Saturday, June 12, 2010

बुझाए ना बुझे ये प्यास--14

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बुझाए ना बुझे ये प्यास--14

जैसे ही राज ने देखा की महक झाड़ चुकी है उसके लंड ने उबाल
खाना शुरू किया और वो तेज़ी से अपने लंड को उसके मुँह के अंदर
बाहर करने लगा....

राज ने उसके सिर को और पास मे खींच अपने लंड को उसके गले मे
डाल दियाया और एक ज़ोर की पिचकारी उसके गले मे छ्चोड़ दी. महक ने
उसके वीर्या को पीना चाहा लेकिन गले मे लंड फँसा होने के कारण वो
ऐसा कर ना सकी उसने अपने मुँह को थोड़ा पीछे किया और सांस लेते
हुए उसके वीर्या को पी गयी...... तभी उसके लंड ने फिर पिचकारी
छोड़ी... और फिर... वो गतक गतक कर उसके वीर्या को पीने लगी.
महक को आदत ना होने की वजह से थोड़ा वीर्या उसके होठों के कीनरे
से बाहर को बहने लगा... उसने अपनी जीब फिरते हुए सारा वीर्या चाट
लिया.

राज जब थोड़ा सा संभाला तो उसने महक को कंधों से पकड़ उसके
पैरों पर खड़ा कर दिया... वो उसे देख मुस्कुरा दी..... वीर्या अभी
भी उसके होठों से बह रहा था.. उसने अपनी उंगली मे उस वीर्या को
लिया और अपनी जीब निकाल चाटने लगी...

तभी राज ने उसके नाइट गाउन को निकाल दिया और उसे लाकर सोफे पर
बिता दिया. फिर वो उसकी टांगो के बीच बैठ गया और उसकी टांगो को
फैलते हुए अपना मुँह उसकी चूत पर रख दिया. उसने महक का हाथ
पकड़ उसे थोड़ा आगे को खींचा जिससे महक के सिर्फ़ कूल्हे सोफे पर
टीके थे... और वो उसकी चूत को अपने मुँह मे भर चूसने लगा.

महक की समझ मे नही आ रहा था की वो क्या करे कैसे करे....
आज से पहले किसी ने उसकी चूत को नही चूसा था... वो अपनी टाँगे
फैलाए राज को देखती रही जो उसकी चूत को मुँह भर चूस रहा
था.. तभी उसे राज की जीब का एहसास अपनी चूत पर हुआ... एक अजीब
सनसनी मच गयी उसकी चूत मे....

एक नई और अजीब उत्तेजना उसके बदन मे भरने लगी... जब राज ने
अपनी जीब उसकी चूत मे अंदर तक डाली तो वो जैसे पागल सी हो
गयी.. उसने राज के सिर को पकड़ अपनी चूत पर जोरों से दबा दिया....

महक से सहन नही हो रहा था.. उसकी चुचियाँ कठोर हो चुकी थी
और निपल तन कर खड़े हो चुके थे... उसेन अपनी दोनो चुचियों को
हाथों मे ले मसल्ने लगी... निपल को उंगली और अंगूठे मे पकड़
काटने लगी.... तभी राज ने अपनी जीब के साथ अपनी दो उंगलियाँ
उसकी चूत मे घूसा दी और उंगलियों को अंदर बाहर करने लगा. उसकी
साँसे तेज हो गयी और उसकी चूत ने दुबारा उबाल खाना शुरू कर
दिया...

थोडी ही देर मे राज का लंड फिर तन कर खड़ा हो गया था.. वो अपनी
जगह से खड़ा हुआ और अपने लंड को उसकी चूत के मुँह पर रख
दिया...

"तुम चाहती हो की में तुम्हे चोदु?" उसने पूछा.

"हां" उसने जवाब दिया.

"तुम एक छीनाल रंडी हो.. हो ना?" उसने फिर पूछा.

महक को समझ मे नही आया की वो क्या जवाब दे. उसे ये सब बात
सुनने मे अक्चा लग रा था... लेकिन वो अपने मुँह से कैसे कबूल
करे की हां वो एक छीनाल एक रंडी बन चुकी है.. आख़िर वो एक
शादी शुदा औरत थी.. एक जवान बाकछे की मा थी... पर उसे पता
था की अगर वो जवाब नही देगी तो राज उसे नही चोदेगा और चला
जाएगा... वो उसके लंड के लिए तड़प रही थी...

"हां" उसने शरमाते हुए जवाब दिया.

"किसकी छीनाल रंडी हो तुम बताओ मुझे?" उसने फिर पूछा.

"में तुम्हारी छीनाल रंडी हूँ..' उसने धीरे से जवाब दिया.

"फिर मेरी छीनाल रंडी इस वक्त क्या चाहती है..?" उसने पूछा.

ये गंदी बातें एक बार फिर उसे उत्तेजित करने लगी.. वो लाज शरम
सब छ्चोड़ बोली... "में चाहती हूँ की तुम अपनी इस छीनाल रंडी को
अपने मोटे लंड से चोदो." कहकर उसने उसके खड़े लंड को पकड़
लिया.

राज ने उसके हाथ को बीच मे से हटाया और एक ज़ोर का धक्का मार अपने
लंड को अंदर तक घुसा दिया.

'ऑश हां" वो चिल्ला पड़ी.

राज ने अपने लंड को बाहर निकाला और उसकी टांगो को उठा अपने कंधों
पर रख दी और फिर ज़ोर से अपने लंड को उसकी चूत मे घुसा दिया...
और वो ज़ोर ज़ोर के धक्के मार उसे चोदने लगा.

"ऑश हा हाआं ऐसे ःईईईई ओह हां." महक सिसकने लगी.

राज ने देख उसके हर धक्के के साथ उसकी चुचिया उछाल रही थी...
महक ने अपनी चुचियों को पकडा और जोरों से मसल्ने लगि..तभि
उसकी चूत ने पानी छ्चोड़ दिया.

थोडी ही देर मे राज का विरे भी उबाल खाने लगा... उसने अपने लंड
को बाहर निकाला और अपनी दोनो टाँगे महक के अगल बगल रख अपने
लंड को जोरों से मसल्ने लगा... दो तीन झटकों मे ही उसक लंड
पिचकारी दर पिचकारी छ्चोड़ महक के बदन को नहलाने लगा.

महक अपने हाथों से उसके वीर्या को अपने समूचे बदन पर मलने
लगी..... और जीब से हाथों पर लगे वीर्या को चाटने लगी..

तुम एक अची छीनाल हो... मज़ा आएगा." कहकर राज अपने कपड़े पहने
लगा... महक उसे प्यार भरी नज़रों से देख रही थी..

तय्यार होकर राज ने अपनी जेब से एक काग़ज़ और पेन निकाला और उसपर
अपना पता लिखने लगा और बोला.. "में चाहता हूँ की गुरुवार को तुम
शाम 7.00 बजे इस पाते पर पहुँच जाना. एक आक्ची सी छिनालों वाली
ड्रेस पहन कर आना और देर मत करना."

उसने वो काग़ज़ सोफे के कीनरे पर रखा और वहाँ से चला गया.
राज के जाने के बाद महक सोफे पर लेती रही... उसका वीर्या अभी उसके
बदन पर फैला हुआ था.... उसकी चूत भयंकर चुदाई से सूजी हुई
थी.... और उसके निपल भींचने की वजह से लाल हो चुके थे...
पर उसे इन सब बातों की परवाह नही थी... उसकी जिंदगी मे फिर
बाहर आ गयी थी... जिंदगी का सही मज़ा उसे मिल रहा था...
पीछले 15 सालों से जो वो कुछ खोती आई थी वो सब उसे हासिल हो
रहा था.... पर ऐसा नही था की वो अपने पति को चाहती नही थी..
वो बहोत प्यार करती थी अपने पति को लेकिन वो उसकी जिस्मानी
ज़रूरतें पूरी नही कर पा रहा था..

राज उसे इस्टामाल कर रहा है वो जानती थी... वो उसके साथ एक
बाज़ुरी रंडी की तरह व्यवहार कर रहा था... वो उसे तभी याद
करता था जब उसके लंड को उसकी चूत की ज़रूरत होती थी..... पर
उसे ये सब आछा लग रहा था... उसे एक रंडी बनने मे मज़ा आ रहा
था.

अपने बदन पर फैले राज को वीर्या को उसने तौलिए से साफ किया और
सोफे पर लेट गयी. एक कंबल ओढ़ वो वहीं सोफे पर आँख बंद कर सो
गयी.

सुबह उसकी आँख खुली तो सुबह के 9.30 बाज चुके थे. उसने वो काग़ज़
उठाया जिसपर राज ने अपना पता लिख कर दिया था. कल गुरुवार
था... वो उठी और बाथरूम मे घुस गयी. स्नान करते वक्त वो सोच
रही थी की उसे कल क्या पहनना चाहिए... राज के कहे शब्द उसके
दीमग मे दौड़ रहे थे... एक छिनालों वाली ड्रेस पहन कर आना....
वो अपने कपड़ों को याद करने लगी की उसे क्या पहनना चाहिए....
लेकिन उसके पास ऐसी कोई ड्रेस नही थी... इसलिए उसने मन माना लिया
की वो बेज़ार जाकर राज की पसंद की ड्रेस खरीद लेगी जिससे वो
खुश हो जाए.

अगले दिन शाम को महक राज के घर जाने के लिए तय्यार होने लगी..
और ठीक 6.30 बजे घर से निकाल गयी. उसके घर पहुँच उसने
दरवाज़े की घंटी बजाई और दरवाज़ा खुलने का इंतेज़ार करने लगी.

राज ने दरवाज़ा खोला और एक तक महक को देखने लगा. उसने जो ड्रेस
पहन रखी थी वो 45 साल की औरत तो कभी ना पहेनटी. उसने मेक
उप भी एक दम रंडियों जैसा ही किया हुआ था... गालों पर ढेर सारी
लाली... आँखों मे एए शॅडो और लिनड... और होठों पर गहरे
लाल रंग की लिपस्टिक.

उसका आध खुले गले का टॉप उसकी चुचियों की नुमाइश कर रहा
था..... राज उसकी झलकती चुचियों की दरार मे झाँकने लगा.....
उसकी चुचियों के खड़े निपल सॉफ दीखाई दे रही थे.. राज सिर्फ़
इतना नही जानता था की दरवाज़े की घंटी बजाने से पहले महक ने
खुद अपने निपल भेंचे थे जिससे की वो खड़े हो जाएँ और राज को
नज़ारा देखने को मिले... उसने नज़रे नीचे डाली तो देखा की उसका
स्कृत काफ़ी छोटा था जहाँ से उसकी नंगी जंघे दीख रही थी...
और फिर पैरों मे 5 इंच की हील की संडले... वो ठीक किसी रंडी की
तरह लग रही थी जो सड़क के कीनरे किसी ग्राहक की तलाश मे हो...

"बहोट अकचे" राज ने मन ही मन सोचा, उसने जैसे चाहा था वो वैसे
ही साज कर आई थी, "कैसी हो मेरी छीनाल जान?" उसने उसे चिढ़ाते
हुए पूछा.

राज जब उसे इस तरह से बुलाता था तो उसे बहोत अक्चा लगता था..
और तुरंत उसकी चूत गरमा गीली हो जाती थी... वो शर्मा गयी और
उसकी और देख मुस्कुरा दी.

"अंदर आ जाओ"

जैसे ही वो अंदर घुसी राज उसकी गांद की गोलैईयों को देख रहा था
जो उसके हर कदम के साथ गॅंड की दरार मे धँस जाती.... यूयेसे लंड
पॅंट के अंदर मचलने लगा था... उसने अपने लंड को पॅंट मे अड्जस्ट
किया और उसके पीछे पीछे घर के अंदर आ गया.

महक जब हॉल मे पहुँची तो उसने अपने स्कर्ट को थोड़ा ठीक किया और
फिर घूम कर वापस चलतिहुई राज के पास आ गयी.

"तुम्हारी ड्रेस बहोत जान लेवा है म्र्स सहगल..." उसे महक को ये
कह कर बुलाना अक्चा लगता था. वो इस तरह उसे याद दिलाते रहता
था की वो खुद उससे उमर मे बहोत छोटा है.....

"तुम ठीक एक दम छीनाल और बाज़ुरी रंडी लग रही हो."

महक मुस्कुराते हुए उसके पास आती रही और जब उसके करीब पहुँच
गई तो उसकी कमर को पकड़ उसके सामने घुटनो के बाल बैठ गयी. वो
उसकी पॅंट के हुक खोलने लगी लेकिन राज ने उसकी कलाईयों को पकड़
उसे रोक दिया.

"ऩही... अभी नही... इन सब के लिए अभी बहोत वक्त पड़ा है. अभी
मेरे कुछ दोस्त आने वाले है और तुम्हे दूसरे बहोत काम है जो
करने है."

"तुम्हारे दोस्त." उसने पूछा.

"हां मेने अपने कुछ दोस्तों को टीवी पर फुटबॉल मॅच देखने के लिए
बुलाया है. तुम्हे उनके लिए नाश्ता तय्यार करना है और अगर वो बोर
हो रहे हों तो तुम्हे उनका दिल बहलना है. तुमने क्या सोच था की
मेने तुम्हे ऐसी ड्रेस मेरे लिए पहनने को कहा था..? उसने कहा.













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