Saturday, June 12, 2010

धोबन और उसका बेटा--9

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धोबन और उसका बेटा--9
मटकते हुए चूटरो के पिच्चे चलने का एक अपना ही आनंद है आप सोचते रहते हो की "हाई कैसे दिखते होंगे ये चूतर बिना कपरो के" या फिर आपका दिल करता हाई की आप चुपके से पिच्चे से जाओ और उन चूटरो को अपने हथेलियों में दबा लो और हल्के मस्लो और सहलाओ फिर हल्के से उन चूटरो के बीच की खाई यानी की गांद के गड्ढे पर अपना लंड सीधा खरा कर के सता दो और हल्के से रगर्ते हुए प्यार से गर्देन पर चुम्मिया लो. ये सोच आपको इतना उत्तेजित कर देती जितना शायद अगर आपको सही में चूतर मिले भी अगर मसल्ने और सहलाने को तो शायद उतना उत्तेजित ना कर पाए. चलो बहुत बकवास हो गई आगे की कहानी लिखते हाई, तो मैं अपना लंड पाजामा में खरा किए हुए अपनी लालची नज़रो को मा के चूटरो पर टिकाए हुए चल रहा था. मा ने मूठ मार कर मेरा पानी तो निकाल ही दिया था इस कारण अब उतनी बेचैनी ऩही थी, बल्कि एक मीठी मीठी सी कसक उठ रही थी, और दिमाग़ बस एक ही जगह पर अटका परा था. तभी मा पिच्चे मूर कर देखते हुए बोली "क्यों रे पिच्चे पिच्चे क्यों चल रहा हाई, हर रोज़ तो तू घोरे की तरह आगे आगे भागता फिरता रहता था" मैं ने शर्मिंदगी में अपने सिर को नीचे झुका लिया, हालाँकि अब शर्म आने जैसी कोई बात तो थी ऩही हर कुच्छ खुलाम खुला हो चुक्का था मगर फिर भी मेरे दिल में अब भी थोरी बहुत हिचक तो बाकी थी ही. मा ने फिर कुरेदते हुए पुचछा "क्यों क्या बात हाई तक गया हाई क्या" मैने कहा "ऩही मा ऐसी कोई बात तो हाई ऩही, बस ऐसे ही पिच्चे चल रहा हू". तभी मा ने अपनी चल धीमी कर दी और अब वो मेरे साथ साथ चल रही थी. मेरी र अपनी तिरच्चि नज़रो से देखते हुए बोली " मैं भी अब तेरे को थोरा बहुत समझने लगी हू, तू कहा अपनी नज़रे गाराए हुए हाई ये मेरी समझ में आ रहा हाई, पर अब साथ-साथ चल मेरे पिच्चे पिच्चे मत चल, क्यों की गाओं नज़दीक आ गया हाई कोई देख लेगा तो क्या सोचेगा" कह कर मुस्कुराने लगी. मैने भी समझदार बच्चो की तरह अपना सिर हिला दिया और साथ साथ चलने लगा. मा धीरे से फुसफुसते हुए बोलने लगी, "घर चल तेरा बापू तो आज घर पर हाई ऩही फिर आराम से जो भी देखना होगा देखते रहना". मैं हल्के से विरोध किया "क्या मा, मैं कहा कुच्छ देख रहा था, तुम तो ऐसे ही बस, तभी से मेरे पिच्चे पारी हो". इस पर मा बोली "लालू मैं पिच्चे पारी हू या तू पिच्चे परा हाई इसका फ़ैसला तो घर चल के कर लेना. फिर सिर पर रखे कपरो के गत्थर को एक हाथ उठा कर सीधा किया तो उसकी कांख दिखने लगी. ब्लाउस उसने आधे बाँह का पहन रखा था, गर्मी के कारण उसकी कांख में पसीना आ गया था और पसीने से भीगी उसकी कनखे देखने में बरी मदमस्त लग रही थी. मेरा मन उन कनखो को चूम लेने का करने लगा था. एक हाथ को उपर रखने से उसकी सारी भी उसके चुचियों पर से थोरी सी हट गई थी और थोरा बहुत उसके गोरे गोरे पेट भी दिख रहे थे, इसलिए चलने की ये पोज़िशन भी मेरे लिए बहुत अच्छी थी और मैं आराम से वासना में डूबा हुआ अपनी मा के साथ चलने लगा.
शाम होते होते तक हम अपने घर पहुच चुके थे. कपरो के गथर को इस्त्री करने वाले कमरे में रखने के बाद हुँने हाथ मुँह धोया और फिर मा ने कहा की बेटा चल कुच्छ खा पी ले. भूख तो वैसे मुझे खुच खास लगी ऩही थी (दिमाग़ में जब सेक्स का भूत सॉवॅर हो तो भूख तो वैसे भी मार जाती हाई) पर फिर भी मैने अपना सिर सहमति में हिला दिया. मा ने अब तक अपने कपरो को बदल लिया था, मैने भी अपने पाजामा को खोल कर उसकी जगह पर लूँगी पहन ली क्यों की गर्मी के दीनो में लूँगी ज़यादा आराम दायक होती हाई. मा रसोई घर में चली गई और मैं क्योले की अंगीठी को जलाने के लिए इस्त्री करने वाले कमरे में चला गया ताकि इस्त्री का काम भी कर साकु. अंगीठी जला कर मैं रसोई में घुसा तो देखा मा वही एक मोढ़े पर बैठ कर ताजी रोटिया सेक रही थी. मुझे देखते ही बोली "जल्दी से आ दो रोटी खा ले फिर रात का खाना भी बना दूँगी". मैं जल्दी से वही मोढ़े (वुडन प्लांक) पर बैठ गया सामने मा ने थोरी सी सब्जी और दो रोटिया दे दी. मैं चुप चाप खाने लगा. मा ने भी अपने लिए थोरी सी सब्जी और रोटी निकाल ली और खाने लगी. रसोई घर में गर्मी काफ़ी थी इस कारण उसके माथे पर पसीने की बूंदे चुहचुहने लगी. मैं भी पसीने से नहा गया था. मा ने मेरे चेहरे की र देखते हुए कहा "बहुत गर्मी हाई" मैने कहा "हा" और अपने पैरो को उठा के अपने लूँगी को उठा के पूरा जाँघो के बीच में कर लिया. मा मेरे इस हरकत पर मुस्कुराने लगी पर बोली कुच्छ ऩही, वो चुकी घुटने मोर कर बैठी थी इसलिए उसने पेटिकोट को उठा कर घुटनो तक कर दिया और आराम से खाने लगी. उसके गोरे पिंदलियो और घुटनो का नज़ारा करते हुए मैं भी खाना खाने लगा. लंड की तो ये हालत थी अभी की मा को देख लेने भर से उसमे सुरसुरी होने लगती थी, यहा मा मस्ती में दोनो पैर फैला कर घुटनो से थोरा उपर तक सारी उठा कर दिखा रही थी. मैने मा से कहा "एक रोटी और दे"
"ऩही अब और ऩही, फिर रात में भी खाना तो खाना हाई, आक्ची सब्ज़ी बना देती हू, अभी हल्का खा ले"


" क्या, मा तुम तो पूरा खाने भी ऩही देती, अभी खा लूँगा तो क्या तो हो जाएगा"


"जब जिस चीज़ का टाइम हो तभी वो करना चाहिए, अभी तो हल्का फूलका खा लो, रात में पूरा खाना"


मैं इस पर बुदबुदाते हुए बोला " सुबह से तो खाली हल्का फूलका ही खाए जा रहा हू, पूरा खाना तो पाता ऩही कब खाने को मिलेगा" ये







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