी वो? मैं तो श्रुति वाला हादसा उसको बताना ही नही चाह रहा था.. बिना बात किरकिरी हो गयी..." रोहन ने कहा....

"अरे, कुच्छ नही होता.. शेखर ने शिल्पा को फोन करके सब कुच्छ बता दिया था....अब तक तो नीरू को पता लग भी गया होगा की तू बेक़ुसूर है.. पर यार ये तो कमाल ही हो गया.. श्रुति की आत्मा खुद चल कर तुझे बचाने गयी.. इट'स अम्ज़िंग यार!" अमन ने रोहन को निसचिंत करने की कोशिश की...

"अरे बचाना ही नही.. वो तो रोहन और नीरू को मिलवाना भी चाहती है... उसके घर पर भी तो लेटर मिला है.. कमाल हो रहा है यार..." रवि ने उनको बीच में टोका....

"हूंम्म... मुझे तो शाहरुख की उस फिल्म का डाइलॉग याद आ रहा है.. वो क्या है.. ' इतनी शिद्दत से मैने तुम्हे पाने की कोशिश की है, कि जर्रे जर्रे ने हमें मिलाने की साज़िश की है!' सच में यार.. तुमको मिलने के लिए तो जैसे पूरी कयनात ने अपनी ताक़त झोंक दी है... तुम्हे मिलने से अब कोई नही रोक सकता.. बेफ़िकर रहो.." अमन गहरी साँस लेते हुए रोहन की और देख मुस्कुराने लगा...

बात सुनकर रोहन का दिल खुश हो गया और वो भी मुस्कुराने लगा....

"अबे तू क्यूँ इतना खुश हो रहा है... कोशिश तूने नही, टीले पर तुम्हारे इंतजार में तड़प रही भाभी जी के दिल ने की है.. हम'में से किसी ने थोड़ी बहुत की है तो मैने.. ये देखो मेरा सिर.. मुझे तो लगता है, भाभी जी ने पर्मनेंट निशानी दे दी मुझे.. कम ही नही होता.." रवि ने कहा और तीनो हँसने लगे....

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" ऋतु!" शाम को नीरू ने सीरीयस होकर ऋतु से बात करनी शुरू की.. अगले दिन शाम को दोनो नीरू के घर पर ही थी....

"हुम्म.. बोल!" ऋतु ने कहा...

"अब क्या करूँ यार? मेरा तो दिमाग़ खराब हो रहा है सोच सोच कर.." नीरू ने अपना सिर पकड़ रखा था...

"देख... मैं तो यही कहूँगी की घर वालों की मान लेने में ही भलाई है.. क्या फायडा बेकार में उलझ कर.. जब कुच्छ हो ही नही सकता...!.... और फिर शादी करने में बुराई ही क्या है? मेरी ये समझ में नही आ रहा की तू शादी से इनकार क्यूँ कर रही है.. कोई और पसंद कर रखा है क्या?" ऋतु ने सीरीयस होते हुए कहा...

"तू बकवास क्यूँ कर रही है.. कुच्छ आइडिया है तो बता..!" नीरू ने गुस्से से कहा..," वो कल आ रहे हैं.. और तुझे मज़ाक सूझ रहा है..."

"मज़ाक नही कर रही यार... ठीक ही तो कह रही हूँ.. आख़िर बुराई क्या है शादी करने में.. वो तो सभी करते हैं...!" ऋतु ने ज़ोर देकर कहा...

"मुझे नही पता.. पर मुझे पक्का पता है कि शादी करते ही मैं मर जाउन्गि.." नीरू ने उदास होकर कहा....

"अच्च्छा! आज तक तो कोई मरा नही... तुझे ऐसा क्यूँ लगता है.." ऋतु लगातार जिरह कर रही थी...

"मेरा दिल कह रहा है, इसीलिए.. और मुझे पता है ये झूठ नही है.. मरना ही है तो क्यूँ ना शादी से पहले ही मर जाउ?" नीरू ने हताशा के भाव चेहरे पर लाते हुए कहा,"अपने घर में तो मरूँगी...."

"देख.. अब बकवास तू कर रही है... प्लीज़.. ऐसा मत बोल.. कुच्छ नही होगा.. अंकल आंटी तुम्हारा बुरा थोड़े ही चाहते हैं..." मरने की बात पर ऋतु को गुस्सा आ गया...

"ठीक है तो जा! तू भी उन्ही का ही पक्ष ले ले.. मुझे जो करना होगा मैं कर लूँगी..!" नीरू ने कहा और लॅटेकार तकिये के नीचे अपना चेहरा दबा लिया...

ऋतु ने नीरू के पास सरक कर उस'से तकिया छ्चीन लिया," अच्च्छा बोल.. क्या करना है.. मैं तेरे ही साथ हूँ पागल!" ऋतु उसके बालों में हाथ फेरने लगी....

ऋतु की बात सुनकर नीरू खुश होकर बैठ गयी....."देख.. मैं कल से ही मम्मी पापा के पिछे पड़ी हूँ... पर उनके कान पर जू तक नही रैंग रही.. अब तो बस एक ही इलाज है..." कहकर नीरू चुप हो गयी...

"वो क्या?" ऋतु ने संशय से पूचछा....

" गरिमा के पास होस्टल में चली जाउ 2-4 दिन के लिए.. उसको कुच्छ पता भी नही है इस शादी के चक्कर के बारे में.. मैं जाकर मम्मी को फोन भी कर दूँगी कि शादी ना करने का वादा करो तो मैं आ जाउन्गि.... फिर 'ये' आराम से मेरी शादी करने की अपनी ज़िद भी छ्चोड़ देंगे..." नीरू ने कहा....

"तूने अपनी तो सोच ली... उनकी जो बे-इज़्ज़ती होगी वो?" ऋतु ने उसको घूरते हुए कहा....

"तो मैं और क्या कर सकती हूँ यार.. मैने मम्मी से उनका नंबर. लेने की भी कोशिश की.. पर वो मानी ही नही... बता मैं क्या करूँ..." नीरू ने मायूस होकर कहा....

"हूंम्म.. देख, मैं तो सॉफ बता रही हूँ.. मुझे तो तेरा ऐसा करना अच्च्छा नही लगता... कल जो होता है होने दे.. बाद में सोच लेंगे....!" ऋतु ने समझाने की कोशिश की...

"अरे, तुझे पता नही है... वो कल मँगनी के लिए आ रहे हैं.. खाली देख कर जाने की बात होती तो मैं मान लेती.. पर घर वालों का जल्दी शादी करने का प्रोग्राम बन गया है... उन्ही के कहने पर... अब तू खुद ही सोच.. अब ज़्यादा बे-इज़्ज़ती होगी या बाद में...?" नीरू ने ज़ोर देकर पूचछा...

"देख, मैं कुच्छ नही कहती... तुझे जो करना है कर ले!" ऋतु गुम्सुम सी बैठकर कुच्छ सोचने लगी...

"देख! तू मेरा प्लान लीक तो नही करेगी ना?" नीरू ने उसको घूरते हुए पूचछा...

"कुच्छ नही करती मैं.. जो करना है कर ले.. मैं जा रही हूँ.." ऋतु खड़ी होते हुए बोली.. उसके चेहरे पर उदासी और बे'बसी सॉफ झलक रही थी.....
ऋतु को पूरी रात नींद नही आई.. सारी रात करवटें बदलते हुए वह नीरू के इस कदम के होने वाले असर के बारे में ही सोचती रही... केयी बार उसके मंन में आया की फोन करके आंटी जी को सब कुच्छ बता दे.. पर इसके लिए ज़रूरी हिम्मत वह जुटा नही सकी...

सुबह मम्मी उसको उठाने आई तो आते ही बोली," क्या बात है बेटी? तबीयत तो ठीक है?" मम्मी ने माथे पर हाथ लगा कर देखा.. वो तेज बुखार से तप रही थी.. उसकी आँखें लाल थी और चेहरा बोझिल सा लग रहा था....

"ओह्हो.. तुझे भी आज ही बीमार होना था... आज तो नीरू को देखने आने वाले हैं ना? चल चाय के साथ कुच्छ खा ले.. और गोली ले लेना... ठीक हो जाएगी..." मम्मी ने उसको पुच्कार्ते हुए कहा...

ऋतु फफक सी पड़ी... उसने अपना सिर घुटनो में दबा लिया और सिसकने लगी... अब तक तो सारे मोहल्ले को ही पता लग चुका होगा कि आज नीरू की मँगनी है.. अब क्या होगा....

अचानक उसको इस तरह से व्यवहार करते देख मम्मी जी विचलित सी हो गयी," क्या हुआ बेटा! ऐसा क्यूँ कर रही है तू..? कुच्छ बात है क्या?" मम्मी बुरा सा मुँह बनाकर उसके साथ बैठ गयी और उसका चेहरा अपनी छाती से लगा लिया...

"कुच्छ नही मम्मी!" और ऋतु और ज़्यादा तेज़ रोने लगी.....

"आए.. मेरी लाडली! ऐसा क्यूँ कर रही है? कोई बात है तो बता ना.. तू भी मुझसे कुच्छ छुपाती है कभी?" मम्मी अधीर होकर उसको दुलार करने लगी...

"ममियैयीई... वो... नीरू!" ऋतु लगातार मोटे मोटे आँसू गिराती हुई सिसक रही थी.....

"क्या हुआ? फिर से लड़ाई हो गयी क्या..? ले तू चाय ले.." मम्मी ने टेबल से ठंडी हो रही चाय उसको उठाकर दी.....

"वो शादी नही करना चाहती मम्मी... इससलिए घर से जा रही है..." अपने दिल का गुबार निकलते ही ऋतु फुट फुट कर रोने लगी.....

"हाए राम! ये क्या कह रही है तू? घर वाले समझाते क्यूँ नही... अब क्या होगा?" मम्मी के हाथ से चाय का कप छ्छूट'ते छ्छूट'ते बचा...

"उनको नही पता मम्मी... वो बिना बताए जाएगी....." ऋतु ने कहा...

"हे भगवाअन... मैं अभी उनके घर जाती हूँ.. ऐसे कैसे चली जाएगी...?" मम्मी ने एक पल भी गँवाए बिना अपनी चप्पल पहनी और तेज़ी से बाहर निकल गयी...

"उनको ये मत बताना मम्मी.. कि मैने बताया है.. वो बोलेगी नही कभी मुझसे.." ऋतु ने जब तक बात कही.. मम्मी जी बाहर निकल चुकी थी.. पता नही सुना या नही सुना....
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ऋतु की मम्मी ने नीरू के घर की बेल बजाई.. बाहर उसकी मम्मी ही निकल कर आई," आओ बेहन.. हम तो आज बड़ी लेट उठे..." नीरू की मम्मी जी ने मुस्कुरकर उसका स्वागत किया...

"नीरू कहाँ है?" ऋतु की मम्मी ने सीधा यही सवाल किया....

"सो रही है उपर.. क्यूँ?"

"ज़रा बुलाना.. मुझे कुच्छ काम है.. चलो रहने दो.. मैं उपर ही चली जाती हूँ..." ऋतु की मम्मी उनको बात बताए बिना ही नीरू को समझाना चाहती थी....

"अरे क्यूँ परेशान होती हो... आओ चाय पी लो तब तक.. मैं बुलाकर लाती हूँ..." कहते हुए नीरू की मम्मी उपर चली गयी.....

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दिन निकलने से पहले ही नीरू घर से बाहर निकल चुकी थी.. जाने क्या बात थी, पर उसका शादी ना करने का दृढ़ निस्चय निसचीत तौर पर नियती द्वारा निर्धारित ही लगता था.. बाहर निकलने से पहले उसके मन में इतनी घबराहट नही थी, जितना वो घर से बाहर कदम रखने के बाद महसूस कर रही थी. ये तो शुक्र था कि उसके सामने एक मंज़िल थी.. अमृतसर का गर्ल'स होस्टल ! वरना क्या हाल होता उसका... कभी घर वालों का ख़याल और कभी उनकी इज़्ज़त का.. उसका मॅन कहीं ना कहीं उसको ऐसा करने से रोक रहा था... पर उसके कदम आगे ही आगे बढ़ते चले गये..

बस-स्टॅंड पर जाकर उसने अनमने मंन से अमृतसर की एक टिकेट खरीदी और बस में बैठ गयी......
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"हे भगवान! ये क्या हो गया...? क्या जवाब देंगे हम उनको... इस'से अच्च्छा तो हम उसकी मान ही लेते...." सारी बात का पता लगते ही मम्मी पापा दोनों के पैरों तले की ज़मीन खिसक गयी.... ऋतु के पापा भी वहीं आ चुके थे... सबके माथे पर चिंता की लकीरें थी....

"मैं गाड़ी लेकर देख कर आता हूँ... " विचलित से पापा ने कहा और बाहर निकल गये....
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"अंकल जी! कितनी देर में चलेगी बस?" नीरू ने बस में चढ़े कंडक्टर से पूचछा...

"5-7 मिनिट और लगने हैं बेटी बस.. एक बार मिस्त्री क्लच ठीक कर दें.. फिर तो यहाँ से सीधी 5वें गियर में चलनी है...... हे हे" कंडक्टर ने कहा और आगे चला गया.....

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नीरू के पापा सीधे बस-स्टॅंड ही पहुँचे... अंदर आए और अमृतसर जाने वाली बस के पास जाकर खड़े हो गये.. अचानक उनको घर से फोन आ गया.. वो वापस पलटे और थोड़ी दूर खड़े होकर घर फोन निकाल लिया..

"हांजी" मम्मी की आवाज़ सुनकर पापा ने रुनवासी आवाज़ में पूचछा....

"ऋतु कह रही है कि वो अमृतसर जाने की बोल रही थी.. अपनी सहेली 'गरिमा' के पास...." मम्मी ने बताया....

ऋतु भी तब तक वहीं आ चुकी थी..

"षुक्र है भगवान का....!" पापा ने राहत की साँस ली..," वही ना जो हॉस्टिल में रहती है.....?"

"हांजी.. वही!" मम्मी ने हामी भारी....

"ठीक है... तुम वहाँ फोन मत करना... मैं उसको लेकर ही आउन्गा... रख दो!" पापा ने कहा और फोन काट दिया.....

फोन वापस जेब में डाल कर पापा अमृतसर वाली बस में चढ़ गये...

उन्होने सवारियों पर नज़र डाली, पर नीरू वहाँ नही थी... वो सीधे कंडक्टर के पास पहुँचे..,"इस'से पहले कोई बस गयी है क्या अमृतसर....?"

"हांजी.... बस 15 मिनिट पहले ही निकली है... क्यूँ?" कंडक्टर ने विनम्रता से पूचछा....

"नही... कुच्छ नही..." पापा ने कहा और तेज़ी से उतरते हुए बाहर निकल कर अपनी गाड़ी में बैठे और गाड़ी अमृतसर की और दौड़ा दी.....

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5-7 मिनिट का टाइम मिलने पर नीरू बस से उतर कर बस-स्टॅंड के PCओ बूथ में चली गयी थी... वहीं से उसने गरिमा के हॉस्टिल में फोन मिलाया.. पर किसी ने फोन उठाया नही....

वह बाहर निकालने ही वाली थी कि उसने पापा को बस से बाहर खड़े देख लिया... नीरू एक दम सहम गयी और वापस पी.सी.ओ. में घुस गयी...

"हांजी मेडम! फोन कर लिया हो तो बाहर आ जाइए... मुझे भी करना है..." बाहर नीरू के बाहर आने की प्रतीक्षा कर रहे आदमी ने कहा...

"एक मिनिट प्लीज़...." कहकर नीरू ने मजबूरी में रिसीवर उठाकर नंबर. रिडाइयल कर लिया...

पर फोन नही उठाया गया... नीरू ने बाहर देखा.. पापा बस से उतरे थे... नीरू ने एक बार और फोन मिला लिया....

"हेलो!" इस बार किसी ने फोन उठा लिया था....

"एक बार रूम नो. 13 से गरिमा को बुला देंगे प्लीज़!" नीरू ने रिक्वेस्ट की...

"कॉलेज में 3 दिन की छुट्टिया हैं... सभी बच्चे घर पर गये हुए हैं... आप कौन?" उधर से आवाज़ आई...

सुनते ही बुरी तरह से हताश होकर नीरू ने फोन रख दिया... पापा जा चुके थे और उसी वक़्त बस भी चल पड़ी... वह बाहर निकली और बस-स्टॅंड के पिछे चली गयी...

"हे भगवान! अब क्या करूँ..." विडंबना और असमन्झस के मारे नीरू की आँखों से आँसू छलक उठे....

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पापा ने बस पकड़ने में ज़्यादा देर नही लगाई... बस को रुक्वाकर वो गाड़ी में चढ़े.... पर उस'में भी नीरू को ना पाकर हताश हो गये... बस से उतरकर उन्होने गाड़ी अमृतसर की और ही दौड़ा दी... होस्टल में जाकर नीरू का इंतजार करने के अलावा उनके पास कोई चारा बचा ही नही था...

उधर नीरू के पास भी कोई चारा नही बचा था... लगभग वह आधे घंटे तक इसी असमन्झस में फँसी रही कि घर वापस जाउ या नही..... फिर अचानक उसके मंन में जाने क्या ख़याल आया कि वह बाहर निकली और एक ऑटो में बैठ गयी..,"चलो भैया!"

ओह माइ गोद! नीरू अमन की कोठी के सामने खड़ी थी...

"वो घर पर हैं?" नीरू ने बाहर खड़े नौकर से पूचछा....

"जी.. एक मिनिट!" कहकर राजू अंदर चला गया... सबसे पहले उसको रवि मिला अंदर...

"साहब! एक मे'म साहब आई हैं.. पूच्छ रही हैं आप लोगों को.. क्या बोलूं?"

"कौन है?" कहते हुए रवि बाहर निकल आया...

बाहर आते ही एक पल को तो वो जड़ सा होकर रह गया.. पागलों की तरह उसको कुच्छ देर तक दूर से ही देखता रहा.. फिर अपने सिर को पकड़ कर बेतहाशा अंदर की और भागा..,"भाई.... भाई!"

"क्या हो गया? चिल्ला क्यूँ रहा है..." रोहन ने पूचछा....

"ववो... वो आप खुद ही देख लो... मैं नही बताता..." रवि के चेहरे की चमक बता रही थी कि कुच्छ ना कुच्छ अच्च्छा ही हुआ है!

"कहाँ देख लूँ.. बता तो सही... तू इतना उतावला क्यूँ हो रहा है..." रोहन ने आस्चर्य से पूचछा...

"नही नही... तुम मत देखो... तुम कपड़े बदल लो... मैं लेकर आता हूँ उन्हे अंदर...." रवि ने कुच्छ सोचते हुए कहा...

"कपड़े बदल लूँ?" रोहन की कुच्छ समझ में नही आया.. रवि को घूर कर देखता हुआ रोहन बाहर निकल आया...

"आअ...आप!" रोहन की भी नीरू को देखते ही हवाइयाँ उड़ने लगी... वह तेज़ी से गेट की तरफ गया और फिर से बोला..,"आप... यहाँ?"

"अंदर आ जाउ?" नीरू ने मुरझाए चेहरे से ही कहा...

"ह..हां हां.. आइए ना... आप... क्या हो गया?" रोहन नीरू के साथ साथ चलता हुआ बोल रहा था,"सब ठीक तो है ना...."

नीरू के चेहरे से लग नही रहा था कि सब ठीक है... इसीलिए वो गहरी असमन्झस में था....

"हुम्म... वो... तुम क्या कह रहे थे पुराने टीले के बारे में!" नीरू ने सहजता से पूचछा...

"वो.. मुझे सच में सपने आते हैं.. आप की.... रवि की कसम.. भगवान की कसम... मैं कुच्छ भी झूठ नही बोल रहा था.." रोहन बात को समझ नही पाया था... तब तक अमन और रवि भी वहीं आ चुके थे...

"आप बैठिए ना!" अमन ने आग्रह किया....

"मेरा वो मतलब नही है" नीरू ने बैठते हुए कहा..," आप कह रहे थे ना कि टीले पर चल कर मुझे सब याद आ जाएगा..."

"जी... वो कह रही थी.. नीरू... सपने में.. सच कह रहा हूँ...." रोहन अब तक खड़ा ही था...

"तो चलो...!" नीरू ने कहा....

"कहाँ?" रोहन ने पूचछा....

"पुराने टीले पर..." नीरू ने जवाब दिया....

"क्या? सच ?" रोहन की खुशी का कोई ठिकाना नही रहा.. पर अगले ही पल वा मायूस होते हुए बोला,"पर वो तो यहाँ से बहुत दूर है.. आज चलकर वापस नही आ सकते..."

"कितने दिन लग जाएँगे... 3, 4, हफ़्ता?" नीरू ने पूचछा...

"हां.. हफ्ते में तो सब कुच्छ हो जाएगा... मतलब हम आराम से जा सकते हैं... पर....?" रोहन पूच्छना चाहता था कि घर वाले क्या कहेंगे.... पर नीरू ने बीच में ही टोक दिया...

"ठीक है... चलो!" नीरू ने उदासी भरे चेहरे से ही कहा...
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"हे भगवान! पता नही कहाँ चली गयी वो पागल! यही करना था तो बता तो देती... हम रहने देते शादी से...." घर वापस आकर उसके पापा सबके साथ गहरी सोच में बैठे हुए थे....

"पर अगर होस्टल बंद है तो कहाँ गयी होगी... कहीं कुच्छ हो गया तो उसको.. वो तो अकेली कहीं जाती भी नही थी..." मम्मी लगातार आँसू बहाए जा रही थी....

"भाई साहब! उनको तो मना कर दो.. कम से कम वहाँ वाला पंगा तो नही रहेगा..!" ऋतु के पिताजी ने कहा....

"क्या कहूँ? ... कैसे कहूँ? मैं अमृतसर जा रहा था तो उनका फोन आया था.. मैने तब तो कुच्छ कहा भी नही.. अब तो उनके रिश्तेदार भी आ चुके होंगे... ये कैसा दिन दिखाया भगवान!" पापा की आँखें भी गीली हो गयी...

अचानक उनको बाहर दो गाड़ियाँ रुकने की आवाज़ सुनाई दी.. सब सहम गये... बाहर निकले तो देखा वही थे...

"अब क्या किया जाए?" बड़बड़ाते हुए नीरू के पापा मानव के पापा की और बढ़े...

मानव के पापा बड़ी ही गरम जोशी से आकर उनसे गले मिले...," अरे! ऐसे चेहरा क्यूँ लटका रखा है यार... ये लो! संभलो. मेरा बेटा और शीनू बिटिया को मुझे सौंप दो..." उन्होने खिलखिलाते हुए कहा..

मानव ने आकर उनके इज़्ज़त से चरण च्छुए... पर ग्लनीवश नीरू के पापा उनको आशीर्वाद तक देना भूल गये...

"मेरे साथ आएँगे प्लीज़.. कुच्छ बात करनी है...!" नीरू के पापा ने आहिस्ता से कहा....

"देखो भाई.. दहेज की बात मत करना.. हम बेटा दे रहे हैं.. दहेज नही देंगे..." कहकर मानव के पापा ने अट्टहास किया...

"आप आइए तो सही.. एक बार.. उपर.." नीरू के पापा ने उनका हाथ पकड़ा और उपर जाने लगे... ऋतु के पापा भी उनके साथ ही थे... आने वाली पार्टी में हर किसी के चेहरे से उल्लास झलक रहा था... सब नीचे ही रहकर घर वालों से मेल मिलाप में लग गये.....

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"ये क्या कह रहे हैं भाई साहब! आपको पहले ही पूच्छ लेना चाहिए था... अब.. ये तो मेरी पगड़ी उच्छलने वाली बात हो गयी" सारा माजरा सुनते ही मानव के पिताजी के होश फाख्ता हो गये.. चेहरा का सारा रंग उड़ सा गया...

"भाई साहब मैं मानता हूँ... पर आप किसी तरह से आज का कार्यक्रम टाल दीजिए.. कुच्छ दिन बाद तो वो वापस आ ही जाएगी... आपको तो पता है नीरू के नेचर का... वो ऐसी नही है... उसके आने के बाद हम कोशिश करेंगे कि 'वो' मान जाए..." नीरू के पापा ने सिर झुका कर कहा...

"कमाल कर रहे हैं आप, भाई साहब! मेरे रिश्तेदारों को में क्या कहूँ? ये कि मेरी बहू आज कहीं चली गयी है बिना बताए... और फिर आने के बाद भी उसको ज़बरदस्ती शादी के लिए तैयार करने का क्या फायडा.. कल को फिर चली जाएगी.. हमारे घर से... नही नही! ये नही हो सकता भाई साहब!" मानव के पापा खफा से हो गये....

"तो फिर आप ही बतायें.. मैं क्या करूँ? ये तो उन्होनी है..." नीरू के पापा ने सिर झुकाए हुए ही कहा...

"ना ना! उन्होनी नही, ये आपकी नादानी है.. ज़बरदस्ती आपको अड़ना ही नही चाहिए था, रिश्ते के लिए.. वो मना कर रही थी तो आप कल तक भी फोन करके बात टाल सकते थे... हम कुच्छ भी कह देते.. पर आज की तरह ज़िल्लत का सामना ना करना पड़ता..." मानव के पापा ने गहरी साँस ली....

"अब पिच्छली बातों को दोहराने से क्या फायडा भाई साहब.. जो होना था, वा हो चुका.. ये सोचिए की अब क्या कर सकते हैं.. " ऋतु के पापा ने बीच में बोलते हुए कहा....

"यार, अब करने को रह क्या गया... मैं तो किसी को मुँह दिखाने लायक रहा नही.. मुझे तो बहू चाहिए थी.. वो यहाँ है ही नही..." मानव के पापा बहुत ज़्यादा हताश थे...

"एक बात कहूँ.. भाई साहब! अगर पसंद आए तो...." कहकर ऋतु के पापा रुक गये...

बिना कुच्छ बोले ही नीरू और मानव के पापा उनकी और देखने लगे...

"अगर आपको मेरा घर बार पसंद हो तो मैं अपनी बेटी देने को तैयार हूँ..." ऋतु के पापा ने कहा...

नीरू के पापा अवाक से उसके मुँह की और देखने लगे....

"वो तो लंबी कहानी हो गयी भाई साहब.. मानव उसको देखेगा.. अब शीनू तो उसको बेहद पसंद थी... आप तो समझते होंगे आज कल के बच्चों को.... फिर क्या पता आपकी बेटी को भी ऋतु की तरह मानव पसंद नही आया तो...और फिर ये सब एक ही दिन में तो नही हो सकता ना..." मानव के पापा के चेहरे पर अब भी हताशा और निराशा ही थी...

"मेरी बेटी नीचे है.. मैं उसकी मा और ऋतु को बुला लेता हूँ.. आप मानव को बुला लीजिए.. देख लीजिए अगर बात बन'ती है तो?" ऋतु के पापा ने कहा...

और कोई चारा अब बचा भी तो नही था... वो बाहर निकले और मानव को उपर बुलाया.....
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मानव भी सारी बात सुनकर सन्न रह गया.. अगले ही पल उसको अहसास हुआ कि हो ना हो नीरू रोहन के पास ही है... पर फिर वही बात होती.. ज़बरदस्ती का रिश्ता... मानव ने अपने पापा के चेहरे पर फैली चिंता की लकीरों को देखा और भरे गले से कहा," ठीक है पापा! जैसा आप ठीक समझे करें.. मुझे कोई ऐतराज नही है..."

पापा ने लपक कर खड़ा होते हुए अपने बच्चे को बाहों में भर लिया,"ऐसी होती है औलाद.. मुझे तुम पर.. गर्व है बेटा...!" आँसू उनकी आँखों से निर्झर बहने लगे....

"आप ऐसा क्यूँ कर रहे हैं पापा.. मैने ऋतु को देखा है... मुझे पसंद है ये रिश्ता... मैं ही पागल था... मैं कभी नीरू की आँखों के भाव पढ़ ही नही पाया.. आप ऋतु से पूच्छ लें... अगर उनको मजूर हो तो ये मेरा सौभाग्य ही होगा...." मानव का गला रुंध सा गया था....

"हमें माफ़ कर देना बेटा... हमसे चूक हो गयी..." नीरू के पापा ने खड़े होकर पासचताप सा प्रकट किया...

"आप भी अंकल... उपर वाले की मर्ज़ी के बगैर कभी कुच्छ होता है क्या? कोई ग़लती नही हुई आपसे.. प्लीज़ मुझे शर्मिंदा ना करें..." मानव ने कहा तो नीरू के पापा भी खुद को उसको अपनी बाहों में भरने से ना रोक सके....
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जब ऋतु उपर आई तो उसको आभाष भी नही था कि क्या से क्या हो गया है.. वह तो यही सोच रही थी कि नीरू के बारे में पूच्छने के लिए ही उसको बुलाया गया है....

"बेटी... अगर मानव से शादी करने में तुम्हे कोई ऐतराज ना हो तो हमारी इज़्ज़त बच जाएगी.." मानव के पापा ने सीधे सीधे ही पूच्छ लिया....

ऋतु को अपने कानो पर यकीन ही नही हुआ.. लंबा छर्हरा इनस्पेक्टर उसके सामने खड़ा उसको ही देख रहा था," म्म..मैं?"

"कोई ज़बरदस्ती की बात नही है बेटी.. तुम्हारे पापा ने हम पर उपकार करने के बहाने ही ये उपाय सुझाया है... पर अगर तुम्हे कोई ऐतराज है तो....

ऋतु ने मानव से नज़रें मिलाई और शर्मकार अपनी मम्मी के पहलू में छिप गयी....

"बोल दे बेटा.. जो कुच्छ भी तेरे मंन में है बोल दे...!" मम्मी ने उसको दुलार्ते हुए कहा...

"मुझे क्यूँ ऐतराज होगा मम्मी... मेरे लिए तो ये सौभाग्य की बात होगी.. और फिर इस'से अच्च्छा हल निकल भी नही सकता..."ऋतु ने मम्मी के कान में धीरे से कहा.. पर सुन सबने लिया.....

इसके साथ ही घर में फिर से खुशियाँ फैल गयी...

मौका देखकर नीरू के पापा ऋतु के पापा के पास गये," आपने मुझे बचा लिया भाई साहब! मैं तो बर्बाद ही हो जाता... ये ग्लानि लेकर जी नही पाता मैं...." और दोनो एक दूसरे से गले मिलकर मिनूटों आँसू बहाते रहे... खुशी के भी, और गम के भी.....



क्रमशः..................................






आपका दोस्त राज शर्मा
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा

(¨`·.·´¨) Always
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