Saturday, June 12, 2010

धोबन और उसका बेटा--2

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धोबन और उसका बेटा--2
मा की सुंदरता देख कर मेरा भी मन कई बार ललचा जाता था और
मैं भी चाहता था की मैं उसे साफाई करते हुए देखु पर वो ज़यादा
कुच्छ देखने नही देती थी और घुटनो तक की सफाई करती थी और फिर
बरी सावधानी से अपने हाथो को अपने पेटिकोट के अंदर ले जा कर
अपनी च्चती की सफाई करती जैसे ही मैं उसकी ओर देखता तो वो अपना
हाथ च्चती में से निकल कर अपने हाथो की सफाई में जुट जाती
थी. इसीलिए मैं कुछ नही देख पता था और चुकी वो घुटनो को
मोड़ के अपने छाति से सताए हुए होती थी इसीलये पेटिकोट के उपर
से छाति की झलक मिलनी चाहिए वो भी नही मिल पाती थी. इसी
तरह जब वो अपने पेटिकोट के अंदर हाथ घुसा कर अपने जेंघो
और उसके बीच की सफाई करती थी ये ध्यान रखती की मैं उसे देख
रहा हू या नही. जैसे ही मैं उसकी ओर घूमता वो झट से अपना हाथ
निकाल लेती थी और अपने बदन पर पानी डालने लगती थी. मैं मन
मसोस के रह जाता था. एक दिन सफाई करते करते मा का ध्यान शायद
मेरी तरफ से हट गया था और बरे आराम से अपने पेटिकोट को अपने
जेंघो तक उठा के सफाई कर रही थी. उसकी गोरी चिकनी जघो को
देख कर मेरा लंड खरा होने लगा और मैं जो की इस वक़्त अपनी
लूँगी को ढीला कर के अपने हाथो को लूँगी के अंदर डाल कर अपने
लंड की सफाई कर रहा था धीरे धीरे अपने लंड को मसल्ने लगा.
तभी अचानक मा की नज़र मेरे उपर गई और उसने अपना हाथ निकल
लिया और अपने बदन पर पानी डालती हुई बोली "क्या कर रहा है जल्दी
से नहा के काम ख़तम कर" मेरे तो होश ही उर गये और मैं जल्दी
से नदी में जाने के लिए उठ कर खरा हो गया, पर मुझे इस बात
का तो ध्यान ही नही रहा की मेरी लूँगी तो खुली हुई है और मेरी
लूँगी सरसारते हुए नीचे गिर गई. मेरा पूरा बदन नंगा हो गया और
मेरा 8.5 इंच का लंड जो की पूरी तरह से खरा था धूप की रोशनी
में नज़र आने लगा. मैने देखा की मा एक पल के लिए चकित हो
कर मेरे पूरे बदन और नंगे लंड की ओर देखती रह गई मैने जल्दी
से अपनी लूँगी उठाई और चुप चाप पानी में घुस गया. मुझे बरा
डर लग रहा था की अब क्या होगा अब तो पक्की डाँट परेगी और
मैने कनखियो से मा की ओर देखा तो पाया की
वो अपने सिर को नीचे किया हल्के हल्के मुस्कुरा रही है और अपने
पैरो पर अपने हाथ चला के सफाई कर रही है. मैं ने राहत की
सांश ली. और चुप चाप नहाने लगा. उस दिन हम जायदातर चुप चाप
ही रहे. घर वापस लौटते वक़्त भी मा ज़यादा नही बोली.

दूसरे दिन से मैने देखा की मा मेरे साथ कुछ ज़यादा ही खुल कर
हँसी मज़ाक करती रहती थी और हमरे बीच डबल मीनिंग में भी
बाते होने लगी थी. पता नही मा को पता था या नही पर मुझे बरा
मज़ा आ रहा था. मैने जब भी किसी के घर से कापरे ले कर वापस
लौटता तो मा बोलती "क्यों राधिया के कापरे भी लाया है धोने के
लिए क्या". तो मैं बोलता, `हा', इसपर वो बोलती "ठीक है तू धोना
उसके कापरे बरा गंदा करती है. उसकी सलवार तो मुझसे धोइ नही
जाती". फिर पूछती थी "अंदर के कापरे भी धोने के लिए दिए है
क्या" अंदर के कपरो से उसका मतलब पनटी और ब्रा या फिर अंगिया से
होता था, मैं कहता नही तो इस पर हसने लगती और कहती "तू लरका
है ना शायद इसीलिए तुझे नही दिया होगा, देख अगली बार जब मैं
माँगने जाऊंगी तो ज़रूर देगी" फिर अगली बार जब वो कापरे लाने जाती तो
सच मुच में वो उसकी पनटी और अंगिया ले के आती थी और
बोलती "देख मैं ना कहती थी की वो तुझे नही देगी और मुझे दे
देगी, तू लरका है ना तेरे को देने में शरमाती होंगी, फिर तू तो अब
जवान भी हो गया है" मैं अंजान बना पुछ्ता क्या देने में
शरमाती है राधिया तो मुझे उसकी पनटी और ब्रा या अंगिया फैला कर
दिखती और मुस्कुराते हुए बोलती "ले खुद ही देख ले" इस पर मैं
शर्मा जाता और कनखियों से देख कर मुँह घुमा लेता तो वो
बोलती "अर्रे शरमाता क्यों है, ये भी तेरे को ही धोना परेगा" कह
के हसने लगती. हलकी आक्च्युयली ऐसा कुच्छ नही होता और जायदातर
मर्दो के कापरे मैं और औरतो के मा ही धोया करती थी क्योंकि उस
में ज़यादा मेहनत लगती थी, पर पता नही क्यों मा अब कुछ दीनो से
इस तरह की बातो में ज़यादा इंटेरेस्ट लेने लगी थी. मैं भी चुप
चाप उसकी बाते सुनता रहता और मज़े से जवाब देता रहता था.
जब हम नदी पर कापरे धोने जाते तब भी मैं देखता था की मा अब
पहले से थोरी ज़यादा खुले तौर पर पेश आती थी. पहले वो मेरी
तरफ पीठ करके अपने ब्लाउस को खोलती थी और पेटिकोट को अपनी
च्चती पर बाँधने के बाद ही मेरी तरफ घूमती थी, पर अब वो इस
पर ध्यान नही देती और मेरी तरफ घूम कर अपने ब्लाउस को खोलती
और मेरे ही सामने बैठ कर मेरे साथ ही नहाने लगती, जब की पहले
वो मेरे नहाने तक इंतेज़ार करती थी और जब मैं थोरा दूर जा के
बैठ जाता तब पूरा नहाती थी. मेरे नहाते वाक़ूत उसका मुझे घूर्ना
बदस्तूर जारी था और मेरे में भी हिम्मत आ गई थी और मैं भी
जब वो अपने च्चातियों की सफाई कर रही होती तो उसे घूर कर देखता
रहता. मा भी मज़े से अपने पेटिकोट को जेंघो तक उठा कर एक
पठार पर बैठ जाती और साबुन लगाती और ऐसे आक्टिंग करती जैसे
मुझे देख ही नही रही है. उसके दोनो घुटने मूरे हुए होते थे और
एक पैर थोरा पहले आगे पसारती और उस पर पूरा जाँघो तक साबुन
लगाती थी फिर पहले पैर को मोरे कर दूसरे पैर को फैला कर साबुन
लगाती. पूरा अंदर तक साबुन लगाने के लिए वो अपने घुटने मोरे
रखती और अपने बाए हाथ से अपने पेटिकोट को थोरा उठा के या अलग
कर के दाहिने हाथ को अंदर डाल के साबुन लगाती. मैं चुकी थोरी
दूर पर उसके बगल में बैठा होता इसीलिए मुझे पेटिकोट के
अनादर का नज़ारा तो नही मिलता था, जिसके कारण से मैं मन मसोस के
रह जाता था की काश मैं सामने होता, पर इतने में ही मुझे ग़ज़ब
का मज़ा आ जाता था. और उसकी नंगी चिकनी चिकनी जंघे उपर तक
दिख जाती थी. मा अपने हाथ से साबुन लगाने के बाद बरे मग को
उठा के उसका पानी सीधे अपने पेटिकोट के अंदर दल देती और दूसरे
हाथ से साथ ही साथ रगर्ति भी रहती थी. ये इतना जबरदस्त सीन
होता था की मेरा तो लंड खरा हो के फुफ्करने लगता और मैं वही
नहाते नाहटे अपने लंड को मसल्ने लगता. जब मेरे से बर्दस्त नही
होता तो मैं सिडा नदी में कमर तक पानी में उतर जाता और पानी
के अंदर हाथ से अपने लंड को पाकर कर खरा हो जाता और मा की
तरफ घूम जाता. जब वो मुझे पानी में इस तरह से उसकी तरफ घूम
कर नहाते देखती तो वो मुस्कुरा के मेरी तरफ देखती हुई बोलती "
ज़यादा दूर मत जाना किनारे पर ही नहा ले आगे पानी बहुत गहरा है",
मैं कुकछ नही बोलता और अपने हाथो से अपने लंड को मसालते हुए
नहाने की आक्टिंग करता रहता. इधर मा मेरी तरफ देखती हुई अपने
हाथो को उपर उठा उठा के अपने कांख की सफाई करती कभी अपने
हाथो को अपने पेटिकोट में घुसा के च्चती को साफ करती कभी
जेंघो के बीच हाथ घुसा के खूब तेरज़ी से हाथ चलने लगती, दूर
से कोई देखे तो ऐसा लगेगा के मूठ मार रही है और सयद मारती
भी होगी. कभी कभी वो भी खरे हो नदी में उतर जाती और ऐसे
में उसका पेटिकोट जो की उसके बदन चिपका हुआ होता था गीला होने
के कारण मेरी हालत और ज़यादा खराब कर देता था. पेटिकोट
छिपकने के कारण उसकी बरी बरी चुचिया नुमाया हो जाती थी. कापरे
के उपर से उसके बरे बरे मोटे मोटे निपल तक दिखने लगते थे.
पेटिकोट उसके चूटरो से चिपक कर उसके गंद के दरार में फसा
हुआ होता था और उसके बरे बरे चूतर साफ साफ दिखाई देते रहते
थे. वो भी कमर तक पानी में मेरे ठीक सामने आ के खरी हो के
डुबकी लगाने लगती और मुझे अपने चुचियों का नज़ारा करवाती जाती.
मैं तो वही नदी में ही लंड मसल के मूठ मार लेता था. हलकी
मूठ मारना मेरी आदत नही थी घर पर मैं ये काम कभी नही
करता था पर जब से मा के स्वाभाव में चेंज आया था नदी पर
मेरी हालत ऐसे हो जाती थी की मैं मज़बूर हो जाता था.

अब तो घर पर मैं जब भी इस्त्री करने बैठता तो मुझे बोलती
जाती "देख ध्यान से इस्त्री करियो पिच्छली बार शयामा बोल रही थी
की उसके ब्लाउस ठीक से इस्त्री नही थे" मैं भी बोल परता "ठीक है
कर दूँगा, इतना छ्होटा सा ब्लाउस तो पहनती है, ढंग से इस्त्री भी
नही हो पति, पता नही कैसे काम चलती है इतने छ्होटे से ब्लाउस
में" तो मा बोलती "अरे उसकी च्चाटिया ज़यादा बरी थोरे ही है जो वो
बरा ब्लाउस पहनेगी, हा उसकी सास के ब्लाउस बहुत बरे बरे है
बुधिया की च्चती पहर जैसी है" कह कर मा हासणे लगती. फिर मेरे
से बोलती"तू सबके ब्लाउस की लंबाई चौरई देखता रहता है क्या या
फिर इस्त्री करता है". मैं क्या बोलता चुप छाप सिर झुका कर इस्त्री
करते हुए धीरे से बोलता "अर्रे देखता कौन है, नज़र चली जाती
है, बस". इस्त्री करते करते मेरा पूरा बदन पसीने से नहा जाता
था. मैं केवल लूँगी पहने इस्त्री कर रहा होता था. मा मुझे
पसीने से नहाए हुए देख कर बोलती "छ्होर अब तू कुच्छ आराम कर ले
तब तक मैं इस्त्री करती हू," मा ये काम करने लगती. थोरी ही देर
में उसके माथे से भी पसीना चुने लगता और वो अपनी सारी खोल कर
एक ओर फेक देती और बोलती "बरी गर्मी है रे, पता नही तू कैसे कर
लेता है इतने कपरो की इस्त्री मेरे से तो ये गर्मी बर्दस्त नही होती"
इस पर मैं वही पास बैठा उसके नंगे पेट, गहरी नाभि और मोटे
चुचो को देखता हुआ बोलता,












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