Thursday, June 10, 2010

अंदाज़-ए-इश्क़ पार्ट --4

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अंदाज़--इश्क़ पार्ट --4

सागर हल्के हल्के कदमो से अपने घर की तरफ बढ़ रहा था,,,,,,वो जानता था घर पे कोई नही है,,,,और वो जब गया था तो लॉक डाल के गया था,,,,,,,और पापा के पास दूसरी चाबी है,,,,,,,,लेकिन जब गेट पे उसकी नज़र गयी तो वाहा पे लॉक टूटा हुआ था,,,,,,,सागर का शक और गहरा हो गया,,,,,,,उसने घूम के सब तरफ देखा तो वाहा पे ग्रास कटर रखा हुआ था,,,,,सागर ने वो उठा लिया,,,,,,,किसी चोर के अंदेशे से वो घर की तरफ बढ़ने लगा,,,,,,,,,

सागर कुछ कदम ही मैं गेट की तरफ बड़ा होगा के उसका अंदाज़ा सही निकला,,,,,क चोर खिड़की से कूदता हुआ बाहर की तरफ भागा,,,,,,,,सागर ने भी बिना देर लगा उसके पीछे दौड़ लगा दी,,,,,,चोर के पास सागर के घर से चुराया हुआ कुछ सामान था,,,,,,जो उसने क चादर मे बाँध रखा था,,,,,,सागर उसके पीछे भाग रहा था,,,,,,,,

"सामान फेक दे कुत्ते,,,,,,,मैं तुझे ऐसे नही जाने दूँगा",,,,सागर ने चीख के कहा,,,,,,,लेकिन चोर तेज़ी से भागता रहा,,,,,,,,"देख मेरे पास गन है,,,,,,अगर तूने सामान नही फेका तो मैं शूट कर दूँगा",,,,,,,,सागर ने आख़िरी दाव फेका और उससे कामयाबी मिल गयी,,,,,,,,चोर ने थोड़ी दूर जाकर समान भागते हु फेक दिया,,,,,,,,और गायब हो गया,,,,,,सागर के चेहरे पे मुस्कान आ गयी,,,,,उसने अपने रेवोल्वेर(ग्रास कटर) को देखा और समान उठा के घर वापस आ गया,,,,,,,,

"सागर उठो बेटा,,,,देखो 10 बज रहे हैं,,,,,,और ये घर का सामान कैसा बिखरा हुआ पड़ा है,,,,,,,उठो बेटा",,,,,,,,,,,,सागर की मा वापस आकर उसको जगाने की कोशिश कर रही थी,,,,,,वो सारा समान बिखरा हुआ देख कर हैरान थी,,,,,,,,

"अर्रे सोने दो ना मा कुछ नही हुआ क चोर घुस आया था रात घर मे लेकिन मैने उससे सामान बचा लिया,,,,,,अब मुझे सोने दो मा",,,,,,,सागर सोने मे बहुत उस्ताद था,,,,,,

"अर्रे तुम तो ऐसे बेफ़िक्र हो जैसे कुछ हुआ ही नही,,,,,,,क्या हुआ था रात,,,,,,,अच्छा पहले उठ कर नहा लो मैं नाश्ता लगा देती हू",,,,,,,तभी दरवाज़े पे बेल बाजी,,,,,,,,"मैं देख के आती हू,,,,,,,तुम जल्दी से उठ जाओ बेटा",,,,,,,,,मा ने जाते हु कहा,,,,,

करीब 10 मिनिट के बाद मा वापस आई,,,,,,सागर अब भी लेटा हुआ हा,,,,,,,"बेटा सागर!!! दीपक आया है,,,,,,तुमसे मिलने आया है,,,,,,,,जाओ मिल लो नीचे"

"कौन!!! दीपक भाई आ हैं,,,,,,वो कब आ,,,,,छुट्टियो पे आ हैं क्या",,,,,,,,,सागर ने कद्ूम से उठते हु पूछा,,,,,

"नही बेटा वो इस बार छुट्टियो पे नही आया,,,,,उसका यही ट्रान्स्फर हो गया है,,,,अब उससे नैनीताल का को- सिटी बनाया गया है,,,,,,,, सब मुझसे ही पूछ लोगे या नीचे जाके उससे भी मिलोगे",,,,,,,मा ने हस्ते हु कहा,,,,,,

सागर जल्दी से उठा और नीचे आने लगा,,,,,,दीपक सामने हाल मे सोफे पे बैठा हुआ था,,,,,,,देखने मे कद्ूम हीरो लग रहा था,,,,पोलीस वालो का रौब चेहरे पे सॉफ छलक रहा था,,,,,,गर्व से चेहरा चमक रहा था,,,,,,,सच्चाई का तेज आँखों मे दूर से ही पता ही चल रहा था,,,,,,,

"सैयाँ भा थानेदार अब डर काहे का",,,,,,,सागर ने सीडीयों से उतरते हु ही चुटकी ली,,,,,,,वैसे तो वो दीपक को अपना बड़ा भाई मानता था,,,,लेकिन छोटा मोटा मज़ाक उनके बीच चलता रहता था,,,,,,

"इतना भी डर नही रहा के मेरे आते ही क्राइम शुरू कर दि",,,,,,,,दीपक से हल्की सी मुस्कान सागर को देते हु कहा,,,,,,,और चेहरा फिर से गंभीर हो गया,,,,,,,,सागर को कुछ अटपटा सा लगा लेकिन उसने इस बात पे ज़्यादा ध्यान नही दिया,,,,,,,,,

"कनग्रॅट्स दीपक भाई,,,,,,बहुत बहुत मुबारक हो आपको नयी जॉब,,,,,अब मुझे पूरा यकीन है कोई भी क्रिमिनल आपके हाथो से बच नही पागा",,,,,,,सागर को सच मे बहुत खुशी थी,,,,,,,,,और वो उसकी आँखों से पता चल रही थी,,,,,,

"हा वो तो है,,,,,,,चलो काम की बात पे आता हू,,,,मैं आज यहा दीपक नही इनस्पेक्टर दीपक बनके आया हू,,,,,कल रात जो जो हुआ वो मुझे डीटेल मे बताओ",,,,,,,,,,दीपक का चेहरा गंभीर था,,,,,सागर को अजीब लगा लेकिन उसने सोचा मा ने शायद उनको सब बात बताई है,,,,,,,

"अर्रे मा भी ना हर छ्होटी छ्होटी बात पे परेशान हो जाती हैं,,,,,,कुछ नही हुआ दीपक भाई रात,,,,,,आप टेन्षन मत लो,,,,,,,क चोर घुस आया था रात घर मे,,,,,,,,,मैने पीछे करके उससे सामान बचा लिया,,,,,,कोई चीज़ चोरी नही हुई",,,,दीपक ने सहज होते हु कहा,,,,,

"अंजान बनने की कोशिश मत करो,,,,,रात जब तुम उसके पीछे चीखते हु भाग रहे तो कॉलोनी के कई लोगो ने तुम्हारी आवाज़ सुनी थी,,,,,और क ने तो तुम्हे कोई हथियार लेके उसके पीछे भागते हु देखा था,,,,,,,,और उसके 2 घंटे के बाद उससी रोड पे आगे जाकर हमे क लाश मिली है,,,,,,हमे शक है के वही आदमी तुम्हारे घर मे घुसने वाला चोर था,,,,,,,और प्रत्यक्षदरसी ने भी चोर का हुलिया लाश से मिलता हुआ बताया है,,,,,,,अब तुम सच सच बता दो के रात मे क्या क्या और कैसे कैसे हुआ,,,,,,,मैं तुम्हे बचाने की कोशिश करूँगा",,,,,,,

दीपक बोलता चला गया,,,,,,और सागर की आँखें असचर्या से फैलती चली गयी,,,,,,,कत्ल की बात सुनके उसको यकीन ही नही हुआ,,,,,,,उससे अब बोला भी नही जा रहा था,,,,,,

"नही दीपक भाई आप को ग़लतफहमी है,,,,,रात ऐसा कुछ नही हुआ,,,,,,,,देखि मज़ाक मत करि,,,,,,आप मज़ाक कर रहे हो ना",,,,दीपक इसी इंतेज़ार मे था के ये बात मज़ाक निकले,,,,,,

"देखो सागर मैं मज़ाक नही कर रहा,,,,,,,चलो मेरे साथ थाने चलो,,,,,,,वाहा बैठ कर सब बात मुझे बताओ,,,,,,जो जो हुआ वो सब डीटेल मे,,,,,,वो तो मैं हू जो अब तक तुम गिरफ्तार नही हु हो,,,,,,वरना इतने सबूतो की बिनाह पे तो कब का तुम्हे अरेस्ट कर लिया होता,,,खैर तुम मेरे साथ चलो",,,,,,,दीपक का लहज़ा अब तक नरम था,,,,,,,यकीन तो उसको भी नही हो रहा था,,,,,,लेकिन सबूतो की पैरवी तो उसको करना ही थी,,,,,,दीपक ने सागर का हाथ पकड़ा और अपने साथ जीप मे बैठा के ले गया,,,,,,,

सागर की मा दीपक की मेहमान नवाज़ी के लि नाश्ता तैयार करती रह गयीं,,,,,,लेकिन दीपक तो सागर को ही मेहमान नवाज़ी के लि ले गया,,,,,,,,,,,,

"आआआह विकी इतने ज़ोर से मत करो,,,,आअऊऊऊ,,,,,धीरे प्ल्ज़ विकी धीईईरे",,,,,,,,सुरभि चुदाई के पूरे मज़े ले रही थी,,,,,,विकी भी पूरी तैयारी के साथ सुरभि के उपर लगा हुआ था,,,,,,,बरसो की ख्वाहिश जो उसकी पूरी हो रही थी,,,,,,,,,

"मेरी जान आज मुझे मत रोको मुझे अपनी मनमानी कर लेने दो कितने बरसो से तुम मुझे तडपा रही हो,,,,,,,,आज मैं तुम्हारी क नही मानूँगा,,,,,,,",,,,,,,,,,विकी के जज़्बात आज काबू मे नही थे,,,,,,,दिल मे अजीब सी हुलचल मची हुई थी,,,,,,,,अचानक फोन की बेल बजी,,,,,विकी ने फोन उठाने की कोशिश की लेकिन ये क्या रिंग तो अब भी बजे जा रही थी,,,,,,,विकी होश मे आया तो देखा ये सब सपना था,,,,,,,क्ल्प्ड हो गयी उसकी तो,,,,,,इतना सुंदर सपना टूट गया उसका,,,,,,,,उसने झल्ला के फोन को उठाया,,,,,,फोन सागर के मोबाइल से था,,,,,दिल मे तो उसके था के सुना दे खरी खोटी,,,,,,,ग़लत टाइम पे फोन कर दिया उसने,,,,,,विकी की ख्वाहिश सपने मे ही सही लेकिन पूरी होने वाली थी,,,,,,

"हाँ बोल,,,,,हमेशा ग़लत वक्त पे ही फोन करता है",,,,,,,,विकी ने बनावटी गुस्से से कहा,,,,,,

"बेटा मैं बोल रही हू,,,,सागर की मम्मी",,,,,,उधर से मम्मी की आवाज़ आई,,,,,,,

"नमस्ते आंटी जी,,,,सॉरी मैं समझा सागर है,,,,,बताइ क्या काम है",,,,,विकी ने सहजता से पूछा,,,,,,,,

"तो क्या सागर तुम्हारे यहा नही है,,,,,,मैने सोचा वो तुम्हारे साथ होगा,,,,,,,,वो सुबह दीपक आया था,,,,उसके ही साथ निकल गया,,,,,देखो ना बेटा अब तक नाश्ता भी नही किया है",,,,,मा ने थोड़े नाराज़ी वाले लहज़े मे विकी को अपनी बात बताई,,,,

"क्या दीपक भाई आ हु हैं,,,,और मुझे पता तक नही है,,,,,,और सागर उनके साथ है अच्छा आप चिंता मत कीजि मैं अभी पता लगाता हू",,,,विकी खुशी से उछल पड़ा वो दीपक को अपना गुरु मानता था,,,,,,,और उनके आने से वो बहुत खुश था,,,,,,,

विकी ने झट से सुरभि को फोन मिलाया और उससे दीपक भाई का नंबर. लेके उन्हे फोन मिला दिया,,,,,,"हेलो कौन",,,,,,,,उधर से आवाज़ आई,,,,,

"मैं तो बता दूँगा आप बताइ आप कौन बोल रहे हैं",,,,विकी ने चुटकी लेने की सोची,,,,,,

"मैं को-सिटी नैनीताल दीपक बोल रहा हू",,,,,,,,,,दीपक ने तेज़ लहज़े मे कहा,,,,,,,विकी की तो सिट्टी पिटी गुम हो गयी,,,,,
"क्याआआआअ,,,,,,,,भाई तुम को बन गये,,,,,,,,मैं विकी बोल रहा हू,,,,,,आपका नंबर. अभी सुरभि से लिया है",,,,,,,विकी ने खुश होते हु कहा,,,,,,,

"हां मेरी पोस्टिंग यहा हो गयी है,,,,,,और बताओ कैसे हो",,,,दीपक को खुशी तो हुई लेकिन इस समय वो बहुत बड़ी उलझन मे था,,,,,,वो सागर को थाने ना लेजा कर अपने साथ घर ले आया था,,,,,,जहा वो उससे पूछताछ कर रहा था,,,,,,,

"भाई ये तो बहुत अच्छी बात है,,,,,कब पार्टी दे रहे हो,,,,,वैसे मैने कॉल इसलि की थी कि क्या सागर आपके साथ है,,,,,,,वो उसकी मम्मी का फोन आया था,,,,,उन्हे चिंता हो रही है,,,,,"

"हाँ वो मेरे साथ ही है,,,,मैं ही उससे लेके आया हू,,,,,क मर्डर के केस मे उससे कुछ पूछताछ कर रहा हू,,,,,तुम भी मेरे यहा आ जाओ",,,,,दीपक ने विकी को वहाँ बुलाना ही ठीक समझा,,,,,उससे पता था वो दोनो बहुत अच्छे दोस्त हैं,,,,

"क्याअ सागर से किस सिलसिले मे बात हो रही है",,,,,,,विकी को अजीब सा लगा,,,,दीपक के बात करने के लहज़ा भी कुछ सख़्त था,,,,,

"वो सब मैं तुम्हे बाद मे बताउन्गा,,,,पहले तुम यहा मेरे घर आ जाओ,,,,,,और किसी से भी कुछ कहने की ज़रूरत नही है,,,,समझे",,,,,,,,,दीपक ने विकी को ऑर्डर के लहजे मे फरमान सुना दिया,,,,,,

"ठीक है भाई मैं आधे घंटे मे वाहा पहुचता हू",,,,,,विकी को ही अब चिंता होने लगी,,,,,,वो बुरी तरह कन्फ्यूज़्ड गया था,,,,दीपक भाई का नेचर तो ऐसा कतई नई था जिस तरह से वो बात कर रहे थे,,,,,लेकिन फिर भी उससे चिंता हो रही थी,,,,,सागर से किस मर्डर के सिलसिले मे बात हो रही थी ये उसके दिमाग़ से बाहर की बात थी,,,,,

क बार तो उसके दिमाग़ मे आया के कही दोनो मिल के उसकी फिरकी तो नही ले रहे हैं,,,,,लेकिन फोन तो सागर की मा का आया था,,,,वो इसमे कैसे शामिल हो सकती हैं,,,,,,खैर विकी ने सब बातो को अपने दिमाग़ से निकाल कर दीपक भाई के घर जाने का फ़ैसला किया,,,,,,सारी बता वही जाकर पता लगनी थी,,,,,,



साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा

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