Tuesday, April 13, 2010

सेक्सी कहानियाँ खिलोना पार्ट--3

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खिलोना पार्ट--3

गांद के नीचे लगे कुशन पे पड़े खून के धब्बे उसके कुंवारेपन के ख़त्म होने की दास्तान बयान कर रहे थे.

"ऊओ....रवि!",रीमा 1 हाथ से अपनी छातिया मसल्ते हुए & दूसरे से अपने चूत के दाने को रगड़ते हुए झाड़ गयी.आँखे खोल वो अपनी सुहग्रात की यादो से बाहर आई.टवल से अपनी चूत से बह आए पानी को उसने सॉफ किया & कपड़े पहनने लगी.

कपड़े पहनते हुए उसने 1 नज़र घड़ी पे डाली तो देखा की 2 बज रहे हैं,तभी उसका मोबाइल बजा.उठाया तो रवि था,"हेलो!जान,सॉरी आने मे थोड़ी देर हो जाएगी.कुच्छ ज़रूरी काम आ गया है."

"आज के दिन भी काम!जाओ मैं तुमसे बात नही करूँगी."

"प्लीज़ नाराज़ मत हो,रीमा.क्या करू!बहुत ज़रूरी है.नही तो क्या मेरा दिल नही कर रहा आज का दिन सेलेब्रेट करने का.सवेरे से मैं तो बस यही सोच रहा हू कि आज तुम्हे कैसे चोदुन्गा.."

"धात!फोन पे भी ऐसी बातें कर रहे हो.ऑफीस मे कोई सुन लेगा तो."

"तो सुन ले.अपनी बीवी को चोदने की बात कर रहा हू किसी और को नही."

"चुप!पागल.अच्छा बताओ कितने बजे तक आ जाओगे."

"7 बजे तक पक्का."

"ओके.उस से देर मत करना."

"नही करूँगा,डार्लिंग.ओके,बाइ!"

"बाइ!"

शादी के बाद रीमा को अपने बारे मे 1 बहुत अहम बात पता चली थी.वो ये कि उसे चुदाई मे बहुत मज़ा आता था.जितना रवि उसे हर रोज़ चोदने को बेताब रहता था उतना ही वो भी रहती थी-शायद उस से ज़्यादा ही.हनिमून के तीसरे दिन जब रवि ने उसका हाथ पकड़ अपने लंड पे रखा तो वो कुच्छ शर्म & कुच्छ झिझक से अपना हाथ खींच बैठी थी,पर रवि के इसरार के बाद ना केवल उसने उसके लंड को अपने हाथो मे लिया बल्कि मुँह मे भी लेकर जम के चूसा.उसे लंड से खेलने मे बहुत मज़ा आया था.

हनिमून के 5 दीनो के बाद उसने कभी भी रवि को कॉंडम नही इस्तेमाल करने दिया.उसने उसे साफ कह दिया कि जो भी प्रोटेक्षन लेना है वो लेगी पर उसकी चूत & उसके लंड के बीच कुच्छ भी आए,ये उसे मंज़ूर नही था.पिच्छले 1 साल मे दोनो पति-पत्नी 1 दूसरे से पूरी तरह से खुल गये थे.छुट्टी के दिन अगर वो शहर नही घूम रहे होते तो घर के किसी कमरे मे चुदाई मे लगे होते.रवि तो छुट्टी मे उसे कपड़े पहनने ही नही देता था.

जहा रवि को उसे डॉगी स्टाइल & स्पून पोज़िशन -जिसमे वो करवट से लेट जाती & रवि उसके पीछे करवट से लेट उसकी चूत मे लंड घुसा कर चोद्ता-मे चोदना पसंद था वही रीमा को रवि के नीचे या फिर उसके उपर आकर चुदाई करना भाता था.दोनो हर रात कम से कम 2 बार चुदाई करते जिसमे 1 बार रवि की पसंद की & दूसरी बार रीमा की पसस्न्द की पोज़िशन मे चुदाई होती.

सारी पहन रीमा ने अपनी नाभि पे हाथ फेरा,फिर ड्रेसिंग टेबल से 1 रिंग उठा उसमे पहन ली.रीमा ने रवि के जनमदिन के मौके पे उसके तोहफे के तौर पे अपनी नेवेल पियर्सिंग कराई थी.रवि तो ये देख पागल ही हो गया था & पता नही कितनी देर तक उसकी ज़ुबान उसके पेट & नाभि पे घूमती रही थी.जब दोनो चुदाई नही कर रहे होते & यूँही बैठे टीवी देख रहे होते या कुच्छ पढ़ रहे होते तो रवि उसकी बगल मे कमर मे बाँह डाल बैठ जाता & अपना हाथ उसके पेट पे पहुँचा उस नेवेल रिंग से खेलता रहता.

ऐसा नही था कि सब कुच्छ सपने सा सुंदर था.रवि के पिता की नाराज़गी रीमा को बहुत परेशान करती थी.वो अनाथ थी शायद इसलिए परिवार की अहमियत रवि से ज़्यादा समझती थी,पर इस समस्या का हाल कैसे निकाले उसे समझ नही आता था.हनिमून के बाद रवि उसे ले पंचमहल गया.उसे लगा था कि पिताजी जब ये देखेंगे की उसने शादी कर ली है तो उन्हे मान ही जाएँगे.पूरे सफ़र मे रवि उसे अपने माता-पिता,भाई & दद्दा की कहानिया सुनाता रहा.

दद्दा कहने तो उसके परिवार के नौकर थे पर सभी लोग उन्हे भी परिवार का सदस्य ही मानते थे.दद्दा का नाम दर्शन था पर रवि & उसका भाई शेखर प्यार से उन्हे दद्दा बुलाते थे.जब शेखर 1 साल का था तो दद्दा घर मे आए & तब से यही रह गये.

रीमा को वो दिन याद आया,जब टॅक्सी से उतर रवि & वो उसके घर मे दाखिल हुए,"दद्दा ओ दद्दा!",रवि ने गेट खोलते हुए आवाज़ दी.

घर का दरवाज़ा खुला & वीरेन्द्रा साक्शेणा बाहर आए,"वो बाज़ार गया है."

रवि ने आगे बढ़ पिता के पाँव च्छुए तो रीमा ने भी वैसा ही किया.दोनो घर के अंदर गये तो रीमा ने पहली बार रवि की मा को देखा.रवि उन्हे रीमा के बारे मे बताने लगा.बिस्तर पे पड़ी वो उन्हे देख रही थी पर कुच्छ पता नही आ रहा था कि उन्हे कुच्छ समझ भी आ रहा था या नही.थोड़ी देर बाद विरेन्द्र जी ने रवि को आवाज़ दी तो रवि रीमा को वही छ्चोड़ कमरे से बाहर चला गया.

"...अभी 2-3 महीने बॅंगलुर मे काम करूँगा फिर कोशिश कर यहा ट्रान्स्फर ले लूँगा & आपलोगो के साथ रहूँगा."

"तुम्हारा अपना घर है जब चाहो आओ पर वो लड़की यहा नही आएगी."

"वो लड़की अब मेरी पत्नी है,पिताजी."

"मैं नही मानता."

"आपके मानने ना मानने से कुच्छ नही होता.क़ानून उसे मेरी बीवी मानता है."

"मैं तुमसे बहस नही करना चाहता.उस लड़की को मैं अपनी बहू नही मानता.मैने पूरी बिरादरी मे किसी को तुम्हारी इस बेवकूफी के बारे मे नही बताया है...यहा तक की दर्शन भी कुच्छ नही जानता.अगर इस घर से ताल्लुक रखना है तो उस लड़की को अपनी ज़िंदगी से अलग करो."

"ठीक है,आपने जिस बिरादरी को कुच्छ नही बताया है,आपको वो बिरादरी मुबारक हो.मुझे आपसे या आपकी बिरादरी से कुच्छ लेना-देना नही.अगर इस घर मे मेरी पत्नी की इज़्ज़त नही होगी तो उसे मैं अपनी बेइज़्ज़ती समझूंगा."

"जो मर्ज़ी समझो.मैने अपनी बात कह दी है."

"ठीक है.मैं जा रहा हू & तब तक वापस नही आओंगा जब तक रीमा को अपनी बहू नही मानेंगे.",और दोनो वॉया से चले आए.

रीमा ने कई बार रवि को समझाया कि वो नही जा सकती तो क्या हुआ वो चला जाया करे पंचमहल पर रवि भी अपने पिता की तरह ज़िद्दी था.दिल ही दिल मे तड़प्ता रहता था अपनी मा को देखने के लिए लेकिन जाने का नाम तक ज़ुबान पे नही लाता था.अपने भाई शेखर से उसे घर का हाल मालूम होता रहता था,शेखर 1-2 बार अपने ऑफीस टूर पे बॅंगलुर भी आया था & दोनो से मिला भी था.रीमा को वो 1 बहुत शरीफ इंसान लगा था.

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रीमा ने घड़ी देखी तो 8 बज रहे थे,उसने रवि को फोन लगाया तो स्विच ऑफ का मेसेज आया.ऐसे ही 9 बज गये तो वो चिंता से परेशान हो उठी.रवि का मोबाइल लगातार स्विच ऑफ आ रहा था.उसके ऑफीस के साथियो को फोन किया तो उन्होने कहा की वो तो 3 बजे ही दफ़्तर से निकल गया था,रीमा को बहुत घबराहट होरही थी & कुच्छ समझ नही आ रहा था कि वो क्या करे.घड़ी ने 10 बजाए & उधर डोरबेल बाजी.वो चैन की साँस ले भागती हुई दरवाज़े पे पहुँची.

"कहा थे इत-.."दरवाज़ा खोल उसने सवाल पोच्छना शुरू किया पर बीच ही मे रुक गयी.सामने 1 पोलीस्वला खड़ा था.

"आप मिसेज़.रीमा साक्शेणा हैं?"

"जी."

"आप मिस्टर.रवि साक्शेणा ,जो मेट्रोपोलिटन बॅंक मे काम करते हैं,उनकी वाइफ हैं?"

"जी,हां.क्या बात है?",रीमा का दिल ज़ोरो से धड़क रहा था.

"आपके पति का आक्सिडेंट हुआ है."

आज रवि की मौत को 1 महीना हो गया था & रीमा घर मे बिल्कुल अकेली उदास पड़ी हुई थी.हादसे की खबर सुनते ही मौसी फ़ौरन उसके पास आ गयी थी & कल शाम तक उसके साथ थी.पर वो भी आख़िर कब तक यहा रुकती,कल रात वो भी वापस पुणे चली गयी.

बॅंगलुर से करीब 60 किलोमीटर दूर आर्कवाती नदी पे 1 पुराना पुल है.इसी पुल की रेलिंग तोड़ती रवि की बाइक नदी मे जा गिरी थी.बरसात की वजह से नदी भरी हुई थी & उपर से रवि को तैरना भी नही आता था.आक्सिडेंट उनकी आनिवर्सयरी की शाम को हुआ था & दूसरे दिन 1 बराज के गेट मे अटकी रवि की लाश मिली थी.

विरेन्द्र & शेखर साक्शेणा पंचमहल से आकर रवि का अंतिम संस्कार कर 15 दिनी मे वापस चले गये थे.रीमा के ससुर ने 1 बार भी उस से ना बात की ना उसका हाल पूचछा.हा,शेखर ने ज़रूर उसे कहा कि वो अगर ज़रूरत पड़े तो उसे बेझिझक बुला सकती है & अपना फोन नंबर. भी उसे दिया.

पता नही क्यू,रीमा का दिल पोलीस की बात मानने को तैय्यार नही था की ये आक्सिडेंट था.आख़िर रवि शहर से दूर उस वीराने मे क्या करने गया था?उसे अपने पति की मौत इतनी सीधी-सादी नही लग रही थी.कोई तो बात थी..फिर रवि इतने दीनो से परेशानी भी था.इन्ही ख़यालो मे वो खोई थी कि उसका मोबाइल बजा तो उसने उसे अपने कान से लगाया,"हेलो."

"हेलो,क्या मिसेज़.रीमा साक्शेणा बोल रही हैं?"

"जी हां."

"मैं अनिल कक्कर बोल रहा हू मेट्रोपोलिटन बॅंक से.आप कैसी हैं?"

"नमस्ते सर.मैं ठीक हू.कहिए क्या बात है?",ये रवि का बॉस था.

"रीमा जी,मैं इस वक़्त आपको परेशान तो नही करना चाहता पर बात ही कुच्छ ऐसी है.क्या आप आज बॅंक आ सकती हैं?"

"क्या बात है सर?"

"फोन पे बताने वाली बात होती तो मैं आपको कभी परेशान नही करता.प्लीज़ 1 बार बॅंक आ जाइए."

"ठीक है,सर मैं 11 बजे तक आ जाऊंगी.",रीमा ने घड़ी की तरफ देखा.

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बॅंक मे अनिल कक्कर के सामने बैठी रीमा का मुँह हैरत से खुला हुआ था,"ये आप क्या कह रहे हैं,सर?"

"मैं सच कह रहा हू.रवि ने 1 फ़र्ज़ी इंसान को .4 लाख का लोन दिलवाया था.अभी 2 दिन पहले जब लोन की पहली इंस्टल्लमेंट का पोस्ट-डेटेड स्चेक बाउन्स हो गया तो हमने तहकीकात की तो पता चला की लोनी के नाम & पता दोनो झूठे थे."

"पर आप यकीन से कैसे कह सकते हैं कि ये रवि ने ही किया है?रवि का काम तो फिगर्स आनलाइज़ करने का था."

"आप सही कह रही हैं,रीमा जी.पर बॅंक का कोई भी एंप्लायी बॅंक की कोई भी स्कीम किसी कस्टमर को बेच सकता है & रवि ने इसी बात का फ़ायदा उठा कर ये काम किया है.",उसने कुच्छ पेपर्स उसके सामने बढ़ाए,"आप चाहे तो ये पेपर्स पढ़ कर तसल्ली कर सकती हैं."

रीमा को तो कुच्छ समझ नही आ रहा था,"ये पैसे...ये क्या...मुझे चुकाने पड़ेंगे?"

"जी बिल्कुल,नही तो हमे मामला पोलीस को देना पड़ेगा.",कक्कर ने ठंडी साँस भारी.,"..बल्कि हमे तो अभी तक पोलीस को खबर कर देनी चाहिए थी,पर आपके हालत देख मैने सोचा कि पहले आपसे बात कर लू."

4 लाख रुपये!कहा से लाएगी वो इतनी बड़ी रकम...उसका सर चकरा रहा था...पोलीस का नाम सुन कर तो उसके पसीने छूट गये थे.तभी उसे पीठ पे कुच्छ महसूस हुआ,सर उठाया तो देखा की कक्कर मुस्कुराता हुआ उसकी पीठ सहला रहा था,"..घबराईए मत...1 और तरीका है...आप मेरे साथ को-ऑपरेट कीजिए,मैं आपको इस मुसीबत से निकालूँगा."

हर औरत मे मर्द की बुरी नियत भापने की ताक़त होती है,रीमा भी कक्कर का मतलब समझ गयी.उसका दिल तो किया कि 1 ज़ोर का तमाचा रसीद कर दे इस कामीने इंसान के गाल पे,पर उसने खुद पे काबू रखा & कुर्सी से उठ खड़ी हो गयी,"...जी सर...मुझ-...मुझे सोचने के लिए थोड़ा वक़्त चाहिए..."

"हां..हां!लीजिए वक़्त.मैं 5 दीनो तक ये मामला दबा सकता हू,5 दीनो के बाद...",उसकी अनकही बात रीमा समझ गयी & वो उसके ऑफीस से बाहर निकल गयी.बाहर मार्केट मे उसने 1 जूस वाले से जूस पिया तो उसे थोड़ा सुकून मिला,उसने अपने बॅग से रवि का एटीम कार्ड निकाल कर उसके अकाउंट का बॅलेन्स चेक करने की सोची & बगल के एटीम मे घुस गयी.

एटीएम स्क्रीन पे जो रकम देखी उसने उसे फिर परेशान कर दिया,उसने दुबारा चेक किया पर एटीएम स्क्रीन पे .40,000 ही दिख रहा था.उसे अच्छी तरह से याद था कि इस अकाउंट मे करीब .2.5 लाख थे तो आख़िर 2 लाख कहा गये?

"ओह्ह...रवि,तुमने क्या किया था आख़िर?",वो मन ही मन बोली.दिन के 2 बजे वो वापस घर पहुँची.अंदर घुस कर उसने दरवाज़ा बंद किया ही था कि डोरबेल बज उठी.दरवाज़ा खोला तो देखा की उसके मकान मालिक खड़े हैं.

"नमस्ते अंकल."

"जीती रहो बेटी.",वो कोई 65 साल के बुज़ुर्ग थे & यही पास ही मे रहते थे.रवि की मौत के बाद उन्होने रीमा की काफ़ी मदद की थी.

"अरे,मैं तो भूल ही गयी थी.आपको किराए का चेक़ भी तो देना है."

"नही बेटी मैं उसके लिए नही आया था,पैसे कही भागे थोड़े ना जा रहे हैं.मैं तो बस तुम्हारा हाल पुच्छने आया था.",वो सोफे पे रीमा के बगल मे उसके कुच्छ ज़्यादा ही पास बैठ गये,"कुच्छ सोचा तुमने आगे क्या करना है?"

"अभी तक तो कुच्छ नही,अंकल.",उसे अंकल की नज़दीकी कुच्छ ठीक नही लगी तो वो उठ ड्रॉयर से चेकबुक निकाल उनका किराए का चेक़ बनाने लगी.

"घबराना मत बेटी,मैं हू ना.",अंकल उसके पास खड़े उसकी पीठ सहलाते हुए हाथ ब्लाउस से नीचे उसकी नंगी कमर पे ले आए.

"आपका चेक़,अंकल & बुरा ना माने तो आप अभी जा सकते हैं.मुझे थोड़ा काम है."

"हां...हां!तुम आराम करो बेटी....& कोई ज़रूरत हो तो मुझे बेझिझक बुला लेना.",रीमा ने दरवाज़ा बंद किया &रोती हुई सोफे पे जा गिरी.पहले रवि का बॉस अब ये बुड्ढ़ा.इन सबने उसे क्या कोई सड़क पे पड़ा खिलोना समझ रखा था क्या कि जिसकी मर्ज़ी हो वो उसके साथ खेल ले.

तभी फिर से डोरबेल बजी.रीमा ने आँसू पोछे & दरवाज़ा खोला तो चौंक उठी,सामने उसके ससुर खड़े थे.सकपका के उसने उनके पाँव छुए & उनके अंदर आते ही दरवाज़ा बंद कर दिया.

"तुम्हे हुमारे साथ पंचमहल चलना होगा."

"जी.",रीमा ने चौंक के उन्हे देखा.

"सुमित्रा-रवि की मा की हालत तो तुम जानती हो.डॉक्टर्स का कहना है कि कई बार अगर कोई बहुत शॉकिंग न्यूज़ सुनाई जाए तो ऐसे पेशेंट्स बोलने लगते हैं.इसीलिए हमने उसे रवि की मौत की खबर दी.सुमित्रा बोली तो नही पर उसकी आँखो से आँसू बहने लगे,रुलाई की आवाज़ नही निकली बस आखें बरसती रही.उस दिन से वो ठीक से खा-पी भी नही रही है.मैं जब भी उसके सामने जाता हू तो जैसे उसकी नज़रे मुझ से कुच्छ मांगती रहती हैं.थोड़े दीनो मैं समझ गया कि वो तुम्हे ढूंडती है."

"मा जी तो कुच्छ बोलती नही,फिर आपको ऐसा कैसे लगा?"

"मैं उसका पति हू,इतने साल हम साथ रहे हैं.उसके दिल की बात समझने के लिए मुझे किसी ज़ुबान की ज़रूरत नही."

"अपना सामान तैय्यार रखना,हम कल ही यहा से निकल जाएँगे.और हा 1 बहुत अहम बात सुन लो.मैं आज भी तुम्हे अपनी बहू नही मानता,बस अपनी पत्नी की बेहतरी के लिए तुम्हे वाहा ले जा रहा हू.और तुम भी बस 1 नर्स की हैसियत से वाहा जा रही हो.मेरी पूरी बिरादरी या जान-पहचान मे कोई भी रवि की शादी या तुम्हारे वजूद से वाकिफ़ नही है.तो तुम जब तक इस राज़ को अपने सीने मे दफ़न रखोगी वाहा रहोगी."

कोई और मौका होता तो रीमा उन्हे बाहर का रास्ता दिखा देती पर आज वीरेन्द्रा साक्शेणा के रूप मे भगवान ने उसे मुसीबत से बाहर निकालने का ज़रिया भेज दिया था.

"मुझे आपकी बात मंज़ूर है पर आपको अपने बेटे की 1 ग़लती सुधारनी होगी...और रवि की मौत के पीछे ज़रूर कोई राज़ था ,आपको उस राज़ का भी पता लगाना होगा."

"सॉफ-2 बात करो,पहेलियाँ मत बुझाओ."

और रीमा ने उन्हे पूरी बात बता दी.विरेन्द्र जी को उसकी बात पे यकीन नही हुआ पर जब दूसरे दिन वो उसके साथ बॅंक गये तो उन्हे यकीन करना ही पड़ा.

"मिस्टर.कक्कर,मैं नही चाहता कि मेरे गुज़रे हुए बेटे को कोई धोखेबाज़ के रूप मे याद करे.",उन्होने अपना विज़िटिंग कार्ड कोट की जेब से निकाला & उसपे कुच्छ लिखा,"ये मेरा कार्ड है & इस्पे मेरे घर के फोन नंबर्स. भी मैने लिख दिए हैं.आप मुझे अकाउंट नंबर. दीजिए,कल ही उसमे 4 लाख रुपये जमा हो जाएँगे."

"ओके,मिस्टर.साक्शेणा.",कक्कर ने कार्ड लिया & हसरत भरी निगाह रीमा पे डाली.

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शाम ढले पंचमहल की उस पॉश कॉलोनी जिसका नाम सिविल लाइन्स था,मे 1 कार दाखिल हुई 1 पुराने मगर शानदार बंगल के सामने आकर रुक गयी.कार मे से विरेन्द्र साक्शेणा & रीमा उतरे तो अंदर से गेट खोल 1 बुज़ुर्ग सा आदमी बाहर आया.रीमा समझ गयी कि यही दर्शन है यानी दद्दा.

"ये सुमित्रा की नयी नर्स रीमा हैं,दर्शन.इन्हे इनका कमरा दिखा दो."

"आइए.",दर्शन जैसे उसे देख खुश नही हुआ था.

कमरे मे समान रख दर्शन बाहर जाने लगा तो रीमा ने उसे आवाज़ दी,"दद्दा!"

दर्शन चौंक कर घुमा,"तुम्हे कैसे पता कि मुझ से छ्होटे मुझे दद्दा बुलाते हैं?तुम तो अभी-2 आई हो."

रीमा सकपकाई पर उसने संभालते हुए पास के शेल्फ पे रखी 1 तस्वीर की ओर इशारा किया,"वाहा लिखा है ना.",तस्वीर मे दर्शन दो बच्चों के साथ खड़ा था & 1 बच्चे की लिखावट मे ही फोटो के नीचे स्केच पेन से तीनो के नाम लिखे थे.वो दोनो बच्चे शेखर & रवि थे.

"ओह्ह..",दर्शन के होटो पे मुस्कान आ गयी.

"मैं आपको दद्दा बुला सकती हू ना?"

"हां,नर्स जी."

"नर्स जी नही मेरा नाम रीमा है."

"अच्छा,रीमा जी."

"रीमा जी नही सिर्फ़ रीमा."

"अच्छा,रीमा.",दर्शन हंसता हुआ बाहर चला गया.

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थोड़ी देर बाद सुमित्रा जी के डॉक्टर डॉक्टर.वेर्मा आ गये.,"तो यही हैं नयी नर्स.हेलो,नर्स."

"हेलो,डॉक्टर."

"आओ,मैं आपको पेशेंट के बारे मे बता देता हू."

"चलिए,डॉक्टर."

"...तो रीमा,चूँकि ये खुद नही मूव कर सकती तो हमे इन्हे मूव करना पड़ता है नही तो बेड्सोरे होने का डर है.दिन मे हर 2 घंटे मे इनकी पोज़िशन बदल देना.हा रात मे सोते वक़्त इसकी ज़रूरत नही ..",डॉक्टर रीमा को समझा रहे थे,"ये है सारी दवाएँ & उनकी डोसेज.ओके.और कुच्छ पूच्छना है?"

"नही,डॉक्टर."

"वेरी गुड.मेरा नंबर.विरेन्द्र जी के पास है.कोई प्राब्लम हो तो कॉल मी.अब मैं चलता हू."

"बाइ,डॉक्टर."

-------------------------------------------------------------------------------सफ़र से थॅकी रीमा जब बिस्तर पे लेटी तो वो सोचने लगी कि तक़दीर भी उसके साथ क्या खेल खले रही है.जब तक पति ज़िंदा था तब तक वो ससुराल नही आई & अब पति की मौत के बाद वो यहा रह रही है.अपनी किस्मत पे 1 फीकी हँसी हंस वो करवट बदल नींद मे डूब गयी.










KHILONA paart--3

Gaand ke niche lage cushion pe pade khoon ke dhabbe uske kunwarepan ke khatm hone ki dastaan bayan kar rahe the.

"ooohhh....ravi!",Reema 1 hath se apni chhatiya masalte hue & dusre se apne chut ke dane ko ragadte hue jhad gayi.aankhe khol vo apni suhagraat ki yaado se bahar aayi.towel se apni chut se beh aaye pani ko usne saaf kiya & kapde pehanane lagi.

kapde pehante hue usne 1 nazar ghadi pe dali to dekha ki 2 baj rahe hain,tabhi uska mobile baja.uthaya to Ravi tha,"hello!jaan,sorry aane me thodi der ho jayegi.kuchh zaruri kaam aa gaya hai."

"aaj ke din bhi kaam!jao main tumse baat nahi karungi."

"please naraz mat ho,reema.kya karu!bahut zaruri hai.nahi to kya mera dil nahi kar raha aaj ka din celebrate karne ka.savere se main to bas yahi soch raha hu ki aaj tumhe kaise chodunga.."

"dhat!phone pe bhi aisi baaten kar rahe ho.office me koi sun lega to."

"to sun le.apni biwi ko chodne ki baat kar raha hu kisi aur ko nahi."

"chup!pagal.achha batao kitne baje tak aa jaoge."

"7 baje tak pakka."

"ok.us se der mat karna."

"nahi karunga,darling.ok,bye!"

"bye!"

shadi ke baad reema ko apne bare me 1 bahut aham baat pata chali thi.vo ye ki use chudai me bahut maza aata tha.jitna ravi use har roz chodne ko betab rehta tha utna hi vo bhi rehti thi-shayad us se zyada hi.honeymoon ke teesre din jab ravi ne uska haath pakad apne lund pe rakha to vo kuchh sharm & kuchh jhijhak se apna hath khinch baithi thi,par ravi ke israr ke baad na kewal usne uske lund ko apne haatho me liya balki munh me bhi lekar jam ke choosa.use lund se khelne me bahut maza aaya tha.

honeymoon ke 5 dino ke baad usne kabhi bhi ravi ko condom nahi istemal karne diya.usne use saaf keh diya ki jo bhi protection lena hai vo legi par uski chut & uske lund ke beech kuchh bhi aaye,ye use manzoor nahi tha.pichhle 1 saal me dono pati-patni 1 dusre se puri tarah se khul gaye the.chhutti ke din agar vo shahar nahi ghum rahe hote to ghar ke kisi kamre me chudai me lage hote.ravi to chhutti me use kapde pehanane hi nahi deta tha.

jaha ravi ko use doggie style & spoon position -jisme vo karwat se let jati & ravi uske peechhe karwat se let uski chut me lund ghusa kar chodta-me chodna pasand tha vahi reema ko ravi ke neeche ya fir uske upar aakar chudai karna bhata tha.dono har raat kam se kam 2 baar chudai karte jisme 1 baar ravi ki pasand ki & dusri baar reema ki pasasnd ki position me chudai hoti.

sari pehan reema ne apni nabhi pe hath fera,fir dressing table se 1 ring utha usme pehan li.reema ne ravi ke janamdin ke mauke pe uske tohfe ke taur pe apni navel piercing karai thi.ravi to ye dekh pagal hi ho gaya tha & pata nahi kitni der tak uski zuban uske pet & nabhi pe ghumti rahi thi.jab dono chudai nahi kar rahe hote & yunhi baithe tv dekh rahe hote ya kuchh padh rahe hote to ravi uski bagal me kamar me banh daal baith jata & apna hath uske pet pe pahuncha us navel ring se khelta rehta.

aisa nahi tha ki sab kuchh sapne sa sundar tha.ravi ke pita ki narazgi reema ko bahut pareshan karti thi.vo anath thi shayad isliye pariwar ki ahmiyat ravi se zyada samajhti thi,par is samasya ka hal kaise nikale use samajh nahi aata tha.honeymoon ke baad ravi use le Panchmahal gaya.use laga tha ki pitaji jab ye dekhenge ki usne shadi kar li hai to unhe maan hi jayenge.pure safar me ravi use apne mata-pita,bhai & dadda ki kahaniya sunata raha.

dadda kehne to uske pariwar ke naukar the par sabhi log unhe bhi pariwar ka sadasya hi maante the.dadda ka naam darshan tha par ravi & uska bhai shekhar pyar se unhe dadda bulate the.jab shekhar 1 saal ka tha to dadda ghar me aaye & tab se yehi reh gaye.

reema ko vo din yaad aaya,jab taxi se utar ravi & vo uske ghar me dakhil hue,"dadda o dadda!",ravi ne gate kholte hue aavaz di.

ghar ka darvaza khula & Virendra Saxena bahar aaye,"vo bazar gaya hai."

ravi ne aage badh pita ke paanv chhuye to reema ne bhi vaisa hi kiya.dono ghar ke andar gaye to reema ne pehli baar ravi ki maa ko dekha.ravi unhe reema ke bare me batane laga.bistar pe padi vo unhe dekh rahi thi par kuchh pata nahi aa raha tha ki unhe kuchh samajh bhi aa raha tha ya nahi.thodi der baad virendra ji ne ravi ko aavaz di to ravi reema ko vahi chhod kamre se bahar chala gaya.

"...abhi 2-3 mahine bangalore me kaam karunga fir koshish kar yaha transfer le lunga & aaplogo ke sath rahunga."

"tumhara apna ghar hai jab chaho aao par vo ladki yaha nahi aayegi."

"vo ladki ab meri patni hai,pitaji."

"main nahi maanta."

"aapke maanane na maanane se kuchh nahi hota.kanoon use meri biwi maanta hai."

"main tumse bahas nahi karna chahta.us ladki ko main apni bahu nahi maanta.maine puri biradari me kisi ko tumhari is bevkufi ke bare me nahi bataya hai...yaha tak ki darshan bhi kuchh nahi jaanta.agar is ghar se talluk rakhna hai to us ladki ko apni zindagi se alag karo."

"thik hai,aapne jis biradari ko kuchh nahi bataya hai,aapko vo biradari mubarak ho.mujhe aapse ya aapki biradari se kuchh lena-dena nahi.agar is ghar me meri patni ki izzat nahi hogi to use main apni beizzati samajhunga."

"jo marzi samajho.maine apni baat keh di hai."

"thik hai.main ja raha hu & tab tak vapas nahi aaonga jab tak reema ko apni bahu nahi maanenge.",aur dono wha se chale aaye.

reema ne kai baar ravi ko samjhaya ki vo nahi ja sakti to kya hua vo chala jaya kare Panchmahal par ravi bhi apne pita ki tarah ziddi tha.dil hi dil me tadapta rehta tha apni maa ko dekhne ke liye lekin jaane ka naam tak zuban pe nahi lata tha.apne bhai shekhar se use ghar ka haal maloom hota rehta tha,shekhar 1-2 baar apne office tour pe bangalore bhi aaya tha & dono se mila bhi tha.reema ko vo 1 bahut sharif insan laga tha.

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reema ne ghadi dekhi to 8 baj rahe the,usne ravi ko phone lagaya to switch off ka message aaya.aise hi 9 baj gaye to vo chinta se pareshan ho uthi.ravi ka mobile lagatar switch off aa raha tha.uske office ke saathiyo ko phone kiya to unhone kaha ki vo to 3 baje hi daftar se nikal gaya tha,reema ko bahut ghabrahat horahi thi & kuchh samajh nahi aa raha tha ki vo kya kare.ghadi ne 10 bajaye & udhar doorbell baji.vo chain ki saans le bhagti hui darwaze pe pahunchi.

"kaha the it-.."darwaza khol usne sawal pochhna shuru kiya par beech hi me ruk gayi.saamne 1 policewala khada tha.

"aap mrs.reema saxena hain?"

"ji."

"aap mr.ravi saxena ,jo Metropolitan Bank me kaam karte hain,unki wife hain?"

"ji,haan.kya baat hai?",reema ka dil zoro se dhadak raha tha.

"aapke pati ka accident hua hai."

Aaj Ravi ki maut ko 1 mahina ho gaya tha & Reema ghar me bilkul akeli udaas padi hui thi.haadse ki khabar sunte hi mausi fauran uske paas aa gayi thi & kal sham tak uske sath thi.par vo bhi aakhir kab tak yaha rukti,kal raat vo bhi vaapas pune chali gayi.

bangalore se kareeb 60 km door arkavathy nadi pe 1 purana pul hai.isi pul ki railing todti ravi ki bike nadi me ja giri thi.barsat ki wajah se nadi bhari hui thi & upar se ravi ko tairna bhi nahi aata tha.accident unki anniversary ki sham ko hua tha & dusre din 1 barrage ke gate me atki ravi ki lash mili thi.

virendra & shekhar saxena panchmahal se aakar ravi ka antim sanskar kar 15 dini me vaapas chale gaye the.reema ke sasur ne 1 baar bhi us se na baat ki na uska haal poochha.haa,shekhar ne zarur use kaha ki vo agar zarurat pade to use bejhijhak bula sakti hai & apna phone no. bhi use diya.

pata nahi kyu,reema ka dil police ki baat maanane ko taiyyar nahi tha ki ye accident tha.aakhir ravi shahar se door us veerane me kya karne gaya tha?use apne pati ki maut itni seedhi-sadi nahi lag rahi thi.koi to baat thi..fir ravi itne dino se pareshan bhi tha.inhi khayalo me vo khoi thi ki uska mobile baja to usne use apne kaan se lagaya,"hello."

"hello,kya mrs.reema saxena bol rahi hain?"

"ji haan."

"main anil kakkar bol raha hu metropolitan bank se.aap kaisi hain?"

"namaste sir.main thik hu.kahiye kya baat hai?",ye ravi ka boss tha.

"reema ji,main is waqt aapko pareshan to nahi karna chahta par baat hi kuchh aisi hai.kya aap aaj bank a sakti hain?"

"kya baat hai sir?"

"phone pe batane wali baat hoti to main aapko kabhi pareshan nahi karta.please 1 baar bank aa jaiye."

"thik hai,sir main 11 baje tak aa jaoongi.",reema ne ghadi ki taraf dekha.

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bank me anil kakkar ke samne baithi reema ka munh hairat se khula hua tha,"ye aap kya kah rahe hain,sir?"

"main sach kah raha hu.ravi ne 1 farzi insan ko Rs.4 lakh ka loan dilwaya tha.abhi 2 din pehle jab loan ki pehli installment ka post-dated cheque bounce ho gaya to hamne tehkeekat ki to pata chala ki loanee ke naam & pata dono jhuthe the."

"par aap yakeen se kaise keh sakte hain ki ye ravi ne hi kiya hai?ravi ka kaam to figures analyze karne ka tha."

"aap sahi keh rahi hain,reema ji.par bank ka koi bhi employee bank ki koi bhi scheme kisi customer ko bech sakta hai & ravi ne isi baat ka fayda utha kar ye kaam kiya hai.",usne kuchh papers uske samne badhaye,"aap chahe to ye papers padh kar tasalli kar sakti hain."

reema ko to kuchh samajh nahi aa raha tha,"ye paise...ye kya...mujhe chukane padenge?"

"ji bilkul,nahi to hume maamla police ko dena padega.",kakkar ne thandi saans bhari.,"..balki hume to abhi tak police ko khabar kar deni chahiye thi,par aapke haalat dekh maine socha ki pehle aapse baat kar lu."

4 lakh rupaye!kaha se layegi vo itni badi rakam...uska sar chakra raha tha...police ka naam sun kar to uske paseene chhut gaye the.tabhi use pith pe kuchh mehsus hua,sar uthaya to dekha ki kakkar muskurata hua uski pith sehla raha tha,"..ghabraiye mat...1 aur tarika hai...aap mere sath co-operate kijiye,main aapko is musibat se nikalunga."

har aurat me mard ki buri niyat bhaapne ki taaqat hoti hai,reema bhi kakkar ka matlab samajh gayi.uska dil to kiya ki 1 zor ka tamacha rasid kar de is kamine insan ke gaal pe,par usne khud pe kabu rakha & kursi se uth khadi ho gayi,"...ji sir...mujh-...mujhe sochne ke liye thoda waqt chahiye..."

"haan..haan!lijiye waqt.main 5 dino tak ye maamla daba sakta hu,5 dino ke baad...",uski ankahi baat reema samajh gayi & vo uske office se bahar nikal gayi.bahar market me usne 1 juicewaale se juice piya to use thoda sukun mila,usne apne bag se ravi ka atm card nikal kar uske account ka balance check karne ki sochi & bagal ke atm me ghus gayi.

atm screen pe jo rakam dekhi usne use fir pareshan kar diya,usne dubare check kiya par atm screen pe Rs.40,000 hi dikh raha tha.use achhi tarah se yaad tha ki is account me kareeb Rs.2.5 lakh the to aakhir 2 lakh kaha gaye?

"ohh...ravi,tumne kya kiya tha aakhir?",vo man hi man boli.din ke 2 baje vo vapas ghar pahunchi.anadr ghus kar usne darwaza band kiya hi tha ki doorbell baj uthi.darwaza khola to dekha ki uske makan malik khade hain.

"namaste uncle."

"jiti raho beti.",vo koi 65 saal ke buzurg the & yahi paas hi me rehte the.ravi ki maut ke baad unhone reema ki kafi madad ki thi.

"are,main to bhul hi gayi thi.aapko kiraye ka cheque bhi to dena hai."

"nahi beti main uske liye nahi aaya tha,paise kahi bhage thode na ja rahe hain.main to bas tumhara haal puchhne aaya tha.",vo sofe pe reema ke bagal me uske kuchh zyada hi paas baith gaye,"kuchh socha tumne aage kya karna hai?"

"abhi tak to kuchh nahi,uncle.",use uncle ki nazdiki kuchh thik nahi lagi to vo uth drawer se chequebook nikal unka kiraye ka cheque banane lagi.

"ghabrana mat beti,main hoo na.",uncle uske paas khade uski pith sehlate hue hath blouse se neeche uski nangi kamar pe le aaye.

"aapka cheque,uncle & bura na mane to aap abhi jaa sakte hain.mujhe thoda kaam hai."

"haan...haan!tum aaram karo beti....& koi zarurat ho to mujhe bejhijhak bula lena.",reema ne darwaza band kiya &roti hui sofe pe ja giri.pehle ravi ka boss ab ye buddha.in sabne use kya koi sadak pe pada khilona samajh rakha tha kya ki jiski marzi ho vo uske sath khel le.

tabhi phir se doorbell baji.reema ne aansoo pochhe & darwaza khola to chaunk uthi,saamne uske sasur khade the.sakpaka ke usne unke paanv chhue & unke andar aate hi darwaza band kar diya.

"tumhe humare sath panchmahal chalna hoga."

"ji.",reema ne chaunk ke unhe dekha.

"sumitra-ravi ki maa ki halat to tum janti ho.doctors ka kahna hai ki kai baar agar koi bahut shocking news sunai jaye to aise patients bolne lagte hain.isiliye humne use ravi ki maut ki khabar di.sumitra boli to nahi par uski aankho se aansoo behne lage,rulai ki aavaz nahi nikli bas aakhen barasti rahi.us din se vo thik se kha-pi bhi nahi rahi hai.main jab bhi uske samne jata hu to jaise uski nazre mujh se kuchh maangti rehti hain.thode dino main samajh gaya ki vo tumhe dhundti hai."

"maa ji to kuchh bolti nahi,fir aapko aisa kaise laga?"

"main uska pati hu,itne saal hum sath rahe hain.uske dil ki baat samajhne ke liye mujhe kisi zubaan ki zarurat nahi."

"apna saaman taiyyar rakhna,hum kal hi yaha se nikal jayenge.aur haa 1 bahut aham baat sun lo.main aaj bhi tumhe apni bahu nahi maanta,bas apni patni ki behtari ke liye tumhe vaha le ja raha hu.aur tum bhi bas 1 nurse ki haisiyat se vaha ja rahi ho.meri puri biradari ya jaan-pehchan me koi bhi ravi ki shadi ya tumhare wajood se wakif nahi hai.to tum jab tak is raaz ko apne seene me dafan rakhogi vaha rahogi."

koi aur mauka hota to reema unhe bahar ka rasta dikha deti par aaj Virendra Saxena ke roop me bhagwan ne use musibat se bahar nikalne ka zariya bhej diya tha.

"mujhe aapki baat manzoor hai par aapko apne bete ki 1 galati sudharni hogi...aur ravi ki maut ke peechhe zarur koi raaz tha ,aapko us raaz ka bhi pata lagana hoga."

"saaf-2 baat karo,paheliyaan mat bujhao."

aur reema ne unhe puri baat bata di.virendra ji ko uski baat pe yakeen nahi hua par jab dusre din vo uske sath bank gaye to unhe yakin karna hi pada.

"mr.kakkar,main nahi chahta ki mere guzre hue bete ko koi dhokhebaaz ke roop me yaad kare.",unhone apna visiting card coat ki jeb se nikala & uspe kuchh likha,"ye mera card hai & ispe mere ghar ke phone nos. bhi maine likh diye hain.aap mujhe account no. dijiye,kal hi usme 4 lakh rupaye jama ho jaayenge."

"ok,mr.saxena.",kakkar ne card liya & hasrat bhari nigah reema pe dali.

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sham dhale panchmahal ki us posh colony jiska naam civil lines tha,me 1 car dakhil hui 1 kurane magar shandar bungle ke samne aakar ruk gayi.car me se virendra saxena & reema utre to andar se gate khol 1 buzurg sa aadmi bahar aaya.reema samajh gayi ki yahi darshan hai yani dadda.

"ye sumitra ki nayi nurse reema hain,darshan.inhe inka kamra dikha do."

"aaiye.",darshan jaise use dekh khush nahi hua tha.

kamre me saman rakh darshan bahar jane laga to reema ne use aavaz di,"dadda!"

darshan chaunk kar ghuma,"tumhe kaise pata ki mujh se chhote mujhe dadda bulate hain?tum to abhi-2 aayi ho."

reema sakpakayi par usne sambhalte hue paas ke shelf pe rakhi 1 tasveer ki or ishara kiya,"vaha likha hai na.",tasveer me darshan do bachhon ke sath khada tha & 1 bachhe ki likhawat me hi foto ke neeche sketch pen se teeno ke naam likhe the.vo dono bachhe shekhar & ravi the.

"ohh..",darsha ke hotho pe muskaan aa gayi.

"main aapko dadda bula sakti hu na?"

"haan,nurse ji."

"nurse ji nahi mera naam reema hai."

"achha,reema ji."

"reema ji nahi sirf reema."

"achha,reema.",darshan hansta hua bahar chala gaya.

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thodi der baad sumitra ji ke doctor dr.verma aa gaye.,"to yehi hain nayi nurse.hello,nurse."

"hello,doctor."

"aao,main aapko patient ke bare me bata deta hu."

"chaliye,doctor."

"...to reema,chunki ye khud nahi move kar sakti to hume inhe move karna padta hai nahi to bedsore hone ka darr hai.din me har 2 ghante me inki position badal dena.haa raat me sote waqt iski zarurat nahi ..",doctor reema ko samjha rahe the,"ye hai sari dawayen & unki dosage.ok.aur kuchh poochhna hai?"

"nahi,doctor."

"very good.mera no.virendra ji ke paas hai.koi problem ho to call me.ab main chalta hu."

"bye,doctor."

-------------------------------------------------------------------------------safar se thaki reema jab bistar pe leti to vo sochne lagi ki taqdeer bhi uske sath kya khel khle rahi hai.jab tak pati zinda tha tab tak vo sasural nahi ayi & ab pati ki maut ke baad vo yaha rah rahi hai.apni kismat pe 1 pheeki hansi hans vo karwat badal neend me dub gayi.


















आपका दोस्त राज शर्मा
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा

(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj



































































































































































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