Saturday, June 12, 2010

बुझाए ना बुझे ये प्यास--8

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बुझाए ना बुझे ये प्यास--8

राज ने अपने लंड को थोड़ा बाहर खींचा और फिर एक ज़ोर का धक्का
मार अंदर घुसा दिया... महक सिसक पड़ी... राज उससे बात करने
लगा.

"साली रंडी की चूत तो पहले से ही गीली है.. क्या मेरे लिए रुक
नही सकती थी.." राज ने गुस्से मे ज़ोर का धक्का मार कहा.

"हां... नही रुक सकती.. कितना तड़प रही थी तुम्हारे लंड के
लिए.. इसलिए अपनी उंगलियों को चूत मे डाल तुम्हारा इंतेज़ार करती
रही." महक ने जवाब दिया.

"तो तुम मेरे लंड के बिना नही रह सकती... उसका इंतेज़ार नही कर
सकती..." राज ने फिर कहा.

"क्या करूँ में अपने आप को रोक नही पाती.. तुम्हारे लंड के ख़याल
से ही मेरी चूत गीली हो जाती है.. तुम्हारा लंड मेरी चूत मे है
ये सोचते ही मेरी चूत मचल पड़ती है.. मुझे तुम्हारे लंड बहोत
अछा लगता है.... हां चोदो मुझे ज़ोर ज़ोर से चूदूओ और बुझा दो
इस चूत की प्यास." महक बोली.

जैसे कोई भॉदबी कपड़ों को मूसल मार मार धोता है वैसे ही राज अपने
लंड से उसकी चूत को रौंदने लगा... वो खुद बहोत उत्तेजित था और
वो झड़ना चाहता था... हर धक्के के साथ उसके मुँह से ज़ोर की
हुंकार निकाल पड़ती.. वो उछाल उछाल कर किसी घोड़े की तरह उसकी
चूत मरने लगा... जब भी उसका लंड चूत के अंदर तक घुसता तो
उसके भरी अंडकोष महक की गॅंड से जोरों से टकराते..... महक
खुशी से सिसक पड़ती...

"ऑश हाआं ऐसे ही छोओओ डोओओ ऑश ओह ज़ोर से चोडो ऑश."

"म्र्स सहगल अछा लग रहा है ना? मेरा लंड तुम्हारी चूत के अंदर
बाहर होता है तो उतमहे मज़ा आता है ना? राज ने उससे पूछा.

"हाआँ बहोट अछा लगता है.. ओह हां चोदते ज़ाआओओ रूको मत... ऑश
में तो गयी..." उसकी चूत फड़फदाई.. . और आनंद की एक मीठी
लेहायर दौड़ी उसकी चूत मे... "ओओओः छूट गया मेरा..." वो जोरों से
सिसकी.

राज उसकी सिस्काइयाँ सुन रहा था.. उसका खुद का लंड पानी छोड़ने को
तय्यार था... उसने अपना लंड बाहर निकाला और उसे घूमने
कहा... "में तुम्हारी इस ब्रा को आपने पानी से नहलाना चाहता हूँ."

महक घूमी और उसके सामने घूटने के बाल बैठ गयी.. राज ज़ोर ज़ोर
से अपने लंड को मुठियाने लगा.. की उसका लंड पिचकारी छोड उसकी
नही काली ब्रा को भीगोने लगा.... गरम गरम वीर्या उसकी ब्रा के
अंदर से उसकी चूसी तक पहुँचा तो महक को मज़ा आने लगा...

जब उसका लंड पूरी तरह झाड़ गया तो उसने महक से कहा, "चल रांड़
अब मेरे लंड को सॉफ कर.."

महक तो खुश हो गयी.. मानो उसे मन की मुराद मिल गयी. उसने उसके
लंड को अपने मुँह मे लिया और ज़ोर ज़ोर से भींहति हुई चूसने लगी..
अपनी चूत और राज के वीर्या का मिश्रण उसे अछा लग रहा था.. वो
चटकारे ले उसके लंड को साफ कर चूस रही थी... थोडी देर के लिए
तो उसका लंड ढीला पड़ा लेकिन तुरंत ही उसमे जान आने लगी और वो
एक बार फिर तन कर खड़ा होने लगा.... उसने अपना हाथ नीचे किया
और अपनी चूत को रगड़ने लगी.. उसे एक बार फिर राज का लंड चाहिए
था.. वो इतनी जल्दी उसे जाने देने वाली नही थी... वो अपनी चूत को
रगड़ते हुए उसके लंड को चूस्ति रही.

"तो तुम्हे मेरा लंड चूसना बहोत अछा लगता है.. है ना म्र्स
सहगल?" राज ने उसे चिढ़ाते हुए पूछा.

महक ने कोई जवाब नही दिया और उसके लंड को चूस्ति रही.

"मेरी छीनाल रांड़ मेरे लंड को चूस तय्यार कर रही है.. वापस
मेरे लंड से चुदवाना चाहती है.. है ना मेरी बूढ़ी रांड़?" राज ने
पूछा.

महक ने अपनी नज़रिएन उठाई और उसके लंड को अपने मुँह से बाहर
निकाल दिया... "हां लेकिन इस बार में तुम्हारे लंड को अपनी गॅंड मे
लेना चाहती हूँ."

"ठीक है तुम्हे गॅंड मे लंड चाहिए तो गॅंड मे लंड मिलेगा...."
राज ने कहा, "लेकिन में तुम्हारे पति के बिस्तर पर तुम्हारी गॅंड
मारना चाहता हूँ."

महक तो उसकी बात सुनकर मुस्कुरा पड़ी.. वो दौड़ते हुए अपने कमरे की
और भागी... राज भी उसके पीछ पीछे उसके कमरे मे आ गया ... जब
वो कमरे की और आ रहा था तो उसे अपने सेल फोन की घंटी सुनाई
पड़ी... उसने उसपर ध्यान नही दिया और महक के कमरे में आ
गया... जब वो कमरे मे पहुँचा तो देखा की महक पलंग का सहरा
लिए अपनी गॅंड हवा मे उठाए घोड़ी बही हुई थी.

"आओ मेरे राजा.... कहाँ रुक जाता हू.. देखो ना मेरी गॅंड कैसे
तरस रही है.. प्लीज़ इसे जल्दी से तुम्हारे लंड से भर दो.."
महक ने किसी रंडी की तरह उसे रिझते हुए कहा.

राज उसके पीछे आया और अपने लंड को उसकी गॅंड के छेद पर रख
दिया... और धीरे धीरे अंदर घुसने लगा... महक दर्द के मारे
कराह उठी.

"ऑश मर गयी.... प्लीज़ धीरे धीरे करो ना दर्द हो रहा है..
क्या आआज़ सूखी ही ..?

राज ने अपने लंड को बाहर खींच उसकी चूत मे घुसा अंदर बाहर
करने लगा... जब उसका लंड अची तरह गीला हो गया तो फिर उसकी
गॅंड मे घुसा दिया....

"हां अब आछा लग रहा है.. तुम्हारा लंड कितना मोटा और लंबा है..
मेरी गॅंड तो भर तुम्हारे लंड से ...ओह हाआन्ं" महक जोरों से
बड़बड़ा रही थी.. अब उसे पड़ोसियों की भी परवाह नही थी....

'हाआँ मारो मेरी गेंड आअज इसका भुर्ता बना डो ऑश और ज़ोर से
मारो." वो और ज़ोर ज़ोर से सिसकने लगी.

राज ने अपनी रफ़्तार बढ़ा दी और ज़ोर ज़ोर से उसकी गॅंड मरने लगा.. वो
उसके कूल्हे पकड़ धक्के मार रहा था की एक बार फिर उसके दीमग मे
शैतानी आ गयी..

"तुम्हे मेरा लंड अपनी गॅंड मे अछा लगता है ना म्र्स सहगल?" उसने
पूछा.

"हां" महक ने जवाब दिया.

"ठीक है तो फिर आज तुम्हे साबित करना होगा की तुम्हे अपनी गॅंड मे
मेरा लंड लेना अछा लगता है.. आज सब मेहनत तुम्हे करनी होगी."

इतना कहकर राज ने अपना लंड उसकी गॅंड से निकाला और पलंग पर अपनी
टाँगे नीचे किए बैठ गया..."अब आजा और चढ़ जा मेरे मस्ताने
लंड पर.. में भी तो देखूं की तेरी गॅंड कैसे फुदक्ति है.. मेरे
लंड पर."

महक अपनी दोनो टांगो को उसकी टांगो के अगल बगल डाल उसकी तरफ
गॅंड करके खड़ी हो गयी.. फिर अपने हाथों से उसने उसके लंड को
अपनी गॅंड के छेड़ से लगा.. नीचे बैठ गयी और उसके लंड को अपनी
गॅंड मे ले लिया.

"ओह्ह्ह.. कितना अचययाया लग रहा है... " वो सिसकी... और उछाल
उछाल कर उसके लंड को लेने लगी...

"ओ ऱाज़ा तुम्हारा लंड कितना अछा हॅयाययी.. मेरी तो गॅंड ही भर गयी
तुम्हारे लंड से.. ओह मेरा तो फिर छूटने वाला है.... मुझसे बात
करो... मुझे गंदी रांड़ बोलो .. अपनी छीनाल बुलाऊओ में एक़ कुतिया
हूँ..."
"हां म्र्स सहगल तुईं बहोत ही गंदी रांड़ और कुटिया हो... वरना
अच्छी बीवियाँ अपने ही पति के बिस्तर पर अपने यार से गॅंड नही
मरवती.... .." राज ने उसके कुल्हों पर ज़ोर के दो तीन थप्पड़ मरते
हुए कहा, "अब उछाल उछाल कर मेरे लंड को अपनी गॅंड मे लो.. और
आगे से अपनी चूत मे उंगली डाल उसे चगोडो.."

महक पर तो चुदाई का नशा छाया हुआ था... उसने अपनी चूत को
मुति मे भरा और मसल्ने लगी.. फिर अपनी तीन उंगली अंदर डाल
अपनी चूत को चोदने लगी... चूत की गर्मी के साथ उसके उछालने की
रफ़्तार भी बढ़ रही थी... उसकी साँसे फूल रही थी... लेकिन मज़ाल
की उसकी रफ़्तार धीमी हो जाए... वो ुआर ज़ोर से अपनी उंगली को चूत
के अंदर बाहर करने लगी... की उसकी चूत ने पानी छोड दिया... उसकी
उंगलियाँ पूरी तरह उसके ही रस से भीग गयी...

राज ने अपना लंड उसकी गॅंड से बाहर निकाला और उसे एक बार फिर अपने
सामने बैठने को कहा, "म्र्स सहगल अब हम एक खेल खेलेंगे... तुम
मेरे लंड को अपनी मुति मे जाकड़ मसलॉगी.. और जब में कहूँगा की
मेरा छूटने वाला है तो तुम वीर्या की धार अपने मुँह मे लॉगी..
समझी."

राज को पता था की वो उसका सारा का सारा वीर्या अपनी मुँह मे नही ले
पाएगी.. उसका पूरा चेहरा भीगो देना चाहता था वो.. उसे महक को
जललिल करने मे मज़ा आता था... लेकिन महक थी की उसे कोई बात का
बुरा ही नही लगता था.. बल्कि उसे तो राज की हर हरकत मे मज़ा
आता था... वो बड़े प्यार से सब कुछ करने को और करवाने को तय्यार
रहती थी.. उसने राज के लंड को अपने मुति मे ले मसल्ने लगी और
उससे बोली.

"हां ऱाज़ा हाआं में तुम्हारे पानी को अपने मुँह मे लूँगी... आआज़
नहला दो मुझे अपने इस अमृत से... मुझे वीर्या की छूट्टी धार
बहोट अछी लगती है.. जब सीधी गले मे गरम गरम धार पड़ती है
तो में तृप्त हो जाती हूँ."

राज को विश्वास नही हो रहा था की कोई औरत इतनी बेबाक और बिंदास
हो सकती है..... रंडियन भी महक की हरकत को देख शर्मा
जाएँगी... महक की शब्दों ने उसे और उत्तेजित कर दिया था... लंड
अकड़ रहा था.... अंडकोःस उबलने लगे थे... उसने महक से कहा की
उसका छूटने वाला है.. महक ने अपना मुँह खोल दिया... और उसके
लंड को और ज़ोर से मुठियाने लगी.

पहली धार उसके मुँह के बजाई उसके चेहरे पर गिरी... तो महक ने
लंड को ठीक अपने मुँह की सीध मे क्या.. दूसरी उसके गले तक चली
गयी.... जिसे महक गीतक गयी... फिर राज का लंड अपने अमृत से
उसके चेहरे को गालों को नहलता रहा.

राज का काम ख़तम हुआ और हर बार की तरह फिर मिलेंटगे कह कर वो
चला गया... हॉल मे पहुँच कर उसने अपना सेल फोन देखा... तो
वो मिस कॉल वेल नंबर को वो पहचान नही पाया.... उसने देखा की
एक मेसेज भी आया था... उसने उस मेसेज को सुना.... जब रजनी ने
उसे उसके यहाँ आने के लिए कहा था और उसके घर का पता भी छोड़ा
था... तो जोरों से हँसने लगा.... "क्या रंडियन हाथ लगी है.. एक
छोड़ती है तो डोस्सरी तय्यार है... वा रे उपर वेल तेरा जवाब
नही.... वो रजनी के घर की और चल दिया.

महक ने स्नान किया और कपड़े बदल बिस्तर पर इस तरह लेट गयी और
पढ़ने लगी.. लेकिन जब उसने अपने पति को घर मे दाखिल होते सुना
तो कीताब को रख सोने का बहाना करने लगी.. अजय चुप चाप आया
और कपड़े बदल बाथरूम मे घूस गया जिससे रजनी के साथ बीताए
पलों के निशान मिटा सके.... जब वो पलंग पर आया तो महा जाग
रही थी.. दोनो चुप छाप लेट हुए थे और दोनो के दीमग मे एक
दूसरे से की बेवफ़ाई के वो पल दौड़ रहे थे.. दोनो एक दूसरे से
अपने राज़ को छिपाना चाहते थे.. लेकिन क्या किस्मत को ये मंज़ूर
था.

जब अजय और महक सोने की कोशिश कर रहे थे उस वक्त राज रजनी के
घर के सामने खड़ा दरवाज़े पर घंटी बजा रहा था.... रजनी ने
दरवाज़ा खोला.. उसने अजय के जाने बाद कपड़े बदल लिए थे.. राज
घर के आदर आया और उसे देखने लगा.

"तो तुम मुझसे चुड़वाना चाहती हो.... अपनी चूत की ठीक तरह
ठुकाई करवाना चाहती हो? राज ने पूछा.

रजनी सिर्फ़ मुस्कुरा के रह गयी.

"तुमने जवाब नही दिया?" राज ने फिर कहा.

"हां" उसने एक मादक अंगड़ाई लेट हुए कहा.

"तो तुम्हारी चूत तड़प रही है मेरे लंड के लिए?" राज ने फिर
कहा.

"हां बहोत ज़्यादा... आग ही आग लगी हुई है इसके अंदर." रजनी ने
जवाब दिया.

"ये तो थोडी देर मे पता चल जाएगा." राज ने रजनी से कहा.

रजनी उसके चिपक कर खड़ी हो गयी और अपना हाहत उसकी पॅंट के उपर
से उसके लंड पर रख दिया... वो उसकी आँखों मे झाँक रही थी....
दोनो हॉल मे आगाय और राज ने उसे सोफे पर बैठने को कहा.. और
खुद उसके सामने खड़ा हो गया.

"लगता है मेरे लंड के लिए कुछ ज़्यादा ही तड़प रही हो?"

"हां बहोत ज़्यादा" रजनी ने जवाब दिया.

राज ने अपनी पॅंट के बटन खोल अपने लंड को बाहर निकाल लिया.. और
बोला, "में अभी अभी अपने इस लंड से म्र्स सहगल की गॅंड मार कर आ
रहा हूँ.... अगर तुम्हे मेरा लंड चाहिए तो इसे चूस कर खुद के
लिए तयार करना होगा.." उसे उमीद थी की रजनी उसकी ये बात नही
मानेगी.... आज की रात दो बार उसके लंड की गर्मी शांत हो चुकी थी
इसलिए उसे रजनी के मानने ना मानने की परवाह भी नही थी.

राज वैसे ही खड़ा अपनी रखैल की सहेली को देखता रहा थ....कि
अचानक रजनी थोड़ा आगे को झुकी और उसके लंड को अपने मुँह मे ले
लिया.

रजनी के मुँह की गर्माहट पा राज के लंड मे जान आने लगी.. वो
फिर से खड़ा होने लग...वो लंड को इतना अछा चूस रही थी की राज
को स्मझ मे नही आया की उसका लंड उत्तेजना मे खड़ा हो रहा है या
फिर उसकी कला की वजह से.... वो उसके लंड को चूस्टे हुए मसल्ने
लगी... राज को मज़ा आने लगा...

रजनी तो इसी बात से खुश थी की राज महक को चोदने के बावजूद उसे
छोड़ने यहाँ उसके पास आया था.. उसका लंड अब खड़ा होने लग रहा
थ...उस्के लंड को ज़ोर ज़ोर से चूस्टे हुए वो अपनी चूत को मसल्ने
लगी...

राज चुपचाप खड़ा रजनी के मुँह का आनंद उठा रहा था... वो ड्कः
रहा था की वो कितनी कुशलता से उसके लंड को चूस रही थी और
साथ ही अपनी चूत को मसल रही थी.

थोड़े देर बाद राज उसकी टांगो के बीच बैठ गया और उसे खींच
कर सोफे के किनारे पर ले आया... फिर अपने खड़े लंड को उसकी चूत
मे घुसा दिया... वो खुशी से चिल्ला उठी..

"हाआं ऐसे ऑश कितना अछा लग रहा है.. हां ऐसे ही और अंदर
तक घुसा दो.."

राज ने उसकी दोनो जांघों को पकडा और ज़ोर ज़ोर से धक्के मरने
लगा... उसके हर धक्के पर वो भी अपनी कमर उठा उसके लंड को और
अंदर तक लेने लगी...

"हां चोडो मुझे और ज़ोर से चोडो ऑश मज़ा आ जाता है तुम्हारे
लंड से चुड़वाने मे."

राज पूरे जोश मे उसे चोद रहा था... उसकी भरी चुचियाँ मचल
मचल कर आगे पीछे हो रही थी... राज उसके जोश के देख खुद
उत्साहित हो रहा था.. वो रजनी को अभी अपने लंड का... अपनी आदायों
का दीवाना बना देना चाहता था...

"तुम भी कम छिनाल नही... बुद्धी हो गयी हूओ लेकिन लंड के लिए
पागल हो... तुम्हे इसकी भी परवाह नही की मेने अभी थोडी देर पहले
तुम्हारी सहेली की गॅंड और चूत मारी है.. और तुम उसी लंड से
चुडा रही हो." राज ज़ोर ज़ोर के धक्के मार उससे बात कर रहा था.

रजनी को भी राज की ये अदा बहोत आक्ची लगने लगी थी.. वो भी उसके
साथ ऐसी ही गॅंड बातें करना चाहती थी...

"म्र्स शर्मा तुम्हे मेरा ये मोटा लंड बहोत पसंद है ना? तुम्हारी
चूत तो इसकी दीवानी हो गयी है." राज ने फिर कहा.

"तुम ऐसी बातें करते हो ना तो मुझे बहोत मज़ा आता है.. मेरे
साथ भी वैसे ही बोलो जैसे तुम महक के साथ बोलते हो" रजनी अपनी
कमर उठा उसके लंड को अपनी चूत मे और अंदर तक लेट हुए बोली.

"तो तुम्हे बुद्धी रांड़ बुलयुन तो कैसा रहेगा?" राज ने पूछा.

"नही तुम मुझे म्र्स शर्मा कह कर बुलाओ.. में गरमा जाती हूँ ये
सोच कर मुझ जैसी अधेड़ औरत तुम जैसे नौजवान लड़के को भी
गरम कर सकती है..." रजनी ने कहा.

"तुम भी साली छिनालों की छीनाल हो म्र्स शर्मा... " राज ने उसे
चिढ़ाते हुए कहा.

तभी रजनी की चूत ने पानी छोड दिया... उत्तेजना मे उसका समुचा
बदन कांप रहा था और उसकी चूत पानी छोड रही थी.. वो अपनी
कमर उठा उसके लंड को अपनी चूत मे जकड़ने लगी.. और पानी छोड़ती
रही...

जब उसकी चूत थोडी शांत हुई तो वो अपनी चुचियों को भींचते हुए
किसी रंडी की तरह राज से बोली, "अब मुझे ये मोटा लंड अपनी गॅंड मे
चहिये..इस लंबे लंड से महक की तरह भी गॅंड मरो."

राज ने अपना लंड उसकी चूत से निकाल लिया और उसके बगल मे बैठ
गया.. "अगर तुम्हे भी म्र्स सहगल की तरह चाहिए तो तुम्हे भी
मेहनत करनी होगी." राज ने कहा.

रजनी इतनी गर्मी हुई थी की उसे तो किसी बात की परवाह ही नही थी..
वो तो कुछ भी करने के लिए तय्यार थी.. वो राज की गोद मे बैठ
गयी.. और उसके लंड को अपनी गॅंड के छेड़ से लगा उस बार बैठ
गयी.. उसका लंड उसकी गॅंड की दीवारों को चीरता हुआ अंदर घुस
गया... अब वो ज़ोर ज़ोर से उछाल उछाल कर उसके लंड को अपनी गॅंड मे
लेने लगी अपनी दोनो चुचियों को जोरों से मसल्ते हुए वो उछाल रही
थी.

राज बड़े प्यार से उसकी गॅंड को अपने लंड पर उपर नीचे होते देखता
रहा... क्या रात बीती थी उसकी आज.. दो दो छीनाल दिल खोल कर उससे
चुडा रही थी... उसका लंड अकड़ने लगा था... लेकिन इसके पहले की
वो पानी छोड़ता... रजनी फिर जोरों से सिसक पड़ी.. चिल्ला पड़ी.. और
शायद उसकी चूत ने एक बार फिर पानी छोड दिया था...

वो शांत पड़ने लगी तो राज ने उसे उठा कर सोफे के सहारे घोड़ी बना
दिया और उछाल उछाल कर उसकी गॅंड मरने लगा.. तीन चार ज़ोर के
धक्के मार दिए... जब उससे नही रहा गया तो उसने अपना लंड बाहर
निकाल अपना वीर्या उसकी गॅंड पर छोड दिया.

राज भी तक गया था..."अब मेरे इस लंड को किसी सॉफ कपड़े से सॉफ
कर दो..?"

"रजनी एक नॅपकिन ले आई और प्यार से उसके लंड को पौंचने लगी..
अची तरह सॉफ करने के बाद उसे बड़े प्यार से चूम लिया, "सही मे
बहोत प्यारा है ये... में तो पागल और दीवानी हो गयी हूँ इसकी...
जी करता है की हर वक्त इस अपनी गॅंड और चूत मे लिए रहूं."

राज ने अपने कपड़े पहेने और जाने लगा, "फिर जब ज़रूरत पड़े तो
फोन करना बंदा हाज़िर हो जाएगा." कहकर वो चला गया.












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