raj sharma stories राज शर्मा की कामुक कहानिया हिंदी कहानियाँ
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खिलोना पार्ट--5
दूसरे दिन से ही रीमा अपने ससुर & जेठ को शीशे मे उतारने मे लग गयी.काम करते वक़्त पल्लू ढालका के अपने क्लीवेज का दर्शन करवा & कसे & झीने कपड़े पहन कर उनके सामने आकर उसने दोनो मर्दो के दिलो मे हलचल मचा दी.पर उसने इस बात का भी पूरा ध्यान रखा कि दोनो उसे कोई बाज़ारु लड़की ना समझे जो चुदाई के लिए मरी जा रही है.उसका प्लान था कि उसकी जिस्म की नुमाइश से गरम होकर दोनो खुद उसे अपने बिस्तर मे ले जाएँ.
2-3 दीनो तक ऐसा ही चलता रहा.जहा वीरेन्द्रा साक्शेणा बस चोर निगाहो से उसके जिस्म को घूरते रहते थे वही शेखर तो मौका पाते ही उसे छु लेता था,पानी का ग्लास लेते वक़्त उसकी उंगलिया दबाना तो बात करते वक़्त उसके कंधे पे वाहा हाथ रखना जहा ब्लाउस नही होता था तो अब उसकी आदत बन गयी थी.
नाश्ते की टेबल पे उसने उसकी प्लेट बढ़ाई तो उसने फिर से उसका हाथ दबा दिया.सीने से आँचल फिसल कर उसकी बाँह मे अटका था & दोनो मर्दो की नज़रे उसके सीने की वादी मे अटकी थी,"रीमा."
"जी.",पल्लू संभाल रीमा अपने ससुर से मुखातिब हुई.
"तुम यहा के बॅंक मे भी अपना 1 अकाउंट खुलवा लो,तुम्हे ही आराम होगा.मैं फॉर्म ले आया हू,आज ही जाके जमा कर आओ."
"ठीक है,बॅंक कहा पे है,बता दीजिए?मैं दिन मे जाके फॉर्म जमा कर आऊँगी."
"मुझे थोड़ी देर से ऑफीस जाना है,तुम्हे रास्ते मे छ्चोड़ता चला जाऊँगा.",शेखर ने नीवाला मुँह मे डाला.विरेन्द्र जी ने उसके उपर 1 गंभीर नज़र डाली & फिर नाश्ता करने लगे.
"ठीक है,भैया."
थोड़ी देर बाद शेखर की कार मे दोनो बॅंक की तरफ जा रहे थे,"कभी-2 घर से बाहर भी निकला करो रीमा.थोडा घुमो-फ़िरोगी तो मन बहला रहेगा."
"जी,बगल के पार्क मे चली जाती हू."
"वो तो ठीक है.पर कभी भी शॉपिंग या कोई और काम हो तो मुझसे बेझिझक कहना,मैं तुम्हे ले चलूँगा."
"थॅंक यू,भाय्या.",रीमा अपने जेठ की दरिया दिली का मक़सद समझ रही थी.चलो,इसमे इतनी हिम्मत तो थी उसके ससुर तो बस नज़रो से ही उसके बदन को छुने की कोशिश करते थे.जब से रीमा ने अपने पति की मौत का राज़ पता लगाने का ये तरीका सोचा था उसके जिस्म ने उसे तड़पाना शुरू कर दिया था.रात को अपने बिस्तर पे जब तक वो 2 बार अपनी उंगली से अपनी गर्मी को शांत नही करती उसे नींद नही आती.
शेखर ने कार रोक दी,हड्सन मार्केट आ गया था.रोड पार कर दोनो बॅंक की ओर जाने लगे.शेखर का हाथ ब्लाउस & सारी के बीच रीमा की नंगी कमर पे आ गया,दुनिया के लिए तो बस वो अपने साथ आई लड़की की सड़क पार करने मे मदद कर रहा था पर रीमा जानती थी कि इसी बहाने वो उसके रेशमी बदन का एहसास ले मज़ा उठा रहा है.उसे भी ये अच्छा लग रहा था,कितने दीनो बाद तो किसी ने उसे ऐसे च्छुआ था.
बॅंक मे भीड़ थी & फॉर्म सब्मिट करने के लिए उसे लाइन मे लगना पड़ा तो शेखर भी उसके पीछे खड़ा हो गया,"आपको देर हो जाएगी,भाय्या.आप जाइए."
"कोई बात नही,तुम परेशान मत हो.बस थोड़ी देर मे काम हो जाएगा तो मैं निकल जाऊँगा."
लाइन मे लगी रीमा सिहर उठी,उसके जेठ उसके पीछे उसकी गंद पे अपना लंड सटाये खड़ा हो गया था.शेखर का कद 5'8" था & वो रीमा से बस 3 इंच ही लंबा था.इस वजह से उसका लंड सीधा उसकी गंद से आ सटा था.थोड़ी देर बाद जब रीमा ने कुच्छ नही कहा तो उसकी हिम्मत बढ़ गयी & वो थोड़ा और सॅट कर खड़ा हो गया,अब उसका पॅंट मे क़ैद लंड रीमा की सारी मे कसी गंद की दरार मे फँस सा गया था.शेखर आगे को झुक उसके कंधे के उपर से उसे देखता हुआ उस से इधर-उधर की बात करने लगा.जेठ की हरकत से रीमा की चूत गीली होने लगी थी.करीब 15 मिनिट बाद जब रीमा की बारी आई & वो क्लर्क को फॉर्म देने लगी तो शेखर ये देखने के बहाने उस से और सॅट कर खड़ा हो गया,अब लंड उसकी गंद की दरार मे और धँस गया,रीमा का दिल कर रहा था की वो भी अपनी गंद हिला कर उसके लंड को जवाब दे पर ऐसा करने से उसका प्लान चौपट हो जाता.उसने अपने दिल पे काबू किया & फॉर्म जमा कर शेखर के साथ बॅंक से बाहर निकल आई.
"चलो तुम्हे घर छ्चोड़ देता हू.",शेखर ने इस बार सड़क पार करते हुए उसकी कमर पे पीछे से हाथ फिसलते हुए बगल से उसकी कमर को हल्के से थाम लिया.
"आपको देर हो जाएगी."
"कोई बात नही."
थोड़ी देर बाद रीमा घर पे थी.उसकी चल सही जा रही थी.बस कुच्छ ही दीनो मे उसका जेठ उसे अपने बिस्तर मे खींच लेगा इसका आज उसे यकीन हो गया था.विरेन्द्र जी रोज़ दोपहर का खाना खाने घर आते थे.आज भी आए पर आज उनका ध्यान खाने से ज़्यादा अपनी बहू की जवानी पे था.
"आउच!"
"क्या हुआ रीमा?"
"कुच्छ नही.सॅंडल टूट गयी.अब बनवानी पड़ेगी."
"शाम को मेरे साथ चल के नयी ले लेना."
"नही,पिताजी.",उसने धीरे से कहा कि दर्शन ना सुन ले,"दद्दा से पुच्छ किसी मोची से बनवा लूँगी."
"शाम को जब मैं दफ़्तर से वापस आओंगा फिर हम दोनो मार्केट चल कर तुम्हारे लिए नयी सॅंडल लेंगे.बस,प्रोग्राम पक्का हो गया.",खाना ख़त्म कर वो हाथ धोने चले गये.
शाम को रीमा अपने ससुर के साथ उनकी कार मे बैठी 1 बार फिर हड्सन मार्केट पहुँची.मार्केट मे बहुत भीड़ थी.1 जगह विरेन्द्र जी थोड़ा आगे बढ़ गये & वो भीड़ मे थोडा पीछ्हे रह गयी तो विरेन्द्र जी ने पीछे घुवं कर उसका हाथ थाम लिया.उनके बड़े से हाथ मे रीमा का नाज़ुक,कोमल हाथ कही खो सा गया.दोनो हाथ थामे ही दुकान मे घुसे & जब सेल्समन रीमा को सॅंडल्ज़ दिखाने लगा तभी उन्होने उसका हाथ छ्चोड़ा.
"ये लीजिए,मेडम.",सेल्समन ने उसके पैरों मे सॅंडल पहनाया,"..चल कर देखिए तभी तो पता चलेगा कि फिट है या नही."
रीमा चलने लगी.दुकान मे सजावट के लिए दीवारो पे शीशे लगे थे.चलते हुए रीमा ने सामने के शीशे मे देखा तो पाया कि उसके ससुरे उसकी मटकती गंद को घूर रहे हैं,सेल्समन उनके साथ बैठे किसी और ग्राहक को जुटे दिखा रहा था.रीमा ने अपने ससुर को और तड़पाने के लिए गंद कुच्छ ज़्यादा मटकाने लगी.
रवि कहता था कि उसकी चल मे अजीब सी कशिश है.वो कहता था कि जब वो चलती है तो उसकी गंद मटकती है & जो भी देखता होगा बस दिल थम के रह जाता होगा.उस दिन रीमा को अपनी नशीली गंद की ताक़त का पता चला था.वो घूम कर अपने ससुर की ओर आई तो इस बार वो उसकी झीनी सारी मे से नुमाया हो रहे उसकी नाभि पे चमकते छल्ले को देखने लगी,"ये कुच्छ जाँच नही रही,इसे ट्राइ करती हू.",रीमा ने सॅंडल खोली और अपनी सारी को ऊँचा करते हुए अपने ससुर को अपनी गोरी टाँगो का ज़रा सा हिस्सा दिखाया & दूसरी सॅंडल मे पैर डाल दिए.
इस बार वो बहुत धीरे-2 अपनी सारी मे कसी मस्त,भारी गंद को मतकाते हुए वो सॅंडल पहन कर दो बार चली.शीशे मे उसे उसके ससुर के चेहरे पे अपने बदन के लिए प्यास सॉफ दिख रही थी,"ये सही है.इसे ही ले लेती हू."
विरेन्द्र जी ने उसे कुल मिलाके 3 जोड़ी सॅंडल्ज़ दिलवाए.उन 3 जोडियो को रीमा ने कोई 15 जोडियो को ट्राइ करने के बाद चुना,यानी की उसने कम से कम 15 बार अपने ससुर को अपनी मतकती गंद का दीदार कराया.दुकान से कार तक जाते हुए उसका हाथ उनके हाथ मे ही रहा.
उस रात रीमा कुच्छ ज़्यादा ही गरम हो गयी थी.बिस्तर पे मचलते हुए उसने 4 बार अपनी चूत को अपने हाथो से शांत किया.
15-20 दीनो के लिए आया हुआ शेखर अब तो जैसे यही बस ही गया था.वैसे तो उसे कुच्छ दीनो पे 1-2 रोज़ के लिए दिल्ली जाना पड़ता था,पर ज़्यादातर वक़्त वो पंचमहल मे ही रहने लगा था.कहने को उसने कह दिया था की काम ही कुच्छ ऐसा आ गया है पर रीमा जानती थी कि ये उसके बदन की प्यास थी,जो उसे यहा रोके हुए थी.
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"रीमा,ज़रा इधर तो आना.",शेखर ने अपने कमरे से उसे आवाज़ दी.रात का खाना हो गया था,रीमा अभी-2 सुमित्रा जी को दवा पीला उन्हे सुला के कमरे से निकली थी.सास की सेवा के बहाने उसने अपने ससुर को अपने बदन की गोलैईयों का पूरा दीदार कराया था.
"हा,कहिए क्या बात है?",रीमा कमरे मे दाखिल हुई.
"1 छ्होटा सा दाना था जो अब फोड़े की शक्ल इकतियार कर चुका है.तुम्हे कोई दवा पता हो तो बताओ ना."
"कहा पे है?"
जवाब मे शेखर ने अपनी कमीज़ उतार दी तो रीमा ने शर्म से आँखे नीची कर ली.
"ये देखो.",उसके बाए निपल के थोड़ा उपर 1 छ्होटा सा फोड़ा था.उसने उसका हाथ पकड़ उस पर रख दिया,"अब तो थोड़ा दर्द भी कर रहा है."
"रुकिये,अभी अपना फर्स्ट-एड किट लाती हू."
रीमा किट ले आई & दवा को रूई मे लगा जैसे ही उसने फोड़े पे लगाया तो शेखर कराह उठा,"आहह!",& उसने अपने हाथ से उसकी कमर को पकड़ किया.रीमा का हाथ काँप गया & रूई शेखर के निपल पे आ लगी.अपने गुज़रे हुए भाई की तरह ही उसका सीना भी बिल्कुल चिकना था.निपल छुते ही रीमा की चूत गीली होने लगी.उसका दिल कर रहा था कि अभी उस से लिपट कर अपनी प्यास बुझा ले...कितने दिन हो गये थे उसे चुदे हुए!
रीमा ने किसी तरह खुद पे काबू रखा & उस फोड़े को फोड़ने की कोशिश करने लगी.शेखर आँखे बंद किए हुए ऐसे दिखा रहा था जैसे उसे बहुत दर्द हो रहा हो & जब भी रीमा फोड़े को दबाती वो कराहते हुए उसकी कमर को दबा देता.पर रीमा जानती थी की फोड़ा मामूली सा ही है & शेखर बस नाटक कर रहा है.
करीब 5 मिनिट मे रीमा ने फोड़े को फोड़ कर सारा गंदा पानी निकाल दिया & वाहा पट्टी लगाने लगी.शेखर का हाथ अभी भी उसकी कमर पे था & उसे हौले-2 सहला रहा था.उसकी हरकत से रीमा के गुलाबी गाल और लाल हुए जा रहे थे.जैसे-तैसे उसने पट्टी लगाई,"हो गया.मैं जाती हू."
शेखर ने उसे नही रोका & 1 आखरी बार उसकी कमर को दबा दिया.
कमरे मे जाते हुए उसने सोचा कि 1 बार सुमित्रा जी को देख ले.उनके कमरे मे गयी तो पाया कि वो सो रही थी.बीच का परदा खींचा हुआ था,उसने उसे सरकया तो देखा की उसके ससुर कुर्सी पे बैठे कुच्छ परेशान से अपना पैर सहला रहे हैं.
"क्या हुआ,पिताजी?"
"कुच्छ नही.बस पैर मे थोड़ा दर्द है."
"लाइए मैं दबा देती हू."
"अरे नही,बेटी.परेशान मत हो.ज़्यादा तकलीफ़ नही है.ठीक हो जाएगा.जाओ,जाके सो जाओ.मैं दर्शन को बुला लूँगा"
"दद्दा तो सोने चले गये,लाइए मैं ही दबा देती हू.चलिए लेट जाइए.",उसने उनकी बाँह पकड़ उठने का इशारा किया.विरेन्द्र जी बेड पे लेट गये.
"क्या हुमेशा होता है आपके पैरों मे दर्द?"
"नही,जब ज़्यादा चलता हू तो तब होता है."
"यानी की मेरी वजह से हो रहा है आज दर्द.ना मेरी सॅंडल के चक्कर मे मार्केट जाते ना आपको तकलीफ़ होती."
"अपनो की मदद करने से तकलीफ़ नही होती."
"तो ये दर्द क्या है?"
"अरे ये कुच्छ नही है.इस से ज़्यादा तुम्हारी मदद करने की खुशी है."
रीमा उनके बगल मे बैठ गयी & उनके पैर दबाने लगी.इस बार उसने जान के नही किया पर फिर भी आँचल ढालाक गया.वो पैर दबाते हुए उसे बार-2 संभालती पर वो बार-2 गिर जाता.हार कर उसने उसे गिरा ही रहने दिया.घुटनो पे बैठ वो नीचे से उपर उनकी जाँघो तक आती.झुकी होने के कारण ब्लाउस के गले मे से उसकी चूचिया जैसे छल्कि जा रही थी.विरेन्द्र की नज़रे उसके सीने से चिपकी हुई थी & वो 1 हाथ से अपना सीना सहला रहे थे.
रीमा ने देखा कि उसके ससुर के पाजामे मे हलचल हो रही है.थोड़ी ही देर मे उनका लंड पूरा खड़ा हो गया & पाजामे ने तंबू की शक्ल इकतियार कर ली.पहले जेठ के हाथ की गुस्ताख़ी & अब ससुर का खड़ा लंड,रीमा की भी दिल की धड़कन तेज़ हो गयी,उसकी चूत तो शेखर के कमर सहलाने से ही गीली होने लगी थी,अब तो उसकी पॅंटी उसके रस से उसकी चूत से चिपक गयी थी.घुटनो पे बैठे हुए अपनी भारी जाँघो को आपस मे हल्के-2 रगड़ते हुए अपनी चूत को काबू मे रखते हुए वो थोड़ी देर तक अपने ससुर का पैर वैसे ही दबाते रही.
फिर वो उठी & उनके पैरो के पास आ उनकी ओर मुँह करके बैठ गयी,आँचल अभी भी गिरा हुआ था & अब विरेन्द्र जी सामने से उसकी चूचियो & पेट को घूर रहे थे.उसने उनके तलवो को उठा अपनी गोद मे रख लिया & पैरो की उंगलियो को & तलवे को दबाने लगी.अब उनकी एडी उसकी गोद मे उसकी चूत पे थी & पैर की उंगलिया उसके नंगे पेट पे.
थोड़ी देर तक दबाने के बाद उसके ससुर ने भी अपने बेटे की तरह हिम्मत की & अपने पैर के अंगूठे से उसके नेवेल रिंग को छेड़ने लगे.रीमा के लिए सीधे बैठना मुश्किल हो गया.उसने आँखे बंद कर ली & अपने ससुर का पैर सहलाने लगी.उन्होने ने अंगूठे को उसकी नाभि मे डाल दिया & उसे कुरेदने लगे.उनकी एडी उसकी चूत को हल्के-2 दबा रही थी.
रीमा आँखे बंद किए उनकी हर्कतो का मज़ा उठा रही थी.अब पैर दबाने की जगह सहलाया जा रहा था & विरेन्द्र जी भी अपना दर्द भूल अपनी बहू की नाभि कुरेद रहे थे.रीमा ने आँखे खोली तो देखा कि उसके ससुर उसे घूरते हुए अपने पैर से उसके जिस्म को छेड़ रहे हैं तो उसने शर्म से नज़रे नीची कर ली.पर नीचे करते ही उसकी नज़र उनके पाजामे पे अटक गयी,वाहा 1 धब्बा सा बन रहा था.रीमा समझ गयी की उसके ससुर का प्रेकुं निकल गया है.
वो जानती थी कि अगर थोड़ी देर और बैठी रही तो वही उनका पैर पकड़े हुए झाड़ जाएगी.पर उसे ऐसा नही करना था,उसे इन दोनो मर्दो को ये एहसास बिल्कुल नही होने देना था कि वो उनसे चुदना चाहती है.उसने अपनी चूत को भींचा & ससुर के पैरो को नीचे रख बिस्तर से उतर गयी,"अब आप सो जाइए,पिताजी.मैं भी जाती हू."
जवाब मे विरेन्द्र जी केवल सर ही हिला पाए.रीमा निकल कर अपने कमरे मेपहुँची & जल्दी-2 अपने कपड़े उतारने लगी.अपनी चूत से चिपकी गीली पॅंटी हटा कर वो बिस्तर पे लेट गयी & अपने हाथो से अपने जिस्म मे लगी आज बुझाने लगी.
KHILONA paart--5
dusre din se hi Reema apne sasur & jeth ko shheshe me utarne me lag gayi.kaam karte waqt pallu dhalka ke apne cleavage ka darshan karwa & kase & jheene kapde pahan kar unke samne aakar usne dono mardo ke dilo me halchal macha di.par usne is baat ka bhi pura dhyan rakha ki dono use koi bazaru ladki na samjhe jo chudai ke liye mari ja rahi hai.uska plan tha ki uski jism ki numaish se garam hokar dono khud use apne bistar me le jayen.
2-3 dino tak aisa hi chalta raha.jaha Virendra Saxena bas chor nigaho se uske jism ko ghurte rahte the vahi Shekhar to mauka pate hi use chhu leta tha,pani ka glass lete waqt uski ungliya dabana to baat karte waqt uske kandhe pe waha hath rakhna jaha blouse nahi hota tha to ab uski aadat ban gayi thi.
nashte ki table pe usne uski plate badhayi to usne fir se uska hath daba diya.seene se aanchal fisal kar uski baanh me atka tha & dono mardo ki nazre uske seene ki vadi me atki thi,"reema."
"ji.",pallu sambhal reema apne sasur se mukhatib hui.
"tum yaha ke bank me bhi apna 1 account khulwa lo,tumhe hi aaram hoga.main form le aaya hu,aaj hi jake jama kar aao."
"thik hai,bank kaha pe hai,bata dijiye?main din me jake form jama kar aaoongi."
"mujhe thodi der se office jana hai,tumhe raste me chhodta chala jaoonga.",shekhar ne niwala munh me dala.virendra ji ne uske upar 1 gambhir nazar dali & fir nashta karne lage.
"thik hai,bhaiya."
thodi der baad shekhar ki car me dono bank ki taraf ja rahe the,"kabhi-2 ghar se bahar bhi nikla karo reema.thoda ghumo-firogi to man behla rahega."
"ji,bagal ke park me chali jati hu."
"vo to thik hai.par kabhi bhi shopping ya koi aur kaam ho to mujhse bejhijhak kehna,main tumhe le chalunga."
"thank you,bhaiyya.",reema apne jeth ki dariya dili ka maqsad samajh rahi thi.chalo,isme itni himmat to thi uske sasur to bas nazro se hi uske badan ko chhune ki koshish karte the.jab se reema ne apne pati ki maut ka raaz pata lagane ka ye tareeka socha tha uske jism ne use tadpana shuru kar diya tha.raat ko apne bistar pe jab tak vo 2 baar apni ungli se apni garmi ko shant nahi karti use neend nahi aati.
shekhar ne car rok di,hudson market aa gaya tha.road paar kar dono bank ki or jane lage.shekhar ka hath blouse & sari ke beech reema ki nangi kamar pe aa gaya,duniya ke liye to bas vo apne sath aayi ladki ki sadak paar karne me madad kar raha tha par reema janti thi ki isi bahane vo uske reshmi badan ka ehsas le maza utha raha hai.use bhi ye achha lag raha tha,kitne dino baad to kisi ne use aise chhua tha.
bank me bheed thi & form submit karne ke liye use line me lagna pada to shekhar bhi uske peechhe khada ho gaya,"aapko der ho jayegi,bhaiyya.aap jaaiye."
"koi baat nahi,tum pareshan mat ho.bas thodi der me kaam ho jayega to main nikal jaoonga."
line me lagi reema sihar uthi,uske jeth uske peechhe uski gand pe apna lund sataye khada ho gaya tha.shekhar ka kad 5'8" tha & vo reema se bas 3 inch hi lamba tha.is wajah se uska lund seedha uski gand se aa sata tha.thodi der baad jab reema ne kuchh nahi kaha to uski himmat badh gayi & vo thoda aur sat kar khada ho gaya,ab uska pant me qaid lund reema ki sari me kasi gand ki darar me fans sa gaya tha.shekhar aage ko jhuk uske kandhe ke upar se use dekhta hua us se idhar-udhar ki baat karne laga.jeth ki harkat se reema ki chut gili hone lagi thi.kareeb 15 minute baad jab reema ki bari aayi & vo clerk ko form dene lagi to shekhar ye dekhne ke bahane us se aur sat kar khada ho gaya,ab lund uski gand ki darar me aur dhans gaya,reema ka dil kar raha tha ki vo bhi apni gand hila kar uske lund ko jawab de par aisa karne se uska plan chaupat ho jata.usne apne dil pe kabu kiya & form jana kat shekhar ke sath bank se bahar nikal aayi.
"chalo tumhe ghar chhod deta hu.",shekhar ne is baar sadak paar karte hue uski kamar pe peechhe se hath fislate hue bagal se uski kamar ko halke se tham liya.
"aapko der ho jayegi."
"koi baat nahi."
thodi der baad reema ghar pe thi.uski chal sahi ja rahi thi.bas kuchh hi dino me uska jeth use apne bistar me khinch lega iska aaj use yakeen ho gaya tha.virendra ji roz dopahar ka khana khane ghar aate the.aaj bhi aaye par aaj unka dhyan khane se zyada apni bahu ki jawani pe tha.
"ouch!"
"kya hua reema?"
"kuchh nahi.sandal toot gayi.ab banwani padegi."
"sham ko mere sath chal ke nayi le lena."
"nahi,pitaji.",usne dheere se kaha ki darshan na sun le,"dadda se puchh kisi mochi se banwa lungi."
"sham ko jab main daftar se vapas aaonga fir hum dono market chal kar tumhare liye nayi sandal lenge.bas,program pakka ho gaya.",khana khatm kar vo hath dhone chale gaye.
sham ko reema apne sasur ke sath unki car me baithi 1 bar fir hudson market pahunchi.market me bahut bheed thi.1 jagah virendra ji thoda aage badh gaye & vo bheed me thoda peechhhe reh gayi to virendra ji ne peechhe ghu kar uska hath tham liya.unke bade se hath me reema ka nazuk,konal hath kahi kho sa gaya.dono hath thame hi dukan me ghuse & jab salesman reema ko sandals dikhane laga tabhi unhone uska hath chhoda.
"ye lijiye,madam.",salesman ne uske pairon me sandal pehnaya,"..chal kar dekhiye tabhi to pata chalega ki fit hai ya nahi."
reema chalne lagi.dukan me sajawat ke liye deewaro pe sheeshe lage the.chalte hue reema ne samne ke sheeshe me dekha to paya ki uske sasure uski matakti gand ko ghur rahe hain,salesman unke sath baithe kisi aur grahak ko jute dikha raha tha.reema ne apne sasur ko aur tadpane ke liye gand kuchh zyada matkane lagi.
ravi kehta tha ki uski chal me ajeeb si kashish hai.vo kehta tha ki jab vo chalti hai to uski gand matakti hai & jo bhi dekhta hoga bas dil tham ke reh jata hoga.us din reema ko apni nashili gand ki taaqat ka pata chala tha.vo ghum kar apne sasur ki or aayi to is baar vo uski jhini sari me se numaya ho rahe uski nabhi pe chamakte chhalle ko dekhne lagi,"ye kuchh janch nahi rahi,ise try karti hu.",reema ne sandal kholi aur apni sari ko ooncha karte hue apne sasur ko apni gori taango ka zara sa hissa dikhaya & dusri sandal me pair daal diye.
is baar vo bahut dheere-2 apni sari me kasi mast,bhari gand ko matkate hue vo sandal pehan kar do bar chali.sheeshe me use uske sasur ke chehre pe apne badan ke liye pyas saaf dikh rahi thi,"ye sahi hai.ise hi le leti hu."
virendra ji ne use kul milake 3 jodi sandals dilwaye.un 3 jodiyo ko reema ne koi 15 jodiyo ko try karne ke baad chuna,yani ki usne kam se kam 15 baar apne sasur ko apni matkati gand ka deedar karaya.dukan se car tak jate hue uska hath unke hath me hi raha.
us raat reema kuchh zyada hi garam ho gayi thi.bistar pe machalte hue usne 4 baar apni chut ko apne hatho se shant kiya.
15-20 dino ke liye aaya hua shekhar ab to jaise yehi bas hi gaya tha.vaise to use kuchh dino pe 1-2 roz ke liye dilli jana padta tha,par zyadatar waqt vo Panchmahal me hi rehne laga tha.kehne ko usne keh diya tha ki kaam hi kuchh aisa aa gaya hai par reema janti thi ki ye uske badan ki pyas thi,jo use yaha roke hue thi.
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"reema,zara idhar to aana.",shekhar ne apne kamre se use aavaz di.raat ka khana ho gaya tha,reema abhi-2 sumitra ji ko dawa pila unhe sula ke kamre se nikli thi.saas ki sewa ke bahane usne apne sasur ko apne badan ki golaiyon ka pura deedar karaya tha.
"haa,kahiye kya baat hai?",reema kamre me dakhil hui.
"1 chhota sa dana tha jo ab phode ki shakl ikhtiyar kar chuka hai.tumhe koi dawa pata ho to batao na."
"kaha pe hai?"
jawab me shekhar ne apni kameez utar di to reema ne sharm se aankhe neechi kar li.
"ye dekho.",uske baaye nipple ke thoda upar 1 chhota sa phoda tha.usne uska hath pakad us par rakh diya,"ab to thoda dard bhi kar raha hai."
"rukiye,abhi apna first-aid kit lati hu."
reema kit le aayi & dawa ko rui me laga jaise hi usne phode pe lagaya to shekhar karah utha,"aahhh!",& usne apne hath se uski kamar ko pakad kiya.reema ka hath kaanp gaya & rui shekhar ke nipple pe aa lagi.apne guzare hue bhai ki tarah hi uska seena bhi bilkul chikna tha.nipple chhute hi reema ki chut gili hone lagi.uska dil kar raha tha ki abhi us se lipat kar apni pyas bujha le...kitne din ho gaye the use chude hue!
reema ne kisi tarah khud pe kabu rakha & us phode ko phodne ki koshish karne lagi.shekhar aankhe band kiye hue aise dikha raha tha jaise use bahut dard ho raha ho & jab bhi reema phode ko dabati vo karahte hue uski kamar ko daba deta.par reema janti thi ki phoda mamuli sa hi hai & shekhar bas natak kar raha hai.
kareeb 5 minute me reema ne phode ko phod kar sara ganda pani nikal diya & vaha patti lagane lagi.shekhar ka hath abhi bhi uski kamar pe tha & use haule-2 sehla raha tha.uski harkat se reema ke gulabi gaal aur laal hue ja rahe the.jaise-taise usne patti lagayi,"ho gaya.main jati hu."
shekhar ne use nahi roka & 1 aakhri baar uski kamar ko daba diya.
kamre me jate hue usne socha ki 1 baar sumitra ji ko dekh le.unke kamre me gayi to paya ki vo so rahi thi.beech ka parda khincha hua tha,usne use sarkaya to dekha ki uske sasur kursi pe baithe kuchh pareshan se apna pair sehla rahe hain.
"kya hua,pitaji?"
"kuchh nahi.bas pair me thoda dard hai."
"laiye main daba deti hu."
"are nahi,beti.pareshan mat ho.zyada takleef nahi hai.theek ho jayega.jao,jake so jao.main darshan ko bula lunga"
"dadda to sone chale gaye,laiye main hi daba deti hu.chaliye let jaiye.",usne unki banh pakad uthne ka ishara kiya.virendra ji bed pe let gaye.
"kya humesha hota hai aapke pairon me dard?"
"nahi,jab zyada chalta hu to tab hota hai."
"yani ki meri wajah se ho raha hai aaj dard.na meri sandal ke chakkar me market jate na aapko takleef hoti."
"apno ki madad karne se takleef nahi hoti."
"to ye dard kya hai?"
"are ye kuchh nahi hai.is se zyada tumhari madad karne ki khushi hai."
reema unke bagal me baith gayi & unke pair dabane lagi.is bar usne jaan ke nahi kiya par fir bhi aanchal dhalak gaya.vo pair dabate hue use baar-2 sambhalti par vo baar-2 gir jata.haar kar usne use gira hi rehne diya.ghutno pe baith vo neeche se upar unki jangho tak aati.jhuki hone ke karan blouse ke gale me se uski chhtiyan jaise chhalki ja rahi thi.virendra ki nazre uske seene se chipki hui thi & vo 1 hath se apna seena sehla rahe the.
reema ne dekha ki uske sasur ke pajame me halchal ho rahi hai.thodi hi der me unka lund pura khada ho gaya & pajame ne tambu ki shakl ikhthiyar kar li.pehle jeth ke hath ki gustakhi & ab sasur ka khada lund,reema ki bhi dil ki dhadkan tez ho gayi,uski chut to shekhar ke kamar sehlane se hi gili hone lagi thi,ab to uski panty uske rase se uski chut se chipak gayi thi.ghutno pe bauthe hue apni bhari jangho ko aapas me halke-2 ragadte hue apni chut ko kabu me rakhte hue vo thodi der tak apne sasur ka pair vaise hi dabate rahi.
fir vo uthi & unke pairo ke paas aa unki or munh karke baith gayi,aanchal abhi bhi gira hua tha & ab virendra ji samne se uski chhtiyo & pet ko ghur rahe the.usne unke talvo ko uth apni god me rakh liya & pairo ki ungliyo ko & talwe ko dabane lagi.ab unki aidi uski god me uski chut pe thi & pair ki ungliya uske nange pet pe.
thodi der tak dabane ke bad uske sasur ne bhi apne bete ki tarah himmat ki & apne pair ke angoothe se uske navel ring ko chhedne lage.reema ke liye seedhe baithna mushkil ho gaya.usne aankhe band kar li & apne sasur ka pair sehlane lagi.unhone ne angoothe ko uski nabhi me daal diya & use kuredne lage.unki aidi uski chut ko halke-2 daba rahi thi.
reema aankhe band kiye unki harkato ka maza utha rahi thi.ab pair dabane ki jagah sehlaya ja raha tha & virendra ji bhi apna dard bhul apni bahu ki nabhi kured rahe the.reeman ne aankhe kholi to dekha ki uske sasur use ghurte hue apne pair se uske jism ko chhed rahe hain to usne sharm se nazre neechi kar li.par neeche karte hi uski nazar unke pajame pe atak gay,vaha 1 dhabba sa ban raha tha.reema samajh gayi ki uske sasur ka precum nikal gaya hai.
vo janti thi ki agar thodi der aur baithi rahi to vahi unka pair pakde hue jhad jayegi.par use aisa nahi karna tha,use in dono mardo ko ye ehsas bilkul nahi hone dena tha ki vo unse chudna chahti hai.usne apni chut ko bheencha & sasur ke pairo ko neeche rakh bistar se utar gayi,"ab aap so jaiye,pitaji.main bhi jati hu."
jawab me virendra ji kewal sar hi hila paye.reema nikal kar apne kamre mepahunchi & jaldi-2 apne kapde utarne lagi.apni chut se chipki gili panty hata kar vo bistar pe let gayi & apne hatho se apne jism me lagi aaj bujhane lagi.
आपका दोस्त राज शर्मा
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj
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