Sunday, June 13, 2010

धोबन और उसका बेटा--16

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धोबन और उसका बेटा--16




मा ने सिसकते हुए कहा " है बेटा, मत पुच्छ, बहुत अच्छा लग रहा है, मेरे लाल, इसी मज़े के लिए तो तेरी मा तरस रही थी. चूस ले मेरे बुर कूऊऊओ और ज़ोर से चुस्स्स्स्सस्स.. . सारा रस पी लीई मेरे सैय्या, तू तो जादूगर है रीईईई, तुझे तो कुच्छ बताने की भी ज़रूरत ऩही, है मेरे बुर के फांको के बीच में अपनी जीभ डाल के चूस बेटा, और उसमे अपने जीभ को लिबलिबते हुए अपनी जीभ को मेरी चूत के अंदर तक घुमा दे, है घुमा दे राजा बेटा घुमा दे...." मा के बताए हुए रास्ते पर चलना तो बेटे फ़र्ज़ बनता है और उस फ़र्ज़ को निभाते हुए मैने बुर के दोनो फांको को फैला दिया और अपनी जीभ को उसके चूत में पेल दिया. बर के अंदर जीभ घुसा कर पहले तो मैने अपनी जीभ और उपरी होंठ के सहारे बुर के एक फाँक को पार्कर के खूब चूसा फिर दूसरी फाँक के साथ भी ऐसा ही किया फिर चूत को जितना चिदोर सकता था उतना चिदोर कर अपने जीभ को बुर के बीच में दाल कर उसके रस को चटकारे ले कर चाटने लगा. छूट का रस भूत नासिला था और मा की चूत कामो-उत्तेजना के कारण खूब रस छ्होर रही थी रुँघहीन, हल्का चिप-छिपा रस छत कर खाने में मुझे बहुत आनंद आ रहा था, मा घुटि घुटि आवाज़ में चीखते हुए बोल परी "ओह चतो ऐसे ही चतो मेरे राजा, छत छत के मेरे सारे रस को खा जाओ, है रे मेरा बेटा, देखो कैसे कुत्ते की तरह से अपनी मा की बुर को छत रहा है ओह छत ना ऐसे ही छत मेरे कुत्ते बेटे अपनी कुटिया मा की बुर को छत और उसके बुर के अंदर अपने जीभ को हिलाते हुए मुझे अपने जीभ से छोड़ दाल". मुझे बरा असचर्या हुआ की एक तो मा मुझे कुत्ता कह रही है फिर खुद को भी कुट्टिया कह रही है. पर मेरे दिलो-दिमाग़ में तो अभी केवल मा की रसीलिी बुर की चटाई घुसी हुई थी इसलिए मैने इस तरफ से ध्यान ऩही दिया. मा की आगया का पालन किया और जैसा उसने बताया था उसी तरह से अपने जीभ से ही उसकी चूत को चॉड्ना शुरू कर दिया. मैं अपनी जीभ को तेज़ी के साथ बुर में से अंदर बाहर कर रहा था और साथ ही साथ चूत में जीभ को घूमते हुए चूत के गुलाबी च्छेद से अपने होंठो को मिला के अपने मुँह को चूत पर रगर भी रहा था. मेरी नाक बार बार चूत के भज्नसे से टकरा रही थी और सयद वो भी मा के आनंद का एक कारण बन रही थी. मेरे दोनो हाथ मा के मोटे गुदज जाँघो से खेल रहे थे. तभी मा ने तेज़ी के साथ अपने ****अरो को हिलना शुरू कर और ज़ोर ज़ोर से हफ्ते हुए बोलने लगी "ओह निकल जाएगा ऐसे ही बुर में जीभ चलते रहना बेटा ओह, सी सी सीईई, साली बहुत खुजली करती थी आज निकल दे इसका सारा पानी" और अब मा दाँत पीस कर लग भर चीकते हुए बोलने लगी ओह हूऊओ सीईईईईईई साले कुत्ते, मेरे पायारे बेटे मेरे लाल है रे चूस और ज़ोर से चूस अपनी मा के बुर को जीभ से छोड़ डीईई अभी,,,,,,,सीईईईईई ईईइ छोड़नाअ कुत्ते हरमजड़े और ज़ोर से छोड़ सलीईई, ,,,,,,,, छोड़ दाल अपनी मा को है निकाला रे मेरा तो निकल गया ओह मेरे चुड़ककर बेटे निकल दिया रे तूने तो.... अपनी मा को अपने जीभ से छोड़ डाला" कहते हुए मा ने अपने ****अरो पहले तो खूब ज़ोर ज़ोर से उपर की तरफ उछाला फिर अपनी आँखो को बंद कर के ****अरो को धीरे धीरे फुदकते हुए झरने लगी "ओह गई मैं मेरे राजा, मेरा निकल गया मेरे सैय्या है तूने मुझे जन्नत की सैर करवा दी रे, है मेरे बेटे ओह ओह मैं गई……." मा की बुर मेरे मुँह पर खुल बंद हो रही थी. बर के दोनो फांको से रस अब भी रिस रहा था पर मा अब थोरी ठंडी पर चुकी थी और उसकी आँखे बंद थी उसने दोनो पैर फैला दिए थे और सुस्त सी होकर लंबी लंबी साँसे छ्होर्थी हुई लेट गई. मैने अपने जीभ से छोड़ छोड़ कर अपनी मा को झार दिया था. मैने बुर पर से अपने मुँह को हटा दिया और अपने सिर को मा की जाँघो पर रख कर लेट गया. कुच्छ देर तक ऐसे ही लेते रहने के बाद मैने जब सिर उठा के देखा तो पाया की मा अब भी अपने आँखो को बंद किए बेशुध होकर लेती हुई है. मैं चुप चाप उसके पैरो के बीच से उठा और उसकी बगल में जा कर लेट गया. मेरा लंड फिर से खरा हो चुका था पर मैने चुप चाप लेटना ही बेहतर समझा और मा की र करवट लेट कर मैने अपने सिर को उसके चुचियों से सता दिया और एक हाथ पेट पर रख कर लेट गया. मैं भी थोरी बहुत थकावट महसूस कर रहा था, हालाँकि लंड पूरा खरा था और छोड़ने की इच्छा बाकी थी. मैं अपने हाथो से मा के पेट नाभि और जाँघो को सहला रहा था. मैं धीरे धीरे ये सारा काम कर रहा था और कोशिश कर रहा था की मा ना जागे. मुझे लग रहा था की अब तो मा सो गई और मुझे सयद मूठ मार कर ही संतोष करना परेगा. इसलिए मैं चाह रहा था की सोते हुए थोरा सा मा के बदन से खेल लू और फिर मूठ मार लूँगा. मुझे मा के जाँघ बरे अच्छे लगे और मेरे दिल कर रहा था की मैं उन्हे चुमू और चतु. इसलिए मैं चुप चाप धीरे से उठा और फिर मा के पैरो के पास बैठ गया. मा ने अपना एक पैर फैला रखा था और दूसरे पैर को घुटनो के पास से मोर कर रखा हुआ था. इस अवस्था में वो बरी खूबसूरत लग रही थी, उसके बॉल थोरे बिखरे हुए थे एक हाथ आँखो पर और दूसरा बगल में. पैरो के इस तरह से फैले होने से उसकी बुर और गांद दोनो का च्छेद स्पस्त रूप से दिख रहा था. धीरे धीरे मैने अपने होंठो को उसके जाँघो पर फेरने लगा और हल्की हल्की चुम्मिया उसके रनो से शुरू कर के उसके घुटनो तक देने लगा. एक डम मक्खन जैसी गोरी चिकनी जाँघो को अपने हाथो से पकर कर हल्के हल्के मसल भी रहा मेरा ये काम थोरी देर तक चलता रहा, तभी मा ने अपनी आँखे खोली और मुझे अपने जाँघो के पास देख कर वो एक डम से चौंक कर उठ गई और पायर से मुझे अपने जाँघो के पास से उठाते हुए बोली "क्या कर रहा है बेटे....... ज़रा आँख लग गई थी, देख ना इतने दीनो के बाद इतने अcचे से पहली बार मैने वासना का आनंद उठाया है, इस तरह पिच्छली बार कब झारी थी मुझे तो ये भी याद ऩही, इसीलिए सयद संतुष्टि और थकान के कारण आँख लग गई"

"कोई बात ऩही मा तुम सो जाओ". तभी मा की नज़र मेरे 8.5 इंच के लौरे की तरफ गई और वो चौंक के बोली "अरे ऐसे कैसे सो जौ, (और मेरा लॉरा अपने हाथ में पकर लिया) मेरे लाल का लंड खरा हो के बार बार मुझे पुकार रहा है और मैं सो जौ"

"ओह मा, इसको तो मैं हाथ से ढीला कर लूँगा तुम सो जाओ"

"ऩही मेरे लाल आजा ज़रा सा मा के पास लेट जा, थोरा डम ले लू फिर तुझे असली चीज़ का मज़ा दूँगी"

मैं उठ कर मा के बगल में लेट गया. अब हम दोनो मा बेटे एक दूसरे की ओर करवट लेते हुए एक दूसरे से बाते करने लगे. मा ने अपना एक पैर उठाया और अपनी मोटी जाँघो को मेरे कमर पर दाल दिया. फिर एक हाथ से मेरे खरे लौरे को पकर के उसके सुपरे के साथ धीरे धीरे खेलने लगी. मैं भी मा की एक चुचि को अपने हाथो में पकर कर धीरे धीरे सहलाने लगा और अपने होंठो को मा के होंठो के पास ले जा कर एक चुंबन लिया. मा ने अपने होंठो को खोल दिया. चूमा छाति ख़तम होने के बाद मा ने पुचछा "और बेटे, कैसा लगा मा की बुर का स्वाद, अक्चा लगा या ऩही"

"है मा बहुत स्वादिष्ट था, सच में मज़ा आ गया"

"अक्चा, चलो मेरे बेटे को अच्छा लगा इस से बढ़ कर मेरे लिए कोई बात ऩही"

"मा तुम सच में बहुत सुंदर हो, तुम्हारी चुचिया कितनी खूबसूरत है, मैं.... मैं क्या बोलू मा, तुम्हारा तो पूरा बदन खूबसूरत है."

"कितनी बार बोलेगा ये बात तू मेरे से, मैं तेरी आनहके ऩही पढ़ सकती क्या, जिनमे मेरे लिए इतना पायर च्चालकता है". मैं मा से फिर पूरा चिपक गया. उसकी चुचिया मेरी च्चती में चुभ रही थी और मेरा लॉरा अब सीधा उसकी चूत पर ठोकर मार रहा था. हम दोनो एक दूसरे की आगोश में कुच्छ देर तक ऐसे ही खोए रहे फिर मैने अपने आप को अलग किया और बोला "मा एक सवाल करू"

"हा पुच्छ क्या पुच्छना है"

"मा, जब मैं तुम्हारी चूत छत रहा था तब तुमने गालिया क्यों निकाली"

"गालिया, और मैं, मैं भला क्यों कर गालिया निकलने लगी"

"ऩही मा तुम गालिया निकल रही थी, तुमने मुझे कुत्ता कहा और और खुद को कुट्टिया कहा, फिर तुमने मुझे हरामी भी कहा"

"मुझे तो याद ऩही बेटा की ऐसा कुच्छ मैने तुम्हे कहा था, मैं तो केवल थोरा सा जोश में आ गई थी और तुम्हे बता रही थी कैसे क्या करना है, मुझे तो एक डम याद ऩही की मैने ये साबद कहे है"

"ऩही मा तुम ठीक से याद करने की कोशिश करो तुमने मुझे हरामी या हरमज़दा कहा था और खूब ज़ोर से झार गई थी"

"बेटा, मुझे तो ऐसा कुच्छ भी याद ऩही है, फिर भी अगर मैने कुच्छ कहा भी था तो मैं अपनी र से माफी मांगती हू, आगे से इन बतो का ख्याल रखूँगी"

"ऩही मा इसमे माफी माँगने जैसी कोई बात ऩही है, मैने तो जो तुम्हारे मुँह से सुना उसे ही तुम्हे बता दिया, खैर जाने दो तुम्हारा बेटा हू अगर तुम मुझे डूस बीश गालिया दे भी दोगि तो क्या हो जाएगा"

"ऩही बेटा ऐसी बात ऩही है, अगर मैं तुझे गालिया दूँगी तो हो सकता है तू भी कल को मेरे लिए गालिया निकले और मेरे प्रति तेरा नज़रिया बदल जाए और तू मुझे वो सम्मान ना दे जो आजतक मुझे दे रहा है"

"नही मा ऐसा कभी ऩही होगा, मैं तुम्हे हमेशा पायर करता रहूँगा और वही सम्मान दूँगा जो आजतक दिया है, मेरी नॅज़ारो में तुम्हारा स्थान हमेशा उँछ रहेगा"



















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1 comment:

Unknown said...

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